Followers

Sunday, 27 March 2022

talim

मुसलमानो में इल्म हासिल करने का ज़ौक़ शौक़ पहले चला आ रहा था, लेकिन इसको रोज़गार से जोड़कर नहीं देखा जाता था ! एक तो इल्म हासिल करने का चलन पहले से मौजूद था दूसरे ये कि तालीम हासिल करने पर कोई पाबन्दी नहीं थी और ना ही तालीम रोज़गार से जुड़ी हुई थी इसलिए मुसलमानो में सर सय्यद अहमद खान से पहले तालीम की तहरीक नहीं उठी ! इसके बरक्स भारत के गैरमुस्लिमो में इल्म हासिल करना एक जाति तक सीमित था और अक्सरियत के ऊपर सदियों से पाबन्दी चली आ रही थी... लेकिन जब अँगरेज़ भारत में आये तो उनको सरकारी कामकाज के लिए ऐसे लोकल लोगो की ज़रूरत थी जो अंग्रेज़ो की भाषा(इंग्लिश) भी जानते हों और भारत की देसी भाषा से भी वाक़िफ़ हों, इसलिए उन्होंने भारत में अंग्रेज़ी स्कूल खोलने शुरू किये और शिक्षा को सबके लिए आम किया ! नतीजा ये हुआ कि भारत के गैरमुस्लिमो का वो वर्ग जिसके इल्म हासिल करने सदियों से पाबन्दी चली आ रही थी, उस वर्ग में तालीम की एक ज़बरदस्त तहरीक उठी, इस वर्ग से महात्मा ज्योतिबा फुले और डॉक्टर भीमराव आंबेडकर जैसे उठ खड़े हुए और पुरे ज़ोर शोर से उन्होंने अपनी क़ौम को अंग्रेज़ी तालीम हासिल करने के लिए प्रेरित किया !
भारतीय गैरमुस्लिमो के अंग्रेज़ी तालीम की तरफ़ अंधाधुन्द भागने के दो कारण थे
 (1)पढ़लिख कर बड़ा आदमी बनना ! आज भी आप किसी बच्चे या उसके माँबाप से मालूम करो कि तालीम का मक़सद क्या है तो वो यही कहेगा कि बड़ा आदमी बनना ! सदियों से जो दबे-कुचले चले आ रहे हों जिनको ना भरपेट खाना नसीब होता हो और ना तन पर पहनने को कपड़ा और उन्हें चारपाई पर बैठने तक का अधिकार ना हो, अगर ऐसे समाज का कोई व्यक्ति अंग्रेज़ी तालीम हासिल करके गोरे साहब की सरकार का सरकारी आदमी बन जाये और उसे भरपेट खाने के आलावा तन पर पहनने को पतलून भी मयससर आ जाये तो उसके बड़ा आदमी बनने में क्या शक है ! 
(2) भारत के गैरमुस्लिमो के अंगेज़ी तालीम के पीछे भागने का दूसरा कारण था सदियों पुरानी ज़ालिमाना व्यवस्था के ख़िलाफ़ बग़ावत ! सदियों से एक वर्ग को तालीम से महरूम रखा गया था लेकिन अब अँगरेज़ की हुकूमत ने वे बंधन तोड़ दिये थे इसलिए इस वर्ग को तालीम हासिल करने से आज़ादी का अहसास होता था, ये वर्ग हर वो काम करना चाहता था जिससे इसे रोका गया था !
जिस तरह भारत के गैरमुस्लिमो के तालीम हासिल करने के दो मक़सद थे इसी तरह तालीम को आम करने वाले ईसाई अंग्रेज़ो के भी अनेक मक़सद थे ! एक तो रिक्रूटमेंट जैसा कि पहले बताया जा चुका ! दूसरा एक मक़सद अंग्रेज़ो का अपनी संस्कृति और ईसाइयत का प्रचार करना था ! 
अंग्रेज़ी तालीम की तहरीक भारत के गैरमुस्लिमो तक सीमित ना रही बल्कि इसके जरासीम सर सय्यद अहमद खान को भी लगे ! 
सरसय्यद अहमद खान ने देखा कि सारी सरकारी नौकरियों पर गैरमुस्लिम हाथ साफ कर ले जा रहे हैं और उनकी नुमाईंदगी भी सरकारी अमले में बढ़ रही है और मुसलमान पिछड़ रहे हैं तो सर सय्यद ने भी मुसलमानो में अंग्रेज़ी तालीम की बाक़ायदा तहरीक का आग़ाज़ कर दिया ! 
कुल मिलाकर तालीम का मक़सद अंग्रेज़ो की नौकरी हासिल करना था ! भारतीय समाज आजतक भी इस सोच से उबर नहीं सका, हर कोई पढ़लिख कर सबसे पहले तो सरकारी नौकरी की चाहत रखता है या फिर अमरीका,केनेडा,ब्रिटेन ऑस्ट्रेलिया या फिर योरोप के किसी मुल्क में जाकर जॉब करना चाहता है वरना मजबूरी में कहीं भी नौकरी कर लेता है ! 

