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Friday, 30 July 2021

हिन्दू कौन है? WhatsApp Viral


और इस शब्द की उत्पत्ति किसने की  और कब की ???
        हिन्दू धर्म कोई धर्म नहीं है परंतु यह एक जीवन जीने की शैली है। ऐसा कहना मेरा नहीं है ये इस देश के सर्वोच्च न्यायलय का कहना है क्योंकि हिन्दू शब्द का वर्णन या प्रयोग न तो चारोंवेदों( (ऋग्वेद ,सामवेद ,यजुर्वेद ,अथर्ववेद ) ,श्रीमद् भागवत और 18 पुराणों में है और न ही कहीं 120 स्मृतियों में ही कहीं  मिलता है। 
       इस देश में सबसे पहले कबीलाई धर्म हुआ करता था जिनको मिटाकर विदेशी  ने अपना धर्म स्थापित किया जिसको  धर्म कहा जाता था परंतु बाद में अन्य लोगों में जागरूकता आने पर पर पैंतरा बदलकर इनको सनातन धर्म कहना शुरू कर दिया।
        हिन्दू शब्द की वास्तविकता यह है कि जब मुगल आक्रमणकारियों ने हमारे देश को गुलाम बना लिया और यहाँ का शासक बन बैठा तब सिंधु नदी के इस तरफ रहनेवाले सभी लोगों को हिन्दू नाम से संम्बोधित करना शुरू कर दिया। 
         हिन्दू फारसी भाषा का शब्द है। इसका अर्थ होता है - चोर , डाकू , गुलाम , काफिर , काला आदि।जो rss आज हिन्दू - हिन्दू की रट लगाये हुए है ये 1922 के पहले अपने को हिन्दू नहीं मानता था और हिन्दू शब्द को एक गाली मानता था, यहाँ तक की आज भी ये  दिल से अपने आपको हिन्दू नहीं मानते हैं। वेदों में भी वर्णित है।

          यहाँ तक कि जब मुगलों द्वारा इस देश के हिंदुओं के ऊपर जब जजिया कर लगाया , तो  इस कर को यह कह कर मना कर दिया था कि मैं तो तुम्हारी तरह ही विदेशी हूँ और मैं  कोई हिन्दू नहीं( हिन्दू शब्द इस देश के असली वाशिंदों के लिए प्रयुक्त किये गए थे)। 
        ये भी कहना था कि एक विदेशी दूसरे विदेशी से कैसे कर ले सकता है? हिंदुओं से कर लिया जाय, हम लोगों से नहीं क्योंकि मैं  हिन्दू नहीं।

         इस बात को और आगे ले जाते हुए उनके दरबारों में न सिर्फ ये लोग मंत्री बन बैठे बल्कि अपने आपको हिन्दू कर  (जजिया कर) से भी मुक्त करवा लिया।

          साथियों जब 1917 में रशिया में क्रांति हुई और ठीक उसी समय ब्रिटेन में भी प्रौढ़ मताधिकार का आंदोलन शुरू हुआ क्योंकि वहाँ लोकतंत्र तो था , लेकिन सभी लोगों को मत देने का अधिकार नहीं था। 
      इस आंदोलन के डर से यहाँ एक बार पुनः पैतरा बदला और अपने आपको हिन्दू नाम की चादर में लपेट लिया, क्योंकि ब्रिटेन में अगर प्रौढ़ मताधिकार लागू होता तो भारत में भी ये लागु होना ही था क्योंकि भारत पर तब ब्रिटेन का शासन था।  

         इनको दर था की अगर भारत में प्रौढ़ मताधिकार लागू होता है (जैसा की बाद में हुआ भी) तो सत्ता  हाथ से छीनकर यहाँ के mulnivaasi के हाथों में चली जाती, क्योंकि लोकतंत्र में तो सत्ता चुनने का हक़ जानता के पास होता है और इस देश की 85% जनता mulnivaasi थी।

        इसलिए शासन - सत्ता पर कब्ज़ा करने के उद्देश्य से  सिर्फ हिन्दू हिन्दू चिल्लाना शुरू किया बल्कि 1922 में हिन्दू महासभा का गठन करके उसपर अपना कब्ज़ा भी जमा लिया जो आज भी निरंतर जारी है और अपने को पहली बार मजबूरी में हिन्दू कहलाना स्वीकार किया वो भी राजनितिक स्वार्थ सिद्धि के लिए तथा अपने को अल्पसंख्यक से बहुसंख्यक बनाने के लिए। 

