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Thursday, 30 November 2023

संघर्ष की राह पर चलता हे ।

 संघर्ष की राह पर जो चलता हे।
उसी ने दुनिया को बदली हे ।

अपने लक्ष्य को लेकर जो चलता हे।
वोही दुनिया को बदलता है।

उम्मीद के चिराग को जो जलता हे।
उसने दुनिया को नाउम्मीदी से निकाला हे।

नफरत मिटाकर जोड़ने में लगता हे।
वोही समाज में बदलाव लाता हे।

संघर्ष की राह पर जो चलता हे।
उसी ने दुनिया को बदली हे ।

तथ्य और तर्क से जो बात करता हे।
समाज को संघर्ष से जोड़ पाता हे।

मजबूत विचारो को लेकर चलता हे।
वोही समाज में बदलाव लाता हे।

संघर्ष की राह पर जो चलता हे।
उसी ने दुनिया को बदली हे ।

समाज और समझदारी को जो समझता हे।
समाज की जिम्मेदारी वो उठाता है।

भटके हुए समाज को दशा समझता हे।
वोही तेजी के साथ समाज को दिशा दिखाता हे।

लक्ष्य के साथ लम्हा लम्हा जीता हे।
वोही समाज को जीना सिखाता है।

संघर्ष की राह पर जो चलता हे।
उसी ने दुनिया को बदली हे ।


✒️ Huzaifa Patel

Tuesday, 21 November 2023

सरकारी योजनाएं और देश की अलग अलग सरकारी सिस्टम का छोटा विश्लेष्ण ।

 
दोस्तों नमस्कार
दिल्ली के ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में
एक बेटा अपनी मां को लेकर गया उनके दाएं कंधे की हड्डी टूट गई थी
डॉक्टर ने कहा एम आर आई करानी होगी
एमआरआई कराने के लिए जब प्रिस्क्रिप्शन लेकर वो लड़का अपनी मां को उनके पास गया तो उन्होंने उस पर तारीख लिखी थी दो फरवरी दो हज़ार छब्बीस
और उसके बाद उस लड़के को लगा गलती से लिखा गया है तो उसने पूछा अपने दो हज़ार छब्बीस लिख दिया है
तो जो वहां शख्स बैठा हुआ था जो तारीख दिख रहा था उसने कहा जी नहीं इतनी भीड़ है कि आपका नंबर दो हज़ार छब्बीस फरवरी में ही आएगा उससे पहले नहीं आएगा
एलएनजेपी के भीतर एम आर आई हो अल्ट्रासाउंड हो या सीटी स्कैन पाँच महीने से पहले तारीख आपको मिल नहीं पा रही है तो की मशीन बहुत कम है
यह दिल्ली के भीतर की स्थिति है
यहां पर एक सवाल हर किसी से हर कोई पूछ सकता है क्या इस देश के भीतर चुनाव के मौके पर कोई नेता कुछ भी कह दे कोई भी वादा कर ली और जनता टकटकी लगाकर उसकी तरफ देखती रही
और कोई जवाब देने की स्थिति में न हो कोई जिम्मेदारी लेने की स्थिति में न हो या सपा नेताओं के साथ तो ठीक है लेकिन अगर प्रधानमंत्री एक स्टार प्रचारक के तौर पर जब राज्यों में जाते हैं चुनाव प्रचार करने के लिए तो क्या वह प्रधान मंत्री पद छोड़कर जाते हैं
सिर्फ स्टार प्रचारक होते हैं सिर्फ एक डेटा होते हैं या उनके साथ तमगा इस देश के प्रधानमंत्री का काफी लगाव होता क्योंकि देश के प्रधानमंत्री सरकार चलाते वक्त कितने बड़े बड़े ऐलान किस किस रूप में करते हैं
इसका कोई सानी नहीं है उसका एक कच्चा चिटठा लेकर आज हम आपके सामने बैठे और एक क्षण के लिए सोचिए एम आर आई कि एक मशीन साढ़े तीन करोड़ रुपये में आ जाती है
लेकिन प्रधानमंत्री जब चुनाव का नोटिफिकेशन जारी नहीं हुआ था उससे पहले महीने भर के भीतर अक्टूबर के महीने में जब वह घूम रहे थे राजस्थान मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ तेलांगना इन जगहों पर तकरीबन चालीस हजार करोड़ की योजनाओं का ऐलान करके आ गए
कि यह योजनाएं हमले आएंगे इसी तर्ज पर को देश भर में घूमें उन्होंने बताया कि इस देश के बाईस एम्स उनकी सरकार लेकर आई इससे पहले तो नहीं थे तो छः सात थे हमने देखे बाईस एम्स लेकर आए हैं इससे बेहतर क्या हो सकता है
जानकारी मिली कि इस देश के भीतर में तीन सौ से ज्यादा यूनिवर्सिटी मोदी सरकार के दौर में आ गई जानकारी मिली कि हर घर हर गांव हर घर के भीतर और झोपड़ी तक के भीतर बिजली पहुंच चुकी है जानकारी भी मिली पक्का घर जो टारगेट लेकर चले थे व दो हज़ार चौबिस में पूरा हो जाए
का वादा दो हज़ार बाईस का किया गया था इसलिए आप इंतजार कीजिए हर किसी को पक्का घर अपना होगा
नल से जल पानी भी आपके दरवाजे पर आ जाएगा आप चिंता मत कीजिए और यह काम बहुत तेजी से चल रहा है सारी बातें तो प्रधानमंत्री नहीं कही और यही बात प्रधानमंत्री कहने के लिए राज्यों में चुनाव प्रचार भी करते हैं जो अपनी उपलब्धियों का पूरा खाका रखते हैं
तो क्यों नहीं आज उस दस्तावेज को ही सामने खोला जाए
और जानकारी हासिल की जाए कि जब देश के प्रधानमंत्री प्रधान मंत्री रहते हुए स्टार प्रचारक और स्टार प्रचारक रहते हुए एक नेता के तौर पर जब जाते हैं जिन बातों का जिक्र करते हैं उन बातों के पीछे क्या क्या होता है
हमें लगता है एक एक करके आज हर चीज को इसलिए सुन लीजिए क्योंकि देश के वित्त मंत्रालय ने तमाम मंत्रालयों को चिट्ठी लिखी है आपके पास जो पैसा अपने अपने मंत्रालय में बचा है उसकी जानकारी दीजिए क्योंकि अब चुनावी पास आ गया है जो बचा हुआ पैसा होगा उन पैसों का
उपयोग हम अब दूसरी जगह पर करेंगे और दूसरी जगह का मतलब यह होता है उन क्षेत्रों में जहां से वोट आ सके
या ग्रामीण रोजगार का क्षेत्र हो या एमएसएमई क्षेत्र हम तय करेंगे लेकिन अपना अपना डिपार्टमेंट का बचा हुआ पैसा जानकारी दीजिए हम एक बजट बनाएंगे और इलेक्शन की दिशा में केंद्र सरकार बढ़ जाएगी और यह सब कुछ दिसंबर से पहले हो जाना है क्योंकि तीन दिसंबर के बाद तो इस देश की राजनीतिक परिस्थिति बदल जाएगी
तो आइए एक पन्ना खोलते हमने आपसे शुरुआत में ही क्या एम्स का जिक्र कर दिया तो हमें लगता है बात वहीं से शुरू हुआ क्योंकि अनुभव नाम के व्यक्ति ने अपनी मां को हड्डी रोग विशेषज्ञ से एम्स के भीतर दिखाया और जब उसने कहा कि आपको एमआरआई करानी होगी और हमारा की तारीख मिली दो फरवरी दो हज़ार छः
मयूर विहार में रहते हैं दिल्ली में अविचल शर्मा यह मेडिसिन डिपार्टमेंट गए इनको कहा गया अल्ट्रासाउंड कराइए इनको तारीख मिली तीन फरवरी दो हज़ार पच्चीस
दिल्ली का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल एलएनजेपी पाँच महीने इंतजार करना पड़ता है डायग्नोसिस टैक्स्ट अगर आपको कराना है उसमें खासतौर से सिटी स्कैन एमआरआई और अल्ट्रासाउंड क्योंकि एम आर आई की मशीन सिर्फ एक है एलएनजेपी में नौ अल्ट्रासाउंड है दो कारणों को कॉलेजेस डिपार्टमेंट में बाकी सात में आईसीयू
चलाने और पूरे अस्पताल को भी चलाना है तीन सीटी स्कैन है और इसीलिए वहां पर हर दिन जो आते हैं वह लगभग हजारों की तादाद में मरीज जाते हैं खुद सरकार कहती है कि देखिए सात हजार मरीज हर दिन ओपीडी में आते हैं एक हज़ार छः सौ मरीज भर्ती हैं
अब यहां पर सवाल है यह मशीन कितनी कॉस्टली है जब देश भर में घूम कर प्रधान मंत्री हजारों करोड़ की योजनाओं का ऐलान करते हैं एम्स को लेकर सरकार बताती है कि हमने बाईस एम्स खोल दिए एजुकेशन का क्षेत्र हो किसी भी सेक्टर में आप चलते चले जाइए स्थिति है क्या इस देश के भीतर की
एम आर आई की मशीन एक मशीन तकरीबन नब्बे लाख बहुत सस्ती मशीन होती है साढ़े तीन करोड़ की मशीन सबसे अच्छी वर्षा होती है तो साढ़े तीन करोड़ की मशीन क्या सरकार खरीद पाने की स्थिति में नहीं है जी नहीं है
एम्स में नहीं है खरीद पाने की स्थिति में और एलएनजेपी में भी नहीं है
