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Thursday, 24 October 2024

વોટસએપ મેસેજ . સહમતી પત્ર. 24/10/24


*વિષય:* મકાન ભાડા કરારો અને સમાજની સુરક્ષા .


તારીખ : 24 ઓકટોબર 
 ✒️ *Huzaifa Dedicated* 

હમણાં આપણે જોઈ રહ્યા છીએ કે *સરકાર દ્વારા લાગુ કરેલા કાનૂનોએ ભાડે મકાન આપતા માલિકો વચ્ચે ચિંતાનો માહોલ ઉભો કર્યો છે.* આ સખત કાનૂન મકાન માલિકોને ભાડે મકાન આપવાના નિર્ણયમાં સમાજની સુરક્ષા બાબત અને સમયની જરૂરત જોતાં, *દરેક સોસાયટીના રહીશો* અને સોસાયટી કમિટી વિશેષ માંગ કરવા તરફ વિચાર કરવાની જરૂર છે. *અન્યથા આવનાર સમય આપણાં સૌ માટે સંકટનું કારણ બની શકે છે.*

જ્યાં સુધી સરકારના કાયદાનું પાલન કરવાનો પ્રશ્ન છે, *ત્યારે આપણા દરેક સોસાયટીના રહીશો અને જવાબદાર લોકોને પણ આ અંગે જવાબદારી પૂર્વક ચિંતિત રહેવું જોઈએ.* જો મકાન માલિકો અને ભાડુાતાઓ પોતાની માહિતી પોલીસ પ્રશાસનને આપી રહ્યાં છે, *તો સોસાયટીના કમિટીઓના સભ્યોએ પણ પોતાની સોસાયટીમાં ભાડુઆત મકાન બાબત સજાગ થવું જરૂરી છે.*
*મુસ્લિમ વિસ્તારના લોકોમાં જાગૃતિ લાવવાની જરૂર છે.* આપણે આ બાબતે સોસાયટીને અસમાજિક કાર્યોથી બચાવવા અને દુષ્કર્મની ઘટનાઓથી બચવા માટે *સાથે મળીને પ્રયત્નો કરવા જોઈએ.* જો ભાડુાતાઓના મકાનમાં રહેતા ભાડુઆત તરફથી કોઈ દુર્ઘટના સર્જાય, *તો તેની જવાબદારી કોણ લે છે ❓* આ સંદર્ભમાં, દરેક સોસાયટીના રહીશો પાસે પોતાની સુરક્ષા માટે સરકારને *મંડળ રજૂ કરવાનો અધિકાર છે.*
તેથી, ભાડા કરાર દરમિયાન, મકાન માલિક અને *ભાડુઆત બંનેના ડોક્યુમેન્ટમાં સોસાયટી કમિટીની સહમતી પત્રની જરૂરિયાત છે.* આના દ્વારા, સોસાયટીની નીતિઓ અને નિયમોનું પાલન કરવું સરળ બની જશે, અને સોસાયટીના રહીશો માટે સુરક્ષા કરવામાં સોસાયટી કમિટી વચ્ચે વધુ સારી માહિતી વહન થાય તે શક્ય બનશે.
*આ વિષયમાં વધુ મજબૂતીથી અવાજ ઉઠાવવો જરૂરી છે.* જો સરકાર સોસાયટી કમિટીને ભાડુાતાઓના સહમતી પત્રને માન્યતા આપે, તો આથી યોગ્ય નિયંત્રણ અને સોસાયટીની વ્યવસ્થા જાળવવામાં મદદ મળશે.

આ સંદર્ભમાં એકઠા થઈને મજબૂત માંગો પ્રગટ કરીએ અને *એક સુરક્ષિત વાતાવરણની સુનિશ્ચિતતા કરીશું.*


  *મારી વાતથી સહમત હોવ તો આગળ શેર કરશો.*

Friday, 23 August 2024

मौलाना मुहम्मद बाकिर का इतिहास । 16 सितंबर



तारिक़ आज़मी संग शाहीन बनारसी

आज जिस तवारीख (इतिहास) से हम आपको रूबरू करवा रहे है उसके खून के छीटे से इन्कलाब आज भी दिल्ली के लाल दरवाज़े पर लिखा हुआ है। 1857 की क्रांति को आप सबने पढ़ा होगा। देश के आज़ादी की लड़ाई की पहली क्रांति थी। इस क्रांति में आपने शहीद मंगल पाण्डेय से लेकर रानी लक्ष्मी बाई तक की वीर गाथाये सुनी होंगी। जिन्होंने पहले पढ़ा है वो तो टीपू सुलतान के मुताल्लिक भी पढ़े ज़रूर होंगे। क्योकि ये सभी वीर थे जिन्होंने इस क्रांति की अलख को जगाया था। इन सबके बीच एक नाम जो क्रांति के प्रमुख जनको में था, वो नाम तक आप लोगो ने नहीं सुना होगा। क्योकि वह शहीद एक पत्रकार था। आपने किसी तवारीख के पन्नो में नही पढ़ा होगा कि एक पत्रकार ने खुद की शहादत आजादी की इस पहली लड़ाई में दिया था। नाम उस शहीद पत्रकार का था “मौलवी मोहम्मद अली बाकिर।” यहाँ बताते चले कि मौलाना मुहम्मद अली बाकिर के सम्बन्ध में हमको पढने और समझने में मुख्य सहयोग प्रख्यात इतिहासकार डॉ मोहम्मद आरिफ साहब ने किया। 


मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी ने क्या खूब एक शेर कहा है कि “खीचो न कमानों को, न तलवार निकालो। जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो…..। शायद ये शेर मौलवी मोहम्मद बाकीर के आमाल में समाया था। अंग्रेजो के तोपों का मुकाबला करने के लिए मोलवी साहब ने कलम का सहारा लिया था। कलम भी ऐसी मजबूत की 1857 की पूरी क्रांति में असली ज्वाला उन्होंने दिया। लड़ाई कलम और तोप की वो ज़बरदस्त तरीके से हुई कि कलम ने कई तोपची अंग्रेजो को इस तरह घायल किया कि अंगेजी हुकूमत की नेह हिल गई थी।

जीवनी – मौलवी मुहम्मद अली बाकिर

दिल्ली के एक इज़्ज़दार घराने मे जन्मे मोलवी मोहम्मद बाक़ीर की पैदाईश स.ई.1780 को हुई, पिता मौलाना मोहम्मद अकबर, दीन के खासी जानकार शख्सियतों मे से थे जिसके कारण मोहम्मद बाकीर की मज़हबी तालीम घर पर ही रही और बाद में दिल्ली के जाने-माने विद्वान मियां अब्दुल रज्ज़ाक के सानिध्य में उन्होने आगे की शिक्षा पायी।
1825 में उनका देहली कालेज में दाखिला हुआ व पढ़ाई मुकम्मल कर वह दिल्ली कॉलेज मे ही फ़ारसी के शिक्षक बने व कुछ समय बाद अपनी शिक्षा की बदोलत ही सरकारी महकमों (विभाग) मे कई वर्षो तक ज़िम्मेदार पदो पर भी रहे लेकिन मन मे वो सुकून और शांति नही मिली, अंग्रेज़ी हुकूमत का क्रूर शासक रवैया दिल मे अजीब सी बैचेनी का माहौल बनाकर उनके दिल को आज़ादी के लिए कचोटता आखिरकार अपनी बाग़ी सोच और वालिद के कहने पर सरकारी पद से इस्तीफा दे दिया।

आजादी की चाहत और शुरू किया कलम से जंग

ये वो वक्त था जब ब्रितानिया सल्तनत ईस्ट इंडिया कंपनी के कंधो पर अपने मंसूबो को रखकर खुद को सियासत के मरहले तय कर रही थी। हिन्द के जाबांज बाशिंदों को गुलाम बनाया जा रहा था। उनके जिस्म से खून तक चूसा जा रहा था। निज़ाम ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों मे पूरी तरह आ चुका था, टीपू सुल्तान और रानी लक्ष्मीबाई जैसे बहादुर आज़ादी के परवाने खुद को और मुल्क को बंदिशों से आज़ाद करने की जद्दोजहद कर रहे थे। इन फिरंगियों की सोच थी कि पूरी भारतीय व्यवस्था को बेड़ियों मे जकड़कर खड़ा कर दिया जाय। लेकिन हिन्दोस्तान भारत की अवाम, ईस्ट इंडिया कंपनी के इस सियासी कदम को समझने लगी थी और गुलाम बनाकर राज करने की प्रथा के खिलाफ, सैनिक, मजदूर, व्यापारी, लेखक, कवि, शायर, राजा, रजवाडे, नवाब सभी एक साथ मिलकर इस इंकलाब के समंदर मे कूद गये थे।

पत्रकारिता ने अपनी कलम की ताकत से इस इन्कलाब की अलख को जलाए रखा, क्योंकी पत्रकारिता के महत्व को हर युग मे स्वीकार किया गया है, तवारीख ग्वाह है कि पत्रकारिता ने दुनिया की बड़ी बड़ी क्रांत्रियों को जन्म दिया व कई शासकों का तख्ता पलट कर खाक़ नशी कर दिया है, साथ ही कलम की इस ताकत ने ना जाने कितनी मज़बूत और ताकतवर हुकूमतों को भी अपने सामने बौना बनाकर खड़ा कर दिया है। एक तरफ जहा फिरंगियों एक गोला बारूद और असलहे थे तो दूसरी तरफ मौलवी मुहम्मद अली बाकिर साहब की कमल से निकलने लफ्जों के अंगारे थे। इस क्रांत्री मे जहा तलवारो की झनकार, गोला बारुद की आवाज़े सुनाई दी उतनी ही बगा़वत के स्वर पत्रकारिता के भी बुलंद रहे।

फिरंगियों के दुश्मन नम्बर 1 थे मौलवी मुहम्मद अली बाकिर

इस बगावत की कलम में सबसे ज्यादा किसी ने इन फिरंगियों को परेशान और हलाकान किया तो वह थे शहीद मौलाना मुहम्मद अली बाकिर साहब। जिन्होंने अपनी खबरों से गुलामी के खिलाफ एक फिज़ा बनाकर अंग्रेज़ी हुकूमत की बुनियादें हिला दिया, मगर अफ़सोस दर अफ़सोस कि शहीद पत्रकार आज़ादी के तवारीख में धुल खाते पन्नो में गुम हो गये। “मौलवी मोहम्मद अली बाकिर साहब” को पत्रकारिता की शहादत मे प्रथम शहीद होने का दर्जा मिला है। मौलवी की कलम सैकड़ो तोपों के बराबर मार करती थी, उनके लेखों मे आज़ाद भारत की गूंज थी, जिसके कारण ईस्ट इंडिया कंपनी इनको अपने खास दुशमनो मे शामिल कर चुकी थी।

