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Sunday, 25 April 2021

प्रधानमंत्री मोदी अक्सर अपने भाषणों में देशभक्ति से भरपूर यह कविता पढ़ते हैं। इस गीत को प्रसून जोशी ने लिखा है।


सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूंगा - प्रधानमंत्री मोदी अक्सर पढ़ते हैं 

प्रधानमंत्री मोदी अक्सर अपने भाषणों में देशभक्ति से भरपूर यह कविता पढ़ते हैं। इस गीत को प्रसून जोशी ने लिखा है। 

सौगंध मुझे इस मिट्टी की, 
मैं देश नहीं मिटने दूंगा, 
मैं देश नहीं मिटने दूंगा, 
मैं देश नहीं झुकने दूंगा। 

मेरी धरती मुझसे पूछ रही, 
कब मेरा कर्ज़ चुकाओगे, 
मेरा अम्बर मुझसे पूछ रहा, 
कब अपना फर्ज़ निभाओगे 
मेरा वचन है भारत माँ को, 
तेरा शीश नहीं झुकने दूंगा,

सौगंध मुझे इस मिट्टी की,
मैं देश नहीं मिटने दूंगा,
मैं देश नहीं मिटने दूंगा,
मैं देश नहीं झुकने दूंगा।

वो लूट रहे हैं सपनों को,
मैं चैन से कैसे सो जाऊँ,
वो बेच रहे अरमानों को,
खामोश मैं कैसे हो जाऊँ,
हाँ मैंने कसम उठाई है,
मैं देश नहीं बिकने दूंगा,
मैं देश नहीं मिटने दूंगा,
सौगंध मुझे इस मिट्टी की,
मैं देश नहीं मिटने दूंगा,
मैं देश नहीं मिटने दूंगा,
मैं देश नहीं झुकने दूंगा।

वो जितने अंधेरे लाएंगे,
मैं उतने सूर्य उगाऊँगा,
वो जितनी रात बढ़ाएंगे,
मैं उतने उजाले लाउंगा,
इस छल फरेब की आँधी में,
मैं दीप नहीं बुझने दूंगा,
मैं देश नहीं मिटने दूंगा,
सौगंध मुझे इस मिट्टी की,
मैं देश नहीं मिटने दूंगा,
मैं देश नहीं मिटने दूंगा,
मैं देश नहीं झुकने दूंगा।

वो चाहते हैं जागे न कोई,
ये रात ये अंधकार चले,
हर कोई भटकता रहे यूंही,
और देश यूंही लाचार चले,
पर जाग रहा है देश मेरा,
पर जाग रहा है देश मेरा,
हर भारतवासी जीतेगा,
हर भारतवासी जीतेगा,

मांओं बहनों की अस्मत पर
गिद्ध नज़र लगाए बैठे हैं
हर इंसां है यहां डरा-डरा
दिल में खौफ़ जमाए बैठे हैं
मैं अपने देश की धरती पर
अब दर्द नहीं उगने दूंगा
मैं देश नहीं रुकने दूंगा 
सौगंध मुझे इस मिट्टी की,
मैं देश नहीं मिटने दूंगा,
मैं देश नहीं मिटने दूंगा,
मैं देश नहीं झुकने दूंगा।

अब घड़ी फ़ैसले की खाई
हमने है कसम अब खाई
हमें फिर से दोहराना है
और ख़ुद को याद दिलाना है
ना भटकेंगे न अटकेंगे
कुछ भी हो इस बार
हम देश नहीं मिटने देंगे 
सौगंध मुझे इस मिट्टी की,
मैं देश नहीं मिटने दूंगा,
मैं देश नहीं मिटने दूंगा,
मैं देश नहीं झुकने दूंगा।

कपडवंज में पुलिस के साथ जिन की झड़प हुई क्या वो नमाझि नहीं थे? क्या वो दंगाई थे?

जब जब कहीं पर भी स्टेट पुलिस द्वारा मुस्लिमो पर दमन होता है तो गोदी मीडिया और फासिस्ट ताकते मुस्लिमो को दंगाई करार देने पर बेबाक होती हैं। फिर चाहे वो जामिया की लाइब्रेरी हो, जामा मस्जिद का एहतेजाज हो या फिर गुजरात का कपडवंज हो जहां पर तरावीह पढ़ रहे मुस्लिमो को पुलिस ने एक एक कर के मस्जिद से बाहर निकाला और उन्हें बुरी तरह पीटा। नमाझियों में बड़े बूढ़े और बच्चे भी थे, पुलिस ने अमानुषी तरीके से लाठी चलाई। बात यहां से खत्म नहीं हुई, रास्ते से आनेजाने वालो को नाम पूछ कर मारा गया जिस में मुस्लिम महिलाओं के कपड़े तक तार तार हुए। कपडवंज में जो कुछ हुआ, उस के सबूत के तौर पर कई सारे वीडियो कपडवंज डिवाईएसपी मेडम को मुहैया कराए गए जिस के आधार पर उन्होंने इस मामले में पुलिस की गलती होने का स्वीकार किया हैं। नमाझियों पर अत्याचार करने के बाद भी रास्ते पर जब जुल्म होता रहा तो लोगो की साहजिक प्रतिक्रिया के रुप में पथराव की घटना हुई। इसे किसी भी एंगल से दंगाईयो का कृत्य नही कह सकते। 

लेकिन ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लिमीन गुजरात के सदर *साबिर क़ाबलिवाला ने डीजीपी को लिखे लेटर में कहा है कि कपडवंजमें जिन के साथ पुलिस की झड़प हुई वो मुस्लिम दंगाई थे।* भाजपा सरकार की पुलिस एफआईआर में, गुजरात की गोदी मीडिया में भी कपडवंज के मुस्लिमो को दंगाई बताया गया है, लेकिन गुजरात मजलिस के सदर भी उन्हें दंगाई कहने लगे तो बोलने के लिए क्या बाकी रह जाता है!

