2014 का चुनाव अभियान ‘‘सबका साथ सबका विकास’’ उसी सिलसिले की एक कड़ी था। उस समय राम मंदिर सहित सारे विवादित विषयों को ताक पर रखकर देश को गुजरात जैसा खुशहाल और विकसित राज्य बनाने का झूठा ख्वाब दिखाया गया। भ्रष्टाचार के साथ-साथ बेरोजगारी का अंत और महिलाओं को अत्याचार से बचाने जैसे लुभावने नारे लगाए गए। लेकिन नोटबंदी की मूर्खता ने सारी बिसात उलट दी।
By : Vimarsh Editor April 25, 2019 0 124
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल से भाजपा का उम्मीदवार बनाकर नरेंद्र मोदी ने अपना राजनीतिक दायरा पूरा कर लिया है। इस दायरे के केंद्र में मोदी है। इसके परिधि पर खून की पहली बूंद गोधरा में गिरी। इसके बाद वह पूरे गुजरात राज्य में फैलता चला गया। 2002 से 2007 तक गुजरात में हिंसा और अत्याचार का एक सिलसिला रहा जिसमें मुस्लिम विरोधी दंगो के बाद हिरेन पांड्या की हत्या हुई। उसके बाद इशरत जहां और सोहराबुद्दीन का इनकाउंटर और फिर प्रजापति का एनकाउंटर। 2007 के बाद मोदी ने अपने आप को सुरक्षित महसूस किया और अब राज्य के विकास की ओर ध्यान दिया। 2012 के चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी छवि बदलने के इरादे से राज्य में शांति भाईचारा के लिए 3 दिन का सद्भावना व्रत भी रखा। उसके बाद आदर्श गुजरात का हव्वा खड़ा करके राज्य चुनाव जीता गया। इस बीच मीडिया का इस्तेमाल बड़ी सुंदरता के साथ किया गया। यहीं से मोदी को प्रधानमंत्री बनने का विचार आया और 2013 में वे प्रधानमंत्री के उम्मीदवार बन गए।
2014 का चुनाव अभियान ‘‘सबका साथ सबका विकास’’ उसी सिलसिले की एक कड़ी था। उस समय राम मंदिर सहित सारे विवादित विषयों को ताक पर रखकर देश को गुजरात जैसा खुशहाल और विकसित राज्य बनाने का झूठा ख्वाब दिखाया गया। भ्रष्टाचार के साथ-साथ बेरोजगारी का अंत और महिलाओं को अत्याचार से बचाने जैसे लुभावने नारे लगाए गए। लेकिन नोटबंदी की मूर्खता ने सारी बिसात उलट दी। जनता में भारी निराशा और बेचैनी फैल गई। उत्तर प्रदेश का राज्य चुनाव जीतने के लिए मोदी जी को फिर से अपनी पुरानी सांप्रदायिकता का सहारा लेना पड़ा। इस तरह अर्थव्यवस्था के बाद राजनीति के मैदान में भी उनका पतन शुरू हो गया।
उत्तर प्रदेश चुनाव में जबरदस्त कामयाबी हासिल करने के बाद उनसे दूसरी मूर्खता यह हुई कि इस महत्वपूर्ण राज्य की बागडोर किसी योग्य मुख्यमंत्री के हाथों में सौंपने के बजाय योगी के हवाले कर दी गई। उस व्यक्ति के खिलाफ हाई कोर्ट में दंगा भड़काने का मुकदमा है। उसको बड़बोले पन के सिवा कुछ नहीं आता। उसके राज्य में बलात्कार और हत्या का आरोपी भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर जेल की चक्की पीस रहा है। हत्या के आरोपी दूसरे विधायक अशोक सिंह चंदेल को उम्र कैद की सजा सुनाई जाती है और वह अदालत से फरार हो जाता है। पूर्व मंत्री स्वामी चिन्मयानंद के विरुद्ध बलात्कार के आरोप वापस लेने की कोशिश की जाती है। ऐसे में मोदी जी की तीसरी और सबसे बड़ी गलती यह है कि उन्होंने सध्वी प्रज्ञा ठाकुर को लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार बना लिया है। इस तरह 17 साल बाद मोदी वहीं पहुंच गए जहां से चले थे।
भाजपा ने साध्वी को उम्मीदवार बनाने का फैसला बड़े उहापोह के बाद किया है। कमलनाथ ने जिस दिन यह कहा कि दिग्विजय सिंह को राघव गढ़ की सुरक्षित सीट के बजाय भोपाल जैसे मुश्किल चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहिए। उसी दिन दिग्विजय सिंह ने इसकी हामी भर दी। मीडिया में साध्वी के नाम पर चर्चा होने लगी लेकिन भाजपा ने न तो उसका समर्थन किया और ना ही उसको अपनी पार्टी की सदस्यता दी। कई सप्ताह तक विचार मंथन के बाद अंततः भा ज पा ने साध्वी को टिकट देने का फैसला किया तो उसे बाकायदा पार्टी में शामिल किया। साध्वी के बारे में यह अफवाह फैलाई गई कि उसे अदालत ने बरी कर दिया है, जो सरासर झूठ है। केंद्र सरकार के दबाव में एनआईए ने अदालत से यह जरूर कहा कि इसके पास साध्वी के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है इसके बाद अदालत ने उस पर से मकोका हटाया लेकिन अभी भी उस पर यू ए पी ए के तहत धमाकों का आरोप मौजूद है और वह बीमारी का बहाना बनाकर जमानत पर घूम रही है।
देश की राजनीति में अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की मौजूदगी एक आम बात हो गई है। मौजूदा संसद सदस्यों में से 33 प्रतिशत ने अपने खिलाफ आपराधिक मामलों की स्वीकृति हलफनामा में की है। उनमें से 106 के खिलाफ गंभीर अपराध: जैसे हत्या की कोशिश, सांप्रदायिक दंगे भड़काना, अपहरण और महिलाओं के विरुद्ध अपराध जैसे मामले दर्ज हैं। जिन 10 संसद सदस्यों ने हत्या से जुड़े मामले की घोषणा की है उनमें से चार का संबंध भाजपा से है। ये सब संसद सदस्यों को प्राप्त सुविधाओं पर ऐश कर रहे हैं। हत्या की कोशिश करने वाले 14 संसद सदस्यों में से 8 भाजपा के हैं। सांप्रदायिक दंगा फैलाने