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Friday, 28 October 2016

कांर्तीकारी खुला पत्र नेटा लोगो के नाम

गुजरात प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के नाम खुला पत्र
माननीय भरत सोलंकी जी ---------   आदाब                                             दिनांक : २७ जुलाई २०१६
केंद्र सरकार अपने गुणगान में कहती फिर रही है '' मेरा देश बदल रहा है '' मै कहता हु '' मेरा गुजरात बदल रहा है ''यहाँ के नव जवान क्रन्तिकारी नेताओं ने गुजरात से भय , भगवा और भगवन के नाम कि राजनीती को समाप्त कर दिया है  अब गुजरात में सामाजिक समानता की राजनिति का युग शरू हुआ है हार्दिक पटेल जैसे नेता इसे सरदार युग मानते हैं वहीँ दूसरी तरफ ऊना क्रांति के बाद जिग्नेश जैसे मार्क्सिस्ट आम्बेडकरवादी नेता इसे आम्बेडकर युग की शरुआत मानते हैं गुजरात में कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल होने के बावजूद भी उस की भूमिका शून्य रही है  पिछले बीस सालों में सभी समाज के साथ अन्याय होता रहा और कांग्रेस ने सही ढंग से कभी भी अपनी भूमिका अदा नहीं की इस आन्दोलन के दौर में कांग्रेस की एक भूमिका रही है वह यह है कि पाटीदारों के आन्दोलन के खिलाफ ओ बी सी के नाम पर अल्पेश ठाकोर को खड़ा कर दिया
क्या आप जानते हैं अल्पेश ठाकोर ने नशा मुक्ति के नाम पर ठाकोर -क्षत्रिय को भाजपा के पक्ष में खड़ा कर दिया है ?
अल्पेश ठाकोर अब अस्सी लाख कि ज़ागुअर गाड़ी से चलता है ?
यह गाडी मुकेश भरवाड ने तोहफे के तौर पर दी ? जो हमेशा साथ साथ होता है ?
आप को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और मुकेश भरवाड के आपसी रिश्तो की मालूमात होनी चाहिए ? क्या यह है ?
सामाजिक अधिकार की लड़ाई को अल्पेश ने कैसे नशा मुक्ति आन्दोलन का रूप दे दिया ?
गुजरात सरकार अल्पेश पर महेबान होकर सुरक्षा गार्ड दे रखा है ?  यह महेरबानी क्यों ?
मै जानना चाहता हूँ कि क्या अल्पेश ठाकोर कांग्रेस की कोख में पैदा होकर भाजपा की गोद में बैठने वाला नेता नहीं है ? यदि नहीं तो पुष्टि करें
सोलंकी साहब , आपके महान नेता माननीय अहमद पटेल साहब की भूमिका भी संदेह के घेरे में है अहमद भाई कि राजनिति कि दूकान कांग्रेस पार्टी में अल्पसंख्यक के नाम पर चलती है मुस्लिम होने कि वजेह से राज्य सभा की कुर्सी फिक्स है लेकिन मुसलमानों से दूरी रखने में ही अहमद भाई अपनी भलाई समझते है यहाँ तक कि जब वह आदर्श ग्राम योजना के तहेत गाँव को गोद लेते हैं तो पहले यह सुनिश्चित कर लेते हैं कि वान्दरी  गाँव में कोई मुसलमान तो नहीं है
अस्सी के दशक से अब तक अहमद भाई के नाम पर कंग्रेस्सी चिराग जलाते हैं यह वही अहमद पटेल हैं जो बाबरी मस्जिद कि शहादत पर निंदा के लिए एक शब्द भी नहीं बोलते हैं और अफगानिस्तान में बामियान की मूर्ती तोड़ने पर भारतीय अखबारों से लेकर बी बी सी लन्दन तक में निंदा करते हैं