साढ़े तीन लाख से चौबिस लाख तक के बीच में अल्ट्रासाउंड की मशीन मिलती है सबसे कॉफी मशीन इस दौर में सोनू इसको ब्रांड की आई है जो पचास वाट में मिलती है लेकिन उसे भी खरीद पाने की स्थिति में नहीं बजट नहीं है
अस्सी लाख से चार कौर के बीच में सिटी स्कैन मिलता है लेकिन खरीद पाने की स्थिति में नहीं है
अब यहां पर सवाल था कि प्रधानमंत्री को इस देश में घूम घूम कर जानकारी दे रहे थे हमने इतने एम्स खोले भाई से एम्स खोले और दिल्ली के एम्स की अगर यह हालत है तो इस देश के भीतर का सच क्या होगा हमें लगता है इस को परखने के लिए एक बात और देखिए हमारी टीम ने तमाम एम्स जिस जिस शहर में है
जज जिस राज्य के शेयर में वहां से जानकारी हासिल की और पूरी रिपोर्ट निकाली की ओपीडी और आईपीडी आईपीडी का मतलब होता है कि अस्पताल के भीतर के तमाम डिपार्टमेंट में मरीजों को भर्ती किया जा सकता है या नहीं किया जा सकता है अगर किया जा सकता है तो इसका मतलब है अस्पताल पूरे तरीके से चल रहा
क्योंकि ट्वेंटी फोर बाईस एवं अस्पताल को चलना होगा लेकिन नहीं चल रहा है तो इसका मतलब है कुछ ही ब्रांच में आईपीडी काम कर रही होगी जो बाहर तुम्हारी मस्ती आते हैं मरीज जाते हैं उसको ओपीडी में ले जाया जाता है ओपीडी कई जगहों पर काम कर रहा है दो तीन जगहों पर नहीं भी कर रहा होगा आईपीडी बहुत जगहों पर काम नहीं कर रहा है
जगहों पर कर भी रहा होगा तो उसका एक आंकड़ा निकल कर आया कि भोपाल भुवनेश्वर जोधपुर पटना रायपुर और ऋषिकेश में तो एम्स ठीक तरीके से चल रहे ओपीडी और आईपीडी दोनों काम कर रहे हैं लेकिन रायबरेली अवंतीपोरा रेवाड़ी दरभंगा इन जगहों पर अभी काम भी शुरू नहीं हुआ है एम्स का जिक्र प्राइम मिनिस्टर करते हैं अब यहां पर सवाल तक
कहाँ कहाँ आईपीडी पूरे तरीके से काम नहीं कर रहा है इसकी जब लिस्ट देखी गई तो यह हैरानी की बात है कि बीवी नगर देवघर बिलासपुर गोहाटी भटिंडा गोरखपुर बंगला गिरी इन तमाम जगहों पर आईपीडी पूरा काम कर ही नहीं रहा है और कल्याणी और नागपुर में तो
लिमिटेड ओपीडी भी काम कर रहा है
यानी ओपीडी भी पूरे तरीके से काम नहीं करना या इस देश के एम्स की एक बेसिक स्थिति है जो उभरकर सामने आती है
और यही स्थिति गुजरात के राजकोट वाले एम्स को लेकर भी है
अब यहां पर सवाल है प्रधानमंत्री को लगातार जिक्र करते थे तो क्या इस देश के भीतर इलाज की व्यवस्था नहीं है या इलाज इस रूप में काम कर रहा है हमें लगता इलाज से पहले या आप बेसिक लाइन पर आ जाइए हर परिवार को पक्का घर दे दिया जाएगा दो हज़ार पंद्रह में जिक्र था दो हज़ार बाईस तक हो जाएगा अब तारीख बढ़ाई गई
दो हज़ार चौबिस कर दिया गया यह बात कहने से काम नहीं चलेगी घर बनाने थे दो करोड़ पचानवे लाख घर बने एक करोड़ पचहत्तर लाख आवंटित जो हुए वह नब्बे लाख से एक करोड़ दस लाख के बीच का कोई आंकड़ा है जो चल रहा है यानी जितने बनने थे उसके लगभग तैंतीस पर्सेंट
या तीस तैंतीस पैंतीस पर्सेंट तक ही बन पाया है दो हज़ार पंद्रह से शुरू हुआ था दो हज़ार तेईस चल रहा है दो हज़ार बाईस में पूरा होना था प्रधानमंत्री ने कई मौकों पर कहा है दूसरी स्थिति है हर धर्म हर घर में चौबिस घंटे बिजली यह जिक्र तो बार बार होता है लेकिन जानकारी मिली कि मध्यप्रदेश और राजस्थान में ही
सैकड़ों गांव है जहां पर बिजली नहीं पहुंची और तो और मुश्किल यह भी है कि इन घरों में बिजली पहुंच जानी चाहिए या नहीं चलनी चाहिए इस पर केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट बड़ी शानदार है वह भी राजस्थान को लेकर उनका कहना था केंद्र सरकार का की देखिए ढाई लाख घरों में बिजली कनेक्शन नहीं
यह क्रम पिछले साल का कर रहे हैं आप से हमने एक बजट बनाएं और उस पर साठ पर्सेंट हम देते चालीस पर्सेंट राज्य सरकार देती कुल मिलाकर बजट एक हज़ार बाईस करोड़ का था लेकिन राज्य सरकार ने रुचि दिखाई नहीं तो वह कर गया
कमोवेश यही स्थिति क्या मध्यप्रदेश के भीतर सैकड़ों गांव की है जहां बिजली नहीं पहुंची है तो ऐसे में जो वादा हो रहा था उसका मतलब क्या है और अगर विद्युतीकरण योजना के तहत पहले राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना फिर दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण विद्युतीकरण योजना ट्वेल्थ प्लान आया जिसमें एक हज़ार दो
सौ छियालीस करोड़ का जिक्र था फिर उसके बाद सौभाग्य योजना आई यह भी एक हजार करोड़ से ज्यादा का था फिर आर पी डीआरपी आया आईपीएस आया इसमें भी हजारों फोन का जिक्र था लेकिन घरों में बिजली नहीं पहुंची और बड़ी महत्वपूर्ण बात है
जिस गांव में दस फीसदी घरों में बिजली पहुंच जाये बिजली डिपार्टमेंट कहता है विद्युतीकरण हो गया
और आंकड़े निकल कर आते हैं कि लाखों घर गांव दर गांव इसीलिए छूट गए इस देश के भीतर में जहां विद्युतीकरण नहीं हुआ
तो हमने अस्पताल का जिक्र किया हमने बिजली का जिक्र किया और पक्के घर का जिक्र किया चौथी स्थिति इस देश के भीतर पानी की है जिन राज्यों में नल से जल का कार्यक्रम शुरू किया उन राज्यों की स्थिति बतलाती है कि वहां काम सिर्फ बाईस पर्सेंट हुआ है
चार राज्य है जहां बाईस पर्सेंट का हुआ है बाकी देश के दूसरे हिस्सों में कब काम होगा यह कहना है इसलिए थोड़ा सा मुश्किल है क्योंकि यह योजना वर्ल्ड बैंक से जुड़ी हुई है और वर्ल्ड बैंक का पैसा इसमें आता है
और उसी के जरिए चीजें चलती है लेकिन गाहे बगाहे आपने कई मौकों पर प्रधानमंत्री को जरुर सुना होगा
तो पानी है बिजली है और बिजली के साथ घर का भी हमने जिक्र कर दी और यहां पर हमें लगता है कि किसानों का जिक्र भी हो जाना चाहिए क्योंकि चुनाव में सिर्फ और सिर्फ किसान ही तो रिंग रहा है
किसानों की आय दुगनी होगी वो तो पुराना जुमला होगी या दो हज़ार सत्रह में कहें तो दो हज़ार बाईस तक होगा जो हुआ नहीं होते होते क्या होता है होते होते यह हो गया इस देश के भीतर की फूड सब्सिडी हमारी बढ़ गई गरीबी बढ़ गई मुफलिसी बढ़ गई लेकिन हम जैसे ही सेंसर्स इस देश का ले आएंगे वह और ज्यादा बढ़ जाएगा
हमें और गरीबी का सामना करना पड़ेगा उसको छुपाए रखी है और इन सबके बीच जो कृषि बजट था हमारा व एक लाख चौबिस हजार करोड़ से घटकर एक लाख पंद्रह हजार करोड़ हो गया इस फाइनेंशियल ईयर में जो फसल बीमा योजना थी वह पंद्रह हजार पाँच सौ पौंड थी वह घटकर तेरह हजार छः सौ पच्चीस
करोड़ हो गई
अब सवाल यह है कि आप किसी भी क्षेत्र में अगर आप यूनिवर्सिटी के हिस्से में जाते यूनिवर्सिटी को लेकर भी एक जानकारी हमारी टीम ने निकाली और यह इसलिए बहुत अच्छी जानकारी है क्योंकि सरकार इस बात का जिक्र बार बार करती है कि देखिए हमने इतने यूनिवर्सिटी बना ली और अलग अलग क्षेत्रों में कहा कि दो हज़ार चौदह में
सात सौ तीस यूनिवर्सिटी थी
आज की तारीख में एक हज़ार तैंतालीस यूनिवर्सिटी जब जानकारी अधिकारियों से और मिनिस्ट्री के जरिए पता चला तो पता चला नहीं नहीं नौ सौ पैंतालीस यूनिवर्सिटी ही काम कर रही है कि तो पहला स्टेज था दूसरा स्टेट इन नौ सौ पैंतालीस यूनिवर्सिटी में अगर पुरानी सात सौ तेईस यूनिवर्सिटी को हटा दिया जाए तो जो दो सौ बीस यूनिवर्सिटी
