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Monday, 28 June 2021

चिंता: कोविशील्ड को वैक्सीन पासपोर्ट की मान्यता नहीं, यह टीका लगवाने वाले नहीं जा सकेंगे यूरोप.


न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: दीप्ति मिश्रा Updated Mon, 28 Jun 2021 07:48 AM IST


    सार
कोरोना वैक्सीन कोविशील्ड को अभी कई देशों ने अपने यहां मान्यता नहीं दी है। वहीं कोविशील्ड वैक्सीन लगवाने वाले यात्रियों को यूरोपीय संघ के देश अपने यहां आने की इजाजत नहीं देंगे।






Wednesday, 23 June 2021

संविधान विरोधी भावना से हुई है डाक्टर उमर गौतम की गिरफ़्तारी 21 Jun 2021

Dr Mumtaz Faisal Malik:
संविधान विरोधी भावना से हुई है डाक्टर उमर गौतम की गिरफ़्तारी.
हिन्दू से मुसलमान बने डाक्टर उमर गौतम को योगी सरकार की पुलिस ने गिरफ़्तार करके उन पर जबरन धर्म परिवर्तन का आरोप लगाया है। हालांकि डाक्टर उमर गौतम ने ख़ुद किस की ज़बरदस्ती से इस्लाम क़ुबूल किया था इसका जवाब पुलिस के पास नहीं है। डाक्टर उमर गौतम एक पढ़े लिखे आदमी हैं और उन्होंने अपने जीवन का मिशन ही ग़ैर मुस्लिमों ख़ास तौर से हिन्दुओं को मुसलमान होने के लिए राज़ी करना बनाया हुआ है। लगभग 30 साल से वह यह काम कर रहे हैं और खुले आम करते आ रहे हैं। जो लोग इस्लाम क़ुबूल करने के बाद मुस्लिम समाज में नए नए दाख़िल होते हैं उनकी समस्याओं को हल करना और उनके रोज़गार व सामाजिक ज़रूरतों में उनकी मदद करना उनका ख़ास काम है जिसके लिए वह ऐसे नए मुसलानों के विशेष सम्मेलन भी करते रहते हैं। उन्हें न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी इस्लाम के एक दाई (इस्लाम की ओर बुलाने वाले स्वंयसेवक) के रूप में जाना जाता है। उन से जब यह पूछा जाता है कि उन्होंने हिन्दू धर्म छोड़ कर इस्लाम क्यूं क़ुबूल किया था तो वह कहते हैं कि मैं ने इस्लाम धर्म को पढ़ कर और समझ कर इस्लाम को ही एक सच्चे धर्म के रूप में जाना। मैं ने क़ुरआन को ख़ुद पढ़ा और अल्लाह के संदेश को डायरेक्ट ख़ुद समझा और अल्लाह से अपना रिश्ता जोड़ने के लिए उसके पैग़ाम को अपनाया।
एक ऐसे आदमी को जिन्होंने ख़ुद पढ़ कर समझ कर अपनी मर्ज़ी से इस्लाम को अपनाया, और इस भावना से उसको फैलाने में लगे रहते हैं कि जो रोशनी उन्हें मिली है उसे दूसरों तक भी पहुंचाया जाए उन पर दूसरों को लालच या साज़िश से मुसलमान बनाने का आरोप लगाना हास्यास्पद है। लेकिन हास्यास्पद होने से ज़्यादा यह एक बहुत गम्भीर मामला है और इस्लाम विरोधी ताक़तों की हताशा को दर्शाता है। यह ज़मीर व आस्था की आज़ादी के संवैधानिक सिद्धांत को नकारने और ख़त्म करने की एक ख़तरनाक भावना है। 
संघ परिवार और कट्टर हिन्दू संगठन इस्लाम के दुशमन हैं और भारत को इस्लाम मुक्त भारत बनाना चाहते हैं यह बात अब किसी से ढकी छुपी नहीं रह गयी है। इस तरह के लोगों के खुले बयान, घोषित उद्देश्य और कथित जागरण अभियान इस पर गवाह हैं। यह बात भी सब के सामने है कि देश की राजनीति पर अब संघ परिवार की पकड़ है और केन्द्र सरकार के अलावा कई राज्यों की सरकारें संघ परिवार के राजनीतिक दल के हाथ में हैं जिसकी छत्रछाया में देश का राजनीतिक व सामाजिक वातारवरण बहुत हद तक मुस्लिम वेरोधी बन चुका है। जनता के द्वारा मुसलमानों की मोबलिंचिंग, पुलिस द्वारा मुसलमानों की धर पकड़ और मीडिया के एक बड़े वर्ग के द्वारा मुसलमानों के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार अब देश की एक राजनीतिक और सामाजिक संस्कृति बन गयी है। ऐसे में डाक्टर उमर गौतम जैसे सहज, सुशील और सज्जन व्यक्ति की ग़ैर क़ानूनी धर्म परिवर्तन के नाम पर गिरफ़्तारी कोई चौंकाने वाली बात नहीं है। 
चौंकाने वाली बात अगर कोई है तो वह यह कि देश कितनी तेज़ी से एक हिन्दुत्वादी पुलिस स्टेट बनता जा रहा है। देश का धर्मनिर्पेक्ष और लोकतांत्रिक चरित्र जिस पर देश और देश वासियों को अभी तक गर्व रहा है उन लोगों को कभी भी पसन्द नहीं था जो देश को हिन्दू राष्ट्र के रूप मे स्थापित करने के लिए आज़ादी के पहले से लगे हुए हैं। इन लोगों ने उस समय की राजनीतिक परिस्थितियों के दबाव में देश के संविधान को मानने का ऐलान तो कर दिया था लेकिन दिल से कभी नहीं माना। इसीलिए वो राष्ट्रीय ध्वज के बजाए भगवा ध्वज लहरहाते आ रहे हैं और राष्ट्रगान के बजाए बन्देमातृम पर ज़ोर देते आ रहे हैं। ये मुसलमानों को हिन्दू बनाने पर तो उतारू रहते हैं लेकिन इस्लाम के प्रचार या इस्लाम अपनाने पर अंकुश लगाना चाहते हैं। इस्लाम या ईसाइयत के प्रचार पर रोक लगाने के लिए ये लोग धर्म परिवर्तन का विरोध करते रहे और जब अपनी सरकारें बनी तो धर्म परिवर्तन पर पाबंदी लगाने के लिए क़ानून बनाने में देर नहीं की। हालांकि धर्म प्रचार हर व्यक्ति और और हर धार्मिक समूह का मौलिक अधिकार है और किसी भी धर्म को अपनाना हर व्यक्ति का मानव अधिकार है। संविधान का आर्टिकल 25 कहता है कि भारत में हर व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने, उसके मुताबिक़ अमल करने और उसका प्रचार करने की आज़ादी है। और संविधान के आर्टिकल 15 के अनुसार किसी नागरिक के साथ धर्म, जाति, लिंग, नस्ल और जन्म स्थान आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। दर असल इस तरह की आज़ादियां भारत के सभी नागरिकों के मौलिक अधिकार हैं जिन्हें संविधान के तीसरे भाग में आर्टिकल 12 से 35 तक अलग अलग तरह से बयान किया गया हे।

लेकिन संविधान द्वारा दी गयी धार्मिक आज़ादी को ख़त्म करने के लिए हिन्दुत्वादी सरकारों ने तरह तरह के हीले बहानों से धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने वाले क़ानून बनाए और क़ानून के ग़लत स्तेमाल के द्वारा ईसाइयों व मुसलमानों का उत्पीड़न करते आ रहे हैं। डाक्टर उमर गौतम की ग़िरफ़्तारी भी इसी सिलसिले का हिस्सा है। हालांकि इन लोगों को भी मुसलमानों या ईसाइयों की तरह पूरा मौक़ा मिला हुआ है और संविधान के दायरे में रहते हुए सकारात्मक रूप से हिन्दू धर्म का प्रचार करने और हिन्दू धर्म अपनाने के लिए लोगों को क़ायल करने की पूरी आजादी है लेकिन इनके पास सकारात्मक भावना का अभाव है और अपने धर्म की ओर तार्किक रूप से बुलाने के लिए आत्मविश्वास की कमी हे। इसलिए इनकी रणनीति और कार्यशैली नकारात्मक है और तर्क के बजाए ताक़त से इस्लाम के संदेश को फैलने से रोकना चाहते हैं।
अदील अख़तर

Tuesday, 22 June 2021

लव जिहाद कानून को लेकर मुस्लिम तंजिम को खास पैगाम .

*जमियते उल्माए हिंद और अन्य मुस्लिम गुजराती  संस्थान को ध्यान करवाने के लिये मेसेज कर रहा हु.*

     Date:- 22 Jun 2021
       
        _समय बहोत कठीन और साजिश के साथ अपना चेहरा दिखा रहा हे, एसे मे समय के साथ अपना तालमेल मिलाकर चलना हमारी सबसे बडी जरुरत हे._ 

    फिलहाल गुजरात सरकार की तरफ से *लव जिहाद के नाम से कानून पास किया गया हे,* जिसके बाद सरकारी सिस्टम सक्रिय होकर अपना पुरा ध्यान इसी कार्यो पर लगाकर आगे बढना चाहते हे, इसी विषय से जुडी कुच घटनाएँ हम लगातार सोशल मिडिया और प्रिंट मिडिया के माध्यम से देख रहे हे, कई जगाह पर मुस्लिम समाज के धार्मिक गुरुओं और मस्जिद के इमामो और जिम्मेदार लोगो को प्रशासन जमा करके लव जिहाद कानून को लेकर आगह करने का कार्य करते नजर आ रहे हे.