नरेन्द्र मोदी के दोस्त हैं अहमद पटेल , मोदी जी ऐसा मानते हैं लेकिन अहमद भाई इनकार करते हैं तो मेरा आप  से सवाल है कि निरुपम नानावती जो अहमद भाई के पुराने दोस्त हैं अहमद भाई जब भी गुजरात आते हैं तो मिस्टर नानावती साथ दिखते हैं यहाँ तक कि अहमद भाई राज्य सभा कि सदस्यता के चुनाव का पर्चा दाखिल करने जाते हैं तो भी मिस्टर नानावती अहमद भाई के साथ साथ होते हैं यही नानावती अमित शाह की गिरफ़्तारी पर अमित शाह के वकील बन कर अदालत में नजर आते हैं तहकीकात करने पर पता चलता है कि नानावती जी अमित शाह के भी ख़ास और भरोसेमंद हैं
दो बड़े विरोधी  राजनैतिक दल के बड़े नेता आपस में कभी भी खुले तौर पर नहीं मिलते हैं न ही अपने पर्सनल फोन से बात करते हैं यह लोग बीच में ऐसे व्यक्ति को रखते हैं जो दोनों पक्ष का भरोसेमंद हो ऐसा व्यक्ति दलाली करता है यह फार्मूला अधिकतर बड़े नेता उपयोग करते हैं
क्या हम भाजपा और कांग्रेस के इस मकडजाल को जनता से दोखा न समझें ?
क्या यह मुस्लिमो और दलितों के साथ धोखा नहीं है जो कांग्रेस के ट्रेडिशनल वोटर रहे हैं
क्या भाजपा और कांग्रेस मिलकर राजनिति नहीं कर रहे हैं ? जिस कारण विपक्ष कि भूमिका समाप्त हो गयी है जिस कि हानि मात्र गरीब गुजरातियों को हुई
आज ही मुझे एक प्राइवेट जासूस ने बताया है कि दो दिन पहले एम् एल ए गयासुद्दीन शैख़ की अमित शाह से मुलाक़ात हुई है मुझे यकीन नहीं आया तो दिमाग कि बत्ती जलाई तो पता चला दो दिन पहले अमित शाह आहमदाबाद में थे इसके अलावा हाल ही में गयासुद्दीन शैख़ साहब ने विधान सभा में कहा था कि अक्षरधाम हमले में मारे गए आतंकी मुस्लमान थे जबकि उस समय कुछ अखबारों ने लिखा था कि इन आतंकियों कि खतना नहीं हुई है आप को मालूम  ही होगा कि मुसलमान कैसा भी हो खतना ज़रूर करवाता है आनंदी बेन की तारीफ़ में एम् एल ए श्री ने इश्तेहार भी दिया था कुछ समय से विधयक जी भाजपा को खुश करने वाले काम ज्यादा कर रहे हैं
मै आपकी जगह होता तो पार्टी के सभी विधायकों के ज़मीन जायदाद के कारोबार कि जाँच करवाता और पता करता कि कितने विधायकों की सत्ता पक्ष के साथ सांठगांठ है
मै आप से जानना चाहता हु क्या गयासुद्दीन शैख़ अमित शाह के संपर्क में हैं ?
क्या आने वाले दिनों में वह भाजपा का एक मुस्लिम चेहरा बनेंगे ?
आप लोग कब तक मुसलमानों को बेवकूफ बनायेंगे ?
मै एक बात साफ़ कर देना चाहता हूँ कि मेरा किसी भी राजनैतिक दल से कोई सम्बन्ध नहीं है मै इंसाफ फाउन्डेशन का चेयरमैन हूँ हमारा संगठन दलित मुस्लिम एकता पर काम कर रहा है साथ ही राजनैतिक रिसर्च कर के दलितों और मुसलमानों को गुजरात में विकल्प सुझा सके इसकी भी कोशिश क्र रहा है
आशा करता हूँ कि मेरे पत्र का जवाब मिलेगा अगले पत्र में हम आप से गुजरात दंगो के बाद हुई इन्वेस्टिगेशन में कांग्रेस की भूमिका पर बात करेंगे ताकि गुजरात की जनता किसी भ्रम में न रहे
      धन्यवाद
     कलीम सिद्दीकी
President , Initiative for Social Activities Framing (INSAF) Foundation
   M. 9276848549