       यही नहीं ठीक इसके 3 साल बाद 27 सितम्बर 1925 को इन्होने मनुसमिर्ती के सिद्धान्तों को लागु करने के लिए  हेडगेवार ने एक नया संगठन बनाया, जिनको हम RSS के नाम से जानते हैं। जिसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कभी कोई हिस्सा नहीं लिया और जिसका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ एक था इस देश में  वर्ण और जातिव्यवस्था को मजबूती से इस देश में पुनर्स्थापित करना, हिन्दू मुस्लिम दंगे करवाना और इन देश में आज़ादी के बाद भी धर्म के नाम की सत्ता स्थापित करना जिसमे वो आज़ादी के बाद से अब तक पूर्णतया सफल हैं क्योंकि हम इसके चल को समझ नहीं पते हैं और इलेक्शन के टाइम पर हिन्दू बनकर इनको जीत देते जो सत्ता पते ही पुनः हमें जातियों में बाँट देते हैं। 

हम सबको पता होना चाहिए कि इस देश का 99 % मुसलमान कोई और नहीं बल्कि  सताया गया हिन्दू है जिन्होने उच-नीच से तंग आकर अपने आर्थिक और सामाजिक सम्मान पाने के लिए अपना धर्म त्याग किया था जो असल में  हमारे ही भाई हैं। 

डॉ महेन्द्र सिंह यादव बौद्ध
9999745510

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🌹🌹 थन्यवाद 🌹🌹

sameer Ansari Suarat Our Police 22 jul 2021,08:30 pm



(1) સમીર અન્સારી બાબત પોલીસ નાં જુઠાણો નુ પોસમોરટમ 

ઉમરા પોલીસ કહે છે કે માસ્ક બાબત તકરાર થતાં  તેને જીપ માં બેસાડી પોલિસ સ્ટેશન લઈ જતા હતાં ત્યારે સાથે  ચાર પોલીસ વાળાં સમીર ને અંદર સાઈટ બેસાડેલ તેમ  છતાં સમીર જીપ મા થી ભૂસકો મારીને ભાગવા નો પ્રયાસ કરતા તેને માથાં માં થયેલી ગંભીર ઈજા નાં કારણે કોમા માં સરી ગયો હતો. 

(2) માની લો સમીરે ચાલુ જીપ માં ચાર પોલીસ વાળાં ઓ ની હાજરી જીપ માં થી ભાગવા પ્રયાસ કર્યો તોહ ચાર પોલીસ વાળાં તમાશો જોઈ તેને ભૂસકો મારવાં દીધો ❓

(3) ચાલુ જપ માં સમીરે ભૂસકો મારી ભાંગવાની કોશીષ કરી તોહ રોડ પર પટકાયો અને ચાલું જીપ માંથી ભૂસકો માર્યો તોહ એ ત્રણ ચાર  ફુટ રોડ પર ઘસડાયો હોત તોહ તેને રોડ પર ઘસડાયા ની માર  લાગતે અને તેનાં શરીર પર પર ધારદાર ઊંડા ઘસરકા લાગતે કપડાં ફાટી જતે ઘુંટણ અને હાથ માં રોડ ઘસરકા લાગતે અને પોલીસ નાં કહેવા મુજબ રોડ ની માર લાગતાં ત કોમામાં સરી પડ્યો પણ સમીર આખાં શરીર માં માથાં થી લઈ પગ સુધી એક મીલી મીટર નો નો સામનય ઘસરકો પણ નથીં નથી કે માથા માં રોડ સાથે જોર થી પછડાયો નિશાના પણ કમર ના ભાગે ડંડા મારેલા છે તેનાં નિશાન છે એટલે પોલીસ જુઠ્ઠાણું છાપરે ચઢી પોકારી રહ્યુ છે. 

(3) સમીર ને ખાખી વર્ધી ધારી ગુડંડા ઓ સમીર સામે કાર્યવાહી કરવા ઉમરા પોલીસ સ્ટેશન લઈ જવાં માટે કોફી શોપ થી ડુમસ સુરત મેઇન રોડ થી લઈ જવાનું હોય પણ આ ગડડાં ઓ સમીર ને સિટી લાઈટ થી તોડફોડ રોડ વચ્ચે આવતાં ખુશી, કપાસ ના ખેતરો ની વચ્ચે પડતા સુમ સામ રસ્તા પર કેમ લઈ ગઈ❓ કેમકે આ સરકારી ગુડંડા ઓ સમીર ને રકઝક બદલ માર મારવી હતીં અને જપ બેઠેલા પોલીસ વાળાં ઓ એ સમીર ને જીપ માંથી ઊતારી બેફામ મુકેકેબાજી, ફેંટો દ્વરા તેનાં માથાં પર માર માર્યો અને દડાં વડે કમમરના ભાગે માર મારી જેના નિશાન તેનાં શરીર પર છે પણ સમીર ને માથાં તમામ પોલીસ વાળાં ઓ એ પંચ ફેંટો મારતાં તેને માથા માં મલ્ટીપલ હેમરેજ થયા અને રાઈટ સાઈટ ના કાન પાસે ની માથાં કમજોર હાડકી માં ફેક્ચર થયેલ છે જે તમામ સીટી સ્કેન નાં રીપોર્ટ માં લખેલ છે આમ આ સરકારી ગુડંડા ઓ ના માર થી સમીર ને ઊલટી ઓ થઈ અને તે કોમા માં સરી પડ્યો  .