दौर में बनी उसमें सिर्फ सत्ताईस फीसदी स्टाफ है
यानी तिहत्तर फीसदी स्टाफ नहीं है तो कैसे पढ़ाई हो रही होगी और जो पुरानी बस्ती थी
उसमें तकरीबन बासठ फीसदी स्टाफ है
वहां भी अड़तीस फीसदी स्टाफ कम है और यहां पर तिहत्तर फीसदी स्टाफ का भाई कैसे पढ़ाई हो रही होगी यूनिवर्सिटी की इमारत बन गई सबकुछ तय हो गया लेकिन पढ़ाने वाला शख्स नहीं और फैकल्टी के तो में नहीं है यह जानकारी मिली कि लगभग बयालीस फीसदी ऐसे हैं जहां पर फैकल्टी ही नहीं है तो पढ़ाई कौन यह की
चल रहा है कि एक टीचर आएगा सबको पढ़ाकर चला जायेगा अब यहां पर बाकी सवाल भी आते हैं आईआईटी का सवाल आता है सोना आईआईटी से हम तेईस आईटी पर पहुंच गए प्रधानमंत्री ने कई बार जिक्र किया यहां पर बत्तीस पर्सेंट सीट खाली पड़ी
पढ़ाने वालों की जिनका काम होता है कि आपको जाकर पढ़ाना है ट्रिपल आईटी उसमें लगभग आपको उन चालीस पर्सेंट खाली मिलेगा आइआइएम इसमें लगभग पैंतालीस फीसदी
भर्तियां रुकी हुई है तेरह से बीस तक पहुंचे लेकिन इसी तरह से जब एम्स का जिक्र हम आपसे से पहले कर चुके हैं कि हम साथ से बाईस पहुंच गए क्या स्थिति है यहां पर तीन सवाल सबसे बड़े पहला सवाल इस देश की इकोनॉमी को संभालने और चलाने की स्थिति और इस देश के भीतर योजनाओं का
ऐलान और प्रधानमंत्री का चुनाव के वक्त योजनाओं का ऐलान उससे जुडी हुई रकम क्या यह मैच करती है
या यह मिसमैच है
यानी एक दूसरे से किसी का कोई जुड़ाव नहीं है चुनाव है तो आप इस रूप में ऐलान कर दीजिए घोषणा कर दी दीजिए तो क्या ऐसी परिस्थिति देश के भीतर आ गई है यह चल रहा है और इसका दूसरा हिस्सा यह है कि इसके ठीक समानांतर जो प्राइवेट सेक्टर है
उसका पूरा बिजनेस बढ़ता चला जा रहा और व बिजली का सेक्टर हो पानी कर सेक्टर हो एजुकेशन का सेक्टर हो या हेल्थ कर सकता हो क्योंकि इस देश के भीतर में जितने भी स्कूल कॉलेज चलते हैं उससे बड़ी तादाद में छात्रों की संख्या प्राइवेट हिस्सों
में जुड़ी हुई जो बिजली जहां लिया तो पूरी तरीके से प्राइवेट हाथों में दे दिया गया है जो मेडिकल इस सिचुएशन का जिक्र है वह भी प्राइवेट हाथों में दे दिया गया हमको लगता है कि इसके डाटा आपको जानकारी में आनी चाहिए जिससे बात और थोड़ी साफ हो जाएगी कि अच्छा ऐसी स्थिति है
अगर आप सिर्फ और सिर्फ अलग अलग जगहों पर देखिए तो इस देश के भीतर में कुल गवर्नमेंट हॉस्पिटल जो है वह अट्ठारह हजार दो सौ सत्ताईस
और अगर उसमें आप छोटे मोटे यानी जैसे मोहल्ला क्लिनिक दिल्ली में अब उस तरीके के भी अस्पतालों को जोड़ जाएगा तो यह तैंतालीस हजार चार सौ छियासी हो जाएंगे यानी छिटपुट झोपडी में भी चल रही है उसको भी मान लीजिए जो प्राइमरी हेल्थ इस विषमता उसको भी जोड़ दीजिए सब को जोड़ दीजिए तो देश भर में तैंतालीस हजार है लेकिन
चलने वाले अस्पताल अट्ठारह हजार दो सौ सत्ताईस है लेकिन प्राइवेट अस्पताल इस देश के भीतर में सत्ताईस हजार छः सौ सत्ताईस इसमें ज्यादा मेहनत मत कीजिए इस देश के टॉप बारह शहरों को ले लीजिए जिसमें दिल्ली है मुंबई है
कॉल करता है
हैदराबाद है
चेन्नई है बैंगलोर है चंडीगढ़ है
हैदराबाद है
पटना है इन बार तो दस ही लिए हमने दो का नाम और है बारह ले लीजिएगा अगर इन बारह जगहों पर जो नेटवर्क हेल्थ इंस्टीट्यूशन जो प्राइवेट सेक्टर के काम करते हैं उनकी जो कमाई है
इस देश का जो पोर्टल हेल्थ का बजट है जो सरकार का लगभग अस्सी तिरासी हजार करोड़ का है और राज्य दर राज्य जो भी बजट है मसलन राजस्थान का जोड़िएगा तो बाईस हजार करोड़ के लगभग आएगा इसी तरीके से तमाम जगहों का अगर आप बजट जोड़ते चले जाइएगा तो जितना बजट होता है उसको दस से गुणा कर दी थी
उतना प्रॉफिट इस देश के प्राइवेट हेल्थ सेक्टर को हर बरस हो रहा है
सरकार अपने तौर पर अपनी पीठ ठोक दी है कि हमने हेल्थ के सेक्टर में इतना काम किया हमने इतना एम्स बना लिया इसके ठीक पैरलल में एजुकेशन में आ जाइए
एजुकेशन के भीतर में जितने यूनिवर्सिटी काम कर रही है जितने कॉलेज काम कर रहे हैं जितने प्राइवेट सेक्टर्स काम कर रहे हैं छः बड़े शहर जो इस देश के एजुकेशन हब के तौर पर जाने जाते हैं उन जगहों पर एजुकेशन सेक्टर से कमाई जो है वो सिर्फ सालाना कमाई कमाई यानी प्रॉफिट वह छः लाख
करोड़ से ज्यादा का है जो पीने के पानी से कमाई है वह तकरीबन आठ लाख करोड़ के लगभग इस देश के भीतर पहुंच चुका है यह कमाई है प्रॉफिट कम हो जाता है लेकिन एजुकेशन सेक्टर में प्रॉफिट था जो हमने आपको जानकारी दी अगर इस देश को प्राइवेट सेक्टर चला रहा है और हर क्षेत्र में उसी
की मौजूदगी है तो फिर प्रधानमंत्री जब भाषण देते हैं और योजनाओं का ऐलान करते हैं और बतलाते हैं कि हमने इस देश के भीतर इतना इन्फ्रास्ट्रक्चर पैदा कर दिया
तो उस इन्फ्रा स्ट्रक्चर में कितना हाथ प्राइवेट सेक्टर का होता है अगर उसका एक साधारण तरीके से आकलन आपको करना है मसलन आप यह भी सोचिए कि जो सड़कें बनाई जाती है उस पर टोल जो लिया जाता है वह भी पीपीपी मॉडल के तहत होता है या फिर जो पैसा लगाता है उसको पैसा कमाना उस दृष्टि से काम किया जाता
हेल्थ सेक्टर में जिसको अस्पताल खोलना है उसको जमीन जो होती है बहुत ही नॉमिनल रेट पर दी जाती एक रुपए में दे दी जाती है सौ रुपए में दे दी जाती है और उसको कहा जाता है आपको पच्चीस पर्सेंट गरीबों का इलाज भी करना है वह करता है नहीं करता या फिर कभी रिपोर्ट में लेकिन स्थिति यह है कि सरकार इस देश की शोक
पूंजी है उसको प्राइवेट हाथों में देती है और उसका रेशियो जो दोनों का रहता है कि सरकार को इससे कितना राजस्व मिल रहा है और इसका कितना लाभ प्राइवेट सेक्टर को हो रहा है और प्राइवेट सेक्टर जनता को कितना उससे खींच रहा है इन तीनों चीज को मिलाइए का तो आसान शब्दों में सीधे समझिए कि सौर
की कमाई
जिसमें से अस्सी रूपये प्राइवेट सेक्टर लेगी
बीस रुपए जो सरकार के पास आते हैं उसको बढ़ाने का तरीका उस जीएसटी के जरिए होता है उस टैक्स के जरिए होता है उसमें चीजें और बढ़ जाती है
और वो फिर अलग हिस्सा है कि वह प्राइवेट सेक्टर जब किस तरीके से पॉलिटिकल फंडिंग करता है नहीं करता वो एक अलग हिस्सा है तो आखिर के जो तीन बड़े सवाल है
इस देश को प्राइवेट हाथों में दिया जा रहा है और एम्स जैसी अस्पताल जिसमें तीन करोड़ साढ़े तीन करोड़ की एमआरआई मशीन तक न हो अगर है तो कम पड़ गई मरीजों के सामने उसको हम जुगाड़ कर पाने की स्थिति में नहीं है हमारा ध्यान लगातार योजनाओं के
को लेकर कि पहला सवाल दूसरा हुआ जो बेसिक स्ट्रक्चर होता है हेल्थ का एजुकेशन का पानी का बिजली का और घर का ये सारी चीजों के वादे जो सरकार करती है और उसके जरिए अगर कहीं दस गुना ज्यादा लाभ उन्हीं क्षेत्र में प्राइवेट
सेक्टर कर रहा है
तो फिर सरकार के होने का मतलब क्या है
और तीसरा सवाल जो शायद आज जिस बात से पास शुरू करनी थी वह यही सवाल है प्रधानमंत्री स्टार प्रचारक है
नेता हैं या प्रधान मंत्री भी हैं
अपनी पुरानी बातों को वह नए तरीके से दोहराने की स्थिति में हैं या पुरानी बातों से आंख मूंदकर नए नए ऐलान करने की दिशा में यही सवाल सबसे बड़ा इस देश के सामने बहुत बहुत शुक्रिया
बहुत बहुत शुक्रिया

