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Sunday, 6 June 2021

इत्तेहादे बैनुल मुसलेमीन और उलमा का किरदार.




इस बात को पेशे नज़र रखते हुए की हर ज़माने में खुसूसन दौरे हाज़िर में जबकि लेबनान और फ़िलिस्तीन के मुसलमान अमेरिका की खुली हुई हिमायत के ज़रीए ग़ासिब इस्राईल के बे रहमाना हमलों का शिकार हैं। मुसलमानों के अन्दर इत्तेहाद व यक जहती पैदा करना एक अक्ली ज़रुरत व दीनी फरीज़ा है। पूरी उम्मते इस्लामिया की ज़िम्मेदारी है कि वह इत्तेहाद व बिरादरी व भाई चारगी की फिज़ा ईजाद करे अलबत्ता दीनी उलमा का फर्ज़ दूसरे तमाम लोगों से ज़ियादा है क्यों की वह इस सिलसिले में अहम किरदार अदा कर सकते हैं।

इस मक़ाले में पहले क़ुरआने मजीद और हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की सुन्नत में मुसलेमीन व मोमनीन के दरमियान इत्तेहाद की अहमियत व ज़रुरत की तरफ़ इशारा किया गया है फिर मुसलमान और मोमीनों की तारीफ़ ब्यान की गई है।

शीया और सुन्नी तारीफ़ के मुताबिक़ मुसलमान और साहेबे ईमान वह है जिसके अन्दर दर्ज ज़ैल सेफ़ैत होः

1. खुदा और उसकी वहदा नियत पर ईमान रखता हो।

2. हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की नुबुवत व रेसालत और आप खुदा की जानब से जो कुछ पैग़ाम लाए हैं उन सब पर ऐतेकाद रखता हो।

3. क्यामत पर अक़ीदा रखता हो।

उसके बाद इख्तेसार के साथ इस्लामी मुआशरों में दीनी उलमा का दर्जा व मर्तबा ब्यान किया गया है। इस्लामी मुआशरे में दीनी उलमा को ख़ास तौर से बड़ी फज़ीलत हासिल रही है उन्हे हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का जानशीन और खुदा के अमीन..... के उन्वान से जाना और पहचाना जाता है।

आख़िर में मुसलामानों के दर्मियान इत्तेहाद व यक जेहती पैदा करने के सिलसिले में उलमा के 20 तरीक़े और तजावुज़ को इशारे के तौर पर ब्यान किया गया है मन जुम्लाः

1. तँग नज़री से परहेज़ और खुराफ़ात नीज़ बिदअतों से दूरी।

2. इत्तेहाद पैदा करने के सिलसिले में क़ुरआनी अहकाम सुन्नते नबवी की तरफ़ तवज्जोह देना।

3. हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के अहले बैत अलैहिमुस सलाम की इक़्तेदा।

4. वाक़ेईयत को ब्यान के तहर्रुफ़ात से परहेज़ करना।

5. एक दूसरे के अक़ाएद से बा ख़बर होना।

 

किलीदी अल्फ़ाज़ः

क़ुरआन पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लमदीनी उलमाइस्लामी इत्तेहादहम बस्तगीइस्लामी मज़ाहिब और इख्तेलाफ़।

मुकद्देमाः

तमाम इस्लामी मज़ाहिब के मानने वालों के दर्मियान हम आहँगी और यक जेहती एक बुनियादी मसला है और उसकी बहुत ज़्यादा अहमियत है। खास तौर से उस ज़माने में जब कि इस्लाम के सारे दुश्मन मुख्तलिफ़ तरीकों मिन जुम्ला दहशत गर्दी और एटमी अस्लहों के ज़रीए इस्लाम के हयात बख्श मक़सद को कमज़ोर और निस्तो नाबूद करना चाहते हैं इसी लिए अज़मते इस्लाम की तजदीदमुसलमानों की नेजात व आज़ादी और दुश्मनों की तमाम साज़िशों को नाकाम बनाने का तन्हा आमिल और ज़रीया दुनिया के सारे मुसलमानों का आपसी इत्तेहाद है। इत्तेहाद एक ऐसा हल है जो सिर्फ सियासी उमूर में ही मदद गार नहीं है बल्कि आबादीतरक्की....में भी मोवस्सीर है।

इत्तेहादे क़ुर्बत से मुरादइस्लामी इत्तेहादे कुर्बत हैसियासी व मज़हबी नहीं है। यानी सारे मुसलमान अपने अपने मज़हबी तशख़्ख़ुस के साथ दुश्मनाने इस्लाम के खेलाफ़ एक मुहाज़ पर जमा हो जाऐं और अपनी दीनी हैसियत व सकाफ़त का देफा करें। ऐसा इत्तेहाद अमली तौर पर मुम्किन है हर शिया व सुन्नी मुसलमान का फरीज़ा है कि ऐसा इत्तेहाद पैदा करने की राह में सन्जीदगी के साथ इक़्दाम करे इस सिल्सिले में दीनी उलमा की ज़िम्मेदारी बहुत सन्गीन है इस मक़ाले में इस सिल्सिले में उलमा के किरदार को ब्यान किया गया है।

