तारीख़ - 03/10/2018 WhatsApp vair
कभी मुस्लिम लोग इल्म के लिए दीवाने होते थे , बगदाद, बुखारा, कार्डोबा, समरकंद इत्यादि इल्म के गहवारे होते थे। जब मंगोलो ने बगदाद , समरकंद , बुखारा इत्यादि को तबाह और बर्बाद किया तब बड़ी बड़ी लाइब्रेरी थी जो कई दिनों तक जलती रही , जब कई लाइब्रेरी के किताबो को नदियों में फेंका गया तब नदी का पानी रोशनाई के रंगों में तब्दील हो गया, इसलिए चंगेज़ के चार में से तीन हुक्मरानी खानदान के वंसज ने बाद में इस्लाम भी कबूला जबके ग्रेट खान मतलब चीन के हुक्मरान ने इस्लाम नही कबूला लेकिन इसी इल्म के कारण बड़े बड़े ओहदे पर बैठे, मंगोलो की राजधानी बेजिंग का खाका (प्लानिंग) हो या naval expedition या जनरल या माल्यात के निगरान हो सब बड़े बड़े ओहदों पर मुस्लिम बड़ी संख्या पर बैठे होते थे।
इस्लामिक स्पेन के कार्डोबा शहर में ही 100 से ज्यादा लाइब्रेरी थी जिसमे सबसे बड़ी लाइब्रेरी में तब 6 लाख से ज्यादा किताबे थी जब ईसाई यूरोप की सबसे बड़ी लाइब्रेरी में सिर्फ 600 किताबे हुआ करती थी।
आज इल्म से दूर से दूर सा हो गया मुस्लिम तब तबाह बर्बाद सा दिखता है, लेकिन एक खुशआईंन बात है के मुस्लिम समाज और देश फिर से इल्म की कीमत को समझना शुरू कर चुका है , जो भी देश है वहा फिर से इल्म के इदारे खुलने लगे है, इस कारण पिछले कुछेक सालो में टॉप 500 यूनिवर्सिटी के लिस्ट में मुस्लिम देशों के यूनिवर्सिटी की संख्या में हर साल इजाफा हो रहा है, भारत सहित जिन देशों में भी मुस्लिम अल्पसंख्यक है उनकी संख्या भी बढ़ती जा रही है, इतना ही नही वेस्ट के यूनिवर्सिटी खास कर साइंस, आर्किटेक्चर से मुनसलिक यूनिवर्सिटी में भी मुस्लिम तलबा के संख्या में रुनुमा इजाफा देखा जा रहा है।
बढ़ोतरी तो खुशआईंन बात है जिसके रिजल्ट भी आने शुरू हो चुके है लेकिन जो 200-300 साल का पसमंदापन मुस्लिमो के बीच आयी है इसको तेज़ी से पाटने के लिए कोशिश में और तेज़ी लानी पड़ेगी जैसा के ईसाइयो ने 13वी सदी से कोशिश शुरू की 15वी सदी में ये रफ्तार पकड़ा और 17वी सदी में यूरोप अपने इल्म के कारण दुनिया पर गालिब आ गया। आज या कभी भी वही मुआशरा बढता या गालिब आता है जो इल्म की खासियत को तस्लीम करता है चाहे वो ग्रीक हो या रोमन हो, चीन हो या बेबीलोनियन या इंडियन, अरब हो या स्पेन या इंग्लिश या अमेरिका हो या फिर रूसी।
जिसने इल्म के महाज पर फतह पाया वो दुनिया मे सुरखुरु हुई वरना पसपा हो कर पसमंदा बन गयी और धीरे धीरे अपने वक़ार को खो दिया, इल्म ही वो खजाना है जो किसी भी इंसान को आम को खास बनाता है, जो हर शोबे में असर और रशूख को बढ़ाता है। इल्म सबसे बेहतरीन सरमाया है न सिर्फ उस इंसान, खानदान , क़ौम या मुल्क के लिए बल्कि सारे आलम के लिए सरमाया होता है।
आज जो हमलोग हवाईजहाज़ हो या मोबाइल या लैपटॉप हो या फेसबुक या कार, मोटर बाइक, बड़ी बड़ी आलीशान इमारते हो या जो भी इस्तेमाल करते है वो इल्म के सरमाये का रिजल्ट है। किसी और ने इल्म पर सरमाया लगाया और आज सभी इंसान उससे फायदा उठा रहे है।
नबी ए करीम ने फरमाया के
इल्म के चीन भी जाना हो तो चीन चले जाओ
मतलब इल्म के लिए जितनी दूर जाना हो या मशक्कत करना हो करो लेकिन इल्म हासिल करो तभी तो क़ुरान की शुरुवात भी "इकरा" मतलब "पढ़ो" से हुई।
इल्म इंसानियत का सबसे बेहतरीन सरमाया है।
सबक़ फिर पढ़
सदाकत का
अदालत का
शुजाअत का लिया जाऐगा तुझसे काम पूरी दुनिया की इमामत का !
Dr.Muhammad Allama IQBAL
नई तशरीह सुनिए आप लोग हमने कुछ अलग से जोड़ दिया हमने
:-अल्लामा कह रहे है सबक़ फिर पढ़ यानि सबक़ को दोबारा पढ़ जब पहली बार पढा था तो पूरा जज़ीरत उल अरब(दुबई, सऊदी अरब, यमन, मिस्र, शाम) अरब के सारे मुल्क हम मुसलमानों की हुकूमत थी
1/3 यूरोप हमारा था , स्पेन हमारा था
बर ए सगीर ( पाकिस्तान, भारत, बंग्लादेश) हमारा था अफगानिस्तान हमारा था ना जाने कितने जज़ीरे हमारे थे सैकड़ों मुल्क हमारे थे
सदाकत का यानि
सैय्यदना अबी बक़र (रज़िअ) की सीरत को पढ़ो
अदालत का अमीर उल मोमिनीन फारूख़ ए आज़म (रज़ि○) कैसे इन्साफ करते थे
शुजाअत का यानि अली ए मुर्तज़ा(रज़ि○अ) शुजाअत को पढ़ो
और आखिर में अल्लामा कह रहे है लिया जाऐगा तुझसे काम पूरी दुनिया की इमामत का सिर्फ आपके पार्षद के क्षेत्र का नहीं
आपके विधानसभा क्षेत्र का नहीं
आपके शहर का नहीं
आपके प्रदेश का नहीं आपके देश का नहीं बल्कि पूरी दुनिया की इमामत का अगर
उम्मत ए मुस्लिमा के गययूर नौजवानों को दुनिया का इमाम बनना तो आपको चारो खलीफाओं के नक्शेकदम पर चलना होगा
फिर जाके कहीं आप दुनिया के इमाम बनेंगे ।