Dr Mumtaz Faisal Malik:
संविधान विरोधी भावना से हुई है डाक्टर उमर गौतम की गिरफ़्तारी.
हिन्दू से मुसलमान बने डाक्टर उमर गौतम को योगी सरकार की पुलिस ने गिरफ़्तार करके उन पर जबरन धर्म परिवर्तन का आरोप लगाया है। हालांकि डाक्टर उमर गौतम ने ख़ुद किस की ज़बरदस्ती से इस्लाम क़ुबूल किया था इसका जवाब पुलिस के पास नहीं है। डाक्टर उमर गौतम एक पढ़े लिखे आदमी हैं और उन्होंने अपने जीवन का मिशन ही ग़ैर मुस्लिमों ख़ास तौर से हिन्दुओं को मुसलमान होने के लिए राज़ी करना बनाया हुआ है। लगभग 30 साल से वह यह काम कर रहे हैं और खुले आम करते आ रहे हैं। जो लोग इस्लाम क़ुबूल करने के बाद मुस्लिम समाज में नए नए दाख़िल होते हैं उनकी समस्याओं को हल करना और उनके रोज़गार व सामाजिक ज़रूरतों में उनकी मदद करना उनका ख़ास काम है जिसके लिए वह ऐसे नए मुसलानों के विशेष सम्मेलन भी करते रहते हैं। उन्हें न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी इस्लाम के एक दाई (इस्लाम की ओर बुलाने वाले स्वंयसेवक) के रूप में जाना जाता है। उन से जब यह पूछा जाता है कि उन्होंने हिन्दू धर्म छोड़ कर इस्लाम क्यूं क़ुबूल किया था तो वह कहते हैं कि मैं ने इस्लाम धर्म को पढ़ कर और समझ कर इस्लाम को ही एक सच्चे धर्म के रूप में जाना। मैं ने क़ुरआन को ख़ुद पढ़ा और अल्लाह के संदेश को डायरेक्ट ख़ुद समझा और अल्लाह से अपना रिश्ता जोड़ने के लिए उसके पैग़ाम को अपनाया।
एक ऐसे आदमी को जिन्होंने ख़ुद पढ़ कर समझ कर अपनी मर्ज़ी से इस्लाम को अपनाया, और इस भावना से उसको फैलाने में लगे रहते हैं कि जो रोशनी उन्हें मिली है उसे दूसरों तक भी पहुंचाया जाए उन पर दूसरों को लालच या साज़िश से मुसलमान बनाने का आरोप लगाना हास्यास्पद है। लेकिन हास्यास्पद होने से ज़्यादा यह एक बहुत गम्भीर मामला है और इस्लाम विरोधी ताक़तों की हताशा को दर्शाता है। यह ज़मीर व आस्था की आज़ादी के संवैधानिक सिद्धांत को नकारने और ख़त्म करने की एक ख़तरनाक भावना है।
संघ परिवार और कट्टर हिन्दू संगठन इस्लाम के दुशमन हैं और भारत को इस्लाम मुक्त भारत बनाना चाहते हैं यह बात अब किसी से ढकी छुपी नहीं रह गयी है। इस तरह के लोगों के खुले बयान, घोषित उद्देश्य और कथित जागरण अभियान इस पर गवाह हैं। यह बात भी सब के सामने है कि देश की राजनीति पर अब संघ परिवार की पकड़ है और केन्द्र सरकार के अलावा कई राज्यों की सरकारें संघ परिवार के राजनीतिक दल के हाथ में हैं जिसकी छत्रछाया में देश का राजनीतिक व सामाजिक वातारवरण बहुत हद तक मुस्लिम वेरोधी बन चुका है। जनता के द्वारा मुसलमानों की मोबलिंचिंग, पुलिस द्वारा मुसलमानों की धर पकड़ और मीडिया के एक बड़े वर्ग के द्वारा मुसलमानों के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार अब देश की एक राजनीतिक और सामाजिक संस्कृति बन गयी है। ऐसे में डाक्टर उमर गौतम जैसे सहज, सुशील और सज्जन व्यक्ति की ग़ैर क़ानूनी धर्म परिवर्तन के नाम पर गिरफ़्तारी कोई चौंकाने वाली बात नहीं है।