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अपनी कोमेंट जरुर लीखे

Thursday, 27 October 2016

काले घंनकी बात जरा परहो मेरे पयारो

इन 57 अरबपति कर्जदारों से सीखो मेरे किसानों !!

जब से किसी ने बताया है कि पूरे भारत में सिर्फ 57 लोग ऐसे हुए हैं, जिन पर सरकारी बैंकों के 85,000 करोड़ उधार हैं, तब से मैं ख़ुद को कोस रहा हूं. ये तो वो लोग हैं, जिन्होंने 500 करोड़ से कम का लोन लेना अपनी शान के ख़िलाफ़ माना. मतलब कि अगर बैंक का लोन लेकर चंपत ही होना है तो 500 करोड़ से कम लेकर क्या भागें. बैंक को दिक्कत नहीं है. कोई तीसरा परेशान आत्मा है कि बैंक इनसे पैसे नहीं ले रहे हैं. वो जाकर केस कर दे रहा है. इन अरबपति क़र्ज़दारों की सामाजिक प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाने का प्रयास कर रहा है, वो भी बैंकों को बचाने के लिए. ऐसा अनर्थ हमने तो कभी नहीं देखा.

इन्हीं जागरूक मुकदमेबाजों के कारण अदालत को पूछना पड़ रहा है कि कौन लोग हैं, जो 85 हज़ार करोड़ लेकर भी नहीं दे रहे हैं, इनका नाम क्यों न पब्लिक को बता दें. क्यों बता दें? क्या पब्लिक पैसे वसूलेगी? ये भारतीय समाज है. लोग ऐसे क़र्ज़दारों के यहां रिश्ता जोड़ने पहुंच जाएंगे. इससे भी ज़्यादा ख़ुशी की बात ये है कि इन 57 लोगों में से सिर्फ एक ही विदेश भागा है. इनका नाम विजय माल्या है और सुप्रीम कोर्ट को भी नाम मालूम है. बाकी 56 यहीं भारत में ही हैं. उनको पता है कि जब भागने से भी बैंक वापस नहीं ले सकते, तो क्यों न भारत में ही रहे. यहां रहकर भी तो वे बैंकों को लौटाने नहीं जा रहे.

भारतीय रिज़र्व बैंक ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि हुजूर इनके नाम पब्लिक को न बतायें. सरकार ने रिज़र्व बैंक पर छोड़ दिया कि चलो यही बताओ, क्यों न बतायें. इतना बड़ा सवाल था कि रिज़र्व बैंक को सोचने का टाइम भी दिया गया. चुनाव होता तो जरूर कोई नेता कहता कि जनता के पैसे दो वरना जनता को नाम बता देंगे. बैंक को भले न पैसे मिलते, लेकिन नेताजी को चुनाव के लिए चंदे तो मिल ही जाते. मेरा एक सवाल है. विजय माल्या का नाम तो कोर्ट और पब्लिक को मालूम है, तो क्या बैंकों ने पैसे वसूल लिये. कहीं गिरवी तो कहीं नीलामी, यही हो रहा है. माल्या अभी तक भारत नहीं आया. दाऊद की तरह लाया ही जा रहा है. टीवी चैनलों ने कितनी ख़बरें चलाई कि पाकिस्तान दाऊद देने वाला है. बेचारे बैंकों को भी कितनी मेहनत करनी पड़ रही है. वो वसूलना नहीं चाहते, कुछ लोग पीछे पड़े हैं कि वसूलो भाई. जो भी है, नाम मालूम होने से पैसा आसानी से मिल जाएगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है. अब आप ही बतायें, पब्लिक को नाम बता भी देंगे तो नाम जानकर पब्लिक क्या करेगी? जब सरकार वसूल नहीं पाई तो क्या पब्लिक 85,000 करोड़ वसूल लेगी!

जब से ये ख़बर सुनी है, मारे ख़ुशी के दफ़्तर नहीं गया. 57 लोग मिलकर 85,000 करोड़ लेकर यहां भारत में हैं. अगर ये सभी किसान होते तो अकेला तहसीलदार इनसे वसूल लाता. पॉज़िटिव बात ये है कि इन 57 में से किसी ने आत्महत्या नहीं की है. मेरी राय में सरकार को इन्हें ब्रांड अम्बेसडर बनाकर किसानों के बीच ले जाना चाहिए. ये लोग किसानों से कहें कि हम 500 करोड़ का क़र्ज़ा लेकर ख़ुश हैं, नहीं देकर भी ख़ुश हैं. खुदकुशी नहीं कर रहे हैं. एक आप लोग हैं जो 10 लाख के लिए आत्महत्या कर लेते हैं. सरकार को कानून बनाकर किसानों और होम लोन वालों को 'विलफुल डिफॉल्टर' बनने का सुनहरा मौक़ा देना चाहिए. भाई फ़सल डूब गई, नौकरी चली गई तो कहां से क़र्ज़ा देंगे.