इस्लामी मज़ाहिब के मानने वालों के दर्मियान हम बस्तगी व यक जेहती पैदा करने के सिल्सिले में दीनी आलिमों और दानिश्वरों ने जो रोल अदा किया है उसे ब्यान करने से पहले क़ुरआन व सुन्नत की नज़र में मुसलमानों के दर्मियान इत्तेहाद की अहमियत व ज़रुरियात ब्यान की जाती है।

 

इत्तेहादक़ुरआन मेः

क़ुरआने मजीद ने मोतअद्दीद आयात में मुख्तलिफ़ तॉबीरात के ज़रीए तमाम मुसलमानों को इत्तेहाद व तौहीद की दावत दी है और इख्तेलाफ़ नीज़ दुश्मनी से रोका है मनजुम्लाः

1. वअतसेमू बेहब्लील्लाहे जमीआ वला तफर्रकू।

और तुम सब के सब मिल कर खुदा की रस्सी मज़बूती से थामे रहो और आपस में (एक दूसरे के दर्मियान) फूट न डालो। (आले इमरानः सूरह 3 आयत 103)

2. वला तकूनु कल्लज़ीन तफरकू वख्तलफू मिन बादे मा जाअहुमुल बैयनात व उलाऐक लहुम अज़ाबुन अज़ीम।

और तुम उन लोगों के ऐसे न हो जाना जो आपस में फूट डाल कर बैठे रहे और रौशन दलीलें आने के बाद भी (एक दलील एक ज़बान न हुए) और ऐसे ही लोगों के वास्ते बड़ा भारी अज़ाब है। (आले इमरानः सूरह 3 आयत 105)

3. (इन्नमल मोमनून इख्वत फस्लहु बैन अखबैकुम वत्तकुल्लाह लअल्लकुम तुर्हमून) मोमनीन तो आपस में पस भाई भाई हैं तो अपने दो भाईयों में मेल जोल रखो और खुदा से डरते रहो ताकी तुम पर रहम किया जाए। (हुजरातः सूरह 10 आयत 49)

4. (मोहम्मद रसूलुल्लाह वल्लज़ीन मअहु अश्दाअ अलल कुफ्फार रहमाअ बैनहुम)

मुहम्मद खुदा के रसूल है और जो लोग उनके साथ हैं काफिरों पर बड़े सख्त और आपस में बडे रहम दिल हैं। (फत्हः सूरह 29आयत 48)

5. (इन्न हाज़ा उम्मतकुम उम्तन वाहेदतन व अना रब्बकुम फआबदुन)

बेशक तुम्हारा ये दीने इस्लाम एक ही दिन है और में तुम्हारा पर्वरदिगार हूँ तो मेरी ही ईबादत करो। (अम्बियाः 21. 92)

इत्तेहादनबी की सुन्नत व सीरत मेः

हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की सुन्नत और आप की बा अज़मतसीरत के मुतालऐ से ये अन्दाज़ा होता है कि आपने बहुत से मक़ामात पर अपने क़ौल व अमल के ज़रीए अपने मानने वालों को इत्तेहाद की दावत दी है और तफ़रक़ा व इख्तेलाफ़ से डराया है। आप हमेशा तवज्जोह रखते थे कि मुसलमान एक दुसरे से इख्तेलाफ़ पैदा न करें अगर उनके दर्मियान एक छोटा सा भी इख्तेलाफ़ पैदा हो जाता था तो आप खुद रुबरु होते और फ़ितने की आग को ख़ामोश कर देते थे। इस सिल्सिले में हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के चन्द अक़वाल की तरफ ज़ैल में इशारा किया जाता है।

1. ज़िम्मल मुस्लेमीन व अहदत यसई बिहा अदनाहुम व हुम यद अला मिन सलाहुम फ़मन अख्फर मुस्लेमा फअलैहे लअनतल्लाह वल मलाईकतहु वन्नास अजमईन ला यक्बल मिन्हो यौमल कियामह सर्फ वला अदल।

मुसलमानों का अहद एक ही है उस बारे में उन में छोटे से छोटा मुसलमान भी कोशिश करे। सारे मुसलमान तमाम ग़ैर मुस्लेमीन के मुक़ाबले में बिल्कुल मुत्तहीद हैं। जो किसी मुसलमान के साथ ख़्यानत करेगा। उस पर खुदा व फ़रीश्ते और तमाम लोगों की लानत होगी क्यामत के दिन खुदा उससे किसी किस्म का कोई बहाना कबूल नहीं करेगा। (रोज़ा व नमाज़ क़बूल नहीं करेगा) मन्सूर अली तासुफ़, 1382 कजिल्द 4, सफ़हा 400,

2. अल मुस्लिम इख्वल मुस्लिम ला यज़्लमहु वला यसलमहु (इ इलल हलाक) मिन कान फी हाज्जत अखीहे कानल्लाह फी हाजतहु व मिन फरज अन मुस्लिम कर्ब फरजल्लाह अन्हो कुर्बहु मिन कर्ब यौमल कियामत व मिन सतर मुस्लेमा सतरहुल्लाह यौमल कियामह।

एक मुसलमान दुसरे मुसलमान का भाई है उसके ऊपर ज़ुल्म नहीं करता है और उसे तन्हा नहीं छोडता हैजो शख्स अपने भाई की हाजत रवाई में मशगूल होता है खुदा उसकी हाजत पुरी करता है और जो किसी मुसलमान का कोई गम दूर कर देता है खुदा क्यामत के दिन उससे क्यामत का गम दूर कर देगा और जो किसी मुसलमान को लेबास पहनाता है खुदा वन्दे आलम क्यामत के दिन उसे लेबास पहनाऐगा. (मन्सूर अली नासीफजिल्द 5, सफहा 20).

