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Wednesday, 9 May 2018

मोलाना सज्जाद नोमानी साहाबकी सफर कहानी

हिन्दुस्तान के मशहूर आलिमे दीन मौलाना सज्जाद नोमानी साहब ने बताया कि वो एक बार ट्रेन में सफर कर रहे थे। आधी रात के करीब किसी स्टेशन से साधुओं का एक झुंड ट्रेन पर उनके डिब्बे में सवार हुआ। उनमें एक बहुत बूढ़ा साधू भी था जो बुढ़ापे और सर्दी की वजह से कंपकंपा रहा था। मौलाना ने उस बूढ़े साधू के लिए अपनी सीट छोड़ दी और उससे कहा कि वो उस पर आराम करे। पहले तो उन साधुओं को इस बात का यकीन ही नहीं हुआ कि कोई मुसलमान और खासकर एक धार्मिक व्यक्ति और आलिमे दीन नज़र आने वाला मुसलमान किसी हिन्दू साधू के लिए अपनी जगह छोड़ सकता है। इसलिए हिचकिचाहट और हैरानगी की फिज़ा कुछ देर कायम रही लेकिन फिर उनके इसरार करने  पर वो बूढ़ा साधू आराम के लिए उनकी सीट पर लेट गया। सुबह मन्ज़िल पर पहुंच कर ट्रेन से उतरे तो प्लेटफार्म पर वो बूढ़ा साधू मौलाना नोमानी साहब का हाथ पकड़ कर एक तरफ ले गया और उनका शुक्रिया अदा किया। और फिर उसके साथ ही उसके मुँह से ये जुमला निकला कि *"लगता है वो वक्त आ गया"*
मौलाना ने उससे पूछा कि कौन सा वक्त आ गया है?  तो उसने टालने की कोशिश की और कहने लगा कि नहीं कोई बात नहीं लेकिन मौलाना की तरफ से इसरार बढ़ा तो उसने कहा कि हम उस वक्त का एक अरसे से इन्तज़ार कर रहे हैं कि जब तुम मुसलमान यहाँ के आम लोगों के साथ वही रवैया अख्तियार करोगे जो तुम्हारे पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का आम इन्सानों के साथ था। और इसके नतीजे में तुम्हारे पैगम्बर का मज़हब यहाँ के लोगों में फैल जायेगा। ये कहकर साधू चला गया और मौलाना नोमानी साहब कहते हैं कि उसके इस जुमलों से उनका अपने मिशन की सदाकत पर यकीन पहले से बढ़ गया और यूँ महसूस हुआ कि जैसे ये सारा अमल किसी मुनज़्ज़म मन्सूबा बन्दी का हिस्सा है जो धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है।
सच है, हम ने वो अख्लाक लोगों के सामने पेश ही नहीं किए जिनको लेकर अरब की सरज़मीं से उठने वाला इंक़लाब मशरिक़ से मग़रिब तक फैल गया, आज भी हम नबी का तरीक़ा अपना लें तो कामयाबी क़दम चूमेगी। इंशाअल्लाह

7/11 मुंबई विस्फोट: यदि सभी 12 निर्दोष थे, तो दोषी कौन ❓

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