दोस्तों नमस्कार यह देश फंडिंग से चलता है
इस देश की सरकार फंडिंग से चलती है
इस देश में चुनाव फंडिंग के आसरे ही जीते और हरा जाते हैं
तो क्या इस देश के भीतर की फंडिंग का कच्चा चिट्ठा अगर इस देश के लोगों के सामने आ जाए
तो इस देश में कॉर्पोरेट किस तरीके से काम करते हैं वह आपके सामने होगा
या फिर इस देश में सरकार की आर्थिक नीतियां कैसे किसी कॉरपोरेट के नेटवर्थ को बढ़ाती है वह भी आपके सामने होगा या फिर इन दोनों से हटकर इस देश के भीतर में फंडिंग की कितनी बड़ी पूंजी और उसकी एवज में इस देश के खनिज संसाधनों से लेकर
इस देश की पूंजी को कितने कौड़ियों के मोल कॉर्पोरेट के हवाले कर दिया गया क्या वह सब कुछ भी इस दौर में सामने आ सकता है
माननीय या न माने लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बढ़ रहे के छत्ते में हाथ डाल दिया है
इलेक्ट्रॉल बॉल से शुरू हुआ मामला सिर्फ इलेक्टोरल बॉन्ड तक थमेगा या फिर इलेक्टोरल बॉन्ड की जिस लिस्ट को सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्शन कमीशन से कहा है जाइए पूरी लिस्ट बनाइए और दो हफ्ते के भीतर हमारे सामने लाकर बंद लिफाफे में दीजिए
अभी हम इस देश की जनता को नहीं बताएंगे कि किस कॉर्पोरेट ने कितना दिया तो क्या यह एक सहूलियत का रास्ता है जिससे चुनाव आयोग दो हज़ार चौबिस के चुनाव से पहले कम से कम उस लिस्ट को सुप्रीम कोर्ट के सामने तो सौंप दें क्योंकि सुप्रीम कोर्ट और दो
दूसरी तरफ चुनाव आयोग या समझना होगा इस देश के भीतर में चीफ जस्टिस की नियुक्ति मौजूदा सरकार नहीं करती है
लेकिन इस देश में चुनाव आयुक्त कौन होगा इस की नियुक्ति मौजूदा सरकार करती है
और इस देश में जिसके पास सारी जानकारी है वह एसबीआई भी सरकार के अधीन है
और सुप्रीम कोर्ट ने दो दिनों तक तमाम बातें सुनने के बाद जब इलेक्शन कमीशन से या कहा कि जिन्होंने भी डोनेशन दिया जो इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए हो जो भी इस दौर में फंडिंग का कच्चा चिट्ठा सितंबर के महीने तक है वह पूरा का पूरा सुप्रीम कोर्ट
को आप सौंपी है तो क्या सुप्रीम कोर्ट का यह पहला कदम है
क्योंकि उन्होंने इस दौर में साफ तौर पर एक लकीर खींच दी कि जनता को पता नहीं चलेगा
जबकि लोकतंत्र और संविधान की व्याख्या करते वक्त सुप्रीम कोर्ट को भी पता है कि इस देश के भीतर में जनता को इस देश की राजनीति राजनीति को मिलने वाली फंडिंग और सरकार द्वारा जो कॉर्पोरेट को दिया जाता है उसकी पूरी जानकारी इस देश की जनता
को होनी चाहिए और संयोग से सारे तार इस दौर में फंडिंग से ही जाकर जुड़ गए
तो क्या वाकई मोदी सरकार इस दौर में चुनाव आयोग से कहेगी कि दो हफ्ते के भीतर जो सुप्रीम कोर्ट ने मांगा है उसे आप सौंप दीजिए उस लिस्ट की तैयारी कर लीजिए तो इस देश के भीतर में अभी तक जो कॉरपोरेट्स के नेटवर्थ पढ़ते थे अगर उसमें टॉप दस
