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Friday, 24 December 2021
राजकीय बिमार शरीर का इलाज करना जरूरी हे.
Thursday, 23 December 2021
धर्म संसद हरिद्वार 23 Dec 2021
Wednesday, 22 December 2021
गाम पंचायत के चुनाव और सामाजिक परिस्थितियों पर विशेष चर्चा के लिये हमे खुद तैयार करना बहोत जरूरी हे.
झारखंड विधानसभा में मॉब लिंचिंग के खिलाफ बिल पास.
Saturday, 18 December 2021
18 की जगह अब 21 की उम्र में ही क्यों होगी लड़कियों की शादी, जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट
भारत में किसी को बालिग कहे जाने की उम्र 18 साल है लेकिन शादी के मामले में लड़कों की न्यूनतम उम्र 21 साल और लड़कियों की उम्र 18 साल ही रखी गई थी. अब केंद्रीय कैबिनेट ने विवाह के लिए लड़कियों की उम्र भी 21 वर्ष किए जाने के विधेयक को मंजूरी दे दी है.
- अब 18 की जगह 21 होगी लड़कियों की शादी की उम्र
- इसी संसद सत्र में बदलाव के लिए बिल लाएगी मोदी सरकार
केंद्र सरकार ने देश में समाज सुधार से जुड़ा बड़ा कदम उठाया है. केंद्रीय कैबिनेट ने लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. यानी अब लड़कों की तरह ही लड़िकयों की शादी की आधिकारिक उम्र 21 साल होने जा रही है.
भारत में किसी को बालिग कहे जाने की उम्र 18 साल है लेकिन शादी के मामले में लड़कों की न्यूनतम उम्र 21 साल और लड़कियों की उम्र 18 साल ही रखी गई थी. अब केंद्रीय कैबिनेट ने विवाह के लिए लड़कियों की उम्र भी 21 वर्ष किए जाने के विधेयक को मंजूरी दे दी है. मौजूदा सत्र में ही सरकार इस विधेयक को पेश करेगी.
विवाह की उम्र में 43 साल बाद बदलाव
देश में विवाह की उम्र में ये बदलाव 43 साल बाद किया जा रहा है. इससे पहले 1978 में ये बदलाव किया गया था. तब 1929 के शारदा एक्ट में संशोधन किया गया और शादी की उम्र 15 से बढ़ाकर 18 वर्ष की गई थी.
लड़कियों के विवाह की उम्र 21 वर्ष किए जाने की घोषणा प्रधानमंत्री मोदी ने वर्ष 2020 में लालकिले से की थी. उसी घोषणा पर सरकार अब आगे बढ़ी है. लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र क्या होनी चाहिए, इस पर जया जेटली की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स का गठन किया गया था.
महिला प्रतिनिधियों से भी बातचीत
10 सदस्यों की टास्क फोर्स ने जाने-माने स्कॉलर्स, कानूनी विशेषज्ञों और नागरिक संगठनों के नेताओं से सलाह ली थी. वेबिनार के जरिए देश की महिला प्रतिनिधियों से भी बातचीत की थी. इसी टास्क फोर्स ने दिसंबर 2020 में अपनी रिपोर्ट नीति आयोग को दी थी. टास्क फोर्स का ही सुझाव था कि लड़कियों की शादी की उम्र 21 वर्ष होनी चाहिए.
सरकार के इस कदम का फायदा देश की करीब साढ़े 4 करोड़ से ज्यादा लड़कियों को होगा. 2011 में हुई जनगणना के हिसाब से देश में 18 वर्ष के उम्र की करीब 1 करोड़ 29 लाख लड़कियां हैं.
करीब 1 करोड़ लड़कियों की उम्र 19 साल है जबकि करीब 1 करोड़ 39 लाख लड़कियों की उम्र 20 साल है. देश में 21 वर्ष की करीब 1 करोड़ 94 लाख से ज्यादा लड़कियां हैं.
कुल मिलाकर देखें तो देश में 18 से 21 वर्ष की लड़कियों की संख्या 4 करोड़ 64 लाख है. लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने की मांग पिछले काफी समय से की जा रही थी.
क्या बोले समाजशास्त्री?
