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Saturday, 5 July 2025

QURAN VS Constitution


*"कुरआन बनाम संविधान नहीं, सवाल की बुनियाद ही गलत है"*

*यह लेख थोड़ा लंबा हो सकता है, लेकिन इसे ज़रूर पढ़ें।* समझें, सोचें और अपने कीमती वक़्त से कुछ पल इस साजिश को समझने में लगाएँ, क्योंकि बात सिर्फ जवाब देने की नहीं, *अपनी पहचान, ईमान और सोच की हिफ़ाजत की है।*

✒️ *Huzaifa Dedicated* 
       Founder: `SAF Team`
       Date : 05 Jul 2025

*क़ुरआन बनाम मानव विधान नहीं – बल्कि नफरत के एजेंडे का पर्दाफाश....*


   ▪️सवाल के पीछे की साजिश, आज भारत में एक विशेष सोच रखने वाले, मीडिया और सोशल मीडिया के ज़रिये बार-बार एक सवाल उछाल रहे हैं, *"क़ुरआन पहले या संविधान❓"*
ये सवाल सतही नहीं है, बल्कि एक गहरी साजिश का हिस्सा है। यह आम भारतीय मुसलमान को मानसिक तौर पर तोड़ने, *उसे बार-बार 'देशभक्ति' का सबूत देने पर मजबूर करने और उसके ईमान के भीतर संदेह पैदा करने की चाल है।*

 *क़ुरआन बनाम मानव विधान:* तुलना की बेबुनियाद, क़ुरआन मुसलमान के लिए अल्लाह की किताब है, जो हिदायत और हुक्म की आखिरी और अंतिम किताब है।
*जबकि संविधान, एक मानव द्वारा बनाई गई व्यवस्था है, जिसे समय और सत्ता के अनुसार बदला भी जाता है।*

इस मानव विधान में भले ही 'समानता', 'स्वतंत्रता', 'न्याय' जैसे शब्द लिखे गए हों, लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल अलग है। *इस व्यवस्था में शपथ या गवाही लेने वाले लोग सत्ता और पद के हिस्सेदार होते हैं,* आम जनता का कोई सीधा संबंध इस विधिक प्रणाली से नहीं है।

`मुसलमानों की तो बड़ी आबादी आज भी इस 'मानव विधान' और इसकी कार्यप्रणाली से 1% भी परिचित नहीं है।`

फिर यह सवाल क्यों कि *"संविधान को पहले मानते हो या कुरान को❓"*


संविधान पर ‘ईमान’ जैसी भाषा की असलियत, लोकतंत्र में नागरिकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे संविधान का पालन करें, लेकिन किसी भी कानून में यह नहीं लिखा कि *"संविधान को ईमान मानो"।*

जबकि मुसलमान के लिए क़ुरआन, ईमान का हिस्सा है।

> ये फर्क बुनियादी है।
संविधान मानव सरजित विधि है, जिसे बदला जा सकता है,
क़ुरआन अल्लाह की हिदायत है, जिसे बदला नहीं जा सकता।

*इसलिए मुसलमान की प्राथमिकता और श्रद्धा क़ुरआन से है *और यही उसका अधिकार है।

🟠 *"हां, मुसलमान कुरआन को मानता है, लेकिन क्या वाक़ई वह आज कुरआन की मानता भी है❓"*

📌 *मौलाना मदनी और 'दो आंखों' का तर्क,* कुछ धार्मिक नेता जैसे मौलाना महमूद मदनी ने इस मीडिया की बहस के जवाब में कहा था, *“क़ुरआन और संविधान हमारी दो आंखें हैं।”* यह तर्क संतुलन की कोशिश हो सकता है, लेकिन हकीकत में यह एक कमजोर रक्षात्मक सोच है।

*इंसान चश्मा बना सकता है, लेकिन आंखें नहीं बना सकता।* उसी तरह इंसान कानून बना सकता है (मानव विधान), लेकिन हिदायत नहीं बना सकता, इसलिए क़ुरआन और मानव विधान को एक ही स्तर पर रखना एक बौद्धिक आत्मसमर्पण है।