   मे देख रहा हु, इतनी गंभीर परिस्थितियां बन रही हे और हमारी तंजीमें खामोशी से सारा तमाशा देख रही हे, जमियते उल्माए हिंद और अन्य मुस्लिम संस्थान इस घटना को लेकर अपनी जिम्मेदारी निभाये, और आने वाले मजिद खतरे से समाज को बचाने और आगाह  करने के लिये अभी से एक्टिव हो.

    क्या करने की जरुरत हे❓

  नंबर  1️⃣ मस्जिदों के इमामो के साथ मजबुत संपर्क बनाये और उनकी जिल्ला और ब्लोक लेवल पर इमाम युनियन बनाने का प्रयास किया जाये.

 नंबर  2️⃣ मस्जिद के इमामो को कानून और अधिकारों को लेकर जानकारी देने के साथ जिल्ला लेवल की हर इमाम युनियन को एक मजबूत एडवोकेट के साथ ग्राउंड लेवल पर मददगार साबित हो एसा साहसिक,निडर  सामाजिक कार्यों मे  सक्रियता  रखने वाला एक व्यक्ति दिया जाये.

 नंबर 3️⃣ हर जिल्ला मे महीने मे  एक बार इमाम युनियन की मीटिंग रखते हुये, उनके पास आने वाली किसी भी सरकारी अर्ध सरकारी परिस्थितियों का सामना करने के लिये अभी से उनको आत्मनिर्भर किया जाये,और जब कोइ घटना घटित हो उस वक्त किस तरहा इसका सामना करना हे? उसकी जानकारी देने का प्रयास किया जाये.

नंबर  4️⃣  कीसी सरकारी प्रशासन की तरफ से किसी कार्य के लिये बुलाया जाये उस वक्त किस तरहा काम करना हे? उसकी मजबूत जानकारी देने के साथ उनका आत्मविश्वास मजबूत करने का मुकम्मल प्रयास किया जाये.
  
नंबर 5️⃣ मस्जिदों से जुडी छोटी मोटी समस्याओं को सुलझाने के लिये इमाम युनियन के साथ अन्य धार्मिक, सामाजिक संस्थान एक होकर समस्याओं का समाधान करने का मजबूत  प्रयास किया जाये.

    ये कार्य इस वक्त की सबसे बडी जरुरत हे 2021  की शदी फितने का डोर हे हमे इन फितनो और फसाद के साथ शैतानी चालों  से बचने के लिये तदबीर करने के लिये आगे बढना पडेगा, वरना खाली सोशल मिडिया मे अपने आपको बडा मुस्लिम और मुसलमानों का खैरखाह बताने से कुच होने वाला नही हे.

    ये काम करने मे अगर कोइ सफलता  प्राप्त कर सकता हे तो वो *जमियते उल्माए हिंद* हे, इस मेसेज को तमाम मुस्लिम स्थान के जिम्मेदारों तक शेर करे. 

    अगर इस वक्त जमियते उल्माए हिंद इस कार्यो को अंजाम उस तरहा नही देती जिस तरहा उसको देना चाहिये ये निश्चित हो जायेगा  JUH अपना वकार कुव्वत मिल्लत मे से खौ चुकी हे.

       SOCIAL NETWORK 
           *जो कौम हालात पर सोचना छोड देती हे, वो कोम जाहिल लीडर की गुलामी और जालीमों का शिकार होती रेहती हे.*

Sunday, 6 June 2021

इत्तेहादे बैनुल मुसलेमीन और उलमा का किरदार.




इस बात को पेशे नज़र रखते हुए की हर ज़माने में खुसूसन दौरे हाज़िर में जबकि लेबनान और फ़िलिस्तीन के मुसलमान अमेरिका की खुली हुई हिमायत के ज़रीए ग़ासिब इस्राईल के बे रहमाना हमलों का शिकार हैं। मुसलमानों के अन्दर इत्तेहाद व यक जहती पैदा करना एक अक्ली ज़रुरत व दीनी फरीज़ा है। पूरी उम्मते इस्लामिया की ज़िम्मेदारी है कि वह इत्तेहाद व बिरादरी व भाई चारगी की फिज़ा ईजाद करे अलबत्ता दीनी उलमा का फर्ज़ दूसरे तमाम लोगों से ज़ियादा है क्यों की वह इस सिलसिले में अहम किरदार अदा कर सकते हैं।

इस मक़ाले में पहले क़ुरआने मजीद और हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की सुन्नत में मुसलेमीन व मोमनीन के दरमियान इत्तेहाद की अहमियत व ज़रुरत की तरफ़ इशारा किया गया है फिर मुसलमान और मोमीनों की तारीफ़ ब्यान की गई है।

शीया और सुन्नी तारीफ़ के मुताबिक़ मुसलमान और साहेबे ईमान वह है जिसके अन्दर दर्ज ज़ैल सेफ़ैत होः

1. खुदा और उसकी वहदा नियत पर ईमान रखता हो।

2. हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की नुबुवत व रेसालत और आप खुदा की जानब से जो कुछ पैग़ाम लाए हैं उन सब पर ऐतेकाद रखता हो।

3. क्यामत पर अक़ीदा रखता हो।

उसके बाद इख्तेसार के साथ इस्लामी मुआशरों में दीनी उलमा का दर्जा व मर्तबा ब्यान किया गया है। इस्लामी मुआशरे में दीनी उलमा को ख़ास तौर से बड़ी फज़ीलत हासिल रही है उन्हे हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का जानशीन और खुदा के अमीन..... के उन्वान से जाना और पहचाना जाता है।

आख़िर में मुसलामानों के दर्मियान इत्तेहाद व यक जेहती पैदा करने के सिलसिले में उलमा के 20 तरीक़े और तजावुज़ को इशारे के तौर पर ब्यान किया गया है मन जुम्लाः

1. तँग नज़री से परहेज़ और खुराफ़ात नीज़ बिदअतों से दूरी।

2. इत्तेहाद पैदा करने के सिलसिले में क़ुरआनी अहकाम सुन्नते नबवी की तरफ़ तवज्जोह देना।

3. हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के अहले बैत अलैहिमुस सलाम की इक़्तेदा।

4. वाक़ेईयत को ब्यान के तहर्रुफ़ात से परहेज़ करना।

5. एक दूसरे के अक़ाएद से बा ख़बर होना।

 

किलीदी अल्फ़ाज़ः

क़ुरआन पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लमदीनी उलमाइस्लामी इत्तेहादहम बस्तगीइस्लामी मज़ाहिब और इख्तेलाफ़।

मुकद्देमाः

तमाम इस्लामी मज़ाहिब के मानने वालों के दर्मियान हम आहँगी और यक जेहती एक बुनियादी मसला है और उसकी बहुत ज़्यादा अहमियत है। खास तौर से उस ज़माने में जब कि इस्लाम के सारे दुश्मन मुख्तलिफ़ तरीकों मिन जुम्ला दहशत गर्दी और एटमी अस्लहों के ज़रीए इस्लाम के हयात बख्श मक़सद को कमज़ोर और निस्तो नाबूद करना चाहते हैं इसी लिए अज़मते इस्लाम की तजदीदमुसलमानों की नेजात व आज़ादी और दुश्मनों की तमाम साज़िशों को नाकाम बनाने का तन्हा आमिल और ज़रीया दुनिया के सारे मुसलमानों का आपसी इत्तेहाद है। इत्तेहाद एक ऐसा हल है जो सिर्फ सियासी उमूर में ही मदद गार नहीं है बल्कि आबादीतरक्की....में भी मोवस्सीर है।

इत्तेहादे क़ुर्बत से मुरादइस्लामी इत्तेहादे कुर्बत हैसियासी व मज़हबी नहीं है। यानी सारे मुसलमान अपने अपने मज़हबी तशख़्ख़ुस के साथ दुश्मनाने इस्लाम के खेलाफ़ एक मुहाज़ पर जमा हो जाऐं और अपनी दीनी हैसियत व सकाफ़त का देफा करें। ऐसा इत्तेहाद अमली तौर पर मुम्किन है हर शिया व सुन्नी मुसलमान का फरीज़ा है कि ऐसा इत्तेहाद पैदा करने की राह में सन्जीदगी के साथ इक़्दाम करे इस सिल्सिले में दीनी उलमा की ज़िम्मेदारी बहुत सन्गीन है इस मक़ाले में इस सिल्सिले में उलमा के किरदार को ब्यान किया गया है।

इस्लामी मज़ाहिब के मानने वालों के दर्मियान हम बस्तगी व यक जेहती पैदा करने के सिल्सिले में दीनी आलिमों और दानिश्वरों ने जो रोल अदा किया है उसे ब्यान करने से पहले क़ुरआन व सुन्नत की नज़र में मुसलमानों के दर्मियान इत्तेहाद की अहमियत व ज़रुरियात ब्यान की जाती है।

 

इत्तेहादक़ुरआन मेः

क़ुरआने मजीद ने मोतअद्दीद आयात में मुख्तलिफ़ तॉबीरात के ज़रीए तमाम मुसलमानों को इत्तेहाद व तौहीद की दावत दी है और इख्तेलाफ़ नीज़ दुश्मनी से रोका है मनजुम्लाः

1. वअतसेमू बेहब्लील्लाहे जमीआ वला तफर्रकू।

और तुम सब के सब मिल कर खुदा की रस्सी मज़बूती से थामे रहो और आपस में (एक दूसरे के दर्मियान) फूट न डालो। (आले इमरानः सूरह 3 आयत 103)

2. वला तकूनु कल्लज़ीन तफरकू वख्तलफू मिन बादे मा जाअहुमुल बैयनात व उलाऐक लहुम अज़ाबुन अज़ीम।

