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Friday, 17 February 2017

इस्लाम अोर मुस्लमान का किरदार अोर उसके हालात

*अस्साला मु अलयकुम वरहमतुल्लोह ही वबरकातुह*

✒ *हुजैफा पटेल (मुलनिवासी योध्दा)*
गुजरात भरुच

*इस्लाम अोर इन्सानीयत की पेहचान अोर इसके दुसमन*

*सबसे पेहले हम इस्लाम के बारे मे बात करेंगे इस्लाम को इस दुनीया मे अल्लाह रब्बुल इज्जत ने दुनीया मे इन्सानीयत की राह दीखाने के लीये अपनी तरफसे भेजा एक रास्ता अोर दुनीयाको अम्नो अमान काइम करने का फोरमुला हे*

*अब इस फोरमुले से केसे फायदा हो वो हर दोरके इन्सानोकी जींदगी जीने के तरीके को दैख कर ये फोरमुला यानी रास्ता इन्सानीयत को फायदा अोर नुकसान पोहचाता हे ,*

*दुनियामे जबजब इन्सानीयत को गुमराह अोर उनपर जुलाम करने वालो ने दुनीया की हर जगाह को उनहोने गंदा अोर नापाक करदीया हे जिसकी मीसाले हजारो हे इसपर हम बात नही करेंगे बात हम मुद्दे पर आकर करते हे ताके हमारा ये वक्त सही मालूमात हासील करने मे लगे अोर इस्को मालुम करके इसपर हम अपना रोल ( किरदार) अदा करने की कोसीस करे दिनीया मे आज हर जगाह मुस्लिम समाजको बदनाम अोर मारा,काता,पीता,अोर खतम कीया जारहा हे फिर भी हम यानी मुस्लिम समाज इस्लाम के मान्ने वाले लोग अपनी जुबान से इस्लाम को कबुल करने का दावा करते हे लेकीन अगर उनमे हम कुच बातो अोर कुच दलीलो से मुस्लमानो के विचार अोर कामो का जाइजा लेते हे तो ये खोखला अोर कमजोर नजर आताहे ,*
*फलसतीन,सीरया,आफगानीसतान,कुवेत,अमेरीका,केनेदा,रशिया,अोसटेर्लीया,अोर हमारे प्यारे वतन भारत मे हज्जारो मुस्लमानोको सिर्फ अोर सिर्फ मुस्लिमहोने कि वजाहसे मारा काता अोर खतम करबे की कोसीस पीछले कय सालो से हो रहा हे लेकीन इसके खिलाफ आम मुस्लमानकी कोय सोच ही नही हे तो फिर वो कंहासे मुस्लमान केहलायेगा ये बहोत बरे चर्चा का वीसय हे लेकीन हमे सिर्फ कुच बातो पर यंहा बात करनी हे,*
*इस्लाम को मानकर इस्लामकी अोर इन्सानीयतकी हिफाजत करना हमारा फर्ज हे लेकीन इसी कोसीस करते  दुर नजर आते हे अेसे वक्त मे मुजे एक सेर याद आती हे जो आपके सामने केह दु,*

*सेखुल हिंद र.अ. ने बहोत खुब बात कही हे जिस पर बाज मुस्लमाबो को सोचने की बहोत जरुरत हे इसका कुच अपने अंदाज मे बात रखने की कोसीस करुंगा उनहोने कहा हे के अाजका अजिब मुस्लमान हे दुस्माने इस्लाम मस्जीद पर पथर पर पथर बरसा रहे हे अोर मुस्लमान हे के मस्जीद मे नफिल पे नफिल परहे जा रहा हे ये बात ये साफ तोर पर साबीत करती हे के मुस्लमानो मे इस्लाम अोर इन्सानीयत की हिफाज की जम्मेवारी समजता तो हे लेकीन वो उस्को अपने हीसाब से यानी सिर्फ अोर सिर्फ इबादत से अोर दुवा नमाज से हल करना चाहता हे अोर जो कुरबानी देनी चाहीये उस्से भागने की कोसीस करता हे,*

*अब हम बात करेंगे इन्सानीयत की इन्सानीयत दुनीयामे सिर्फ अोर सिर्फ चंद काम करने से नही आती हे इसके लीये  कुरबानी यानी अपनी खावहीसकी,ज्जबातकी,अोर मालोमताकी,दुनीयाकीहर प्यारी चीजकी कुरबानी देनी परती हे हत्ता के जानभी अगर देनी परेतो देनी परती हे इसको केहते हे इस्लाम से जुरा इन्सान अोर उस्की इन्सानीयत अगर इसकी मिशाल देखनी हे तो हमे कंही जाने की जरुरत नही हे बस हमे 1450साल पीछे जाकर उसमे से अपने इमानी ज्जबात को देखना हे के वो केसे थे अोर हम केसे हे उनहोने इस्लामको फेलायाभी था अोर इन्सानीयत का नमुना बनके दीखायाथा तब जाकर वो लोग दुनीया मे अपने आपको मुस्लमान साबीत कर सके अोर इन्सानीयत को एक बेहतर रस्ता दे कर गये थे अोर दुनीया मे अमनो अमान काइमकीया इसके पीछे हज्जारो बच्चे यतिम हुये कय मां बेहने बेवा हुइथीअोर कय्यो ने अपने पयारे बेतो की कुर्बानी दीथी उनकी कुरबानीया आजका मुस्लामन किस्से अोर कहांनीयो की तरहा सुन्नता हे इसकी वजाह से अाजके मुस्लमान मे कुरबानी के जो ज्जबात होने चाहीये अोर आने चाहिये वो नही होते हे ना आते हे ,*