प्रेस एक्ट के तहत अखबारों पर लगाई थी अंग्रेजो ने लगाम
सन 1836 मे बिट्रिश हुकुमत ने प्रेस ऐक्ट पास किया और मौलवी मौलवी मुहम्मद अली बाकिर ने दिल्ली का सबसे पहला और भारतीय उपमहाद्विप का दुसरा उर्दु अख़बार “देहली उर्दू” साप्ताहिक शुरू किया, हालांकि 22 मार्च 1822 को कलकत्ता से निकलने वाला “जाम ए जहां नुमा” अख़बार भारतीय उपमहाद्विप का पहला उर्दु अख़बार था। इसके अलावा उस समय हिन्दुस्तान मे निकलने वाले सुलतानुल अख़बार, सिराजुल अख़बार और सादिक़ुल अख़बार फ़ारसी ज़ुबान के अख़बार थे। ये वो वक्त थे जब अखबार निकालना बहुत मुश्किल था। मगर मौलवी बाकिर ने साप्ताहिक उर्दू अखबार प्रेस खड़ा किया, यह अख़बार लगभग 21 सालो तक अपनी हयात में था। जिसमे इसका नाम भी दो बार बदला गया। इसकी क़ीमत महीने के हिसाब से उस समय 2 रु थी, इसके अलावा 1843 में मौलवी अली वाकिर ने एक धार्मिक पत्रिका मजहर-ए-हक भी प्रकाशित की थी जो 1848 तक चली।

जिस समय देश में स्वतंत्रता के लिए आन्दोलन चल रहा था उस वक्त भारतीय भाषाओं में उर्दू ही एकमात्र ऐसी भाषा थी जो देश के कोने-कोने में समझी और बोली जाती थी, उर्दू के शायरों, साहित्यकारों और लेखकों ने भी देश के प्रति अपने फरायेज़ को समझा और उसको निभाया भी था। आज़ादी के उस सफर मे उर्दू ने पूरे स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास को अपने आप में ओढ़ रखा था।

मौलवी मुहम्मद अली बाकिर ने जिस मकान से अपना “देहली उर्दू साप्ताहिक” समाचार पत्र प्रकाशित किया, जो दरगाह-ए-पंजा शरीफ (कश्मीरी गेट) से बिल्कुल पास है और आज भी मौजूद है। इस अखबार ने देश के विभिन्न भागों में अपने नुमाईंदगी करने वाले भी रखे। अपने अखबार की शूरुआत करते ही मौलवी मुहम्मद अली बाकिर जिनको कई जगह तवारीख में मौलवी मोहम्मद अली बाकर भी कहा गया है को अपनी सोच व सरकार की नीतियों को उजागर करने का एक प्लेटफार्म मिला। हालाकि शूरुआती दिनो मे “देहली उर्दू साप्ताहिक” ने अंग्रेज़ी हूकूमत की ज़्यादा खिलाफत नही की लेकिन 1857 तक मौलवी मुहम्मद अली बाकिर बिट्रिश सरकार के तीखे आलोचक बन चुके थे, बाक़ीर ने ना सिर्फ़ ज्वलंत सामाजिक मुद्दों पर लिखा बल्कि दिल्ली और आसपास ब्रिटिश हुकूमत की नीतियों के खिलाफ़ आज़ादी के परवाने भी तैयार किये। मुआशरे में अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट होने की आवाज़ बुलंद करने में इस अखबार का भरपुर उपयोग मौलवी मुहम्मद अली बाकिर ने किया।

अंग्रेजो की नज़र में सबसे बागी अखबार था “देहली उर्दू साप्ताहिक”

फिरंगियों ने हमारे पैरो में खुद के गुलामी की ज़ंजीर डाल रखा था। उनकी गुलामी न करने वालो को फिरंगी अपनी कुवत के बल पर ज़मीदोज़ कर रहे थे। 1857 की क्रांति में “देहली उर्दू साप्ताहिक” ने अपना बड़ा योगदान दिया था। अंग्रेजो के नज़र में उस समय का सबसे बाग़ी अखबार देहली उर्दू साप्ताहिक बन चूका था। क्योकि ये अख़बार अपनी कलम से निकलने वाली आग के ज़रिये फिरंगी हुकूमत की नेह हिला रही थी। मौलवी मुहम्मद अली बाकिर आज़ाद मुल्क के सपने को सच करने की पटकथा लिख रहे थे। गुलामी के ठांचे को गिराने के लिए मज़हब के बड़े आलिमो के फतवों, और बागियो के घोषणा पत्रों को अखबार मे प्रमुख स्थान दिया जाता था।

ख़ास तौर पर उन खबरों को इस अख़बार में जगह मिलती थी जो अंग्रेजो के हुकूमत के ज़ुल्मो सितम की दास्ताँ बयान करती थी। ऐसा इसलिए भी मौलवी ने किया ताकि आज़ादी की अलख और तेज़ भड़के। आज़ादी के परवानो के हौसले बुलंद करने के लिए मौलवी अली बाक़र अपनी लेखनी मे सिपाहियों की खुल कर तारीफ करते जिसमे सिपाहियों की वतन परस्ती जागती रहे। इस वतन परस्ती पर वह “सिपाह-ए-दिलेर,” “तिलंगा-ए-नर-शेर” और “सिपाह-ए-हिंदुस्तान” जैसे खिताबो से इन आज़ादी के परवानो को नवाज़ते, तो वही उनकी कमियों पर भी खुल कर कलम चलाते। यही नही उन्होंने अपनी कलम से हिंदू सिपाहियों को अर्जुन या भीम बनने की लिये प्रेरित करना जारी रखा था। वही दूसरी तरफ मुसलमान सिपाहियों को रूस्तम, चंगेज और हलाकू की तरह अंग्रेजों को समाप्त करने के बाग़ी अंदाज़ को सुलगाते रहे।

हिन्दू मुस्लिम एकता का मरकज़ था देहली उर्दू अख़बार

मौलाना अली बाकिर ने कई मौको पर फिरंगियों के फितना फसाद को जग ज़ाहिर किया। फिरंगियों के फुट डालो और राज करो के कई वाक्यात को खोला और बताया कि किस तरह ये फिरंगी हुकूमत हिन्दू मुसलमानों को आपस में लडवा रही है। अंग्रेजों की सांप्रदायिक तनाव फैलाने वाली चालों को बेनकाब कर हिंदुओं और मुसलमानों दोनो को खबरदार कर एकजुटता पैदा करने वाली खबरों ने ” मौलवी मुहम्मद अली बाकिर” को अंग्रेजो का सबसे बड़ा दुश्मन बना दिया था।

वालिद के नक्श-ए-कदम पर चले साहबजादे भी

अकेले मौलवी मुहम्मद अली बाकिर ही नही बल्कि उनके साहबजादे मोहम्मद हुसैन आजाद” जो काफी अच्छे शायर थे, आज़ादी की क्रांति के दौरान उनकी रचनाएं अखबार के पहले पेज पर छपती थी, 25 मई 1857 के अंक में उनकी एक नज़्म मेरठ में विद्रोही सेना की विजयी समाचार के साथ छपी थी- नज़्म के बोल कुछ इस तरह थे कि अंग्रेजो के दांत खट्टे हो गए थे और मौलवी मुहम्मद अली बाकिर के साथ साथ उनके साहबजादे मुहम्मद हुसैन आज़ाद को भी उन्होंने अपना दुश्मन नम्बर वन मान लिया और उनको यातनाओं का सिलसिला शुरू कर दिया था। ख़ास तौर पर मोलवी के पुत्र मुहम्मद हुसैन जिन्होंने अपने नाम का लक़ब ही आज़ाद रख लिया था अंग्रेजो को अपनी कलम से पसीने छुडवा रहे थे। 25 मई 1857 को अख़बार के पहले पन्ने पर ही छपी उनकी नज्म पढ़े, जिसको पढ़कर आपका दिल भी खुश हो जायेगा-

“सब जौहरे अक्ल उनके रहे ताक पर रक्खे
सब नाखूने तदबीरो खुर्द हो गए बेकार
काम आए न इल्मो हुनरो हिकमतो फितरत
पूरब के तिलंगो ने लिया सबको वहीं मार”!

इस नज़्म ने तो ऐसा लगा जलता हुआ सरिया अंग्रेजो के कानो और आँखों में चुभा दिया है। मौलवी की कलम ने अंग्रेजो के लिए एक बड़ी मुसीबत पैदा कर रखा था उसके अलावा मौलवी के पुत्र ने और भी मुसीबत बढ़ा दिया था। मौलवी की बाग़ी कलम व अन्य समाचार पत्रो की बढ़ती हुई बगा़वत पूर्णतः लगाम लगाने के लिये 13 जून 1857 को लार्ड केनिंग द्वारा काफी तीखी टिप्पणी दी गयी- केनिंग ने अपने तत्कालीन बयान में कहा था कि “पिछले कुछ हफ्तों में देसी अखबारों ने समाचार प्रकाशित करने की आड़ में भारतीय नागरिको के दिलों में दिलेराना हद तक बगावत की भावना पैदा कर दी है”। इस टिप्पणी के बाद लार्ड केनिंग ने प्रेस एक्ट मे एक नया कानून बनाने की पेशकश कर उसे आनन फानन मे लागू भी कर दिया, जिसमे राजद्रोह पर बहुत कड़ी सजा के साथ पूर्व अनुमति के बिना प्रेस खोलना व उसे चलाना गैरकानूनी बना दिया गया,

मगर अँगरेज़ सिपाहसलार के तौर पर गवर्नर का बयान और प्रेस एक्ट लागू होने के बाद भी आज़ादी के परवाने पत्रकारों पर कोई असर नहीं पड़ा और उन्होंने अपनी कलम की रफ़्तार कम नही किया। उस समय भी पयामे आजादी, देहली उर्दू, समाचार सुधावर्षण और हिंदू पैट्रियाट, सादिकुल अखबार, गुलशने नौबहार, और बहादुरी प्रेस जैसे दर्जनो समाचार पत्रो ने सच लिखना जारी रखा। इन अखबारों पर अंग्रेजो के आदेश का कोई फर्क नही पड़ा और उनको अपनी जान से भी ज्यादा प्यारी अपनी आज़ादी ही रही। सबने मिलकर ज़बरदस्त कलम से जंग लड़ी और अंग्रेजो के दांत खट्टे कर डाले।