हलाल प्रोडक्ट पर up सरकार ने बैन लगाया।

 UP में हलाल सर्टिफाइड उत्पादों पर बैन के बाद बढ़ी सख्‍ती, STF के हवाले केस, लखनऊ-गाजियाबाद में ताबड़तोड़ छापे ।

लखनऊ में आज भी छापेमारी जारी रहेगी। छापेमार टीमों ने सभी दुकानों और स्‍टोर के मालिकों से हलाल सर्टिफाइड उत्‍पादों की बिक्री न करने के लिए कहा है। हजरतगंज में कुछ दिन पहले हलाल सर्टिफिकेट देने वाली कंपनियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ है। इस मामले की जांच अब एसटीएफ को सौंप दी गई है।

लखनऊ: उत्‍तर प्रदेश में योगी सरकार ने हलाल सर्टिफाइड उत्‍पादों पर बैन लगा दिया है। इसके बाद सख्‍ती बढ़ गई है। खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन (एफएसडीए) की चार टीमों ने सोमवार को पांच इलाकों में स्थित 10 दुकान और स्टोर पर छापे मारे। हालांकि कहीं भी हलाल सर्टिफिकेशन के उत्पाद की बिक्री या स्टॉक नहीं पाया गया। अधिकारियों के अनुसार मंगलवार को भी छापेमारी जारी रहेगी।


हलाल ट्रस्ट का प्रमाण पत्र नियमों के तहत दिया जाता है और केवल निर्यात के लिए होता है। विदेश में खासतौर पर मुस्लिम देशों में उत्पाद निर्यात करने वाली कंपनियां प्रमाण पत्र लेती हैं। मलयेशिया चीनी निर्यात करने वाली चीनी मिलें भी हलाल प्रमाण पत्र लेती हैं।

गाजियाबाद में 17 दुकानों पर छापा, हलाल सूप और नूडल्‍स बरामद

उधर, गाजियाबाद में भी दर्जन भर से ज्‍यादा दुकानों पर छापा मारा गया। जिला खाद्य सुरक्षा विभाग की टीम ने कविनगर, शास्‍त्रीनगर, राकेश मार्ग पर स्थित दुकानों पर छापे मारे। इस दौरान टीम को एक प्रसिद्ध कंपनी के हलाल प्रमाणित सूप और नूडल्‍स मिले। टीम ने सभी पैकेट्स को सील कर दिया है। टीम ने कई रेस्‍टोरेंट पर भी छापा मारा। हालांकि इस दौरान कोई हलाल सर्टिफाइड उत्‍पाद नहीं बरामद हुआ। छापेमारी के दौरान टीम ने तीन नमूनों को सील करके जांच के लिए भेज दिया।

अदालत से करेंगे गुहार: जमीयत उलेमा-ए-हिन्द हलाल ट्रस्ट।

दूसरी ओर, जमीयत उलेमा-ए-हिन्द हलाल ट्रस्ट के सीईओ नियाज ए फारूकी ने कार्रवाई को पूरी तरह से गलत बताया है। कहा कि हलाल ट्रस्ट का प्रमाण पत्र नियमों के तहत दिया जाता है और केवल निर्यात के लिए होता है। विदेश में खासतौर पर मुस्लिम देशों में उत्पाद निर्यात करने वाली कंपनियां प्रमाण पत्र लेती हैं। मलयेशिया चीनी निर्यात करने वाली चीनी मिलें भी हलाल प्रमाण पत्र लेती हैं। कार्रवाई को गलत बताते हुए अदालत में गुहार लगाने की बात कही। इस बीच पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने यूपी में हलाल सर्टिफिकेशन को बैन करने को लेकर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग से शिकायत की है। इसमें कहा है कि यूपी सरकार का आदेश प्रथम दृष्टया विधि सम्मत नहीं दिखता है। यह सही है कि खाद्य पदार्थ, औषधि, चिकित्सा सामग्री, प्रसाधन से जुड़े कानून में अलग से हलाल सर्टिफिकेशन की व्यवस्था नहीं है। लेकिन, इसका यह अर्थ नहीं है कि यदि कोई व्यक्ति हलाल सर्टिफिकेशन लिखता या लगाता है तो गैरकानूनी करते हुए उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए। आयोग से तथ्यों का संज्ञान लेते हुए सम्यक कार्रवाई करने की मांग की है।


देश विरोधी गतिविधियों व आतंकी संगठनों को फंडिंग जैसी बात सामने आने पर हलाल सर्टिफिकेशन से जुड़े संगठनों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत भी कार्रवाई हो सकती है। इसको लेकर विधि विशेषज्ञों से विचार विमर्श किया जा रहा है। यूएपीए का मुख्य काम आतंकी गतिविधियों को रोकना होता है। इस कानून के तहत पुलिस ऐसे आतंकियों, अपराधियों या अन्य लोगों को चिह्नित करती है, जो आतंकी गतिविधियों में शामिल होते हैं।

17 नवंबर को दर्ज हुआ मुकदमा

17 नवंबर को हजरतगंज कोतवाली में ऐशबाग के मोतीझील निवासी शैलेंद्र कुमार शर्मा ने चेन्नई की हलाल इंडिया, दिल्ली की जमीयत उलेमा हिंद हलाल ट्रस्ट, मुंबई की हलाल काउंसिल ऑफ इंडिया और जमीयत उलेमा समेत अन्य के खिलाफ केस दर्ज करवाया था। एफआईआर में कई गंभीर धाराएं लगी हैं। नामजद कंपनियों पर आरोप है कि बिना किसी अधिकार के हलाल प्रमाण पत्र निर्गत कर अनुचित लाभ अर्जित कर रही हैं। इससे अर्जित होने वाले धन का इस्तेमाल राष्ट्रविरोधी तत्वों व आतंकी संगठनों के लिए किया जा रहा है। यही नहीं आरोपित कंपनियों से जुड़े लोग एक वर्ग विशेष को प्रभावित करने के लिए कूट रचित प्रपत्रों का प्रयोग कर प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। इसमें मानकों का पालन भी नहीं किया जा रहा है। यह कंपनियां उन उत्पादों को भी हलाल प्रमाण पत्र जारी कर रही हैं, जो पूरी तरह शुद्ध शाकाहारी की श्रेणी में आते हैं।

Saturday, 18 November 2023

मानवीय समानता के लिए पैगंबर मुहम्मद साहब का सफल कारनामा मवाखाते मदीना .