या बीस कॉर्पोरेट का जिक्र कर दिया जाए तो उनके नेटवर्थ दो हज़ार चौदह से पहले इस रफ्तार से क्यों नहीं बढ़ रहे थे जबकि इस देश की जीडीपी की रफ्तार उस वक्त कहीं तेज थी
उस दौर में भारत की अपनी इकनॉमी कहीं ज्यादा बड़ी रफ्तार से बढ़ रही थी
और अंतरराष्ट्रीय तौर पर भारत की इकोनॉमिक पॉलिसी को मान्यता दुनिया के तमाम विकसित देश दे रहे थे
लेकिन मौजूदा वक्त में क्या यह सब कुछ छुपा लिया गया और पहली बार एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म की जो पिटीशन सुप्रीम कोर्ट के सामने पहुंची और सुप्रीम कोर्ट ने जिस कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच को बैठाया पांच जजों की बैंच और खुद चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने उसे
की अगुवाई कि क्या ये मैसेज दो दिनों के भीतर निकल चुका है कि अगर इस कच्चे चिट्ठे को सामने ले आया जाए तो इस देश की राजनीतिक सामाजिक आर्थिक परिस्थितियां में एक राजनीतिक बवाल पैदा हो जाएगा हो सकता है
यह बिल्कुल हो सकता है क्योंकि कुछ पन्ने जैसे ही आप दो हज़ार चौदह से पहले का खोलिए का आपको जानकर हैरत होगी कि कॉरपोरेट की ओवरऑल नेटवर्थ जो होती थी दो हज़ार चौदह से पहले उसमें कुछ को आप सरकार उस दौर की कांग्रेस की सरकार के साथ भी खड़े कर दीजिए
तो भी उनके नेटवर्थ की रफ्तार जो रहती थी वह पचास फीसदी के पार जाति नहीं थी
पचास फीसदी कुछ की सवा सौ फीसदी तक की रफ्तार से बढ़ी जरूर है लेकिन ऐवरेज निकाली गार्ड तो पचास फीसदी और वहां भी टॉप पहनती कॉर्पोरेट की नेटवर्थ की रफ्तार का हम जिक्र कर रहे हैं लेकिन मौजूदा वक्त में यानी दो हज़ार चौदह के बाद से इस देश के भीतर में एक
जबरदस्त बदलाव आया आप कल्पना कीजिए कि दो हज़ार चार से दो हज़ार चौदह के बीच जो भी कॉरपोरेट फंडिंग पॉलिटिकल पार्टीज को कुल मिलाकर हुई वहां भी ग्यारह हजार करोड़
और दो हज़ार चौदह के बाद दो हज़ार तेईस तक जो कॉरपोरेट फंडिंग सिर्फ बीजेपी के पास आई वह भी ग्यारह हजार करोड़ से ज्यादा की थी
एक तरफ समूचे राजनैतिक दलों का खाका दूसरी तरफ सिर्फ बीजेपी का खाता
जो दस साल को अपने बूते बात करने की स्थिति में
तो क्या राजनैतिक तौर पर फंडिंग और फंडिंग के आसरे कॉरपोरेट कर नेटवर्क और कॉर्पोरेट के नेट वर्थ के आसरे इस देश के भीतर
देश की संपत्ति को कौड़ियों के मोल हवाले करते चले जाने की परिस्थितियां और इन्हीं के जरिए अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की इकोनॉमी का बढ़ते हुए दिखाना क्या यही स्थिति है जो एक झटके में अगर इलेक्शन कमीशन उस पूरी लिस्ट को सुप्रीम कोर्ट को सौंपता है
और सुप्रीम कोर्ट इस देश के सामने एक एक करके हर बात को रख देती है जिससे यह पता चले कि किस कॉरपोरेट ने कितना पैसा किस रूप में दिया
तो क्या मौजूदा सरकार का समूचा कच्चा चिटठा इस देश के सामने आ जाएगा और उसी को मौजूदा सरकार छुपाती रही है जिसका जिक्र वह कतई नहीं है क्योंकि अडानी कांड के दौर में यानी इंडियन वकील रिपोर्ट जब फरवरी में आई उसके बाद प्रधानमंत्री की खामी