गुजरात मजलिस के सदर के इर्द गिर्द चंद वामपंथी मुस्लिमो ने घेरा डाला हुआ है। नजदीकी भूतकाल में ये लोग जमीयत उलेमा हिन्द, और दीगर मुस्लिम तंजीमो को टारगेट कर रहे थे, जो लोग नास्तिक वामपंथी एंटी मुस्लिम जिग्नेश मेवानी को सर पर चढ़ाकर घुम रहे थे, पिछले 5 साल से उन के साथ प्रोग्राम कर रहे थे, कुछ लोग चन्द्रशेखर आजाद के साथ दिल्ली के रोहिदास मन्दिर मामले में अहमदाबाद की सड़कों पर *'मन्दिर वहीं बनेगा'* के नारे लगा रहे थे, ऐसे लोगो ने *मजलिस की पतंग को उड़ते देख अपने जाति मफाद के लिए मजलिस की डोर थाम ली हैं।* इन की वजह से मजलिस के ओरिजिनल कार्यकर्ता आज मजलिस से दूरी बना लिए है। मजलिस के सदर साबिर क़ाबलिवाला कोंग्रेस के विधायक पद पर रहकर भी वो अपनी छवि कोंग्रेस में मजबूत नहीं कर पाए थे। दस साल तक राजनीतिक वनवास के बाद बेरिस्टर साहब ने उनको सहारा दिया और पूरे स्टेट की जिम्मेदारी सौंप दी। मग़र उन्हें असलामती का डर दिखाकर वामपंथी गुट सदर साहब के मन मष्तिष्क पर सवार है, नतीजतन सदर साहब किसी की सुनते ही नहीं, और *आज पार्टी मजलिस की आइडियोलॉजी के बजाय वामपंथी लाइन पर चल रही है जिस का सुबुत सदर साहब द्वारा गुजरात डीजीपी को लिखे गए लेटर में मिलता है जिस में कपडवंज के मुस्लिमो को दंगाई बताया गया है।*

मजलिस की आइडियोलॉजी सिर्फ और सिर्फ मजलुमो को इंसाफ दिलाने की है, जब कि गुजरात मजलिस की आइडीयोलॉजी गुजरात की भाजपा सरकार, गुजरात पुलिस का समर्थन करने की दिख रही हैं। मजलिस को ये सवाल करना चाहिए कि जब शांति समिति की मीटिंग में ये तय हुआ था कि मुस्लिम मस्जिदों में जाकर तरावीह पढ़ेंगे और पुलिस उन्हें परेशान नहीं करेगी तो फिर मस्ज़िद में पुलिस दाखिल हुई क्यों? मस्जिद से लोगो को शांतिपूर्वक घर रवाना करने के बजाय उन पर लाठी क्यों बरसाई गई? रास्ते से आने जाने वालों को नाम पूछकर मुस्लिम नामधारियों को ही क्यों पिटा गया? मस्जिद से अपने बच्चों को लेने आए माँ बहनों को पुलिस ने क्यों मारा? मुस्लिम इलाके के वाहनों को पुलिस ने क्यों नुकसान किया? 

ये सारे सवाल करने के बजाय *गुजरात मजलिस के सदर साबिर क़ाबलिवाला कपडवंज के मुस्लिमो को दंगाई करार देकर भाजपा सरकार और स्टेट पुलिस की बोली बोलने लगे तो ये मजलिस का स्टैंड नही हो सकता,* ये गुजरात मजलिस में घुसे चंद वामपंथियो की कारगुजारी है, लेकिन ऐसे लेटर पर सदर साहब ने सिग्नेचर किया कैसे ये भी सवाल बनता है। सदर साहब न तो कपडवंज गए, न डीजीपी ऑफिस गए और लेटर सोसियल मीडिया में डाल दिया गया? *इस लेटर से कपडवंज के मुस्लिमो को क्या फायदा होगा?* क्या इस लेटर से मजलिस को नुकसान नहीं होगा?  

अभी ये लिखने से पहले जांच की गई कि क्या डीजीपी ऑफिस को मजलिस का ये लेटर मिला है, लेकिन अभी तक किसी ने भी डीजीपी ऑफिस को प्रस्तुत लेटर मिलने की पुष्टि नही की है।
सदर साहब ने गुजराती में लेटर लिखते हुए कहा है कि *"અમુક તોફાનીઓ દ્વારા કપડવંજ પોલીસ સ્ટેશન પર પણ હુમલો થયેલ હતો."* यानि *"कुछ दंगाइयों द्वारा कपडवंज टाउन पुलिस स्टेशन पर भी हमला हुआ था।"*

अब ये स्टेटमेंट तो वही दे सकता है ना जो मौके पर मौजूद हो। सदर साहब बताये, 20 अप्रैल को कपडवंज में रात 9 बजे के बाद ये घटना की शुरुआत हुई तब मौके पर मजलिस का कोई प्रतिनिधि मौजूद था? कैसे आप को पता चला कि मस्जिद में तरावीह पढ़ रहे थे वो नमाझि नहीं बल्कि दंगाई थे? 

गुजरात में मजलिस आई उस के बाद गुजरात मे मुस्लिमो पर दमन की ये छठवीं घटना है। इन में से कितनी घटना पर मजलिस मुस्लिमो के पक्ष में खड़ी रही वो सदर साहब को सोचना चाहिए। वामपंथी लॉबी नहीं चाहती कि गुजरात मे मजलिस लोकप्रिय और मजबूत हो। मजलिस की वजह से वामपंथियो के एनजीओ बिजनेस में मंदी आ गई है। इस लिए वो लोग गुजरात मे मजलिस को गलत रास्ते पर ले जा रहे हैं। 

अब देखना है कि पार्टी का आला कमान और बैरिस्टर साहब इस लेटर की दूरगामी राजनीतिक असर को देखते हुए कुछ कड़े कदम उठाते है या फिर _वही बेढंगी रफ्तार से चलते रहना है, जैसे साबिर क़ाबलिवाला चला रहे है।_

✍️ *Salim Hafezi* 
_90331 64631_

Saturday, 24 April 2021

શું ‘પ્રોટોકોલ’નો અર્થ સત્ય છૂપાવવાનો અને જવાબદારીથી ભાગવાનો છે?


SAFTEAMGUJ. 23 April 2021 

કોરોના મહામારીમાં ઓક્સિજનની અછતના કારણે થતાં મોતથી હાહાકાર મચી ગયો છે; એ સંદર્ભમાં; વડાપ્રધાને કોવિડ-19 પ્રભાવિત 10 રાજ્યોના મુખ્યમંત્રીઓ સાથે 23 એપ્રિલ 2021 ના રોજ વીડિયો કોન્ફરન્સ યોજી હતી. તેમાં દિલ્હીના CMએ આ વાતચીત ‘લાઈવ’ કરી હતી. ચાલુ મીટિંગે વડાપ્રધાનનું અંગત સ્ટાફે ધ્યાન દોર્યું કે દિલ્હીના CMએ મીટિંગ ‘લાઈવ’ કરી છે. વડાપ્રધાને કહ્યું કે “આ પ્રકારની ખાનગી વાતચીત લાઈવ કરીને દિલ્હીના મુખ્યમંત્રીએ પ્રોટોકોલનો ભંગ કર્યો છે !”