સમીર કોમા જઈ જમીન પર પટકાયો તોહ આ સરકારી ગુડંડા ઓ ને તેમણે કરેલ નુશન જુલ્મ નો એહસાસ થયો અને તેને પહેલા બે ખાનગી હોસ્પિટલમાં લઈ જવાયો પણ સમીર ની હાલત કરટીકલ હોય તેમણે દાખલ કરવાની નાં પાડી અને પછી સિવીલ હોસ્પિટલ નાં કેમ્પસ માં લઈ જઈ સમીર ને 108 માં થી ઉતાર્યા વગર સીસી ટીવિ માં કેદ કરાવી એપલ હોસ્પિટલમાં દાખલ કરાવી ત્યા થી નાશી ગયાં જે આજ સુધી ઉમરા પોલીસ નો કોઈ પોલીસ વાળો નોંધ સુધ્ધા લેવા આવેલ નથીં .

(4) શુ કોમામાં સરી પડેલ વયકતિ ઉલ્ટી ઓ કરે છે ❓

સમીરે પહેરેલાં કપડાં ઉલ્ટી ઓ તો લથપથ હાલત માં હોસ્પિટલમાં પહોચયા અને  આ ગુડંડા ઓ ના કહેવા મુજબ ભૂસકો મારી ને ભાગ્યો તોહ શુ સમીરે ચાર પોલીસ વાળાં ની સામે જીપ માં જ કપડાં ઉતારી નાખી ફક્ત અંડર વીયર પર ભૂસકો માર્યો કેમકે એપલ હોસ્પિટલમાં દાખલ કરતી વખતે તેનાં શરીર પર ફક્ત અડંરવેયર પર જ પોલીસ લાવેલી

હજું બહું પુરાવા સાક્ષી ઓ અને સી સી  ટીવી ની રેકોર્ડીંગ ડીલીટ કર નાંખવા જેવાં ગંભીર મુદ્દા બાકી છે
અને પરિવારે સુપ્રીમ કોર્ટ સુધી લડી લેવાનો નિર્ધાર કરેલ છે .

જોવાનું રહયુ આ સરકારીગુડંડા ઓને જેલ જતાં કોણ રોકે છે

✍️✍️✍️✍️✍️
Founder of "HUMANITY" NGO 
MR SARWAR NAGAD 
MOB
9904458800

Monday, 26 July 2021

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Saturday, 24 July 2021

प्रोटेस्ट करने व जागरूकता फ़ैलाने वालों को ये सब मालूम होना चाहिये वरना पुलिस वाले और आपके ही वकील आपको परेशान करेंगे।


IPC 151 (मामूली)
यह झगड़ा या शांति भंग के केस में लगाया जाता है। पर कुछ थाना वाले दुसरे केस में भी यह धारा लगा देते हैं झूठा झगडा का केस दर्ज करके। सन 2010 में इसमें सुधार किया गया है इसमें *जेल नही भेज सकते और थाना में ही जमानत हो जाता है।* थाना वाले यह धारा लगायें बिना झगडा के तो उन्हें मना करें क्योंकि उन्हें झूठा FIR करने का अनुमति नही।

IPC 188 (मामूली)
शासकीय कार्य में बाधा पहुँचाने पर यह धारा लगाया जाता है जैसे लॉकडाउन में कोई बाहर घुमे या दुकान खोले या शासन का आदेश ना माने। *फ़िलहाल छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट इस धारा का इस्तेमाल करने पर रोक लगा दिया है।*
IPC 269, 270 (मामूली)
यह महामारी अधिनियम की धारा है जो लगने पर घर के ही कोई जमानत के कागज में साइन करके मामला ख़त्म कर सकते हैं, जेल नही होगा। बाद में कोर्ट में लोकल चालान पेश होने पर वहां 400 रूपए पेनाल्टी देनी होती है। जमानत हो जाये तो जेल नही होतीं वरना 2 वर्ष जेल है।

