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Wednesday, 12 March 2025

अयोध्या भूमि अधिग्रहण विवाद: न्याय और पारदर्शिता पर सवाल ।

Huzaifa Patel 
Date : 12 March 2025

अयोध्या भूमि अधिग्रहण मामला: न्याय और पारदर्शिता की परीक्षा ।


अयोध्या, जो अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए जानी जाती है, हाल ही में एक बड़े भूमि अधिग्रहण विवाद के केंद्र में आ गई है। यह विवाद तब और गंभीर हो गया जब सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर आरोप लगाया गया कि उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद (UPAVP) ने अधिग्रहित भूमि को निजी क्षेत्रों को ऊंचे दामों पर बेचा है। इस याचिका में न्याय और पारदर्शिता की मांग की गई है, जिससे यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है।


मामले की पृष्ठभूमि ।

यह मामला तब शुरू हुआ जब अयोध्या में 1407 एकड़ भूमि को 2020 और 2022 में अधिग्रहित किया गया था। इस भूमि अधिग्रहण का उद्देश्य अयोध्या के विकास के लिए योजनाएं बनाना था। हालांकि, याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि इस भूमि का पूर्ण उपयोग किए बिना ही 2023 में 450 एकड़ की एक और योजना को अधिसूचित कर दिया गया।

मुख्य आरोप:

भूमि अधिग्रहण का दुरुपयोग: सरकार ने जनकल्याण के उद्देश्य से अधिग्रहीत भूमि को व्यावसायिक भूखंडों में परिवर्तित कर दिया।

निजी संस्थाओं को लाभ: अधिग्रहित भूमि को निजी होटलों और अन्य व्यवसायिक उपक्रमों को बेचा गया, जो भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 की धारा 2 का उल्लंघन करता है।

भ्रष्टाचार और अपारदर्शिता: अधिग्रहण की प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं रखी गई, जिससे यह आशंका बढ़ गई कि इसमें बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार हुआ है।

सुप्रीमकोर्ट की याचिका की इमेज ।

याचिका और कानूनी लड़ाई ।

इस मामले में कांग्रेस नेता आलोक शर्मा समेत तीन याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। उन्होंने भूमि अधिग्रहण की न्यायिक समीक्षा की मांग की है।

याचिका में निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं पर ध्यान दिया गया है:

1. भूमि अधिग्रहण का उद्देश्य स्पष्ट किया जाए।


2. भूमि का वास्तविक उपयोग सुनिश्चित किया जाए।


3. यदि अनियमितताएं पाई जाती हैं, तो दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।



इस मामले की सुनवाई होली के बाद होने की संभावना है।



कानूनी और सामाजिक प्रभाव ।

यह मामला केवल कानूनी लड़ाई तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके गहरे सामाजिक और आर्थिक प्रभाव भी हैं:

1. विकास बनाम न्याय: सरकार भूमि अधिग्रहण को विकास के लिए आवश्यक मानती है, लेकिन नागरिकों के हितों की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए।


2. भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 का पालन: यदि अधिग्रहण में अनियमितताएं पाई जाती हैं, तो यह अधिनियम के खिलाफ होगा और सरकार की जवाबदेही तय करनी होगी।


3. न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता: यह मामला अदालत के समक्ष एक महत्वपूर्ण प्रश्न खड़ा करता है कि क्या सरकार को अधिग्रहीत भूमि को व्यावसायिक उपयोग में देने का अधिकार है?



सरकार की प्रतिक्रिया और जनता की राय

सरकार की ओर से अभी तक इस मामले पर कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि, कुछ सरकारी अधिकारियों का कहना है कि अधिग्रहण कानूनी प्रक्रिया के तहत किया गया था और इसमें किसी प्रकार की अनियमितता नहीं हुई है।

दूसरी ओर, जनता में इस मुद्दे को लेकर गहरा आक्रोश है। कई स्थानीय निवासियों और सामाजिक संगठनों ने मांग की है कि सरकार इस मामले की निष्पक्ष जांच करवाए और यदि भ्रष्टाचार हुआ है, तो दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।

निष्कर्ष

अयोध्या भूमि अधिग्रहण मामला एक जटिल कानूनी और नैतिक मुद्दा बन गया है। यह मामला केवल अयोध्या तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रियाओं और पारदर्शिता को लेकर एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ सकता है।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या निर्णय लेता है। क्या सरकार को इस मामले में जवाबदेह ठहराया जाएगा, या फिर यह मामला भी अन्य कानूनी मामलों की तरह लंबित रह जाएगा?