આખો દેશ કોરોના ડરના કારણે નહીં આરોગ્ય સેવાના લકવાના કારણે ધ્રૂજી રહ્યો છે. સરકારી આંકડા મુજબ દેશમાં, 22 એપ્રિલ 2021ના રોજ, કોરોના વાયરસ સંક્રમિત કેસ રોજના 3 લાખથી વધુ છે, અને 2,263 થી વધુ મોત થયા છે; પરંતુ સાચી સંખ્યા તો જુદી જ છે. રોજના 3 લાખ નહીં 30 લાખ કેસો થઈ રહ્યા છે; રોજના 2263 નહી પરંતુ તેનાથી દસ ગણાથી વધુ મોત થઈ રહ્યા છે ! દેશના અનેક ભાગમાં કર્ફ્યુ/નાઈટ કર્ફ્યુ/સ્વૈચ્છિક લોકડાઉન ચાલુ છે. શારીરિક દૂરી અને એકઠા ન થવા ઉપર જોર આપવામાં આવે છે. પોલીસ તેનો કડકાઈથી અમલ કરાવે છે. રીક્ષાચાલકો/શાકભાજી વેચનારાઓ/ શ્રમિકો ઉપર લાઠીચાર્જ થાય છે; સાયકલ ઉપર દવા લઈને જતા નાગરિકને પોલીસ ઘસડીને માર મારે છે. કોલેજ/સ્કૂલ બંધ છે. 10 અને 12 ધોરણની પરીક્ષાઓ મોકૂફ રાખી દીધી છે. બનારસ/અલ્લાહબાદ/લખનૌ/ભોપાલ/સુરત વગેરે શહેરોના સ્મશાનોમાં લાશોને અંતિમવિધિ માટે 18-18 કલાક રાહ જોવી પડે છે. અંતિમ સંસ્કાર ફૂટપાથ ઉપર અને ખેતરમાં થઈ રહ્યા છે ! આ સ્થિતિમાં હરિદ્વારમાં 35 લાખ લોકો કુંભમેળામાં એકઠાં થાય છે ! શું આ ‘પ્રોટોકોલ’ ભંગ નથી? પ્રોટોકોલ તો એ છે કે જે કહીએ તેનું આચરણ કરીએ. ‘દો ગજ કી દૂરી, માસ્ક હૈ જરુરી’નો ઉપદેશ આપનાર વડાપ્રધાન પશ્ચિમ બંગાળમાં ચૂંટણી રેલીઓ/સભાઓ યોજે અને ભાડાની ભીડ જોઈને આનંદિત થઈ ઊઠે છે. વડાપ્રધાન ‘દૂર-દૂર સુધી નજરે પડતી અપાર ભીડ’ સમક્ષ ‘દીદી ઓ દીદી’ કહીને અત્યંત અશોભનીય અને અશ્લીલ મજાક કરે છે; તેમાં પ્રોટોકોલ ભંગ થતો નથી? સંક્રમિતોના અને મોતના આંકડા છૂપાવવા એ સરકારનું કામ છે? શું આ પ્રોટોકોલ ભંગ નથી? ‘પ્રોટોકોલ’ મુજબ તો કોરોના મહામારીના સમયમાં વડાપ્રધાને પ્રેસ કોન્ફરન્સ કરવી જોઈએ; કેમ કરી નહીં? ત્રણ કૃષિ કાયદાઓ જો કિસાનોને આઝાદી આપવા માટે હોય તો પ્રેસ કોન્ફરન્સ કેમ ન કરી? નોટબંધી કરી/લોકડાઉન કર્યું; પ્રેસ કોન્ફરન્સ કેમ ન કરી? સમગ્ર દેશને સ્પર્શતા કોઈ મુદ્દે વડાપ્રધાન શામાટે પ્રેસ કોન્ફરન્સ કરતા નથી? લોકશાહી દેશના વડા પ્રેસ કોન્ફરન્સથી ડરે? 

વડાપ્રધાન અને રાજ્યોના મુખ્યમંત્રીઓ વચ્ચેની વાતચીતમાં એવું તો શું હતું કે તેનાથી રાષ્ટ્રીય સુરક્ષાને આંચ આવે? કોરોના સામેની લડાઈનો પૂરો એકશન પ્લાન પૂરી પારદર્શિતા સાથે દેશ સામે હોય તે જરુરી છે તેવા સમયે કેન્દ્ર સરકાર ગુપ્તતા/ગોપનીયતા ઉપર ભાર મૂકે તે વિચિત્ર લાગે છે. સંસદની કાર્યવાહી લાઈવ પ્રસારિત થાય છે ત્યારે કોરોના મહામારીને નાથવા મીટિંગ યોજાય તેને ખાનગી રાખવાની શી જરુર? ‘ખાનગી’ રાખવાનો અર્થ સત્ય છૂપાવવાનો અને જવાબદારીથી ભાગવાનો છે ! ‘પ્રોટોકોલ’ તો બહાનું છે !
rs
રિટાયર્ડ આઇપીએસ ઓફિસર રમેશ સવાણી જી ની વોલ પરથી.

Tuesday, 20 April 2021

RT-PCR test: क्यों होता है यह टेस्ट और क्या है इसका रेट, जानें सब कुछ.

 | नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: 12 Apr 2021, 11:57:00 AM

आरटी पीसीआर (RT- PCR) टेस्ट यानी रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पॉलीमर्स चेन रिएक्शन टेस्ट। इस टेस्ट के जरिए व्यक्ति के शरीर में वायरस (Corona Virus) का पता लगाया जाता है। इसमें वायरस के आरएनए (RNA) की जांच की जाती है। जांच के दौरान शरीर के कई हिस्सों से सैंपल लेने की जरूरत पड़ती है।

कोरोना वायरस (Corona Virus) का संक्रमण एक बार फिर से तेजी से फैल रहा है। देश के कई राज्यों में स्थिति फिर से भयावह हो रही है। इसे कोरोना (Corona) की दूसरी लहर माना जा रहा है। इसी के साथ आरटी पीसीआर टेस्ट (RT-PCR test) की चर्चा भी एक बार फिर से शुरू हो गई है। दरअसल कोरोना के बढ़ते मामलों को देखकर तमाम राज्य सरकारों ने अलग-अलग दिशा निर्देश जारी कर दिए हैं। कई राज्यों ने आरटीपीसीआर टेस्ट रिपोर्ट का निगेटिव सर्टिफिकेट देख कर दूसरे राज्य से आने वालों को प्रवेश की अनुमति दे रही है। हम आपको बता रहे हैं कि आरटी पीसीआर टेस्ट क्या है और इसके रेट क्या हैं?