और तुम उन लोगों के ऐसे न हो जाना जो आपस में फूट डाल कर बैठे रहे और रौशन दलीलें आने के बाद भी (एक दलील एक ज़बान न हुए) और ऐसे ही लोगों के वास्ते बड़ा भारी अज़ाब है। (आले इमरानः सूरह 3 आयत 105)

3. (इन्नमल मोमनून इख्वत फस्लहु बैन अखबैकुम वत्तकुल्लाह लअल्लकुम तुर्हमून) मोमनीन तो आपस में पस भाई भाई हैं तो अपने दो भाईयों में मेल जोल रखो और खुदा से डरते रहो ताकी तुम पर रहम किया जाए। (हुजरातः सूरह 10 आयत 49)

4. (मोहम्मद रसूलुल्लाह वल्लज़ीन मअहु अश्दाअ अलल कुफ्फार रहमाअ बैनहुम)

मुहम्मद खुदा के रसूल है और जो लोग उनके साथ हैं काफिरों पर बड़े सख्त और आपस में बडे रहम दिल हैं। (फत्हः सूरह 29आयत 48)

5. (इन्न हाज़ा उम्मतकुम उम्तन वाहेदतन व अना रब्बकुम फआबदुन)

बेशक तुम्हारा ये दीने इस्लाम एक ही दिन है और में तुम्हारा पर्वरदिगार हूँ तो मेरी ही ईबादत करो। (अम्बियाः 21. 92)

इत्तेहादनबी की सुन्नत व सीरत मेः

हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की सुन्नत और आप की बा अज़मतसीरत के मुतालऐ से ये अन्दाज़ा होता है कि आपने बहुत से मक़ामात पर अपने क़ौल व अमल के ज़रीए अपने मानने वालों को इत्तेहाद की दावत दी है और तफ़रक़ा व इख्तेलाफ़ से डराया है। आप हमेशा तवज्जोह रखते थे कि मुसलमान एक दुसरे से इख्तेलाफ़ पैदा न करें अगर उनके दर्मियान एक छोटा सा भी इख्तेलाफ़ पैदा हो जाता था तो आप खुद रुबरु होते और फ़ितने की आग को ख़ामोश कर देते थे। इस सिल्सिले में हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के चन्द अक़वाल की तरफ ज़ैल में इशारा किया जाता है।

1. ज़िम्मल मुस्लेमीन व अहदत यसई बिहा अदनाहुम व हुम यद अला मिन सलाहुम फ़मन अख्फर मुस्लेमा फअलैहे लअनतल्लाह वल मलाईकतहु वन्नास अजमईन ला यक्बल मिन्हो यौमल कियामह सर्फ वला अदल।

मुसलमानों का अहद एक ही है उस बारे में उन में छोटे से छोटा मुसलमान भी कोशिश करे। सारे मुसलमान तमाम ग़ैर मुस्लेमीन के मुक़ाबले में बिल्कुल मुत्तहीद हैं। जो किसी मुसलमान के साथ ख़्यानत करेगा। उस पर खुदा व फ़रीश्ते और तमाम लोगों की लानत होगी क्यामत के दिन खुदा उससे किसी किस्म का कोई बहाना कबूल नहीं करेगा। (रोज़ा व नमाज़ क़बूल नहीं करेगा) मन्सूर अली तासुफ़, 1382 कजिल्द 4, सफ़हा 400,

2. अल मुस्लिम इख्वल मुस्लिम ला यज़्लमहु वला यसलमहु (इ इलल हलाक) मिन कान फी हाज्जत अखीहे कानल्लाह फी हाजतहु व मिन फरज अन मुस्लिम कर्ब फरजल्लाह अन्हो कुर्बहु मिन कर्ब यौमल कियामत व मिन सतर मुस्लेमा सतरहुल्लाह यौमल कियामह।

एक मुसलमान दुसरे मुसलमान का भाई है उसके ऊपर ज़ुल्म नहीं करता है और उसे तन्हा नहीं छोडता हैजो शख्स अपने भाई की हाजत रवाई में मशगूल होता है खुदा उसकी हाजत पुरी करता है और जो किसी मुसलमान का कोई गम दूर कर देता है खुदा क्यामत के दिन उससे क्यामत का गम दूर कर देगा और जो किसी मुसलमान को लेबास पहनाता है खुदा वन्दे आलम क्यामत के दिन उसे लेबास पहनाऐगा. (मन्सूर अली नासीफजिल्द 5, सफहा 20).

3. मिस्लल मोमीन फी तवाद हुम व तुआफ हुम व तरा हम हुम बे मन्ज़ेलतुल जसद इज़ा अश तका मिन्हु शैईं तदाई लहु साऐरल जसद बेसहरे वल हुमैः

मोमनीन एक दूसरे के साथ दोस्ती व उतूफत और मेहरबानी में इन्सान के बदन के आज़ा के मानिन्द हैं। जब बदन के किसी एक हिस्से को तक्लीफ़ होती है तो दूसरे आज़ा की नीन्द भी हराम हो जाती है और वह भी बुख़ार में मुब्तेला हो जाता है। (इब्ने हन्बल बग़ैर तारीख़जिल्द 4, सफ़हा 270).

हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने अपनी ज़बाने मुबारक से ताकीद के अलावा अमली तौर पर भी इत्तेहाद बरक़रार करने के लिए कदम उठाऐ हैं चुनाँचेः उसकी एक मिसाल यह है की आप ने औस और खज़रज के क़बीलों के दर्मियान सुल्ह कराई जब आप मदीना मुनव्वरा तश्रीफ ले गए तो शुरु में ही आप ने उन दोनो क़बीलों की आपसी दुश्मनी को दोस्ती में बदल दिया। (स्युतीजिल्द 2, सफ़हा 287, आले इमरान की आयत 102 के ज़ैल में बे हवालेः बहुस कुर्आनीया फ़िल तौहीद वल शिर्कः आयतुल्लाह सुब्हानी)

हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने मुसलमानों के दर्मियान बिरादरी व हम दिली बरक़रार करने और इख्तेलाफ़ के अस्बाब व अवामिल को ख़त्म करने के सिलसिले में जो दूसरा अमली इक़दाम किया वह यह की आप ने अन्सार और मुहाजेरीन के दर्मियान अक्दे उखूवत बाँधा और बिरादरी क़ायम की जबकि अन्सार और मुहाजेरीन के दर्मियान क़ौम व क़बीले और इक़्तेसाद के लेहाज़ से बहुत फ़र्क़ थादोनों के दर्मियान कोई तनासुब न था। मुनाफ़ेक़ीन ये कोशिश कर रहे थे कि उनके दर्मियान फूट डाल दें और इस्लाम का एक नया मुआशरा मदीने में पर्वान चढ़ा रहा था। उसे ख़तरों में मुब्तला कर दें लेकिन हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की इस हिक्मते अमली से अक्दे उखूवत के बाद मुनाफ़ेक़ीन की सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया और आप के इक्दाम ने उन को मायूस व ना उम्मीद कर दिया। (इब्ने हशामसन 1363 शजिल्द 2, सफ़हा 150)

 

मुसलमान और मोमिन कौनः

मुसलमानों के दर्मियान इत्तेहाद बरक़रारा करने की अहमियत व ज़रुरत के बारे में जो बातें ऊपर ब्यान की गई हैं उस में किसी मुसलमान के लिए शक व तर्दीद की गुन्जाईश नहीं है लेकिन यह सवाल बाकी रह जाता है की कलामी व फिक्ही लेहाज़ से किस को मुसलमान व मोमिन कहा जाता है।

अन नब्वी की रिवायत के मुताबिक़ जिन्हें शिया और सुन्नी हर एक ने हदीस की अपनी अपनी मोतबर किताबों में नक़्ल किया है मुसलमान वह शक्स है जो खुदा की वहदानियत और हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की रेसालत की गवाही दे। नीज़ क्यामतपन्ज गाना नमाज़रोज़ाज़कात और हज का अक़ीदा रखता हो। हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमायाः इस्लाम की बुनियाद पाँच चीज़ों पर रखी गई हैख़ुदा की वहदानियतहज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की रेसालत पर गवाही नमाज़ क़ाएम करनाज़कात देनाहज करनाऔर माहे रम्ज़ानुल मुबारक के रोज़े रखना। (बुखारी बग़ैर तारीख़जिल्द 1, सफ़हा 11)

इब्ने उमर से रिवायत है कि हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमायाः मुझे ये हुक्म दिया गया है कि लोगों से जन्ग करुँ ताकी वह खुदा की वहादानियत और हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की रेसालत की गवाही देंनमाज़ पढ़ें ज़कात देंपस जब वह लोग उस पर अमल करेंगे तो उन का खून और माल मेरी जानिब से महफूज़ हो जाएगा। (बुखारीजिल्द 1, सफहा 13).

एक शख्स ने हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम से पूछा की इस्लाम क्या है आप ने फ़रमायाः इस्लाम ये है की तुम गवाही दो कि खुदा के अलावा कोई माबूद नहीं है और मुहम्मद उसके रसूल हैंनमाज़ पढोज़कात दोमाहे रम्ज़ानुल मुबारक के रोज़े रखो और इस्तेताअत की सूरत में खाने कॉबा का हज करोउसके बाद उसने पूछा की ईमान क्या हैहज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमायाः खुदामलाऐकातमाम (आसमानी) किताबोंअम्बियाकज़ा व क़द्रऔर ख़ैरो शर पर ईमान लाओ। (कशीरी, 261 हिज्रीजिल्द 1, सफ़हा 37).

