:- इनसाईड स्टोरी Part-1
तो क्या सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी , बाबरी मस्जिद की शहादत के वक्त काँग्रेस की डील की वजह से चुप थे ? जवाब होगा हाँ।
"मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लमीन" मुख्यतः कासिम रिजवी की पार्टी थी , कासिम रिज़वी , हैदराबाद के "निजाम उस्मान" की समर्थक रजाकार सेना का सेनापति था और सरदार पटेल के आपरेशन पोलो में जब हार कर वह पकड़ा गया तब भारत सरकार की सहमति "डील" से वह पाकिस्तान भाग गया।
कहने का अर्थ यह है कि "डील" इस पार्टी के डीएनए में है , फिर इस पार्टी को "अब्दुल वाहेद ओवैसी" ने "आल इन्डिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन" के नाम से चलाया और हैदराबाद की छोटी मोटी राजनीति करते रहे।
इनका मुख्य काम था "निजाम हैदराबाद" की इधर उधर खाली पड़ी ज़मीनों पर कब्ज़ा करना और उनको अपने नाम से कराना। फिर यही काम उनके पुत्र सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी ने किया और हैदराबाद म्युनिसिपल कारपोरेशन का चुनाव जीत कर इसी काम को आगे बढ़ाते रहे।
दोनों का काम था वही "डील" , और फिर वह विधायक और फिर सांसद बन गये , उन्होंने मुसलमानों के कल्याण के लिए काँग्रेस की सरकारों से खूब फंड लिया और दार-उस-सलाम एजुकेशनल ट्रस्ट के तहत अपने शैक्षाणिक संस्थान खोल दिए।
आज "दारुस्सलाम" ₹10 हजार करोड़ का व्यापार करता है जिसके अंतर्गत ब्याज का लेनदेन करने वाला बैंक , मेडिकल कालेज , अस्पताल , इंजीनियरिंग कालेज , शादी खाना (वेडिंग हॉल) और रियल स्टेट से जुड़ा कारोबार है।
पाँच वक्त नमाज़ पढने वाले लोग सूद का धड़ल्ले से कारोबार करने लगे।
https://www.darussalambank.com/deposit-schemes/fixed-deposits
खैर , उस समय बाबरी मस्जिद का मामला हाईलाईट हुआ और सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी "बाबरी मस्जिद ऐक्शन कमेटी" के चेयरमैन बना दिए गये।
इस कमेटी के चेयरमैन के नाते उनकी देश के प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के साथ 3 मीटिंग हुई जिसमें विश्व हिन्दू परिषद भी शामिल था।
इसी में वह नरसिंहराव के साथ "डील" कर गये और बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद चुप्पी साधे कांग्रेस को समर्थन देते रहे।
उनके इसी "डील" से नाराज होकर एकीकृत "आंध्राप्रदेश" के विधानसभा में एमआईएम के चार विधायकों वाले दल के नेता ने इनसे सवाल पूछा कि बाबरी मस्जिद की शहादत पर चुप्पी क्युँ ? तब उन चारों को सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी ने पार्टी से बाहर कर दिया।
वह विधायक दल के नेता थे "मोहम्मद अमानुल्लाह खान"
मोहम्मद अमानुल्लाह खान ने बाबरी मस्जिद विध्वंस पर सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी की चुप्पी की आलोचना करते हुए एक रैली की और कहना शुरू किया कि "ओवैसी - "जो कांग्रेस (आई) के आगे झुक गए हैं"
सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी के वफादारों ने उनके पास से माइक्रोफोन और माइक जब्त कर लिया, जिससे दोनो समूहों के बीच हिंसक झड़प हो गई और पुलिस ने हस्तक्षेप किया।
इस मामले पर पर्दा डालने के लिए सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी ने मोहम्मद अमानुल्लाह खान को अनुशासनहीनता को उकसाने के लिए छह साल के लिए निलंबित कर दिया।
पूरी जानकारी के लिए लिंक खोलें।
https://www.indiatoday.in/magazine/indiascope/story/19930515-mim-chief-sultan-salahuddin-owaisi-throws-out-rival-on-flimsy-grounds-811069-1993-05-15