समाजशास्त्रियों का मानना है कि शादी की उम्र कम होने से, कम उम्र में लड़कियां मां बनती हैं, जिससे मां और बच्चे की सेहत पर काफी बुरा असर पड़ता है. कम उम्र में शादी होने से मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर बढ़ जाती है. कम उम्र में शादी होने से लड़कियों की शिक्षा और जीवन स्तर पर भी बुरा असर पड़ता है.
The Registrar General And Census Commissioner of India की 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश की 2.3 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 वर्ष तक पहुंचने से पहले ही कर दी जाती है. इस मामले में देश के गांवों की स्थिति शहरों के मुकाबले ज्यादा खराब है.
गांवों की 2.6 प्रतिशत लड़कयों की शादी 18 वर्ष से पहले कर दी जाती है. वहीं शहरों की 1.6 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 वर्ष तक पहुंचने से पहले हो जाती है.
इस मामले में सबसे खराब रिकॉर्ड पश्चिम बंगाल का है जहां पर 3.7 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 वर्ष तक पहुंचने से पहले हो जाती है. 33.2 प्रतिशत लड़कियां ऐसी भी हैं जिनकी शादी 18 से 20 की उम्र में होती है.
बाल विवाह के लगातार बढ़ रहे हैं आंकड़े
देश में लड़कियों की शादी की उम्र भले ही 21 वर्ष करने की तैयारी हो रही है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में बाल विवाह के मामले 50 प्रतिशत तक बढ़े हैं. बाल विवाह यानी 18 वर्ष से कम उम्र में शादी हो जाना है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक साल 2020 में बाल विवाह के 785 मामले दर्ज किए गए थे. ये आंकड़ा वर्ष 2019 के मुकाबले 50 प्रतिशत अधिक था.
साल 2019 में बाल विवाह की 523 शिकायतें आई थीं. बाल विवाह के सबसे ज्यादा केस कर्नाटक में दर्ज किए गए हैं, पिछले 5 सालों की रिकॉर्ड देखें तो 2015 से 2020 तक बाल विवाह की शिकायतों में बढ़ोतरी हुई है.
2015 में बाल विवाह के 293, 2016 में 326, 2017 में 395, 2018 में 501, 2019 में 523 और 2020 में 785 केस दर्ज हुए हैं. ये आंकड़े एक नजरिए से अच्छी खबर हैं क्योंकि इससे पता चलता है कि लोग जागरुक हुए हैं और बाल विवाह की शिकायतें कर रहे हैं, लेकिन चिंताजनक बात ये है कि बाल विवाह की ये कुप्रथा बंद नहीं हुई है.
Friday, 17 December 2021
WhatsApp માં મારી પોસ્ટ બાબત વાયરલ કરેલ મેસેજ.
Thursday, 16 December 2021
આમોદ કાંકરીયા ગામ ધર્મ પરિવર્તન .
Sunday, 12 December 2021
हमारे भारतीय संविधान ने क्या दिया उसकी विशेषता और देशके नागरिकों के लिये बाबा साहेब की दुरअंदेशी समझे.