अजलान से मर्वी है की मैने हज़रत ईमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम से अर्ज़ की क्या मुझे ईमान की तारीफ़ ब्यान फ़रमायेंगेः इमाम अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः खुदा की वहदानियतऔर हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की रेसालत की गवाही देनाआप जो कुछ खुदा की जानिब से लाये हैं उन सब का इक़रार करनापन्ज गाना नमाज़ें पढ़नाज़कात देनामाहे रमाज़ान के रोज़े रखनाखान ए कॉबा का हज करनाहमारे दोस्तों से दोस्ती और हमारे दुश्मनों से दुश्मनी करना और सादेक़ीन के ज़ुमरे में दाख़िल होना। (कुलैनी बी ताजिल्द 1, सफ़हा 29)

 

अब्दुल काहेरा बग़दादी के नज़दीक मुसलमान की तारीफ़

अब्दुल काहेरा बग़दादी जो अहले सुन्नत के एक मोतकल्लीम आलिम हैं उन्हों ने सुन्नी मुसलमान की तारीफ़ के बारे में कहा हैः हमारे नज़्दीक सहीह यह है की उम्मते इस्लाम और उन तमाम लोगों को जमा करती है जो आलम के हादिस होनेउसके ख़ालिक़ के एक होनेउसके साहबे सिफाते क़दीम और हकीम होनेउसके बिला तश्बीह होनेतमाम लोगों के लिए हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की नबूवतआप की शरीयत और आप जो कुछ लाये हैं उसके हर होने पर ईमान रखता हो और ये कि क़ुरआन तमाम अहकामे शरीयत का सर चश्मा हैकाबा वह क़िब्ला है जिसकी तरफ़ रुख़ करके नमाज़ पढ़ना वाजिब है उन सारी चीज़ों का इक़रार करता हो और ऐसी बिदअत अन्जाम न दे जो कुफ्र का बाइस बन जाती है तो वह मोवह्हिद और एक खुदा को मानने वाला सुन्नी है। (बग़दादी बग़ैर तारीख़ सफ़हा 13)

बग़दादी ने मोवह्हिद सुन्नी की तारीफ़ की है उसके लेहाज़ से तमाम शिया भी मोवह्हिद सुन्नी हैं क्यों की शिया भी उन तमाम चीज़ों पर ईमान रखते हैं और उन का इक़रार करते हैं।

अब तक जो कुछ ब्यान किया जा चुका है उससे दो नतीजे बखूबी निकलते हैः

1. तमाम मुसलमानों के लिए इत्तेहाद बरक़रार करना अम्ली तौर पर वाजिब है उसके साथ साथ ये एक फरीज़ा और दीनी वाज्ब भी है और मुसलमानों को चाहिए की उस दीनी वाजिब पर अमल करें।

2. मुसलमान और मोमीन वह है जिसके अन्दर ये सिफात हों.

अ. ख़ुदा और उसकी वहदानियत पर ईमान रखता हो।

आ. हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की रेसालत और आप जो कुछ खुदा की जानिब से लाये हैं उन सब पर ईमान रखता हो।

इ. क़यामत का अक़ीदा रखता हो।

 

इत्तेहादे बैनुल मुसलेमीन के बारे में उलमा का किरदार

इस्लामी मुआशरे में दीनी उलमा की बडी अहमियत है क़ुरआन ने ऐलान किया की दूसरों की बनिस्बत

उन के दरजात बहुत बुलन्द हैं।

(यर्फउल्ला हुल्लज़ीन आमनू मिन्तुम वल्लज़ीन उतुल इल्म दरजात)

तुम में से जो लोग ईमान्दार हैं और जिनको इल्म अता हुआ है खुदा उनके दर्जे बुलन्द करेगा। (मुजादेलाः 11, 58)

अहादिसे नब्वी में उलमा और ख़ातेमुल अम्बिया के जॉँनशीनों को अम्बिया का वारिस और उन्हें आसमान के सितारे बताया गया है।

क़ाला नबी सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम रहमल्लाहो खोल्फाई फकीलः या रसूल्ललाहः व मन खोल्फाऐककालः अल्लज़ीन यहयून सुन्नती व यअलमूनहा इबादल्लाहः

हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने फरमायाः खुदा मेरे जानशीनों पर रहमत नाज़िल फ़रमाए अर्ज़ किया गयाः ऐ खुदा के रसूल आप के जानशीन कौन लोग हैंफरमायाः जो लोग मेरी सुन्नत को जिन्दा करते हैं और खुदा के बन्दों को उसकी तालीम देते हैं। (हिन्दी, 1405, जिल्द 10 सफ़हा 229)

इन्नल उलमा वरसतुल अम्बिया इन्नल अम्हिया लम युरेसु दिनारा वला दिर्हमा इन्नमा वरसुल इल्म फमन अखज़हु फकद अखज़ बेहज़ वाफरः

बेशक उलमा अम्बिया के वारिस हैं अम्बिया ने दिरहम व दीनार को विरासत के तौर पर नहीं छोड़ा वह हज़रात इल्म छोड कर जाते हैं पस जो इल्म हासिल करके उस से बहरेमन्द हो उसने खूब अच्छी तरह फायदा उठाया। (कज़्वीनी, 1395, जिल्द 1, सफहा 81)

इन्न मस्लल उलमा फ़िल अर्ज़ कमस्लुन नजूम यहदी बिहा फी ज़ोलोमातील बर्रे वल बहर फईज़ा अल नत मस्तल नजूम ओशक इन तज़लल होदातः

रूये ज़मीन पर उलमा आसमान में सितारों की मानिन्द हैं जिनसे खुश्की और दरिया की तारीकियों में हिदायत हासिल की जाती है अगर सितारे ग़ुरुब कर जायें तो क़रीब है कि हिदायत करने वाले रास्ते से भटक जायें। (मुन्ज़री, 1388 कजिल्द 1, सफ़हा 100, 102)

उलमा और दीनी पेशवाओं के मानवी व इज्तेमाई दरजात को पेशे नज़र रखते हुए ये बात वाज़ेह हो जाती है की उन की ज़िम्मेदारी बहुत सँगीन है वह मुसलमानों के दर्मियान इत्तेहाद कायम करने और उनके दर्मियान से इख्तेलाफ़ और नेफाक़ को दूर करने के सिलसिले में क्लीदी व बुनियादी किर्दार अदा करते हैं क्यों कि हर इन्सान की अहमियत व ज़िम्मेदारी और उसका असर उसी ऐतेबार से है जितनी मुआशरे के अन्दर उसे अहमियत हासिल है। बिना बर इन जिस तरह क़ुरआन और हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने उम्मते मुस्लेमा को इत्तेहाद और भाई चारगी की दावत दी है निज़ इख्तेलाफ़ और दुश्मनी से रोका है। उलमा ए इस्लाम जो हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के वारिस व जाँनशीन और खुदा और रसूल के अमीन हैंउन्हें भी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की तास्सी व इक्तेदा करते हुऐ मज़्हबीनस्लीइलाक़ाई और क़ौमी इख्तेलाफ़ को दूर करना चाहिए और उस राह में मुख्तलिफ़ तरीक़ों से जैसेः तक़रीर किताबरेसालोंअख्बारइन्टर नेट और दूसरे तब्लीग़ाती वसाइल व आलात के ज़रीए मुसलमानों के दर्मियान पाये जाने वाले सारे इख्तेलाफ़ात की जड़ें उखाड़ देनी चाहियें और उसके बाद उनके दिलों में मुहब्बत व हमदिली और भाई चारगी के बीज बोने चाहियें।

अब वह वक्त आ चुका है की उलमा वक्त को पहचानते हुए और जहाने इस्लाम के हस्सास हालात को देखते हुए किताब व सुन्नत से तमस्सुक करते हुए इस्लाम के उसूल और सारे मुश्तरेकात को पेशे नज़र रखें इख्तेलाफ़ और तफ़रेका अँगीज़ आमाल से पर्हेज़ करें और जो लोग मुसलमानों के दर्मियान दुश्मनी के मुकद्देमात फ़राहम कर रहे हैं और एक दूसरे के दर्मियान जुदाई पैदा करना चाहते हैं उन को रोक कर दुश्मनाने इस्लाम की तमाम खतर नाक शाज़िशों को नाकाम बना दें।

उलमा ए इस्लाम के दर्मियान इत्तेहाद व यकजेहती सारे मुसलमानों की कामयाबी तरक्की व सर बुलन्दी हैमुसलमान उलमा के दर्मियान इत्तेहाद और मुदारा व नर्मी की अहमियत व ज़रुरत इस लिए है कि जब खुद उलमा के दर्मियान हम बस्तगी होगी तो मुसलमानों के तमाम फिर्कों के दर्मियान इत्तेहाद व हम दिली और भाई चारगी पैदा हो जाऐगी क्यों कि उलमा उस उम्मत के पेशवा व मुक्तिदा हैं और लोग उन की पैरवी करते हैं उन की बातें मानते हैं। हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमायाः

सिन्फान मिन उम्मती इज़ा सुल्हा सुलेहत उम्मती व इज़ा फ्सद अफ्सदत उम्मतीकीलः या रसुलल्लाह. व मिन हुमाकालः अल फोक्हाओ वल ओमराअः.

जब मेरी उम्मत के दो गिरोह सालेह व नेक हो जायें तो पूरी उम्मत सुधर जायेगी और जब वही दोनों बिगड़ जायें तो पूरी उम्मत बिगड़ जाऐगी। अर्ज़ किया गया ऐ अल्लाह के रसूलवह दोनों गिरोह कौन हैंफ़रमाया उलमा और हुक्काम।

 

इत्तेहादे बैनुल मुस्लेमीन के सिलसिले में उलमा की तजावीज़ः

दीनी उलमा दर्ज ज़ैल तजावुज़ के ज़रीये बहुत अच्छी तरह तमाम मुसलमानों को एक दूसरे से क़रीब करके उनके दर्मियान इत्तेहाद पैदा कर सकते हैं और उनके इख्तेलाफ़ात को जड़ से ख़त्म कर सकते हैं।

1. पूरे इस्लामी मुआशरे के अन्दर अख्लाकी व इन्सानी फज़ायल की तर्वीज अम्र बिल मारुफ़ व नही अनिल मुन्कर है.

