प्रस्तावना
गुलामी की ज़ंजीर – एक आत्ममंथन
भारतीय मुसलमानों की राजनीति की यात्रा केवल भागीदारी की कहानी नहीं है, यह सोच और समझ के बीच उलझी हुई एक जटिल परछाईं है। यह पुस्तक एक आईना है—उस समाज के लिए, जिसने अपने भविष्य की लड़ाई बिना रणनीति, बिना नेतृत्व और बिना दिशा के लड़ी। आज जब इतिहास हमारे सामने बेबाक खड़ा है, तब यह आवश्यक हो गया है कि हम अपने अतीत के कदमों की गूंज को फिर से सुनें।
ब्रिटिश शासनकाल के दौरान, हमने समझे बिना राजनीति के पीछे भागना शुरू किया। उस समय यह दौड़ आज़ादी की लगती थी, पर हकीकत में हम गुलामी की जंजीरों की ओर कदम बढ़ा रहे थे। आंखों पर बंधी पट्टी और पैरों में बंधी बेड़ियाँ हमारी चेतना की विफलता का प्रतीक थीं। हमने सत्ता को साधन मान लिया, लेकिन साध्य क्या था – यह सोचने का समय ही नहीं दिया गया।
आज़ादी के बाद भी हालात बदले नहीं। हमने आत्मविश्लेषण की जगह भावनाओं के आधार पर राजनीतिक निर्णय लिए। बिना आयोजन, बिना वैचारिक संगठन और बिना दीर्घकालीन रणनीति के राजनीति में भाग लेना, खुद ही अपने पैरों की जंजीर को कसना था। हमने सोचा हम आज़ाद हैं, लेकिन हमारे विचार, हमारी भागीदारी और हमारी दिशा अब भी गुलामी के मनोविज्ञान में जकड़ी हुई थी।
सबसे डरावनी स्थिति आज है – जब हम ज़ंजीरों को पहचानने के बाद भी, उन्हें गले का हार बनाकर पहन रहे हैं। यह स्वेच्छा की गुलामी आने वाली नस्लों की आंखों पर अज्ञानता की पट्टी चढ़ा रही है। हमने जिन्हें नेतृत्व माना, उन्होंने न हमारी आत्मा को आवाज़ दी और न ज़मीनी हक़ीक़तों को समझने की कोशिश की। अब ज़रूरत है ज़ंजीरें तोड़ने की, व्यवस्था को समझने की, और वैकल्पिक सोच विकसित करने की।
यह पुस्तक एक दस्तावेज़ है – इतिहास के उन पलों का, जहाँ हमने ठोकर खाई और आगे बढ़े बिना यह देखे कि रास्ता कैसा है। यह प्रयास किसी दल, संगठन या व्यक्ति की आलोचना नहीं, बल्कि एक सामाजिक चेतना का प्रयास है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए ज़िम्मेदारी का बीज बोना चाहता है।
गुलामी की ज़ंजीर कोई भूतकाल की वस्तु नहीं, यह एक मानसिक स्थिति है – और जब तक हम इससे बाहर नहीं निकलते, हम खुद ही अपने गले और पैरों में लोहे की जंजीरें डालते रहेंगे।
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बिलकुल। यह रहा आपकी पुस्तक "गुलामी की ज़ंजीर" के दूसरे पन्ने के लिए लेखक परिचय और उद्देश्य का संक्षिप्त और प्रभावशाली पाठ:
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✍️ लेखक परिचय : हुजैफा डेडिकेटेड
एक सामाजिक चिंतक, जन जागरूकता में सक्रिय कार्यकर्ता और वैकल्पिक राजनीति, ग्राम स्वराज व संवैधानिक चेतना को लेकर समर्पित आवाज़।
आपने मुस्लिम समाज के भीतर वैचारिक जागरूकता, सामाजिक संगठन और राजनीतिक आत्ममंथन को लेकर कई मंचों और आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई है।
"सोचना, समझना और बदलना"
इन्हीं तीन मूल भावों को लेकर यह लेखनी आगे बढ़ती है।
🎯 पुस्तक का उद्देश्य
यह पुस्तक किसी दल या व्यक्ति के विरोध में नहीं, बल्कि मुस्लिम समाज के राजनीतिक भ्रम, अविचारित भागीदारी, और गुलामी की मानसिकता को सामने लाने का एक प्रयास है।
इसका उद्देश्य है:
⚫ अतीत की गलतियों से सबक लेना,
⚫ राजनीतिक भागीदारी के लिए रणनीतिक सोच विकसित करना।
⚫ आने वाली नस्लों को आत्मनिर्भर, विवेकशील और ज़िम्मेदार नागरिक बनाना।
यह एक आत्ममंथन है, ताकि हम जान सकें कि ज़ंजीरें बाहर से नहीं, अक्सर हमारे भीतर से ही शुरू होती हैं।
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कायनात के मालिक रब्बे करीम के नाम से, जो रहमत और हिकमत वाला है।
हम दुआ करते हैं कि यह लेखन हम सभी के लिए सलामती, समझ और सुधार का माध्यम बने।
इसी नियत से, हम इस यात्रा की शुरुआत करते हैं…
आपके हाथों में जो पुस्तक है, वह किसी व्यक्ति, दल या विचारधारा के विरुद्ध लिखित आरोप-पत्र नहीं है, अपितु यह एक सामूहिक आत्ममंथन का दस्तावेज है। यह उन असहज प्रश्नों को उठाने का एक विनम्र प्रयास है, जिन्हें समय, सत्ता और समाज ने वर्षों से दबाए रखा है।
"गुलामी की ज़ंजीर" शीर्षक वस्तुतः प्रतीक है – उस मानसिक, वैचारिक और राजनीतिक अवस्था का, जिसमें भारतीय मुसलमान एक लम्बे अरसे से उलझा रहा है। यह पुस्तक उन विचारधारात्मक जंजीरों को छूने का साहस करती है, जिन्हें अक्सर श्रद्धा या भ्रम के आवरण में ढक दिया गया है।
इस ग्रंथ का उद्देश्य न तो किसी को दोषी ठहराना है, न किसी पर आक्षेप करना, वरन् इसका प्रमुख उद्देश्य है:
समाज को उसकी ऐतिहासिक राजनीतिक यात्रा के बिंदुओं से परिचित कराना,
वर्तमान भागीदारी की प्रकृति और परिणामों पर विचार करना,
तथा भावी दिशा के लिए विवेकशील चिंतन को आमंत्रित करना।
आज जब सूचना और प्रचार के शोर में आत्म-चिंतन का स्वर कहीं गुम हो गया है, तब यह आवश्यक हो गया है कि हम स्वयं से, अपने समाज से और अपनी राजनीतिक यात्रा से कुछ बुनियादी प्रश्न करें। यह पुस्तक उन्हीं प्रश्नों की एक श्रृंखला है – साक्ष्य, संदर्भ और स्वानुभव के साथ।
यह कृति किसी निष्कर्ष को थोपती नहीं, बल्कि विचार का बीज बोती है।
हमारी आशा है कि यह बीज, आपके चिंतन की भूमि पर पड़कर संवाद और बदलाव के वृक्ष में परिवर्तित होगा।