*दुनियामे बहोत से लोग आये जीन हिने अपने नापाक विचार से इस्लाम को कबुल करने का अोर मुस्लमा न होने का दोगला पन कीया हे जिसको इस्लाम की जुबान मे मुनाफीक कहा जाता हे अेसे मुनाफीक अल्लाह के प्यारे अोर नबी के जमाने भी बहोत से  थे अोर उनहोने अपने दोगले पनसे इस्लाम अोर मुस्लमानो को बहोत नुकसान पोहचाया था चुके अेसे मुनाफीक उस दोर मे कबी भी बहार निकल कर अपनी मुनाफीक सोच अोर काम को नही करते थे जिसकी वजाह जानिसार साहाबा थे , मुनाफीक की पेहचान भि अल्लाह के नबी ने हमे देदी हे लेकीन हम उस दोर से हत कर आज के दोर मे आयेतो अेसे मुनाफीक जेसे लोग सिर्फ नाम के मुस्लमान हे जो दुनीया मे बहोत बरी आबादी मे हे अोर वो लोग कोय यहुदी मिशनरी का या फिर इसाइ मिशनरी का अेंजट होता हे जिनमे से चंद नाम आपके सामने रखदु '*.
नंबर 1 तसलीमा नशरीन
नंबर  2 सलमान खुर्सीद
नंबर 3 तारीक फतेह
*अेसे कय मुनाफीक हे इस्लाम मे दोगला पन अपनाने वाले लोग हे जो बहोत ही प्लान के साथ मुस्लमानोको गुमराह करना अोर इस्लाम को बदनाम करने का काम करते हे*
*अब हम मेरे कुच रिसर्च करने से पता चलाहे जो आपतक रखने की कोसीस करता हु हमारे मुस्लिम समाजमे सबसे बरी जो कम्जोसी हे यानी भारत के मुस्लमानोमे जो कम परहे लीखे नोजवान तबकाहे वो हामरे इस देशमे हमारे उपर कितने खतरात हे इसकी सहीतरी के से जानते नही हे अोर जो बाते उनको थोरी बजोत मालुम हे वो वाहीयात अोर कम्जोर होती हे अोर उनपर मुस्लिम होने की वजाहसे जो हालात आने वाले  हे उसपर भी उनका कोय धयान नही हे सबसे बरी बात मे एक रीसर्च की थी कम परहे लिखे मुस्लिम नोजवानो मे के मेने बस उनसे एक आसान सा सवाल कियाथा के संवीधान कया हे? ८०% से जयादा नोजवानो को तो इसका पताही नही हे ये हमारे देसके मुस्लिम कम परहे लिख्खे नोजवानो के हालात हे अेसे मे मुस्लिम समाज के शोसीयल लीदर अोर पोलीटिकल लीदर अोर NGO  सिर्फ नाम के हे बहोत से बाते दलील के साथ मिलजाये अासानी के साथ के मुस्लिम समाज के रेहबरो ने सही तरीके से रेहबरी नही की हे जीसकी वजाहसे आज मुस्लमान भारत देश मे कम्जोर लाचार अोर दबाहुवा दराहुवा अोर अार्थिक सामाजीक पेहलु मे भारत देसमे सबसे नीचे दरजे के समाज(दलीत)से भी बत्तर हे जिसका भी पुर्फ हमे हमारे देसकी सच्चर कमीटी की 2008रिपोर्तसे पता चल्ता हे तो साथीयो इतनी सारी बाते मेने लीखी हे इसका सीर्फ एक ही मकसद हे के हम कुच फिकर करने  वाले बने वरना अागे के हालात इतने खतरनाक आने वाले हे जीस्को काबू करना मुस्किल होजायेगा जिस्के लीये आपको अभी से तय्यार होने की जरुरत हे ,*
*जो मुस्लमान नोजावान हालात को सुधार ने मे अपना वकत लगायेगा वो धीरे धिरे खुदभी बदलता जायेगा इसके लीये ये मत सोचोके मुजसे कया होगा जब्भी आप अपने आपको कम्जोर मेहसुस करने लगो तो एक बार सच्चे दिलके साथ बु्लद आवाज से कलमे तय्यिबा परलीया करो अल्लाह की मदत आपके साथ हो जाये गी ,.*
*अापने अपना कीमती वक्त इस लेख को परने मे लगाया हे इसके लीये मे आपका सुकर गुजार हु अल्लाह हाफीज*
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*समाजमे परिवर्तन लाना अोर समाज को मुत्तहीद करना अोर समाज को जागरुत करना अपने हक्क अोर अधीकार के लीये समाज की आवाज बुल्द करना हमारा मकस्द हे,*

*इस मुहीम को अगे बरहा ने के लीये हमारा साथदे*
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Wednesday, 15 February 2017

