बनु उमय्या, बनु अब्बास और खिलाफत-ए-उस्मानिया में मुसलमानो की सब से ताक़तवर और लंबे अरसे तक चलने वाली खिलाफत , तुर्की की खिलाफत-ए-उस्मानिया है। जिसे इंग्लिश में Ottoman Empire कहते हैं।
ये खिलाफत तक़रीबन 600 साल तक क़ायम रही। दूसरी ख़िलाफ़तों में हम देखते हैं कि शुरू के बादशाह ज़हीन और मुदब्बिर होते थे और बाद के बादशाओं में ज़वाल आना शुरू होता था यहां तक कि उसी ज़वाल की वजह से ये ख़िलाफ़तें खत्म हो गई। मगर ख़िलाफ़तें उस्मानिया की ये खूबी है कि इस के इबतादाई खलीफाओं के बाद आने वाले ख़लीफ़ा उनसे भी ज़्यादा ज़हीन हुए और आखिरी वक्त तक उन्होंने एक एक इंच ज़मीन के लिए भी अपनी पूरी ताकत लगा दी। लिहाज़ा इनमें इसके बानी उस्मान खान हैं जिनके नाम से ये उस्मानिया खिलाफत कहलाती है, तो इनमें सुलतान मुहम्मद फातेह भी हैं जिन्होंने पहली बार कुस्तुन्तुनिया फतेह किया, तो सुल्तान बायजीद भी हैं जिनकी फ़ौज योरप में दाखिल होकर फ्रांस तक पहुंच गई। इस खिलाफत की इतनी धाक और दबदबा था कि दुनिया मे कोई मुसलमानो की तरफ आंख उठा कर नही देख सकता था।
बिल आखिर ये अज़ीमुश्शान खिलाफत 1924 में खत्म हुई। साज़िशों का एक जाल बिछाया गया। आस्तीन के सांपो को खड़ा किया गया, ईमान खरीदे गए और मुस्तफा कमाल पाशा के रूप में मग़रिब को वो मोहरा मिल गया। तुर्की में बगावत हुई, फौजी इन्कीलाब लाया गया और खिलाफत खत्म करके तुर्की को एक मॉडर्न और सेक्युलर स्टेट घोषित कर दिया गया। मुस्तफा कमाल अब तुर्की का अता तुर्क ( तुर्कों का बाप, दूसरे मानी में राष्ट्र पिता ) बन गया। इस्लामी लिबास पर पाबंदी लगी, दाढ़ी रखना ममनु क़रार पाया, सूट टाई नया लिबास बन गया, अज़ान अरबी की बजाए तुर्की ज़बान में शुरू करवाई गई। कुल मिलाकर तुर्की का इस्लाम से और मुस्लिम दुनिया से काटने की पूरी स्कीम अमल में लाई गई।
मगर आज तक़रीबन 100 साल के अरसे में तुर्क अवाम ने साबित कर दिया कि इस्लाम से उनका रिश्ता हमेशा क़ायम था। वो सिर्फ इस इंतज़ार में थे के कोई इस्लाम पसंद हुक्मरान उनको मयस्सर आए और तैयब एरदोगान की शक्ल में वो शख्सियत उन्हें मिल गई। आज दोबारा उनकी जीत से साबित हो गया कि अगर अवाम के दिल मे अपने दीन की मुहब्बत हो, और वैसा ही हुक्मरान उनके सामने हो तो जीत उसी की होती है।
ये बात भी ध्यान रहे कि ये इन्कीलाब किसी खून खराबे से नही बल्कि जम्हूरी तरीके से आया है। यानी अक्सरियत ने अपने वोट का इस्तेमाल कर के ये इन्कीलाबी बरपा किया है।
यहां सवाल ये पैदा होता है कि फिर पाकिस्तान और मिस्र में इस तरह तब्दीली क्यों नही आती ?
जबकि तुर्की का तो संविधान भी सेक्युलर है। उसके बावजूद अवाम ये काम कर सकती है तो पाकिस्तान तो इस्लामी जम्हूरीया पाकिस्तान कहलाता है।
साबित ये हुआ कि जब तक अवाम के दिल मे दीन रासिख और नाफ़िज़ न हो तब तक वो हुकूमत में नही आ सकता।
*गोया 13 साल की मक्की मेहनत से ही वो अफ़राद तैयार होते हैं जो मदीना में अपनी रियासत क़ायम करते हैं और फिर पूरे अरब पर गालिब आ जाते है।*
( तारीखी हवाले ; मिल्लत-ए-इस्लामिया की मुख्तसर तारीख, हिस्सा अव्वल, सरवत सौलत साहब )