मुसलमान एक मोहज़्ज़ब कौम है।वह अपने हर काम का प्रूफ़ व दलील रखती है।और कौमों की तरह मनगढंत परम्पराओं को अपना जीवन नही बनाती।राम देव मुसलमानों को मशवरा देने से बेहतर अपने अंदर के कुत्ते को मारो।
जो बिलावजह हर बर्तन में मुँह डालता रहता है।
कितनी अजीब बात है की इस्लाम ने शेर, चील, गिद्ध, सफ़ेद हाथी जैसे जानवरों को खाने की इजाज़त नही दी,वरना इनके विलुप्त होने का इलज़ाम भी हमारे सर आता,यह हमारी खुश नसीबी है की हम मुस्लमान हैं और अल्लाह ने जिन चीजों को खाने का हुक्म दिया,वो हमारे लिए कसीर तादाद में मौजूद है, और हम अल्लाह के नाम के साथ और अल्लाह के हुकुम से ज़िबह करते है हत्या नहीँ करते !
हम सब देखते है की एक कुतिया 6-7-8 बच्चे देती है लेकिन जिंदा कितने रहते है और बकरी भैंस या जिस जानवर की कुर्बानी की जाती है एक बच्चा देती है और रोज़ाना लाखो करोड़ाे ज़िबह करे जाते है उसके बावजूद कम नहीँ पड़ते वो इसलिये कि अल्लाह के नाम के साथ कूर्बान होते है इसलिये इसमे इतना इज़ाफा है
हत्या वो करते है जो इन जानवरों की बलि देते है
ईद उल अज़हा पर एक अंदाजे के मुताबिक 4 ख़रब रुपए से ज्यादा का मवेशियों
का कारोबार हुआ
तकरीबन 23 अरब रुपए कसाईयों ने मज़दूरी के तौर
पर कमाये
3अरब रुपए से ज्यादा चारे का कारोबार हुआ
नतीजा:-
:-गरीबों को मज़दूरी मिली,
:-किसानों का चारा फरोख्त हुआ,
:-देहातियों को मवेशी की अच्छी कीमत मिली,
:-गाड़ियों में जानवर लाने ले जाने वालों ने अरबो का काम किया,
:-और सबसे अहम गरीबों को खाने के लिए महँगा गोश्त मुफ्त में मिला।
खालें कई सौ अरब रुपए में खरीदी गयीं है,चमड़े की फैक्टरियों में काम
करने वाले मज़दूरों को काम मिला,
ये सब पैसा जिस जिस ने कमाया है वो अपनी ज़रूरियात पर जब
खर्च करेगा तो ना जाने कितने खरब का कारोबार दोबारा होगा।
ये कुर्बानी गरीब को सिर्फ गोश्त नही खिलाती बल्कि आगे सारा
साल गरीबों के रोज़गार और मज़दूरी का भी बंदोबस्त होता है।
दुनिया का कोई भी मुल्क करोड़ो अरबो रुपए अमीरों पर टैक्स लगा
कर पैसा गरीबों में बाटना शुरू कर दे तब भी गरीबो और मुल्क को
इतना फ़ायदा नही होगा जितना अल्लाह के इस एक एहकाम को
मानने से पूरे मुल्क को फ़ायदा होता है
इकनॉमिक्स की ज़बान में "सर्कुलेशन ऑफ़ वेल्थ" का एक ऐसा चक्र
शुरू होता है कि जिस का हिसाब लगाने पर अक्ले दंग रह जाती है
अल्लाह हु अकबर
हुजैफा पटेल