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Friday, 15 January 2021

क्या ओवैसी आज के जिन्ना हैं ?

वैसे तो ब्लॉक हूं मगर शेयर करने से खुद को रोक नहीं पाया, बढ़िया पोस्ट लिख दी टकलूमल इलाहाबादी ने 
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मेरा सदैव से मानना रहा है कि भारत के मुसलमानों का सबसे अधिक नुकसान , किसी नेहरू , किसी राजीव , किसी नरसिंहराव , किसी बाजपेयी आडवाणी या किसी मोदी ने नहीं बल्कि "मुहम्मद अली जिन्ना" ने किया था जो अविभाज्य भारत के मुसलमानों को बाँट दिया वर्ना इसी अविभाज्य भारत में मुसलमानों की संख्या 80 करोड़ की होती और इसी अविभाज्य भारत में सत्ता की चाभी उनके हाथ में होती।

किसी समूह या वर्ग को कमज़ोर करना हो तो , बहुत सीधा सा फार्मुला है कि उसे बाँट दो , जैसे इस अविभाज्य भारत के मुसलमान 3 हिस्सों में बंट गये।

यह साजिश केवल मुहम्मद अली जिन्ना की नहीं थी , वह तो एक मोहरा या कंधा थे जिन पर बंदूख रख कर तत्कालीन ब्रिटिश सरकार और भारत के नेहरू पटेल ने चलाई थी। मुहम्मद अली जिन्ना की गलती बस इतनी थी कि वह कंधा बन गये और भारत में रह रहे मुसलमानों के लिए हमेशा के लिए मुश्किलें खड़ी कर गये।

मुहम्मद अली जिन्ना भी मात्र 19 साल में इंग्लैंड से वकालत पढ़ कर आए एक सभ्रांत और रईस परिवार से थे , जैसे अपने असदुद्दीन ओवैसी , सभ्रांत परिवार में जन्में ओवैसी ने भी लंदन में ही वकालत की पढ़ाई की और कम उम्र में ही बैरिस्टर की डिग्री प्राप्त कर ली।

जिन्ना की तरह ओवैसी को भी कानून का प्रंचंड ज्ञान है। जिन्ना भी तब की काँग्रेस की गोद में ही पले बढ़े और ओवैसी के तो बाप दादा तक काँग्रेस की गोद में पले बढ़े। जिन्ना भी ऐश्वर्य जीवन जीते थे तो असदुद्दीन ओवैसी भी बंजारा हिल के ₹400 करोड़ के फ्लैट मैं रहते हैं जो उनको 2014 के चुनाव के बाद मिला।

भारतीय राजनीति में मुहम्मद अली जिन्ना का उदय 1916 में कांग्रेस के एक नेता के रूप में हुआ था, जो शुरुआत में हिन्दू-मुस्लिम एकता पर जोर देते हुए काकोरी कांड के स्वतंत्रता सेनानियों से लेकर बाल गंगाधर तिलक तक का मुकदमा लड़ते थे।

पर बाद में भारतीय मुसलमानों के प्रति कांग्रेस के उदासीन रवैये को देखते हुए जिन्ना ने कांग्रेस छोड़ दी। उन्होंने देश में मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा और स्वशासन के लिए चौदह सूत्रीय संवैधानिक सुधार का प्रस्ताव रखा। 

ओवैसी और उनकी पार्टी इस मामले में बिल्कुल समान है। निजाम हैदराबाद की "रज़ाकार सेना" के कासिम रिज़वी के पाकिस्तान भाग जाने के बाद , मौलाना अब्दुल वाहेद ओवैसी ने उसके संगठन "एमआईएम" का नेतृत्व संभाला।

मौलाना अब्दुल वाहेद ओवैसी को नफरत फैलाने के लिए तब की सरकार ने 11 महीने तक जेल में रखा। अब्दुल वाहेद ओवैसी को 14 मार्च 1958 को गिरफ्तार किया गया था। वाहेद पर हैदराबाद पुलिस ने सांप्रदायिक सद्भावना को भंग करने, मजहबी नफरत फैलाने, स्टेट और देश के खिलाफ मुसलमानों को भड़काने के आरोप तय किए थे।

अब्दुल वाहेद ओवैसी ने 1957 में लगातार 5, 12, 23 और 24 अक्टूबर को नफरत फैलाने वाला भाषण दिया था। इसके बाद 9 जनवरी 1958 को भी वाहेद ने नफरत का जहर उगला था जिसके बाद तत्कालीन सरकार ने उनको सांप्रदायिक नफरत फैलाने के आरोप में जेल में बंद कर दिया।

अब्दुल वाहेद ओवैसी , सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी के वालिद और असदुद्दीन ओवैसी के दादा थे। पर सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी जब 1960 को हैदराबाद से अपना पहला चुनाव जीते तो सीधे जाकर काँग्रेस की गोद में बैठ गये और उनके बाद उनके दोनों पुत्रों ने भी 2012 तक काँग्रेस की गोद में बैठकर मलाई खाई और ₹10 हज़ार करोड़ की संपत्ती बनाई और उसके बाद भारतीय मुसलमानों के प्रति कांग्रेस के रवैये को देखते हुए असदुद्दीन ओवैसी ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया। ऐसे ही जिन्ना ने भी छोड़ा था।