IT ACT 66(A)
यह धारा पहले सोशल मीडिया में राजनैतिक या आपत्तिजनक पोस्ट डालने पर लगता था पर मार्च 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा को हमेशा के लिए ख़त्म कर दिया है। अतः यदि कोई थाना वाले यह धारा लगायें तो उन्हें मना करें।
IT ACT 66(C)
इन्टरनेट में किसी दुसरे "असली" व्यक्ति के पहचान का इस्तेमाल करने पर यह धारा लगाया जाता है अर्थात फेक आईडी बनाने पर। शोशल मीडिया में "काल्पनिक" फेक आईडी बनाने पर यह धारा नही लगेगी क्योंकि आपने किसी असली व्यक्ति के पहचान या फोटो की चोरी नही की है।

IT ACT 66(D)
इन्टरनेट से धोका देने पर लगाया जाता है पर धोके में सामने वाले व्यक्ति को नुकसान हुआ हो और आपको फायदा हुआ हो तो ही यह धारा लगेगा। केवल सोशल मीडिया में अपना नाम या पहचान छिपाना धोका नही कहलाता।

IT ACT 66(B)
यह इन्टरनेट से चोरी के मामले में लगाया जाता है।

IT ACT 67(A) व 67(B)
इन्टरनेट से किसी को गन्दी तस्वीरें या विडियो भेजने या पोस्ट करने पर ये धारा लगते हैं। कोविड या वैक्सीन संबंधित पोस्ट में यह धारा लगायें तो मना करें।

CRPC 482
जब पुलिस गलत धारा लगाये या झूठा FIR दर्ज करे तो CRPC 482 के जरिये आप तुरंत उसी दिन हाई कोर्ट में एप्लीकेशन देकर FIR को ही रद्द करवा सकते हैं। जब तक एप्लीकेशन हाई कोर्ट में रहेगा तब तक पुलिस आप पर कोई कार्यवाही नही कर सकती।

IPC 166, 167, 219, 220, 199
ये सारे धारा आप पुलिस वालों के खिलाफ ही लगा सकते हैं यदि वो आप पर गलत केस कर रहे। उन्हें जेल होगी या उनकी नौकरी जाएगी। इन धाराओं का नाम लेने मात्र से पुलिस डर जाती है।

Note- ऊपर लिखी जानकारियों में त्रुटी हो सकती है इसलिए स्वयं कानून की नयी किताबें जरुर पढ़ें। और वकील के चक्कर में ना पड़ें क्योंकि वकील चाहते हैं कि आपका FIR हो जाये उल्टे-सीधे धारा लग जाएँ। ताकि कोर्ट केस चले और उनकी कमाई शुरू हो। शासन से लड़ रहे तो स्वयं कानून की जानकारी जरुर इकट्ठी करें किताबें पढ़ें।
पुलिस को मीडिया में आपका नाम फोटो देने का अधिकार नही है क्योंकि यह सम्मान से जीने के मानवाधिकार के खिलाफ है। पुलिस को मना करें पहले से ही, न माने तो मानहानि का केस करेंगे कहें।

Saturday, 17 July 2021

भारत का संविधान (महत्वपूर्ण अनुच्छेदों की सूची) – पीडीऍफ़ में GK नोट्स यहाँ डाउनलोड करें!


शांति से धरना-प्रदर्शन मौलिक अधिकार पर सरकार लगा सकती है वाजिब रोक, समझिए कानूनी बात.


नवभारत टाइम्स | Updated: 22 Dec 2019, 08:14:00 AM

देश का संविधान हर नागरिक को विचार की अभिव्यक्ति के अधिकार के तहत शांतिपूर्ण धरना और प्रदर्शन का हक देता है। हालांकिं, संविधान ही यह भी तय करता है कि इसपर वाजिब कारणों से रोक भी लगाई जा सकती है।

Wednesday, 14 July 2021

बिन सलमान के सऊदी अरब में काबा ख़ाली और नाइट क्लबों में भीड़!