अंग्रेजो के खिलाफ मौलाना अली बाकिर ने जारी रखा अपनी जंग

अंग्रेजी हुकूमत ने कानून तो सख्त बना दिया था। मगर ये सख्त कानून मौलवी अली बाकर के वसूलो से ज्यादा सख्त नही था। मौलवी अली बाकर ने अपनी कलम पर कोई लगाम नही लगाईं और ज़बरदस्त कलम से जंग जारी रखी। जंग भी ऐसी कि एक तरफ अंग्रेजो की गोलिया और गोले बारूद तो दूसरी तरफ मौलवी के कलम से निकले अलफ़ाज़। एक तरफ अंग्रेजो की गोलियों से हिन्दुस्तान के वीर जवान और आज़ादी के परवाने शहीद हो रहे थे, वही मौलाना अली बाकिर के कलम से उन तोपों की आग ठंडी हो जा रही थी और अंग्रेजो के दिल तक छलनी हुवे जा रहे थे।

अख़बार का नाम बदल कर किया अखबार-उल-ज़फर

इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत की चाल हुई और 1857 की क्रांति में विद्रोह का प्रमुख बहादुर शाह ज़फर को बनाया गया। इसके बाद तो मौलवी अली बाकिर अपनी कलम की धार और अंग्रेजो से बगावत और भी तेज़ कर दिया। उन्होंने 12 मई 1857 को अपने देहली उर्दू अखवार का नाम बदलकर “अखबार-उल-ज़फ़र” कर दिया जिसमे अब बग़ावत के तीखे तेवरो के साथ लेखो को प्रकाशित किया जाने लगा, बहादुर शाह ज़फर, शहज़ादा फिरोज़ शाह व इस क्रांत्री का हिस्सा बने राजा रजवाडे और नवाबो के बाग़ी संदेश बैखोफ होकर इस अखबार मे शाया किये जाने लगे। पूरे मुल्क में ही विद्रोह के ऐसे स्वर बुलंद हो रहे थे जिसमे सभी का मक़सद अंग्रेज़ो को भारत से बाहर खदेड़ना था।

उस समय एक से दूसरे जगहों पर आवाजाही या संदेश भेजना बहुत कठिन हो गया था, ऐसे माहौल में भी क्रांति की अलख को दूरस्थ इलाके तक फैलाये रखना एक बहुत बढ़ी चुनौती थी, जिसमे जान माल सभी का नुकसान था। लोग संवदिया का इस्तेमाल करते थे, मगर सन्देश अक्सर ही बदल जाते थे। ऐसे में भी मौलवी अली बाक़र एक निडर योद्धा बनकर अपने समाचार पत्र मे अग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ लिखते रहे।

अग्रेजो के ज़ुल्म की हुई इन्तहा और क्रांति हुई ठंडी

1857 की क्रांति बहुत लंबे वक्त तक नही चल सकी। अंग्रेजी हुकूमत ने ज़ुल्म-ओ-सितम की इन्तहा खत्म कर दिया था। लगभग पांच महीनों के बाद ये क्रांति टूटने लगी, ज़ालिम हुकूमत ने हज़ारो आज़ादी के परवानो को फांसी पर चढ़ा दिया। ना जाने कितने आज़ादी के परवानो को कैद कर सलाखो के पीछे ठकेल दिया गया। अंग्रेज़ जु़ल्म की सारी हदें पार कर रहे थे तो वही मौलाना अली बाकर अपनी कलम के ज्वालामुखी के सभी लावे और अंगारे लगातार उगल रहे थे। अंग्रेजो के सबसे बड़े दुश्मन इस हालात में मौलाना अली बाकिर बन चुके थे।

अंग्रेजो ने किया पत्रकारों पर हिंसक कार्यवाही

क्रांती के इस डूबते उगते सूरज के बीच अंग्रेज़ो ने उन समाचार पत्रो के संपादको, मालिको और पत्रकारो पर भी अपनी हिसंक कार्यवाही शुरू कर दी जो इस विद्रोह मे किसी भी तरह बाग़ियो के साथ थे, दर्जनो अखबारो के कार्यलयो ओर उनके छापेखानो पर दबिश देकर उनके साहित्यों को जब्त किया जाने लगा। “सादिकुल अखबार” के संपादक जमीलुद्दीन पर अंग्रेज़ो ने गिरफ्तार कर तीन साल के कठोर कारावास का दंड देकर उनकी जायदाद जब्त कर ली, कलकत्ता के अखबार “गुलशने नौबहार” की प्रेस को भी अंग्रेजों ने जब्त कर लिया। “बहादुरी प्रेस” पर भी शिकंजा कसा गया और उसके संस्थापक को भी गिरफ्तार कर उनपर ज़ुल्मो सितम के पहाड़ तोड़ दिए गए थे। इसी बीच मौलवी अली वाकिर तब तक भी छिप छिपकर अपने अखवार के अंको को प्रकाशित कर इस विद्रोह को फैलाने मे, आखिरी सांस तक लड़ने के लिये एक बाग़ी पत्रकार बनकर खड़े रहे।

कायरता की हद पार कर अंग्रेजो ने किया मौलवी मुहम्मद अली बाकिर को गिरफ्तार

मौलाना अली बाकिर एक जंग लड़ रहे थे। इस जंगजू बहादुर जाबाज़ ने अपनी लड़ाई जारी रखी थे, लेकिन इनकी बाग़ी कलम अंग्रेज़ो के ज़ुल्मो सितम का मुकाबला लंबे वक्त तक नही कर सकी और 14 सितंबर 1857 को मौलवी मुहम्मद अली बाकिर को गिरफ्तार कर लिया गया। इस गिरफ्तारी ने अंग्रेजो को एक बड़ी कामयाबी दिलवाई थी। अंग्रेजो ने कामयाबी को खूब भुनाया। अपने चाटुकारी करने वाले अखबारों में इस मुतालिक बड़ी बड़ी खबरे लगवाई। ब्रिटिश हुकूमत इस गिरफ़्तारी को अपनी सबसे बड़ी सफलता बता रही थी। इन पर अंग्रेजों के विरूद्ध भावनाएं भड़काने में, अवाम को शासन के खिलाफ उकसाने, विद्रोहियो की मदद करने के अलावा कई तरह के झूठे सच्चे मुकदमे लगाकर राजद्रोह का मुजरिम ठहराया गया।
और शहीद हुवे मौलवी मुहम्मद अली बाकिर

गिरफ्तारी के महज दो दिनों के भीतर इस न्यायिक प्रकिया को पूरा किया गया। क्योंकि अंग्रेज़, मौलवी मुहम्मद अली बाकिर को मृत्यूदंड देकर खुद को महफूज़ करना चाहते थे। अंग्रेजो को पता था कि अगर मौलवी मुहम्मद अली बाकिर के हाथो में दुबारा कलम पड़ गई तो वह एक बार फिर से मुल्क में आज़ादी के परवानो को जगा देंगे। अँगरेज़ हकीकत में मौलवी मुहम्मद अली बाकिर के कलम से खौफज़दा अंग्रेजो ने मौलवी मुहम्मद अली बाकिर को जान से मार देने का नाटक रचा और खुद को और खुद की हुकूमत को महफूज़ रखने के खातिर एक नाटक की तरह मौलवी वाकिर को मुकदमे किए बिना ही 16 सितंबर 1857 को अंग्रेज़ अधिकारी मेजर हडसन ने सजा-ए-मौत सुनाई।

कुछ इतिहास कारो का कहना है कि तोप के मुह पर मौलवी मुहम्मद अली बाकिर को बाँध कर तोप दाग दिया गया था। इस शहीद के मुत्तालिक कई इतिहासकारों ने लिखा है कि जब मौलवी मुहम्मद अली बाकिर को तोप के मुह पर बाँध कर तोप दागी गई तो भी उनके चेहरे पर मुस्कराहट थी। बुज़ुर्ग हो चुके मौलवी मुहम्मद अली बाकिर ने अल्फाजो से अल्लाह का शुक्र भेजा था और कहा था कि अल्लाह का शुक्र है जो उसने शहादत नसीब करवाया।

भूल गई तवारीख मौलवी मुहम्मद अली बाकिर की शहादत

भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में पहली शहादत का दर्जा मौलवी मुहम्मद अली बाकिर को मिला है। मगर अफ़सोस या फिर कहे सद अफ़सोस मौलवी मुहम्मद अली बाकिर को हिन्द की आज़ादी के तवारीख में कोई जगह आज भी नहीं मिली है। यहाँ तक कि खुद को पत्रकारों का मसीहा कहने वाले भी इस नाम तक को याद नही रखे है। आज़ादी की तवारीख तो छोड़े साहब, पत्रकारिता के मरकज़ में भी आज मौलवी मुहम्मद अली बाकिर एक अनजान नाम है। आप अपने आसपास किसी भी नज़र आने वाले पत्रकार से पूछकर देख ले। कोई भी इस नाम को नहीं जानता होगा। अपने कलम से अग्रेजो के तोप का मुकाबिला करने वाले मौलवी मुहम्मद अली बाकिर के इतिहास को फिर कौन सजोयेगा

अंग्रेजो की हुकूमत को मौलवी मुहम्मद अली बाकिर ने कुछ इस तरह से खोखला कर दिया था कि 1947 तक पत्रकारो ने अंग्रेजो के दांत खुद की कलम से खट्टे किये थे। मगर आज भी तवारीख याद नही करती है इस आज़ादी के परवाने को। जानेमाने उर्दू पत्रकार और उर्दू संपादक सम्मेलन के महासचिव मासूम मुरादाबादी ने एक पुस्तक भी लिखी, जिसका हाल में उपराष्ट्रपति ने लोकार्पण किया था। मौलवी मोहम्मद बाक़ीर देहलवी की शहादत को आज सदियों तक याद रखा जाना चाहिये था मगर एक बार फिर सद अफसोस की कलम के इस क्रांतिकारी को ना तो आज़ादी के इतिहास मे कोई जगह मिली और ना ही भारत की पत्रकारिता ने उनको वह क़द दिया जिसके वह हकीकत में हकदार है।

इतिहास के झरोखों में सिर्फ चंद किस्सों को सुनाने के लिए ही “देहली उर्दु साप्ताहिक” के 17, 24, 31 मई 1857 व 14 और 21 जून 1857 तथा 5 जुलाई 1857 के अंको के अलावा “अखबारूल ज़फ़र साप्ताहिक” के 2, 9, 16 व 23 अगस्त 1857 और 13 सिंतबर 1857 के अंक भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखाकार मे राष्ट्रीय धरोहर के रूप मे आज भी सुरक्षित रखे है जिनमे 1857 की कई घटनाओं का विवरण मिलता है-इसके अलावा किसी कलमकार ने आज एक ज़माने में इस नाम को जगाने की कोशिश नही किया। अकेले मौलवी मुहम्मद अली बाकिर ही नहीं बल्कि उनका कुनबा पूरा का पूरा इस आज़ादी के लड़ाई में कलम के साथ अपना सब कुछ निछावर कर बैठा है। उनके वंशज आज कहा है किस हाल में है किसी को नहीं मालूम है।


जो कौम इतिहास से ना-वाकिफ होती हे, वो इतिहास से मित जाती हे.