*इस्लामोफोबिक हमला और 'ईमान' का अपहरण* जो लोग बार-बार मुसलमानों से 'संविधान बनाम क़ुरआन' का सवाल पूछते हैं, *उनके मन में न तो संविधान के लिए श्रद्धा होती है और न ही लोकतंत्र की परवाह।* वे तो संविधान के नाम पर एक एजेंडा चला रहे हैं। ताकि मुसलमान हमेशा खुद को संदिग्ध माने। ताकि उसे 'देशभक्ति' का सर्टिफिकेट लेने की आदत डल जाए । *ताकि असली मुद्दों (बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, लोकतांत्रिक व्यवस्था और पतन) से ध्यान हट जाए।

> जब किसी हिंदू से नहीं पूछा जाता कि “मनुस्मृति या संविधान❓”
जब किसी ब्राह्मण संगठन से नहीं पूछा जाता कि *“हिंदू राष्ट्र या लोकतंत्र❓”*
तो फिर सिर्फ मुसलमान से यह सवाल क्यों❓

⚫ *और अगर यही सवाल इनसे पूछ भी लिए जाएं, तो क्या लोकतंत्र की परिभाषा में इसे जायज़ ठहराया जाएगा❓*


*ईमान की जगह न बदली जा सकती है,* न बदली जानी चाहिए मुसलमान जब *"लाइलाहा इल्लल्लाह"* कहता है, तो वह अल्लाह को मालिक और हुक्म देने वाला मानता है। उसकी जिंदगी का हर हिस्सा न्याय, समाज, राजनीति, नैतिकता क़ुरआन से रोशन होता है। संविधान को वो एक विधिक व्यवस्था मानता है, जिससे देश में अमन रहे, लेकिन ईमान केवल अल्लाह और उसकी किताब पर रखता है।

 *न सवाल जायज़, न चुप्पी मुनासिब* इस तरह के सवाल न केवल मुसलमानों को डराने और शर्मिंदा करने की साजिश हैं, बल्कि देश की लोकतांत्रिक और सामाजिक समझ का अपमान भी हैं।

> देशभक्ति साबित करने की जिम्मेदारी सिर्फ मुसलमान पर क्यों❓
क्या संविधान में यह कहीं लिखा है कि 'देशभक्ति का प्रमाण मुसलमान हर दिन देगा❓"
और क्या इस देश में क़ुरआन मानने वाला संविधान का दुश्मन है❓

📌 *"हरगिज नहीं"*

▪️ `हमारा स्पष्ट तर्क ये है`▪️

✦ कुरआन हमारा ईमान है।
✦ मानव विधान (संविधान) एक सामाजिक सहमति है, उसका पालन हमारी नागरिक जिम्मेदारी है, न कि ईमान का हिस्सा।
✦ ईमान पर कोई सवाल ही नहीं उठ सकता।
✦ और संविधान पर आंख मूंदकर विश्वास जताना कोई मुस्लिम का कर्तव्य नहीं, खासकर जब वही संविधान बार-बार खुद के मूल सिद्धांतों से पीछे हटता दिखता है।


*इस लेख का उद्देश्य किसी संविधान विरोधी भावना को नहीं, बल्कि मुसलमानों पर थोपे जा रहे "ईमान और देशभक्ति" के जाल का पर्दाफाश करना है। अगर यह सवाल आपसे पूछा जाए, तो जवाब दें।*

> "क़ुरआन हमारा ईमान है, रब की हिदायत और इंसाफ़ का आख़िरी हुक्म। संविधान एक मानव रचित दस्तावेज़ है, जिसमें हमारे बुज़ुर्गों की कुर्बानियों की परछाईं तो है, लेकिन इंसाफ़ की वो रौशनी आज धुंधली पड़ गई है।"


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*अंतिम संदेश* हम आने वाले समय में उन ताक़तों और विचारधाराओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे ,जो एक ओर मुसलमानों से संविधान की वफादारी का सबूत मांगते हैं, और दूसरी ओर खुद *संविधान को जलाते हैं,* उसकी आत्मा को रौंदते हैं, और लोकतंत्र का उपहास बनाते हैं।

*ऐसे पाखंडी तत्वों को बेनकाब करना हमारा* सामाजिक, वैचारिक और ऐतिहासिक फर्ज़ है ,*और हम इसे पूरी जिम्मेदारी से निभाएंगे।*


 आर्टिकल ज्यादा से ज्यादा मुस्लिम समाज के युवाओं, बुद्धिजीवियों तक जरूर शेर करे।

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