आपकी क्या राय है? क्या सरकार को इस भूमि अधिग्रहण की पूरी जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए? अपने विचार हमें कमेंट में बताएं।





वक्फ कानून में बदलाव: क्या सरकार भूमि अधिग्रहण को व्यापार बना रही है?


हाल ही में अयोध्या में भूमि अधिग्रहण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि सरकार ने लोगों से जनहित के नाम पर सस्ती दरों पर जमीन ली और फिर उसे ऊंचे दामों पर निजी कंपनियों को बेच दिया। इसी के समानांतर, केंद्र सरकार वक्फ कानून में बदलाव करने की तैयारी कर रही है। सवाल यह उठता है कि क्या सरकार वक्फ संपत्तियों पर भी इसी तरह का नियंत्रण स्थापित करके व्यावसायिक लाभ उठाना चाहती है?


वक्फ कानून में बदलाव की पृष्ठभूमि ।

सरकार वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन लाने की योजना बना रही है, जिसके तहत वक्फ बोर्ड के अधिकारों को सीमित किया जा सकता है और उनकी संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाया जा सकता है। यह कदम तब उठाया जा रहा है जब देशभर में वक्फ संपत्तियों को लेकर विवाद बढ़ रहे हैं।

सरकार का तर्क है कि वक्फ संपत्तियों का सही उपयोग सुनिश्चित करना आवश्यक है और इसमें पारदर्शिता होनी चाहिए। लेकिन, क्या यह पारदर्शिता लाने के नाम पर इन संपत्तियों को निजी कंपनियों को सौंपने का रास्ता खोलने की रणनीति है?


क्या सरकार वक्फ संपत्तियों का भी व्यावसायिक उपयोग करेगी?

अगर अयोध्या के मामले को उदाहरण मानें, तो सरकार ने पहले सार्वजनिक हित के लिए भूमि अधिग्रहित की और बाद में उसे व्यावसायिक उपयोग के लिए निजी संस्थाओं को बेच दिया। अब अगर वक्फ कानून में बदलाव किए जाते हैं और सरकारी नियंत्रण बढ़ता है, तो क्या सरकार वक्फ की जमीनों को भी इसी प्रकार व्यापारिक लाभ के लिए इस्तेमाल करेगी?

संभावित प्रभाव:

1. वक्फ संपत्तियों का अधिग्रहण और निजीकरण – अगर सरकार को वक्फ संपत्तियों पर अधिक अधिकार मिलते हैं, तो हो सकता है कि इन संपत्तियों को निजी कंपनियों को बेचा जाए।


2. धार्मिक और सामाजिक विवाद – वक्फ संपत्तियां धार्मिक संस्थाओं से जुड़ी होती हैं, ऐसे में इन पर सरकारी नियंत्रण बढ़ने से सामाजिक तनाव बढ़ सकता है।


3. व्यापारिक और राजनीतिक हितों की बढ़त – यदि सरकार इन संपत्तियों को ‘विकास’ के नाम पर अधिग्रहित करती है और फिर व्यवसायिक उपयोग के लिए बेचती है, तो यह भूमि अधिग्रहण को व्यापार बनाने का दूसरा चरण हो सकता है।



सरकारी नियंत्रण बनाम धार्मिक स्वतंत्रता ।

भारत में वक्फ संपत्तियां धार्मिक, शैक्षिक और सामाजिक कार्यों के लिए इस्तेमाल की जाती हैं। यदि सरकार इन संपत्तियों को नियंत्रित करती है, तो यह धार्मिक स्वतंत्रता पर भी प्रभाव डाल सकता है।

यहां कुछ महत्वपूर्ण सवाल उठते हैं:

1. क्या सरकार वास्तव में वक्फ संपत्तियों का सदुपयोग सुनिश्चित करना चाहती है, या इसे व्यावसायिक उपयोग में लाने की योजना बना रही है?


2. क्या यह कदम सरकार को उन संपत्तियों को अधिग्रहित करने की अनुमति देगा, जिन्हें अब तक छुआ नहीं गया था?