संविधान के महत्वपूर्ण अनुच्छेद की सूची
अनुच्छेद 2 संसद को नए राज्य स्थापित करने या उन्हें स्वीकार करने की अनुमति देता है;
अनुच्छेद 3 में नए राज्यों की संरचना, बदलाव या नामकरण की अनुमति दी गई है;
अनुच्छेद 5-11 में नागरिकता के अधिकार दिए गए हैं, जो उसी समय के है जब पहली बार संविधान बना था। जो लोग पाकिस्तान से भारत आए, जो भारत से पाकिस्तान गए, भारत में रहने वाले नागरिकों के साथ ही विदेशी नागरिकता हासिल करने के लिए भारतीय नागरिकता त्यागने और नागरिकता के अधिकारों को जारी रखने से जुड़ी जानकारियां हैं।
अनुच्छेद 12 – अनुच्छेद35 में नागरिकों के मौलिक अधिकारों की जानकारी है।
यह जानना बेहद जरूरी है कि संविधान सभी नागरिकों पर लागू होने वाले कुछ अधिकारों की गारंटी देता है, जिन्हें हम मौलिक अधिकार कहते हैं। इन अनुच्छेदों में शामिल हैः (14-15) समानता का अधिकारः धर्म, जाति, नस्ल, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव को रोकता है; (16) सार्वजनिक क्षेत्र में रोजगार के लिए समानता का अधिकार देता है; (17) अस्पृश्यता का अंत; (18) उपाधियों का अंत; (19) स्वातंत्र्य का अधिकारः नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्त करने की आजादी है, बिना हथियारों के और शांतिपूर्वक जमा होन का अधिकार है, एसोसिएशन या यूनियन बनाने का अधिकार है, भारत के किसी भी हिस्से में बिना किसी रोक–टोक के घूमने का अधिकार है, भारत के किसी भी हिस्से में रहने या बसने का अधिकार है, किसी भी व्यापार, कारोबार या पेशे के अपनाने का अधिकार है; (21) जीवन और व्यक्तिगत आजादी का संरक्षण; (21ए) शिक्षा का अधिकारः 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार।
कई इलाकों में, अभिभावक मुफ्त शिक्षा के अधिकार के बारे में नहीं जानते, इस वजह से अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते। (23-24) शोषण के खिलाफ अधिकारः मानव तस्करी और बंधुआ या जबरदस्ती मजदूरी कराने पर प्रतिबंध। अक्सर देखा गया है कि इस अधिकार की अनदेखी होती है और पीड़ितों का शोषण किया जाता है। (25-28) धर्म की स्वतंत्रता का अधिकारः नागरिकों को किसी भी धर्म को अपनाने या प्रचार करने का अधिकार है; अनुच्छेद 36-50 में राज्य के नीति निदेशक तत्वों का उल्लेख किया गया है।
नीति निदेशक तत्वों में मानव कल्याण और सभी नागरिकों को समान न्याय, स्वास्थ्य और पोषण देने के लिए राज्य के दायित्वों का उल्लेख किया गया है। एससी/एसटी और अन्य कमजोर तबकों के कर्मचारियों के कल्याण, कृषि और पशु पालन को बढ़ावा और प्रोत्साहन, स्मारकों के संरक्षण और रखरखाव, वन और पर्यावरण की सुरक्षा, कार्यपालिका से न्यायपालिका को पृथक करने, और अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा और प्रोत्साहन देना शामिल है।
अनुच्छेद 51ए में नागरिकों के बुनियादी दायित्वों को विस्तार से समझाया गया है। अनुच्छेद 52-151 खंड 4 में संघ (52): भारत के राष्ट्रपति; (53): संघ की कार्यकारी शक्तियां; (54): राष्ट्रपति का चुनाव; (55): राष्ट्रपति के चुनाव का तरीका; (56): राष्ट्रपति के कार्यालय की अवधि; (61): राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग चलाने की प्रक्रिया; (63): भारत के उपराष्ट्रपति; (64): उपराष्ट्रपति का राज्यसभा का पदेन सभापति होना; (65): राष्ट्रपति के पद में आकस्मिक रिक्ति के दौरान या उनकी अनुपस्थिति में उप–राष्ट्रपति का राष्ट्रपति के रूप में कार्य करना या उनके कार्यों का निर्वहन; (72): राष्ट्रपति की किसी दोषी की सजा को निलंबित करने, माफ करने या उसकी अवधि कम करने की शक्ति;
PUNYA PRASUN BAJPAI का सांसद की कार्यनीति को लेकर विडियो देखे .(79): संसद का गठन; (80): राज्यों की सभा– राज्यसभा की संरचना, इसे ऊपरी सदन भी कहा जाता है; (81): लोगों के सदन– लोकसभा की संरचना, जिसे निचला सदन भी कहा जाता है; (83): संसद के सदनों की अवधि; (93): लोकसभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष; (100): सदनों में मतदान, रिक्तयों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और कोरम; (102): संसद के किसी भी सदन से किसी सदस्य की सदस्यता को अयोग्य घोषित करना; (105): इस अनुच्छेद में संसद के दोनों सदनों, उसके सदस्यों और समितियों के विशेषाधिकारों, शक्तियों की जानकारी दी गई है; (107): विधेयक को प्रस्तुत करने और पारित करने की प्रक्रिया और प्रावधान दिए गए हैं।