2. फिक्री जुमूद और कोताह नज़री से पर्हेज़ मिज़ ख़ुराफात और बिदअतों से दूरी.

3. कौमी नस्ल अलाक़ाई और मज़्हबी तअस्सुब से पर्हेज़ और उस अस्ल पर तवज्जह की इस्लाम में फज़ीलत व बर्तरी का मेयार सिर्फ़ तक़वा ए इलाही है.

इन्न अकरम कुम इन्दल्लाहे अत्काकुम. यकीनन खुदा के नज़्दिक तुम में सब से ज़ियादा बा फज़ीलत वह है जो सब से ज़्यादा पर्हेज़ गार है. (हुजरातः 13, 49).

नस्ल रन्ग व कौम सिर्फ़ एक से दूसरे को तमीज़ देने का ज़रीया है इस्से किसी को दूसरे पर कोई इम्तेयाज़ नहीं हासिल है

वजअलना कुम शऊबा व क़बाऐल लेतआरफू. और हम ही ने तुम्हारे क़बीले और बरादर्याँ बनाईं ताकी एक दुसरे को शिनाख्त करले. (हुजरातः 13, 49).

4. इत्तेहाद के बारे में क़ुरआन व सुन्नत के दस्तूरात की तरफ तवज्जोह देना.

5. क़ुरआने करीम की आयत की तफ्सीर बिल राऐ से पर्हेज़ करना.

6. इस्लामी मज़ाहिब के हुक्काम के साथ हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के अहले बैत अलैहिमुस्सलाम कैसा सुलूक करते थे इस सिल्सिले में उनकी इक्तेदा व पैरवी करना.

7. एक दूसरे को सब व शुत्म और लअन व तक्फीर नीज़ तोहमत व इल्ज़ाम लगाने से पर्हेज़ करना.

8. तफ़ाहुम व तबादलऐ ख्यालात और इल्मी बहसों में इख्लासहुस्न नियतवुसअते कल्ब और गुफ्तगू के आदाब की रिआयत करना वजा दल हुम बिल्लती हिए अहसनः. और बहसो मुबाहेसा करो भी ते इस तरीके से जो लोगों के नज़दीक सबसे अच्छा हो. (नहलः 16, 125).

9. इस्लामी मज़ाहिब को उलमा से इल्मी व तहकीकी सेमिनार के ज़रीये आज़ाद व खुली फिज़ा में बराबर राब्ता बरक़रार रखना फिर सहीह व कवी बात को तस्लीम कर लेना.

10. मक्तबे खुलफ़ा और अहले बैत अलैहिमुस्सलाम के दर्मियान जो इश्तेराकी व इफतेराक़ी पहलु हैं उन का मवाज़्ना करना नीज़ उनकी तत्बीक़ करना.

11. ज़ईफ़ रिवायातइस्राईलियात और नादिर इख्तेलाफ़ अँगीज़ अक्वाल को ब्यान करने से पर्हेज़ करना.

12. हर किस्म के तफ़रक़े अँगेज़ फत्वे सादिर करने से पर्हेज़ करना.

13. शिया और सुन्नी दोनों एक दूसरे की किताबों से रिवायात को नक्ल करें.

14. इस नुक्ते पर तवज्जोह रहे की फिक्ही मसायल में इख्तेलाफ़ का होना एक तबीई व मतलूब अम्र है और ये इख्तेलाफ़ कम व बीश तमाम मज़ाहिब के दर्मियान पाया जाता है.

15. दिन की अस्ल व रुह की तरफ तवज्जोह करना और ज़ाहिरी चीज़ो की तरफ़ झुकाव से पर्हेज़ करना.

16. जेहालत बी खबरी व पस्मानदगी का मुक़ाबला करना और मुख्तलिफ़ उलूम व फ़ुनून की बुलन्द चोटियों को फत्ह करने के लिए जिद्दो जेहद करना.

17. इस्लामी हम आहँगी के अलम्बर्दारों और इस्लामी इत्तेहाद के मुनादी उलमा की पैरवी करना जैसेः सय्यद जमालुद्दीन असदा बादीशैख़ मुहम्मद अब्दहुसय्यद अब्दुल हुसैन शर्फुद्दीनइमाम खुमैनी रहमतुल्लाह अलैहऔर शैख़ मुहम्मद शल्तूत वग़ैरहुम.

18. इस बात की तरफ तवज्जोह रहे की शिया और सुन्नी दोनो के कुछ मुश्तरक दुश्मन मौजूद हैं.

19. हकायक़ को ब्यान करें और अहकाम में तहरीफ़ करने से पर्हेज़ करे.

20. ऐतेक़ादी व फिक्ही मसायल और इस्लामी मज़ाहिब की इस्तेलाहात के बारे में ख़बर होना-

मज़कूरा तजाविज़ पर अम्ली तौर से तवज्जोह करने की सूरत में सारे मुसलमान एक दूसरे से नज़्दीक और आपस में मुत्तहिद होंगे और अपनी खोई हुई इज़्ज़त व अज़मत को दोबारा पा लेगे और इस तरह इस्लाम के दुश्मनों को शिकस्त दे देंगे.

 

तौज़ीहः

जो तजावीज़ ऊपर ब्यान की गई हैं उनमें से हर एक का तजज़ीया और उनके तासीर की तफ़सील ब्यान करने की यहाँ गुन्जाईश नहीं है यहाँ पर सिर्फ आख़िरी दो तजविज़ों को खुलासे को तौर पर ब्यान किया जा रहा है.

मुसलमानों के दर्मियान हम आहँगी में हकाऐक़ के ब्यान और इस्लामी अहकाम में तहरीफ़ से पर्हेज़ की तासीरः

हकायक़ को ब्यान करने और अहकाम में तहरीफ़ से पर्हेज़ करने से मुराद यह है की इस्लामी मज़ाहिब के मोहतरम उलमा अहकाम और फिक्ही मसायल को ब्यान करने और उनकी तालीम के वक्त वैसे ही अमल करें जैसे इस्लामी मज़ाहिब के अइम्मा व मराजे कराम ने अपनी फिक्ही किताबों और रेसालों में ब्यान किया है मसलन अगर कोई अमल रईसे मज़हब और किसी मरजे के नज़रीये के मुताबिक मुस्तहब है तो उसे तालीम देते वक्त मुस्तहब वतायें और अगर वाजिब है तो वाजिब बतायें और अगर इख्तेलाफी हो तो उसे इख्तेलाफी के उन्वान से बयान करें.

बहुत से मवारीद में ये मुशाहेदा किया गया है की कुछ ऐसे उलमा हैं जो बाज़ आमाल को जो तमाम इस्लामी मज़ाहिब के रउसा के फत्वों के मुताबिक़ वाजिब नहीं हैं इस तरह लोगों से ब्यान करते हैं कि अन्दाज़ा यह होता है की ये अमल तमाम मज़ाहिब के नज़्दीक वाजिब है नमूने के तौर पर नमाज़ में मसले तक्तुफ (क्याम की हालत में एक हाथ को दुसरे हाथ पर रखना) और अज़ानो इकामत में अली अलैहिस्सलाम की वेलायत की ग्वाही देना उन दोनों की तरफ़ इशारा किया जा सकता है चुनाँचे अहले सुन्नत के कुछ मोहतरम उलमा ने तक्तुफ़ को लोगों से इस तरह ब्यान किया है और आज तक ब्यान कर रहे हैं की गोया ये अमल वाजिब है और उसके बगैर नमाज़ ही बातिल है वह लोग इस नुक्ते की तरफ़ इशारा नहीं करते की एक तो अहले सुन्नत के चारों मज़ाहिब नमाज़ में तक्तुफ़ को वाजिब नहीं जानते दूसरेः बाज़ इस्लामी मज़ाहिब जैसे मालेकी न सिर्फ़ ये की उस अमल को वाजिब नहीं जानते बल्की बाज़ सूरतों में इर्साल (क्याम की हालत में हाथों को मामूल के मुताबिक़ छोड़ रखने) को मन्दूब (मुस्तहब) और तक्तुफ को मकरुह जानते हैं और तीसरेः जो लोग तक्तुफ़ को सुन्नत व मुस्तहब जान्ते हैं वह भी उसकी कैफियत के बारे में इख्तेलाफ़ रखते हैं हन्फीयों का अकीदा है कि दाहिने हाथ को बायें हाथ के ऊपर नाफ़ के नीचे रखे जबकि शाफ़ियों का अकीदा है कि हाथ को पुश्ते नाफ़ पर सीने के नीचे रखे (रजूअ किजीएः जज़ीरी 1406 कजिल्द 1, सफ़हा 251, गन्फी (बगैर तारीख़) जिल्द 1, सफ़हा 287, मर्गन्यानी बगैर तारीख़ जिल्द 1, सफ़हा 47).

दूसरी तरफ शिया उलमा शिया मुसलमानों को इस तरह अज़ानो इकामत की तालीम देते हैं गोया हज़रते अमीरु मोमनीन अलैहिस्सलाम की वेलादत की ग्वाही (अशहदो अन्न अलीयन वली उल्लाह) अज़ान व इकामत का जुज़ है और उसके बगैर दोनों नाकिस हैं जब कि शीयों के किसी मर्जे ने ऐसा फत्वा नहीं दिया है बल्की तमाम शिया उलमा इस शहादत को मुस्तहब जान्ते हैं और उन्हों ने अपने अपने तौज़ीहुल मसायल में सराहत की है. (बनी हाशिम, 1378 श. जिल्द 1, सफ़हा 540).