गूगल कीजिये. वित्त मंत्री के कितने बयान मिलेंगे कि बैंक आज़ाद हैं, पैसे वसूलने के लिए. उन्हें किसी से डरने की ज़रूरत नहीं है. वित्त मंत्री की दी हुई आज़ादी का लाभ बैंकों ने खूब उठाया है. इस आज़ादी के कारण एक साल में बैंकों का सकल नॉन प्रोफ़िट असेट यानी एनपीए दोगुना हो गया है. यानी जून 2015 में 5.4 प्रतिशत था, जून 2016 में 11.3 प्रतिशत हो गया. पैसे देने के बजाए ये जल्दी से जल्दी दिवालिया हो सकें, इसके लिए भी इन्हें क़ानूनी सुविधा दी गई है. हाल ही में वित्त मंत्री ने कहा कि भारत को कर चुकाने वाला समाज बनना होगा. ज़रूरत कहने की यह थी कि भारत को ऋण चुकाने वाला समाज बनना चाहिए, लेकिन टैक्स का नाम ले लिया तो अब कौन बोलेगा.

ये 57 लोग ही चाहें तो लाखों भारतीय किसानों का क़र्ज़ा माफ़ कर सकते हैं. दो तरह से. एक तो इसी पैसे से किसानों की मदद कर दें या फिर किसानों को आइडिया बता दें कि बैंकों का क़र्ज़ा कैसे पचाया जाता है. सोचिये अगर भारतीय किसान 500 न सही 100 करोड़ का क़र्ज़ लेकर पचा ले तो गांव-गांव में अमीरी आ जाएगी. ग्रामीण उपभोक्ता सूचकांक छप्पर फाड़ कर ऊपर चला जाएगा. मैं तो चाहता हूँ कि रिज़र्व बैंक इन 57 लोगों के नाम बता दे. पैसे तो ये वैसे ही न देने वाले हैं, कम से कम उनसे बाकी क़र्ज़दार सलाह तो ले सकते हैं. उनके बारे में पढ़ाया जाना चाहिए. इनकी जीवन शैली दिखाई जानी चाहिए, जैसे हम गांवों में जाकर क़र्ज़ में डूबे किसान की उदास जीवन शैली दिखाते हैं. जब हम पांच-पांच सौ करोड़ के क़र्ज़दारों की आलीशान जीवन शैली दिखायेंगे, तो किसानों में ग़ज़ब का आत्मविश्वास आएगा. किसानों को भी यक़ीन होगा कि अगर वे करोड़ों की संख्या में न होते तो आज सरकार और बैंक उनका भी कुछ नहीं कर पाते, जैसे इन 57 लोगों का नहीं कर पा रही है. त्वरित कार्रवाई की जगह लंबी प्रक्रिया के सहारे मदद का यह रास्ता लाखों किसानों को जीवन दे सकता है !!
हंसना मना है, लेकिन इस लेख को पढ़कर जो रोएगा वो पछताएगा. जो तुरंत लोन लेने चला जाएगा वो राज करेगा !!

मुसलमान होनेकी वजाहसे पत्रकार ओर पोलीस वाले के साथ ये हुवा

मुसलीम पत्रकार

गुजरात दंगों की खोजी पत्रकार राणा अय्यूब को कतर में बोलने से रोका गया
October 27, 2016 GUJRAT, India, Khaas Khabar, NRI, Politics 0 Comments

नई दिल्ली: भारतीय पत्रकार राणा अय्यूब को कतर में भारतीय दूतावास द्वारा 22 अक्टूबर को दोहा में एक सार्वजनिक सभा को संबोधित करने से रोका दिया गया था। दूतावास की यह कार्यवाही मोदी सरकार की और से एक गैर-शासकीय आदेश जैसी प्रतीत होती है । अय्यूब हाल ही में जारी पुस्तक, “गुजरात फाइल्स – एनाटोमी ऑफ़ अ कवर अप” की लेखिका हैं, यह पुस्तक 2002 के मुस्लिम विरोधी दंगों में भाजपा के वर्तमान पार्टी अध्यक्ष अमित शाह सहित कई शीर्ष अधिकारियों और नेताओं द्वारा निभाई गयी भूमिका पर आधारित है ।

अय्यूब, जिन्हें इंडियन एसोसिएशन ऑफ़ बिहार एंड झारखंड (IABJ) द्वारा दोहा, कतर में आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया था, उन्हें आयोजकों ने बताया कि उन्हें आदेश मिले हैं कि या तो वे समारोह को रद्द कर दें या वक्ताओं की सूची से अय्यूब को ड्रॉप कर दें । पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के 85वें जन्म दिवस पर आयोजित इस कार्यक्रम में अय्यूब के साथ-साथ, समाचार वेबसाइट twocircles.net के संस्थापक काशिफ-उल-हुदा भी वक्ता के रूप में आमंत्रित थे ।