कहने का मक़सद ये है कि ये जो तालीम तालीम की रट है, ये रट उनकी तो सही है जिन्हे सदियों तक तालीम से जबरन रोका गया लेकिन मुसलमानो को क्या हुआ ?

social active foundation SAFTEAM GUJ.

हिन्दू शब्द कैसे आया?

जब ब्राह्मणों को पता चला कि भारत देश में आजादी मिलने के बाद *लोकतंत्र की स्थापना* होगी! चुनाव होगा! जो जीतेगा- वह राज करेगा; तो ब्राह्मणों के सबसे बड़े नेता (जातिवादी) *गंगाधर तिलक* के पैरों तले जमीन खिसक गई। 

               वह समझ गया कि ब्राह्मण तो अल्पसंख्यक हो जाएंगे और राजनीतिक रूप से अछूत; तो उसने एक तोड़ निकाला कि *ब्राह्मण धर्म को हिन्दू* कहने लगा। इसके पहले *वैदिक* कहा जाता था और सभी ब्राह्मण समाज को ये बात समझा दी कि राजनीति के लिए हम *हिन्दू हैं, बांकी ब्राह्मण* !
             ये बात हमें कभी नही भूलनी है। उसने ही 1893 में गणेश- उत्सव की शुरुआत कर नया रोजगार दिया था और कहा था कि *कुर्मी, काछी, तेली, तम्बोली संसद में जाके क्या  हल चलाएंगे? स्वराज मेंरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।* 
                    ब्राह्मणों का मूल स्थान *मिश्र* है। कुछ ब्राह्मण तो आज भी अपने नाम के साथ *मिश्रा* लिखते हैं। सबसे *पुराने मंदिरों के अवशेष* वहीं मिलते हैं। जब *टाइट्स* ने इन्हें मारना शुरू किया, तो ये वहां से जान बचाकर भागे और *यूरेशिया* में आकर बसे। 
                      इनका *डीएनए पेरू जनजाति* के लोगों से मैच (टाइम्स आफ इंडिया सन् 2001) हुआ है। इनके कुछ पूर्वज *थाईलैंड* में गये, फिर वहां भी *रामायण* लिखी और *एक कबीला ईसा पूर्व सातवीं सदी में  हिन्दकुश पर्वत* में आकर बसा। इसका उल्लेख इनके ग्रंथों में है। लेकिन विस्थापन का समय नहीं बताते। सही समय हमें चंद्रगुप्त राज का यूनानी राजदूत लेखक मेगस्थनीज़ अपनी प्रसिद्ध किताब "इंडिका" में लिखता है- शराब,गोमांस-भक्षण और यज्ञ करना इनका मुख्य कार्य था। गोमांस-भक्षण और शराब- सेवन का ब्राह्मण कितना भूखा होता है? इसका उल्लेख *ऋग्वेद* में मिलता है। पहले यज्ञ का अर्थ *आग जलाकर रात्रि में शराब पीना, मांस भूनकर खाना और सामूहिक सम्भोग* होता था, बाद में इसे बदल दिया गया।
                  राजा के करीब रहकर आर्थिक और राजनैतिक संरक्षण हासिल करना इनका मुख्य कार्य था। भारत *बौद्ध- राष्ट्र* होने के कारण इनकी हैसियत न के बराबर थी। *सम्राट अशोक ने बलि- प्रथा पर रोक लगाकर* ब्राह्मणों के पेट पर लात मार कर, इन्हे सामाजिक अछूत बना दिया था। फिर ये बलि- प्रथा छोड़कर राजा के करीब जाने के लिए *नौकरी* करने लगे। शुरू में इन्हें घोड़ो की देख- रेख का कार्य मिला। 
                       कई पीढ़ियों के बाद ब्राह्मण *पुष्यमित्र शुंग* (एक ताकतवर योद्धा) का जन्म हुआ। उसकी प्रतिभा को देखकर उसे सैनिक में भर्ती कर लिया गया। धीरे-धीरे वह सीढियां चढ़ने लगा और *सेनापति* जा बना। फिर वह कई *शीर्ष पदाधिकारियों को लालच* देकर अपने साथ मिला लिया। राज्योत्सव के भरी सभा में सम्राट *बृहदत्त मौर्य* की हत्या कर खुद को राजा घोषित किया; किन्तु प्रजा के आक्रोश और पड़ोसी राजाओं के आक्रमण का संकट देखते वह पाटलिपुत्र से भागते- भागते साकेत आया।  