10 Jul 2021 safteam 

इस्लामी जगत, एक अहम महीने यानी ज़िल्हिज्जा में दाख़िल होने जा रहा है जिसमें इस्लाम की एक अहम इबादत, हज को अंजाम दिया जाता है लेकिन सऊदी सरकार के आदेश पर अन्य देशों के लोग, हज की इस अहम इबादत से इस साल भी वंचित हैं।
अन्य देशों के लोगों के लिए सऊदी अरब की ओर से यह सीमितता ऐसे समय में लगाई गई है जब इस देश के नाइट क्लब, सऊदी क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान के आदेश पर खुले हुए हैं और इसका उद्देश्य मक्के और मदीने की इस्लामी पहचान को बदलने के अलावा और कुछ नहीं है। सऊदी लीक्स नामक वेबसाइट ने लिखा है कि मीडिया और सोशल मीडिया में जो तस्वीरें वायरल हो रही हैं, उनमें इस्लामी जगत के ज़ायरीन और नमाज़ियों के बिना ही ख़ानए काबा को दिखाया गया है। सऊदी लीक्स का कहना है कि इसके मुक़ाबले में मीडिया और सोशल मीडिया में हज शुरू होने से ठीक पहले उन नाइट्स क्लब की तस्वीरें भी वायरल हो रही हैं जो सऊदी मर्दों और औरतों से भरे हुए हैं।

पिछले साल विदेशी मीडिया को हज की कवरेज से रोक दिया गया था जो दुनिया भर के मीडिया के लिए एक अहम और बड़ा इवेंट होता है। सऊदी अरब ने कहा है कि कोरोना वायरस का फैलाव जारी रहने की वजह से इस साल भी विदेशी लोग हज के लिए नहीं आ सकेंगे और सऊदी अरब में रहने वाले लोगों में से साठ हज़ार लोग ही हज के संस्कार अदा कर पाएंगे। सऊदी अरब के हज मंत्रालय का कहना है कि हज करने वालों की उम्र 18 से 65 के बीच होना चााहिए और उन्हें कोरोना का टीका भी लगा होना चाहिए।
सऊदी अरब ने पिछले साल कोरोना वायरस के फैलाव के कारण सिर्फ़ एक हज़ार लोगों को हज की इजाज़त दी थी जबकि हर साल पूरी दुनिया से 20 लाख से ज़्यादा लोग हज किया करते थे। जबसे कोरोना का फैलाव शुरू हुआ है, सऊदी अरब ने लोगों के इकट्ठा होने और उनकी छुट्टियों के लिए कई तरह की पाबंदियां लगाई हैं। सऊदी लीक्स का कहना है कि ये पाबंदियां ऐसी स्थिति में लगाई गई हैं कि जब सऊदी अरब के नाइट क्लब अब भी खुले हुए हैं जिनके बारे में अनेक नागरिकों ने शिकायत भी की है लेेकिन उनकी कोई सुनावई नहीं हो रही है।


बहुत ज़्याद शोर वाले सऊदी अरब के डिस्को और नाइट क्लब, लोगों की कड़ी आपत्तियों के बावजूद अपना काम कर रहे हैं और उनमें तरह तरह की पार्टियां भी आयोजित हो रही हैं। नौबत यहां तक पहुंच चुकी है कि इन नाइट क्लब्स के ख़िलाफ़ शिकायत करने पर न सिर्फ़ यह कि उनके ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही नहीं होती बल्कि शिकायत करने वालों को ही गिरफ़्तार कर लिया जाता है। यहीं पर इस बात का उल्लेख कर देना भी रोचक होगा कि सऊदी प्रशासन ने एक आवासीय इलाक़े से एक मुसल्लाह (नमाज़ पढ़ने का स्थान) ख़त्म कर दिया है। इसमें रोचक बात यह है कि इस मुसल्ले को एक औरत की शिकायत पर बंद कर दिया गया है। इस मुहल्ले में रहने वाले एक शख़्स का कहना है कि अगर किसी एक की शिकायत पर मुसल्ला बंद किया जा सकता है तो फिर प्रशासन लाखों नागरिकों की शिकायतों पर डिस्को और नाइट क्लबों को क्यों नहीं बंद करती?

Tuesday, 6 July 2021

ओवैसी और काँग्रेस का तलाक . . . .

:- इनसाईड स्टोरी Part-1

तो क्या सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी , बाबरी मस्जिद की शहादत के वक्त काँग्रेस की डील की वजह से चुप थे ? जवाब होगा हाँ।

"मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लमीन" मुख्यतः कासिम रिजवी की पार्टी थी , कासिम रिज़वी , हैदराबाद के "निजाम उस्मान" की समर्थक रजाकार सेना का सेनापति था और सरदार पटेल के आपरेशन पोलो में जब हार कर वह पकड़ा गया तब भारत सरकार की सहमति "डील" से वह पाकिस्तान भाग गया। 

कहने का अर्थ यह है कि "डील" इस पार्टी के डीएनए में है , फिर इस पार्टी को "अब्दुल वाहेद ओवैसी" ने "आल इन्डिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन" के नाम से चलाया और हैदराबाद की छोटी मोटी राजनीति करते रहे।