3. मिस्लल मोमीन फी तवाद हुम व तुआफ हुम व तरा हम हुम बे मन्ज़ेलतुल जसद इज़ा अश तका मिन्हु शैईं तदाई लहु साऐरल जसद बेसहरे वल हुमैः

मोमनीन एक दूसरे के साथ दोस्ती व उतूफत और मेहरबानी में इन्सान के बदन के आज़ा के मानिन्द हैं। जब बदन के किसी एक हिस्से को तक्लीफ़ होती है तो दूसरे आज़ा की नीन्द भी हराम हो जाती है और वह भी बुख़ार में मुब्तेला हो जाता है। (इब्ने हन्बल बग़ैर तारीख़जिल्द 4, सफ़हा 270).

हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने अपनी ज़बाने मुबारक से ताकीद के अलावा अमली तौर पर भी इत्तेहाद बरक़रार करने के लिए कदम उठाऐ हैं चुनाँचेः उसकी एक मिसाल यह है की आप ने औस और खज़रज के क़बीलों के दर्मियान सुल्ह कराई जब आप मदीना मुनव्वरा तश्रीफ ले गए तो शुरु में ही आप ने उन दोनो क़बीलों की आपसी दुश्मनी को दोस्ती में बदल दिया। (स्युतीजिल्द 2, सफ़हा 287, आले इमरान की आयत 102 के ज़ैल में बे हवालेः बहुस कुर्आनीया फ़िल तौहीद वल शिर्कः आयतुल्लाह सुब्हानी)

हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने मुसलमानों के दर्मियान बिरादरी व हम दिली बरक़रार करने और इख्तेलाफ़ के अस्बाब व अवामिल को ख़त्म करने के सिलसिले में जो दूसरा अमली इक़दाम किया वह यह की आप ने अन्सार और मुहाजेरीन के दर्मियान अक्दे उखूवत बाँधा और बिरादरी क़ायम की जबकि अन्सार और मुहाजेरीन के दर्मियान क़ौम व क़बीले और इक़्तेसाद के लेहाज़ से बहुत फ़र्क़ थादोनों के दर्मियान कोई तनासुब न था। मुनाफ़ेक़ीन ये कोशिश कर रहे थे कि उनके दर्मियान फूट डाल दें और इस्लाम का एक नया मुआशरा मदीने में पर्वान चढ़ा रहा था। उसे ख़तरों में मुब्तला कर दें लेकिन हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की इस हिक्मते अमली से अक्दे उखूवत के बाद मुनाफ़ेक़ीन की सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया और आप के इक्दाम ने उन को मायूस व ना उम्मीद कर दिया। (इब्ने हशामसन 1363 शजिल्द 2, सफ़हा 150)

 

मुसलमान और मोमिन कौनः

मुसलमानों के दर्मियान इत्तेहाद बरक़रारा करने की अहमियत व ज़रुरत के बारे में जो बातें ऊपर ब्यान की गई हैं उस में किसी मुसलमान के लिए शक व तर्दीद की गुन्जाईश नहीं है लेकिन यह सवाल बाकी रह जाता है की कलामी व फिक्ही लेहाज़ से किस को मुसलमान व मोमिन कहा जाता है।

अन नब्वी की रिवायत के मुताबिक़ जिन्हें शिया और सुन्नी हर एक ने हदीस की अपनी अपनी मोतबर किताबों में नक़्ल किया है मुसलमान वह शक्स है जो खुदा की वहदानियत और हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की रेसालत की गवाही दे। नीज़ क्यामतपन्ज गाना नमाज़रोज़ाज़कात और हज का अक़ीदा रखता हो। हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमायाः इस्लाम की बुनियाद पाँच चीज़ों पर रखी गई हैख़ुदा की वहदानियतहज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की रेसालत पर गवाही नमाज़ क़ाएम करनाज़कात देनाहज करनाऔर माहे रम्ज़ानुल मुबारक के रोज़े रखना। (बुखारी बग़ैर तारीख़जिल्द 1, सफ़हा 11)

इब्ने उमर से रिवायत है कि हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमायाः मुझे ये हुक्म दिया गया है कि लोगों से जन्ग करुँ ताकी वह खुदा की वहादानियत और हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की रेसालत की गवाही देंनमाज़ पढ़ें ज़कात देंपस जब वह लोग उस पर अमल करेंगे तो उन का खून और माल मेरी जानिब से महफूज़ हो जाएगा। (बुखारीजिल्द 1, सफहा 13).