IABJ संगठन की वेबसाइट के अनुसार यह संगठन भारतीय दूतावास, दोहा के संरक्षण में भारतीय सांस्कृतिक केंद्र (आईसीसी) की एक सहयोगी संस्था के रूप में कार्य करता है । भारी दबाव में, आयोजकों ने आईसीसी के अशोका हॉल में होने वाली मीटिंग को ऐन वक़्त पर रद्द कर दिया । अचानक कार्यक्रम के रद्द हो जाने पर, वहां पहले से पहुंचे हुए दर्शकों के एक हिस्से ने राणा अय्यूब से मिलने का फैसला किया और पास ही के एक रेस्टोरेंट में उनसे बात चीत की ।

राणा अय्यूब ने दा वायर से बातचीत में कहा: “जैसे ही मैंने ट्वीट किया कि मैं इस आयोजन में बोलने जा रही हूँ, मेरे पास आयोजकों का फ़ोन आया । उन्होंने बताया कि आईसीसी ने कहा है कि अगर राणा अय्यूब कार्यक्रम में बोलेंगी तब आईसीसी के हाल के इस्तेमाल की अनुमति नहीं दी जायेगी और आयोजकों को अपने आयोजन के लिए वैकल्पिक व्यवस्था कर लेने के लिए कहा गया ।”

राणा अय्यूब ने आगे बताया, “आयोजको को कहा गया था कि अगर मुझे वक्ताओं की सूचि से हटा दिया जाता है तब आईसीसी उन्हें कार्यक्रम करने से नहीं रोकेगा । लेकिन IABJ ने कहा कि वे ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि उन्होंने मुझे विशेष रूप से आमंत्रित किया है ।” अय्यूब को “कलाम, अल्पसंख्यकों के सशक्तिकरण, दलितों और उनकी पुस्तक के निष्कर्षों” पर बात करने के लिए बुलाया गया था ।

IABJ ने अपने आधिकारिक निमंत्रण में राणा का वर्णन एक खोजी पत्रकार, लेखक और स्तंभकार के रूप में करते हुए लिखा था कि वह डॉ. कलाम को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगी और अपनी किताब गुजरात फ़ाइलों के बारे में बात करेंगी ।

आयोजकों में से एक ने नाम न छापने की शर्त पर दा वायर को बताया, “हम ए पी जे अब्दुल कलाम पर एक कार्यक्रम कर रहे थे । इसलिए, हमने राणा को बोलने के लिए आमंत्रित किया था। लेकिन आईसीसी ने कार्यक्रम में उसके बोलने पर आपत्ति जताई। हमें कार्यक्रम रद्द करने के लिए नहीं कहा गया था लेकिन अय्यूब का नाम ड्रॉप करने के लिए कहा गया था।”

“हम ज्यादातर भारतीय दूतावास के संरक्षण में सांस्कृतिक कार्यक्रम करते हैं। हम राजनीतिक कार्यक्रमों से दूर रहने की कोशिश करते हैं क्योंकि हम दूतावास के तहत पंजीकृत हैं। सच कहूँ तो, हमें अय्यूब की किताब के बारे में ज्यादा पता नहीं था, लेकिन जब हमारे जानने वाले कुछ लोगों ने एक वक्ता के रूप में उनकी सिफारिश की, तब हमने उन्हें आमंत्रित किया। लेकिन जब हमें निर्देश मिला, तब हमारे पास कार्यक्रम को रद्द करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था । आप समझ सकते हैं कि हम प्रवासी हैं और मुसीबत में नहीं पड़ना चाहते । केवल हमारे मुस्लिम नाम ही वर्तमान परिस्थितियों में आग में घी डालने का काम कर सकते हैं, “उन्होंने कहा ।

हालांकि IABJ के सदस्यों ने मामले में आईसीसी के हस्तक्षेप के बारे में अधिक जानकारी का खुलासा करने से इनकार कर दिया। सरकार के सूत्रों ने दा वायर को संकेत दिया है कि इस कार्यक्रम पर निर्देश नई दिल्ली से आये थे और स्थानीय भारतीय मिशन ने स्वतंत्र रूप से कोई निर्देश जारी नहीं किया था ।

