और इस शब्द की उत्पत्ति किसने की और कब की ???
हिन्दू धर्म कोई धर्म नहीं है परंतु यह एक जीवन जीने की शैली है। ऐसा कहना मेरा नहीं है ये इस देश के सर्वोच्च न्यायलय का कहना है क्योंकि हिन्दू शब्द का वर्णन या प्रयोग न तो चारोंवेदों( (ऋग्वेद ,सामवेद ,यजुर्वेद ,अथर्ववेद ) ,श्रीमद् भागवत और 18 पुराणों में है और न ही कहीं 120 स्मृतियों में ही कहीं मिलता है।
इस देश में सबसे पहले कबीलाई धर्म हुआ करता था जिनको मिटाकर विदेशी ने अपना धर्म स्थापित किया जिसको धर्म कहा जाता था परंतु बाद में अन्य लोगों में जागरूकता आने पर पर पैंतरा बदलकर इनको सनातन धर्म कहना शुरू कर दिया।
हिन्दू शब्द की वास्तविकता यह है कि जब मुगल आक्रमणकारियों ने हमारे देश को गुलाम बना लिया और यहाँ का शासक बन बैठा तब सिंधु नदी के इस तरफ रहनेवाले सभी लोगों को हिन्दू नाम से संम्बोधित करना शुरू कर दिया।
हिन्दू फारसी भाषा का शब्द है। इसका अर्थ होता है - चोर , डाकू , गुलाम , काफिर , काला आदि।जो rss आज हिन्दू - हिन्दू की रट लगाये हुए है ये 1922 के पहले अपने को हिन्दू नहीं मानता था और हिन्दू शब्द को एक गाली मानता था, यहाँ तक की आज भी ये दिल से अपने आपको हिन्दू नहीं मानते हैं। वेदों में भी वर्णित है।
यहाँ तक कि जब मुगलों द्वारा इस देश के हिंदुओं के ऊपर जब जजिया कर लगाया , तो इस कर को यह कह कर मना कर दिया था कि मैं तो तुम्हारी तरह ही विदेशी हूँ और मैं कोई हिन्दू नहीं( हिन्दू शब्द इस देश के असली वाशिंदों के लिए प्रयुक्त किये गए थे)।
ये भी कहना था कि एक विदेशी दूसरे विदेशी से कैसे कर ले सकता है? हिंदुओं से कर लिया जाय, हम लोगों से नहीं क्योंकि मैं हिन्दू नहीं।
इस बात को और आगे ले जाते हुए उनके दरबारों में न सिर्फ ये लोग मंत्री बन बैठे बल्कि अपने आपको हिन्दू कर (जजिया कर) से भी मुक्त करवा लिया।
साथियों जब 1917 में रशिया में क्रांति हुई और ठीक उसी समय ब्रिटेन में भी प्रौढ़ मताधिकार का आंदोलन शुरू हुआ क्योंकि वहाँ लोकतंत्र तो था , लेकिन सभी लोगों को मत देने का अधिकार नहीं था।
इस आंदोलन के डर से यहाँ एक बार पुनः पैतरा बदला और अपने आपको हिन्दू नाम की चादर में लपेट लिया, क्योंकि ब्रिटेन में अगर प्रौढ़ मताधिकार लागू होता तो भारत में भी ये लागु होना ही था क्योंकि भारत पर तब ब्रिटेन का शासन था।
इनको दर था की अगर भारत में प्रौढ़ मताधिकार लागू होता है (जैसा की बाद में हुआ भी) तो सत्ता हाथ से छीनकर यहाँ के mulnivaasi के हाथों में चली जाती, क्योंकि लोकतंत्र में तो सत्ता चुनने का हक़ जानता के पास होता है और इस देश की 85% जनता mulnivaasi थी।
इसलिए शासन - सत्ता पर कब्ज़ा करने के उद्देश्य से सिर्फ हिन्दू हिन्दू चिल्लाना शुरू किया बल्कि 1922 में हिन्दू महासभा का गठन करके उसपर अपना कब्ज़ा भी जमा लिया जो आज भी निरंतर जारी है और अपने को पहली बार मजबूरी में हिन्दू कहलाना स्वीकार किया वो भी राजनितिक स्वार्थ सिद्धि के लिए तथा अपने को अल्पसंख्यक से बहुसंख्यक बनाने के लिए।
यही नहीं ठीक इसके 3 साल बाद 27 सितम्बर 1925 को इन्होने मनुसमिर्ती के सिद्धान्तों को लागु करने के लिए हेडगेवार ने एक नया संगठन बनाया, जिनको हम RSS के नाम से जानते हैं। जिसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कभी कोई हिस्सा नहीं लिया और जिसका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ एक था इस देश में वर्ण और जातिव्यवस्था को मजबूती से इस देश में पुनर्स्थापित करना, हिन्दू मुस्लिम दंगे करवाना और इन देश में आज़ादी के बाद भी धर्म के नाम की सत्ता स्थापित करना जिसमे वो आज़ादी के बाद से अब तक पूर्णतया सफल हैं क्योंकि हम इसके चल को समझ नहीं पते हैं और इलेक्शन के टाइम पर हिन्दू बनकर इनको जीत देते जो सत्ता पते ही पुनः हमें जातियों में बाँट देते हैं।
हम सबको पता होना चाहिए कि इस देश का 99 % मुसलमान कोई और नहीं बल्कि सताया गया हिन्दू है जिन्होने उच-नीच से तंग आकर अपने आर्थिक और सामाजिक सम्मान पाने के लिए अपना धर्म त्याग किया था जो असल में हमारे ही भाई हैं।
डॉ महेन्द्र सिंह यादव बौद्ध
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