एक शख्स ने हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम से पूछा की इस्लाम क्या है आप ने फ़रमायाः इस्लाम ये है की तुम गवाही दो कि खुदा के अलावा कोई माबूद नहीं है और मुहम्मद उसके रसूल हैंनमाज़ पढोज़कात दोमाहे रम्ज़ानुल मुबारक के रोज़े रखो और इस्तेताअत की सूरत में खाने कॉबा का हज करोउसके बाद उसने पूछा की ईमान क्या हैहज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमायाः खुदामलाऐकातमाम (आसमानी) किताबोंअम्बियाकज़ा व क़द्रऔर ख़ैरो शर पर ईमान लाओ। (कशीरी, 261 हिज्रीजिल्द 1, सफ़हा 37).

अजलान से मर्वी है की मैने हज़रत ईमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम से अर्ज़ की क्या मुझे ईमान की तारीफ़ ब्यान फ़रमायेंगेः इमाम अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः खुदा की वहदानियतऔर हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की रेसालत की गवाही देनाआप जो कुछ खुदा की जानिब से लाये हैं उन सब का इक़रार करनापन्ज गाना नमाज़ें पढ़नाज़कात देनामाहे रमाज़ान के रोज़े रखनाखान ए कॉबा का हज करनाहमारे दोस्तों से दोस्ती और हमारे दुश्मनों से दुश्मनी करना और सादेक़ीन के ज़ुमरे में दाख़िल होना। (कुलैनी बी ताजिल्द 1, सफ़हा 29)

 

अब्दुल काहेरा बग़दादी के नज़दीक मुसलमान की तारीफ़

अब्दुल काहेरा बग़दादी जो अहले सुन्नत के एक मोतकल्लीम आलिम हैं उन्हों ने सुन्नी मुसलमान की तारीफ़ के बारे में कहा हैः हमारे नज़्दीक सहीह यह है की उम्मते इस्लाम और उन तमाम लोगों को जमा करती है जो आलम के हादिस होनेउसके ख़ालिक़ के एक होनेउसके साहबे सिफाते क़दीम और हकीम होनेउसके बिला तश्बीह होनेतमाम लोगों के लिए हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की नबूवतआप की शरीयत और आप जो कुछ लाये हैं उसके हर होने पर ईमान रखता हो और ये कि क़ुरआन तमाम अहकामे शरीयत का सर चश्मा हैकाबा वह क़िब्ला है जिसकी तरफ़ रुख़ करके नमाज़ पढ़ना वाजिब है उन सारी चीज़ों का इक़रार करता हो और ऐसी बिदअत अन्जाम न दे जो कुफ्र का बाइस बन जाती है तो वह मोवह्हिद और एक खुदा को मानने वाला सुन्नी है। (बग़दादी बग़ैर तारीख़ सफ़हा 13)

बग़दादी ने मोवह्हिद सुन्नी की तारीफ़ की है उसके लेहाज़ से तमाम शिया भी मोवह्हिद सुन्नी हैं क्यों की शिया भी उन तमाम चीज़ों पर ईमान रखते हैं और उन का इक़रार करते हैं।

अब तक जो कुछ ब्यान किया जा चुका है उससे दो नतीजे बखूबी निकलते हैः

1. तमाम मुसलमानों के लिए इत्तेहाद बरक़रार करना अम्ली तौर पर वाजिब है उसके साथ साथ ये एक फरीज़ा और दीनी वाज्ब भी है और मुसलमानों को चाहिए की उस दीनी वाजिब पर अमल करें।

2. मुसलमान और मोमीन वह है जिसके अन्दर ये सिफात हों.

अ. ख़ुदा और उसकी वहदानियत पर ईमान रखता हो।

आ. हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की रेसालत और आप जो कुछ खुदा की जानिब से लाये हैं उन सब पर ईमान रखता हो।

इ. क़यामत का अक़ीदा रखता हो।

 

इत्तेहादे बैनुल मुसलेमीन के बारे में उलमा का किरदार

इस्लामी मुआशरे में दीनी उलमा की बडी अहमियत है क़ुरआन ने ऐलान किया की दूसरों की बनिस्बत

उन के दरजात बहुत बुलन्द हैं।

(यर्फउल्ला हुल्लज़ीन आमनू मिन्तुम वल्लज़ीन उतुल इल्म दरजात)

तुम में से जो लोग ईमान्दार हैं और जिनको इल्म अता हुआ है खुदा उनके दर्जे बुलन्द करेगा। (मुजादेलाः 11, 58)

अहादिसे नब्वी में उलमा और ख़ातेमुल अम्बिया के जॉँनशीनों को अम्बिया का वारिस और उन्हें आसमान के सितारे बताया गया है।

क़ाला नबी सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम रहमल्लाहो खोल्फाई फकीलः या रसूल्ललाहः व मन खोल्फाऐककालः अल्लज़ीन यहयून सुन्नती व यअलमूनहा इबादल्लाहः

हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने फरमायाः खुदा मेरे जानशीनों पर रहमत नाज़िल फ़रमाए अर्ज़ किया गयाः ऐ खुदा के रसूल आप के जानशीन कौन लोग हैंफरमायाः जो लोग मेरी सुन्नत को जिन्दा करते हैं और खुदा के बन्दों को उसकी तालीम देते हैं। (हिन्दी, 1405, जिल्द 10 सफ़हा 229)