 मानवीय समानता के लिए पैगंबर मुहम्मद साहब का सफल कारनामा ..
मवाखाते मदीना 
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अल्लाह के रसूल सलललाहो अलैहे वसल्लम जब हिजरत करके मदीना पहुंचे तो मदीना में तीन तरह के मुसलमान इकट्ठा हो गए 

1- मदीना के असल बाशिंदे जिन्हें अंसार ए मदीना की उपाधि मिली यह लोग छोटे किसान थे और यहूदी साहूकारों के कर्ज के जाल में फंसे रहते थे कुछ बड़े किसान भी थे पर उनकी संख्या बहुत कम थी 

2- मक्का से आए हुए कुरैश कबीला वाले इन लोगों का मुख्य पेशा व्यापार करना और जानवर पालना था इनकी आर्थिक स्थिति शुरू में अच्छी थी पर इस्लाम लाने के बाद बराबर बायकॉट का सामना करने की वजह से काफी गरीब हो चुके थे जो कुछ बचा था वह भी हिजरत करते समय मक्का वालों ने जबरदस्ती छीन लिया था 

3- मक्का व मदीना दोनों जगहों पर गुलामों की एक बड़ी संख्या ने इस्लाम कबूल कर लिया था इन में हज़रत बिलाल हज़रत अम्मार बिन यासिर हज़रत सलमान फ़ारसी सोहैब रूमी जैसे लोग थे 

तीनों तरह के लोग मुसलमान थे एक अल्लाह और रसूल पर ईमान रखते थे दीनी हैसियत से इन में कोई अंतर नहीं था 

पर सब की मानसिक स्थिति , सोचने का अंदाज , और पेशे में महारत अलग-अलग थी 

गुलाम समाज का सबसे कमज़ोर वर्ग होता है एक आजाद आदमी जैसी उस की सोच नहीं हो सकती ऐसा हो सकता था कि यह वर्ग दूसरे दोनों वर्गों में खो जाता या एहसास ए कमतरी का शिकार हो जाता 

इस लिए अल्लाह के रसूल सलललाहो अलैहे वसल्लम ने मदीना पहुंचने के बाद इन तीनों ग्रुपों में भाई चारा करा दिया जिसे मुवाखाते मदीना का नाम दिया गया 
अल्लाह के रसूल सलललाहो अलैहे वसल्लम ने बाकायदा एक एक आदमी का नाम ले कर ऐलान किया कि आज से फलां आदमी फलां आदमी का भाई है और वह उसकी जिम्मेदारी में है 

मुवाखाते मदीना के फायदे 
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1- हिजरत करके आने वालों के खाने और रहने का तुरंत बंदोबस्त हो गया 

2- समाज के तीनों वर्ग आपस में एक हो गए और भेदभाव बाकी न रहा 

3- समाज में किसान व्यापारी जानवर पालने वाले और मजदूर हर प्रकार के लोग मिल गए एक दूसरे के अनुभवों से फायदा उठाया और वही अंसारे मदीना जो कल तक यहुदी साहूकारों के कर्जदार रहते थे अब अपने मुहाजिर भाई के साथ मिलकर व्यापार करने लगे 

व्यापारी भी खुद किसान भी खुद मजदूर भी खुद और उपभोक्ता भी खुद । इस तरह एक पूर्ण समाज विकसित हुआ जिसे बाहर वालों की जरूरत नहीं थी हज़रत उस्मान व हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ जैसे कुछ लोगों ने व्यापर में काफी तरक्की की और विदेशों से आयात व निर्यात करने लगे 

4- गुलाम व आजाद भाई भाई हो गए एक घर में एक साथ रहने एक साथ खाने की वजह से गुलामों में जो भी हीनभावना थी निकल गई वह अलग-अलग देशों से गुलाम बना कर लाए गए थे अलग-अलग संस्कृति व सभ्यता से आए थे उन्होंने अपने अनुभवों को साझा किया जिस के कारण मुसलमानों में एक व्यापक सोच ने जन्म लिया गज़वा खंदक में इन्हीं गुलामों में से एक हज़रत सलमान फ़ारसी की राय पर खंदक खोदी गई जो अरब की युद्ध विधा के लिए एक नई चीज थी 

मुवाखाते मदीना के परिणाम बहुत दूरगामी और व्यापक थे जिसे आम तौर पर बयान नहीं किया जाता है मुवाखाते मदीना का मकसद तुरंत बंदोबस्त या फ़ौरी इंतजाम ही सिर्फ नहीं था और न ही यह ग़रीबी उन्मूलन का कोई प्रोग्राम था बल्कि यह एक बहुद्देशीय फैसला था इस से अल्लाह के रसूल सलललाहो अलैहे वसल्लम की राजनैतिक काबिलियत का पता चलता है

Sunday, 5 November 2023

WhatsApp Massage 51123

 *डरा हुवा समाज और व्यक्ति कठिन परिस्थितियों में अपनी जिम्मेदारी और समाज हितमे काम नहीं कर सकता हे।*

  इस बातको समझने के लिए हम छोटीसी बातसे  समझने का प्रयास करते हे, जैसे एक इंसान हे जिसके बच्चो हो , उसी व्यक्ति के सामने वो बच्चे पानी में दूब रहे हो, वो बचाना चाहता है, लेकिन बचा नही सकता हे क्यू के?? उस व्यक्ति का कुछ समय पहले एक हादसे में  दोनो हाथ कट चुके हे, अब बिना हाथ का व्यक्ति कैसे अपने बच्चो को बचाए??

 बस इसी घटना की तरह डरा हुवा समाज और व्यक्ति एक समय में बिना हाथ का हो जाता है, जो चाहते हुवे अपने समाज के लिए चाहकर कुछ नही कर सकता हे।


  हमारे देश की परिस्थितियों को ध्यान करने के साथ ब्रिटिश हुकूमत से आजादी का इतिहास याद करते हुए, अगर वर्तमान परिस्थितियों पर ध्यान करे, धीरे धीरे ये देश फिरशे "पूजिवाद" की गुलामी की तरफा बढ़ रहा हे, *भारत में सबसे बड़ा मजलूम समाज मुस्लिम ,दलित और आदिवासी हे,* लेकिन इन समाज के बुद्धिजीवियों ने 1946 के बाद बदलने वाली नई व्यवस्था की तरफ ध्यान "न" करने की वजह से अपने समाज के लिए बिना हाथ के उस व्यक्ति की तरह बन चुका हे, जिसके सामने उसके बच्चे पानी में दूब रहे हे, लेकिन वो बचा नही सकता हे।


  *हर नई व्यवस्था को हर पहलु से समझना जिंदादिल और बुद्धिजीवी इंशन के लिए बहुत जरूरी हे,* जैसे इंसान के शरीर में धड़कन का धड़कना जरूरी हे, अगर धड़कन बंध हो जाए अथवा   उसकी रफ्तान कम ज्यादा हो जाए तो उस इंसान का शरीर बहुत  सी बीमारी का शिकार होता हे, वैसे ही आज हमारे देश के मुख्य तीन समाज के लोगों ने ब्रिटिश हुकूमत को इस देश में चले जाने के बाद देश को चलाने के लिए *लोकतंत्र (प्रजातंत्र) के रूप में पहचान दी गई* लेकिन इसको समझने और इसके बेहतर  निर्माण के लिए और इस नई व्यवस्था में *मानव समाज के लिए क्या फायदे हे? क्या नुकसान हे? कैसे फायदा उठा सकते हे? कैसे नुकसान हो सकता हे?* इन बातों पर "मुस्लिम,दलित और आदिवासी" मुख्य तीन समुदाय ने खास कोई ध्यान नहीं दिया ।


   अगर बात करे दलित और आदिवासी समाज की तो इस समाजने समय पर बदलती हुई नई व्यवथा के लिए प्रयास बहुत किया लेकिन उतनी कामयाबी नही मिली, लेकिन अफसोस मेरा मुस्लिम समाज इस विषय में 0 रहा जिसकी वजह से, देश में हर मुद्दे में मुस्लिम को शिकार और टारगेट किया जाया हे, *भारत का मुस्लमान चुनाव के समय एक खिलौना बनकर रह चुका हे.*


*इसी कारण से आज सबसे ज्यादा मुस्लिम समाज के लोग सबसे ज्यादा पीड़ित हे, जुल्म और नाइंसाफी के शिकार होते हे।*

इस विषय में और गहराई से अध्यन करना जरूरी हे।

        📆 051123
✒️ *Huzaifa Patel*
     Dedicated Worker 
 
मेसेज सही लगे तो आगे शेर करे।

Saturday, 4 November 2023

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से मांगी राजनेतिक पार्टियो को मिलने वाले फंड की सूची।