जिन्ना की तरह ओवैसी ने भी कभी संघर्ष और आंदोलन की राजनीति नहीं की , ना कभी किसी प्रोटेस्ट का दोनों ने नेतृत्व किया ना कभी किसी धरने प्रदर्शन में हिस्सा लिया और ना कभी सड़क पर उतर कर आंदोलन किया या जेल गये। 

आज़ादी की लड़ाई में तब के जब सभी नेता जेल जा रहे थे , मुहम्मद अली जिन्ना ही वह शख्स थे जो एक दिन के लिए भी कभी जेल नहीं गये। असदुद्दीन ओवैसी भी कभी जेल नहीं गये , तब भी जबकि पिछले 7-8 सालों से इस देश में मुसलमान गाय और राम के नाम पर आक्रमण पर हैं , ओवैसी ना किसी पीड़ित के घर जाते हैं ना किसी पीड़ित के लिए आंदोलन करते हैं। बिल्कुल जिन्ना की तरह।

जिन्ना की तरह ओवैसी भी भड़काऊ भाषण देने में माहिर हैं। तब जिन्ना ने मुसलमानों को बाँट दिया , अब ओवैसी मुसलमानों को बाँट रहे हैं।

इस देश में मुसलमान सदैव से जिस भी पार्टी के साथ रहा एक साथ साथ रहा , 1989 तक काऊ बेल्ट में यदि काँग्रेस के साथ रहा तो शेष राज्यों में आज भी वह काँग्रेस के साथ है। 1989 के बाद वह वीपी सिंह , मुलायम सिंह यादव के साथ रहा तो अखिलेश यादव के साथ आजतक है। एक साथ मुत्तहिद होकर वह अपने लिए कम ज़ालिम सरकार बनाने में मदद करता रहा है।

असदुद्दीन ओवैसी , भाजपा विरोधी इस साॅलिड वोट को बिखेर कर मुसलमानों के ऊपर हर राज्य में और ज़ालिम हुकूमत मुसल्लत कर देना चाहते हैं। उत्तर प्रदेश और आसाम की तरह। और खुद केसीआर की सुरक्षित छत्रछाया में सुकून से रहना चाहते हैं। उनको वहाँ भागीदारी नहीं चाहिए।

यही बंटवारे की राजनीति जिन्ना ने भी की थी , जो आज ओवैसी कर रहे हैं और ओवैसी के समर्थक या तो दूध का दाँत टूटते ही हाथ में स्मार्टफोन पाने वाले लोग हैं या मदरसा से निकले या पढ़ रहे तालीब ए इल्म या मुस्लिम मुहल्ले से कभी नहीं निकलने वाले जमूरे या गल्फ देशों में बैठकर पेट्रो डाॅलर कमा रहे लोग।

ऐसे लोग 1% भी नहीं पर ऐसे लोग देश के 99% मुसलमानों को उन बहुसंख्यकों के शक के दायरे में खड़ा कर रहे हैं जो ओवैसी के नाम से अपना ध्रुविकरण कर लेते हैं।

यह 99% मुसलमान इसी देश में बहुसंख्यकों के साथ मिल कर रोज़ी रोटी कमाते हैं , अपना परिवार चलाते हैं , वह ओवैसी की अलगाववादी विचारधारा के समर्थक ना होते हुए भी केवल मुसलमान होने के नाते बहुसंख्यकों के शक के दायरे में आते हैं और इससे ऐसे मुसलमानों के व्यापार रोज़गार पर असर पड़ता है।

देश के आज के माहौल में जहाँ किसी व्यक्ति की राजनैतिक विचारधारा की पहचान ही किसी काम का आधार हो वह मुसलमानों के लिए वैसी ही मुश्किल है जैसे जिन्ना ने 1947 में देश के मुसलमानों के लिए पैदा की थी।

यही कारण है कि भारत की भगवा मीडिया ओवैसी को हाकलाईट करती है , जबकि आसाम की यूडीएफ और बदरुद्दीन अजमल ओवैसी से अधिक ताकतवर और बड़ी राजनैतिक ताकत है पर उनको मीडिया में वह स्पेस नहीं मिलता।

भारत के मुसलमानों को यह साजिश समझनी चाहिए , उनका ओवैसी को समर्थन करना बहुसंख्यकों के साथ उनके हर संबन्धों को खराब कर देने की एक साजिश है।

संघ और मीडिया इसीलिए ओवैसी ओवैसी करता है , यह विभाजनकारी राजनीति वर्तमान में जिन्ना और जिन्ना की राजनीति का मौजूदा रूप है , जिसकी मार भारत का मुसलमान पिछले 73 सालों से खा रहा है।

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