कुछ सरकारी अधिकारियों से स्वतंत्र पूछताछ में पता चला है कि नई दिल्ली से आदेश मिलने के बाद, दोहा में प्रेस और शिक्षा और भारतीय दूतावास के वाणिज्यिक प्रतिनिधि के लिए प्रथम सचिव, दिनेश उदेनिया ने आईसीसी के अध्यक्ष गिरीश कुमार को फोन कर इस कार्यक्रम की मुख्य वक्ता के बारे में मोदी सरकार के विचारों से अवगत कराया था ।

उदेनिया और भारतीय दूतावास के अन्य अधिकारी टिप्पणी ,

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मुसलीम पोलीस
Home / India / सीएम से लेकर पीएम तक की लगाम हमारे हाथ, हमें कोई नहीं छू सकता: RSS
सीएम से लेकर पीएम तक की लगाम हमारे हाथ, हमें कोई नहीं छू सकता: RSS
October 17, 2016 India, Khaas Khabar 1 Comment

PC: Jansatta
मध्य प्रदेश: बालाघाट जिले में 25 सितंबर को आरएसएस के जिला प्रचारक सुरेश यादव को गिरफ्तार कर मुश्किलों में घिरे इंस्पेक्टर जिया-उल-हक़ का कहना है कि गिरफ्तारी होने से आरएसएस प्रचारक और संघ के अहम को ठेस पहुंची है।

गौरतलब है जिया-उल-हक़ के साथ आठ पुलिस वालों पर सुरेश यादव से मारपीट करने, हत्या की कोशिश और डकैती का मामला दर्ज किया गया है जिस कारण जिया-उल-हक फरार चल रहे हैं।

इंडिया एक्सप्रेस से बातचीत में हक ने बताया है कि पुलिस में 90 प्रतिशत स्टाफ हिंदू है लेकिन इस मामले को हाई लाइट करने की पीछे की वजह धर्म से जुडी है। लेकिन मैं हमेशा सांप्रदायिक मामलों में सावधानी से पेश आता हूं। फिर भी मुझ पर स्थानीय चुनाव में मुस्लिम कैंडिडेट को सपोर्ट करने का आरोप भी लग चुका है।

हक़ का कहना है कि पुलिस टीम ने जब यादव को गिरफ्तार किया था तो उसका फोन भी सीज कर लिया गया था जिससे उसने वॉट्स एप के जरिए मैसेज भेजा था। उनकी गिरफ्तारी के बाद हिन्दू कट्टरपंथियों ने थाने को घेर हिंदूवादी नारे लगाने शुरू कर दिए। मेरे लेकर वह मुझे उनके हवाले करने और पाकिस्तान भेजने की बात कर रहे थे।

मेरे डिपार्टमेंट से भी कोई मेरे पक्ष में खड़ा नहीं हुआ जबकि यादव को मंत्रियों के फोन आ रहे थे। यादव की पहली मेडिकल रिपोर्ट में किसी तरह की इंजरी होने की बात सामने नहीं आई थी। हक का कहना है कि मुझे बिलकुल मालूम नहीं था कि अपनी ड्यूटी ईमानदारी से करने का नतीजा मुझे ऐसे मिलेगा।
आपको बता दें कि बीते दिनों सोशल मीडिया पर मुस्लिमों के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट करनेवाले आरएसएस कार्यकर्ता को गिरफ्तार करने वाले पुलिस को ही संघ की गुंडागर्दी का शिकार होना पड़ा और हत्या की कोशिश, लूट, जोर-जबर्दस्ती जैसे आरोपो का सामना करना पड़ा।

संघ ने पुलिस को ही धमकी देते हुए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया, “तुम्हें जानते नहीं क्या कि तुम किस से दुश्मनी मोल ले रहे हो। हम मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री को भी उनके पद से हटा सकते हैं। हम सरकार बना सकते हैं और गिरा भी सकते हैं तो तुम्हारी क्या औकात है।
हमने ऐसा उदाहरण पेश किया है कि कोई पुलिस वाला उन्हें हाथ लगाने की दोबारा हिम्मत नहीं करेगा।

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अपना वीचार रखे ,........