             फिर वहां *वैदिक संस्कृति की नींव* डाली और *बौद्धों का कत्ले-आम* शुरू कर दिया। साकेत का नाम बदलकर *अयोध्या* किया, फिर वहीं अपनी राजधानी बनाया। *एक बौद्ध- भिक्षु के सर के बदले सौ स्वर्ण मुद्राएं* देने की घोषणा कर दी। इसके बाद जब घाघरा नदी *सर-युक्त* हुई, तो उसका *सरयू* नाम पड़ गया। बाल्मीकि को *राजकवि* बनाया और उससे *रामायण* लिखवाई, जिसमें खुद को राम और मौर्यवंश के दसों सम्राटों को दसानन रावण के प्रतीक रूप में रखा। उसकी कहानी में बौद्ध साहित्य की जातक कथाओं को जोड़ा। इसके बाद का इतिहास सबको पता ही है।
                  *राष्ट्रीय सेवक संघ* ने कभी भी अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन नहीं किया और न ही समाज मे व्याप्त बुराइयों, जातिवाद ऊंच-नीच को खत्म करने की कोशिस की। *गांधी -हत्या* के बाद सामाजिक रूप से संघ अछूत हो गया। संघ खुद को उबारने के लिए 1962 के युद्ध मे सैनिकों की मदद की; जिससे प्रसन्न होकर पंडित नेहरू ने उस पर लगा प्रतिबंध हटा दिया और स्वतंत्रता दिवस पर उसे परेड करने की अनुमति दी गयी। संघ का कलंक मिटा, तो वह उबरने लगा। 
              इंदिरा की इमरजेंसी का भी इन्होंने समर्थन किया।ओबीसी की बढ़ती हुई राजनैतिक ताकत को राजीव ने पहचान लिया और समाज को राष्ट्रवाद की ओर धकेलने के लिए अयोध्या में *मंदिर का गेट* खुलवा दिया। कई पार्टियों के गठबधन से बनी वी• पी• सिंह की सरकार ने जब *ओबीसी* को आरक्षण दिया, तो फिर भूचाल आ गया। 
          भाजपा ने आडवाणी के नेतृत्व में *रथ- यात्रा* शुरू की, जिसकी लपेट में पूरा देश आ गया और मंदिर (विवादित) का *ढांचा गिरा* दिया गया। जिसमें ओबीसी ने बढ़चढ़ कर  हिस्सा लिया था; फलस्वरूप *एक पीढ़ी बर्बाद* हो गई। अब ब्राह्मणों ने राम मंदिर के रूप में अपना रोजगार स्थापित किया; लेकिन ओबीसी को कोई हिस्सेदारी और मंदिर- कमेटी (ट्रस्ट) में जगह नहीं मिली। सिर्फ इनका *यूज एंड थ्रो* किया गया।
          आजादी के बाद जब संविधान बनाने की बात आयी थी, तो ब्राह्मणों ने कहा कि हमारे पास पुराना सबसे महान विधान *(मनुस्मृति)* है, तो नया बनाने की जरूरत क्या है? *डॉ अम्बेडकर* अड़ गए; क्योंकि उन्होंने *विध्वंसक मनुस्मृति को पढ़कर 1927 में जला दिया* था और कहा था कि शूद्रों की बर्बादी का मुख्य कारण *ब्राह्मणी ग्रंथ* है। उनके खिलाफ केस करने की हिम्मत किसी मे न हुई थी।
         आजादी के वक्त डॉ. अम्बेडकर से बड़ा *संविधान- विद* और *अर्थशास्त्री* कोई नही था; तो गांधी ने संविधान बनाने का जिम्मा *प्रारूप -समिति का अध्यक्ष* बनाकर डा• भीमराव अम्बेडकर को दे दिया। दो साल,ग्यारह महीने,अठारह दिन की कड़ी मेहनत के बाद भारत का संविधान बन सका। अपनी अस्वस्थता में भी वो काम करते रहे! दुनियां के सभी बेहतरीन देशों के संविधान का गहराई से अध्ययन कर अच्छी बातें अपने संविधान में डालीं। 
                 उसकी प्रस्तावना में ही समानता, बन्धुता,धर्मनिरपेक्षता का बीज डाल दिया; जिसको बदलने की बात संघ लंबे समय से करता आ रहा है। जिससे भारत को हिन्दू- ब्राह्मण- यहूदी राष्ट्र बनाया जा सके।  
जिसको कल मरना ही है! आज मर जाये!! लेकिन संविधान नहीं बदलने देंगे!!! हजारों सालों बाद लोकतंत्र आया है, उसे खत्म नहीं होने देंगे।
 ! जय भीम! जय भारत!! जय संविधान!! जय मूलनिवासी!!!*