 बात करते हैं इस्लाम क़े खूंखार शेरों मेसे एक शेर की*
सुलतान_सलाउद्दीन_अय्युबी_रहा

बेशक जो क़ौम अपनी तारीख़ भूल जाती है,
वो क़ौम सफ़ेहस्ती से मिटा दी जाती है"

वो_कैसा वक्त था जब एक ईसाई बादशाह रिचनल्ड ने मदीने को तहतेग करने का अज़्म लेकर अपनी फौजो से लदे हुए बहरी जहाज़ अरब सरज़मीन के साहिल पर लगा दिये, वो अक़्सर अपने सालारो से एक बात कहता रहता था कि वो हमारे प्यारे नबी #मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह_सल्ल. के रोज़ाए मुबारक को तोड़कर आप सल्ल. के जिस्म मुबारक़ को बाहर निकालेगा।
(नाऊज़बिल्लाह ) 

जब_उसका_ये_मंसूबा_सुल्तान_सलाहुद्दीन_अय्यूबी
तक पहुँचा तो उस मर्दे मुजाहिद ने अपनी तलवार आसमान की तरफ़ लहराकर कहा कि क़सम है मुझे उस पाक़ज़ात की जिसके कब्ज़े में मेरी जान है, रिचनल्ड को मै अपने हाथो से कत्ल करूँगा, हित्तीन की जंग को फतह करने के बाद आठ से ज़्यादा सलीबी बादशाह क़ैद किया गया। *जब रिचनल्ड को सलाहुद्दीन अय्यूबी के सामने लाया गया तो अय्यूबी ने उसे उसके वो अल्फ़ाज़ याद दिलाए जो उसने जनाबे*
*मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह_सल्ल. के बारे में कहे थे।*

*रिचनल्ड_ने_कहा_कि_बादशाह तो इस तरह के काम करते है, अय्यूबी ने कहा कि मैनें क़सम खाई थी कि तुझे अपने हाथो से क़त्ल करूँगा अब तेरे पास सिर्फ बचने का एक ही रास्ता है कि इस्लाम क़ुबूल करके तौबा कर ले रिचनल्ड ने कहा कि मै इस्लाम क़ुबूल नही करूँगा, सलाहुद्दीन अय्यूबी ने अपनी तलवार उठाई और एक ही वार में उसकी गर्दन उड़ा दी ।*

*मेरे_अज़ीज़_साथियो आज अगर किसी से पूछा जाए कि सलाहुद्दीन अय्यूबी कौन है तो शायद ही कोई बता सके* 
मिल्लते इस्लामियां के इस अज़ीम हीरे की इस उम्मते मुस्लिमा पर बहुत एहसान है, शाम और मिस्र के मुख्तार ओ मालिक बादशाह सलाहुद्दीन अय्यूबी के मरते वक्त इस मर्दे मुजाहिद की कुल ज़ायदाद कुछ दिरहम, एक तलवार और उसका एक घोडा था.!

*आज हम लोग मिल्लते इस्लामियां के उस अज़ीम सितारे उस मर्दे मुजाहिद को भूल चुके है, 2अक्टूबर सन् 1178 ईस्वी में सलाहुद्दीन अय्यूबी ने बेतुल मुक़द्दस को ईसाइयो से आज़ाद कराया था।* 

आज फिर वो बेतुल मुक़द्दस यहूदियो के कब्ज़े में है और फिलिस्तीनी बच्चे यहूदियो की आँख से आँख मिलाकर ये तराना पढ़ते है कि...👇

"नाहनुअबनुल_मुस्लिमीन_व_कुल्लुना_सलाहुद्दीन"

तर्जुमा👇
हम मुसलमानों के बच्चे हैं और हममे से हर एक सलाहुद्दीन हैl

इताअत कब और कहां करनी हे❓हदीस की रोशनी मे परहे.

इस्लाम मे  अंधाधुंध इताअत  करने  की मनाई हे.इस  हदीस से साबित होता हे.


Date:y07 April 2021
  Sahih Bukhari
Hadith No 7145
           بسْــــــــــــــــــمِ ﷲِالرَّحْمَنِ اارَّحِيم

ا لسَـــــــلاَمُ عَلَيــْــكُم وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَكـَـاتُ
ہم سے عمر بن حفص بن غیاث نے بیان کیا، انہوں نے کہا ہم سے اعمش نے بیان کیا، ان سے سعد بن عبیدہ نے بیان کیا، ان سے ابوعبدالرحمٰن نے بیان کیا اور ان سے علی رضی اللہ عنہ نے بیان کیا کہ   نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے ایک دستہ بھیجا اور اس پر انصار کے ایک شخص کو امیر بنایا اور لوگوں کو حکم دیا کہ ان کی اطاعت کریں۔ پھر امیر فوج کے لوگوں پر غصہ ہوئے اور کہا کہ کیا نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے تمہیں میری اطاعت کا حکم نہیں دیا ہے؟ لوگوں نے کہا کہ ضرور دیا ہے۔ اس پر انہوں نے کہا کہ میں تمہیں حکم دیتا ہوں کہ لکڑی جمع کرو اور اس سے آگ جلاؤ اور اس میں کود پڑو۔ لوگوں نے لکڑی جمع کی اور آگ جلائی، جب کودنا چاہا تو ایک دوسرے کو لوگ دیکھنے لگے اور ان میں سے بعض نے کہا کہ ہم نے نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم کی فرمانبرداری آگ سے بچنے کے لیے کی تھی، کیا پھر ہم اس میں خود ہی داخل ہو جائیں۔ اسی دوران میں آگ ٹھنڈی ہو گئی اور امیر کا غصہ بھی جاتا رہا۔ پھر نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم سے اس کا ذکر کیا گیا تو آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا کہ اگر یہ لوگ اس میں کود پڑتے تو پھر اس میں سے نہ نکل سکتے۔ اطاعت صرف اچھی باتوں میں ہے۔


          _आज के इस डोर मे तानाशाही सरकार और षड्यंत्र कारी सरकार की नीतियों को छोड़कर अगर कोई भी मुस्लिम रेहनुमा दुसरी बातों पर अपने फरमान जारी करे एसे मे मेरे नजदीक इस हदीस पर नजर करते हुये अमल करके अपना इमान और जान बचानी चाहिये._
                *मे यंहा कोरोना बिमारी को महा बिमारी बताने वाले मुस्लिम लीडर की बात करता हु, समझदार को इसारा काफी हे, वैसे अब लोग समझने लगे हे, बस उस समझदारी को जुबान पर लाने का प्रयास करना हे,वरना हमे सत्ताधारी  षड्यंत्र कारी सरकार की साजिश का शिकार बना दिया जायेगा.*
    _हो सकता हे कुच लोगों के लिये मेरा ये अनुमान गलत हो सकता हे,लेकीन ये बात मेरे नजदीक 100%सही हे._

  Huzaifa patel. Bharuch, Gujarat

Monday, 22 July 2024

72 फिरकों के नाम।

 *सोशियल मिडिया में पहली बार इस्लाम के नामपर 72 फिरको (जूठ) के नाम ।*

     _इसमें से आप कोनसे फिरके से जुड़े हे❓ ध्यान से पढ़े और हमारे Whatsapp नंबर पर कॉमेंट करे।_
      🫵 +919898335767

1. हनफी
2. शाफई
3. मलिकी
4. हम्बली
5. सूफी
6. वहाबी
7. देवबंदी
8. बरेलवी
9. सलफी
10. अहले हदीस
11. इशना अशरी (Twelver Shia)
12. जाफरी (Ja’fari)
13. जैदी (Zaidi)
14. इस्माइली (Ismaili)
15. दाऊदी बोहरा (Dawoodi Bohra)
16. बोहरा जाफरी (Bohra Jafari)
17. खोजा (Khoja)
18. द्रुज (Druze)
19. अशअरियाह (Ash’ari)
20. अहमदियाह (Ahmadiyya)
21. आजमी कैफी (Azmi Kaifi)
22. बोहरा सुलेमानी (Bohra Suleimani)
23. ईसाकियाह (Isa’kiyah)
24. रजाखानी (Razakhani)
25. नुक्तावियाह (Nuqtaviya)
26. रजाखानी (बरेलवी) (Razakhani Barelvi)
27. सिफातिहाय (Sifatihay)
28. हम्बलियाय (Hanbaliya)
29. खारिजी (Khariji)
30. बाबी वादी (Babi Vadi)
31. जबरीयाह साधारण (Jabriyah Saadaran)
32. महमूदीयाह (Mahmudiya)
33. फाजिली (Fazili)
34. शाफीयाहू (Shafiyahu)
35. मुशाबियाह (Mushabiyah)
36. करमियाह (Karamiyah)
37. कलामी (Kalami)
38. कर्रामी (Karrami)
39. कादियानी (Qadiyani)
40. खुर्रमियाह (Khurramiyah)
41. मुकन्नइ (Mukanai)
42. मजालिमियाह (Majalimiyah)
43. फातिमियाह (Fatimiyah)
44. इस्मायिली (Ismaili)
45. बक्ताशियाह (Baktashiyah)
46. हुरुफी (Hurufi)
47. नक्शबंदी (Naqshbandi)
48. नक्शबंदी मुजद्दिदी (Naqshbandi Mujaddidi)
49. शात्तारी (Shattari)
50. ओवैसी (Owaisi)
51. मुजाद्दीदी (Mujaddidi)
52. कादिरी (Qadiri)
53. सुहरवर्दी (Suhrawardi)
54. चिश्ती (Chishti)
55. मलीमतियाह (Malamatiah)
56. शाइख़ी (Shaikhi)
57. बाबियाह (Babi)
58. बहाई (Bahai)
59. नुजुमियाह (Nujumiyah)
60. रूशनीयाह (Rushaniyah)
61. तैमियाह (Taimiyah)
62. अफ़गानी (Afghani)
63. इख्वान (Ikhwan)
64. तहलीलियाह (Tahleeliyah)
65. वह्दानीयाह (Wahdaniyah)
66. मुवाहिद (Muwahhid)
67. कादियानी (Qadiyani)
68. अलीलही (Alilahi)
69. नूरबख्शी (Nurbakhshi)
70. इस्हाकियाह (Ishaqiyah)
71. खलीलियाह (Khaliliyah)
72. माशायिक़ (Mashayiq)
   👉 *(मुस्लिम) Muslim*