 
दोस्तों नमस्कार यह देश फंडिंग से चलता है
इस देश की सरकार फंडिंग से चलती है
इस देश में चुनाव फंडिंग के आसरे ही जीते और हरा जाते हैं
तो क्या इस देश के भीतर की फंडिंग का कच्चा चिट्ठा अगर इस देश के लोगों के सामने आ जाए
तो इस देश में कॉर्पोरेट किस तरीके से काम करते हैं वह आपके सामने होगा
या फिर इस देश में सरकार की आर्थिक नीतियां कैसे किसी कॉरपोरेट के नेटवर्थ को बढ़ाती है वह भी आपके सामने होगा या फिर इन दोनों से हटकर इस देश के भीतर में फंडिंग की कितनी बड़ी पूंजी और उसकी एवज में इस देश के खनिज संसाधनों से लेकर
इस देश की पूंजी को कितने कौड़ियों के मोल कॉर्पोरेट के हवाले कर दिया गया क्या वह सब कुछ भी इस दौर में सामने आ सकता है
माननीय या न माने लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बढ़ रहे के छत्ते में हाथ डाल दिया है
इलेक्ट्रॉल बॉल से शुरू हुआ मामला सिर्फ इलेक्टोरल बॉन्ड तक थमेगा या फिर इलेक्टोरल बॉन्ड की जिस लिस्ट को सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्शन कमीशन से कहा है जाइए पूरी लिस्ट बनाइए और दो हफ्ते के भीतर हमारे सामने लाकर बंद लिफाफे में दीजिए
अभी हम इस देश की जनता को नहीं बताएंगे कि किस कॉर्पोरेट ने कितना दिया तो क्या यह एक सहूलियत का रास्ता है जिससे चुनाव आयोग दो हज़ार चौबिस के चुनाव से पहले कम से कम उस लिस्ट को सुप्रीम कोर्ट के सामने तो सौंप दें क्योंकि सुप्रीम कोर्ट और दो
दूसरी तरफ चुनाव आयोग या समझना होगा इस देश के भीतर में चीफ जस्टिस की नियुक्ति मौजूदा सरकार नहीं करती है
लेकिन इस देश में चुनाव आयुक्त कौन होगा इस की नियुक्ति मौजूदा सरकार करती है
और इस देश में जिसके पास सारी जानकारी है वह एसबीआई भी सरकार के अधीन है
और सुप्रीम कोर्ट ने दो दिनों तक तमाम बातें सुनने के बाद जब इलेक्शन कमीशन से या कहा कि जिन्होंने भी डोनेशन दिया जो इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए हो जो भी इस दौर में फंडिंग का कच्चा चिट्ठा सितंबर के महीने तक है वह पूरा का पूरा सुप्रीम कोर्ट
को आप सौंपी है तो क्या सुप्रीम कोर्ट का यह पहला कदम है
क्योंकि उन्होंने इस दौर में साफ तौर पर एक लकीर खींच दी कि जनता को पता नहीं चलेगा
जबकि लोकतंत्र और संविधान की व्याख्या करते वक्त सुप्रीम कोर्ट को भी पता है कि इस देश के भीतर में जनता को इस देश की राजनीति राजनीति को मिलने वाली फंडिंग और सरकार द्वारा जो कॉर्पोरेट को दिया जाता है उसकी पूरी जानकारी इस देश की जनता
को होनी चाहिए और संयोग से सारे तार इस दौर में फंडिंग से ही जाकर जुड़ गए
तो क्या वाकई मोदी सरकार इस दौर में चुनाव आयोग से कहेगी कि दो हफ्ते के भीतर जो सुप्रीम कोर्ट ने मांगा है उसे आप सौंप दीजिए उस लिस्ट की तैयारी कर लीजिए तो इस देश के भीतर में अभी तक जो कॉरपोरेट्स के नेटवर्थ पढ़ते थे अगर उसमें टॉप दस
या बीस कॉर्पोरेट का जिक्र कर दिया जाए तो उनके नेटवर्थ दो हज़ार चौदह से पहले इस रफ्तार से क्यों नहीं बढ़ रहे थे जबकि इस देश की जीडीपी की रफ्तार उस वक्त कहीं तेज थी
उस दौर में भारत की अपनी इकनॉमी कहीं ज्यादा बड़ी रफ्तार से बढ़ रही थी
और अंतरराष्ट्रीय तौर पर भारत की इकोनॉमिक पॉलिसी को मान्यता दुनिया के तमाम विकसित देश दे रहे थे
लेकिन मौजूदा वक्त में क्या यह सब कुछ छुपा लिया गया और पहली बार एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म की जो पिटीशन सुप्रीम कोर्ट के सामने पहुंची और सुप्रीम कोर्ट ने जिस कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच को बैठाया पांच जजों की बैंच और खुद चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने उसे
की अगुवाई कि क्या ये मैसेज दो दिनों के भीतर निकल चुका है कि अगर इस कच्चे चिट्ठे को सामने ले आया जाए तो इस देश की राजनीतिक सामाजिक आर्थिक परिस्थितियां में एक राजनीतिक बवाल पैदा हो जाएगा हो सकता है
यह बिल्कुल हो सकता है क्योंकि कुछ पन्ने जैसे ही आप दो हज़ार चौदह से पहले का खोलिए का आपको जानकर हैरत होगी कि कॉरपोरेट की ओवरऑल नेटवर्थ जो होती थी दो हज़ार चौदह से पहले उसमें कुछ को आप सरकार उस दौर की कांग्रेस की सरकार के साथ भी खड़े कर दीजिए
तो भी उनके नेटवर्थ की रफ्तार जो रहती थी वह पचास फीसदी के पार जाति नहीं थी
पचास फीसदी कुछ की सवा सौ फीसदी तक की रफ्तार से बढ़ी जरूर है लेकिन ऐवरेज निकाली गार्ड तो पचास फीसदी और वहां भी टॉप पहनती कॉर्पोरेट की नेटवर्थ की रफ्तार का हम जिक्र कर रहे हैं लेकिन मौजूदा वक्त में यानी दो हज़ार चौदह के बाद से इस देश के भीतर में एक
जबरदस्त बदलाव आया आप कल्पना कीजिए कि दो हज़ार चार से दो हज़ार चौदह के बीच जो भी कॉरपोरेट फंडिंग पॉलिटिकल पार्टीज को कुल मिलाकर हुई वहां भी ग्यारह हजार करोड़
और दो हज़ार चौदह के बाद दो हज़ार तेईस तक जो कॉरपोरेट फंडिंग सिर्फ बीजेपी के पास आई वह भी ग्यारह हजार करोड़ से ज्यादा की थी
एक तरफ समूचे राजनैतिक दलों का खाका दूसरी तरफ सिर्फ बीजेपी का खाता
जो दस साल को अपने बूते बात करने की स्थिति में
तो क्या राजनैतिक तौर पर फंडिंग और फंडिंग के आसरे कॉरपोरेट कर नेटवर्क और कॉर्पोरेट के नेट वर्थ के आसरे इस देश के भीतर
देश की संपत्ति को कौड़ियों के मोल हवाले करते चले जाने की परिस्थितियां और इन्हीं के जरिए अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की इकोनॉमी का बढ़ते हुए दिखाना क्या यही स्थिति है जो एक झटके में अगर इलेक्शन कमीशन उस पूरी लिस्ट को सुप्रीम कोर्ट को सौंपता है
और सुप्रीम कोर्ट इस देश के सामने एक एक करके हर बात को रख देती है जिससे यह पता चले कि किस कॉरपोरेट ने कितना पैसा किस रूप में दिया
तो क्या मौजूदा सरकार का समूचा कच्चा चिटठा इस देश के सामने आ जाएगा और उसी को मौजूदा सरकार छुपाती रही है जिसका जिक्र वह कतई नहीं है क्योंकि अडानी कांड के दौर में यानी इंडियन वकील रिपोर्ट जब फरवरी में आई उसके बाद प्रधानमंत्री की खामी
खुशी हो या सुप्रीम कोर्ट के भीतर भी जो सुनवाई की तारीख हो वह भी क्यों टल गई
यह सवाल तो कोई भी पूछ सकता है जबकि एक तरफ दस से बारह लाख करोड़ का जिक्र जो मैनिपुलेट एशियन हो रहा था शेयर बाजार में इतना बड़ा घपला घोटाला तो इससे पहले कभी नहीं हुआ और देश के प्रधानमंत्री के माथे पर शिकन तक नहीं आई और क्या यही वह वजह है जिसका जिक्र राहुल गांधी गाहे बगाहे करते
चले जाते हैं कि क्यों कौन से रिश्ते किस रूप में रिश्ते अडानी और मोदी के और मोदी की खामोशी इस दौर में अडानी को बल देती है क्या यह सवाल है हमें लगता है आज अडानी प्रकरण से आगे निकली है क्योंकि जब फंडिंग का जिक्र हो रहा है तो हमारी टीम ने उस पर एक रिसर्च किया और रिसर्च के
बाद इस बात की जानकारी दी कि देखिए दस साल में अगर आप अलग अलग दस साल में देखना शुरू करें
इस देश में चुनाव को लेकर तो दो हज़ार चार से दो हज़ार चौदह के बीच में कुल पॉलिटिकल फंडिंग ग्यारह हजार तीन सौ सैंतीस करोड़ की होती है