social active foundation SAFTEAM GUJ.

Sunday, 20 March 2022

આંખો ખોલનાર લેખ ! વાંચશો તો શબ્દો આંસુઓમાં ઢળતા જશે !

આંખો ખોલનાર લેખ ! વાંચશો તો શબ્દો આંસુઓમાં ઢળતા જશે !
(લેખક : મૌલાના અબુલ હસન અલી નદવી રહમતુલ્લાહ --- અનુવાદ : મુહમ્મદ જમાલ પટીવાલા-મોડાસા)
હે મુસલમાનો ! શું તમે સાંભળો છો ?
પશ્ચિમી શિક્ષણ સંસ્થાઓ, સંશોધન કેન્દ્રો પરથી નિરંતર એક અવાજ આપણને સંબોધી રહ્યો છે. 
પરંતુ અફસોસ, કોઈ નથી જે તેના પર ધ્યાન આપે,
કોઈનું લોહી ગરમ થતું નથી, કાઈનું સ્વાભિમાન જાગતું નથી. 
આ અવાજ કહે છે... 
હે મુસલમાનો ! હે અમારા ગુલામો ! સાંભળો !!
તમારા ગૌરવના દિવસો વીતી ગયા, તમારા ઈલ્મ (જ્ઞાન)ના કૂવાઓ સુકાઈ ગયા અને તમારા આધિપત્યનો સૂરજ ડૂબી ગયો !
હવે તમને સત્તા અને સુલતાની સાથે શું સંબંધ ? તમારા હાથ હવે જકડાઈ ગયા અને તમારી તલવારોને કાટ લાગી ગયો. 
હવે અમે તમારા માલિક છીએ અને તમે બધા અમારા ગુલામ. 
જુઓ, અમે કેવા તમને માથાથી પગ સુધી અમારી ગુલામીના સાંચામાં ઢાળી દીધા છે !
અમારો પોશાક પહેરીને અને અમારી ભાષા અને બોલી બોલીને અને અમારા રંગ-ઢંગ અપનાવીને તમારા માથા ગર્વથી ઊંચા થઈ જાય છે !
તમારા નાના-નાના માસૂમ બાળકો જ્યારે અમારા કોમી નિશાન અને ધાર્મિક પ્રતિક ‘ટાઈ’ લગાવીને સ્કૂલ જાય છે, તો આ કપડાંને જોઈને તમારું દિલ કેવું ખુશ થાય છે !
અમે કઈં મૂર્ખ નહોતા, અમે તમારા દિલો-દિમાગને અમારા ગુલામ બનાવી ચૂક્યા હતા, હવે તમે અમારી આંખોથી જુઓ છો, અમારા કાનોથી સાંભળો છો અને અમારા દિમાગથી વિચારો છો. 
હવે તમારા વજૂદમાં તમારું કઈં જ નથી. 
હવે તમે જીવનના દરેક વિભાગ અને ક્ષેત્રમાં અમારા મોહતાજ છો, તમારા ઘરોમાં અમારા રંગ-ઢંગ અને રીત-રિવાજો છે, તમારા દિમાગોમાં અમારા વિચારો છે. તમારી શાળાઓ અને કોલેજોમાં અમે બનાવેલો અભ્યાસક્રમ છે. તમારા બજારોમાં અમારો સામાન છે, અને તમારા ખિસ્સાઓમાં અમારો સિક્કો છે. તમારા સિક્કાને તો અમે પહેલા જ માટી બનાવી ચૂક્યા છીએ. 
હવે તમે અમારા આદેશો સામે કેવી રીતે માથું ઊંચું કરી શકો છો ? 
તમે અબજો અને ખરબો રૂપિયાના અમારા કરજદાર છો, તમારું અર્થતંત્ર અમારા કબજામાં છે. 
તમારી મંડીઓ અમારા રહેમો-કરમ પર છે અને તમારી બધી વ્યાપારી સંસ્થાઓ સવાર થતાંની સાથે જ સૌથી પહેલા અમારા સિક્કાને સલામ કરે છે. 
તમને તો તમારા સપનાઓ પર ખૂબ નાજ હતો, અને તમે કહેતા હતા કે “ઝરા નમ હો તો યે મિટ્ટી બડી ઝરખેઝ હૈ સાકી.”
તો સાંભળો ! આ ઝરખેઝ (ફળદ્રુપ) જમીનને હેરોઇન (નશા)થી ભરેલ સિગારેટ, વાસના ભડકાવે એવા ચિત્રો, ઉત્તેજનાપૂર્ણ વ્યભિચાર (અને અશ્લીલતા, નગ્નતા)ના દૃશ્યોથી છલોછલ ફિલ્મો અને હવસથી ભરેલ શોર-બકોરને સામેલ કરીને વેરાન બનાવી નાખી છે. 