चौंकाने वाली बात अगर कोई है तो वह यह कि देश कितनी तेज़ी से एक हिन्दुत्वादी पुलिस स्टेट बनता जा रहा है। देश का धर्मनिर्पेक्ष और लोकतांत्रिक चरित्र जिस पर देश और देश वासियों को अभी तक गर्व रहा है उन लोगों को कभी भी पसन्द नहीं था जो देश को हिन्दू राष्ट्र के रूप मे स्थापित करने के लिए आज़ादी के पहले से लगे हुए हैं। इन लोगों ने उस समय की राजनीतिक परिस्थितियों के दबाव में देश के संविधान को मानने का ऐलान तो कर दिया था लेकिन दिल से कभी नहीं माना। इसीलिए वो राष्ट्रीय ध्वज के बजाए भगवा ध्वज लहरहाते आ रहे हैं और राष्ट्रगान के बजाए बन्देमातृम पर ज़ोर देते आ रहे हैं। ये मुसलमानों को हिन्दू बनाने पर तो उतारू रहते हैं लेकिन इस्लाम के प्रचार या इस्लाम अपनाने पर अंकुश लगाना चाहते हैं। इस्लाम या ईसाइयत के प्रचार पर रोक लगाने के लिए ये लोग धर्म परिवर्तन का विरोध करते रहे और जब अपनी सरकारें बनी तो धर्म परिवर्तन पर पाबंदी लगाने के लिए क़ानून बनाने में देर नहीं की। हालांकि धर्म प्रचार हर व्यक्ति और और हर धार्मिक समूह का मौलिक अधिकार है और किसी भी धर्म को अपनाना हर व्यक्ति का मानव अधिकार है। संविधान का आर्टिकल 25 कहता है कि भारत में हर व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने, उसके मुताबिक़ अमल करने और उसका प्रचार करने की आज़ादी है। और संविधान के आर्टिकल 15 के अनुसार किसी नागरिक के साथ धर्म, जाति, लिंग, नस्ल और जन्म स्थान आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। दर असल इस तरह की आज़ादियां भारत के सभी नागरिकों के मौलिक अधिकार हैं जिन्हें संविधान के तीसरे भाग में आर्टिकल 12 से 35 तक अलग अलग तरह से बयान किया गया हे।
लेकिन संविधान द्वारा दी गयी धार्मिक आज़ादी को ख़त्म करने के लिए हिन्दुत्वादी सरकारों ने तरह तरह के हीले बहानों से धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने वाले क़ानून बनाए और क़ानून के ग़लत स्तेमाल के द्वारा ईसाइयों व मुसलमानों का उत्पीड़न करते आ रहे हैं। डाक्टर उमर गौतम की ग़िरफ़्तारी भी इसी सिलसिले का हिस्सा है। हालांकि इन लोगों को भी मुसलमानों या ईसाइयों की तरह पूरा मौक़ा मिला हुआ है और संविधान के दायरे में रहते हुए सकारात्मक रूप से हिन्दू धर्म का प्रचार करने और हिन्दू धर्म अपनाने के लिए लोगों को क़ायल करने की पूरी आजादी है लेकिन इनके पास सकारात्मक भावना का अभाव है और अपने धर्म की ओर तार्किक रूप से बुलाने के लिए आत्मविश्वास की कमी हे। इसलिए इनकी रणनीति और कार्यशैली नकारात्मक है और तर्क के बजाए ताक़त से इस्लाम के संदेश को फैलने से रोकना चाहते हैं।
अदील अख़तर