इनका मुख्य काम था "निजाम हैदराबाद" की इधर उधर खाली पड़ी ज़मीनों पर कब्ज़ा करना और उनको अपने नाम से कराना। फिर यही काम उनके पुत्र सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी ने किया और हैदराबाद म्युनिसिपल कारपोरेशन का चुनाव जीत कर इसी काम को आगे बढ़ाते रहे।

दोनों का काम था वही "डील" , और फिर वह विधायक और फिर सांसद बन गये , उन्होंने मुसलमानों के कल्याण के लिए काँग्रेस की सरकारों से खूब फंड लिया और दार-उस-सलाम एजुकेशनल ट्रस्ट के तहत अपने शैक्षाणिक संस्थान खोल दिए।

आज "दारुस्सलाम" ₹10 हजार करोड़ का व्यापार करता है जिसके अंतर्गत ब्याज का लेनदेन करने वाला बैंक , मेडिकल कालेज , अस्पताल , इंजीनियरिंग कालेज , शादी खाना (वेडिंग हॉल) और रियल स्टेट से जुड़ा कारोबार है।

पाँच वक्त नमाज़ पढने वाले लोग सूद का धड़ल्ले से कारोबार करने लगे।

https://www.darussalambank.com/deposit-schemes/fixed-deposits

खैर , उस समय बाबरी मस्जिद का मामला हाईलाईट हुआ और सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी "बाबरी मस्जिद ऐक्शन कमेटी" के चेयरमैन बना दिए गये।

इस कमेटी के चेयरमैन के नाते उनकी देश के प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के साथ 3 मीटिंग हुई जिसमें विश्व हिन्दू परिषद भी शामिल था।

इसी में वह नरसिंहराव के साथ "डील" कर गये और बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद चुप्पी साधे कांग्रेस को समर्थन देते रहे।

उनके इसी "डील" से नाराज होकर एकीकृत "आंध्राप्रदेश" के विधानसभा में एमआईएम के चार विधायकों वाले दल के नेता ने इनसे सवाल पूछा कि बाबरी मस्जिद की शहादत पर चुप्पी क्युँ ? तब उन चारों को सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी ने पार्टी से बाहर कर दिया।

वह विधायक दल के नेता थे "मोहम्मद अमानुल्लाह खान"

मोहम्मद अमानुल्लाह खान ने बाबरी मस्जिद विध्वंस पर सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी की चुप्पी की आलोचना करते हुए एक रैली की और कहना शुरू किया कि "ओवैसी - "जो कांग्रेस (आई) के आगे झुक गए हैं"

सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी के वफादारों ने उनके पास से माइक्रोफोन और माइक जब्त कर लिया, जिससे दोनो समूहों के बीच हिंसक झड़प हो गई और पुलिस ने हस्तक्षेप किया।  

इस मामले पर पर्दा डालने के लिए सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी ने  मोहम्मद अमानुल्लाह खान को अनुशासनहीनता को उकसाने के लिए छह साल के लिए निलंबित कर दिया।

पूरी जानकारी के लिए लिंक खोलें।

https://www.indiatoday.in/magazine/indiascope/story/19930515-mim-chief-sultan-salahuddin-owaisi-throws-out-rival-on-flimsy-grounds-811069-1993-05-15

अब सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी और पी वी नरहिंहराव में क्या "डील" हुई यह सामने ना आ सकी पर उनकी पार्टी के लेजिस्लेटर लीडर ने इस विषय को उठाया और उनको बर्खास्त कर दिया गया तो समझा जा सकता है कि बात सच है।

अब आते हैं उनके बेटे असदुद्दीन ओवैसी पर

 2012 तक असदुद्दीन ओवैसी कांग्रेस के प्रबल समर्थक थे और अपने हर इंटरव्यू में वह भाजपा तथा आडवाणी को रोकने के लिए यूपीए तथा कांग्रेस को समर्थन देने की बात किया करते थे। पढिए पूरा इंटरव्यू कि तब इनको कयादत और भागीदारी नहीं चाहिए थी।

https://m.rediff.com/news/2008/jul/20inter1.htm

मगर 2012 आते आते ऐसा क्या हो गया कि यही ओवैसी कांग्रेस को गालियाँ देने लगे ? कुछ तो वजह होगी ? कोई यूँ ही बेवफा नहीं होता।

दरअसल सारा मामला "ज़मीन" का था और इसी को लेकर ओवैसी कुनबा और तत्कालीन मुख्यमंत्री किरन रेड्डी के बीच मामला ठन गया और कयादत के शौक ने चर्रा दिया।