હવે જાઓ, તમારા લશ્કરોના શસ્ત્ર-ભંડારોને જુઓ. જો અમે હાથ રોકી લઈએ તો તમારી આખી વ્યવસ્થા વેરણ-છેરણ થઈ જાય. 
હવે તમે અમારી પરવાનગી વગર કોઈના પર ચઢાઈ નથી કરી શકતા. બોસ્નિયા અને ઇરાકના બુરા અંજામને હંમેશા યાદ રાખો. 
જાઓ, હવે તમારી આફિયત અને ખેરિયત એમાં જ છે કે જે જીવન-શૈલી અને શાસન-વ્યવસ્થા અમે તમને શીખવાડી છે તેનાથી જરા પણ આઘા-પાછા ન થજો. 
ખબરદાર !! અમારી ગુલામીમાંથી નીકળવાની સહેજ પણ કોશિશ ન કરજો, અને અમને આશા પણ એ જ છે કે તમે વર્ષો સુધી આવું કરી નહીં શકો. એટલા માટે કે જેટલા પણ આ કોશિશના પરિબળો અને પ્રેરકો હોઈ શકતા હતા, અર્થાત ઈમાનની મજબૂતી, જિહાદ (તનતોડ સંઘર્ષ)નો જોશ, દૂરંદેશી અને સૂક્ષ્મ નજર, દીની સ્વાભિમાન – આ બધું અમે તમારા બુદ્ધિશાળીઓ, ચિંતકો અને આલિમો (ઇસ્લામી વિદ્વાનો) પાસેથી દુનિયાના થોડા આરામ અને સુખની વસ્તુઓ આપીને તેના બદલામાં ખરીદી લીધા છે. 
અમે તમારી સ્ત્રીઓને ટીવી દ્વારા નગ્નતા અને અશ્લીલતાનું પ્રોત્સાહન આપીને, બનાવ-સિંગાર (Make-up) અને સૌંદર્ય-પ્રસાધનોનો બેહતરીન સામાન આપીને તેમની ચાદર ઉતરાવી નાખી છે,
અને તમારા પુરુષોને અશ્લીલ અને નગ્ન અને ગંદી ફિલ્મો બતાવીને તેમની મર્દાનગીના મૂળિયાં કાપી નાંખ્યા છે. 
હવે તમારા ત્યાં કોઈ ખાલીદ, કોઈ તારીક, કોઈ સલાહુદ્દીન અને કોઈ ટીપુ પેદા નથી થઈ શકતો. 
અને સાંભળો ! અમે કઈં અહેસાન-ફરામોશ નથી, તમારી કોમના કેટલાક અહેસાનો પણ અમારા પર છે. 
ખાસ કરીને તમારા આલીમોના, તેમણે પોતાની મસ્જિદો અને મદરસાઓમાં બેસીને એક-બીજાને કાફિર કહીને, પરસ્પર લડી-લડીને અમારી સભ્યતા અને સંસ્કૃતિ અને વિચારો માટે રસ્તો સાફ કર્યો. તમારા બુદ્ધિશાળીઓ અને ચિંતકોએ પ્રગતિશીલ અને મોડર્ન કહેડાવવાના શોખમાં નાસ્તિક અને પાખંડી (મુનાફિક) બનીને અમારી ફિલસૂફીનો પ્રચાર-પ્રસાર કર્યો. 
તમારી શિક્ષણ સંસ્થાઓએ અમારો અભ્યાસક્રમ તમારા નવયુવાનોના દિલો-દિમાગમાં અમારાથી વધારે સારી રીતે ઉતારીને તેમને પોતાના ધર્મ (દીન)થી બગાવત પર ઉશ્કેર્યા. 
તમારા સત્તાધીશો પોતાના તમામ સંસાધનોનો ઉપયોગ તમને બેહયા (નિર્લજ્જ અને બેપરવા), બેગૈરત (નમાલા) અને બેદીન, જડ અને અંતિમવાદી બનાવવા માટે અમારા જ ઇશારાઓ પર કરતાં આવ્યા છે. 
અમે એ બધાના ખૂબ આભારી છીએ. 
તમારા દીને (ધર્મે) કેવી-કેવી પાબંદીઓ તમારા પર લગાવી રાખી છે !! આ હરામ, એ હરામ, આ જાઈઝ, પેલું નાજાઈઝ... જીવનનો માર્ગ જ તમારા માટે તંગ કરી નાખ્યો હતો.
અમે તમને જીવનનો એક નવો માર્ગ દેખાડ્યો અને તમને હલાલ-હરામની કેદમાંથી આઝાદ કરી દીધા. 
શું તમે આના માટે અમારો આભાર નહીં માનો !!
હે મુસલમાનો ! હે અમારા ગુલામો ! શું તમે સાંભળો છો ??
(સંદર્ભ : મગરીબી શકાફત ઔર મુલહિદાના અફકાર કા નુફૂઝ ઔર ઉસકે અસબાબ)