यह सूची विभिन्न स्रोतों से संकलित की गई है और संभवतः सभी फिरकों को शामिल नहीं करती है। कुछ नाम अलग-अलग शुरतो में अलग-अलग भी हो सकते हैं ।

*इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेर करे ।*

Friday, 5 July 2024

વિશ્લેષણ એક સબ્જેક્ટ

*એજ્યુકેશન એક મજબૂત પાયો છે.*

કોઈપણ સમાજને સારા ભવિષ્ય માટે *"પ્રોફેશનલ એજ્યુકેશન"* અને *"સોશિયલ એજ્યુકેશન"* બંને ખૂબ જ અગત્યના છે. જો કે સમક્ષ અને મજબૂત સમાજ બનાવવા માટે, *સમાજને સોશિયલ એજ્યુકેશન તરફ વિશેષ ધ્યાન આપવું જરૂરી હોય  છે.*

સોશિયલ એજ્યુકેશનથી સમાજના તમામ લોકોને *નૈતિક મૂલ્યો, નાગરિક કર્તવ્ય, સંસ્કૃતિ અને ઇતિહાસ સાથે સામાજિક જાગૃતિના મહત્ત્વ વિશે જાણકારી મળે છે* આ જ્ઞાનને જીવનમાં ઉતારી, દરેક વ્યક્તિ સમાજ માટે સહકાર, સહિષ્ણુતા અને ભાઈચારા જેવી ભાવનાઓ વિકસાવે છે. 

*સમાજમાં વિવાદોને દૂર કરવા માટે, સંગઠિત જીવન શૈલી અપનાવીને પરસ્પર સહકાર અને સમજણ વધારવી મહત્વની છે.* આ માટે, સ્કૂલો અને કોલેજોમાં તેમજ સમાજના વિવિધ સંગ્રહો અને સંગઠનોમાં સોશિયલ એજ્યુકેશનના કાર્યક્રમો આયોજિત કરવા માટે સમાજના બુદ્ધિજીવી વર્ગની પ્રાથમિક જવાબદારી છે.

*સોશિયલ એજ્યુકેશનથી લોકોમાં સમાનતા, ન્યાય, અને શાંતિની ભાવના વૃદ્ધિ પામે છે.* આ બધા મુદ્દાઓ પર ધ્યાન આપીને, આપણે એક મજબૂત અને સમૃદ્ધ સમાજની રચના કરી શકીએ છીએ, *જેનો લાભ ભવિષ્યની પેઢીઓ ઉઠાવી શકે છે.*

આ સંદેશ સાથે, આશા છે કે આપણે બધા *સામાજિક શિક્ષણની જરુરિયાતને સમજીને, તેની અવશ્યકતા વિશેની સમજણને આગળ વધારવા પ્રયત્ન કરીશું.*

*સામાજિક શિક્ષણથી દુર કોઈપણ વ્યક્તિ પોતાના પ્રોફેશનલ શિક્ષણથી સમાજના વિશેષ જવાબદારી અને પોતાના કર્તવ્યોથી દુર રહે છે.* તેઓ પોતાના પ્રોફેશનમાં વ્યસ્ત રહી સામાજિક જવાબદારીથી દુર રહે છે, આંતરિક વિકાસ માટે સામાજિક શિક્ષણ મહત્વપૂર્ણ છે. જે સમાજમાં સામાજિક શિક્ષણનો અભાવ હોય છે, તે સમાજના સભ્યો પોતાના અંગત પ્રોફેશનલ કારકિર્દીમાં જેટલા સફળ થાય છે, *તેટલાજ સામાજિક જવાબદારી અને કર્તવ્યોના ક્ષેત્રમાં નબળા રહી જાય છે.*

સામાજિક શિક્ષણ દરેક વ્યક્તિને તેના સમુદાય અને સમાજ પ્રત્યેના ફરજ અને *જવાબદારીનું મહત્વ સમજાવશે.* તેઓને આ બાબત માટે જાગૃત બનાવશે કે માત્ર પોતાનું કે પરિવારનું કલ્યાણ પૂરતું નથી, પરંતુ સમાજના સર્વાંગી વિકાસ માટે સહયોગ અને સંઘર્ષ માટે *માર્ગદર્શન અને પ્રોત્સાહન આપવા જેવા મહત્વના કાર્યો કરી શકે છે.*

તેથી, સમાજમાં સામાજિક શિક્ષણનું પ્રચાર-પ્રસાર અત્યંત જરૂરી છે. પ્રોફેશનલ શિક્ષણના સાથે-સાથે સામાજિક શિક્ષણને મહત્વ આપવું જોઈએ જેથી વ્યક્તિને સંપૂર્ણ રીતે સામાજિક વિશ્વાસ પામી શકે અને સમાજને સાચી પ્રગતિની દિશામાં લઈ જઈ શકે.


   *સામાજીક શિક્ષણ જ્યારે નબરું થાય છે,* તેવા સમાજમાં વિકાસ જાહેર જીવનમાં ખૂબ દેખાય શકે પણ વિશ્વાસ સમાજના આમ જન જીવનમાં ઘટાડો થઈ શકે છે, જેનાથી સમાજમાં નવા વિવાદો ઘણી તેજી સાથે વધે છે અને જુના વિવાદો વિકૃત માનસિકતા અને પરિસ્થતિ નિર્માણ કરી શકે છે.

         *"વિશ્લેષણ"*
તમો ક્યાં એજ્યુકેશન ને મહત્વ આપશો ❓

*A*. _સોશિયલ એજ્યુકેશન._
*B*. _પ્રોફેશનલ એજ્યુકેશન._

આપનો જવાબ નીચે આપેલ નંબર ઉપર વોટસએપ નંબર ઉપર *A અથવા B લખીને જાણવો.*

   🤜 *સુરક્ષિત સક્ષમ અને સંગઠિત સમાજના નિર્માણ માટે દરેકનું યોગદાન અનિવાર્ય છે.*🤛

Tuesday, 4 June 2024

मनुस्मृति की छोटी सी जानकारी और कुछ कानून...

 मनुस्मृति की छोटी सी जानकारी और कुछ कानून ....


*1. मनुस्मृति (100)* के अनुसार पृथ्वी पर जो कुछ भी है, वह ब्राह्मणों का है।

*2. मनुस्मृति (101)* के अनुसार दूसरे लोग ब्राह्मणों की दया के कारण सब पदार्थों का भोग करते हैं।

*3. मनुस्मृति (11-11-127)* के अनुसार मनु ने ब्राह्मणों को संपत्ति प्राप्त करने के लिए विशेष अधिकार दिया है। वह तीनों वर्णों से बलपूर्वक धन छीन सकता है अर्थात् डकैती कर सकता है।

*4. मनुस्मृति (4/165-4/166)* के अनुसार जान-बूझकर क्रोध से जो ब्राह्मण को तिनके से भी मारता है, वह 21 जन्मों तक बिल्ली की योनी में पैदा होता है।

*5. मनुस्मृति (5/35)* के अनुसार जो मांस नहीं खाएगा, वह 21 बार पशु योनि में पैदा होगा।

*6. मनुस्मृति (64 श्लोक)* के अनुसार 'अछूत' जातियों के छूने पर स्नान करना चाहिए।

*7. मनुस्मृति धर्म सूत्र (2-3-4)* के अनुसार यदि शूद्र किसी वेद को पढ़ते सुन लें तो उनके कान में पिघला हुआ सीसा या लाख डाल देनी चाहिए।

*8. मनुस्मृति (8/21-22)* के अनुसार ब्राह्मण चाहे अयोग्य हो, उसे न्यायाधीश बनाया जाए वर्ना राज्य मुसीबत में फंस जाएगा। इसका अर्थ है कि भूतपूर्व में भारत के उच्चत्तम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री अलतमस कबीर साहब को तो रखना ही नहीं चाहिये था।

*9. मनुस्मृति (8/267)* के अनुसार यदि कोई ब्राह्मण को दुर्वचन कहेगा तो वह मृत्युदंड का अधिकारी है।

*10. मनुस्मृति (8/270)* के अनुसार यदि कोई ब्राह्मण पर आक्षेप करे तो उसकी जीभ काटकर दंड दें।

*11. मनुस्मृति (5/157)* के अनुसार विधवा का विवाह करना घोर पाप है। विष्णुस्मृति में स्त्री को सती होने के लिए उकसाया गया है।

*12. मनुस्मृति में* दहेज देने के लिए प्रेरित किया गया है।

*13. देवल स्मृति में* तो किसी को भी बाहर देश जाने की मनाही है।

*14. मनुस्मृति में* बौद्ध भिक्षु व मुंड़े हुए सिर वालों को देखने की मनाही है।

*15. मनुस्मृति (3/24/27)* के अनुसार वही नारी उत्तम है, जो पुत्र को जन्म दे।

*16. मनुस्मृति (35/5/2/47)* के अनुसार पत्नी एक से अधिक पति ग्रहण नहीं कर सकती, लेकिन पति चाहे कितनी भी पत्नियां रखे।

*17. (1/10/51/52), बोधयान धर्मसूत्र (2/4/6), शतपथ ब्राह्मण (5/2/3/14)* के अनुसार जो स्त्री अपुत्रा है, उसे त्याग देना चाहिए।

*18. मनुस्मृति (6/6/4/3)* के अनुसार पत्नी आजादी की हकदार नहीं है।

*19. मनुस्मृति (शतपथ ब्राह्मण) (9/6)* के अनुसार केवल सुंदर पत्नी ही अपने पति का प्रेम पाने की अधिकारी है।

*20. बृहदारण्यक उपनिषद् (6/4/7)* के अनुसार अगर पत्नी संबंध करने के लिए तैयार न हो तो उसे खुश करने का प्रयास करो। यदि फिर भी न माने तो उसे पीट-पीटकर वश में करो।

*21. मैत्रायणी संहिता (3/8/3)* के अनुसार नारी अशुभ है। यज्ञ के समय नारी, कुत्ते व शूद्र को नहीं देखना चाहिए अर्थात नारी व शूद्र कुत्ते के समान हैं।

*22. मनुस्मृति (1/10/11)* के अनुसार नारी तो एक पात्र (बर्तन) के समान है।

*नोट - यह जानकारी हिन्दू (ब्राह्मण) धर्मग्रंथों से लिया गया है जिसे कोई संदेह हो वह हिन्दू (व्यवस्थावादी धर्म) को पढ़ सकते है*।  

         जिसे समझना है, वो मनुस्मृति खरीदें....

