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संबंधित आपराधिक कानून के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कही।
मामले में तमिलनाडु सरकार की ओर से दलील दी गई कि आईटी एक्ट की धारा 66ए के खत्म होने के बाद से आपत्तिजनक कंटेट सोशल साइट्स पर कुछ ही मिनट में वायरल हो जाता है, जिससे व्यक्ति विशेष की सोशल प्लेटफॉर्म पर इमेज बिगड़ जाती है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी की कि केंद्र सरकार को लगता है कि इसके लिए अलग से कोई कानून बनाया जाना चाहिए तो वह बना सकती है।
'निर्देश नहीं, सुझाव है'
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आईटी एक्ट की धारा 66ए इसलिए हटाई गई क्योंकि वह अभिव्यक्ति के लिए खतरा थी। अगर संसद को लगता है कि इस मामले में कानून की जरूरत है तो वह कानून बना सकता है। जस्टिस दीपक मिश्र और प्रफुल्ल सी पंत की बेंच ने कहा, 'हम इसके लिए केंद्र सरकार को कोई निर्देश जारी नहीं कर सकते, केवल सुझाव ही दे सकते हैं।'
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान तमिलनाडु सरकार की ओर से दलील दी गई कि सोशल नेटवर्किंग साइट का दायरा काफी व्यापक है। कुछ ही मिनट में कंटेंट लाखों लोगों के पास पहुंच जाता है।
नीति की आलोचना मानहानि नहीं
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने कहा था अगर कोई पॉलिसी किसी को पसंद नहीं है तो उसकी आलोचना मानहानि के दायरे में नहीं आती। भारतीय संविधान में सभी को विचार अभिव्यक्ति का अधिकार है। आलोचना में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन ऐसी कोई भी आलोचना, जिससे किसी व्यक्ति विशेष के मान-सम्मान को ठेस पहुंचे तो वह मानहानि के दायरे में होगा।
मानहानि से संबंधित आपराधिक प्रावधान आईपीसी की धारा 499 और 500 को केजरीवाल के अलावा कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भी चुनौती दे रखी है।
आईपीसी की धारा 499 को चैलेंज
याचिकाकर्ता की दलील थी कि आईपीसी का उक्त प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14, 19 व 21 का उल्लंघन करता है। वह अभिव्यक्ति के अधिकार और लाइफ एंड लिबर्टी के अधिकार का उल्लंघन करता है। केंद्र सरकार की दलील थी कि मानहानि से संबंधित कानूनी प्रावधान सही है और कहा था कि हर व्यक्ति को राइट टु लाइफ ऐंडड लिबर्टी मिली हुई है। राइट टु लाइफ का मतलब मान सम्मान और प्रतिष्ठा के साथ जीवन जीने का अधिकार है। ऐसे में मानहानि से संबंधित कानूनी प्रावधान को बरकरार रखना जरूरी है।