“कुर्रान शरीफ” 24 आयतें।
Safteam guj.
14 Mar 2021
अभी कुछ घंटो से सोशियल मिडिया में एक खबर का वीडियो और उसके संलग्न टिप्पनिया-आक्रोश जबर्दस्त वाइरल हो रहे हैं. किसी एक गंदे बंदे ने सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (PIL) दायर कर इस्लाम के पवित्र धर्मग्रंथ “कुर्रान शरीफ” से कुछ आयतें हटाने-दूर करने की मांग की है, याचिका कर्ता का खयाल है की कुर्रान शरीफ की कुछ आयतें (श्लोकः) जिसमे जिहाद का जिकर है, उससे आतंकवाद को प्रोत्साहन मिलता है और भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के खिलाफ है तथा ऐसी आयतों से देश में भय एवं दहशत का माहौल रहेता है. इस याचिका कर्ता को मीडिया ने रहस्यमय तौर पे करोडो रूपये की पब्लिसिटी देदी. नतीजा उम्मिद के मुताबिक सारे देश और दुनिया में बबाल-कोहराम मच गया. कई जगह आवेदन देना शुरू तो कई जगह उसके खिलाफ कानूनन कार्यवाही की मांग के साथ रेली-सुत्रोच्चार शुरू हुवें है. यह पहलीबार नहीं है असल में देश और दुनिया में एक “रसम” और “मज़बूरी” हो गई है
1.अगर आपको सरकारी तौर पे (मुफ्त) में सुरक्षा चाहिये,
2. मुफ्त पब्लिसिटी चाहिये,
3. आपकी फिल्म या आपकी कोई प्रोडक्ट्स को प्रमोट करना है,
4. करोडो अरबो रूपये खरच कर भी आपको चुनाव में जित की ना उम्मिद है, हार जानेका खौफ है,
5. देश में बढते बेरोजगार, महंगाई जैसे मुद्दों से और बेकाबू आंदोलनों से लोगों का ध्यान भटकाना है, शांतिपूर्ण और सौहार्द से भरे माहौल को बिगाड़ना है,
6. या आपको सरकार में या साथी संगठनो में बड़ा होद्दा या कुछ टेंडर पास करवाना है,
7. या आपको सरकार की “गूडबुक” में अपना नाम लाकर कुछ बड़े इनाम-पुरस्कार चाहिये तो इस्लाम के बारे में कुछ भी अनाप शनाप वक्तव्य देदो, या पयगंबर (स.अ.व) के खिलाफ कुछ बेहुरमती वाला बयान देदो और कुछ नहीं तो “कुर्रान शरीफ” के बारे में कुछ न कुछ फ़ालतू की बकवास कर दो. इससे पहले सलमान रश्दी (धी सेतानिक वर्सिस) और बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन (लज्जा) नामक किताबों के जरिये कई हथकंडे कर चुके है और आनेवाले भविष्य में और भी कई चित्र विचित्र व्यक्ति, लोग, पार्टियाँ, संगठन इससे भी ज्यादा कारनामों को अंजाम देते रहेंगे. दुनिया में सबसे अधिक आबादी मुस्लिमों की होने के बावजूद: इस्लाम, पयगंबर (स.अ.व) और “कुर्रान शरीफ” के बारे में बेतुकी बयानबाजी करनेवालों की ताद्दाद दिन प्रतिदिन बढती जायेगी क्योंकि इसके कारण (ऊपर बताये) ‘लाभ लेने वाले’ मुस्लिमों की ताद्दाद भी कुछ कम नहीं है. सातसो वर्ष मुघलों की हुकूमत के दौरान कोई आतंकी घटनाएँ नहीं हुई. ताजमहल, लालकिल्ला, कुतुबमिनार, कई शाही मस्जिदें और शाही इमारतें बनवाने वाले मुघल केवल और केवल “कुर्रान शरीफ” को ही पढ़ते थे उन्होंने शस्त्रागार या विस्फोटकों के कारखाने कहीं पर भी नहीं बनाये. जिस किताब में दुन्य्वी तमाम मस्ले और परेशानियों का हल है, सच्चाई ईमानदारी और इंसानियत के अलावा हर बात से ज्यादा महत्व दिया गया, जिस किताब में पड़ोशियो, गरीबों, मिस्किनों, बेवा, अनाथ के हितों का पूरा खयाल रख्खा गया है, हर धर्म को इज्जत की नज़र से देखने का हुक्म हो, उंच-नीच का फर्क नहीं किया, स्त्री को सबसे ज्यादा अधिकार दिये हो शराब, जुआ, ज़िनाखोरी (परस्त्री सबंध) तथा ब्याज (सूद) को हराम करार दिया हो, जिस किताब का दुनिया के बड़े बड़े साइंसदानों ने सम्पूर्ण अध्ययन किया हो, जिस किताब ने जंग के दौरान शत्रु मुल्क के बच्चोंको, स्त्रियोंको, वृद्ध, विकलांग व्यक्तिओं को नुकशान पहोंचाने का नहीं बल्कि हिफाज़त का हुक्म दिया हो, जंग के दौरान फसल को जलानेका या नुकशान नहीं पहोंचानेका हुक्म दिया हो वह किताब आतंकवाद को प्रोत्साहन देती है?