आजाद भारत मे मुस्लमानो की खुन रेजी की फेरीस्ट

*जागो मुसलमानो जागो मुस्लमानो*
DATE :-15/20/17
1947 के क़त्लेआम में लाखों मुसलमानों की शहादत से सबक़ ले लिया हाेता ताे 1948 हैदराबाद ना हुआ हाेता...।
हैदराबाद में क़त्ल किये गये 1200 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता ताे 1964 में राउरकेला और जमशेदपुर ना हुआ हाेता...।
राउरकेला और जमशेदपुर में 8 हज़ार मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता तो 1967 में रांची ना हुआ हाेता...।
रांची में क़त्ल किये गये 1500 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता ताे 1969 में अहमदाबाद ना हुआ हाेता...।
अहमदाबाद समीत पूरे देश में 6 महीनाें तक चलने वाले दंगों में शहीद हुए 30 हज़ार से ज़्यादा मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता तो 1970 में भिवंडी मुम्बई ना हुआ हाेता...।
भिवंडी मुम्बई में क़त्ल किये गये 450 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता तो 1976 में दिल्ली ना हुआ हाेता...।
दिल्ली में पुलिस के ज़रिए क़त्ल किये गये 150 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता तो 1979 में जमशेदपुर और वेस्ट बंगाल ना हुआ हाेता...।
जमशेदपुर और वेस्ट बंगाल में क़त्ल किये गये 500 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता तो 1980 में मुरादाबाद ना हुआ हाेता...।
मुरादाबाद और उसके आस पास क़त्ल किये गये 4 हज़ार मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता तो 1983 में आसाम ना हुआ हाेता...।
आसाम में क़त्ल किये गये 10 हज़ार से ज़्यादा मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता तो 1985 में फिर अहमदाबाद ना हुआ हाेता...।
अहमदाबाद में क़त्ल किये गये 1200 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता तो 1986 में दाेबारा अहमदाबाद ना हुआ हाेता...।
अहमदाबाद में क़त्ल किये गए 250-300 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता तो 1987 में मेरठ ना हुआ हाेता...।
मेरठ में क़त्ल किये गए 300 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता तो 1987 ही में हाशिम पुरा और मलयाना ना हुआ हाेता...।
हाशिम पुरा, मलयाना में फाेज के जरिए क़त्ल किये गये तक़रीबन 40-45 मुस्लिम नाेजवानाें की शहादत से सबक़ लिया हाेता तो 1989 में भागलपुर ना हुआ हाेता...।
भागलपुर समीत कई ज़िलाें में क़त्ल किये गये 3 हज़ार मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता
ताे 1990 में कश्मीर ना हुआ हाेता...।
कश्मीर में फाेज के ज़रिए क़त्ल किये गए 50-55 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता तो 1992 में बाबरी मस्जिद शहीद ना हुई हाेती...।
बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद मुम्बई, अलीगढ़, गुजरात और हैदराबाद समीत पूरे देश में क़त्ल किये गये 20 हज़ार मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता ताे 1993 में फिर मुम्बई ना हुआ हाेता...।
मुम्बई में दाेबारा क़त्ल किये गये 800 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता ताे 1993 में फिर कश्मीर ना हुआ हाेता...।
कश्मीर में फाेज के जरिए क़त्ल किये गए 60 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता ताे 1993 में फिर कश्मीर ना हुआ हाेता...।
कश्मीर में फाेज के जरिए क़त्ल किये 58 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता तो 1997 में अरवाल बिहार ना हुआ हाेता...।
अरवाल बिहार में क़त्ल किये गए 80 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता तो 2000 में वेस्ट बंगाल ना हुआ हाेता...।
वेस्ट बंगाल में क़त्ल किये गए 11 मुस्लिम मज़दूरों की शहादत से सबक़ लिया हाेता तो 2002 में गुजरात ना हुआ हाेता...।
गुजरात में क़त्ल किये गए 3500 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता तो 2002 में ही नराेदा पाटिया गुजरात ना हुआ हाेता...।
नराेदा पाटिया गुजरात में क़त्ल किये गए 150 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता तो 2003 में केरला ना हुआ हाेता...।
केरला में क़त्ल किये गए 8 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता तो 2012 में दाेबारा आसाम ना हुआ हाेता...।
आसाम में क़त्ल किये गए 250 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता तो 2013 में मुजफ्फरनगर, शामली बाग़पत ना हुआ हाेता...।
मुजफ्फरनगर, शामली और बाग़पत में क़त्ल किये गए तक़रीबन 120 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता तो 2014 में दाेबारा मेरठ ना हुआ हाेता...।
मेरठ में क़त्ल किये गए 4 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता तो 2014 में सहारनपुर ना हुआ हाेता...।
सहारनपुर में क़त्ल किये गये 3 मुसलमानों की शहादत से सबक़ लिया हाेता तो 2014 मणिपुर ना हुआ हाेता...।
मणिपुर में जेल से निकाल कर नंगा कर के शहर भर में घुमाए जाने के बाद क़त्ल किये गये मुस्लिम नाेजवान की शहादत से सबक़ लिया हाेता तो 2015 में दादरी नोएडा ना हुआ हाेता...।
दादरी नोएडा में घर में घुस कर क़त्ल किये गये अख़लाक़ की शहादत से सबक़ लिया हाेता तो 2016 में लातेहार झारखंड ना हुआ हाेता...।
लातेहार में क़त्ल किये गये 15 साला इब्राहिम और इम्तियाज खान की शहादत से सबक़ लिया हाेता
तो........................... इंतज़ार कराे...।
अगर सबक़ ना लिया ताे यह दास्तान साल दर सल बढ़ती जाएगी... बस फर्क इतना हाेगा कि हाे सकता है कल मैं इस दुनिया में ना रहूँ और इस से आगे काेई और लिखे...।
यह तारीख के कुछ ही पन्ने हैं... अगर तारीख काे इंसाफ़ के साथ पूरा पूरा बयान किया जाए तो आज़ादी के बाद से काेई साल काेई महीना शायद ही ऐसा गया हाेगा जिसमें मुस्लिम मुखालिफ दंगा ना हुआ हाे...।
एक दंगे से मुसलमानों को जिस क़दर जान माल का नुकसान हाेता है वह तरक्की से पचास साल पीछे चले जाने से भी ज़्यादा हाेता है...।
लेकिन मुसलमानों ने कभी दंगों से काेई सबक़ हासिल नहीं किया...।
दंगे दाेबारा ना हाें, हाें तो खुद को कैसे महफ़ूज़ किया जाए, इंसाफ़ कैसे मिले और उसके लिए कितनी महनत करनी पड़ती है कभी मुसलमानों ने नहीं साेचा...।
इंदिरा गांधी के क़त्ल के बाद 1984 में सिखाें का क़त्लेआम हुआ जिसमें तक़रीबन 2500 बे गुनाह सिखाें काे क़त्ल किया गया था...।
लेकिन फिर उसके बाद काेई सिख मुखालिफ़ दंगा नहीं हुआ... सिखाें ने खुद काे हर तरीक़े से मज़बूत किया... अपनी हिफाज़त, तालीम, सियासत, बिजनेस हर मैदान में सिख आगे आए...। इंसाफ की काेशिशें करते रहे, याद दिलाते रहे कि उन पर ज़ुल्म हुआ है...।
उन्होंने ना कभी कानपुर का मैदान भरा तो ना कभी लखनऊ का, उन्होंने ना कभी बंगाल में मुज़ाहिरा किया ना कभी मेरठ चलाे की आवाज़ लगाई, उन्होंने ना कभी तालकटोरा में हुंकार लगाई ना कभी रामलीला मैदान भर कर चींख़े चिल्लाये...।
बहरहाल!
मैं किसी भी सियासी पार्टी काे मुसलमानों के क़त्लेआम का ज़िम्मेदार नहीं मानता...।
सबसे ज़्यादा दंगे और क़त्लेआम कांग्रेस के दाेर में हुए, कांग्रेस ने ही कट्टर हिन्दू संगठनों काे परवान चढ़ाया, लेकिन मैं किसी भी पार्टी को इसका दाेष नहीं देता...।
इसके लिए अगर ज़िम्मेदार हैं ताे खुद मुसलमान हैं...।
मुसलमानों की जमाते हैं, मुसलमानों के रहबर हैं, मुसलमानों की लीडरशिप है, जिनकी सबकी वफ़ादारियां हमेशा मुसलमानों के साथ ना हाे कर पार्टी बेस पर रहीं...।
खैर!
जिस क़ौम काे खुद बदलने की फिक्र नहीं हाेती, जाे क़ौम ठाेकर खाने के बाद सबक़ हासिल नहीं करती, जाे क़ौम वक़्त और हालात के धारे में तिनकाें की तरह बहे जाती हाे और जो क़ाेम अपनी हिफाज़त की फिक्र ना करे उसके साथ ऐसा ही हाेता है...।
क्या मुसलमान भूल गए कि ख़ुदा ने भी आज तक उस क़ौम की हालत नहीं बदली, ना हो जिसे ख़्याल अपने आपको बदलने का...।
# नाेट:
सन् 1761, 1784-1799, 1857, 1858, 1872, 1919, 1922,1930 और 1946 में शहीद हुए मुसलमानों की शहादत पर हमें ना तो कोई शिकवा ना काेई गिला और ना ही ग़म है, बल्कि यह हमारे लिए फख्र की बात है कि हमनें लाखाें ही नहीं अन गिनत तादाद में अपने वतन के लिए जान दी, और ऐसी क़ुरबानी के लिए एक जान क्या हज़ार जान क़ुरबान... लेकिन अफ़सोस, गिला, शिकवा उस ज़ुल्म पर, उस नस्ल कशी पर, उस क़त्लेआम पर है जो मुसलमान आज़ादी के बाद से आज तक सहते आ रहे हैं...।
*समाजके लीये जिना मरना ही समाजसे वफादारी हे*
*समाजमे परिवर्तन लाना अोर समाज को मुत्तहीद करना अोर समाज को जागरुत करना अपने हक्क अोर अधीकार के लीये समाज की आवाज बुल्द करना हमारा मकस्द हे,*