इन्नल उलमा वरसतुल अम्बिया इन्नल अम्हिया लम युरेसु दिनारा वला दिर्हमा इन्नमा वरसुल इल्म फमन अखज़हु फकद अखज़ बेहज़ वाफरः

बेशक उलमा अम्बिया के वारिस हैं अम्बिया ने दिरहम व दीनार को विरासत के तौर पर नहीं छोड़ा वह हज़रात इल्म छोड कर जाते हैं पस जो इल्म हासिल करके उस से बहरेमन्द हो उसने खूब अच्छी तरह फायदा उठाया। (कज़्वीनी, 1395, जिल्द 1, सफहा 81)

इन्न मस्लल उलमा फ़िल अर्ज़ कमस्लुन नजूम यहदी बिहा फी ज़ोलोमातील बर्रे वल बहर फईज़ा अल नत मस्तल नजूम ओशक इन तज़लल होदातः

रूये ज़मीन पर उलमा आसमान में सितारों की मानिन्द हैं जिनसे खुश्की और दरिया की तारीकियों में हिदायत हासिल की जाती है अगर सितारे ग़ुरुब कर जायें तो क़रीब है कि हिदायत करने वाले रास्ते से भटक जायें। (मुन्ज़री, 1388 कजिल्द 1, सफ़हा 100, 102)

उलमा और दीनी पेशवाओं के मानवी व इज्तेमाई दरजात को पेशे नज़र रखते हुए ये बात वाज़ेह हो जाती है की उन की ज़िम्मेदारी बहुत सँगीन है वह मुसलमानों के दर्मियान इत्तेहाद कायम करने और उनके दर्मियान से इख्तेलाफ़ और नेफाक़ को दूर करने के सिलसिले में क्लीदी व बुनियादी किर्दार अदा करते हैं क्यों कि हर इन्सान की अहमियत व ज़िम्मेदारी और उसका असर उसी ऐतेबार से है जितनी मुआशरे के अन्दर उसे अहमियत हासिल है। बिना बर इन जिस तरह क़ुरआन और हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने उम्मते मुस्लेमा को इत्तेहाद और भाई चारगी की दावत दी है निज़ इख्तेलाफ़ और दुश्मनी से रोका है। उलमा ए इस्लाम जो हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के वारिस व जाँनशीन और खुदा और रसूल के अमीन हैंउन्हें भी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की तास्सी व इक्तेदा करते हुऐ मज़्हबीनस्लीइलाक़ाई और क़ौमी इख्तेलाफ़ को दूर करना चाहिए और उस राह में मुख्तलिफ़ तरीक़ों से जैसेः तक़रीर किताबरेसालोंअख्बारइन्टर नेट और दूसरे तब्लीग़ाती वसाइल व आलात के ज़रीए मुसलमानों के दर्मियान पाये जाने वाले सारे इख्तेलाफ़ात की जड़ें उखाड़ देनी चाहियें और उसके बाद उनके दिलों में मुहब्बत व हमदिली और भाई चारगी के बीज बोने चाहियें।

अब वह वक्त आ चुका है की उलमा वक्त को पहचानते हुए और जहाने इस्लाम के हस्सास हालात को देखते हुए किताब व सुन्नत से तमस्सुक करते हुए इस्लाम के उसूल और सारे मुश्तरेकात को पेशे नज़र रखें इख्तेलाफ़ और तफ़रेका अँगीज़ आमाल से पर्हेज़ करें और जो लोग मुसलमानों के दर्मियान दुश्मनी के मुकद्देमात फ़राहम कर रहे हैं और एक दूसरे के दर्मियान जुदाई पैदा करना चाहते हैं उन को रोक कर दुश्मनाने इस्लाम की तमाम खतर नाक शाज़िशों को नाकाम बना दें।

उलमा ए इस्लाम के दर्मियान इत्तेहाद व यकजेहती सारे मुसलमानों की कामयाबी तरक्की व सर बुलन्दी हैमुसलमान उलमा के दर्मियान इत्तेहाद और मुदारा व नर्मी की अहमियत व ज़रुरत इस लिए है कि जब खुद उलमा के दर्मियान हम बस्तगी होगी तो मुसलमानों के तमाम फिर्कों के दर्मियान इत्तेहाद व हम दिली और भाई चारगी पैदा हो जाऐगी क्यों कि उलमा उस उम्मत के पेशवा व मुक्तिदा हैं और लोग उन की पैरवी करते हैं उन की बातें मानते हैं। हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमायाः

सिन्फान मिन उम्मती इज़ा सुल्हा सुलेहत उम्मती व इज़ा फ्सद अफ्सदत उम्मतीकीलः या रसुलल्लाह. व मिन हुमाकालः अल फोक्हाओ वल ओमराअः.

जब मेरी उम्मत के दो गिरोह सालेह व नेक हो जायें तो पूरी उम्मत सुधर जायेगी और जब वही दोनों बिगड़ जायें तो पूरी उम्मत बिगड़ जाऐगी। अर्ज़ किया गया ऐ अल्लाह के रसूलवह दोनों गिरोह कौन हैंफ़रमाया उलमा और हुक्काम।

 

इत्तेहादे बैनुल मुस्लेमीन के सिलसिले में उलमा की तजावीज़ः

दीनी उलमा दर्ज ज़ैल तजावुज़ के ज़रीये बहुत अच्छी तरह तमाम मुसलमानों को एक दूसरे से क़रीब करके उनके दर्मियान इत्तेहाद पैदा कर सकते हैं और उनके इख्तेलाफ़ात को जड़ से ख़त्म कर सकते हैं।

1. पूरे इस्लामी मुआशरे के अन्दर अख्लाकी व इन्सानी फज़ायल की तर्वीज अम्र बिल मारुफ़ व नही अनिल मुन्कर है.