Sunday, 2 June 2024

समाज सुधार और सामाजिक बदलाव ।

 *समाज सुधार और सामाजिक बदलाव दोनों ही समाज को बेहतर बनाने के प्रयास हैं, लेकिन वे विभिन्न तरीकों और दृष्टिकोणों से काम करते हैं। आइए इसे आसान भाषा में समझते हैं:*
       
      ✒️ Huzaifa Dedicated 
   Bharuch - Gujarat 



 समाज सुधार (Social Reform):
- **क्या है:** यह समाज में पहले से मौजूद समस्याओं को सुधारने या खत्म करने का प्रयास है।
- **कैसे:** छोटे-छोटे कदमों के जरिए, जैसे कि कानून बदलना, लोगों को जागरूक करना, और शिक्षा के माध्यम से।
- **उदाहरण:** 
  - बाल विवाह का विरोध करना और इसे खत्म करना।
  - विधवाओं को पुनर्विवाह का अधिकार दिलाना।
  - जाति-प्रथा के खिलाफ काम करना।
- **लक्ष्य:** समाज को अधिक न्यायपूर्ण और समावेशी बनाना।

### सामाजिक बदलाव (Social Change):
- **क्या है:** यह समाज की मौलिक संरचनाओं और प्रणालियों में बड़े बदलाव लाने का प्रयास है।
- **कैसे:** व्यापक और गहरे स्तर पर बदलाव, जो समय के साथ समाज की सोच, संस्कृति, और जीवन शैली को बदलते हैं।
- **उदाहरण:** 
  - औद्योगिक क्रांति जिसने काम करने के तरीके और समाज की आर्थिक संरचना को बदल दिया।
  - महिला अधिकार आंदोलन जिसने महिलाओं के अधिकारों और समाज में उनकी भूमिका को पुनर्परिभाषित किया।
  - डिजिटल क्रांति जिसने सूचना और संचार के तरीके को बदल दिया।
- **लक्ष्य:** समाज को एक नई दिशा और रूप देना।

### मुख्य अंतर:
1. **दायरा और गहराई:**
   - **समाज सुधार:** विशेष समस्याओं पर केंद्रित होता है और उनका समाधान खोजने की कोशिश करता है।
   - **सामाजिक बदलाव:** पूरे समाज की संरचना और मूलभूत तरीकों को बदलने पर केंद्रित होता है।

2. **प्रक्रिया और दृष्टिकोण:**
   - **समाज सुधार:** धीरे-धीरे और क्रमिक बदलाव करता है, जो मौजूदा व्यवस्था के भीतर सुधार करने की कोशिश करता है।
   - **सामाजिक बदलाव:** तेजी से और गहरे स्तर पर बदलाव लाने की कोशिश करता है, जिससे समाज की पूरी संरचना बदल सकती है।

3. **समय सीमा:**
   - **समाज सुधार:** आमतौर पर अल्पकालिक और तत्काल समस्याओं को हल करने पर ध्यान देता है।
   - **सामाजिक बदलाव:** लंबी अवधि के लिए होता है और भविष्य की दिशा में बड़े बदलाव लाने का प्रयास करता है।

### सरल शब्दों में निष्कर्ष:
- **समाज सुधार:** जैसे आप घर के किसी कमरे की मरम्मत करते हैं।
- **सामाजिक बदलाव:** जैसे आप घर को पूरी तरह से नया डिजाइन देते हैं।

दोनों ही आवश्यक हैं, लेकिन उनका दृष्टिकोण और प्रभाव का स्तर अलग-अलग होता है। समाज सुधार सामाजिक बदलाव की दिशा में पहला कदम हो सकता है, क्योंकि यह समाज में सुधारों की आवश्यकता को पहचानता है और उसे लागू करता है।

Wednesday, 29 May 2024

2019 લોકસભા ચૂંટણી ગૂજરાત

 


આ છે 2019 ની લોકસભા ચૂંટણીમાં ગુજરાતની 26 બેઠકો પર જીતેલા ઉમેદવારોની યાદી:

1. **કચ્છ**: વિનોદ લાખમશી ચાવડા (BJP) - 3,05,513 મતના અંતરથી
2. **બનાસકાંઠા**: પરબતભાઈ પટેલ (BJP) - 3,68,296 મતના અંતરથી
3. **પાટણ**: ભારતીસિંહજી દાભી (BJP) - 1,93,879 મતના અંતરથી
4. **મહેસાણા**: શારદાબેન પટેલ (BJP) - 2,81,519 મતના અંતરથી
5. **સાબરકાંઠા**: દીપસિંહ રાઠોડ (BJP) - 2,68,987 મતના અંતરથી
6. **ગાંધીનગર**: અમિત શાહ (BJP) - 5,57,014 મતના અંતરથી
7. **અમદાવાદ પૂર્વ**: હસ્મુખભાઈ પટેલ (BJP) - 4,34,330 મતના અંતરથી
8. **અમદાવાદ પશ્ચિમ**: ડો. કિરીટ સોલંકી (BJP) - 3,21,546 મતના અંતરથી
9. **સુરેન્દ્રનગર**: ડો. મહેન્દ્રભાઈ મુંજાપરા (BJP) - 2,77,437 મતના અંતરથી
10. **રાજકોટ**: મોહનભાઈ કુંદારીયા (BJP) - 3,68,407 મતના અંતરથી
11. **પોરબંદર**: રમેશભાઈ ધડુક (BJP) - 2,29,823 મતના અંતરથી
12. **જામનગર**: પુનમબેન માડમ (BJP) - 2,36,804 મતના અંતરથી
13. **જૂનાગઢ**: રાજેશભાઈ ચુદાસમા (BJP) - 1,50,185 મતના અંતરથી
14. **અમરેલી**: નારણભાઈ કચ્છડીયા (BJP) - 2,01,431 મતના અંતરથી
15. **ભાવનગર**: ડો. ભારતિબેન શિયાલ (BJP) - 3,29,519 મતના અંતરથી
16. **આણંદ**: મીતેશ પટેલ (BJP) - 1,97,718 મતના અંતરથી
17. **ખેડા**: દેવુસિંહ ચૌહાણ (BJP) - 3,67,145 મતના અંતરથી
18. **પંચમહાલ**: રત્નસિંહ રાઠોડ (BJP) - 4,28,541 મતના અંતરથી
19. **દાહોદ**: જશવંતસિંહ ભાભોર (BJP) - 1,27,596 મતના અંતરથી
20. **વડોદરા**: રંજનબેન ભટ્ટ (BJP) - 5,89,177 મતના અંતરથી
21. **છોટા ઉદેપુર**: ગીતા રાઠવા (BJP) - 3,77,943 મતના અંતરથી
22. **ભરૂચ**: મансુખભાઈ વસાવા (BJP) - 3,34,214 મતના અંતરથી
23. **બારડોલી**: પરભુભાઈ વસાવા (BJP) - 2,15,447 મતના અંતરથી
24. **સુરત**: દર્શના જાર્દોશ (BJP) - 5,48,230 મતના અંતરથી જીત્યા હતા ....
25. **નવસારી**: સી.આર. પાટીલ (BJP) - 6,89,668 મતના અંતરથી
26. **વલસાડ**: ડો. કે.સી. પાટીલ (BJP) - 3,53,797 મતના અંતરથી જીત્યા હતા

તમામ બેઠકો પર ભાજપના ઉમેદવારોની જીત થઈ હતી.

Tuesday, 28 May 2024

इल्म ही लेकिन अमल नहीं ये ज्ञान इंसानियत के लिए कोई काम का नही ।

  इल्म और अमल: इंसानियत के लिए जरूरी ।

परिचय

इल्म (ज्ञान) और अमल (कार्रवाई) का संबंध इंसान के विकास और समाज की बेहतरी में बेहद महत्वपूर्ण है। केवल ज्ञान प्राप्त करना पर्याप्त नहीं है; उस ज्ञान को सही दिशा में उपयोग करना आवश्यक है। अगर हम इल्म वाले हैं लेकिन उसका अमल नहीं करते, तो हमारा ज्ञान इंसानियत के लिए कोई फायदा नहीं दे सकता।

ज्ञान का महत्व

ज्ञान वह रोशनी है जो अज्ञानता के अंधेरे को दूर करती है। ज्ञान हमें समझदारी, नैतिकता, और यकीन (विश्वाश) की नई ऊंचाइयों तक पहुंचने का मार्ग दिखाता है। एक शिक्षित व्यक्ति न केवल अपने जीवन को बेहतर बनाता है, बल्कि अपने समाज और देश की प्रगति में भी योगदान देता है।

अमल का महत्व

ज्ञान के साथ अमल का होना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि एक बीज का पौधा बनना। बीज में जीवन होता है, लेकिन जब तक उसे सही ढंग से जमीन में नहीं लगाया जाता और उसकी देखभाल नहीं की जाती, वह फल नहीं देता। इसी तरह, ज्ञान को अमल में लाना आवश्यक है ताकि उसका लाभ समाज को मिल सके।

इल्म बिना अमल के

जब ज्ञान का अमल नहीं होता, तो वह सिर्फ एक सैद्धांतिक जानकारी बनकर रह जाता है। उदाहरण के लिए, एक डॉक्टर जिसने चिकित्सा की पढ़ाई तो कर ली है लेकिन मरीजों का इलाज नहीं करता, उसके ज्ञान का कोई फायदा नहीं है। इसी प्रकार, अगर एक शिक्षक केवल पढ़ाई करता है लेकिन छात्रों को पढ़ाने का अमल नहीं करता, तो उसका ज्ञान व्यर्थ है।