खुशी हो या सुप्रीम कोर्ट के भीतर भी जो सुनवाई की तारीख हो वह भी क्यों टल गई
यह सवाल तो कोई भी पूछ सकता है जबकि एक तरफ दस से बारह लाख करोड़ का जिक्र जो मैनिपुलेट एशियन हो रहा था शेयर बाजार में इतना बड़ा घपला घोटाला तो इससे पहले कभी नहीं हुआ और देश के प्रधानमंत्री के माथे पर शिकन तक नहीं आई और क्या यही वह वजह है जिसका जिक्र राहुल गांधी गाहे बगाहे करते
चले जाते हैं कि क्यों कौन से रिश्ते किस रूप में रिश्ते अडानी और मोदी के और मोदी की खामोशी इस दौर में अडानी को बल देती है क्या यह सवाल है हमें लगता है आज अडानी प्रकरण से आगे निकली है क्योंकि जब फंडिंग का जिक्र हो रहा है तो हमारी टीम ने उस पर एक रिसर्च किया और रिसर्च के
बाद इस बात की जानकारी दी कि देखिए दस साल में अगर आप अलग अलग दस साल में देखना शुरू करें
इस देश में चुनाव को लेकर तो दो हज़ार चार से दो हज़ार चौदह के बीच में कुल पॉलिटिकल फंडिंग ग्यारह हजार तीन सौ सैंतीस करोड़ की होती है
लेकिन ऐसा नहीं है कि सारी फंडिंग एक झटके में कांग्रेस के पास चली गई उसमें तीन हज़ार तीन सौ तेईस करोड़ कांग्रेस के पास जाती है तो दो हज़ार एक सौ छब्बीस करोड़ बीजेपी के पास जाती और उसके बाद किसी के पास आठ सौ करोड़ गई किसी के पास नौ सौ करोड़ गई किसी के पास पाँच सौ कॉल गई इस रूप में बढती
चली जाती है यानी राजनीति का एक प्लेइंग फील्ड कॉरपोरेट फंडिंग के आसरे बना रहा और इसीलिए उस दौर में कभी भी कॉरपोरेट फंडिंग को लेकर वैसे सवाल नहीं उठे जो इस दौर में उठ रहे हैं इस दौर में इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि जो भी फंडिंग होती है उसका बहत्तर से
अस्सी फीसदी हिस्सा अगर बीजेपी के पास चला जाता है
तो फिर इस देश के भीतर में वह पैसा देने वाले लोग कौन हैं और उसकी एवज में उन्हें क्या मिलता है यह सवाल हर कोई जानना चाहेगा और पूछेगा
इलेक्शन कमीशन के जरिए जो एक बात बीते पांच बरस की निकलकर आई जो उसके सामने तमाम पॉलिटिकल पार्टीज ने अपनी फंडिंग का खाका रखा अगर उसको भी एक क्षण के लिए समझे दो हज़ार सत्रह आठवां का फाइनेंशियल ईयर और दो हज़ार इक्कीस बाईस का फाइनेंशियल ईयर इन पांच बरस के भीतर में बीजेपी
पी को पाँच हज़ार दो सौ बहत्तर करोड़ रुपए फंडिंग के मिले
कांग्रेस को नौ सौ बावन करोड़ मिले
उसके बाद नंबर आता है वाईएसआर कांग्रेस का तीन सौ तीस करोड़ मिले
टीडीपी को एक सौ तेरह करोड़ मिले आम आदमी पार्टी को पचास करोड़ मिले
जनता दल सेकुलर को तैंतालीस करोड़ मिले तो जनता दल यूनाइटेड को चौबिस करोड़ मिले आरजेडी को ढाई करोड़ मिले एनसीपी को चौंसठ करोड़ जरूर मिले और बीजेडी जो लंबे समय से उड़ीसा में है उसको भी छः सौ बाईस को जरूर मिले
लेकिन इसका पहला मैसेज किया है
इसका पहला मैसेज बहुत साफ है कि जो पाँच हज़ार दो सौ बहत्तर करोड़ रुपए बीजेपी को मिलते हैं उसमें से लगभग सत्तर परसेंट अन्य लोगों को दिखाया जाता है यानी पार्टी को नहीं पता है वह पैसा कहां से आया किस रूप में वह पैसा आया उससे ठीक एक बरस पहले