(क्रमशः)

ओवैसी और काँग्रेस का तलाक :- इनसाईड स्टोरी Part-2

असदुद्दीन ओवैसी और अकबरुद्दीन ओवैसी ने अपनी धन-दौलत को बढ़ाने के लिए प्रॉपर्टी के धंधे में सारा ज़ोर लगा दिया और इन भाइयों ने रियल एस्टेट और शिक्षा के क्षेत्र में निवेश से अपनी संपत्ति में जबरदस्त इजाफा किया।

उन्होंने 1990 और 2000 के दशकों में हैदराबाद की ज़मीनों में आई तेजी का भरपूर लाभ उठाया। और इसके लिए इन लोगों ने निजामुद्दीन हुसैनी के साथ वक्फ की ज़मीन की लूट खसोट की।

निजामुद्दीन हुसैनी के पास हैदराबाद में "दरगाह शाह खामोश" और वक्फ के तहत आने वाली जमीन की देख-रेख की जिम्मेदारी थी।

यही निजामुद्दीन हुसैनी ओवैसी के नियंत्रण वाले दारुस्सलाम बैंक के चेयरमैन भी थे और इनके साथ मिली भगत करके ओवैसी परिवार ने वक्फ की जमीन को डेवलपर्स को गैर-कानूनी तरीकों से बेच दिया। इनमें हैदराबाद और आस-पास के इलाके कारवां, हबीब नगर और खानाजिगुडा के प्लॉट शामिल हैं।

यही नहीं , ओवैसी बंधुओं के दबदबे और कांग्रेस के समर्थन ने उन्हें आंध्र प्रदेश राज्य वक्फ बोर्ड (एपीएसडब्लूबी) की जमीन के साथ खिलवाड़ करने का मौका दिया।

और इसको सबूतों के साथ छापा उर्दू दैनिक "सियासत" के मैनेजिंग एडिटर जहीरुद्दीन अली खान ने जिनके अनुसार 

“बरसों से स्पेशल ऑफिसर और वक्फ बोर्ड के सीईओ की नियुक्तियां वही लोग कर रहे थे। इन लोगों ने वक्फ बोर्ड की जमीन ओवैसी को दे दी यानी उसे सरकारी जमीन का दर्जा दिया और लाभ ओवैसी बंधुओं को मिला। जो उनकी मांगों के आगे नहीं झुकते, वे कुछ महीनों में चलता कर दिए जाते जैसे आइएएस अधिकारी मोहम्मद अली रफात जो अल्पसंख्यक कल्याण विभाग में प्रधान सचिव थे, उन्हें कार्यभार संभालने के सातवें महीने में ही हटा दिया गया क्योंकि उन्होंने यह बात सामने रखी कि वक्फ बोर्ड के सदस्य "एआइएमआइएम" के दलालों की तरह काम कर रहे थे"

ओवैसी और कांग्रेस के कुछ नेताओं मसलन पूर्व वक्फ बोर्ड मंत्री मोहम्मद अली शब्बीर में दोस्ताना संबन्ध था और उन्होंने सारे सौदे कराए, काफी समय बाद जब वह मंत्री नहीं रहे तब 2009 में उन्होंने बताया कि कांग्रेस सरकार का वक्फ बोर्ड की 100 एकड़ जमीन को 2004-2009 के बीच 427 करोड़ रु. में ओवैसी लोगों ने बेच दिया।

इन्हीं ज़मीन कब्जाने के विवाद में अकबरुद्दीन ओवैसी पर फ्री स्टाइल कुश्ती के पहलवान मुहम्मद बिन उमर याफई ने उर्फ मुहम्मद उमर ने 30 अप्रेल 2011 को गोली मार दिया था। उसका आक्रोश था कि ओवैसी ने बीच शहर के बालापुर की सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया था।

इसके बाद ही अकबरुद्दीन ओवैसी ने भाषण में पैगंबर हज़रत मुहम्मद और तमाम पीरों को देखने का झूठा ढोंग किया था।

http://archive.indianexpress.com/news/behind-akbaruddin-owaisi-attack-property-rows-land-deals/787666/2

यहाँ तक कांग्रेस के साथ सब ठीक ठाक चलता रहा और कांग्रेस के मुख्यमंत्री किरण रेड्डी के साथ इनका याराना चलता रहा पर 2012 में ओवैसी बंधुओं की ओर से चार पत्र मुख्यमंत्री किरण रेड्डी को भेजे गये। जिनमें कोशिश की गई है कि वे सरकार से मुफ्त या सस्ती दर पर 18 एकड़ जमीन हासिल कर लें। 