social active foundation SAFTEAM GUJ.

Wednesday, 16 March 2022

MOLANA VALI SIRTI KANTHARIYA DARUL LATER


                                                 બિસ્મિહી તઆલા 

બખિદમત 
           મોહતમિમ તેમજ ટ્રસ્ટી મંડળ ના સભ્યો દારુલ ઉલુમ ભરુચ મુ. કંથારીયા 

તા. ૦૮/૦૧/૨૦૨૨ ના રોજ સંસ્થા ના લેટરપેડ ઉપર ટાઈપ કરેલ સંસ્થા ના મોહતમિમસહાબ ના સહી થી  ટ્રસ્ટી મંડળ ના ઠરાવ અનુસાર દારુલ ઉલુમ મા થી કોરોના મહામારી ના બહાના હેઠળ પુર્વ યોજિત આયોજન મુજબ છુટા કરવામા આવેલ સ્ટાફ સભ્યો ને તમની વર્ષો ની કીમતી ખીદમત ની કદરદાની રૂપે અલગ-અલગ માપદંડ દ્વારા નક્કી કરેલ રકમ આપવા જણાવાયુ છે જેનો પૂરો મજમુન વાંચી મનન કરતા કેટલીક બાબતો નાચીજ ના મનમાં પૈદા થતાં આપ સાહેબો ને ધ્યાન માં લાવવા આ મજમુન આપ સૌની સેવામાં પેશ કરવા પ્રેરાયો છું 