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*आयोजक*👉🏻 *हुजैफा पटेल*
*गुजरात भरुच वोटसअोप 9898335767*
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Tuesday, 14 February 2017

ब्रामन अोर यहुदी एकही नसल के लोग DNA के आधार पै *भारत के लोगो के हर मुलनीवासी को ये बार बार परना चहीये

रिसर्च – ब्राह्मणों के 99 प्रतिशत डीएनए यहूदियों से मिलते है
Date :- 23/1/17
http://www.kohraam.com/my-opinion/99-percent-dna-of-brahman-match-from-jews-3992.html

यूरोपियन लोगो को हजारो सालो से भारत के लोगो में बहोत जादा interest है. क्यूँ की यहाँ व्यवस्था है -,धर्मव्यवस्था है, वर्णव्यवस्था है, जातिव्यवस्था है , अस्पृश्यता है, रीती रिवाज है, जिसने हजारो सालो से विदेशियों की जिज्ञासा को जगाया.की ये जो खास विशेषता है भारत के लोगो की जिसका मिलन कहीं दुनिया में नहीं होता.
इसीलिए वैज्ञानिको को हमेशा ये जिज्ञासा रही कि इस विशेषता का “मूल” कारण क्या है. मुश्किल हालात होने के बावजूद भी उसे हमेशा प्रेरित किया.इस वजह से इनके माध्यम से शोध हो रहा है ॥

अमेरिका के उताह विश्वविद्यालय (washington) में माइकल बामशाद जो Biotechnology Dept. का HOD हैं . इसने ये प्रोजेक्ट तैयार किया था। उसे अगर लागू कर दिया जाए कैसे ? क्योंकि भारत के लोग इस conclusion को मान्यता देने से इनकार कर देंगे। इसीलिये उसने एक और रास्ता निकाला .भारत के वैज्ञानिको को involve करके उसे transperent method से प्रोजेक्ट तैयार किया जाये। इसीलिए मद्रास विशाखापटटनम का Biotec.Dept.,भारत सरकार का मानववंश शास्त्र – enthropology के लोग मिलकर प्रोजेक्ट में शामिल किया जो joint प्रोजेक्ट था. उन्होंने research किया .सारे दुनिया के sample के आधार पर उन्होंने ब्राम्हणों का DNA compare (सारे जाती धर्म के लोगो के साथ) किया गया.।
यूरेशिया प्रांत में मोरुवा समूह है रशिया के पास काला सागर नमक area में ,अस्किमोझी भौगोलिक क्षेत्र में,** मोरू नाम का DNA भारत के ब्राम्हणों के साथ मिला.इसीलिए ब्राम्हण भारत के नहीं है.** महिलाओं में mitocondriyal DNA(जो हजारो सालो बाद भी सिर्फ महिला से महिला ही ट्रान्सफर होता है) के आधार पर compare किया गया.विदेशी महिलाओं के साथ का DNA भारत की *sc,st,obc* की महिलाओं के साथ नहीं मिला.। बल्कि ब्राम्हण के घरों में जो महिलाएं है.उनका *DNA sc,st,obc* के महिलाओं के साथ मिला. आर्यन,वैदिक ये theory हुआ करती थी.अब तो इसका 100% वैज्ञानिक प्रमाण ही मिल गया है.
सारी दुनिया के साथ साथ भारत के भी सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे मान्यता दी है.
क्यूँ कि यह प्रमाणित हो गया है. DNA कितना मिला किसका यूरेशियन के साथ

१)ब्राम्हण =99.90%
2) क्षत्रिय=99.88%
३)वैश्य=99.86% .

राजन दीक्षित नाम का ब्राम्हण (oxford में प्रोफेसर है) ने किताब लिखी. उनके चाचा जोशी है पूना में उन्होने वो किताब publish की india में. के **“ब्राम्हण का DNA और रशिया के पास काला सागर area में ,मोरुआ लोगो का और यहूदी (ज्यूज=हिटलर ने जिनको मारा था) लोगो का DNA एक ही है **.” ऐसा क्यों किया उसने क्यों की अमेरिकन लोग भारत के लोगो को अमेरिका में asian ना कहें!! . राजन दीक्षित ने बामशाद के ही संशोधन को आधार बनाकर exactly वो प्रांत ,आप जो यूरेशिया कह रहे हो ये कहाँ है, वो भी बताया.(राजन दीक्षित=एक महान संशोधक. ये आदमी सही मायने में भारतरत्न का हक़दार है).
DNA टेस्ट की जरुरत क्यों पड़ी???