अभी पिछले साल न्यूजीलैंड में भेजे गये एक “सो कोल्ड” एक्सट्रीमीस्ट ने मस्जिदों में पर फायरिंग करके ढेर सारे नमाजियों को मौत की नींद सुलाकर मुस्लिमों को जगाने की कोशिश की थी, अब एक और भेजा गया है जिसने अलमारियों तथा शॉ-कॅशो में बंध “कुर्रान शरीफ” को खोलकर पढने के लिये तथा समजने के लिये ज़िनजोड दिया है. नापाकी के हालात में “कुर्रान शरीफ” को हाथ नहीं लगा शकते. सुना है शराब के नशे में इन्सान अपने दिमाग से काबू खो देता है, नशे के हालात में उसे अच्छे बुरे का बिलकुल होश नहीं रहता उसके बावजूद अगर कोई मुसलमान शराबी से “कुर्रान शरीफ” छूने को बोलो तो वह भी “कुर्रान शरीफ” को छूना तो दूर उसका नाम लेकर बेहुरमती करने से परहेज़ करता है, और यह लोगों को कैसे कैसे दौरे पड रहें है? हो शक्ता है कल को ऐसों मुसलमानों में एक जमात आएगी जो खुद अपनी सगी मां और बाप का DNA करवाने की PIL के जरिए मांग करेगी और यह साबित करेगी की वह लोग किसी भी मुसलमान बाप की औलाद है ही नहीं।.....
-शब्बा खैर।
आपका फ़ज़ल बहेलीम।
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मेसेज नंबर -2
वसीम रिजवी नामक एक संघी को क़ुरआन की कुछ आयतों से दिक्कत हैं, अनुसूचित जाति के कई लोगों को मनुस्मृति से दिक्कत हैं। वामपंथियो में जो नास्तिक हैं उन्हें सभी धर्मों से दिक्कत हैं। तो हर कोई एक या दूसरे धर्म ग्रन्थ में फेरबदल कराने के लिए कोर्ट में चला जायेगा तो क्या होगा?
तो सवाल ये है कि सर्वोच्च अदालत समेत देश की किसी भी कोर्ट को क्या कोई धर्म ग्रँथ में संसोधन करने का, फेर बदल करने का, और रद्द करने का कोई अधिकार हैं?
इस का जवाब है: ना, ना, और ना!
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत कोर्ट को जो ज्युडिसियल रिव्यू के अधिकार मीले है उस में किसी भी धर्म के धार्मिक प्रावधानों को रद्द करने का अधिकार शामिल नहीं हैं।
भारत की कोई भी कोर्ट क़ुरआन शरीफ की 26 आयतें तो क्या, एक आयत या एक ज़बर जैर में फेरबदल करने का या रद्द करने का अधिकार नहीं रखती!
तो अब सवाल ये उठता हैं कि वसीम रिजवी ने ये याचिका दाखिल क्यों की, जब कि उसे भी मालूम हैं कि कोर्ट पहली सुनवाई में ही इस याचिका को खारिज कर देगी!