  1. क्या है आरटी पीसीआर टेस्ट?
    आरटी पीसीआर टेस्ट यानी रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पॉलीमर्स चेन रिएक्शन टेस्ट। इस टेस्ट के जरिए व्यक्ति के शरीर में वायरस का पता लगाया जाता है। इसमें वायरस के आरएनए की जांच की जाती है। जांच के दौरान शरीर के कई हिस्सों से सैंपल लेने की जरूरत पड़ती है। ज्यादातर सैंपल नाक और गले से म्यूकोजा के अंदर वाली परत से स्वैब लिया जाता है।
  2. इस टेस्ट की रिपोर्ट आने में कितना समय लगता है?
    आरटी पीसीआर टेस्ट की रिपोर्ट आने में सामान्यतः 6 से 8 घंटे का समय लग सकता है। कई बार इससे ज्यादा समय भी लग सकता है। आरटी पीसीआर टेस्ट आपके शरीर में वायरस की मौजूदगी का पता लगाने में सक्षम है। यही वजह है कि कुछ लोगों में कोरोना वायरस के लक्षण सामने न आने के बावजूद भी ये टेस्ट पॉजिटिव आता है। हालांकि, आगे चलकर वायरस के कोई लक्षण सामने आएंगे या नहीं, या फिर वायरस कितना गंभीर रूप ले सकता है, इसके बारे में आरटी पीसीआर टेस्ट के जरिए पता नहीं चल पाता।
  3. इस टेस्ट के लिए कोई तैयारी भी करनी पड़ती है या भूखे पेट सैंपल देना पड़ता है?
    इस टेस्ट के लिए किसी खास तैयारी की जरूरत नहीं पड़ती। लेकिन अगर आप कोई विशेष दवा, काढ़ा या जड़ीबूटी का सेवन कर रहे हैं तो एक बार अपने डॉक्टर से सलाह लेने के बाद ही सैंपल दें। ऐसा इसलिए, ताकि आप जो दवा या काढ़े का सेवन कर रहे हैं, उसका रिपोर्ट पर असर नहीं दिखे। सैंपल देने के लिए भूखे रहने की आवश्यकता नहीं होती है। सैंपल कभी भी दिया जा सकता है।
  4. क्या रेट है इस टेस्ट का?
    जब कोरोना वायरस का प्रकोप देश में फैला था, उस समय इस टेस्ट का रेट दिल्ली में 2400 रुपये था। लेकिन बीते साल 30 नवंबर को दिल्ली सकार ने एक आदेश निकाल कर आरटी पीसीआर टेस्ट का रेट घट कर 800 रुपये कर दिया था। यदि किसी व्यक्ति को अपने घर में ही सैंपल देना हो तो फिर उसका रेट 1200 रुपये होगा।
  5. कुछ और भी सस्ते हैं विकल्प?
    स्पाइसजेट एयरलाइन की सब्सिडियरी कंपनी स्पाइसहेल्थ ने दिल्ली में कोविड टेस्टिंग फेसिलिटी बनाई है। कंपनी ने घोषण की है कि उनके यहां 499 रुपये से ही आरटी पीसीआर टेस्ट की शुरूआत हो जाती है। यही नहीं, इसमें टेस्ट की रिपोर्ट भी महज छह घंटे में ही मिल जाती है। जबकि आमतौर पर इस रिपोर्ट के आने में 24 घंटे तो लगते ही हैंं। हालांकि इसकी सेवा दिल्ली और मुंबई में ही ज्यादा है।
  6. मुंबई एयरपोर्ट पर क्या है रेट?
    मुंबई छत्रपति शिवाजी महाराज इंटरनेशनल एयरपोर्ट (CSMIA) ने आरटी पीसीआर टेस्ट (RT-PCR Test) की दर 30 प्रतिशत घटाकर 600 रुपये कर दी है। महाराष्ट्र में कोविड-19 (covid-19 in Maharashtra) संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच यह कदम उठाया गया है। महाराष्ट्र सरकार के ताजा निर्देशों के मुताबिक संशोधित शुल्क 1 अप्रैल से प्रभावी हो गया है।

क्या इन सवालो के जवाब दुनिया मे होंगे.

-----------"पाखण्ड क्या है दिमाग लगाओ"------------

क्या ब्रम्हा के चार सिर हो सकते है ?

क्या श्रंगी रिषि हिरनी से पैदा हो सकते है ?

क्या द्रोणाचार्य दोने से पैदा हो सकते है ?

क्या पारा रिषि पारे से पैदा हो सकते हैं ?

क्या हनूमान अंजनी के कान से पैदा हो सकते है ?

क्या कर्ण सूर्य से पैदा हो सकते है ?

क्या गणेश मैल से पैदा हो सकते है ?

क्या जनक अपने मरे पिता कि जॉघ से पैदा हो सकते है ?

क्या राम खीर खाने से पैदा हो सकते है ?

क्या सीता जी घड़ा से पैदा हो सकती है ?

क्या लव कुश को बाल्मीक जी घास से पैदा कर सकते हैं ?

क्या मनु की छींक से इछ्वाकु पैदा हो सकते हैं ?

क्या जालन्धर जल से पैदा हो सकता है ?

क्या मकरध्वज मछली से पैदा हो सकता है ?

क्या सोने की लंका राख हो सकती है ?

क्या हनूमान सूर्य को निगल सकते है ?

क्या हिरण्यक्ष प्रथ्वी को उठा सकता है ?

क्या पत्थर पानी पर तैर सकते है ?

क्या जुआ खेल कर द्रोपदी स्त्री को 
जुवॉ मे हारने वाले युधिष्ठिर धर्मराज हो सकते है ?

जो चीज मुख से खाई जाती है वह अमासय अथवा आंत मे जाती है और बच्चा गर्भासय से पैदा होता है तो दशरथ की रानियों ने खीर खाई तो कैसे खाई जो गर्भासय मे प्रवेश कर गई और राम लक्ष्मण भरत सत्रुध्न पैदा हुये ?

जागो बहुजन मूलनिवासी जागो।
        
बता दो उन ढोंगियों को जो धर्म के नाम पर तुम्हारा शोषण करते है।

और तुम्हे अॉखों के होते हुये भी अन्धा बना रहे है....
 
मिट्टी की देवी ,पत्थर के महादेव ,गोबर को गणेश कर तुमसे सब पुजवा रहे है।

लोग कहते है कि ब्रम्हा ने श्रष्टि बनाई उनके

1.  मुख से ब्राह्मण पैदा हुय

2. उनके हॉथों से क्षत्रिय पैदा हुये
               
3. पेट से वैश्य पैदा हुये 

4. पैरो से सूद्र पैदा हुये

लेकिन मुस्लमान सिख्ख इसाई...?

पशु पक्षी कीड़े मकोड़े ये ब्रम्हा  के किस अंग से पैदा हुये क्या ये श्रष्टि मे नही आते है ?