अमल के बिना ज्ञान का नुकसान।

1. समाज का विकास रुकता है : जब ज्ञानी लोग अपने ज्ञान का सही उपयोग नहीं करते, तो समाज की प्रगति धीमी हो जाती है।
2.  नैतिकता का पतन : ज्ञान का अमल न होने पर लोग अपनी नैतिक जिम्मेदारियों को भूल जाते हैं, जिससे समाज में नैतिकता का पतन होता है।
3.  संसाधनों की बर्बादी : ज्ञान प्राप्त करने में समय और धन लगता है। अगर इसे उपयोग में नहीं लाया गया तो ये संसाधन व्यर्थ चले जाते हैं।

" अमल का प्रेरणास्त्रोत "

ज्ञान का सही उपयोग करने के लिए अमल का होना जरूरी है। इसके लिए कुछ प्रेरणास्त्रोत हो सकते हैं:
1. समाज की सेवा : ज्ञान का उपयोग समाज की बेहतरी के लिए करना चाहिए।
2. आत्मविकास : अमल से व्यक्ति अपने ज्ञान को और निखार सकता है।
3. प्रेरणा स्रोत बनना : जब ज्ञानी व्यक्ति अमल करता है, तो वह दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बनता है।

" निष्कर्ष "

इल्म और अमल दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। अगर इल्म है लेकिन अमल नहीं, तो वह इंसानियत के लिए कोई नफा नहीं दे सकता। हमें अपने ज्ञान का सही उपयोग करना चाहिए ताकि हम न केवल अपने जीवन को बेहतर बना सकें, बल्कि समाज और देश की प्रगति में भी अपना योगदान दे सकें। इसलिए, इल्म को अमल में लाना ही असली ज्ञान की पहचान है।

Monday, 27 May 2024

રાજકોટ ગેમ ઝોનમાં લાગેલ આગની માહિતી .

Breaking News : રાજકોટ અગ્નિકાંડ મામલે હાઈકોર્ટે સરકારની કાઢી ઝાટકણી,કહ્યુ- ‘જે મર્યા છે તે હત્યાથી ઓછું નથી’, જુઓ-VIDEO
અગ્નિકાંડ મામલે ગુજરાત હાઇકોર્ટ લાલઘૂમ છે. ત્યારે આ મામલે હાઈકોર્ટે રાજ્ય સરકારની ઝાટકણી કાઢી છે. ગેમ ઝોનમાં થેલ અગ્નિકાંડમાં 28 લોકોના મોત થયા છે ત્યારે આ મામલે હાઈકોર્ટે કહ્યું કે તે હત્યાથી ઓછું નથી, હાઈકોર્ટે કહ્યું કે નિયમોનું પાલન કરવામાં વિભાગ નિષ્ફળ નીવડ્યું છે.

રાજકોટ અગ્નિકાંડ મામલે ગુજરાત હાઇકોર્ટ લાલઘૂમ છે. ત્યારે આ મામલે હાઈકોર્ટે રાજ્ય સરકારની ઝાટકણી કાઢી છે. ગેમ ઝોનમાં થેલ અગ્નિકાંડમાં 28 લોકોના મોત થયા છે ત્યારે આ મામલે હાઈકોર્ટે કહ્યું કે તે હત્યાથી ઓછું નથી, હાઈકોર્ટે કહ્યું કે નિયમોનું પાલન કરવામાં વિભાગ નિષ્ફળ નીવડ્યું છે. અમને હવે રાજ્ય સરકાર અને તંત્ર પર જરાય પણ ભરોસો નથી. રાજકોટના આ અગ્નિકાંડે આખે ગુજરાત સહિત આખા દેશને હચમચાવી દીધુ છે.

જેટલા લોકો મર્યા તે હત્યાથી ઓછું નથી-HC
આ સમગ્ર મામલો હાઈકોર્ટ પહોચ્યોં હતો ત્યારે હાઈકોર્ટે વિભાગની ઝાટકણી કાઢતા કહ્યું છે કે ગેમઝોનને કેવી રીતે વપરાશની મંજૂરી મળી, કેટલા સમયથી આ ગેમઝોન કાર્યરત હતું છત્તા પણ કોઈ સુરક્ષાને લઈને કામગીરી કરવામાં આવી નથી. આ સમગ્ર મામલે અરજદાર હાઈકોર્ટમાં જણાવ્યું હતુ કે રાજ્ય સરકારમાં બાંધકામ માટે GDCRના નિયમોનું પાલન કરવાનું હોય છે, રાજકોટ ગેમઝોનમાં પણ કોઈપણ પ્રકારની મંજૂરી લીધી ન હતી.

જાહેર હિતની અરજી પર સુનાવણી થઈ રહી
હવે આ સમગ્ર મામલે સુઓમોટોની જાહેર હિતની અરજી પર સુનાવણી થઈ રહી છે. સરકાર તરફથી બંને એડવોકેટ જનરલ કોર્ટમાં હાજર રહ્યા હતા. રાજકોટ, અમદાવાદ, વડોદરા મનપાના વકીલો આ સમયે હાજર હતા. ત્યારે હાઇકોર્ટે ઝાટકણી કાઢતા રાજ્ય સરકાર અને વિવિધ કોર્પોરેશન પાસે જવાબ માંગ્યો છે.

હવે રાજ્યમાં ફાયર સેફ્ટીના નિયમોના પાલન અંગે જવાબ રજૂ થઇ શકે છે SITનો પ્રાયમરી રિપોર્ટ પણ કોર્ટમાં રજૂ થઈ શકે છે. ઘટના બાદ સ્થાનિક તંત્ર અને સરકારે લીધેલા પગલાં મુદ્દે પણ રજૂઆત થશે. હાઇકોર્ટે રાજકોટ અગ્નિકાંડને માનવસર્જિત ડિઝાસ્ટર ગણાવ્યું હતુ જે બાદ હવે આ સમગ્ર મામલે હાઈકોર્ટ સરકાર પાસે જવાબ માંગી રહી છે.

હાઈકોર્ટે વિભાગની ઝાટકણી કાઢી
રાજકોટના અગ્નિકાંડ બાદ સમગ્ર મુદ્દે હાઇકોર્ટની વિશેષ બેન્ચ સમક્ષ સુનાવણી હાથ ધરાઇ હતી, ત્યારે, આ ઘટના માનવસર્જિત હોવાનું કોર્ટે નોંધ્યું છે. આ ગેમ ઝોનમાં નિર્દોષ બાળકોના જીવ ગયા હોવાની કોર્ટે નોંધ લીધી હતી. તેમજ, ગેમિંગ ઝોન ચલાવવા અને બનાવવા માટેની પરવાની ન લીધી હોવાનું પણ કોર્ટના ધ્યાને મૂકાયું છે, ત્યારે અમદાવાદ, વડોદરા, સુરત, રાજકોટ સહિતના કોર્પોરેશન પાસે હાઇકોર્ટે ખુલાસો માગ્યો છે અને આ ખુલાસો એક જ દિવસમાં આપી દેવા કડક નિર્દેશ પણ કર્યા છે.

અમદાવાદના ગેમિંગ ઝોન લોકો માટે ખતરારૂપ
જેમાં ફાયર સેફ્ટીના નિયમોના પાલનથી લઇ અનેક મુદ્દે ખુલાસા થશે, એટલું જ નહીં, હાઇકોર્ટે અમદાવાદના ગેમિંગ ઝોન લોકો માટે ખતરારૂપ ગણાવ્યા છે. અમદાવાદના સિંધુભવન, સરદાર પટેલ રિંગ રોડ, એસ.જી. હાઇવેના ગેમિંગ ઝોન લોકો માટે ખતરારૂપ હોવાનું કહ્યું. મહત્વનું છે, હાઇકોર્ટે સ્વયં સંજ્ઞાન લઇને સુઓમોટો પિટીશન દાખલ કરી છે. હવે તપાસ બાદ જ વધુ ખુલાસા થશે.


રાજકોટ મનપા પર હાઈકોર્ટ આકરાપાણીએ, RMC કમિશનરને ફટકારી નોટિસ

કોર્ટના આદેશ છતાં નિયમોનું પાલન કરવામાં તંત્ર નિષ્ફળ
જ્વલનશીલ પદાર્થો કે એક્સપ્લોઝિવનું સ્ટોરેજ કરતી બિલ્ડિંગ જોખમી
આગમાં મૃત્યુ પામેલા લોકોને ઝડપી ન્યાય મળે
રાજકોટ મનપા પર હાઈકોર્ટ આકરાપાણીએ છે. જેમાં RMC કમિશનરને નોટિસ ફટકારી છે. હાઈકોર્ટે રાજકોટ મનપા કમિશનરને નોટિસમાં જણાવ્યું છે કે તમને શા માટે જવાબદાર ન ગણવા તેમજ રાજકોટ મનપા કમિશનર જવાબ આપે. ફાયર સેફ્ટી વિના સરકારને પણ કોર્ટ નહીં ચલાવી લે. જેમાં રાજકોટ ગેમઝોન આગકાંડમાં હાઇકોર્ટે આકરુ વલણ અપનાવ્યું છે.

આગમાં મૃત્યુ પામેલા લોકોને ઝડપી ન્યાય મળે

રાજકોટમાં લાગેલી આગમાં મૃત્યુ પામેલા લોકોને ઝડપી ન્યાય મળે તેને લઈ સૌ કોઈ ચિંતિત છે,ત્યારે ગુજરાત હાઈકોર્ટમાં આ મામલે તાત્કાલિક સુનાવણી હાથધરવામાં આવી છે. જેમાં અરજદારે કહ્યું, રાજકોટ ગેમઝોનમાં લાગેલી આગને લઈને તુરંત રિપોર્ટ તૈયાર કરાય, RMCની જવાબદારી નક્કી કરાય, આ ઘટનામાં મૃત્યુના જવાબદાર લોકોની જવાબદારી નક્કી કરાય. સુપ્રીમ કોર્ટના નિર્દેશોનો ઓથોરિટી દ્વારા અનાદર કરવામાં આવ્યો છે. આ એક વખતની દુર્ઘટના નથી અનેક વખતની દુર્ધટના છે.HC,SCના નિર્દેશ છતાં બેદરકારી રખાય છે,આ અગ્નિકાંડમાં લોકોની હત્યા થઈ છે,નાના અધિકારીઓને સસ્પેન્ડ કરી દેખાડો થાય છે. આવો દેખાડો કરવાનો કોઈ મતલબ નહીં.