बिना बर इन फिक्ही मसायल में इख्तेलाफ़ एक तबीई अम्र है और हर मुजतहिद जामे शरायत तमाम शरई दलायल व मुबानी के ज़रीये इस्लामी अहकाम को उनके मनाबे से इस्तेन्बात व इस्तेख़राज करता है ये नज़र्याती इख्तेलाफात सिर्फ़ शिया व सुन्नी उलमा के दर्मियान नहीं है बल्की अहले सुन्नत के सारे मज़ाहिब और उलमा ए शीया के दर्मियान भी हैं अहले सुन्नत के चारों मज़ाहिब से फिक्ही मसायल के जुज़ईयात आपस में इख्तेलाफ़ रखते हैं लेकिन उससे कोई मुश्किल पैदा नहीं होती और ऐसा इख्तेलाफ़ काबिले मुज़म्मत भी नहीं है बल्कि फिक्ह की बालन्दगी व शगूफाई का बाईस है नमूने के तौर पर उन इख्तेलाफी मसायल के सिल्सिले में वज़ू में सर के मसह करने की मिक्दार नमाज़ में तक्तुफ और उसकी कैफियत नीज़ सुन्नतमन्दूबमुस्तहबततूअफज़ीलतवाजिबऔर फर्ज़ के मानी की तरफ इशारा किया जा सकता है.[1]

नतीजा यह है की अगर तुम इस्लामी तालीमात को तीन हिस्सों अकायद व अख्लाक़ और फिक्ही अहकाम में खुलासा करें तो शिया व सुन्नी तमाम ऐतेकादी व अख्लाकी मसायल में या आपस में इख्तेलाफ़ नहीं रखते या अगर इख्तेलाफ़ रखते भी हैं तो बहुत मुख्तसर लेकिन फिक्ही मसायल में खुद अहले सुन्नत के तमाम मज़ाहिब के दर्मियान इख्तेलाफ़ है और शिया उलमा के दर्मियान भी बॉज़ मवारीद में एक दूसरे से नज़रिये के लेहाज़ से इख्तेलाफ़ पाया जाता है लेकिन अहम नुक्ता यह है की फिक्ही ऐतेकादी मसायल में इल्मी इख्तेलाफ़ की सूरत अगर लोगों को अच्छी तरह हिदायत की जाए तो उससे सियासी इख्तेलाफ़ और दुश्मनी व निज़ा की नौबत ही नहीं आयेगी.

दोनों फिर्कों के उलमा एक दूसरे के मज़ाहिब व अकाऐद से बाखबर होः

मुसलमानों के दर्मियान इत्तेहाद पैदा करने का एक सबसे बड़ा व अहम आमील यह है की मुख्तलिफ़ इस्लामी फिर्कों में उलमा एक दूसरे के मज़ाहिब व अकायद से बाख़बर हों और सहीह तरीके से उनकी मारेफ़त रखते हों वर्ना मुम्किन है की वह एक दूसरे को ऐसी निस्बत दे दें जो एक हकीक़त के खेलाफ़ हो और फिर एक दूसरे पर यह तोहमत लगा दें की फलाँ की अकीदा इस्लामी नहीं है शिर्क से आलूदा है.

मिसाल के तौर पर बाज़ शियों का अकीदा यह है की बिरादराने अहले सुन्नतअहले बैत अलैहिमुस सलाम के दुश्मन हैंया कम से कम अहले बैत अलैहि मुस्सलाम के बारे में अच्छा नज़रिया नहीं रखते जब की तमाम बिरादराने अहले सुन्नत आयते मोवद्दत (कुल ला असअलो कुम अलैहे अजरन इलल्ल मोवद्दतः फील कुर्बा) ऐ रसूल तुम कह दो कि में इस तब्लीग़े रेसालत का अपने क़राबत दारों (अहले बैत अलैहिमुस्सलाम) की मुहब्बत के सिवा तुम से कोई सिला नहीं माँगता. (शूराः 23, 42).

नीज़ आयते ततहीर (इन्नमा योरीदुल्लाहो ले युज़हेब अन्कुमुर्रिज्स अहलल बैते व योतहहेर कुम ततहीरा) ऐ पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के अहले बैत खुदा तो बस ये चाहता है की तुम को हर तरह की बुराई से दूर रखे और जो पाको पाकीज़ा रखने का हक है वैसा पाको पाकीज़ा रखे. (अहज़ाबः 33, 33).

और इन रिवायात की रौशनी में जो इन दोनो रिवायात के ज़ैल में हज़रत पैगम्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम से अहले बैत अलैहिमुस सलाम के बारे में दोनों फिर्कों की कुतुब तफ्सीर व हदीस में वारिद हुई हैंहज़रते पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के अले बैत अलैहिमुस्सलाम को दोस्त रखते हैं.

[1] . अइम्मा अहले सुन्नत की नज़रियाती इख्तेलाफ़ के बारे में इत्तेला हासिल करने के सिल्सिले में किताब अल फिक्ह अलल मज़ाहिबुल अर्बा अब्दुर्रहमान जज़ीरी की तरफ़ रोजू करें.

मुहम्मद हुसैन फ़सीही (मोहक्कीक़मुसन्निफ़ और हौज़े के उस्ताद)


जानिए भारत देशका मणिपुर राज्य की आयरन लेडी इरोम शर्मिला मानव अधिकार और आजादी के लिये 16 साल भुख हड़ताल करने मणिपुर महिला का इतिहास ।

4 Nov. 2000 To 9 Aug 2016 

जानिए आयरन लेडी इरोम शर्मिला चानू के बारे में.

अफस्फा और सेना के अत्याचारों के खिलाफ पिछले 16 सालों से भूख हड़ताल पर बैंठीं इरोम शर्मिला ने भूख हड़ताल खत्म कर चुनाव लड़ने का फैसला किया है. 

   जानिए अपने अधिकार और आजादी के लिए भूख हड़ताल पर बैठी मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम चानू शर्मिला के बारे में: 

जानिए अपने अधिकार और आजादी के लिए भूख हड़ताल पर बैठी मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम चानू शर्मिला के बारे में: 




इरोम पीपुल्स रिइंसर्जेंस एंड जस्टिस अलाएंस नाम की पार्टी बनाकर चुनाव मैदान में उतरी थीं. इरोम से ज़्यादा नोटा को मिले वोट.


इस बार मणिपुर विधानसभा चुनाव इस मामले में ख़ास रहा क्योंकि 16 साल के अनशन के बाद मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला चुनाव मैदान में थीं. इरोम ने सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (आफस्पा) के ख़िलाफ़ 16 वर्ष तक भूख हड़ताल की थी. भूख हड़ताल ख़त्म करने के बाद वह इस उम्मीद के साथ चुनाव में उतरी थीं कि जीत के बाद वे राजनीति में आएंगी और इस क़ानून को ख़त्म करेंगी.

हालांकि ऐसा हो नहीं सका. मणिपुर की जनता ने संघर्ष की राजनीति की जगह उस यथास्थितिवादी राजनीति का चुनाव किया जिसके ख़िलाफ़ इरोम 16 वर्षों से लड़ रही थीं. इरोम विधानसभा चुनाव में थउबल सीट से मुख्यमंत्री ओकराम ईबोबी सिंह के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ीं, लेकिन उन्हें मात्र 90 वोट ही मिल सके. इस सीट पर उनसे ज़्यादा वोटा नोटा (नन आॅफ द अबव) को मिला. 143 लोगों ने नोटा पर बटन दबाया, जबकि इरोम को मात्र 90 वोट मिले. मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह ने चुनाव जीत लिया है.

मणिपुर के मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह ने भाजपा के एल. बसंत सिंह को 10,400 मतों से हराकर जीत हासिल की. ओकराम इबोबी सिंह को 18,649 वोट मिले. इस सीट से भाजपा उम्मीदवार लीतानथेम बसंता सिंह को 8179 वोट मिले.

तृणमूल कांग्रेस के लीशांगथेम सुरेश सिंह को 144 मत मिले. जबकि निर्दलीय प्रत्याशी डॉ. अकोइजम मंगलेमजाओ सिंह को 66 वोट मिले. इस सीट पर इरोम शर्मिला चौथे स्थान पर रहीं.

मणिपुर की आयरन लेडी कहलाने वाली इरोम शर्मिला ने जब अपनी भूख हड़ताल ख़त्म की थी तो उन्हें काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था. समाजशास्त्री नंदिनी सुंदर ने ट्वीट किया, ‘कम से कम 90 लोगों में कुछ नैतिकता और कुछ आशा बची थी.’

कथाकार मैत्रेयी पुष्पा ने अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा, इरोम शर्मिला, तुम को तुम्हारे राज्य में केवल नब्बे वोट मिले हैं. तुमने स्त्रियों की सुरक्षा के लिए सोलह साल अनशन उपवास रख कर संघर्ष किया. क्या इस राज्य में नब्बे ही औरतें थीं? नहीं, वोट इसलिये नहीं मिले क्योंकि तुम्हारे ऊपर किसी आका की कृपा नहीं थी, तुमने अपने संघर्ष के दम पर यह फ़ैसला लिया था. मगर हमारे देश की स्त्रियां अपना फ़ैसला आज भी अपने पुरुषों पर छोड़ती हैं.’

संजीव सचदेवा ने फेसबुक पर लिखा है, ‘इरोम शर्मिला तेरी हार तुझे मिले हुए मात्र 90 वोट साबित करते हैं कि जनता को उसके लिए भूखे रहने वाले नेता नहीं पसंद बल्कि हवाई जहाज से उड़ने वाले नोट छीनने वाले खाऊ नेता ही पसंद हैं. तेरी हार यहां के प्रजातंत्र के गिरे हुए स्तर को साबित करती है...


सोलह साल बाद टूटेगी भूख हड़ताल...