संस्कृत और यूरोपियन language में हजारो शब्द एक जैसे मिले है.फिर भी ब्राम्हणों ने नहीं माना.फिर ये बात पुरातत्व विभाग ने सिद्ध की,मानववंशशास्त्र विभाग ने सिद्ध की,भाषाशास्त्र विभाग ने सिद्ध की फिर भी ब्राम्हणों ने नहीं माना जो की सच था। वो खुद भी जानते थे.कि ब्राम्हण भ्रांतिया पैदा करने में बहोत माहिर लोग है । इस महारथ में पूरी दुनिया में उनका मुकाबला कोई नहीं कर सकता। इसीलिए DNA के आधार पर संशोधन हुआ.। ब्राम्हणों का DNA प्रमाणित होने के बाद उन्होंने सोचा के अगर हम लोग अब इस बात का विरोध करते हैं तो दुनिया की नजर में हम लोग बेवकूफ साबित हो जायेंगे. दोनों तथ्यों पर चर्चा होने वाली थी इसीलिए उन्होंने चुप रहने का निर्णय लिया.। ”ब्राम्हण जब जादा बोलता है तो खतरा है .ब्राम्हण जब मीठा बोलता है तो खतरा नजदीक में पहुँच गया है और जब ब्राम्हण बिलकुल ही नहीं बोलता.एकदम चुप हो जाता है तो भी खतरा है.। its a conspiracy of silence= Dr.B.R.Ambedkar”.। अगर वो कुछ छुपा रहे हैं तो हमें जोर से बोल देना चाहिए.
इसका DNA टेस्ट का परिणाम क्या हुआ.??अब हमें सारा का सारा इतिहास नए सिरे से लिखना होगा .जो भी लिखा है अनुमान प्रमाण पर .। अब DNA को आधार बनाकर आप विश्लेषण कर सकते हो .जो ऐसा नहीं करेगा उसे लोग backward historian कहेंगे.
DNA ट्रान्सफर होता है पीढ़ी से पीढ़ी without change. ।
आक्रमणकारी लोग हमेशा अल्पसंख्याक होते है और वहां की प्रजा बहुसंख्यांक होती है

और जब आपस में वो आते हैं .तो हमेशा अल्पसंख्याक लोगो के मन में बहुसंख्यांक लोगो के प्रति inferiority complex develop होता है । .जनसंख्या के घनत्व की physchology होती है.। इसीलिए उस समय ब्राम्हणों के मन में हीन भावना पैदा हो गया होगा .अपनी हिन् भावना को इन पराजित लोगो में ट्रान्सफर करने के लिए उन्होंने योजना बनायीं.।
युद्ध में पराजित किये हुये लोगो को गुलाम बनाना एक बात है और गुलाम बनाये हुये लोगो को हमेशा के लिए गुलाम बनाये रखना ये दूसरी बात है .ये समस्या ब्राम्हणों के सामने थी.।

*रुग्वेद में ब्राम्हणों को देव कहा जाता था(देवासुर संग्राम = देव + असुर) मूलनिवासियों को दैत्य,दानव,राक्षस,शुद्र,असुर कहते थे.। ये evidence है .। अब देव ब्राम्हण कैसे हो गए??? दीर्घकाल तक लोगो को गुलाम बनाये रखने के लिए उनको व्यवस्था बनानी पड़ी. इसीलिए उन्होंने वर्णव्यवस्था बनायीं.। दैत्य,दानवो का नाम परिवर्तन करके उनको शुद्र घोषित किया.क्रमिक असमानता है तो ब्राम्हण,क्षत्रिय,वैश्य को अधिकार है तो शुद्र को भी अधिकार होना चाहिए .मगर वो अधिकार वंचित है .ऐसा क्यूँ किया?? खुद को ब्राम्हण घोषित करने के लिए .।

ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य अगर एक ही है तो उन्होंने अपने को ३ हिस्सों में क्यूँ बाटा???? हमको शुद्र घोषित, याने गुलाम बनाने के लिए व्यवस्था बनाना जरुरी था. संस्कृतभाषा में वर्ण का अर्थ होता है रंग.इसका मतलब है की ये रंगव्यवस्था है (वर्णव्यवस्था). संस्कृत डिक्शनरी में भी आपको ये मिलेगा. ये वर्णव्यवस्था/रंगव्यवस्था क्यूँ है???? क्यूँ के ब्राम्हण,क्षत्रिय,वैश्य ये एक ही रंग के लोग हैं. इसीलिए रंगव्यवस्था में ये अधिकार संपन्न है.।

चौथे रंग का आदमी उस रंग का नहीं है अर्थार्त.इसिलए अधिकार वंचित है.DNA की वजह से ये विश्लेषण करना संभव है. Racial Discrimination Ideology है ब्राम्हणवाद. .वर्णव्यवस्था बनाने से गुलाम बनाना और दीर्घकाल तक गुलाम बनाये रखना ब्राम्हणों को संभव हुआ.

ब्राम्हणों ने सभी धर्मशास्त्रों में सभी महिलाओं को शुद्र घोषित क्यूँ किया ???? ये आजतक का सबसे मुश्किल सवाल था .ब्राम्हण की माँ,बेटी,बहन,बीवी को भी उन्होंने शुद्र घोषित किया. DNA में **mitocondriyal DNA** के आधार पर ये सिद्ध हुआ.। ब्राम्हणों के महिला और एससी एसटी और ओबीसी महिला का DNA मिलता है .वो जानते थे की जब उन्होंने प्रजनन के लिए यहीं की महिलाओं का उपयोग किया है.इसीलिए उन्हें शुद्र वर्ण में ढकेल दिया.।

इसीलिए ब्राम्हण हमेशा purity की बात करता है.आदमी का DNA आदमी में ट्रान्सफर होता है. ये बात वो जानते थे इसीलिए औरत को तो वो हमेशा पाप योनी मानता आया है.क्यूँ की वो उनकी कभी नहीं थी. DNA और धर्मशास्त्र दोनों के आधार पर ये सिद्ध कर सकते हैं. इससे ये भी सिद्ध हुआ के आर्य ब्राम्हण स्थलांतरित नहीं हुये थे.वो आक्रमण करने के लिए ही यहाँ आये थे .क्यूँ के जो आक्रमण करने के लिए आतें हैं ,उनके साथ महिलाएं बिलकुल भी वो नहीं लातें हैं । .ऐसी उस समय दृढ़ मान्यता भी थी.इसीलिए उनका आक्रमणकारी स्वभाव आजतक बना हुआ है….