जो कोविड काल था जिसमें मिनिमम पैसा आया उसमें भी बीजेपी के पास एक हज़ार नौ सौ सत्रह करोड़ आया और उसमें एक हज़ार एक सौ इकसठ करोड़ कहां से आया वह अननोन फोर्स दिखलाया गया इसी अननोन सोर्स को जानने के लिए अब
एक्शन कमीशन को कहा गया कि आप उस लिस्ट को बंद लिफाफे में हमें सौंप दी
हो सकता है बंद लिफाफा सुनकर आपके जहन में इस देश की ब्लैक मनी का भी जिक्र घूमने लगा हो दो हज़ार चौदह में जब पहली बार ब्लैक मनी को लेकर मोदी सरकार की पहली कैबिनेट में स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम बनाई गई थी तब भी कहा गया था कि सुप्रीम
कोर्ट को बंद लिफाफे में नाम को सौंपा जाए और अगर याद कीजिएगा तो मनमोहन सिंह के काल में भी बंद लिफाफे में पूरी सूची ब्लैक मनी के लोगों की मानी गई थी लेकिन आज तक यह चीजें सामने आई है
तो हो सकता है अब आपके जहन में पहला सवाल ये हो क्या वाकई इस देश के भीतर में जो कॉरपोरेट फंड करते हैं और बड़ी तादाद में करते हैं क्योंकि हजारों हजार करोड़ रुपया कोई राजनीति में क्यों के कहा अगर उसको लाभ नहीं हो रहा है और लाभ हो रहा है तो उसका नेटवर्क
अर्थ जो पैसा वह फंडिंग में दे रहा है उसकी तुलना में तकरीबन एक सौ पचास गुना की रफ्तार से कैसे बढ़ जाता है इस देश के टॉप पहनती कंपनी को लीजिए और फिर उनके नेटवर्थ का आकलन कीजिए कि दो हज़ार चौदह से पहले उनकी कौन सी स्थिति थी और दो हज़ार
से दो हज़ार तेईस के बीच में वह कहां खड़े हैं और अगर इनके जरिए इनको डिवाइड कर दिया जाए
कि आपने इतना पैसा दिया होगा एक आउटपुट टिकट तरीके से लिस्ट अभी सामने नहीं आई है
लेकिन उस नजरिए से भी कर दिया जाए
तो भी हैरत में होंगे जितना पैसा पॉलिटिकल फंडिंग का पॉलिटिकल पार्टी के पास आया उससे लगभग सौ गुना ज्यादा रफ्तार से अगर नेटवर्थ बढ़ रहा है उन कंपनियों का तो इसके मतलब क्या हमें लगता है इसके लिए आज ये नाम और जोड़ना चाहिए पीएम केयर्स का पीएम केयर
में देने वाली कंपनियां जो सौ करोड़ दो सौ पाँच सौ कौन दे रही थी वह कौन सी कंपनी थी और उन कंपनियों में इतना पैसा देने के बाद भी उनके अपने नेटवर्थ में इजाफा कैसे होता है सरकार की तरफ से उस दौर में और अभी तक उन्हें क्याक्या सुविधा रियायत मिल रही है
सवाल कॉर्पोरेट टैक्स की कमी का नहीं है
जिसके जरिए इस देश को एक लाख चालीस हजार करोड़ का झटका लगा बिल्कुल नहीं है सवाल तो यह है कि जिन बातों की जानकारी इस देश को लोगों को है ही नहीं
और यह जो रोटेशन है पूरा मनी रोटेशन यानी मनी ट्रेल जो है
सामान्य तौर पर हम आप जानने लगे हैं इस दौर में कि ईडी का काम मनी ट्रेल को पकड़ना होता है और तभी वह अदालतों में मामला टिक पाता है कि मनी ट्रेल आपने पकड़ लिया और तीन सौ अड़तीस करोड़ जो दिल्ली के आम आदमी पार्टी को लेकर शराब घोटाले में जिस रकम का जिक्र हुआ तो वहां पर ईडी को कहना