बतौर सलार-ए-मिल्लत एजुकेशन ट्रस्ट के संस्थापक अध्यक्ष अकबरुद्दीन ने 26 जुलाई 2012 को प्रस्तावित इंटेग्रेटेड वोकेशनल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, इंडस्ट्रियस ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट और ओल्डेज होम और अनाथालय के लिए किरण रेड्डी से 5 एकड़ जमीन मांगी।

असदुद्दीन ओवैसी ने 3 अगस्त 2012 को दारुस्सलाम एजूकेशनल ट्रस्ट के अध्यक्ष के तौर पर फिर से 18 एकड़ ज़मीन के लिए मुख्यमंत्री किरण रेड्डी को चिट्ठी लिखी।

मामला कहीं पीछे न रह जाए  इस लिहाज से 18 अगस्त 2012 को असददुदीन औवैसी के सबसे छोटे भाई और उर्दू दैनिक "एतेमाद" के एडिटर-इन-चीफ 35 वर्षीय बुरहानुद्दीन ओवैसी ने अखबार के लिए शहर में किसी अच्छी जगह पर 2 या 3 एकड़ जमीन की मांग की।

मतलब धड़ाधड़ तीनों भाई कांग्रेसी मुख्यमंत्री से ज़मीन की माँग करते रहे।

चौथी चिट्टी 7 सितंबर, 2012 की है, जिसे अकबरुद्दीन औवैसी ने मांग की थी कि हैदराबाद की एसी गाड्र्स की जिस सरकारी जमीन पर "महावीर अस्पताल" और "आंध्र प्रदेश राइडिंग क्लब" का कब्जा है, वह जमीन ओवैसी के डेक्कन कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज को एक अत्याधुनिक टीचिंग अस्पताल खोलने के लिए दी जाए। पुराने शहर में "ओवैसी अस्पताल" और "प्रिंसेस एज़रा अस्पताल" के बाद यह तीसरा अस्पताल होता।

ओवैसी बंधुओं की जिद पर चौकस मुख्यमंत्री किरण रेड्डी ने पहली तीन चिट्टियों पर लिखा “प्लीज जांचें और सर्कुलेट करें”. आखिरी पत्र पर लिखा “कृपया छानबीन करें और मुझे बताएं” ये पत्र राज्य की अफसरशाही के हवाले कर दिए गए और मामले लटका दिए गये।

यहीं से मुख्यमंत्री किरण रेड्डी और ओवैसी बंधुओं के संबन्ध कटुता के स्तर पर पहुँच गये और इसी जमीन के कारण ओवैसी बंधुओं के अंदर कौम की फिक्र पैदा हो गयी और मुख्यमंत्री किरण रेड्डी इन ओवैसी भू माफियाओं की नज़र में मुस्लिम विरोधी हो गये।

इसी बीच महाराष्ट्र के नांदेड़ में 2012 में हुए म्युनिसिपल चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने कुछ सीटें जीती क्युँकि नांदेड़ पहले पुराने हैदराबाद का ही हिस्सा ही था।

पारंपरिक तौर पर तो ये कांग्रेस से जुड़े रहे लेकिन उन्हें आगामी चुनाव में राष्ट्रीय पार्टी की हालत खस्ता नजर आने लगी और नरेन्द्र मोदी का उभार दिखने लगा तो वे केंद्र में यूपीए और राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी से अलग हो गए।

आदिलाबाद जिले के निर्मल में 22 दिसंबर 2012 को दिया गया अकबरुद्दीन ओवैसी का भड़काऊ भाषण एक बड़ी डील और राजनैतिक योजना को आगे धकेलने की ही कोशिश थी।

इंटरनेट ने इसे बखूबी लपक लिया और संघ उसे घर घर दिखाया जिसमें उन्होंने कहा था कि “अगर पुलिस को 15 मिनट के लिए दूर रखा जाए तो 25 करोड़ फलाने 100 करोड़ ढमाके के लिए काफी हैं.” और “(मुख्यमंत्री) किरण कुमार रेड्डी मुसलमानों का दुश्मन है.”

और यहीं से वह भाजपा ने उनको मुसलमानों का वोट बिखेर कर निष्क्रीय करने के काम मे लगा दिया और यह उसके मोहरे बन कर अपने वित्तीय साम्राज्य को बचाने के खेल में लग गये।

खानदानी डीलिंग चालू है

आज तेलांगाना में ढंग की सरकार बन जाए तो 24 घंटे में दोनों फ्राॅड "डीलर" वक्फ की जमीन बेच खाने के कारण जेल के अंदर चले जाएं।

पर वाह रे राजनीति

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