अगर आते है तो ये ब्रम्हा जी के किस अंग से पैदा हुये..?

 
"दिमाग लगाओ और सत्य असत्य को जानो पाखण्डवाद ,ब्राह्मणवाद, मनुवाद को मिटा कर विज्ञान के पथ पर चलो...।

Monday, 19 April 2021

સમસ્યાનું નિરાકરણ:નવસારી ખાટકીવાડ મસ્જિદ-દરગાહના વિવાદનો સુખદ અંત આવતા બંને પક્ષે રાહત.

19 april 2021 Safteamguj.

એક સપ્તાહ પહેલા કોર્ટના હુકમથી મસ્જિદને સિલ કરી દેવામાં આવી હતી.

નવસારીમાં આવેલ ખાટકીવાડ મસ્જિદમાં એક સપ્તાહ પહેલા કોર્ટના હુકમને લઇને પ્રાંત અધિકારી અને ડીડીઓની હાજરીમાં ચુસ્ત પોલીસ બંદોબસ્ત વચ્ચે મસ્જિદ સિલ કરવામાં આવી હતી. જો કે તે જ દિવસથી નવસારી અને વડોદરાના ટ્રસ્ટીઓ વચ્ચે સમાધાનના પ્રયાસો હાથ ધર્યા હતા અને બને પક્ષો વચ્ચે સમાધાન થયું હોવાની માહિતી મળી છે.

નવસારી ટાટા સ્કૂલ રોડ ખાતે આવેલ ખાટકીવાડ મસ્જિદ માં આવેલ સૈયદ અમીર એ મિલ્લત ની દરગાહ આવેલ છે. મસ્જિદ પક્ષ અને દરગાહ પક્ષનો 14 વર્ષથી વિવાદ ચાલતો હતો. જેનો અંત તાજેતરમાં વડોદરા ખાતે મળેલી મિટિંગમાં આવ્યો હતો. વધુમાં 14 વર્ષ દરમિયાન થયેલ 18 મિટિંગ નિષ્ફળતા બાદ મસ્જિદ પક્ષ તરફથી આશ્વાસન આપવામાં આવ્યું હતું કે, અમો નવસારીના સમજદાર મુસ્લિમ હોઈ આ વિવાદનો હંમેશ માટે નિવારણ કરશું અને અમોએ કરેલ સમજૂતી બંને પક્ષને માન્ય રહેશે. તેવી રજુઆત થઈ હતી.

વડોદરા ખાતે આવેલ ખાનકાહ એહલે સુન્નતના ગાદી પતિ સૈયદ મોઈનનુદીન બાવા સાહેબ દરગાહ તરફથી અને જનાબ સબ્બીરભાઈ મદદ (કુરેશી) ટ્રસ્ટી મસ્જિદ તરફથી તેમજ બંને પક્ષના અગ્રણીઓએ સાજીદભાઈ ઝવેરી, ઝુબીન કુરેશી, બુરહાનભાઈ મલેક, આશીફભાઈ બરોડાવાળા, અંજુમભાઈ શેખ વગેરે અને વડોદરાથી જનાબ મુસ્તુફાભાઈ હાલોલ, બાબુભાઈ વકીલ, નુરુલ્લાભાઈ પઠાણ, મોહમદ હાજી સિદ્દીકભાઈ, મોઇન ભાઈ મકરાણી વગેરેની હાજરીમાં ચાર મુદ્દા પર સમાધાન થયું હતું. હવે આ સમાધાન કોર્ટમાં રજૂ કરવામાં આવશે પછી મસ્જિદ બાબતે નામદાર કોર્ટ નિર્ણય લેશે. આ બાબતે નવસારીમાં જાણ થવાથી મુસ્લિમ સમાજમાં આનંદની લાગણી છવાઈ હતી.

કઈ બાબતો વચ્ચે સમાધાન થયું

  • મજાર શરીફને અડીને આવેલ દાદર તેમજ મજારની ઉપરથી થયેલ દાદરનું બાંધકામ દૂર કરવું.
  • મજારની જમણી બાજુએ આવેલ સંડાસોનું બાંધકામ દુર કરી ત્યાંથી મજાર પર જવાનો એક દરવાજો રાખવો.
  • ઈ :સ 2007 પહેલા આવેલ બે મજાર જે આપે સ્લેબ નીચે દબાવેલ છે, તેને પાછા બહાર કાઢવા અને ત્રણે મજારનું રિનોવેસન દરગાહ પક્ષ પોતાને ખર્ચે કરશે
  • ઈ:સ 2007 પહેલા જે રીતે મસ્જિદમાં વાર્ષિક ઉર્સનું આયોજન થતું હતું, તે રીતે થશે જેમાં મસ્જિદ ટ્રસ્ટ સહકાર આપશે.

આ દરેક મુદ્દા પર મસ્જિદ પક્ષ તૈયાર થયો હતો. આ સમજૂતી પત્ર હવે માન્ય ગુજરાત હાઈ કોર્ટમાં મૂકી ટૂંક સમયમાં મસ્જિદનું સીલ ખોલવાની પ્રક્રિયા શરૂ થશે.



‘न्यू वर्ल्ड ऑर्डर’- कोरोना के साथ भी, कोरोना के बाद भी आने वाला हे मनुष्य के लिये गुलाम बनाने वाली नितीया.

‘न्यू वर्ल्ड ऑर्डर’ स्थापित करने के लिए दुनिया की महाशक्तियाँ पूरी तन्मयता से लगी हुई हैं। यह एक ऐसा लंबा विराम है जिसमें दर्शकों के सामने पर्दा गिरा दिया गया है और ग्रीन रूम में अभिनेता पोशाक बदल रहे हैं। जब पर्दा उठेगा तो मंच पर साज- सज्जा बदली हुई होगी।
image courtesy : Al Jazeera

कोरोना के साथ चलते हुए दुनिया बदल रही है। दबी ज़ुबान से कुछ जानकार यह मान भी रहे हैं कि कोरोना एक बीमारी या महामारी नहीं है। अगर उनकी बात में लेशमात्र भी सच्चाई है तो वाकई कोरोना एक समयावधि है। एक काल-खंड है। एक अंतराल है। जिसे बीतना ही है। लेकिन यह तब तक नहीं बीतेगा जब तक पूरी दुनिया में पूंजीवाद का नया ‘वर्ल्ड ऑर्डर’ स्थापित होकर अमल में नहीं आ जाता। चूंकि दुनिया के तमाम देश अलग-अलग भू-राजनैतिक परिस्थितियों में बसे हुए हैं और इस विविधता से भरी दुनिया में किसी एक दिन कोरोना की समाप्ति की घोषणा नहीं की जा सकती है इसलिये अलग-अलग देशों के लिए यह काल-खंड या समयावधि अलग- अलग हो सकती है।