बड़ा सुप्रीम कोर्ट के भीतर हां हमें मनी ट्रेल मिली है
तो इस देश को जानने का हक क्यों नहीं है कि जो मनी ट्रेल कॉर्पोरेट के जरिए फंडिंग के लिए निकलता है और उस फंडिंग को पाने के बाद सत्ता जो उनकी रियायत और राहत का रास्ता बनाती है और इसके जरिए उस कंपनी को जो लाभ होता है वह कंपनी आने वाले वक्त में कैसे दूसरी
जगहों पर अपने बिजनेस को फैलाती है और फिर उसको रोटेट कर आती है या जो पूरी साइकिल है जिसमें ब्लैक मनी मनी लॉन्ड्रिंग सभी का समावेश होता है इसकी जानकारी इस देश को क्यों नहीं मिलनी चाहिए
तो क्या पहले राउंड में यह कहा जा सकता है
कि चुनाव आयोग की इमानदारी का इम्तिहान है
क्या यह कहा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार इलेक्शन कमीशन को कटघरे में खड़ा कर दिया
इलेक्शन कमीशन के सामने मुश्किल यह है कि आखिर खुद उनके लोगों की नियुक्ति तो सरकार करती है और वह सरकार से आज्ञा बिना लिए कैसे काम कर सकती और इस दायरे में अभी एसबीआई को नहीं दिया गया क्योंकि इलेक्टोरल बॉन्ड एसबीआई के जरिए ही बिकता है
सुप्रीम कोर्ट चाहता तो सीधे एसबीआई से मांग सकता था पूरी रिपोर्ट रिजर्व बैंक को कह सकता था पूरी रिपोर्ट दीजिए दो हज़ार अट्ठारह के बाद किस किसको कितना किस किसने बॉन्ड लिया और किस किसने दिया है किसको को उसमें तो जिक्र होता ये बॉन्ड इसके नाम पर हम खरीद रहे हैं उसमें पार्टी का नाम लिखना पड़ता है
बहुत छोटी रकम है दूसरी पॉलिटिकल पार्टीज की लेकिन दूसरी पॉलिटिकल पार्टीज भी जब सत्ता में होती है तो वह भी अपने राज्य में जो उसके हक में आता है वहां पर वो राहत रियायत उन
दस लिस्ट को कॉर्पोरेट को देती जरूर है क्योंकि कोई भी मुफ्त में इस देश की राजनीति में पैसा लगाना नहीं चाहेगा और उसकी एवज में उसे कुछ मिल नहीं पा रहा है वह यह सोचकर तो पैसा दान नहीं देगा कि लोकतंत्र आ गया डेमोक्रेसी लौट आएगी अब नफरत की बात नहीं होगी अब संविधान के जरिए दी
चलेगा रूल ऑफ लॉ होगा पार्लियामेंट अपने तौर पर सुप्रीम कोर्ट का कहा मान लेगी बड़े मुश्किल सवाल है यह खासतौर से तब जब इस देश में फेडरल स्ट्रक्चर को लेकर इस देश के गैर बीजेपी शासित राज्य सीधे केंद्र से टकरा रहे हो तो पार्टी इस देश में कोई दान दक्षिणा उस
लोकतंत्र की खातिर देगा जिस लोकतंत्र के भीतर चुनाव के वक्त ही सबसे ज्यादा पैसा दिया लिया जाता है और इसका खुला आरोप इस देश में हर पॉलिटिकल पार्टी दूसरी पॉलिटिकल पार्टी पर लगाती है और प्राइवेट तौर पर चाहे वह एडीआर हो या इलेक्शन वाच अपनी रिपोर्ट में जिक्र कर पाए और इलेक्शन कमीशन भी यह कह
ने से नहीं कतराता है कि देखिए हमने इतना रुपया कहीं चालीस लाख का ही सत्तर लाख का जिक्र किया था एक उम्मीदवार खर्च करेगा लेकिन यहां तो उससे करीब
कितने गुने ये बोल पाना बड़ा मुश्किल है क्योंकि अगर सत्तर लाख को आप सात करोड़ कहेंगे प्रतीक कॉन्फ्रेंसिंग तो हो सकता है वह भी कम पड़ जाए जिसका जिक्र इस दौर में भूपेश बघेल खुलकर कह रहे हैं कि दरअसल मिनिमम हर कांस्टेंसी के भीतर जितना पैसा लाकर फूंका जा रहा है वह दस