आप को याद होगा कि *वसीम रिजवी पहले भी मुस्लिमो और इस्लाम के खिलाफ बयान बाजी और इस्लाम की विचारधारा से विपरीत फिल्में बनाता आया हैं।* अभी के _हालिया विवाद को पैदा करने के पीछे उस का मकसद ये है कि उस के हथकण्डे की वज़ह से आम जनता, जिस में हिँदु मुस्लिम सभी शामिल है वो ये जाने कि क़ुरआन पाक में वो 26 आयतें कौन सी है_ जिस पर गैर मुस्लिमो के साथ साथ नास्तिक और प्रगतिशील मुस्लिम को एतराज होना चाहिए! ये प्रगतिशील मुस्लिम वो हैं जो पढ़ लिखकर खुद को सेक्युलर-अल्ट्रा मॉडर्न-तर्कशील मुस्लिम मनवाने में जुटे हुए है।
मुस्लिम और मोमिन में फर्क है, ईमान बगैर कोई भी मुस्लिम हो सकता है मग़र बगैर ईमान के मोमिन नहीं हो सकता।
आजकल कोई भी आलतू फालतू खुद को बड़ा तीसमारखां समझनेवाला मुस्लिम वो 26 आयतें ढूंढ रहा है। और वामपंथियो को, नास्तिकों को, इस्लामद्वेषियो को अपना एजंडा मिल गया है, जो हर जगह ये 26 आयतें विकिपीडिया के ट्रांसलेशन के साथ इधर उधर शेर फ़ॉरवर्ड करने लगे है।
अब ये बात कोई भी आम मुसलमान समझ सकता है कि कौन सी आयत कब उतरी, क्यों उतारी गई, और किस हाल में किस वाकये के लिए उतारी गई है वो जब तक समझ मे न आये तब तक क़ुरआन पाक का जुबानी तर्जुमा सुन लेने से या पढ़ लेने से ईमान वालो के लिए गुमराही का बाइस बन सकता हैं।
अग़र इंटरनेट पर आप One World Order या ID2020 सर्च करोगे तो आप को पता चलेगा कि 1990 से पूरी दुनिया को नास्तिक बनाने का, फ्री सेक्स में मुब्तिला करने का, LGBT को बढ़ावा देने का एक व्यवस्थित कार्यक्रम चल रहा हैं, जिस में इजरायल, अमरीका, समेत यूरोप के कई बड़े संघठनो, और सरकार का समर्थन है।
अब जाहिर सी बात हैं कि इस कार्यक्रम के अमल में सब से बड़ी रुकावट कोई ओर मजहब नहीं, सिर्फ इस्लाम रुकावट बना हुआ हैं। क्योंकि *रोजाना 8000 लोग इस्लाम मे दाखिल हो रहे हैं।* यूरप और अमरीका में सब से तेजी से फैलने वाला मजहब इस्लाम है, जब कि मुसलमानों की सब से बड़ी आबादी भारतीय उपखण्ड में हैं। इस लिए वसीम रिजवी जो कुछ भी कर रहा है वो सिर्फ भाजपा एजंडा या संघ प्रचार नहीं है। वास्तव में वसीम रिजवी जैसे कम से कम 100 कमीने आज भी देश मे One World Order के एजंट है जिन का एजंडा बिल गेट्स से लेकर इवांका ट्रम्प जैसे तय करते हैं।
इस लिए मेरा अपना मानना है कि मैं वसीम रिजवी का विरोध करूँगा मग़र कभी भी वो 26 आयते कौन सी है उस का जिक्र कहीं पर भी नहीं करूंगा। क्योंकि मुझे वसीम रिजवी के ओरिजिनल एजंडा को आगे नहीं बढाना हैं। उसे रोकना हैं।
अब जो लोग वो 26 आयतें ढूंढ रहे है वो या तो इतने समझदार नहीं है, और भोले है। या फिर ऐसे लोग वामपंथियो, नास्तिकों और सँघियों के एजेन्ट है जो फेसबुक पर या वोट्सएप पर वो 26 आयते दुसरो को फारवर्ड करते हैं।
अब आप तय कीजिये आप के सम्पर्क में कौन कैसा हैं!