કોર્ટના આદેશ છતાં નિયમોનું પાલન કરવામાં તંત્ર નિષ્ફળ

કોર્ટના આદેશ છતાં નિયમોનું પાલન કરવામાં તંત્ર નિષ્ફળ રહ્યુ છે. તક્ષશિલા, શ્રેય હોસ્પિટલ અગ્નિકાંડ બાદ પણ તંત્ર નિદ્વામાં છે.જનતાના હેલ્થની ચિંતાની જેમ ફાયરસેફ્ટીની પણ ચિંતા કરો.જેમાં ગેમઝોનમાં વેલ્ડિંગની કામગીરી ચાલુ હતી તો ગેમઝોન કેમ ચાલુ રખાયો હતો,એન્ટ્રી એરિયા પણ CCTVમાં દેખાય છે,તમને લોકોના જીવની પડી નથી અને તમે વેલ્ડીંગની કામગીરી કરતા હતા,આ કેટલું યોગ્ય છે. વધુમાં અરજદારે કહ્યું હતું કે, બિલ્ડિંગ નિર્માણ દરમિયાનના નિયમો પણ પાળવા પડે, તેમાં પણ ફાયર સેફ્ટીની જોગવાઇ છે, આવા કોઈ નિયમ રાજકોટમાં TRP દ્વારા પળાયા નથી.

જ્વલનશીલ પદાર્થો કે એક્સપ્લોઝિવનું સ્ટોરેજ કરતી બિલ્ડિંગ જોખમી

જ્વલનશીલ પદાર્થો કે એક્સપ્લોઝિવનું સ્ટોરેજ કરતી બિલ્ડિંગ જોખમી પ્રકારમાં આવે છે. ભરૂચ ફાયર, રાજકોટ ફાયર, અમદાવાદ ફાયર, હોસ્પિટલમાં આગ, ઓથોરિટી ક્યારે જાગશે? નિયમો છે તેનું પાલન કરાવવાની જવાબદારી કોની? લોકોની હાલત દયનીય છે. જેમાં હાઇકોર્ટ જણાવ્યું છે કે અમને રાજ્યની મશીનરી ઉપર ભરોસો રહ્યો નથી. કોર્ટના નિર્દેશોના ચાર વર્ષ છતાં આવી ઘટનાઓ બને છે. રાજ્ય સરકારના એડિશનલ એડવોકેટ જનરલે કહ્યું કે, તુરંત પગલાં લેવામાં આવ્યા છે. બધા ગેમ ઝોન બંધ કરવામાં આવ્યા છે. અત્યારે એક પણ ગેમ ઝોન ચાલુ નહીં.


Tuesday, 14 May 2024

इस्लाम कुरान और फिरका परसत पैगाम .

*#वाह_रे_नासमझ_मुसलमान!*
क्या ईमान पाया है, चन्द ज़ाहिल आलिमों के चक्कर में अल्लाह का कलाम (क़ुरान ए पाक) को जाने अनजाने में मानने से इन्कार करना शुरू कर दिए...।

*जी हाँ, जहाँ तक दुनिया जानती है कुछ ज़ाहिल टाईप आलिम बड़े शान से उस हदीस के मफ़हूम जिससे रिवायत है "मुसलमानों के 73 फ़िरके होंगे" को फेमस कर अपने फ़िरके की दुकान चमका रहे हैं...।*

लेकिन क्या उन ज़ाहिलो नें कभी क़ुरान की दलील इन आयतों पर दी है?
"सब मिल कर अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से थाम लो और फिर्क़ों में मत बटो...।"
*(सुर: आले इमरान-103)*

"तुम उन लोगो की तरह न हो जाना जो फिरकों में बंट गए और खुली-खुली वाज़ेह हिदायात पाने के बाद इख़्तेलाफ़ में पड़ गए, इन्ही लोगों के लिए बड़ा अज़ाब है...।"
*(सुर:आले इमरान -105)*

"जिन लोगों ने अपने दीन को टुकड़े टुकड़े कर लिया और गिरोह-गिरोह बन गए, आपका (यानि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का) इनसे कोई ताल्लुक नहीं, इनका मामला अल्लाह के हवाले है, वही इन्हें बताएगा की इन्होंने क्या कुछ किया है...।"
*(सुर: अनआम-159)*

"फिर इन्होंने खुद ही अपने दीन के टुकड़े-टुकड़े कर लिए, हर गिरोह जो कुछ इसके पास है इसी में मगन है...।"
*(सुर: मोमिनून -53)*

""तुम्हारे दरमियान जिस मामले में भी इख़्तेलाफ़ हो उसका फैसला करना अल्लाह का काम है..."
*(सुर: शूरा -10)*

"और जब कोई एहतराम के साथ तुम्हें सलाम करे तो उसे बेहतर तरीके के साथ जवाब दो या कम अज़ कम उसी तरह (जितना उसने तुम्हें सलाम किया) अल्लाह हर चीज़ का हिसाब लेने वाला है...।
*(सुर: निसा -86)*

"अल्लाह ने पहले भी तुम्हारा नाम मुस्लिम रखा था और इस (क़ुरआन) में भी (तुम्हारा यही नाम है) ताकि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) तुम पर गवाह हों...।"
*(सुर: हज -78)*

"बेशक सारे मुसलमान भाई भाई हैं, अपने भाइयों में सुलह व मिलाप करा दिया करो और अल्लाह से डरते रहो ताकि तुम पर रहम किया जाये...।"
*(सुर: हुजरात -10)*

और जिस हदीस के मफ़हूम को इतनी मेहनत से नफ़रत फ़ैलाने में इस्तमाल करते हैं क्या कभी उस मफ़हूम को पूरा पढ़ के सुनाया इन ढोंगी मौलवीयों ने?
जो पुरी तरह है "मेरी उम्मत के 73 फ़िरके होंगे, पर तुम उन फ़िरकों में मत बंट जाना" और सिर्फ़ पहली लाईन को पकड़ के फ़िरकों में बांटने की ठेकेदारी कर रहे चन्द उलेमाओं ने यह भी नहीं बताया की क़ुरान की एक भी बात को न मानना कुफ्र है...।

तो ज़रा सोचिये और बताईये फ़िरकों के नाम पर लड़ने वाले लोग ऊपर दी गई आयतों को कितना मानते हैं ????
मैं इतना बड़ा आलिम तो नहीं हूँ लेकिन अल्हमदुलिल्लाह मैं क़ुरान की इन आयतों के हवाले से कहता हूँ मैं मुसलमान हूँ और मेरा कोई फ़िरका नहीं है...।
अब आप सोंचे आपको फ़िरकों में बंट के क़ुरान की नाफ़रमानी करनी है 

*#बायकाट_करना_है_जो_फ़िरकों_में_बांटने _की राजनीति_करते_हैं...।*

Sunday, 25 February 2024

चुनावों से पहले BJP के संविधान में कर दिया गया बड़ा संशोधन! समझिए, क्या और कैसे दिखेगा इसका असर

चुनावों से पहले BJP के संविधान में कर दिया गया बड़ा संशोधन! समझिए, क्या और कैसे दिखेगा इसका असर।

BJP National Convention: बीजेपी के महासचिव सुनील बंसल पार्टी के संविधान में संशोधन का प्रस्ताव लेकर आए. ये प्रस्ताव बीजेपी के राष्ट्रीय अधिवेशन में लाया गया.


BJP Amendment To The Constitution: लोकसभा चुनाव 2024 से पहले राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में रविवार (18 फरवरी) को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के राष्ट्रीय सम्मेलन में पार्टी के संविधान में संशोधन किया गया. अब बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यकाल बढ़ाने या घटाने के लिए संसदीय बोर्ड परिस्थिति के हिसाब से फैसला कर सकता है. ये प्रस्ताव बीजेपी महासचिव सुनील बंसल लेकर आए थे.

बीजेपी ने अपने संविधान में संशोधन करके पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और संसदीय बोर्ड की पावर को बढ़ा दिया है. संसदीय बोर्ड में किसी नए सदस्य को लेकर आने या हटाने के फैसले का अधिकार पार्टी के अध्यक्ष को दिया गया है. हालांकि अध्यक्ष के फैसलों को बाद में मंजूरी के लिए संसदीय बोर्ड की बैठक में रखा जाएगा.

कैसे होता है बीजेपी अध्यक्ष का चुनाव?

न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, पार्टी अध्यक्ष का चुनाव आम तौर पर संगठनात्मक चुनावों के माध्यम से किया जाता रहा है. बीजेपी में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव निर्वाचक मंडल की ओर से किया जाता है, जिसमें राष्ट्रीय परिषद के सदस्य और प्रदेश परिषदों के सदस्य शामिल होते हैं. पार्टी संविधान में यह भी लिखा है कि निर्वाचक मंडल में से कोई भी बीस सदस्य राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति के नाम का संयुक्त रूप से प्रस्ताव कर सकते हैं.

यह संयुक्त प्रस्ताव कम से कम ऐसे पांच प्रदेशों से आना जरूरी है जहां राष्ट्रीय परिषद के चुनाव संपन्न हो चुके हों. सूत्रों ने कहा कि जब पार्टी विधानसभा या लोकसभा चुनावों की तैयारी में व्यस्त होती है, तो आंतरिक चुनावों के लिए निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना कठिन होता है.

मौजूदा अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल लोकसभा चुनाव के मद्देनजर 30 जून तक बढ़ाया गया है. हालांकि पार्टी ने संशोधन के पीछे के विवरण और तर्क पर विस्तार से नहीं बताया है लेकिन सूत्रों ने कहा कि भविष्य में संभवतः अपने अध्यक्षों की नियुक्तियों के लिए यह संशोधन किया गया हो.

बीजेपी अध्यक्ष की बढ़ाई पावर

संविधान में संशोधन करके पार्टी ने अपने अध्यक्ष की पावर को बढ़ा दिया है. साथ ही पार्टी के पुराने नियमों को हल्का कर दिया गया है. बीजेपी के पुराने नियम के मुताबिक, एक व्यक्ति सिर्फ दो बार ही फुल टाइम बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष रह सकता था और दोनों बार ही चुनावी प्रक्रिया को पूरा करना होता था. हालांकि अभी ये साफ नहीं है कि संशोधन के बाद किसी नेता को दो बार ही पार्टी अध्यक्ष बनाया जा सकता है या फिर उससे ज्यादा मौका देने का प्रावधान रखा गया है.

7/11 मुंबई विस्फोट: यदि सभी 12 निर्दोष थे, तो दोषी कौन ❓

सैयद नदीम द्वारा . 11 जुलाई, 2006 को, सिर्फ़ 11 भयावह मिनटों में, मुंबई तहस-नहस हो गई। शाम 6:24 से 6:36 बजे के बीच लोकल ट्रेनों ...