गुनाह नहीं है उससे कई गुना ज्यादा यह मैसेज किया
मैसेज बहुत साफ है इस देश के भीतर में की जो फंडिंग का पूरा खेल है वह ब्लैक मनी पर टिका हुआ है व मनी लॉन्ड्रिंग पर टिका हुआ है वह हवाला पर टिका हुआ है वो सहयोग से इन सारी चीजों को लेकर इस देश की उस इकोनॉमिक पॉलिसी से जाकर टिक गया है जिसके जरिए इस देश
के उन कॉरपोरेट्स को राहत रियायत मिले जो फंडिंग कर रही हो
क्योंकि एक डाटा हमारे टीम ने और भी निकाला और इस बात की जानकारी उन्होंने बोले बताई कि कि इतनी बड़ी तादाद में अज्ञात चोर से जो पैसा आता है अननोन शोर से छह साल में बीजेपी ने दिखलाया कि उसके पास दस हजार एक सौ बाईस करोड़ रुपए अननोन शोर से पैसे आ गए
वो कुछ नहीं कर सकता था उसके पास कोई जानकारी नहीं क्या यह संभव है
दस हजार करोड़ रुपए शोर से बीजेपी के पास आ गए कांग्रेस ने भी कहा एक हज़ार पाँच सौ सैंतालीस कोड हमारे पास भी आ गए ममता बनर्जी ने भी कहा आठ सौ तेईस करोड़ हमारे पास भी आ गए नवीन पटनायक ने भी कहा हमारे पास भी छः सौ बाईस करोड़ आ गए स्टालिन ने भी कहा चार सौ इकतीस
थोडा आ गए और केसीआर उन्होंने भी कहा चार सौ इकतीस को हमारे पास भी आ गए दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने भी का एक सौ तिरासी करोड़ हमारे पास भी आ गए पैमाना देखिए हर की ताकत समझिए हर की ताकत फंडिंग को पाने की और फंडिंग की एवज में राहत रियायत देने की कितनी
बड़ी हो सकती है उसका अंदाजा इसी से लग जाता है क्यों कांग्रेस की तुलना में कॉर्पोरेट की नजर में दस गुना ज्यादा ताकतवर इस दौर में बोधि सकता है
क्योंकि उसके पास एक हजार करोड़ रुपया अज्ञात चोर से आता है छह बरस में तो बीजेपी के पास दस हजार करोड़ रुपए आ जाता है यह कौन सी परिस्थितियां इस देश के भीतर में क्या इस पर उंगली रख दी गई है क्या वाकई दो हफ्ते के भीतर इलेक्शन कमीशन रिपोर्ट दे देगी
क्योंकि इस देश के भीतर सीएसीपी फेल हो जाती है अडानी पर रिपोर्ट देने में वक्त दर वक्त लगते चला जाता और उसके बाद भी बहुत चीजें अधूरी है इस वजह से सुप्रीम कोर्ट सुनवाई नहीं कर पाता है
इस देश के भीतर में सीबीआई रिपोर्ट देने में बहुत देर कर देती है ईडी रिपोर्ट देने में देर कर देती है तो फिर इलेक्शन कमीशन क्यों नहीं देयर करेगा और खासतौर से चुनाव के वक्त में
वह तो सीधे कह सकता है हम चुनाव कराने में व्यस्त थे दो हफ्ते रुक जाइए आपको यही जवाब मिलेगा
कोई बंद लिफाफा आपको दिखाई नहीं देगा
और इन इंतजार कीजिए कि दो हज़ार चौबिस के लोकसभा चुनाव से पहले कम से कम लिफाफा तो आ जाए
और मजेदार बात यह है कि हर चुनाव के वक्त इलेक्टोरल बॉन्ड की दुकान खुल जाती और संयोग है कि इन पांच राज्यों के चुनाव से ठीक पहले अभी तक इलेक्टोरल बॉन्ड की दुकान नहीं खुली