**बुद्ध ने वर्णव्यवस्था को समाप्त किया.**
ओबीसी / एससी / एसटी के गुलामी के विरोध में लढने वाला वो सबसे बड़ा पुरखा है .इसका मतलब है वर्णव्यवस्था बुद्धपूर्वकाल में विद्यमान थी.ये evidence है.इस जनआंदोलन में बुद्ध को मूलनिवासियों ने ही सबसे जादा जनसमर्थन दिया.तो जैसे ही वर्णव्यवस्था ध्वस्त हुई और चतुसुत्री पर आधारित नई समाज रचना का निर्माण हुआ.उसमे समता,स्वतंत्रता,बंधुता और न्याय पर आधारित समाजव्यवस्था निर्माण की गयी.। इसका मतलब है की बुद्ध गुलामी के विरोध में लढ रहे थे.
इस क्रांति के बाद ही प्रतिक्रांति हुई जो पुष्यमित्र शुंग(राम) ने बृहदत्त की हत्या करके की .वाल्मीकि शुंग के दरबार में राजकवि था और उसे सामने रखकर ही रामायण लिखी गयी .इसका evidence रामायण में खुद है.हत्या पाटलिपुत्र में हुई थी.शुंग की राजधानी अयोध्या है और रामायण में राम की राजधानी भी अयोध्या है archeological evidence है.कोई भी राजा अपनी राजधानी का निर्माण करता है .तो वो उसे युद्ध करके जीतता है ,फिर अपनी राजधानी खड़ीं करता है.मगर अयोध्या युद्ध जीतकर खड़ीं की गयी राजधानी नहीं थी .इसीलिए उसका नाम रक्खा अयोध्या.(अ+योध्या) . युद्ध ना होकर निर्माण की गयी राजधानी .शुंग ने अश्वमेध यज्ञ किया.रामायण में रामने भी अश्वमेध यज्ञ किया.

ये जो प्रतिक्रांति शुंग ने की इसके बाद जातिव्यवस्था का निर्माण हुआ.पहले गुलाम बनाने के लिए वर्णव्यवस्था और क्रांति के बाद जब प्रतिक्रांति हुई उसके बाद जातिव्यवस्था का निर्माण हुआ.फिर उन्होने योजना बनायीं के हमेशा के लिए अब बहुजनों का प्रतिकार ख़त्म कर दिया जाये.बिलकुल भी लायक ना रक्खा जाये.इसीलिए उन्होंने बहुजनों को 6000 अलग अलग जातियों के टुकडो में बाटां.इससे इन लोगो की एक pshychology तैयार हो गयी के हम प्रतिकार करने लायक नहीं है.। गुलामो की ही ऐसी प्रतिक्रिया होती है.ये सबुत है गुलामी का .दुनिया में जाती व्यवस्था नहीं है इसीलिए दुनिया में कुटुंब व्यवस्था नहीं है.बुढोके लिए old age home है foreign में.।
जाति व्यवस्था को फिरसे क्रमिक असमानता पर खड़ा किया ब्राम्हणों ने .अ-समान लोग आपस में समान होने चाहिए थे मगर क्रमिक असमानता में अ-समान लोग भी आपस में समान नहीं है। .प्रतिकार अंदर ही अंदर होता है .जिसने गुलामी लादी उसके बारे में प्रतिकार करने का खयाल ही नहीं आता.। ब्राम्हणों ने जातीअंतर्गत लढाई शरू करवा दी .ये DNA सिद्ध करता है की निर्माणकर्ता ब्राम्हण है.उसने सभी को विभाजित किया लेकिन खुद को कभी भी विभाजित नहीं होने दिया .

जाती को बनाये रखने के साथ ब्राम्हणों की supremacy जुडी हुई है .इसीलिए उनके सामने ये हमेशा संकट खड़ा रहा की कैसे इस जातिव्यवस्था को बनाये रक्खा जाये . Evidence= कन्यादान system = ये कोई वस्तु नहीं है दान करने के लिए .धार्मिक व्यवस्था इस के लिए ऐसी बनायीं गयी.स्त्री अगर उपवर हो गयी ,शादी योग्य हो गयी तो उसकी शादी करने के की जिम्मेदारी माँ,बाप की ही होगी . Bramhanical Social Order. परिवार ही शादी करेगा.अगर कन्या खुद अपनी पसंद से शादी करेगी तो जाती के बहार जाकर शादी कर सकती है । । .तो जातिव्यवस्था ख़तम हो जाएगी। । .ब्राम्हण की supremacy ख़तम जो जाएगी .तो बहुजनों की गुलामी ख़तम हो जाएगी.ये नहीं होना चाहिए .इसीलिए कन्यादान system निकाला .

*****बालविवाह=
कन्या के विवाह योग्य होने के पहले ही शादी कर दी जाये.क्यों कि विवाह योग्य होगी तो अपने पसंद से शादी कर सकती है .इसीलिए बचपन में ही उसकी व्यवस्था कर दी .माँ,बाप जाती अंतर्गत ही शादी करेंगे.For more information read Cast in india & anhilation of cast= *Dr.B.R Ambedkar* .

*****विधवाविवाह=
विधवाविवाह पर पाबंदी क्यों थी??? अगर किसी विधवा से कोई शादी योग्य लड़का समाज के अंदर का उससे हुई.तो समाज में उसके लिए एक लड़के की कमी होगी .वो लड़की जाती के बाहर जाकर शादी कर सकती है .तो भी जाती व्यवस्था खतरे में पड़ेगी.जाती अंतर्गत विवाह जाती बनाये रखने का सूत्र है.
जातिव्यवस्था बनाये रखने के लिए उन्होंने महिलाओं का इस्तेमाल किया.

मतलब विधवा को शादी ना करने का बंधन . विधवाविवाह पर पाबंदी थी .लेकिन उन्होंने देखा की ये इसे टिकाये रखना जाद्त्ती है.ये सम्भव नहीं है.तो ये विधवा सुंदर नहीं दिखनी चाहिए.तो उसके बल कांट दिए गए .ताकि कोई उसकी तरफ आकर्षित ना हो और कोई उसके साथ शादी करने के लिए तैयार ना हो जाये.याने किसी भी स्थिति में ये जाति व्यवस्था बने ही रहनी चाहिए.
****सतीप्रथा=
दूसरा रास्ता ब्राम्हणों ने निकाला.अपने पति के साथ मरनेवाली जो स्त्री है ये पतिव्रता स्त्री है और ये पतिव्रता स्त्री है .ये सचचरित्र स्त्री है.इसीलिए ये सती है.ब्राम्हणों ने ये जो गलत और घटियाँ कम किया .इस गलत और घटियाँ काम का उन्होंने गौरव किया.सच के लिए जान दे रही है .गौरवभाव निर्माण किया.जो जिवंत रही है वो अपने पति की चिता पर जिन्दा जलनी चाहिए .इसके लिए स्त्री में प्रेरणा पैदा की जाये.ये प्रेरणा पैदा करने के लिए उन्होंने औरतो के लिए खास त्यौहार बनाया.जिसका नाम था वडसावित्री.