लेकिन ऐसा नहीं है कि सारी फंडिंग एक झटके में कांग्रेस के पास चली गई उसमें तीन हज़ार तीन सौ तेईस करोड़ कांग्रेस के पास जाती है तो दो हज़ार एक सौ छब्बीस करोड़ बीजेपी के पास जाती और उसके बाद किसी के पास आठ सौ करोड़ गई किसी के पास नौ सौ करोड़ गई किसी के पास पाँच सौ कॉल गई इस रूप में बढती
चली जाती है यानी राजनीति का एक प्लेइंग फील्ड कॉरपोरेट फंडिंग के आसरे बना रहा और इसीलिए उस दौर में कभी भी कॉरपोरेट फंडिंग को लेकर वैसे सवाल नहीं उठे जो इस दौर में उठ रहे हैं इस दौर में इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि जो भी फंडिंग होती है उसका बहत्तर से
अस्सी फीसदी हिस्सा अगर बीजेपी के पास चला जाता है
तो फिर इस देश के भीतर में वह पैसा देने वाले लोग कौन हैं और उसकी एवज में उन्हें क्या मिलता है यह सवाल हर कोई जानना चाहेगा और पूछेगा
इलेक्शन कमीशन के जरिए जो एक बात बीते पांच बरस की निकलकर आई जो उसके सामने तमाम पॉलिटिकल पार्टीज ने अपनी फंडिंग का खाका रखा अगर उसको भी एक क्षण के लिए समझे दो हज़ार सत्रह आठवां का फाइनेंशियल ईयर और दो हज़ार इक्कीस बाईस का फाइनेंशियल ईयर इन पांच बरस के भीतर में बीजेपी
पी को पाँच हज़ार दो सौ बहत्तर करोड़ रुपए फंडिंग के मिले
कांग्रेस को नौ सौ बावन करोड़ मिले
उसके बाद नंबर आता है वाईएसआर कांग्रेस का तीन सौ तीस करोड़ मिले
टीडीपी को एक सौ तेरह करोड़ मिले आम आदमी पार्टी को पचास करोड़ मिले
जनता दल सेकुलर को तैंतालीस करोड़ मिले तो जनता दल यूनाइटेड को चौबिस करोड़ मिले आरजेडी को ढाई करोड़ मिले एनसीपी को चौंसठ करोड़ जरूर मिले और बीजेडी जो लंबे समय से उड़ीसा में है उसको भी छः सौ बाईस को जरूर मिले
लेकिन इसका पहला मैसेज किया है
इसका पहला मैसेज बहुत साफ है कि जो पाँच हज़ार दो सौ बहत्तर करोड़ रुपए बीजेपी को मिलते हैं उसमें से लगभग सत्तर परसेंट अन्य लोगों को दिखाया जाता है यानी पार्टी को नहीं पता है वह पैसा कहां से आया किस रूप में वह पैसा आया उससे ठीक एक बरस पहले
जो कोविड काल था जिसमें मिनिमम पैसा आया उसमें भी बीजेपी के पास एक हज़ार नौ सौ सत्रह करोड़ आया और उसमें एक हज़ार एक सौ इकसठ करोड़ कहां से आया वह अननोन फोर्स दिखलाया गया इसी अननोन सोर्स को जानने के लिए अब
एक्शन कमीशन को कहा गया कि आप उस लिस्ट को बंद लिफाफे में हमें सौंप दी
हो सकता है बंद लिफाफा सुनकर आपके जहन में इस देश की ब्लैक मनी का भी जिक्र घूमने लगा हो दो हज़ार चौदह में जब पहली बार ब्लैक मनी को लेकर मोदी सरकार की पहली कैबिनेट में स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम बनाई गई थी तब भी कहा गया था कि सुप्रीम
कोर्ट को बंद लिफाफे में नाम को सौंपा जाए और अगर याद कीजिएगा तो मनमोहन सिंह के काल में भी बंद लिफाफे में पूरी सूची ब्लैक मनी के लोगों की मानी गई थी लेकिन आज तक यह चीजें सामने आई है
तो हो सकता है अब आपके जहन में पहला सवाल ये हो क्या वाकई इस देश के भीतर में जो कॉरपोरेट फंड करते हैं और बड़ी तादाद में करते हैं क्योंकि हजारों हजार करोड़ रुपया कोई राजनीति में क्यों के कहा अगर उसको लाभ नहीं हो रहा है और लाभ हो रहा है तो उसका नेटवर्क
अर्थ जो पैसा वह फंडिंग में दे रहा है उसकी तुलना में तकरीबन एक सौ पचास गुना की रफ्तार से कैसे बढ़ जाता है इस देश के टॉप पहनती कंपनी को लीजिए और फिर उनके नेटवर्थ का आकलन कीजिए कि दो हज़ार चौदह से पहले उनकी कौन सी स्थिति थी और दो हज़ार
से दो हज़ार तेईस के बीच में वह कहां खड़े हैं और अगर इनके जरिए इनको डिवाइड कर दिया जाए
कि आपने इतना पैसा दिया होगा एक आउटपुट टिकट तरीके से लिस्ट अभी सामने नहीं आई है
लेकिन उस नजरिए से भी कर दिया जाए
तो भी हैरत में होंगे जितना पैसा पॉलिटिकल फंडिंग का पॉलिटिकल पार्टी के पास आया उससे लगभग सौ गुना ज्यादा रफ्तार से अगर नेटवर्थ बढ़ रहा है उन कंपनियों का तो इसके मतलब क्या हमें लगता है इसके लिए आज ये नाम और जोड़ना चाहिए पीएम केयर्स का पीएम केयर
में देने वाली कंपनियां जो सौ करोड़ दो सौ पाँच सौ कौन दे रही थी वह कौन सी कंपनी थी और उन कंपनियों में इतना पैसा देने के बाद भी उनके अपने नेटवर्थ में इजाफा कैसे होता है सरकार की तरफ से उस दौर में और अभी तक उन्हें क्याक्या सुविधा रियायत मिल रही है
सवाल कॉर्पोरेट टैक्स की कमी का नहीं है
जिसके जरिए इस देश को एक लाख चालीस हजार करोड़ का झटका लगा बिल्कुल नहीं है सवाल तो यह है कि जिन बातों की जानकारी इस देश को लोगों को है ही नहीं
और यह जो रोटेशन है पूरा मनी रोटेशन यानी मनी ट्रेल जो है
सामान्य तौर पर हम आप जानने लगे हैं इस दौर में कि ईडी का काम मनी ट्रेल को पकड़ना होता है और तभी वह अदालतों में मामला टिक पाता है कि मनी ट्रेल आपने पकड़ लिया और तीन सौ अड़तीस करोड़ जो दिल्ली के आम आदमी पार्टी को लेकर शराब घोटाले में जिस रकम का जिक्र हुआ तो वहां पर ईडी को कहना
बड़ा सुप्रीम कोर्ट के भीतर हां हमें मनी ट्रेल मिली है
तो इस देश को जानने का हक क्यों नहीं है कि जो मनी ट्रेल कॉर्पोरेट के जरिए फंडिंग के लिए निकलता है और उस फंडिंग को पाने के बाद सत्ता जो उनकी रियायत और राहत का रास्ता बनाती है और इसके जरिए उस कंपनी को जो लाभ होता है वह कंपनी आने वाले वक्त में कैसे दूसरी
जगहों पर अपने बिजनेस को फैलाती है और फिर उसको रोटेट कर आती है या जो पूरी साइकिल है जिसमें ब्लैक मनी मनी लॉन्ड्रिंग सभी का समावेश होता है इसकी जानकारी इस देश को क्यों नहीं मिलनी चाहिए
तो क्या पहले राउंड में यह कहा जा सकता है
कि चुनाव आयोग की इमानदारी का इम्तिहान है
क्या यह कहा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार इलेक्शन कमीशन को कटघरे में खड़ा कर दिया
इलेक्शन कमीशन के सामने मुश्किल यह है कि आखिर खुद उनके लोगों की नियुक्ति तो सरकार करती है और वह सरकार से आज्ञा बिना लिए कैसे काम कर सकती और इस दायरे में अभी एसबीआई को नहीं दिया गया क्योंकि इलेक्टोरल बॉन्ड एसबीआई के जरिए ही बिकता है
सुप्रीम कोर्ट चाहता तो सीधे एसबीआई से मांग सकता था पूरी रिपोर्ट रिजर्व बैंक को कह सकता था पूरी रिपोर्ट दीजिए दो हज़ार अट्ठारह के बाद किस किसको कितना किस किसने बॉन्ड लिया और किस किसने दिया है किसको को उसमें तो जिक्र होता ये बॉन्ड इसके नाम पर हम खरीद रहे हैं उसमें पार्टी का नाम लिखना पड़ता है
बहुत छोटी रकम है दूसरी पॉलिटिकल पार्टीज की लेकिन दूसरी पॉलिटिकल पार्टीज भी जब सत्ता में होती है तो वह भी अपने राज्य में जो उसके हक में आता है वहां पर वो राहत रियायत उन
दस लिस्ट को कॉर्पोरेट को देती जरूर है क्योंकि कोई भी मुफ्त में इस देश की राजनीति में पैसा लगाना नहीं चाहेगा और उसकी एवज में उसे कुछ मिल नहीं पा रहा है वह यह सोचकर तो पैसा दान नहीं देगा कि लोकतंत्र आ गया डेमोक्रेसी लौट आएगी अब नफरत की बात नहीं होगी अब संविधान के जरिए दी
चलेगा रूल ऑफ लॉ होगा पार्लियामेंट अपने तौर पर सुप्रीम कोर्ट का कहा मान लेगी बड़े मुश्किल सवाल है यह खासतौर से तब जब इस देश में फेडरल स्ट्रक्चर को लेकर इस देश के गैर बीजेपी शासित राज्य सीधे केंद्र से टकरा रहे हो तो पार्टी इस देश में कोई दान दक्षिणा उस