2. फिक्री जुमूद और कोताह नज़री से पर्हेज़ मिज़ ख़ुराफात और बिदअतों से दूरी.

3. कौमी नस्ल अलाक़ाई और मज़्हबी तअस्सुब से पर्हेज़ और उस अस्ल पर तवज्जह की इस्लाम में फज़ीलत व बर्तरी का मेयार सिर्फ़ तक़वा ए इलाही है.

इन्न अकरम कुम इन्दल्लाहे अत्काकुम. यकीनन खुदा के नज़्दिक तुम में सब से ज़ियादा बा फज़ीलत वह है जो सब से ज़्यादा पर्हेज़ गार है. (हुजरातः 13, 49).

नस्ल रन्ग व कौम सिर्फ़ एक से दूसरे को तमीज़ देने का ज़रीया है इस्से किसी को दूसरे पर कोई इम्तेयाज़ नहीं हासिल है

वजअलना कुम शऊबा व क़बाऐल लेतआरफू. और हम ही ने तुम्हारे क़बीले और बरादर्याँ बनाईं ताकी एक दुसरे को शिनाख्त करले. (हुजरातः 13, 49).

4. इत्तेहाद के बारे में क़ुरआन व सुन्नत के दस्तूरात की तरफ तवज्जोह देना.

5. क़ुरआने करीम की आयत की तफ्सीर बिल राऐ से पर्हेज़ करना.

6. इस्लामी मज़ाहिब के हुक्काम के साथ हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के अहले बैत अलैहिमुस्सलाम कैसा सुलूक करते थे इस सिल्सिले में उनकी इक्तेदा व पैरवी करना.

7. एक दूसरे को सब व शुत्म और लअन व तक्फीर नीज़ तोहमत व इल्ज़ाम लगाने से पर्हेज़ करना.

8. तफ़ाहुम व तबादलऐ ख्यालात और इल्मी बहसों में इख्लासहुस्न नियतवुसअते कल्ब और गुफ्तगू के आदाब की रिआयत करना वजा दल हुम बिल्लती हिए अहसनः. और बहसो मुबाहेसा करो भी ते इस तरीके से जो लोगों के नज़दीक सबसे अच्छा हो. (नहलः 16, 125).

9. इस्लामी मज़ाहिब को उलमा से इल्मी व तहकीकी सेमिनार के ज़रीये आज़ाद व खुली फिज़ा में बराबर राब्ता बरक़रार रखना फिर सहीह व कवी बात को तस्लीम कर लेना.

10. मक्तबे खुलफ़ा और अहले बैत अलैहिमुस्सलाम के दर्मियान जो इश्तेराकी व इफतेराक़ी पहलु हैं उन का मवाज़्ना करना नीज़ उनकी तत्बीक़ करना.

11. ज़ईफ़ रिवायातइस्राईलियात और नादिर इख्तेलाफ़ अँगीज़ अक्वाल को ब्यान करने से पर्हेज़ करना.

12. हर किस्म के तफ़रक़े अँगेज़ फत्वे सादिर करने से पर्हेज़ करना.

13. शिया और सुन्नी दोनों एक दूसरे की किताबों से रिवायात को नक्ल करें.

14. इस नुक्ते पर तवज्जोह रहे की फिक्ही मसायल में इख्तेलाफ़ का होना एक तबीई व मतलूब अम्र है और ये इख्तेलाफ़ कम व बीश तमाम मज़ाहिब के दर्मियान पाया जाता है.

15. दिन की अस्ल व रुह की तरफ तवज्जोह करना और ज़ाहिरी चीज़ो की तरफ़ झुकाव से पर्हेज़ करना.

16. जेहालत बी खबरी व पस्मानदगी का मुक़ाबला करना और मुख्तलिफ़ उलूम व फ़ुनून की बुलन्द चोटियों को फत्ह करने के लिए जिद्दो जेहद करना.

17. इस्लामी हम आहँगी के अलम्बर्दारों और इस्लामी इत्तेहाद के मुनादी उलमा की पैरवी करना जैसेः सय्यद जमालुद्दीन असदा बादीशैख़ मुहम्मद अब्दहुसय्यद अब्दुल हुसैन शर्फुद्दीनइमाम खुमैनी रहमतुल्लाह अलैहऔर शैख़ मुहम्मद शल्तूत वग़ैरहुम.

18. इस बात की तरफ तवज्जोह रहे की शिया और सुन्नी दोनो के कुछ मुश्तरक दुश्मन मौजूद हैं.

19. हकायक़ को ब्यान करें और अहकाम में तहरीफ़ करने से पर्हेज़ करे.

