आज भारतीय मुस्लिम समाज के साथ अन्याय कुएं होता इसकी एक वजाह येभी हे ।
ता.02/02/2019
आकड़ों के माध्यम से भी ये सिद्ध हो चुका है कि भारतीय न्यायपालिका पर सिर्फ कुछ घरानों का कब्जा है। इन घरानों से ताल्लुक रखने वाले लोग ही हर साल जज और वकील बनते हैं। नियुक्ती की इस प्रक्रिया को ‘कॉलेजियम सिस्टम’ कहा जाता है।
ये सिस्टम पिछले कुछ वर्षों से विवादों में है। पूरे देश को न्याय देने वाले संस्थान के पास खुद के लिए कोई न्यायसंगत प्रक्रिया नहीं है। रिप्रजेंटेशन की स्थिति इतनी खराब है कि सुप्रीम कोर्ट में इस समय एक भी दलित जज नहीं है।
शायद यही वजह है कि “कॉलेजियम सिस्टम” को ‘कॉलेजियम कलंक’ कहा जाने लगा है। वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल आकड़ों के साथ बताते हैं कि ‘देश के सभी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों का बायोडाटा वेबसाइट पर मौजूद है। मैने सारा डाटा निकालकर चेक किया है।
जुलाई, 2018 की स्थिति यह है कि 60% से ज्यादा जज सीधे वकील से जज बना दिए गए हैं। उन्होंने जज बनने के लिए पूरी जिंदगी में कोई परीक्षा नहीं दी। कोई इंटरव्यू नहीं दिया। कोलिजियम के पांच जजों ने उन्हें बस चुन लिया। मर्जी उनकी। इसलिए अदालतों में जजों के चैंबर रिश्तेदारों से भर गए हैं।’
दिलीप मंडल कॉलेजियम सिस्टम को दलितों, पिछड़ों के खिलाफ आने वाले फैसलों से भी जोड़ कर देखते हैं। वो बताते हैं कि ‘क्या आप जानते हैं कि एससी-एसटी एक्ट के खिलाफ फैसला लिखने वाले दोनों जजों यूयू ललित और ए.के. गोयल ने पूरी जिंदगी में कभी जज बनने का एक्जाम नहीं दिया, दोनों साधारण वकील थे।
ललित को सीधे सुप्रीम कोर्ट में जज बनाया गया तो गोयल को सीधे हाई कोर्ट में जज बना दिया गया, जहां से वे कोलिजियम की सिफारिश पर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए।
क्या अपने पसंद के वकील को उठाकर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का जज बना देने का सिस्टम बंद नहीं होना चाहिए? क्या ये बेहतर नहीं है कि जज परीक्षा पास करके पहले जिला, फिर हाईकोर्ट और तब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचें?
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग बने और परीक्षा पास करके जज बनाने की व्यवस्था हो। भाई भतीजावाद वाला कोलेजिमय सिस्टम बंद हो।
बता दें कि उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में जजों की नियुक्ति तथा तबादलों का फैसला भी कॉलेजियम ही करता है। कौन से जज पदोन्नत होकर सुप्रीम कोर्ट जाएंगे यह फैसला भी कॉलेजियम ही करता है।
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https://www.boltaup.com/a-huge-suspect-on-sc-as-it-has-judges-due-to-casteism-and-nepotism/