3. क्या इससे धार्मिक और अल्पसंख्यक अधिकारों का हनन नहीं होगा?


निष्कर्ष

अयोध्या भूमि अधिग्रहण मामला एक सावधान करने वाला संकेत है कि सरकार सार्वजनिक भूमि को कैसे अधिग्रहित और पुनर्वितरित कर रही है। यदि वक्फ कानून में संशोधन इसी दिशा में किया जाता है, तो यह वक्फ संपत्तियों को भी व्यावसायिक लाभ का हिस्सा बना सकता है।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इन संशोधनों को कैसे लागू करती है और क्या यह वास्तव में पारदर्शिता लाने के लिए है, या एक नया आर्थिक और राजनीतिक खेल शुरू होने जा रहा है?




Tuesday, 11 March 2025

AIMPLB WAQF आंदोलन 2025

यह लीजिए, एक और तमाशा!

पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक बार फिर विरोध प्रदर्शन की तारीख बदल दी।
✍️: समीउल्लाह खान

पहले मिल्ली नेताओं की ओर से घोषणा हुई कि दिल्ली में वक्फ संशोधन बिल के मुद्दे पर 10 मार्च को विरोध प्रदर्शन किया जाएगा।
फिर मिल्ली नेताओं ने घोषणा की कि जंतर मंतर पर होने वाला विरोध प्रदर्शन 10 के बजाय 13 मार्च को होगा।

समझ में नहीं आता कि मौलाना महमूद मदनी साहब और इंजीनियर सआदतुल्लाह हुसैनी साहब ने इतनी अपरिपक्व, अव्यवस्थित और कमजोर विरोध प्रदर्शन नीति में कैसे भाग लिया? अन्य कमजोरियों की बात छोड़िए, क्या इन लोगों ने कम से कम एक उचित तारीख तय करने की सलाह नहीं दी? या सिर्फ बोर्ड के नाम पर समर्थन की अपीलों में शामिल हो गए?

13 मार्च के विरोध प्रदर्शन के लिए जमकर विज्ञापन छापे गए, घोषणाएं की गईं, वीडियो बनाए गए।
और अब, सिर्फ दो दिन पहले, एक बार फिर घोषणा की जा रही है कि इस तारीख को हिंदुओं का त्योहार भी है, इसलिए अब 13 मार्च के बजाय 17 मार्च को विरोध प्रदर्शन किया जाएगा।

अगर अब भी आपको नहीं लगता कि इन नेताओं की नेतृत्व शैली ने इस कौम का मज़ाक बना दिया है, तो आप इसी लापरवाही में पड़े रहिए और अपनी बारी का इंतजार कीजिए।

आखिर ये लोग राजनीतिक मामलों के नेतृत्व की जिम्मेदारी पर क्या कर रहे हैं, जिन्हें इतने बड़े मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन की तारीखों को इतनी बार बदलना पड़ रहा है? क्या उन्हें इतनी भी पूर्व-योजना बनाने की क्षमता नहीं कि जिस तारीख पर विरोध प्रदर्शन तय कर रहे हैं, उस दिन वह स्थान उपलब्ध होगा या नहीं? उन तारीखों में कोई अन्य समस्या तो नहीं?

जो लोग इतनी बुनियादी रणनीतिक संभावनाओं का ध्यान नहीं रख पा रहे हैं, वे आखिर लेखन और धार्मिक उपदेशों के क्षेत्र में ही क्यों नहीं रहते? कम से कम उनकी वैचारिक और पारंपरिक प्रतिष्ठा बनी रहेगी और कौम का सम्मान भी बरकरार रहेगा!

और फिर विरोध प्रदर्शन भी ऐसा करना है कि आप कह रहे हैं कि

जो भी प्रदर्शन में आए, वह सर झुकाकर आए और सर झुकाकर ही चला जाए,

कोई शोर-शराबा न हो, कोई नारेबाजी न हो,

और ब्रदरान-ए-वतन (अन्य समुदायों) की भावनाओं का भी ख्याल रखा जाए।


यह विरोध प्रदर्शन है या शोकसभा?

जिस प्रदर्शन में शोर और न्यायोचित आक्रोश न हो,
जिसमें गगनभेदी गर्जना न हो,
जिसमें अन्य समुदायों की भावनाओं का विशेष ध्यान रखने की पाबंदी हो—
वह विरोध प्रदर्शन है या खुशामद?