(108): कुछ दशाओं में दोनों सदनों की संयुक्त बैठकः विवादित विधेयकों के पारित होने को लेकर अनुच्छेद 107 और 108 का जिक्र अक्सर होता है। (109): धन विधेयक या मनी बिल्स को पारित करने की प्रक्रिया स्पष्ट की गई है। लोकसभा में पारित होने के बाद यह विधेयक राज्यसभा में जाते हैं। वहां से सुझावों–सिफारिशों और मंजूरी के बाद यह विधेयक लोकसभा में लौटता है, जो सिफारिशों को मंजूरी के बिना भी उसे पारित कर सकता है।
(110): धन विधेयक को परिभाषित किया गया है; (112): वार्षिक वित्तीय विवरण, इसे सालाना बजट भी कहा जाता है, जो संसद में वित्त मंत्री पेश करते हैं; (114): विनियोग विधेयक; (123): संसद के विश्रांति काल में अध्यादेश जारी करने की राष्ट्रपति की शक्ति की जानकारी देता है; (124): उच्चतम न्यायालय की स्थापना और गठन; (126-147): भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति, उच्चतम न्यायालय की भूमिका और कार्यप्रणाली; (148-151): इसके दायरे में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति, उसकी भूमिका और जिम्मेदारियों के साथ ही अंकेक्षण रिपोर्ट देने की जानकारी आती है।
अनुच्छेद 152-237, खंड 6 में राज्यों के संबंध में उपबंध दिए गए हैं। (152-161): इसके तहत राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति, दायित्वों और कामकाज को विस्तार से समझाया गया है; (163): इसमें मंत्रि परिषद की राज्यपाल को सहयोग व सलाह देने की भूमिका का उल्लेख है; (165): राज्यपाल द्वारा राज्य के महाधिवक्ता की नियुक्ति की प्रक्रिया को विस्तार से दिया है; (170): राज्य के विधान मंडलों की संरचना की जानकारी दी गई है; (171): इसमें राज्य के विधान परिषदों की संरचना की जानकारी दी गई है; (194): विधान–मंडलों के सदनों की तथा उनके सदस्यों तथा समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकारों की जानकारी दी गई है; (214-237): उच्च न्यायालय और उसके क्षेत्राधिकार, उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति, जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति, निचली अदालतों पर नियंत्रण आदि को इन अनुच्छेदों में परिभाषित किया गया है। (239-242): इस प्रावधान में केंद्रशासित प्रदेशों को शामिल किया गया है; (243 ए–ओ): पंचायतों और ग्राम सभा की परिभाषा, संचरना और कामकाज की जानकारी दी गई है।
अनुच्छेद 245-263, खंड 9 में संघ और राज्यों के संबंधों को शामिल किया गया है। (245): संसद और राज्यों के विधान–मंडलों की ओर से बनाए गए कानूनों का विस्तार; (257): संसद और राज्यों के विधानमंडलों द्वारा किए गए कानूनों का विस्तार; (246): सामान और सेवा कर के संबंध में कानून बनाने के लिए राज्य विधानसभा और संसद की शक्ति; (249): राज्य सूची में के विषय के संबंध में राष्ट्रीय हित में विधि बनाने की संसद की शक्ति यदि राज्यसभा द्वारा 2/3 बहुमत के साथ एक प्रस्ताव पारितकिया जाता है; (250): आपात की स्थिति में जीएसटी के लिए कानून बनाने के लिए संसद के पास शक्ति; (257): कुछ दशाओं में राज्यों पर संघ का नियंत्रण।
अनुच्छेद 268 (संशोधित): औषधीय और शौचालय की सामग्री पर उत्पाद शुल्क राज्य सूची में शामिल किया जाएगा और इस पर जीएसटी कम लगेगा।
अनुच्छेद 268 ए (निरस्त): इसे निरस्त कर दिया गया है क्योंकि जीएसटी में सेवा कर कम हो गया है।
अनुच्छेद 269 ए: यह जीएसटी के तहत अंतर-राज्य व्यापार से संबंधित प्रावधान, यह कर का संग्रह और संघ एवं राज्यों के बीच कर के आवंटन के प्रावधानों से संबंधित है।
अनुच्छेद 279-ए: यह अधिनियम के लागू होने के साठ दिनों के भीतर राष्ट्रपति द्वारा जीएसटी परिषद के संविधान से संबंधित है।
अनुच्छेद 324-329 में चुनावों से जुड़ी कार्यप्रणाली को सविस्तार समझाया गया है।
