date:-25/05/2018
🚫 *मै फिरका ढूंढने में नाकाम रहा*🚫
✨ मैंने बड़ी कोशिश की के क़ुरआन पढ़ कर ख़ुद को सुन्नी साबित करूँ मगर नाकाम रहा।
✨ मैंने तमाम क़ुरानी सूरतें पढ़ीं मगर मुझे न कोई शिया मिला, न बरेलवी, न देवबंदी, और न ही अहले -ए-हदीस ।
✨बल्कि जो मिला वो तो ...
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*अल्लाह ने पहले भी तुम्हारा नाम मुस्लिम रखा था और इस (क़ुरआन) में भी (तुम्हारा यही नाम है) ताकि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) तुम पर गवाह हों...।*
(सुर: हज 22/78)
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✨ मैंने कोशिश की, के मुहम्मद ﷺ की सीरत (जीवनी) को पढ़कर अपने आपको किसी फ़िरके से जोडूं, मगर यहाँ भी मुझे नाकामी हुई।
✨ हर जगह सिवाय एक मुसलमान (मुस्लिम) के अपनी दूसरी पहचान न मिली।
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अगर *फ़िरके का कहीं ज़िक्र आया भी तो रद करने के अंदाज़ में,*एक गुनाह, एक तम्बीह की हैसियत से।
🔸 *सब मिल कर अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से थाम लो और फिर्क़ों में मत बटो...।"*
(सुर: आले इमरान 3/103)
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*"तुम उन लोगो की तरह न हो जाना जो फिरकों में बंट गए और खुली-खुली वाज़ेह हिदायात पाने के बाद इख़्तेलाफ़ में पड़ गए, इन्ही लोगों के लिए बड़ा अज़ाब है"*
(सुर:आले इमरान 3/105)
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*"जिन लोगों ने अपने दीन को टुकड़े टुकड़े कर लिया और गिरोह-गिरोह बन गए, आपका (यानि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का) इनसे कोई ताल्लुक नहीं, इनका मामला अल्लाह के हवाले है, वही इन्हें बताएगा की इन्होंने क्या कुछ किया है...।"*
(सुर: अनआम 6/159)
✨ इन सब वाज़ेअ अहकामात के बावजूद *आज हम एक मुसलमान के अलावा सब कुछ हैं,*
✨ हम फ़िरक़ों में इतने बुरी तरह से फंस गए हैं के *हमारी शनाख़्त ही गुम हो गयी*
*"फिर इन्होंने खुद ही अपने दीन के टुकड़े-टुकड़े कर लिए, हर गिरोह जो कुछ इसके पास है इसी में मगन है...।"*
(सुर: मोमिनून 23/53)
✨हम हमारे आपसी इख़्तेलाफ़ को अल्लाह के हवाले क्यूँ नहीं करते ।क्यों खुद ही फैसला करने बैठ जाते हैं ..
*"तुम्हारे दरमियान जिस मामले में भी इख़्तेलाफ़ हो उसका फैसला करना अल्लाह का काम है..."*
(सुर: शूरा 42/10)
✨बल्कि हमें तो ये हुक्म दिया गया है कि-
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*"बेशक सारे मुसलमान भाई भाई हैं, अपने भाइयों में सुलह व मिलाप करा दिया करो और अल्लाह से डरते रहो ताकि तुम पर रहम किया जाये...।"*
(सुर: हुजरात 49/10)