जिस विरोध को 8 महीने पहले किया जाना चाहिए था, उसे अब कर रहे हैं।
और फिर, विरोध प्रदर्शन की तारीख तय करने की इतनी भी समझदारी नहीं कि दो-दो बार तारीख बदलनी पड़ रही है—
आखिर यह सब क्या हो रहा है?

इस्लामी नेतृत्व के दावेदारों की यह स्थिति देखकर, हिंदुत्ववादी ताकतें और आरएसएस की नेतृत्व व्यवस्था आम मुसलमानों के खिलाफ कितनी हावी होगी, उनके अस्तित्व को कितनी गंभीरता से लेगी?
खुद विचार करें और निर्णय लें!



Saturday, 8 March 2025

वक्फ संशोधन 14 नियम ।



संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 में 14 संशोधनों को मंजूरी दी है, जिनका उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता, जवाबदेही, और प्रभावशीलता बढ़ाना है। प्रमुख संशोधन इस प्रकार हैं:

1. धारा 40 का निष्कासन: वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 40, जो वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने का अधिकार देती थी, को हटाया गया है। 


2. विधेयक का नाम परिवर्तन: विधेयक का नाम बदलकर "एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम, 1995" रखा गया है। 


3. प्रतिनिधित्व में विविधता: केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में मुस्लिम समुदाय के विभिन्न वर्गों (शिया, सुन्नी, बोहरा, अघाखानी) के साथ-साथ गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल किया जाएगा। इसके अलावा, दो महिला सदस्यों का प्रतिनिधित्व अनिवार्य होगा। 


4. पंजीकरण की समय-सीमा में लचीलापन: प्रत्येक वक्फ और उससे संबंधित संपत्ति को छह महीने के भीतर केंद्रीय पोर्टल पर पंजीकृत करना अनिवार्य होगा। हालांकि, कुछ मामलों में पंजीकरण की समय-सीमा बढ़ाई जा सकती है। 


5. विधिक कार्यवाही का अधिकार: यदि वक्फ संपत्ति निर्धारित समय-सीमा में पंजीकृत नहीं होती, तो सामान्यतः विधिक कार्यवाही का अधिकार समाप्त हो सकता है। लेकिन, न्यायालय अपंजीकृत वक्फों को विधिक कार्यवाही की अनुमति दे सकता है, यदि वे गैर-पंजीकरण के कारणों का शपथपत्र प्रस्तुत करें। 


6. जिला कलेक्टर की भूमिका: वक्फ संपत्तियों से जुड़े विवादों का निपटारा अब जिला कलेक्टर द्वारा किया जाएगा, जो पहले वक्फ न्यायाधिकरण के अधिकार क्षेत्र में था। 


7. वक्फ संपत्तियों का डिजिटलीकरण: सभी वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण एक केंद्रीकृत वेबसाइट पर अनिवार्य होगा, जिससे पारदर्शिता बढ़ेगी। 


8. संपत्ति दान करने के नियम: केवल धार्मिक आस्था रखने वाले मुस्लिम ही अपनी संपत्ति वक्फ परिषद या बोर्ड को दान कर सकेंगे, और यह दान केवल कानूनी स्वामी ही कर सकेगा। 


9. वक्फ न्यायाधिकरण की शक्तियों में वृद्धि: वक्फ न्यायाधिकरण की शक्तियों को बढ़ाया जाएगा, जिससे वक्फ से संबंधित विवादों का तेजी से निपटारा हो सके। 


10. वक्फ बोर्ड की वित्तीय जिम्मेदारियां: वक्फ बोर्ड को प्राप्त होने वाली धनराशि का उपयोग विधवाओं, तलाकशुदा महिलाओं और अनाथों के कल्याण के लिए किया जाना चाहिए, और वह भी सरकार द्वारा सुझाए गए तरीके से। 


11. मुख्य कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति: वक्फ बोर्ड के लिए वरिष्ठ स्तर के अधिकारी को मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में नियुक्त किया जाएगा, जिससे प्रशासनिक कार्यों में सुधार होगा। 