अब सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी और पी वी नरहिंहराव में क्या "डील" हुई यह सामने ना आ सकी पर उनकी पार्टी के लेजिस्लेटर लीडर ने इस विषय को उठाया और उनको बर्खास्त कर दिया गया तो समझा जा सकता है कि बात सच है।
अब आते हैं उनके बेटे असदुद्दीन ओवैसी पर
2012 तक असदुद्दीन ओवैसी कांग्रेस के प्रबल समर्थक थे और अपने हर इंटरव्यू में वह भाजपा तथा आडवाणी को रोकने के लिए यूपीए तथा कांग्रेस को समर्थन देने की बात किया करते थे। पढिए पूरा इंटरव्यू कि तब इनको कयादत और भागीदारी नहीं चाहिए थी।
https://m.rediff.com/news/2008/jul/20inter1.htm
मगर 2012 आते आते ऐसा क्या हो गया कि यही ओवैसी कांग्रेस को गालियाँ देने लगे ? कुछ तो वजह होगी ? कोई यूँ ही बेवफा नहीं होता।
दरअसल सारा मामला "ज़मीन" का था और इसी को लेकर ओवैसी कुनबा और तत्कालीन मुख्यमंत्री किरन रेड्डी के बीच मामला ठन गया और कयादत के शौक ने चर्रा दिया।
(क्रमशः)
ओवैसी और काँग्रेस का तलाक :- इनसाईड स्टोरी Part-2
असदुद्दीन ओवैसी और अकबरुद्दीन ओवैसी ने अपनी धन-दौलत को बढ़ाने के लिए प्रॉपर्टी के धंधे में सारा ज़ोर लगा दिया और इन भाइयों ने रियल एस्टेट और शिक्षा के क्षेत्र में निवेश से अपनी संपत्ति में जबरदस्त इजाफा किया।
उन्होंने 1990 और 2000 के दशकों में हैदराबाद की ज़मीनों में आई तेजी का भरपूर लाभ उठाया। और इसके लिए इन लोगों ने निजामुद्दीन हुसैनी के साथ वक्फ की ज़मीन की लूट खसोट की।
निजामुद्दीन हुसैनी के पास हैदराबाद में "दरगाह शाह खामोश" और वक्फ के तहत आने वाली जमीन की देख-रेख की जिम्मेदारी थी।
यही निजामुद्दीन हुसैनी ओवैसी के नियंत्रण वाले दारुस्सलाम बैंक के चेयरमैन भी थे और इनके साथ मिली भगत करके ओवैसी परिवार ने वक्फ की जमीन को डेवलपर्स को गैर-कानूनी तरीकों से बेच दिया। इनमें हैदराबाद और आस-पास के इलाके कारवां, हबीब नगर और खानाजिगुडा के प्लॉट शामिल हैं।
यही नहीं , ओवैसी बंधुओं के दबदबे और कांग्रेस के समर्थन ने उन्हें आंध्र प्रदेश राज्य वक्फ बोर्ड (एपीएसडब्लूबी) की जमीन के साथ खिलवाड़ करने का मौका दिया।
और इसको सबूतों के साथ छापा उर्दू दैनिक "सियासत" के मैनेजिंग एडिटर जहीरुद्दीन अली खान ने जिनके अनुसार
“बरसों से स्पेशल ऑफिसर और वक्फ बोर्ड के सीईओ की नियुक्तियां वही लोग कर रहे थे। इन लोगों ने वक्फ बोर्ड की जमीन ओवैसी को दे दी यानी उसे सरकारी जमीन का दर्जा दिया और लाभ ओवैसी बंधुओं को मिला। जो उनकी मांगों के आगे नहीं झुकते, वे कुछ महीनों में चलता कर दिए जाते जैसे आइएएस अधिकारी मोहम्मद अली रफात जो अल्पसंख्यक कल्याण विभाग में प्रधान सचिव थे, उन्हें कार्यभार संभालने के सातवें महीने में ही हटा दिया गया क्योंकि उन्होंने यह बात सामने रखी कि वक्फ बोर्ड के सदस्य "एआइएमआइएम" के दलालों की तरह काम कर रहे थे"
ओवैसी और कांग्रेस के कुछ नेताओं मसलन पूर्व वक्फ बोर्ड मंत्री मोहम्मद अली शब्बीर में दोस्ताना संबन्ध था और उन्होंने सारे सौदे कराए, काफी समय बाद जब वह मंत्री नहीं रहे तब 2009 में उन्होंने बताया कि कांग्रेस सरकार का वक्फ बोर्ड की 100 एकड़ जमीन को 2004-2009 के बीच 427 करोड़ रु. में ओवैसी लोगों ने बेच दिया।
इन्हीं ज़मीन कब्जाने के विवाद में अकबरुद्दीन ओवैसी पर फ्री स्टाइल कुश्ती के पहलवान मुहम्मद बिन उमर याफई ने उर्फ मुहम्मद उमर ने 30 अप्रेल 2011 को गोली मार दिया था। उसका आक्रोश था कि ओवैसी ने बीच शहर के बालापुर की सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया था।
इसके बाद ही अकबरुद्दीन ओवैसी ने भाषण में पैगंबर हज़रत मुहम्मद और तमाम पीरों को देखने का झूठा ढोंग किया था।
http://archive.indianexpress.com/news/behind-akbaruddin-owaisi-attack-property-rows-land-deals/787666/2