अनुच्छेद 330-342 के दायरे में एससी/एसटी/ओबीसी/अल्पसंख्यकों के लिए किए गए विशेष प्रावधान शामिल है।
अनुच्छेद 343-351 के दायरे में संघ और राज्यों की राजभाषा, उच्चतम और उच्च न्यायालय की भाषा और हिंदी भाषा के विकास के बारे में बात की गई है।
अनुच्छेद 352-360; (352): आपातकाल की उद्घोषणा। इसके दायरे में वह प्रावधान आते हैं, जिनके तहत आपातकाल की घोषणा की जा सकती है। 1975 में आपातकाल लगाने के दौरान, इसे और इससे जुड़े अनुच्छेदों का इस्तेमाल किया गया था और इस पर लंबे समय तक चर्चा भी होती रही है; (356): इसके तहत राज्यों में संवैधानिक व्यवस्था नाकाम रहने की स्थिति में उठाए जाने वाले कदमों की चर्चा की गई है। हाल ही में उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश की सरकारों को इसी अनुच्छेद का इस्तेमाल करते हुए बर्खास्त किया गया था। यह बात अलग है कि उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप से दोनों राज्यों में फिर सरकारें बहाल हो गईं। (360): इसके तहत राष्ट्रपति के पास अधिकार है कि वह वित्तीय आपातकाल घोषित कर सकता है।
अनुच्छेद 368 के तहत राज्य सूची के कुछ मामलों के संबंध में कानून बनाने के लिए संसद को सत्ता प्रदान करता है जैसे कि अगर वे समवर्ती सूची के तहत महत्वपूर्ण हो।
अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू–कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिया गया है। जम्मू–कश्मीर से जुड़े मसलों में यह अनुच्छेद अक्सर चर्चा में आता है।
अनुच्छेद 371: महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों के संबंध में विशेष प्रावधान
अनुच्छेद 371 क: नागालैंड राज्य के संबंध में विशेष प्रावधान
अनुच्छेद 371 ख: असम राज्य से संबंध में विशेष प्रावधान
अनुच्छेद 371 ग: मणिपुर राज्य के संबंध में विशेष प्रावधान
अनुच्छेद 371 घ: आंध्र प्रदेश राज्य के संबंध में विशेष प्रावधान
अनुच्छेद 371 च: आंध्र प्रदेश के केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना से संबंध
अनुच्छेद 371 छ: सिक्किम राज्य के संबंध में विशेष प्रावधान
अनुच्छेद 371 ज: मिजोरम राज्य के संबंध में विशेष प्रावधान
अनुच्छेद 371 झ: अरुणाचल प्रदेश राज्य के संबंध में विशेष प्रावधान
अनुच्छेद 371 व: गोवा राज्य के संबंध में विशेष प्रावधान, राज्य की विधान सभा में तीस से कम सदस्य नहीं होने चाहिए।
अनुच्छेद 372: के तहत मौजूदा कानून का बना रहना और उनका अनुकूलन तब तक लागू रहेगा जब तक कि बदले, निरस्त या संशोधित न हो।
अनुच्छेद 372 ए: के तहत निरस्त या संशोधन के माध्यम से कानूनों का अनुकूलन और संशोधित करने के लिए राष्ट्रपति की शक्तियों को शामिल किया जाता है।
अनुच्छेद 373: यह कुछ मामलों में प्रतिबंधित रूकावट में व्यक्तियों के संबंध में आदेश देने के लिए राष्ट्रपति की शक्ति से संबंधित है।
अनुच्छेद 374: इसमें संघीय न्यायालय के न्यायाधीशों और संघीय न्यायालय में या परिषद महामहिम के समक्ष लंबित कार्यवाही के संबंध में प्रावधान शामिल है। यह बताता है कि संघीय न्यायालय के न्यायाधीश जो संविधान के शुरू होने से पहले कार्य कर रहे थे, उसी पद पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बन जाएंगे। संघीय न्यायालय में लंबित नागरिक और आपराधिक दोनों मामलों में, अपील और कार्यवाही संविधान के शुरूआती नियम को सुप्रीम कोर्ट द्वारा हटा दिया जाएगा।
अनुच्छेद 375: के तहत न्यायालयों, प्राधिकारियों और अधिकारियों से संबंधित है जो संविधान के प्रावधानों के अधीन कार्य करना जारी रखेंगे।
अनुच्छेद 376: उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के संबंध में प्रावधान।
अनुच्छेद 377: भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक से संबंधित प्रावधान
अनुच्छेद 378: लोक सेवा आयोग से संबंधित प्रावधान
सूचना: यह लेख 15 जुलाई 2016 को देबू सी द्वारा लिखा गया है। इस लेख में निहित जानकारी हाल ही में अपडेट की गई है।
संविधान को लेकर और जानकारी के लिये आप इस लिंक पर जाकर जानकारी प्राप्त करे.