12. वक्फ संपत्तियों के कंप्यूटरीकरण: वक्फ संपत्तियों के रिकॉर्ड को कंप्यूटरीकृत किया जाएगा, जिससे डेटा प्रबंधन में सुधार होगा। 


13. वक्फ बोर्ड की संरचना में बदलाव: वक्फ बोर्ड की संरचना में बदलाव करके इसे और अधिक प्रभावी बनाया जाएगा, जिसमें विभिन्न समुदायों के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित किया जाएगा। 


14. अवैध कब्जों की रोकथाम: अवैध रूप से कब्जा की गई वक्फ संपत्तियों को वापस लेने के लिए कानूनी प्रणाली में सुधार किए जाएंगे। 



इन संशोधनों का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता, भ्रष्टाचार उन्मूलन, और अतिक्रमण रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाना है।



Thursday, 6 March 2025

Gujarat anand



આણંદ: નકલી Dy.SP નિશા સલીમ વહોરા સામે સોજીત્રા પોલીસ મથકમાં નોંધાયો ગુનો

આણંદ જિલ્લાના સોજીત્રાની નકલી Dy.SP નિશા સલીમ વહોરા સામે સોજીત્રા પોલીસ મથકમાં આખરે ગુનો નોંધાયો છે. નિશા સલીમ વહોરાએ GPSC રેન્ક-1માં પરીક્ષા પાસ કરી હોવાનું જણાવી પ્રસિદ્ધિ મેળવી હતી અને પોતે અમદાવાદ ક્રાઈમ બ્રાન્ચમાં Dy.SP તરીકે નિમણૂંક પામી હોવાની પણ પ્રસિદ્ધિ કરી હતી. સરદાર પટેલ યુનિવર્સીટી દ્વારા પણ તેને અભિનંદન પાઠવાયા હતા. 

GPSCની એકેય પરીક્ષાના રિઝલ્ટમાં નામ નથી
વિદ્યાર્થી નેતા યુવરાજસિંહ જાડેજાનો પોતાના X પ્લેટફોર્મ પર દાવો કર્યો છે કે GPSCની પરીક્ષાના 5 વર્ષના રિઝલ્ટ તપસ્યા પણ આબેનનો કોઈ રેકોર્ડ મળ્યો નથી. નિશા સલીમ વહોરા નામની યુવતીનું નામ પણ એકેય રિઝલ્ટમાં નથી. આ ઉપરાંત અમદાવાદ ક્રાઈમ બ્રાન્ચથી લઈને સોજીત્રા સુધીની તાપસમાં ક્યાંય નિશા વહોરા નોકરી કરતી હોવાનું સામે આવ્યું નથી. 

નિશા વહોરાનું સન્માન સોજીત્રાના ધારાસભ્ય અને મુખ્યમંત્રી પણ કરી ચુક્યા છે. આ ઉપરાંત સમાજના કાર્યક્રમોમાં પણ નિશા વહોરાનું Dy.SPની પોસ્ટ મળવાથી સન્માન કરવામાં આવ્યું હતું. 

સોજીત્રા પોલીસ મથકે નોંધાયો ગુનો
આખરે પોતાને Dy.SP તરીકે ઓળખાવતા સોજીત્રાની નિશાસલીમભાઈ વ્હોરા વિરુદ્ધ સોજીત્રા પોલીસ મથકે ગુનો નોંધાયો છે. પોતે Dy.SPના હોદ્દા પર નહીં હોવા છતાં પોતાને ઉચ્ચ અધિકારી ગણાવતા હવા બાબતે અને પોતે સરકારી અધિકારી હોવા બાબતનો પ્રચાર કરવા અને મલિન ઇરાદાપૂર્વક જાહેરમાં સન્માન કરાવવા બાબતે ગુનો નોંધાયો છે. સમગ્ર મામલે આણંદ એલસીબીની ટીમ તપાસ કરી રહી છે.
(સૌજન્ય:- GSTV NEWZ GUJARATI)

7/11 मुंबई विस्फोट: यदि सभी 12 निर्दोष थे, तो दोषी कौन ❓

सैयद नदीम द्वारा . 11 जुलाई, 2006 को, सिर्फ़ 11 भयावह मिनटों में, मुंबई तहस-नहस हो गई। शाम 6:24 से 6:36 बजे के बीच लोकल ट्रेनों ...