20. ऐतेक़ादी व फिक्ही मसायल और इस्लामी मज़ाहिब की इस्तेलाहात के बारे में ख़बर होना-

मज़कूरा तजाविज़ पर अम्ली तौर से तवज्जोह करने की सूरत में सारे मुसलमान एक दूसरे से नज़्दीक और आपस में मुत्तहिद होंगे और अपनी खोई हुई इज़्ज़त व अज़मत को दोबारा पा लेगे और इस तरह इस्लाम के दुश्मनों को शिकस्त दे देंगे.

 

तौज़ीहः

जो तजावीज़ ऊपर ब्यान की गई हैं उनमें से हर एक का तजज़ीया और उनके तासीर की तफ़सील ब्यान करने की यहाँ गुन्जाईश नहीं है यहाँ पर सिर्फ आख़िरी दो तजविज़ों को खुलासे को तौर पर ब्यान किया जा रहा है.

मुसलमानों के दर्मियान हम आहँगी में हकाऐक़ के ब्यान और इस्लामी अहकाम में तहरीफ़ से पर्हेज़ की तासीरः

हकायक़ को ब्यान करने और अहकाम में तहरीफ़ से पर्हेज़ करने से मुराद यह है की इस्लामी मज़ाहिब के मोहतरम उलमा अहकाम और फिक्ही मसायल को ब्यान करने और उनकी तालीम के वक्त वैसे ही अमल करें जैसे इस्लामी मज़ाहिब के अइम्मा व मराजे कराम ने अपनी फिक्ही किताबों और रेसालों में ब्यान किया है मसलन अगर कोई अमल रईसे मज़हब और किसी मरजे के नज़रीये के मुताबिक मुस्तहब है तो उसे तालीम देते वक्त मुस्तहब वतायें और अगर वाजिब है तो वाजिब बतायें और अगर इख्तेलाफी हो तो उसे इख्तेलाफी के उन्वान से बयान करें.

बहुत से मवारीद में ये मुशाहेदा किया गया है की कुछ ऐसे उलमा हैं जो बाज़ आमाल को जो तमाम इस्लामी मज़ाहिब के रउसा के फत्वों के मुताबिक़ वाजिब नहीं हैं इस तरह लोगों से ब्यान करते हैं कि अन्दाज़ा यह होता है की ये अमल तमाम मज़ाहिब के नज़्दीक वाजिब है नमूने के तौर पर नमाज़ में मसले तक्तुफ (क्याम की हालत में एक हाथ को दुसरे हाथ पर रखना) और अज़ानो इकामत में अली अलैहिस्सलाम की वेलायत की ग्वाही देना उन दोनों की तरफ़ इशारा किया जा सकता है चुनाँचे अहले सुन्नत के कुछ मोहतरम उलमा ने तक्तुफ़ को लोगों से इस तरह ब्यान किया है और आज तक ब्यान कर रहे हैं की गोया ये अमल वाजिब है और उसके बगैर नमाज़ ही बातिल है वह लोग इस नुक्ते की तरफ़ इशारा नहीं करते की एक तो अहले सुन्नत के चारों मज़ाहिब नमाज़ में तक्तुफ़ को वाजिब नहीं जानते दूसरेः बाज़ इस्लामी मज़ाहिब जैसे मालेकी न सिर्फ़ ये की उस अमल को वाजिब नहीं जानते बल्की बाज़ सूरतों में इर्साल (क्याम की हालत में हाथों को मामूल के मुताबिक़ छोड़ रखने) को मन्दूब (मुस्तहब) और तक्तुफ को मकरुह जानते हैं और तीसरेः जो लोग तक्तुफ़ को सुन्नत व मुस्तहब जान्ते हैं वह भी उसकी कैफियत के बारे में इख्तेलाफ़ रखते हैं हन्फीयों का अकीदा है कि दाहिने हाथ को बायें हाथ के ऊपर नाफ़ के नीचे रखे जबकि शाफ़ियों का अकीदा है कि हाथ को पुश्ते नाफ़ पर सीने के नीचे रखे (रजूअ किजीएः जज़ीरी 1406 कजिल्द 1, सफ़हा 251, गन्फी (बगैर तारीख़) जिल्द 1, सफ़हा 287, मर्गन्यानी बगैर तारीख़ जिल्द 1, सफ़हा 47).

दूसरी तरफ शिया उलमा शिया मुसलमानों को इस तरह अज़ानो इकामत की तालीम देते हैं गोया हज़रते अमीरु मोमनीन अलैहिस्सलाम की वेलादत की ग्वाही (अशहदो अन्न अलीयन वली उल्लाह) अज़ान व इकामत का जुज़ है और उसके बगैर दोनों नाकिस हैं जब कि शीयों के किसी मर्जे ने ऐसा फत्वा नहीं दिया है बल्की तमाम शिया उलमा इस शहादत को मुस्तहब जान्ते हैं और उन्हों ने अपने अपने तौज़ीहुल मसायल में सराहत की है. (बनी हाशिम, 1378 श. जिल्द 1, सफ़हा 540).