26 जुलाई 2016

मणिपुर में 16 साल से सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम के ख़िलाफ़ भूख हड़ताल कर रही मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला अपना उपवास तोड़ेंगी.

उन्होंने 9 अगस्त को भूख हड़ताल ख़त्म करने और मणिपुर विधानसभा के चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया है.

इरोम शर्मिला ने पत्रकारों से कहा, "अाफ़्सपा के ख़िलाफ़ मैं पिछले 16 सालों से अकेले लड़ रही हूं. किसी सत्ता, राजनीति शक्ति और समर्थन के बिना. मुझ पर 309 का केस दर्ज किया गया. अब मैं चुनाव के माध्यम से अपनी लड़ाई को आगे ले जाउंगी."

उन्होंने कहा, "एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में मैं चुनाव लड़ूंगी और अाफ़्सपा विरोधी अपनी मुहिम को आगे ले जाऊंगी.

इरोम शर्मिला नवंबर 2000 से आफ़्सपा (सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम) के ख़िलाफ़ भूख हड़ताल पर हैं.

उनको हर 15 दिन में मणिपुर की स्थानीय अदालत में पेश होना पड़ता है और उन्होंने ये जानकारी अदालत में दी है.

बीबीसी संवाददाता दिव्या आर्य के अनुसार उन्होंने अदालत में कहा- "किसी भी राजनीतिक दल ने मेरे लोगों की आफ़्सपा हटाने की मांग को नहीं उठाया. इसीलिए मैंने ये विरोध ख़त्म करने और 2017 के असेंबली चुनावों की तैयारी करने का फ़ैसला किया है. मैं 9 अगस्त को अदालत में अपनी अगली पेशी के समय भूख हड़ताल ख़त्म कर दूँगी."

समाचार एजेंसियों के अनुसार, 44 साल की शर्मिला न केवल अगले साल विधानसभा चुनाव में भाग लेंगी बल्कि वो अब शादी भी करना चाहती हैं.

मणिपुर में वर्ष 1958 से आफ़्सपा लागू है जिसके तहत सशस्त्र बलों को विशेषाधिकार दिए गए हैं.


मुस्लिम समुद्री योद्धा जिसकी आज हमने भुपा दिया.


ख़ैरुद्दीन पाशा (बारबोसा) 

अगर यह सवाल किया जाए कि इस्लामी इतिहास के बड़े योद्धाओं का नाम बताएं जिन्होंने अपनी बहादुरी व युद्ध कला की छाप छोड़ी तो लोग हज़रत खालिद बिन वलीद से शुरू हो कर तारिक़ बिन ज़ियाद मोहम्मद बिन कासिम सुल्तान सलाहुद्दीन अययूबी से होते हुए सुल्तान टीपू तक पचासों लोगों का नाम गिना देंगे लेकिन अगर कहा जाए कि ऐसे योद्धाओं का नाम बताएं जिन्होंने समुद्री युद्ध में अपनी बहादुरी का लोहा मनवाया तो शायद  एक दो नाम भी न बता पाए 
आईए हम आप को एक ऐसे ही योद्धा से मिलाते हैं जिन्हें हम ने भुला दिया पर पश्चिमी दुनिया भुल न सकी आज भी हालीवुड मूवीज़ में समुद्री डाकुओं का सरदार एक लाल दाढ़ी वाला होता है और उस का नाम  अधिक तर कैप्टन बारबरोसा होता है

पश्चिमी देशों में अपने विरोधियों को बदनाम और उन्हें बेइज्जत करने का चलन रहा है अंग्रेज अपने कुत्ते का नाम टीपू रखते रहे हैं उसी तरह खैरुद्दीन पाशा उर्फ बारबरोसा  को समुद्री डाकू बना दिया 

खैरुद्दीन पाशा का असल नाम खिज्र और  पिता का नाम याकूब था बाद में उन्होंने अपना नाम बदल कर खैरुद्दीन पाशा रख लिया  इनके पिता उस्मानी फौज में सैनिक थे जो एजियन समुद्र के एक टापू मिडल्ली पर कार्यरत थे आज यह टापू ग्रीक का हिस्सा है वहीं उन्होंने एक ईसाई विधवा कैटराइन से शादी कर ली  उनके चार बेटे और दो बेटियां हुईं बेटों के नाम इस्हाक , उरूज , इलियास और खिज्र था

  खैरुद्दीन पाशा का जन्म सन् 1478 में हुआ इन चारों में बड़े यानी इस्हाक उस जमाने के दस्तूर के मुताबिक कुरआन हिफज़ करके आलिम बनें और बाकी तीनों ने समुद्री रास्ते से व्यापार शुरू किया और जल्द ही खुद का एक समुद्री जहाज खरीद लिया  एक भाई उरूज की दाढ़ी के बाल लाल थे जिसके कारण यूरोपीय लोगों ने उन्हें बारबरोसा कहना शुरू किया जो इटली भाषा का शब्द है जिसका अर्थ लाल दाढ़ी वाला होता है और आगे चलकर खैरुद्दीन पाशा को भी बारबरोसा कहा जाने लगा 

यह वह जमाना था जब स्पेन और पुर्तगाल बहुत बड़ी ताकत थे स्पेन में मुसलमानों की हुकूमत सिर्फ  एक शहर तक बाकी बची थी वह भी किसी एक धक्के की मोहताज थी स्पेन वाले आगे बढ़ कर आए दिन अल्जीरिया व मोरक्को पर हमला करते थे और वहां के मुस्लिम शासकों से जम कर लगान वसूल करते थे आस पास छोटे टापूओं पर कब्ज़ा करके मुस्लिम व्यापारियों के व्यापार का रास्ता बंद कर दिया था

 यहीं खैरुद्दीन पाशा के बड़े भाइयों उरूज व इलियास का टकराव स्पेन व पुर्तगाल की सेना से हुआ इन भाइयों की ताकत कम थी कहां छोटे छोटे व्यापारी और कहां दो बड़े देशों की सेना इन्होंने गोरिल्ला जंग शुरू की अचानक हमला करते और नुकसान पहुंचा कर भाग जाते जिसके कारण सेना में इनका डर बैठ गया सेना के लोग इन्हें समुद्री डाकू कहने लगे जो आज तक चला आ रहा है हालांकि इन लोगों का डकैती से कोई लेना-देना नहीं था 

धीरे धीरे इनकी ताक़त बढ़ने लगी और इन्होने कुछ टापूओं पर अपनी सरकार बना ली इनकी बढ़ती ताकत को देख कर स्पेन व पुर्तगाल ने दूसरे देशों की मदद लेकर हमला किया जोरदार लड़ाई हुई और खैरुद्दीन पाशा के भाइयों की हार हुई  दोनों भाई यानी उरूज व इलयास शहीद कर दिए गए 

भाईयों की शहादत के बाद भी खैरुद्दीन पाशा रुके नहीं वह अपने काम में लगे रहे वह उस छेत्र के मुसलमानों के लिए किसी हीरो से कम ना थे रोज़ उनकी ताकत बढ़ती जा रही थी जिसके कारण अल्जीरिया के शासकों ने मिलकर इनसे लड़ाई छेड़ी जिसमें खैरुद्दीन पाशा की जीत हुई और अल्जीरिया पर इनका कब्जा हो गया उस समय असतंबूल तुर्की में सुल्तान सलीम की हुकूमत थी खैरुद्दीन पाशा ने अपने देश को उनसे जोड़ते हुए अल्जीरिया को उस्मानी सम्राज्य का हिस्सा बना दिया सुल्तान सलीम ने इन्हें अल्जीरिया में ही रहने को कहा और वहां का गवर्नर नियुक्त किया सन 1518 से 1533 तक यह अलजीरिया के गवर्नर रहे 

सुल्तान सलीम के इंतकाल के बाद उनके बेटे महान् सुलेमान कानूनी सुल्तान व खलीफा बनें उन्होंने  बेलग्रेड पर विजय प्राप्त की और उसके बाद स्पेन पर हमला करना चाहा जिसके लिए उन्हें जल सेना मजबूत करने की जरूरत पड़ी  इस काम के लिए  खैरुद्दीन पाशा से अच्छा कौन हो सकता था उन्हें अल्जीरिया से बुला कर अमीरुल बहर ( ऐडमिरल , जल सेना अध्यक्ष ) बना दिया 

यहां से खैरुद्दीन पाशा की असल जिंदगी शुरू हुई उन्होंने कामयाबी के वह क्रीतमान स्थापित किए जिसने उन्हें इस्लामी इतिहास का सबसे बड़ा समुद्री योद्धा बना दिया इनके बेटे हसन बिन खैरुद्दीन भी बहुत बड़े योद्धा थे लेकिन वह भी अपने पिता की ऊंचाइयों को न पहुंच सकें 

इनका सब से बड़ा काम बरोज़ा की जंग थी जिसमें एक ओर युरोप के देशों  की संयुक्त सेना थी और दूसरी ओर उस्मानी ख़िलाफत की अकेली सेना फिर भी जीत उसमानियों की हुई यूरोप के 600 समुद्री जहाजों और नावों पर कब्जा  और 30000 यूरोपीय सैनिक गिरफ्तार कर लिए गए जबकि उस्मानी सेना को किसी एक जहाज़ या नाव का भी नुक्सान नहीं उठाना पड़ा 

दूसरा बड़ा काम इनका अंदुलुस से मुसलमानों को सुरक्षित निकालने का था इन्होंने 36 जहाजों के साथ वहां से लगभग 70 हज़ार मुसलमानों को निकाल कर अल्जीरिया में बसाया 

इनका तीसरा बड़ा काम फ्रांस की मदद थी एक बार फिर इन्होंने इटली के नेतृत्व वाली कई यूरोपीय देशों की संयुक्त सेना को हराकर उनके कब्जे में फ्रांस के शहरों को आजाद कराया 
आखिर जुलाई 1546 में इनका इंतेकाल हो गया 

लेख लंबा हो गया बहुत सी चीजें जान बूझ कर छोड़ दीं मै चाहता हूं कि आप लोग इस हीरो से जुड़े और मेहनत करके इनके बारे में अधिक से अधिक जानकारी हासिल करें 
खिज्र बिन याकूब उर्फ खैरुद्दीन पाशा उर्फ बारबरोसा हमारी तारीख का वह रोशन सितारा हैं जिनकी चमक सुल्तान सलाहुद्दीन अययूबी , सुल्तान मोहम्मद फातेह , सुल्तान बायजीद यलदरम और खुद महान सुलेमान कानूनी से किसी तरह कम नहीं है

~✍️Khursheeid Ahmad

Friday, 4 June 2021

રાજ્યમાં ધર્મ સ્વાતંત્ર્ય સુધારા અધિનિયમ-ર૦ર૧નો તા. ૧પમી જૂન-ર૦ર૧થી અમલ કરાશે.