लोकतंत्र की खातिर देगा जिस लोकतंत्र के भीतर चुनाव के वक्त ही सबसे ज्यादा पैसा दिया लिया जाता है और इसका खुला आरोप इस देश में हर पॉलिटिकल पार्टी दूसरी पॉलिटिकल पार्टी पर लगाती है और प्राइवेट तौर पर चाहे वह एडीआर हो या इलेक्शन वाच अपनी रिपोर्ट में जिक्र कर पाए और इलेक्शन कमीशन भी यह कह
ने से नहीं कतराता है कि देखिए हमने इतना रुपया कहीं चालीस लाख का ही सत्तर लाख का जिक्र किया था एक उम्मीदवार खर्च करेगा लेकिन यहां तो उससे करीब
कितने गुने ये बोल पाना बड़ा मुश्किल है क्योंकि अगर सत्तर लाख को आप सात करोड़ कहेंगे प्रतीक कॉन्फ्रेंसिंग तो हो सकता है वह भी कम पड़ जाए जिसका जिक्र इस दौर में भूपेश बघेल खुलकर कह रहे हैं कि दरअसल मिनिमम हर कांस्टेंसी के भीतर जितना पैसा लाकर फूंका जा रहा है वह दस
गुनाह नहीं है उससे कई गुना ज्यादा यह मैसेज किया
मैसेज बहुत साफ है इस देश के भीतर में की जो फंडिंग का पूरा खेल है वह ब्लैक मनी पर टिका हुआ है व मनी लॉन्ड्रिंग पर टिका हुआ है वह हवाला पर टिका हुआ है वो सहयोग से इन सारी चीजों को लेकर इस देश की उस इकोनॉमिक पॉलिसी से जाकर टिक गया है जिसके जरिए इस देश
के उन कॉरपोरेट्स को राहत रियायत मिले जो फंडिंग कर रही हो
क्योंकि एक डाटा हमारे टीम ने और भी निकाला और इस बात की जानकारी उन्होंने बोले बताई कि कि इतनी बड़ी तादाद में अज्ञात चोर से जो पैसा आता है अननोन शोर से छह साल में बीजेपी ने दिखलाया कि उसके पास दस हजार एक सौ बाईस करोड़ रुपए अननोन शोर से पैसे आ गए
वो कुछ नहीं कर सकता था उसके पास कोई जानकारी नहीं क्या यह संभव है
दस हजार करोड़ रुपए शोर से बीजेपी के पास आ गए कांग्रेस ने भी कहा एक हज़ार पाँच सौ सैंतालीस कोड हमारे पास भी आ गए ममता बनर्जी ने भी कहा आठ सौ तेईस करोड़ हमारे पास भी आ गए नवीन पटनायक ने भी कहा हमारे पास भी छः सौ बाईस करोड़ आ गए स्टालिन ने भी कहा चार सौ इकतीस
थोडा आ गए और केसीआर उन्होंने भी कहा चार सौ इकतीस को हमारे पास भी आ गए दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने भी का एक सौ तिरासी करोड़ हमारे पास भी आ गए पैमाना देखिए हर की ताकत समझिए हर की ताकत फंडिंग को पाने की और फंडिंग की एवज में राहत रियायत देने की कितनी
बड़ी हो सकती है उसका अंदाजा इसी से लग जाता है क्यों कांग्रेस की तुलना में कॉर्पोरेट की नजर में दस गुना ज्यादा ताकतवर इस दौर में बोधि सकता है
क्योंकि उसके पास एक हजार करोड़ रुपया अज्ञात चोर से आता है छह बरस में तो बीजेपी के पास दस हजार करोड़ रुपए आ जाता है यह कौन सी परिस्थितियां इस देश के भीतर में क्या इस पर उंगली रख दी गई है क्या वाकई दो हफ्ते के भीतर इलेक्शन कमीशन रिपोर्ट दे देगी
क्योंकि इस देश के भीतर सीएसीपी फेल हो जाती है अडानी पर रिपोर्ट देने में वक्त दर वक्त लगते चला जाता और उसके बाद भी बहुत चीजें अधूरी है इस वजह से सुप्रीम कोर्ट सुनवाई नहीं कर पाता है
इस देश के भीतर में सीबीआई रिपोर्ट देने में बहुत देर कर देती है ईडी रिपोर्ट देने में देर कर देती है तो फिर इलेक्शन कमीशन क्यों नहीं देयर करेगा और खासतौर से चुनाव के वक्त में
वह तो सीधे कह सकता है हम चुनाव कराने में व्यस्त थे दो हफ्ते रुक जाइए आपको यही जवाब मिलेगा
कोई बंद लिफाफा आपको दिखाई नहीं देगा
और इन इंतजार कीजिए कि दो हज़ार चौबिस के लोकसभा चुनाव से पहले कम से कम लिफाफा तो आ जाए
और मजेदार बात यह है कि हर चुनाव के वक्त इलेक्टोरल बॉन्ड की दुकान खुल जाती और संयोग है कि इन पांच राज्यों के चुनाव से ठीक पहले अभी तक इलेक्टोरल बॉन्ड की दुकान नहीं खुली
वह जैसे ही खुलेगी एक झटके में उसकी शुरुआत शुरुआती एक हजार करोड़ से ऊपर से होने लगती है तो आप क्या करेंगे
लेकिन क्या इसका मतलब यह है इसलिए बॉन्ड की रफ्तार इस दौर में कम हो गई क्योंकि पांच राज्यों के चुनाव परिणाम बीजेपी को लगने लगा कि उसके अनुकूल नहीं होंगे
और यह परसेप्शन और मैसेज खुले तौर पर बन चुका है तो क्यों इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए दूसरी पॉलिटिकल पार्टीज की कोई भी फंडिंग किसी भी रूप में हो उन राज्यों में भी जहां पर कांग्रेस जीत जाए या बीजेपी हार जाए तो उसको ही रोक दिया जाए या फिर इस दौर में सत्ता के सामने सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि अभिलक्षण
कमीशन से जब रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने मांगी है तो उसको बार रोके कैसे
क्योंकि इस दौर के भीतर का जो एक सच और भी जरा समझने की कोशिश कीजिए खुद हमारी इकनॉमी अगर आप अप्रैल से सितंबर तक कि जो तिमाही के आंकड़े आते हैं वह बहुत साफ बताते हैं कि हम इस दौर में हमारे एक कोर सेक्टर जो है जिसमें कोल है इलेक्ट्रिसिटी है
स्टील है नेचुरल गैस है सीमेंट है क्रूड आयल है फर्टिलाइजर मैन्युफैक्चरिंग रिफाइनरी प्रोडक्ट है वह एक झटके में कम हो गया है अगस्त के महीने में पॉइंट फाइव था इस दौर में एक प्वाइंट वन पर आ गया है
और जबकि एक साल पहले भी वह एक प्वाइंट थ्री था इस दौर में तो हमारा कोर सेक्टर नीचे राजकोषीय घाटा जो है
सितंबर में थर्टी नाइन प्वाइंट थ्री परसेंट हो गया जो होना चाहिए था ताकि फाइव प्वाइंट पर से
यह मैसेज किया है कि हमारा रेवेन्यू इस दौर में टैक्स के जरिए कमाई सब शानदार हो रही है हो रही है जीएसटी कलेक्शन अपरम्पार है लेकिन जो खर्च है वह पढ़ चुका है
इस देश को चलाने के लिए फंडिंग चाहिए कर्ज चाहिए इसके अलावा कोई रास्ता नहीं और जो कर्ज देगा वह उसके एवज में बहुत कुछ चाहेगा देश के भीतर कॉर्पोरेट चाहता है और बाहर वर्ल्ड बैंक चाहता है उनकी नीतियां इस देश में लागू हो जाए लेकिन सरकार उन्हीं नीतियों को जन कल्याणकारी नीतियों में तब्दील कर अपने हक
में वोट लेने की दिशा में बढ़ने से छूटती नहीं है तो आखिर के तीन बड़े सवाल क्या वाकई इस देश की जनता को कभी पता नहीं चलेगा कि किस कॉरपोरेट ने किस पॉलिटिकल पार्टी को कितनी रकम दी
क्या हुआ कई सुप्रीम कोर्ट जो इलेक्शन कमीशन से मांग रहा है सूचीबद्ध दो हफ्ते में आ जाएगी या दो हज़ार चौबिस का चुनाव बीत जायेगा फिर भी नहीं आएगी
और तीसरा सवाल क्या वाकई इस देश के भीतर में फंडिंग ही वो अकेला हथियार है जिसके जरिए राजनीतिक सत्ता की सत्ता बनी रहे और बहुत इस एक कॉर्पोरेट का इसीलिए सरकार के साथ लग जाता है और वह नहीं चाहती है कि यह सरकार चुनाव
हारे तो दूसरे जगह वो रास्ते बंद कर देती है और उसी सत्ता के साथ खड़ी रहती है जहां पर उसका सब कुछ स्टेक पर लगा हुआ है क्या यह नेक्सस खुले तौर पर इस देश में काम कर रहा है
जी कर रहा है बहुत बहुत शुक्रिया
बहुत बहुत शुक्रिया


7/11 मुंबई विस्फोट: यदि सभी 12 निर्दोष थे, तो दोषी कौन ❓

सैयद नदीम द्वारा . 11 जुलाई, 2006 को, सिर्फ़ 11 भयावह मिनटों में, मुंबई तहस-नहस हो गई। शाम 6:24 से 6:36 बजे के बीच लोकल ट्रेनों ...