Parliament: कोरोना के बाद न्यू वर्ल्ड ऑर्डर हो रहा तैयार, भारत को भी बनना होगा मजबूत प्लेयरः PM मोदी


‘न्यू वर्ल्ड ऑर्डर’ स्थापित करने के लिए दुनिया की महाशक्तियाँ पूरी तन्मयता से लगी हुई हैं। यह एक ऐसा लंबा विराम है जिसमें दर्शकों के सामने पर्दा गिरा दिया गया है और ग्रीन रूम में अभिनेता पोशाक बदल रहे हैं। जब पर्दा उठेगा तो मंच पर साज- सज्जा बदली हुई होगी। कलाकार कमोबेश वही होंगे लेकिन उनके परिधान से लेकर चाल चरित्र बदल चुके होंगे। इस बदलाव में कालावधि का ध्यान रखा जाएगा। ताकि दर्शक उस नाटक को निरंतरता में ही देखे।

नाटक या सिनेमा की खूबी यही होती है कि दर्शक अपने स्थान पर ही बैठा रहता है और मंच सज्जा, संगीत संयोजन और प्रकाश संयोजन के प्रभाव और कलाकारों की रूप-सज्जा में फेर बदल करके उसे समय से आगे-पीछे ले जाया जा सकता है। दर्शक इसे कला कहते हैं और उस कला के प्रभाव में आकर उसी के साथ समय के उलट-फेर में हिचकोले खाने लगते हैं।

यह कला वैश्विक स्तर पर एक विराट रंगमंच पर उतर आयी है। दुनिया के अधिकांश देशों के नागरिक इस विराट मंच के प्रेक्षक बना दिये गए हैं। वो टकटकी लगाए देख रहे हैं जो उनके सामने घटित हो रहा है। वो वह भी देखेंगे जो उनके सामने आने वाले समय में घटित होगा।

अन्य देशों के बारे में, उन देशों के कलाकारों के बारे में, उन देशों के दर्शकों के बारे में कुछ सूचनाओं के आधार पर अटकलें लगाईं जा सकती हैं लेकिन अपने प्यारे भारतवर्ष में घटित होती घटनाओं के बारे में, दर्शकों की प्रतिक्रियाओं के बारे में और अपने कलाकारों के बारे में बहुत कुछ ठोस रूप से बताया जा सकता है।

दुनिया रुकी नहीं है। फिलवक्त वह अपनी धुरी पर ही घूम रही है। जो जहां था वो वहीं है। मंच पर चित्र बदल रहे हैं। प्रसंग बदल रहे हैं और किरदार बदल रहे हैं। भारतवर्ष भी अपनी धुरी पर पकड़ बनाए हुए इस घूमती हुई धरती से अपनी संगत बनाए हुए है। दो महीने के सम्पूर्ण लॉकडाउन से उपजी एकरसता अब टूटने लगी है। हिंदुस्तान में अच्छा ये है कि यहाँ मनोरंजन के लिए बहुत कुछ है। अपने-अपने घरों में कैद लोगों के सामने एक टेलीविजन है। डिजिटल तकनीकी से युक्त सर्विस प्रोवाइडर्स हैं। और अनगिनत चैनल हैं। हर चैनल पर कुछ न कुछ एक्स्लुसिव चल रहा है। इसके अलावा इन्टरनेट है, एंड्रायड फोन्स हैं, फेसबुक है, वाट्सएप है, नेटफ्लिक्स है, एमाज़ोन प्राइम है, ज़ी 5 है, हॉट स्टार है जिन पर नयी नयी फिल्में हैं, वेब सीरीज हैं।

यहाँ की राजनीति भी मनोरंजन है। उसमें गहरे संदेश भी हैं लेकिन उन्हें डी-कोड करने की सलाहीयतें नहीं हैं या बहुत कम हैं इसलिए तर्क-वितर्क के खलल नहीं हैं।

कुछ दावे हैं, कुछ वादे हैं, कुछ संकल्प हैं कुछ सिद्धियाँ हैं, कुछ एजेंडे हैं, कुछ गफ़लतें हैं, कुछ भरोसे हैं, कुछ निराशाएं हैं। कहीं चुनाव हैं, कहीं उप-चुनाव हैं, कहीं सरकारों की उठा-पटक है, तो कहीं डिजिटल रैलियाँ हैं तो इनके बीच सभी जगहों से आ रही स्वास्थ्य सेवाओं के कुप्रबंधन की नाकाबिले गौर खबरें भी हैं। बेरोजगारी है, महंगाई है, रेंगती हुई अर्थव्यवस्था है। ढहती हुई संस्थाएं हैं, औचित्यहीन होता सेक्युलरिज़्म है, अहंकारी और एकतरफ तराजू का पलड़ा झुकाये बैठा न्याय-तंत्र है आखिरकार एक दम तोड़ता हुआ 70 साल का बूढ़ा लोकतन्त्र है। लेकिन यह सब मंच के एक हिस्से का ब्यौरा है। जो कमोबेश पहले से मौजूद था।

कोरोना नामक इस कालावधि में जो नया है वो है बीमार हो चुके या बीमारी से जूझते या बीमार हो जाने की भरपूर संभावनाओं के बीच लोगों की कलुषित प्रवृत्तियों को बाहर लाना जबकि इस अवस्था में और इस अवधि में इन्हें बाहर नहीं आना था। इस देश में नया है, बीमारों के प्रति नज़रिया। बीमारी फैलाने के लिए कुछ लोगों की शिनाख्त और उसके बहाने एक पुराने एजेंडे की खुराक की असीमित सप्लाई। मुफ्त मुफ्त मुफ्त।

कोरोना को एक अंतराल या समयावधि कहने की ज़ुर्रत दो महीने पहले नहीं होती। पर आज है क्योंकि सरकारों के आचरण से उनकी प्राथमिकताओं से यह लग नहीं रहा है कि कोरोना वाकई एक संकट है या सबको एक साथ अपनी जद में ले सकने की ताक़त रखने वाली कोई विकराल बीमारी या महामारी है।