***वडसावित्री=
(प्रेरणा) संस्कार बनाया योजनाबद्ध तरीके से .औरत धागा लेकर चक्कर काटती है और कहती है यही पति मुझे सातों जनम जनम तक मिलना चाहिए .ये शराबी है फिर भी मीलना चाहिए.मारता-पिटता है फिरभी मिलना चाहिए। .यही मिलना चाहिए.गहरी बात है .समझिए .ये बार बार हर साल त्यौहार आता है .तो हर साल उनके मन में ये संस्कार किया जाता है .यही पति तुमको मिलने वाला है और कोई पति मिलने वाला नहीं है .और अगर तुम जिन्दा रहती हो तो जबतक जिंदा रहोगी तबतक तुम्हारा पुनर्मिलन होने के लिए तुम देर कर दोगी। .क्यों की अगर तुम अपने पति की चिता पर मार जाओगी.तो एक ही तारीख को,एकही समय को पैदा हो जाओंगी ,पुनर्जन्म हो जायेगा.फिर दोनों का मिलन भी हो जायेगा,अगर एकसाथ जाओगी.जिन्होंने षड्यंत्र किया ,जिन्होंने योजना बनायीं,जिन्होंने प्लानिंग बनायीं.कोई चोर में चोर हूँ ये नहीं बताता.ऐसा ही ब्राम्हणों के बारे में है.जनम जनम की theory महिलाओं में प्रेरणा देने के लिए की गयी.परंतु अब यह प्रथा समाप्ती पर है ॥

****क्रमिक असमानता=
जातिव्यवस्था बंधन डालने के बाद ही निर्माण करना /maintain करना संभव है.गुलाम बनाने के लिए .हर कोई किसी ना किसी के ऊपर होने से वो समाधानी रहता है.ये सारे लोग अपने आप में लड़ते रहे.इसीलिए ब्राम्हणों के लिए वो unite हो ही नहीं सकते.consolation prize is not a real prize. यहीं पर लगना चाहिए .ये ऊंचनीच की भावना एक आदमी को नहीं पुरे humanity को ख़तम करती है.

****अस्पृश्यता=
ये बुद्ध पूर्व काल में नहीं थी.जातिव्यवस्था बुद्ध पूर्व काल में नहीं थी.इसीलिए literature में नहीं है.इसीलिए भ्रांति होती है.जिन बुद्धिष्ट लोगो ने ब्राम्हणी धर्म से compramise किया .उसे अपना लिया. वो आज obc है.उनपर ब्राम्हणवाद का प्रभाव है .obc,untouchable,tribe भी प्रतिक्रांति के बाद के वर्ग है.।

सिंधु घाटी की सभ्यता पैदा करने वाले भारतीय लोगो से इतनी बड़ी महान सभ्यता कैसे नष्ट हुई,जो 4500, 5000 पूर्व थी ??? ये इंग्रेजो ने पूछा था.एक अंग्रेज़ अफसर को इस का शोध करने के लिए भी बोला गया था.बाद में इसके शोध को राघवन और एक संशोधक ने continue किया .पत्थर और इटें के टेस्ट में पता चला की ये संस्कृति अपने आप नहीं गीरी वो गिराई गयी । .दक्षिण राज्य केरल में हराप्पा और मोहेंदोजड़ो के 429 अवशेष मिले.ब्राम्हण भारत में ईसा पूर्व 1600,1500 शताब्दी पूर्व आया.
ऋग्वेद में इंद्र के संदर्भ में 250 श्लोक आतें हैं.सबसे अधिक श्लोक इंद्र पर है.जो ब्राम्हणों का नायक है.बार-बार ये श्लोक आता है. “हे इंद्र उन असुरों के दुर्ग को गिराओं” उन असुरों(बहुजनों) की सभ्यता को नष्ट करो.ये धर्मशास्त्र नहीं बल्कि criminal दस्तावेज हैं.

भाषाशास्त्र के आधार पर ग्रिअरसन ने भी ये सिद्ध किया की अलग-अलग राज्यों में जो भाषा बोली जाती हैं,वो सारी origion from पाली है.
DNA का evidence निर्विवाद और निर्णायक है.क्यूँ के वो तर्क,दलील पर खड़ा नहीं है.जिसे lab में जाकर प्रमाणित किया जा सकता है.lab कोई जाती नहीं है science है.lab धर्मनिरपेक्ष है.इसीलिए lab निर्णायक और निर्विवाद है.। कोई भी आदमी अपना DNA टेस्ट lab में जाकर करा सकता है.इस DNA के शोध में पूरी दुनिया से शोध करनेवाले 265 लोग थे. **बामशाद का ये शोध 21 may 2001 को *nature* नाम के अंक में ,जो दुनिया का वैज्ञानिक सबसे जादा मान्यता प्राप्त अंक है उसमे आया था.**

बाबासाहब आंबेडकर की उम्र सिर्फ 22 साल थी जब उन्होंने विश्व का जाती का origion क्या है ?इसका खोज किया था और 2001 में जो DNA reasearch हुआ था .बाबासाहब का और माइकल बामशाद का मत एक ही निकला था.।

ब्राम्हण सारी दुनिया के सामने पुरे expose हो चुके थे.फिर भी मापदंड के आधार पर ये जो दक्षिण राज्य के ब्राम्हणों ने दो विभिन्न नस्लों की संतान है / दो पूर्वज समूह की संतान है भारतीय ऐसा झूठा प्रचारित करने के लिये,अपना विदेशीपण छिपाने के लिए, उन्होंने हमेशा की तरह ब्राम्हण theory use करते हुये ,पूर्व के DNA संशोधन को ख़ारिज नहीं किया और एक झूठ media के द्वारा प्रचारित करना शुरू कर दिया .की अभी कोई भी मूलनिवासी कह नहीं सकता है .सब अब संमिश्र है । .उन्होंने कहाँ का मापदंड ढूंडा????? उन्होंने अंदमान और निकोबार द्वीप समूह में जो आदिवासी जनजाति है.उसका दलील देकर कहा की ये अफ्रीकन का वंशज है .वो इधर से आया था और इधर से यूरोपियन countries में चला गया .तो कैसे गया?? इसका शोध करना चाहिए.ऐसा कहा. माइकल बामशाद के विज्ञानं द्वारा किये गए शोध को नाराकने के लिए । उन्होंने विज्ञानं का सिर्फ नाम लिया .सिर्फ उस प्रचार में विज्ञानं ये शब्द डाला.उससे झूठ प्रचारित किया. ब्राम्हण अगर तुमको यही झूठी कहानी बताये तो पूछो के इन दो में से कौनसा विदेश से आया ??? विदेशी का DNA बताओं?????