Saturday, 11 December 2021
10 December 2021 साउदी हुकूमत ने तबलिग जमात पर लगाये इल्ज़ाम, इस्लामिक दुनिया मे दिन को लेकर वैचारिक जंग का आगाज.
﷽
इस Twitte के बाद जैसे दुनिया मे भुचाल आ गया आप नोध करे, तबलिग जमात पर देहस्त गरदी का और गुमराह कुन जमात होनेका आरोप लगाया गया हे.
10 Dec मानव अधिकार दिवस .
Thursday, 9 December 2021
ગ્રામ પંચાયતોની સામાન્ય ચૂંટણી-૨૦૨૧ ચૂંટણીમાં ૬૨ ગ્રામ પંચાયત. સંપૂર્ણ બિનહરિફ (સમરસ)
Friday, 3 December 2021
जानें पहाड़ तोड़ने वाले शख्स दशरथ मांझी के बारे में.
दशरथ मांझी, एक ऐसा नाम जो इंसानी जज़्बे और जुनून की मिसाल है. वो दीवानगी, जो प्रेम की खातिर ज़िद में बदली और तब तक चैन से नहीं बैठी, जब तक कि पहाड़ का सीना चीर दिया. जानें मांझी के बारे में:
दशरथ मांझी, एक ऐसा नाम जो इंसानी जज़्बे और जुनून की मिसाल है. वो दीवानगी, जो प्रेम की खातिर ज़िद में बदली और तब तक चैन से नहीं बैठी, जब तक कि पहाड़ का सीना चीर दिया.
जिसने रास्ता रोका, उसे ही काट दिया:
बिहार में गया के करीब गहलौर गांव में दशरथ मांझी के माउंटन मैन बनने का सफर उनकी पत्नी का ज़िक्र किए बिना अधूरा है. गहलौर और अस्पताल के बीच खड़े जिद्दी पहाड़ की वजह से साल 1959 में उनकी बीवी फाल्गुनी देवी को वक़्त पर इलाज नहीं मिल सका और वो चल बसीं. यहीं से शुरू हुआ दशरथ मांझी का इंतकाम.
22 साल की मेहनत:
पत्नी के चले जाने के गम से टूटे दशरथ मांझी ने अपनी सारी ताकत बटोरी और पहाड़ के सीने पर वार करने का फैसला किया. लेकिन यह आसान नहीं था. शुरुआत में उन्हें पागल तक कहा गया. दशरथ मांझी ने बताया था, 'गांववालों ने शुरू में कहा कि मैं पागल हो गया हूं, लेकिन उनके तानों ने मेरा हौसला और बढ़ा दिया'.
अकेला शख़्स पहाड़ भी फोड़ सकता है!
साल 1960 से 1982 के बीच दिन-रात दशरथ मांझी के दिलो-दिमाग में एक ही चीज़ ने कब्ज़ा कर रखा था. पहाड़ से अपनी पत्नी की मौत का बदला लेना. और 22 साल जारी रहे जुनून ने अपना नतीजा दिखाया और पहाड़ ने मांझी से हार मानकर 360 फुट लंबा, 25 फुट गहरा और 30 फुट चौड़ा रास्ता दे दिया.