देश के शीर्षस्थ नेताओं ने अपने आचरण से यह बार- बार बताया है कि यह एक अंतराल ही है जिसका चयन आप अपनी सुविधा से कर सकते हैं। आप जब चाहें कोरोना पॉज़िटिव हो सकते हैं। जब चाहें क्वारींटाइन हो सकते हैं। आप एकांतवास में जा सकते हैं। आप चाहें तो दो दिन पहले की कोरोना पॉज़िटिव रिपोर्ट को धता बताकर बाहर आ सकते हैं (संदर्भ शिवराज सिंह चौहान)। आप चाहें तो संक्रमण के संदेह में 14 दिन पाँच सितारा हस्पताल में मेडिकल टूरिज़म कर सकते हैं और किसी अन्य शहर में लगी पेशी में पेश होने से खुद को बचा सकते हैं (संदर्भ संबित पात्रा)। आप चाहें तो कोरोना काल में किसी बड़े पाँच सितारा हस्पताल का विज्ञापन कर सकते हैं और इस तोहमत से भी बच सकते हैं कि विज्ञापन करने वाले खुद उस उत्पाद का इस्तेमाल नहीं करते (संदर्भ-अमिताभ बच्चन)।

किसी बड़े समारोह का आमंत्रण नहीं मिला तो सवालों की आबरू रखने के लिए भी यह कोरोना रूपी अंतराल एक सहूलियत देता है। इससे पहले कि लोग पूछें आपको बुलाया नहीं गया? आप तपाक से कह सकें कि पॉज़िटिव आ गया। और फिर ट्विटर पर जाकर सर्वसाधारण को सूचित कर दें।

ये सब आचरणगत बदलाव हैं। कोरोना जो तथाकथित रूप से आपको कफन से ढंकने आया था आपने उसे अपने धतकर्म ढंकने के काम ले लिया। जो यहाँ सरकार हैं उनके लिए देह की दूरी एक अचूक युक्ति साबित हुई। जिसे कल तक बुराई भी माना जाता था आज एहतियात में बदल गयी है। इस पूरी समयावधि में अपने-अपने चुनाव-क्षेत्र के जन प्रतिनिधि कहाँ रहे? यह पूछने वाला कोई नहीं क्योंकि कोरोना है। जो बीमारी नहीं अंतराल है। पहले से ही राजनैतिक व्यवहार और आचरण में चली आ रही यह दूरी इस अंतराल में वैधता पा जाती है। यह कोरोना वारीयर्स क्यों नहीं बने जबकि इन्हें अपनी जनता के साथ इस संकट में होना था? यह एक अनुत्तरित सवाल रहेगा। कोरोना से निपटने के लिए पुलिस है, स्वास्थ्य कर्मी हैं, सफाई कर्मी है और मीडिया है। क्यों नहीं पहले दिन से जन प्रतिनिधियों को इस संकट का सामने करने में अगुवाई दी गयी? जो जन प्रतिनिधि इसे स्वास्थ्यगत कारणों के रूप में देख रहे हैं उन्हें यह बात तब ठीक से समझ में आएगी जब यह अंतराल बीत जाने पर उन्हें पता चलेगा कि ऐसे कितने निर्णय जिनमें उनकी भागीदारी ज़रूरी थी, लिए जा चुके हैं। उनकी गैर-मौजूदगी में उनकी शक्तियाँ छीन ली गईं।

यहाँ उल्लेखनीय यह भी है कि देश में नीति आयोग के साथ ही सारी बड़ी परियोजनाओं में स्थानीय जन प्रतिनिधियों की भूमिका खत्म की जा चुकी है। इनके स्थान पर स्पेशल पर्पज़ व्हीकल जैसे नए पद सृजित हो चुके हैं। मसलन इंडस्ट्रीयल कोरिडोर्स, मैन्यूफैक्चरिंग जोन्स, विशेष आर्थिक क्षेत्र आदि  अलबत्ता ये अनभिज्ञ थे और अब जब वापस काम पर लौटेंगे तो अपनी कुर्सी तलाश करेंगे। यह तय है कि देश में तमाम यान्त्रिकी का सम्पूर्ण कॉर्पोरेटीकरण इस अंतराल का सबसे बड़ा ‘आउट कम’ होने जा रहा है।

यह नया वर्ल्ड ऑर्डर जिसमें दूरी एक केन्द्रीय तत्व है हमारे जीवन के हर पहलू पर असर करने वाला है। इस दूरी को अशोक वाजपेयी ने एक व्याख्यान में बहुत दिलचस्प अंदाज़ में बताया है जिसे पढ़ा जाना चाहिए। वो कहते हैं कि – “हमारी राष्ट्रीय कल्पना से गरीब गायब हो चुके होंगे। राष्ट्र की सारी कल्पनाएं भद्र लोक, उच्च वर्ग और मध्य वर्ग तक सिमट गई होंगी। इस विराट राष्ट्रीय कल्पना से वही नहीं होंगे जो सबसे ज़्यादा होंगे। सत्ता की नागरिकता से, मध्य वर्ग की दूरी अपने अंत:करण से, पुलिस की दूरी सुरक्षा से, न्यायतंत्र की दूरी न्याय से, राजनीति की नीति से, मजदूरों की दूरी रोजगार से”।

लिखना, भूलने के विरुद्ध एक कार्यवाही है। इसलिए यह भी लिखा जाना चाहिए कि इस ‘अंतराल को अवसर’ में बदलने का हुंकार किसी और ने नहीं देश के प्रधानमंत्री ने भरी थी और उन्होंने इसे करके दिखाया है। जो काम मंच पर दर्शकों के आगे पर्दा डाले बिना नहीं हो सकते थे वो काम अब किए जा रहे हैं बिना किसी संकोच, लिहाज और नीति के। जो काम इस अंतराल के बीत जाने के बाद किए जा सकते थे वो भी अभी ही निपटा लिए जा रहे हैं। तमाम निगमों, सरकारी कंपनियों, इन्फ्रास्ट्रक्चर को बेचना हो या सार्वजनिक जीवन को प्रभावित करने वाली नीतियां बनाना और लागू करना हो। सरकार की आलोचना करने वाले बुद्धिजीवियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की आवाज़ दबाना हो। सब कुछ इसी दौर में अविलंब किया जाना है।

देश अब अनलॉक हो चुका है लेकिन राजनैतिक कार्यक्रमों (असल में नागरिक जुटान, प्रतिरोध या प्रदर्शन) आज भी वर्जित हैं। धार्मिक कांड किए जा सकते हैं। सरकारोन्मुखी सामाजिक काम भी किए जा सकते हैं। यह एक स्थायी कायदा होने जा रहा है जो भी इस न्यू वर्ल्ड ऑर्डर के लिए मुफीद होगा।

(लेखक पिछले 15 सालों से सामाजिक आंदोलनों से जुड़कर काम कर रहे हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)




Thursday, 15 April 2021

इतिहास मे कई महा बिमारियां फैली हे.

