मुसलमानो में इल्म हासिल करने का ज़ौक़ शौक़ पहले चला आ रहा था, लेकिन इसको रोज़गार से जोड़कर नहीं देखा जाता था ! एक तो इल्म हासिल करने का चलन पहले से मौजूद था दूसरे ये कि तालीम हासिल करने पर कोई पाबन्दी नहीं थी और ना ही तालीम रोज़गार से जुड़ी हुई थी इसलिए मुसलमानो में सर सय्यद अहमद खान से पहले तालीम की तहरीक नहीं उठी ! इसके बरक्स भारत के गैरमुस्लिमो में इल्म हासिल करना एक जाति तक सीमित था और अक्सरियत के ऊपर सदियों से पाबन्दी चली आ रही थी... लेकिन जब अँगरेज़ भारत में आये तो उनको सरकारी कामकाज के लिए ऐसे लोकल लोगो की ज़रूरत थी जो अंग्रेज़ो की भाषा(इंग्लिश) भी जानते हों और भारत की देसी भाषा से भी वाक़िफ़ हों, इसलिए उन्होंने भारत में अंग्रेज़ी स्कूल खोलने शुरू किये और शिक्षा को सबके लिए आम किया ! नतीजा ये हुआ कि भारत के गैरमुस्लिमो का वो वर्ग जिसके इल्म हासिल करने सदियों से पाबन्दी चली आ रही थी, उस वर्ग में तालीम की एक ज़बरदस्त तहरीक उठी, इस वर्ग से महात्मा ज्योतिबा फुले और डॉक्टर भीमराव आंबेडकर जैसे उठ खड़े हुए और पुरे ज़ोर शोर से उन्होंने अपनी क़ौम को अंग्रेज़ी तालीम हासिल करने के लिए प्रेरित किया !
भारतीय गैरमुस्लिमो के अंग्रेज़ी तालीम की तरफ़ अंधाधुन्द भागने के दो कारण थे
(1)पढ़लिख कर बड़ा आदमी बनना ! आज भी आप किसी बच्चे या उसके माँबाप से मालूम करो कि तालीम का मक़सद क्या है तो वो यही कहेगा कि बड़ा आदमी बनना ! सदियों से जो दबे-कुचले चले आ रहे हों जिनको ना भरपेट खाना नसीब होता हो और ना तन पर पहनने को कपड़ा और उन्हें चारपाई पर बैठने तक का अधिकार ना हो, अगर ऐसे समाज का कोई व्यक्ति अंग्रेज़ी तालीम हासिल करके गोरे साहब की सरकार का सरकारी आदमी बन जाये और उसे भरपेट खाने के आलावा तन पर पहनने को पतलून भी मयससर आ जाये तो उसके बड़ा आदमी बनने में क्या शक है !
(2) भारत के गैरमुस्लिमो के अंगेज़ी तालीम के पीछे भागने का दूसरा कारण था सदियों पुरानी ज़ालिमाना व्यवस्था के ख़िलाफ़ बग़ावत ! सदियों से एक वर्ग को तालीम से महरूम रखा गया था लेकिन अब अँगरेज़ की हुकूमत ने वे बंधन तोड़ दिये थे इसलिए इस वर्ग को तालीम हासिल करने से आज़ादी का अहसास होता था, ये वर्ग हर वो काम करना चाहता था जिससे इसे रोका गया था !
जिस तरह भारत के गैरमुस्लिमो के तालीम हासिल करने के दो मक़सद थे इसी तरह तालीम को आम करने वाले ईसाई अंग्रेज़ो के भी अनेक मक़सद थे ! एक तो रिक्रूटमेंट जैसा कि पहले बताया जा चुका ! दूसरा एक मक़सद अंग्रेज़ो का अपनी संस्कृति और ईसाइयत का प्रचार करना था !
अंग्रेज़ी तालीम की तहरीक भारत के गैरमुस्लिमो तक सीमित ना रही बल्कि इसके जरासीम सर सय्यद अहमद खान को भी लगे !
सरसय्यद अहमद खान ने देखा कि सारी सरकारी नौकरियों पर गैरमुस्लिम हाथ साफ कर ले जा रहे हैं और उनकी नुमाईंदगी भी सरकारी अमले में बढ़ रही है और मुसलमान पिछड़ रहे हैं तो सर सय्यद ने भी मुसलमानो में अंग्रेज़ी तालीम की बाक़ायदा तहरीक का आग़ाज़ कर दिया !
कुल मिलाकर तालीम का मक़सद अंग्रेज़ो की नौकरी हासिल करना था ! भारतीय समाज आजतक भी इस सोच से उबर नहीं सका, हर कोई पढ़लिख कर सबसे पहले तो सरकारी नौकरी की चाहत रखता है या फिर अमरीका,केनेडा,ब्रिटेन ऑस्ट्रेलिया या फिर योरोप के किसी मुल्क में जाकर जॉब करना चाहता है वरना मजबूरी में कहीं भी नौकरी कर लेता है !
कहने का मक़सद ये है कि ये जो तालीम तालीम की रट है, ये रट उनकी तो सही है जिन्हे सदियों तक तालीम से जबरन रोका गया लेकिन मुसलमानो को क्या हुआ ?