(૧)  સૌ પ્રથમ મારા પોતાના ખિદમતની મુદત ૩૯ વર્ષ જણાવ્યા છે જે શાયદ આપના ગણતરી કારે ઈસવીસન ના હિસાબે લખ્યો છે હાલા કે તમામ દિની તાલીમી સંસ્થાઓ નું વર્ષ ઈસ્લામી માસ ના હિસાબે શરૂ થતા ખતમ થાય છે.વળી પગારૌ પણ એજ ઈસ્લામીક તારીખો મુજબ શરૂઆતથી ચૂકવાય છેજે મુજબ મારી નિમણૂક તારીખ ૨૩ રબીઉલ આખર ૧૪૦૧ છે અને સંસ્થા માંથી છુટા કરવાની તારીખ ૧૭ સવાલ ૧૪૪૧ છે
તો એ મુજબ ગણતરી કરતા મારી ખીદમત ની મુદ્દત (૪૦) ચાલીસ વર્ષ (૫) પાંચ મહિના ની  ૨૪ દિવસ થાય છે 

(૨)  કુરાન - હદીસ ની ખિદમત બજાવનાર  અસાતિજાઓ ઓફિસમાં જે તે વિભાગની સંપૂર્ણ જવાબદારી સાથે ખિદમત આપનાર આલીમ - હાફિઝ તેમજ અન્ય સાહેબો ને દિઞર કામગીરી કરવામાં વર્ષો સુધી પોતાની જાતને ઘસી કાઢનાર ખાદીમો જુદા જુદા માપદંડ મુજબ પુરસ્કાર આપવાનું જે નક્કી કર્યું છે તો એ માપદંડની પારાશીશી કઈ છે. તે જણાવવા જોગ છે. 

(૩)  મને જે રકમ ફાળવવામાં આવી છે તે એક વર્ષના રૂપિયા ૨૨૫૦/- નક્કી કરેલ છે. જો તેને મહિના અને દિવસો ઉપર ડિવાઈડ કરવામાં આવે તો  એક માસના રૂપિયા ૧૮૭.૫૦ પૈસા. અને એક દિવસના  રૂપિયા ૬.૨૫ પૈસા થાય છે.જ્યારે મારો પગાર રૂપિયા ૧૫૩૧૦/- ના હિસાબે દરરોજ ના રૂપિયા ૫૧૦.૩૩ પૈસા મળતા હતા તો આ રકમ જે ફાળવેલ છે. એક કદરદાની ગણાય કે પછી અપમાન? 

(૪)  આપણે આપણા જીવન મા  રોજ જોઈએ છીએ કે મસ્જિદનાં પગથિયાં પર બેસી ભીખ માંગનાર ને મસ્જિદ માંથી નીકળતા મુસલલીઓ ૧૦/- રૂપિયાની નોટ ચાલતા ચાલતા આપી દે છે જ્યારે સંસ્થાના વહીવટકર્તાઓ એક આલિમે દીન ને (ભલે ગમે તેવો હોય) તેને રોજના રૂપિયા ૬. ૨૫ પૈસા જેનુ ૧૦૦મિલી. દૂધ પણ ન આવી શકે આપીને કદરદાની શબ્દનો પ્રયોગ કરે છે એ કેટલું ઉચિત છે? 

(૫)  જો સંસ્થા નાણાકીય ફંડ ના અભાવનો દેખાવ કરી સામા પક્ષને પોતાની લાચારી દર્શાવતો હોય  તો પછી કોરોના મહામારી ના લોકડાઉન  ના સમયમાં લાખો રૂપિયાનો ખર્ચ કરી અંડરગ્રાઉન્ડ ઈલેક્ટ્રીક વાયરીંગ કે નાઝીમ આલા ની (એહતેમામ ઓફિસને)
સુશોભિત કરવા માટે હજારો રૂપિયાનો ખર્ચ કયા ફંડમાંથી કરી રહ્યા છો ! 