Wednesday, 26 October 2016

मुसलीम के लीये आतीश बाजी हराम हे ,

*शैतान आपको ये मेसेज पढने से बहोत रोकेगा मगर आप ज़रूर पूरा पढ़कर उसके वार को नाकाम बना दीजिये*

*-सुवाल:_*
*पटाखे ख़रीदना, बेचना, फोड़ना वगैरा का इस्लामी शरीअत में क्या हुक्म है? पटाखे की इजाद (शोध) किसने की?*
जवाब: हकीमुल उम्मत मुफ़्ती अहमद यार खान नईमी رحمة الله تعالى عليه अपनी किताब इस्लामी ज़िन्दगी में लिखते है: आतिशबाज़ी के बारे में मशहूर ये है के ये नमरूद काफ़िर बादशाह ने इजाद (शोध) की. उसने हज़रते इब्राहीम عليه السلام को आग में डाला और आग गुलज़ार हो गई  तो उसके आदमियों ने आग के अनार भर कर उनमे आग लगा कर हजरते इब्राहीम खालिलुल्लाह عليه السلام  की तरफ फैके.
और फरमाते है: *आतशबाजी (पटाखे fireworks) बनाना, इसका बेचना, इसका ख़रीदना और (बच्चो वगैरा को) खरीदवाना इसका चलाना या चलवाना (फोड़ना) सब हराम है.*
(इस्लामी ज़िन्दगी 77,78)

मेरे आक़ा आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा  खान رحمة الله تعالى عليه  से इस बारे में पूछा गया तो फ़रमाया: *आतशबाजी (पटाखे वगैरा जलाना) जिस तरह शादियों वगैरा में राइज है बेशक हराम और पूरा जुर्म है के इसमें माल की बरबादी है.*
(फतावा रज़विय्या जिल्द 23 सफहा 279)

मुसलमानों का लाखो रूपया हर साल इस रस्म में बरबाद हो जाता है और हर साल खबरे आती है के फुला जगह से इतने घर आतिशबाज़ी से जल गए और इतने आदमी जल कर मर गए. इसमें जान का खतरा माल की बरबादी  और मकानों में आग लगने का अंदेशा है. और अपने माल में अपने हाथ से आग लगाना और फिर ख़ुदा तआला की नाफ़रमानी का वबाल अपने सर पर डालना है. ख़ुदा के लिए इस बेहूदा और हराम काम से बचो. अपने बच्चो और रिश्तेदारों को रोको जहाँ आवारा बच्चे ये खेल खेल रहे हो वह तमाशा देखने के लिए भी न जाओ.

जो लोग पटाखे वगैरा में अपना पैसा बरबाद करते है वो शैतानो के भाई है. जी हाँ! ये किसी के घर की बात नहीं रब्बे अकबर का फरमान है. ऐ मुसलमान!! तेरा रब अपने पाक कलाम में तुझसे फरमा रहा है.
पारा 15 सूराऐ बनी इसराइल आयत नं 26, 27:
وَلَا تُبَذِّرۡ تَبۡذِيرًا إِنَّ ٱلۡمُبَذِّرِينَ كَانُوٓاْ إِخۡوَٰنَ ٱلشَّيَٰطِينِۖ وَكَانَ ٱلشَّيۡطَٰنُ لِرَبِّهِۦ كَفُورٗا

तर्जमा: और फुजूल न उड़ा. *बेशक फुजूल उड़ाने वाले शैतानो के भाई है* और शैतान अपने रब का बड़ा ना शुक्रा है.

तुम्हारे नबी अहमदे मुज्तबा, मुहम्मद मुस्तफ़ा صلى الله تعالى اليه واله وسلم फरमाते है: जो किसी कौम से मुशाबह्त करे (यानि उनके जैसा भेस अपनाये या उनके जैसे काम करे) वो उन्ही में से है.

मुसलमान की कब ये शान है के वो अपने वक़्त, माल, वगैरा को ऐसे फुजूल कामो में बर्बाद करे? खुदारा अपने हाल पर रहम करो और ऐसे शैतानी कामो से खुद को और अपनी आल औलाद को बचाओ. ये बहाने मत बनाओ के बच्चे ने जिद की तो पटाखे दिलवा दिए. वरना बच्चे रोयेंगे. बच्चे रोते है तो रोने दो. कितना रोयेंगे. दुन्या का रोना आखिरत के रोने से करोड़ो दरजे अच्छा है. आज तुमको अपने बच्चे के रोने पर रहम आ जाता है और उसकी हर ख्वाहिश पूरी करते हो, चाहे शरीअत में वो काम हराम ही क्यों न हो. तुम्हारा यही बेटा, बेटी इसी तरह पटाखे, और काफ़िरो के तरीको पर चल चल कर गुनाह करता रहा, और तुम्हारी दी हुई बुरी तालीम पर चल कर अपने रब का ना फरमान होकर बरोज़े क़ियामत मुजरिमों की सफ़ में खड़ा हो गया और उसे दोज़ख में जाने का हुक्म सुना दिया गया तब तुम अपने इस लख्ते जिगर का रोना देख सकोगे. अरे वहा तुम्हारी एक न चलेगी. बच्चे छोटे है कहकर बात को मत टालो. अभी से उनकी जैसी तर्बिय्यत करोगे बड़े होकर वैसे ही बनेंगे. अभी से उनको ये बात सिखाओ के हम मुसलमान है हमारा ये काम नहीं है।