लेकिन वो ये साबित कर ही नहीं सकते.

ब्राम्हण मुसलमान विरोधी घृणा अभियान क्यूँ चलाते हैं????? क्यूँ कि ब्राम्हणवाद और बुद्धिजम के टकराव में जो ब्राम्हण विरोधी बुद्धिष्ट मुसलमान बने.उन्होंने ब्राम्हण धर्म को नहीं अपनाया.इसीलिए ये सब पहले से किया जा रहा है.क्यूँ के ब्राम्हण जानता है की ये मूल के बुद्धिष्ट लोग हैं.

इंग्रेजो के गुलाम ब्राम्हण थे और उनके गुलाम मूलनिवासी बहुजन थे.। जो आज तक आजाद नहीं हुये हैं.आजादी की जंग में जो आजादी का आंदोलन लड़ रहे थे .उनके सामने ये समस्या थी.इसीलिए बाबासाहब ने इंग्रेजो को कहा था की ब्राम्हण को आजाद करने के पहले हम बहुजनों को आजाद जरुर कर देना.। अगर तुमने ब्राम्हणों को हमसे पहले आजाद कर दिया .तो ब्राम्हण हमको आज़ाद करने वाले नहीं है .। ये आशंका सिर्फ बाबासाहब के मन में ही नहीं थी बल्कि मुसलमानों के भी मन में थी.ये बात जिन्ना के संगयान मेन थी इसीलिए 14 aug.को पाकिस्तान बना.मुसलमानों ने इंग्रेजो को कहा कि गाँधी के पहले एक दिन हमको आझादी दे देना.। और हमारे बाद गाँधी को देना.। अगर तुमने गाँधी को पहले दे दिया तो गाँधी बनिया है हमको कुछ नहीं देगा। . ब्राम्हणों ने अपने आजादी की लढाई हमको सीढ़ी बनाकर लढी.और वो इंग्रेजो को भगाकर आज़ाद हो गए.

DNA संशोधन आया.उसने सिद्ध किया के ब्राम्हण यहाँ के नहीं है .ब्राम्हण विदेशी है. जब ये देश इनका कभी था ही नहीं,उन्होंने कभी ये माना नहीं. इसीलिए तो ब्राम्हण हमेशा हमको राष्ट्रवाद की theory बताता आया है.कि हम कितने राष्ट्रभक्त है और मूल बात छुपाता है.इसका मतलब एक विदेशी देश छोड़कर गया.दूसरा विदेशी देश का मालिक हो गया.DNA ने ये सिद्ध कर दिया.दुसरे विदेशी यानि ब्राम्हणों ने ये propaganda किया के भारत आज़ाद हो गया. । भारत आज़ाद नहीं हुआ । ब्राम्हण आज़ाद हुआ । अर्थात विदेशियों का राज है. बहुजनों को आझादी हासिल करने का कार्यक्रम भविष्य में चलाना ही पड़ेगा.ये मामला अभी समाप्त नहीं हुआ.इतने conclusion draw होते है DNAके आधार पर.ये दुनिया के 600 cr. में से 100

r. जिनकी प्रजा है.उन 100cr. को प्रभावित करने वाला संशोधन है.कल्पना करो कितना मुलभुत और कितना महत्वपूर्ण संशोधन।

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मुस्लमान जब कुच करता हे तो इतिहास बन्ता हे

भारतीय इतिहास की कुछ शानदार घटनाये  :---
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(1) महात्मा ज्योतिबा फूले को अपना स्कूल बनाने के लिये जमीन उस्मान शेख नाम के एक मुसलमान ने दी थी ।
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(2) उस्मान शेख की बहन फातिमा शेख ने सावित्री बाई फूले का साथ देकर उनके स्कूल में  पढा़ने का काम किया था ।
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(3) बाबासाहेब आंबेडकर  ने जब चावदार तालाब का आंदोलन चलाया और सभा करने के लिये बाबासाहेब को कोई हिन्दु जगह नहीं दे रहा था ।

तब  मुसलमान भाइयों ने आगे आकर अपनी जगह दी थी और बाबासाहेब से कहा था कि  " आप हमारी जगह मे अपनी सभा कर सकते हो "
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(4) गोलमेज परिषद मे जब गांधी जी ने बाबासाहेब का विरोध किया था और रात के बारह बजे गांधी जी ने मुसलमानों को बुलाकर कहा था कि आप बाबासाहेब का विरोध करो तो मैं आपकी सभी मांगे पूरी करुंगा ।

तब मुसलमान भाई आगार खांन साहब ने गांधी जी को मना कर दिया था और कहा था कि हम बाबासाहेब का विरोध किसी भी हाल मे नहीं करेंगे ।
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(5) मौलाना हसरत मोहानी ने बाबा साहब को रमजा़न के पवित्र माह में अपने घर रोजा़ इफ्तार की दावत दी थी ।

जबकि पंडित मदनमोहन मालवीय ने तो बाबा साहब को एक गिलास पानी तक नहीं दिया था ।
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(6) जब सारे हिन्दुओं (गांधी और नेहरू) ने मिलकर बाबासाहेब के लिये संविधान सभा के सारे दरवाजे और खिड़किया भी बंध कर दी थीं ।

तब पश्छिम बंगाल के मुसलमानों व चांडालों ने बाबासाहेब को वोट देकर चुनाव जिताकर संविधान सभा मे  भेजा था ।
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इसीलिए SC, ST और OBC समाज के लोगों को यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि मुस्लिम नेताओं ने  बाबा साहेब आंबेडकर का अक्सर साथ दिया था ।

जबकि गांधी और तिलक हमेशा ही बाबा साहेब आंबेडकर के रास्ते में मुश्किलें पैदा करते रहे थे ।

अभी भी SC, ST और OBC के आरक्षण के खिलाफ संघी ही आंदोलन चलाते हैं, मुस्लिम नही ।

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7/11 मुंबई विस्फोट: यदि सभी 12 निर्दोष थे, तो दोषी कौन ❓

सैयद नदीम द्वारा . 11 जुलाई, 2006 को, सिर्फ़ 11 भयावह मिनटों में, मुंबई तहस-नहस हो गई। शाम 6:24 से 6:36 बजे के बीच लोकल ट्रेनों ...