बिना बर इन फिक्ही मसायल में इख्तेलाफ़ एक तबीई अम्र है और हर मुजतहिद जामे शरायत तमाम शरई दलायल व मुबानी के ज़रीये इस्लामी अहकाम को उनके मनाबे से इस्तेन्बात व इस्तेख़राज करता है ये नज़र्याती इख्तेलाफात सिर्फ़ शिया व सुन्नी उलमा के दर्मियान नहीं है बल्की अहले सुन्नत के सारे मज़ाहिब और उलमा ए शीया के दर्मियान भी हैं अहले सुन्नत के चारों मज़ाहिब से फिक्ही मसायल के जुज़ईयात आपस में इख्तेलाफ़ रखते हैं लेकिन उससे कोई मुश्किल पैदा नहीं होती और ऐसा इख्तेलाफ़ काबिले मुज़म्मत भी नहीं है बल्कि फिक्ह की बालन्दगी व शगूफाई का बाईस है नमूने के तौर पर उन इख्तेलाफी मसायल के सिल्सिले में वज़ू में सर के मसह करने की मिक्दार नमाज़ में तक्तुफ और उसकी कैफियत नीज़ सुन्नतमन्दूबमुस्तहबततूअफज़ीलतवाजिबऔर फर्ज़ के मानी की तरफ इशारा किया जा सकता है.[1]

नतीजा यह है की अगर तुम इस्लामी तालीमात को तीन हिस्सों अकायद व अख्लाक़ और फिक्ही अहकाम में खुलासा करें तो शिया व सुन्नी तमाम ऐतेकादी व अख्लाकी मसायल में या आपस में इख्तेलाफ़ नहीं रखते या अगर इख्तेलाफ़ रखते भी हैं तो बहुत मुख्तसर लेकिन फिक्ही मसायल में खुद अहले सुन्नत के तमाम मज़ाहिब के दर्मियान इख्तेलाफ़ है और शिया उलमा के दर्मियान भी बॉज़ मवारीद में एक दूसरे से नज़रिये के लेहाज़ से इख्तेलाफ़ पाया जाता है लेकिन अहम नुक्ता यह है की फिक्ही ऐतेकादी मसायल में इल्मी इख्तेलाफ़ की सूरत अगर लोगों को अच्छी तरह हिदायत की जाए तो उससे सियासी इख्तेलाफ़ और दुश्मनी व निज़ा की नौबत ही नहीं आयेगी.

दोनों फिर्कों के उलमा एक दूसरे के मज़ाहिब व अकाऐद से बाखबर होः

मुसलमानों के दर्मियान इत्तेहाद पैदा करने का एक सबसे बड़ा व अहम आमील यह है की मुख्तलिफ़ इस्लामी फिर्कों में उलमा एक दूसरे के मज़ाहिब व अकायद से बाख़बर हों और सहीह तरीके से उनकी मारेफ़त रखते हों वर्ना मुम्किन है की वह एक दूसरे को ऐसी निस्बत दे दें जो एक हकीक़त के खेलाफ़ हो और फिर एक दूसरे पर यह तोहमत लगा दें की फलाँ की अकीदा इस्लामी नहीं है शिर्क से आलूदा है.

मिसाल के तौर पर बाज़ शियों का अकीदा यह है की बिरादराने अहले सुन्नतअहले बैत अलैहिमुस सलाम के दुश्मन हैंया कम से कम अहले बैत अलैहि मुस्सलाम के बारे में अच्छा नज़रिया नहीं रखते जब की तमाम बिरादराने अहले सुन्नत आयते मोवद्दत (कुल ला असअलो कुम अलैहे अजरन इलल्ल मोवद्दतः फील कुर्बा) ऐ रसूल तुम कह दो कि में इस तब्लीग़े रेसालत का अपने क़राबत दारों (अहले बैत अलैहिमुस्सलाम) की मुहब्बत के सिवा तुम से कोई सिला नहीं माँगता. (शूराः 23, 42).

नीज़ आयते ततहीर (इन्नमा योरीदुल्लाहो ले युज़हेब अन्कुमुर्रिज्स अहलल बैते व योतहहेर कुम ततहीरा) ऐ पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के अहले बैत खुदा तो बस ये चाहता है की तुम को हर तरह की बुराई से दूर रखे और जो पाको पाकीज़ा रखने का हक है वैसा पाको पाकीज़ा रखे. (अहज़ाबः 33, 33).

और इन रिवायात की रौशनी में जो इन दोनो रिवायात के ज़ैल में हज़रत पैगम्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम से अहले बैत अलैहिमुस सलाम के बारे में दोनों फिर्कों की कुतुब तफ्सीर व हदीस में वारिद हुई हैंहज़रते पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के अले बैत अलैहिमुस्सलाम को दोस्त रखते हैं.

[1] . अइम्मा अहले सुन्नत की नज़रियाती इख्तेलाफ़ के बारे में इत्तेला हासिल करने के सिल्सिले में किताब अल फिक्ह अलल मज़ाहिबुल अर्बा अब्दुर्रहमान जज़ीरी की तरफ़ रोजू करें.

मुहम्मद हुसैन फ़सीही (मोहक्कीक़मुसन्निफ़ और हौज़े के उस्ताद)


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सैयद नदीम द्वारा . 11 जुलाई, 2006 को, सिर्फ़ 11 भयावह मिनटों में, मुंबई तहस-नहस हो गई। शाम 6:24 से 6:36 बजे के बीच लोकल ट्रेनों ...