यहाँ तक कांग्रेस के साथ सब ठीक ठाक चलता रहा और कांग्रेस के मुख्यमंत्री किरण रेड्डी के साथ इनका याराना चलता रहा पर 2012 में ओवैसी बंधुओं की ओर से चार पत्र मुख्यमंत्री किरण रेड्डी को भेजे गये। जिनमें कोशिश की गई है कि वे सरकार से मुफ्त या सस्ती दर पर 18 एकड़ जमीन हासिल कर लें।
बतौर सलार-ए-मिल्लत एजुकेशन ट्रस्ट के संस्थापक अध्यक्ष अकबरुद्दीन ने 26 जुलाई 2012 को प्रस्तावित इंटेग्रेटेड वोकेशनल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, इंडस्ट्रियस ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट और ओल्डेज होम और अनाथालय के लिए किरण रेड्डी से 5 एकड़ जमीन मांगी।
असदुद्दीन ओवैसी ने 3 अगस्त 2012 को दारुस्सलाम एजूकेशनल ट्रस्ट के अध्यक्ष के तौर पर फिर से 18 एकड़ ज़मीन के लिए मुख्यमंत्री किरण रेड्डी को चिट्ठी लिखी।
मामला कहीं पीछे न रह जाए इस लिहाज से 18 अगस्त 2012 को असददुदीन औवैसी के सबसे छोटे भाई और उर्दू दैनिक "एतेमाद" के एडिटर-इन-चीफ 35 वर्षीय बुरहानुद्दीन ओवैसी ने अखबार के लिए शहर में किसी अच्छी जगह पर 2 या 3 एकड़ जमीन की मांग की।
मतलब धड़ाधड़ तीनों भाई कांग्रेसी मुख्यमंत्री से ज़मीन की माँग करते रहे।
चौथी चिट्टी 7 सितंबर, 2012 की है, जिसे अकबरुद्दीन औवैसी ने मांग की थी कि हैदराबाद की एसी गाड्र्स की जिस सरकारी जमीन पर "महावीर अस्पताल" और "आंध्र प्रदेश राइडिंग क्लब" का कब्जा है, वह जमीन ओवैसी के डेक्कन कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज को एक अत्याधुनिक टीचिंग अस्पताल खोलने के लिए दी जाए। पुराने शहर में "ओवैसी अस्पताल" और "प्रिंसेस एज़रा अस्पताल" के बाद यह तीसरा अस्पताल होता।
ओवैसी बंधुओं की जिद पर चौकस मुख्यमंत्री किरण रेड्डी ने पहली तीन चिट्टियों पर लिखा “प्लीज जांचें और सर्कुलेट करें”. आखिरी पत्र पर लिखा “कृपया छानबीन करें और मुझे बताएं” ये पत्र राज्य की अफसरशाही के हवाले कर दिए गए और मामले लटका दिए गये।
यहीं से मुख्यमंत्री किरण रेड्डी और ओवैसी बंधुओं के संबन्ध कटुता के स्तर पर पहुँच गये और इसी जमीन के कारण ओवैसी बंधुओं के अंदर कौम की फिक्र पैदा हो गयी और मुख्यमंत्री किरण रेड्डी इन ओवैसी भू माफियाओं की नज़र में मुस्लिम विरोधी हो गये।
इसी बीच महाराष्ट्र के नांदेड़ में 2012 में हुए म्युनिसिपल चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने कुछ सीटें जीती क्युँकि नांदेड़ पहले पुराने हैदराबाद का ही हिस्सा ही था।
पारंपरिक तौर पर तो ये कांग्रेस से जुड़े रहे लेकिन उन्हें आगामी चुनाव में राष्ट्रीय पार्टी की हालत खस्ता नजर आने लगी और नरेन्द्र मोदी का उभार दिखने लगा तो वे केंद्र में यूपीए और राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी से अलग हो गए।
आदिलाबाद जिले के निर्मल में 22 दिसंबर 2012 को दिया गया अकबरुद्दीन ओवैसी का भड़काऊ भाषण एक बड़ी डील और राजनैतिक योजना को आगे धकेलने की ही कोशिश थी।
इंटरनेट ने इसे बखूबी लपक लिया और संघ उसे घर घर दिखाया जिसमें उन्होंने कहा था कि “अगर पुलिस को 15 मिनट के लिए दूर रखा जाए तो 25 करोड़ फलाने 100 करोड़ ढमाके के लिए काफी हैं.” और “(मुख्यमंत्री) किरण कुमार रेड्डी मुसलमानों का दुश्मन है.”
और यहीं से वह भाजपा ने उनको मुसलमानों का वोट बिखेर कर निष्क्रीय करने के काम मे लगा दिया और यह उसके मोहरे बन कर अपने वित्तीय साम्राज्य को बचाने के खेल में लग गये।
खानदानी डीलिंग चालू है
आज तेलांगाना में ढंग की सरकार बन जाए तो 24 घंटे में दोनों फ्राॅड "डीलर" वक्फ की जमीन बेच खाने के कारण जेल के अंदर चले जाएं।
पर वाह रे राजनीति