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Sunday, 20 July 2025

तालमेल और तामीर ।




बिलकुल, आपने इंसान के सामाजिक और आध्यात्मिक विकास की एक गहरी और महत्वपूर्ण बुनियाद रखी है। इसी विचार को विस्तार से इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है:


तालमेल और तामीर: एक बेहतर इंसान और समाज की ओर

इंसान जब अपनी समस्याओं का समाधान तलाशता है और एक बेहतर समाज के निर्माण की ओर बढ़ता है, तो वह अकेले नहीं चल सकता। उसकी राह तब ही मजबूत होती है जब जीवन के विभिन्न पहलुओं में संतुलन और तालमेल पैदा होता है। यह तालमेल केवल बाहर से नहीं, भीतर से भी जरूरी है — समय, शरीर और सोच के स्तर पर।

1. समय का तालमेल (Time Harmony):

हर काम का एक उचित समय होता है। यदि हम समय को पहचानकर, उसकी अहमियत को समझकर चलें, तो हमारी मेहनत और नियत में असर पैदा होता है। बिना समय की समझ के कोई भी योजना स्थायी नहीं बन सकती।

2. शारीरिक या भौतिक तालमेल (Physical Harmony):

एक स्वस्थ शरीर ही स्वस्थ निर्णयों की नींव बनता है। जीवन की दौड़ में तन का संतुलन, आराम और मेहनत का तालमेल जरूरी है। शरीर की क्षमताओं को जानना और उनका सही उपयोग करना, समाज में योगदान देने की पहली शर्त है।

3. बौद्धिक और वैचारिक तालमेल (Intellectual Harmony):

सोच का तालमेल — खुद के साथ, अपने समाज के साथ और उस सच्चाई के साथ जो हर युग में एक सी रहती है — इंसान को रास्ता दिखाता है। बौद्धिक तालमेल का अर्थ है समझदारी, परिपक्वता और दूसरों के दृष्टिकोण को समझने की क्षमता।


इन तीनों प्रकार के तालमेल के बाद इंसान को चाहिए कि वह व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से आगे बढ़े — यानी अपनी जिम्मेदारियों और भूमिका को समझे, और खुद को उस रास्ते पर ले जाए जो उसे आत्म-सुधार से सामाजिक-सुधार तक पहुंचाता है।

परंतु यह यात्रा अधूरी है अगर उसमें एक केंद्र नहीं हो — एक बुनियाद नहीं हो।

वह केंद्र होना चाहिए:
"क़यामत के मालिक की रज़ा (ख़ुशनूदी)"
यानी वो दिशा जिसमें हमारा हर तालमेल, हर निर्णय, हर संघर्ष अल्लाह की रज़ा के लिये हो। यही वह मकसद है जो इंसान के प्रयासों को नफ़्स (स्वार्थ) से ऊपर उठाता है और उसे खुदगर्ज़ी से निकालकर इंसानियत की सच्ची सेवा की ओर ले जाता है।

जब इंसान का हर तालमेल — समय, शरीर और सोच — अल्लाह की रज़ा से जुड़ जाता है, तो वो फितरत के साथ चलता है, वो इंसाफ़ करता है, वो अमन लाता है और वो समाज के लिये रहमत बनता है।


नतीजा:

"तालमेल तब रहमत बनता है जब उसका मकसद खुदा की रज़ा हो।
वर्ना वही ताक़त, नफ़्स की गिरफ्त में आकर फसाद का जरिया बन जाती है।"



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