दुनिया से चले गए लेकिन यादों से नहीं!
दशरथ मांझी के गहलौर पहाड़ का सीना चीरने से गया के अतरी और वज़ीरगंज ब्लॉक का फासला 80 किलोमीटर से घटकर 13 किलोमीटर रह गया. केतन मेहता ने उन्हें गरीबों का शाहजहां करार दिया. साल 2007 में जब 73 बरस की उम्र में वो जब दुनिया छोड़ गए, तो पीछे रह गई पहाड़ पर लिखी उनकी वो कहानी, जो आने वाली कई पीढ़ियों को सबक सिखाती रहेगी.
social active foundation SAFTEAM GUJ.
Thursday, 2 December 2021
आचार संहिता क्या होता है?
आचार संहिता क्या होता है (What is a code of conduct)?
आचार संहिता को भारतीय चुनावों का सबसे महत्वपूर्ण भाग माना जाता है | आचार संहिता चुनाव समिति द्वारा बनाया गया वो दिशानिर्देश होता है, जिसे सभी राजनीतिक पार्टियों को मानना अनिवार्य है | आचार संहिता का अर्थ (Meaning of aachar sanhita in hindi) उन नियमो से है जो उस समय अस्तित्व में आते है और उनके द्वारा ही पार्टियों की कार्यप्रणाली पर नज़र रखी जाती है |
आचार संहिता के नियम कानून व प्रावधान (Code of Conduct Rules)
- आचार संहिता लागू होने के बाद सार्वजनिक धन के प्रयोग पर रोक लगा दी जाती है, जिससे किसी राजनीतिक दल या राजनेता को चुनावी लाभ न प्राप्त हो सके |
- चुनाव प्रचार के लिए सरकारी गाड़ी, सरकारी विमान या सरकारी बंगले का प्रयोग नहीं किया जा सकता है |
- मतदाताओं को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए किसी भी तरह की सरकारी घोषणाओं, लोकार्पण, शिलान्यास पर रोक लगा दी जाती है |
- पुलिस की अनुमति के बिना कोई भी राजनीतिक रैली नहीं की जा सकती है |
- धर्म के नाम पर वोट की मांग नहीं की जा सकती है |
- इस दौरान सरकारी खर्च से किसी भी प्रकार का ऐसा आयोजन नहीं किया जाता है जिससे किसी भी दल विशेष को लाभ प्राप्त हो सके | राजनीतिक दलों के आचरण और क्रियाकलापों पर नजर रखने के लिए चुनाव आयोग पर्यवेक्षक (Observer) नियुक्त करता है |
आचार संहिता कब लगती है | Duration of Code of Conduct
चुनाव की घोषणा चुनाव आयोग के द्वारा की जाती है, इसके साथ ही आचार संहिता लागू कर दी जाती और यह चुनाव के परिणाम के साथ ही समाप्त हो जाती है | चुनाव के शुरू होने से पहले यह ECI द्वारा चुनावी क्षेत्र में लगा दी जाती है|
आचार संहिता से क्या होता है?
आचार संहिता का उद्देश्य पार्टियों के बीच मतभेद टालने, शांतिपूर्ण एवं निष्पक्ष चुनाव कराना होता है | इसके माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाता है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी, केंद्रीय या राज्य की अपने आधिकारिक पदों का चुनावों में लाभ लेने हेतु गलत प्रयोग न कर सके | इस प्रकार मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट का माध्यम से चुनाव का समापन उचित प्रकार से करा लिया जाता है |
यहाँ पर आपको आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) क्या होता है, ये कब लगती है, Rules, अवधि के विषय में जानकारी दी गयी है | इस प्रकार की अन्य जानकारी के लिए आप http://hindiraj.com पर विजिट कर सकते है | अगर आप दी गयी जानकारी के विषय में अपने विचार या सुझाव अथवा प्रश्न पूछना चाहते है, तो कमेंट बॉक्स के माध्यम से संपर्क कर सकते है |
7/11 मुंबई विस्फोट: यदि सभी 12 निर्दोष थे, तो दोषी कौन ❓
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