वह जैसे ही खुलेगी एक झटके में उसकी शुरुआत शुरुआती एक हजार करोड़ से ऊपर से होने लगती है तो आप क्या करेंगे
लेकिन क्या इसका मतलब यह है इसलिए बॉन्ड की रफ्तार इस दौर में कम हो गई क्योंकि पांच राज्यों के चुनाव परिणाम बीजेपी को लगने लगा कि उसके अनुकूल नहीं होंगे
और यह परसेप्शन और मैसेज खुले तौर पर बन चुका है तो क्यों इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए दूसरी पॉलिटिकल पार्टीज की कोई भी फंडिंग किसी भी रूप में हो उन राज्यों में भी जहां पर कांग्रेस जीत जाए या बीजेपी हार जाए तो उसको ही रोक दिया जाए या फिर इस दौर में सत्ता के सामने सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि अभिलक्षण
कमीशन से जब रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने मांगी है तो उसको बार रोके कैसे
क्योंकि इस दौर के भीतर का जो एक सच और भी जरा समझने की कोशिश कीजिए खुद हमारी इकनॉमी अगर आप अप्रैल से सितंबर तक कि जो तिमाही के आंकड़े आते हैं वह बहुत साफ बताते हैं कि हम इस दौर में हमारे एक कोर सेक्टर जो है जिसमें कोल है इलेक्ट्रिसिटी है
स्टील है नेचुरल गैस है सीमेंट है क्रूड आयल है फर्टिलाइजर मैन्युफैक्चरिंग रिफाइनरी प्रोडक्ट है वह एक झटके में कम हो गया है अगस्त के महीने में पॉइंट फाइव था इस दौर में एक प्वाइंट वन पर आ गया है
और जबकि एक साल पहले भी वह एक प्वाइंट थ्री था इस दौर में तो हमारा कोर सेक्टर नीचे राजकोषीय घाटा जो है
सितंबर में थर्टी नाइन प्वाइंट थ्री परसेंट हो गया जो होना चाहिए था ताकि फाइव प्वाइंट पर से
यह मैसेज किया है कि हमारा रेवेन्यू इस दौर में टैक्स के जरिए कमाई सब शानदार हो रही है हो रही है जीएसटी कलेक्शन अपरम्पार है लेकिन जो खर्च है वह पढ़ चुका है
इस देश को चलाने के लिए फंडिंग चाहिए कर्ज चाहिए इसके अलावा कोई रास्ता नहीं और जो कर्ज देगा वह उसके एवज में बहुत कुछ चाहेगा देश के भीतर कॉर्पोरेट चाहता है और बाहर वर्ल्ड बैंक चाहता है उनकी नीतियां इस देश में लागू हो जाए लेकिन सरकार उन्हीं नीतियों को जन कल्याणकारी नीतियों में तब्दील कर अपने हक
में वोट लेने की दिशा में बढ़ने से छूटती नहीं है तो आखिर के तीन बड़े सवाल क्या वाकई इस देश की जनता को कभी पता नहीं चलेगा कि किस कॉरपोरेट ने किस पॉलिटिकल पार्टी को कितनी रकम दी
क्या हुआ कई सुप्रीम कोर्ट जो इलेक्शन कमीशन से मांग रहा है सूचीबद्ध दो हफ्ते में आ जाएगी या दो हज़ार चौबिस का चुनाव बीत जायेगा फिर भी नहीं आएगी
और तीसरा सवाल क्या वाकई इस देश के भीतर में फंडिंग ही वो अकेला हथियार है जिसके जरिए राजनीतिक सत्ता की सत्ता बनी रहे और बहुत इस एक कॉर्पोरेट का इसीलिए सरकार के साथ लग जाता है और वह नहीं चाहती है कि यह सरकार चुनाव
हारे तो दूसरे जगह वो रास्ते बंद कर देती है और उसी सत्ता के साथ खड़ी रहती है जहां पर उसका सब कुछ स्टेक पर लगा हुआ है क्या यह नेक्सस खुले तौर पर इस देश में काम कर रहा है
जी कर रहा है बहुत बहुत शुक्रिया
बहुत बहुत शुक्रिया