(૬) તારીખ ૧૦/૬/૨૦૨૦ મુજબ ૧૭ શવવાલ ૧૪૪૧ ના તમામ સ્ટાફ ને  છૂટા કર્યા બાદ સ્ટાફ ક્વાર્ટર્સમાં રેહતા સાથીઓને ૩૧/૦૩/૨૦૨૨ સુધી દારૂલ ઉલુમ ના મકાનો માં રહેવાની
સહુલાતો તો મળી છે જ્યારે હમો દારૂલ ઉલુમ થી બહાર  ઘરમાં રહેવા વાળા ઓને રૂપિયા ૭૦૦/- જે મકાન ભાડા એલાઉન્સ આપતા હતા તે પર તમોએ આપ્યું નથી તેની ગણતરી કરતા આશરે ૨૧ મહિનાના ૧૪૭૦૦/- થી વંચિત રાખેલ છે આવી નાઈન્સાફી કેમ? તમારે અલ્લાહતાલા ના ત્યાં જવાબ આપવાનો નથી જ્યારે આ સાથીઓ તમારી પાસે પોતાના હકમાં માંગણી કરશે ત્યારે ? 

(7)  સંસ્થાના હવા ગણતરી કાર અને અર્થશાસ્ત્રીઓને કહો કે તમે આ સંસ્થાના વહીવટ કરતા છો માલિક નથી કેમ મનસ્વી રીતે કાયદાઓ ઘડીને કુરાન હદીસ ની ખિદમત આપતા ગરીબ અને નાદાર આલીમો હાય લઇ રહ્યા છો અને પોતાની આખીરત બરબાદ કરી રહ્યા છો. 

(૮)  સંસ્થાની માલી હેસિયત ને ધ્યાનમાં રાખતા હોય તો કર્યા પછી લોકડાઉન પછી અને 
સ્ટાફ છૂટા કર્યા પછી દોઢ વર્ષ પછી આ કદર કરી રહ્યા છો તો શું આ કદરદાની રૂપે અપાતી રકમ ઝકાતની છે કે લીલાહ તેનો ખુલાસો જરૂરી છે કારણકે કેટલાક સાહેબો ઝકાત ના મુસ્તહીક નથી હોતા તો પછી ઝકાતની રકમ અદા થશે કે કેમ ? તે પણ એક સમજવા જેવો પ્રશ્ન છે. 

(૯)  આ પત્રમાં આપ સાહેબોએ આ રકમ કદરદાની રૂપે આપવા જણાવાયું છે તો પછી તેમાં ત્રણ માસનો નોટિસ પગાર ચૂકવ્યો તેનો ઉલ્લેખ કરવાની સેહેજે જરૂરત જણાતી નથી એ રકમ નોટિસ પે તરીકે હતી કોઈ મદદ ન હતી અને તેમાં પણ ૧૦ શવવાલ સુધીના દિવસો તો વેકેશન ના ગણાય છે પછી તેનો ઉલ્લેખ કરવાનો શું અર્થ છે? 
ઉમ્મીદ છે કે તમે જવાબ આપશો. 

       
                                                                                            લિ.....
                                                                                   વલી ઈસા સુરતી
                                                                                  ૯૯૯ ૮૬ ૨૯૧૪૯
        નકલ રવાના.
(૧)  મોહતમીમ દારૂલ ઉલુમ ભરૂચ મુ. કંથારીઆ
(૨)  ટ્રસ્ટી મવ. ઈસ્માઈલ સુલેમાન રિયુનિયન
(૩)  ટ્રસ્ટી  મુસાભાઇ શેરપુરી  શેરપુરા.
(૪)  ટ્રસ્ટી  યાકુબભાઈ કાપડિયા ભરુચ

.social active foundation SAFTEAM GUJ.

7/11 मुंबई विस्फोट: यदि सभी 12 निर्दोष थे, तो दोषी कौन ❓

सैयद नदीम द्वारा . 11 जुलाई, 2006 को, सिर्फ़ 11 भयावह मिनटों में, मुंबई तहस-नहस हो गई। शाम 6:24 से 6:36 बजे के बीच लोकल ट्रेनों ...