"મુખ્યમંત્રી શ્રી વિજયભાઇ રૂપાણીનો નિર્ણય"
રાજ્યમાં ધર્મ સ્વાતંત્ર્ય સુધારા અધિનિયમ-ર૦ર૧નો તા. ૧પમી જૂન-ર૦ર૧થી અમલ કરાશે.
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ગુજરાતમાં લોભ-લાલચ, બળજબરી કે કોઇ પણ પ્રકારની હિંસાના પ્રભાવ હેઠળ કોઇ પણ વ્યક્તિને ધર્મ પરિવર્તન ન કરાવવામાં આવે તે સુનિશ્ચિત કરવા ‘ગુજરાત ધર્મ સ્વાતંત્ર્ય અધિનિયમ-ર૦૦૩’નો રાજ્યમાં અમલ થઇ રહ્યો છે.
મુખ્યમંત્રી શ્રી વિજયભાઇ રૂપાણીએ આ ગુજરાત ધર્મ સ્વાતંત્ર્ય અધિનિયમ-ર૦૦૩માં કરવામાં આવેલા સુધારાઓના સંદર્ભમાં હવે આગામી તા.૧પ જૂન-ર૦ર૧થી રાજ્યમાં ગુજરાત ધર્મ સ્વાતંત્ર્ય (સુધારા) અધિનિયમ-ર૦ર૧ અમલી કરવાનો નિર્ણય કર્યો છે
રાજ્યમાં તા.૧પ જૂન-ર૦ર૧થી અમલમાં આવનારા આ અધિનિયમની મહત્વની જોગવાઇઓ આ પ્રમાણે છે.
• માત્ર ધર્મ પરિવર્તનના હેતુથી કરેલ લગ્ન અને/અથવા લગ્નના હેતુથી કરેલ ધર્મ પરિવર્તનના કિસ્સામાં થયેલ લગ્ન ફેમીલી કોર્ટ/ન્યાયક્ષેત્ર ધરાવતી કોર્ટ દ્વારા રદ કરવામાં આવશે.
• કોઇપણ વ્યક્તિ સીધી રીતે અથવા અન્યથા કોઇપણ વ્યક્તિની બળપૂર્વક અથવા લલચાવીને અથવા કપટયુક્ત સાધનો દ્વારા અથવા લગ્ન દ્વારા અથવા લગ્ન કરાવવા અથવા લગ્ન કરાવવામાં મદદ કરવા ધર્મ પરિવર્તન કરાવી શકશે નહી.
• આ અંગે સાબિત કરવાનો ભાર (Burden of Proof) આરોપી, ધર્મ પરિવર્તન કરાવનાર તથા સહાયક પર રહેશે. 
• ગુનો કરનાર/કરાવનાર/મદદ કરનાર/સલાહ આપનાર તમામ સમાન પ્રકારે દોષિત ગણાશે.
• આ જોગવાઇનું ઉલ્લંઘન કરનારને ૩ વર્ષથી ઓછી નહિ અને ૫ વર્ષ સુધીની કેદ અને રૂ.૦૨ લાખથી ઓછા નહિ તેમ દંડને પાત્ર થશે.
• પરંતુકમાં, સગીર, સ્ત્રી, અનુસૂચિત જાતિ, અનુસૂચિત આદિજાતિની વ્યક્તિના સંબંધમાં સજાની જોગવાઇ ૪ થી ૭ વર્ષ સુધીની કેદ અને રૂ.૩ લાખથી ઓછા નહિ તેમ દંડને પાત્ર થશે. 
• કોઇ નારાજ થયેલી વ્યક્તિ, તેના માતાપિતા, ભાઇ, બહેન અથવા લોહીની સગાઇથી, લગ્નથી અથવા દત્તક સ્વરૂપે હોય તેવી બીજી કોઇ વ્યક્તિ દ્વારા આવા ધર્મ પરિવર્તન તથા લગ્ન સામે FIR દાખલ કરાવી શકાશે.   
• આ જોગવાઇઓનું પાલન ન કરનાર સંસ્થાનું રજીસ્ટ્રેશન રદ કરાશે તેમજ આવી સંસ્થાને ૩ વર્ષથી ઓછી નહીં અને ૧૦ વર્ષ સુધીની કેદ તથા રૂ.૦૫ લાખ સુધીના દંડની સજાને પાત્ર થશે. આવી સંસ્થાને ચાર્જશીટ ફાઇલ કરવામાં આવેલ તારીખથી રાજ્ય સરકાર દ્વારા નાણાકીય મદદ/અનુદાન મળવાપાત્ર થશે નહીં.   
• આ કાયદા હેઠળના ગુના બિનજામીનપાત્ર તથા કોગ્નીઝેબલ ગુના ગણાશે તેમજ તેની તપાસ Deputy Superintendent of Police થી ઉતરતા દરજ્જાના અધિકારી દ્વારા તપાસ કરી શકાશે નહિ.  
• *અત્રે નિર્દેશ કરવો જરૂરી છે કે, ગુજરાત ધર્મ સ્વાતંત્ર્ય અધિનિયમ-ર૦૦૩ની મહત્વપૂર્ણ જોગવાઇઓમાં નીચેની બાબતોનો સમાવેશ કરવામાં આવેલો હતો*
• બળપૂર્વક, લલચાવીને, કપટયુક્ત સાધનો દ્વારા કરાતાં ધર્મ પરિવર્તન માટે ૩ વર્ષ સુધીની કેદ અને ૫૦ હજાર રૂપિયા સુધીનો દંડ
• સગીર, સ્ત્રી, અનુસૂચિતજાતિ, અનુસૂચિત આદિજાતિની વ્યક્તિના સંબંધમાં બળપૂર્વક, લલચાવીને, કપટયુક્ત સાધનો દ્વારા કરાતાં ધર્મ પરિવર્તન માટે ૪ વર્ષ સુધીની કેદ અને એક લાખ રૂપિયા સુધીનો દંડ.
• ધર્મ પરિવર્તનની ધાર્મિક વિધિ કરાવનારે સંબંધિત જિલ્લા મેજીસ્ટ્રેટની પૂર્વ પરવાનગી મેળવવી. જિલ્લા મેજીસ્ટ્રેટે તપાસ પછી ૧ મહિનાની અંદર પરવાનગી આપવી/ઇન્કાર કરવો.
• ધાર્મિક વિધિ કરાવનારે સંબંધિત જિલ્લા મેજીસ્ટ્રેટની પૂર્વ પરવાનગી ન મેળવી હોય તેવા કિસ્સામાં એક વર્ષ સુધીની કેદ અથવા ૧ હજાર રૂપિયા સુધીનો દંડ અથવા બન્ને
• ધર્મ પરિવર્તન કરનારે ધર્મ પરિવર્તનની વિધિની તારીખથી ૧૦ દિવસની અંદર જિલ્લા મેજીસ્ટ્રેટને જાણ ન કરી હોય તેવા કિસ્સામાં એક વર્ષ સુધીની કેદ અથવા ૧ હજાર રૂપિયા સુધીનો દંડ અથવા બન્ને.
• ગુનાની કોઇપણ કાર્યવાહી જિલ્લા મેજિસ્ટ્રેટ/સબ-ડિવિઝનલ મેજિસ્ટ્રેટની પૂર્વ મંજૂરી વિના શરૂ કરી શકાશે નહી.
• આ કાયદા હેઠળના ગુના પોલીસ અધિકાર હેઠળના ગુના ગણાશે તેમજ તેની તપાસ Police Inspector થી ઉતરતા દરજ્જાના અધિકારી દ્વારા તપાસ કરી શકાશે નહિ.
આમ, મુખ્યમંત્રી શ્રી વિજયભાઇ રૂપાણીએ રાજ્યમાં લવજેહાદ જેવી પ્રવૃત્તિઓ-ગતિવિધિઓ અને માત્ર ધર્મ પરિવર્તનના હેતુથી કરેલા લગ્ન કે લગ્નના હેતુથી કરેલ ધર્મ પરિવર્તનના કિસ્સાઓ સહિતની બાબતો માટે હવે ગુજરાત ધર્મ સ્વાતંત્ર્ય (સુધારા) અધિનિયમ-ર૦ર૧નો તા.૧પ મી જૂન-ર૦ર૧થી અમલ કરવાનો નિર્ણય કર્યો છે.

7/11 मुंबई विस्फोट: यदि सभी 12 निर्दोष थे, तो दोषी कौन ❓

सैयद नदीम द्वारा . 11 जुलाई, 2006 को, सिर्फ़ 11 भयावह मिनटों में, मुंबई तहस-नहस हो गई। शाम 6:24 से 6:36 बजे के बीच लोकल ट्रेनों ...