Note ईन 26 आयतों पर अनगिनत किताबे सही समझ के लिए लिखी गई है, उन किताबो की PDF फारवर्ड करते रहना जरूरी हैं। ताकि जो लोग अनजाने में फ़ितने में मुब्तिला हो रहे हो, उन्हें सही समझ मिल पाए।
✍️ Salim Hafezi, Ahmedabad
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वसीम रिज़वी की रिट की तकनीकी ख़ामियां
हमने अपने पिछले ब्लॉग *क्या क़ुरआन में संशोधन किसी कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है?* में काफ़ी विस्तार से कई बातें बताई थीं। आज के ब्लॉग में हम इस रिट की तकनीकी ख़ामियों के पहलू पर बात करेंगे।
*01. क्या इसे जनहित याचिका माना जा सकता है?*
जनहित याचिका के नाम पर वही रिट दायर की जा सकती है जिसमें आम जनता से जुड़ा कोई मसला हो। वादी *वसीम रिज़वी* और उसके वकील *सुधाकर द्विवेदी* के बयान सुनकर ऐसा नहीं लगता कि उन लोगों ने जनहित से जुड़ा कोई मुद्दा उठाया है।
*राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद को बढ़ावा देने जैसे शब्दों की आड़ लेकर कोर्ट को गुमराह करने की साज़िश के अलावा इस रिट में और कुछ नहीं है।* इसलिये इसे सुना ही नहीं जाना चाहिये।
*02. भारत के मुस्लिम धार्मिक संस्थानों को रिट की कॉपी भेजकर जवाब मांगने का क्या कोई मतलब है?*
रिज़वी के वकील सुधाकर द्विवेदी ने माना है कि कोर्ट यह कहकर रिट को ख़ारिज कर देता है कि वादी पहले *Appropriate Places (उपयुक्त संस्थानों)* में नहीं गया है। इससे बचने के लिये सभी मुस्लिम धार्मिक संस्थानों को रिट की कॉपी भेजकर जवाब माँगा गया।
*यह दलील थोथी है क्योंकि जवाब माँगना ही था तो उन्हें इस रिट की कॉपी सऊदी अरब सरकार को भेजनी चाहिये थी, जहाँ से क़ुरआन पूरी दुनिया में फैला। जहाँ से दुनिया की हर भाषा में अनुवाद करके क़ुरआन को छापा और वितरित किया जाता है।* पूरी दुनिया में जहाँ कहीं भी क़ुरआन छपता है *उसका वेरिफिकेशन* सऊदी अरब से छपे क़ुरआन की प्रति से किया जाता है।
इसलिये वसीम रिज़वी को चाहिये था कि वो *इंटरनेशनल कोर्ट* में *सऊदी अरब सरकार* पर मुक़द्दमा करते। *इसमें भारत के सुप्रीम कोर्ट को बिला वजह घसीटकर भारत सरकार की छवि ख़राब का वसीम रिज़वी को क्या हक़ है?*
इसलिये *रिज़वी और उनके वकील सुधाकर द्विवेदी* द्वारा दी गई भारतीय मुस्लिम धार्मिक संस्थानों से जवाब मांगने की दलील भी बिल्कुल बकवास है।
*03. आरोप लगाने वाले के पास क्या सुबूत है कि क़ुरआन की यह 26 आयतें पहले तीन ख़लीफ़ा ने जोड़ी?*
सारी दुनिया में न्याय का एक *सर्वमान्य सिद्धांत* है, वो यह कि *आरोप साबित करने की ज़िम्मेदारी मुद्दई यानी वादी की है।* वसीम रिज़वी ने इस्लाम के पहले तीन ख़लीफ़ा हज़रत अबूबक्र, हज़रत उमर, हज़रत उस्मान (रिज़वानुल्लाहि अज्मईन) पर *क़ुरआन में 26 आयतें जोड़ने का जो इल्ज़ाम लगाया है, उसका सुबूत क्या है?*
*क्या वसीम रिज़वी की उम्र 1500 साल से ज़्यादा है?* क्या उन्होंने इन तीनों ख़लीफ़ाओं का शासनकाल देखा है जो इतने कॉन्फिडेंस के साथ उन पर क़ुरआन में एडिटिंग करने का इल्ज़ाम लगा रहे हैं?
■ *असली बात : घोटालों से ध्यान हटाने का घृणित हथकंडा*
◆ क़ुरआन में साफ़ लिखा है, *धर्म के मामले में कोई ज़बरदस्ती नहीं है।* (सूरह बक़र: :256)
*अगर वसीम रिज़वी को क़ुरआन पसंद नहीं है तो वो किसी अन्य धर्म में क्यों नहीं चले जाते?* क्यों ज़बरदस्ती मुसलमान बने फिरते हैं?
*हम आपको यह भी बता दें कि इसके ख़िलाफ़ शिया समुदाय की वक़्फ़ संपत्तियों का दुरुपयोग करने के इल्ज़ाम में सीबीआई जाँच चल रही है।* इसके सुबूत के तौर पर हम, इस ब्लॉग के साथ *एक ऑथेंटिक वीडियो* भी पेश कर रहे हैं।
हम इस ब्लॉग के ज़रिए, देश के सभी मुसलमानों से अपील करते हैं कि *एकदम अहिंसात्मक तरीक़े से* वसीम रिज़वी के ख़िलाफ़ हर मुमकिन क़ानूनी कार्रवाई करें। मुस्लिम समाज का ग़ुस्सा जायज़ है लेकिन शांतिपूर्ण तरीक़े से इस आदमी की चालों को नाकाम भी करना है। इस ब्लॉग को शेयर करके शांति व सद्भाव क़ायम रखते हुए वसीम रिज़वी के प्रोपेगैंडा को नाकाम करें। शुक्रिया वस्सलाम, सलीम ख़िलजी (चीफ़ एडिटर आदर्श मुस्लिम व आदर्श मीडिया नेटवर्क) जोधपुर राजस्थान