ये अल्लाह पाक और उसके रसूल का हुक्म है जिस से मुसलमान कभी मुंह नहीं फेरेगा.
अल्लाह तआला फरमाता है:

فَلَا وَرَبِّكَ لَا يُؤۡمِنُونَ حَتَّىٰ يُحَكِّمُوكَ فِيمَا شَجَرَ بَيۡنَهُمۡ ثُمَّ لَا يَجِدُواْ فِيٓ أَنفُسِهِمۡ حَرَجٗا مِّمَّا
  قَضَيۡتَ وَيُسَلِّمُواْ تَسۡلِيمٗا

तर्जमा: तो ऐ महबूब! तुम्हारे रब की क़सम वो मुसलमान न होंगे, जबतक अपने आपस के झगड़ो में तुम्हे हाकिम न बना ले फिर जो कुछ तुम हुक्म फरमा दो अपने दिलो में उस से रुकावट न पाए और *जी से (सच्चे दिल से) मान ले.*
(पारा 5 सुराए निसा आयात नं 65)

बे ईमान को जब नसीहत की जाती है तो उसको गुनाह की ज़ियादा जिद चढ़ती है और गुस्से में आकर और ज़ियादा गुनाह करता है.
तुम्हारा रब फरमाता है:

وَإِذَا قِيلَ لَهُ ٱتَّقِ ٱللَّهَ أَخَذَتۡهُ ٱلۡعِزَّةُ بِٱلۡإِثۡمِۚ فَحَسۡبُهُۥ جَهَنَّمُۖ وَلَبِئۡسَ ٱلۡمِهَادُ

तर्जमा: और जब उससे कहा जाये के अल्लाह से डर! तो उसे और जिद चढ़े गुनाह की ऐसे को दोज़ख काफी है और वो ज़रूर बहुत बुरा ठिकाना है.
(पारा 2 सूरतुल बक़रह आयात नं 206)

ये इलज़ाम भी न लगाना के ऐसी बाते करके देश में कौमवाद फैलाते हो. नहीं नहीं. हम तो सिर्फ मुसलमानों को समजाते है. गैर मुस्लिमो को जो करना है करे.

रब फरमाता है के तुम कह दो:
لكم دينكم ولي دين

तुम तुम्हारे दीन को संभालो और हमारे लिए हमारा दीन काफी है. (पारा 30 सूरतुल काफिरून आयत नं 6)

ये बाते किसी गैर मुस्लिम के लिए नहीं बल्कि ये तो मुहम्मदे मुस्तफ़ा صلى الله عليه وسلم के गुलामो के लिए है जो उन पर ईमान रखते है, उनका कालिमा पढ़ते है, उनका नाम सुनकर अंगूठे चुमते दुरुद पढ़ते है.

وما علينا إلا البلاغ المبين

तर्जमा: हमारा काम तो सिर्फ़ आप तक साफ़ साफ़ बात पहोचा देना है.

अल्लाह रब्बुल इज्जत मुसलमान भाइयो-बहनों को तौफीक अता फ़रमाए के ऐसे काम करे जिसमे उनकी आख़िरत का भला है, और ऐसे काम न करे जिसमे उनकी आखिरत का नुक्सान है, बेशक वोही सीधे रस्ते की हिदायत देने वाला है.

7/11 मुंबई विस्फोट: यदि सभी 12 निर्दोष थे, तो दोषी कौन ❓

सैयद नदीम द्वारा . 11 जुलाई, 2006 को, सिर्फ़ 11 भयावह मिनटों में, मुंबई तहस-नहस हो गई। शाम 6:24 से 6:36 बजे के बीच लोकल ट्रेनों ...