हारून रशीद के दौर में एक बहुत बडी महामारी फेल गयी इस महामारी के असरात समरकन्द से लेकर बगदाद तक और कूफ़ा से लेकर मराकीज़ तक ज़ाहिर होने लगे, हारून रशीद ने महामारी से निपटने के लिए तमाम तदबीरें अपना ली गल्ले के गोडाउन खोल दिये, टेक्स माफ कर दिए, पूरी सल्तनत में सरकारी लंगरखाने क़ायम कर दिए। और तमाम उमरा व ताजीरों को मुतास्सिरिन की मदद केलिए मुबलाइज़ कर दिया मगर इसके बावाजूद अवाम की हालत ठीक ना हुई। 

एक रात हारून रशीद बहुत टेंशन में थे, उन्हें नींद भी नही आ रही थी, टेंशन के इस आलम में उनके वज़ीर याह्या बिन खालिद को तलब किया। याह्या बिन खालिद हारून रशीद के उस्ताद भी थे। याह्या बिन खालिद ने बचपन से हारून रशीद की तरबियत की थी। हारून रशीद ने याह्या बिन खालिद से कहा उस्ताद! मुझे ऐसी कहानी या ऐसी दास्तान सुनाए जिसे सुनने के बाद मुझे करार आ जाये। याह्या बिन खालिद मुस्कुराये और अर्ज़ किया बादशाह सलामत। मैने अल्लाह के किसी नबी की हयाते तय्यैबा में एक दास्तान पढ़ी थी, दास्ताने मुकद्दस किस्मत और अल्लाह की रज़ा की सबसे बड़ी और शानदार तश्बी है। अगर आप इज़ाजत दे तो वो दास्तान आपके सामने दोहरा दु। बादशाह ने बैचेनी से फ़र्माया या उस्ताद! बिल्कुल फरमाइए।

किसी जंगल मे एक बंदरिया सफर केलिए रवाना होने लगी, उसके साथ एक बच्चा था, वह बच्चे को साथ नही ले जा सकती थी चुनांचे वह शेर के पास गई, उसने अर्ज़ किया जनाब आप जंगल के बादशाह है। में सफर पर रवाना होने वाली हूं, मेरी ख्वाइश है आप मेरे बच्चे की जिम्मेदारी आप खुद ले लो, शेर ने हामी भर ली। बंदरिया ने अपना बच्चा शेर के हवाले कर दिया। शेर ने बच्चा कंधे पर बैठा लिया बंदरिया सफर पर रवाना हो गई। अब शेर बच्चे को रोज़ाना कंधे पर बैठाता और जंगल मे अपने रोजमर्रा के काम करता रहता। एक दिन वह जंगल मे घूम रहा था के अचानक आसमान से एक चील ने गोता लगाया शेर के करीब पहुंची बंदरिया का बच्चा उठाया, और आसमान में गुम हो गई। शेर जंगल मे भागता दौड़ता रहा, लेकिन वह चील को ना पकड़ सका। याह्या बिन खालिद रुके चेन की सांस ली, और हारून रशीद को अर्ज़ किया:

"बादशाह सलामत! चंद दिन बाद बंदरिया वापस आई और शेर से अपने बच्चे का मुतालबा किया, शेर ने शर्मिंदगी से जवाब दिया तुम्हारा बच्चा तो चील ले गई है, बंदरिया को गुस्सा आ गया और उसने चिल्लाकर कहा: "तुम कैसे बादशाह हो ? तुम एक अमानत की हिफाज़त नही कर सकते ? तुम ये सारे जंगल का निज़ाम कैसे चलाओगे ? शेर ने अफसोस से अपना सर हिलाया और बोला में ज़मीन का बादशाह हूँ, अगर ज़मीन से कोई आफत तुम्हारे बच्चे की तरफ बढ़ती तो में रोक लेता। मगर ये आफत आसमान से उतरी थी। और आसमान की आफ़तें सिर्फ और सिर्फ आसमान वाला ही रोक सकता है। 

ये कहानी सुनाने के बाद याह्या बिन खालिद ने हारून रशीद से अर्ज़ किया: "बादशाह सलामत! ये आफत भी अगर ज़मीन से निकली होती तो आप रोक लेते, ये आसमान का अज़ाब है, इसे सिर्फ अल्लाह तआला ही रोक सकता है। चुनांचे आप इसे रोकने केलिए बादशाह ना बने, फ़क़ीर बने ये आफत रुक जाएगी। 

दुनियां में आफ़तें दो किस्म की होती है, आसमानी मुसीबतें और ज़मीनी आफ़तें, आसमानी आफत से बचने केलिए अल्लाह तआला का राज़ी होना ज़रूरी होता है, जबके ज़मीनी आफत के बचाव केलिए इंसान का मुत्तहिद होना ज़रूरी होता है।   

याह्या बिन खालिद ने हारून रशीद से कहा था आसमानी आफत उस वक़्त तक खत्म नही होती, जबतक इंसान अपने रब को राजी ना करदें। आप इस वक़्त का मुकाबला बादशाह बनकर नही कर सकेंगे। चुनांचे अपने आप को फ़क़ीर बनाये। अल्लाह के हुजूर गिर जाए, उससे मदद मांगे, दुनिया के तमाम मसाइल उसके हल के दरमियान सिर्फ इतना फ़ासला होता है जितना माथे और "जानमाज़ में होता है। दोस्तों अपने मसाइल केलिए हम सात समंदर पार तो जा सकते है। लेकिन माथे और जानमाज़ के दरमियान के मौजूद चंद इंच का फ़ासला तैह नही कर सकते। 

मेरे दोस्तों इस कहानी से मुराद ये है के अल्लाह भी हमसे इस वक़्त नाराज़ है, पूरी दुनिया के ऊपर एक छोटे से वायरस को ऐसे मुसल्लत कर दिया है के तमाम दुनिया को रोककर रख दिया है। तमाम दुनिया के कारोबार रुक गए।

जब कोई शख़्स अपने किसी करीबी से नाराज होता है तो उसे अपने घर पर बुलाना भी पसंद नही करता। अब हम इससे अंदाज़ा लगा सकते है, खानाए काबा पर जाने से रोक लगा दी, मस्जिदों में जाने से रोक लगा दी। मगर तौबा के दरवाजे आज भी खुले है। बस हमें बादशाह से फ़क़ीर बनना है। इंशाअल्लाह, 

अल्लाह ये मसला चुटकी में हल कर देगा।

कोरोना वायरस लॉकडाउन के बीच सरकार ने कंपनियों को राहत देने के लिए कानून में किया बड़ा बदलाव.

SAFTEAM 15 APRIL 2021

कोरोना वायरस लॉकडाउन के बीच सरकार ने कंपनियों को राहत देने के लिए कानून में किया बड़ा बदलाव.

कोरोना वायरस (Coronavirus Pandemic) की वजह से कंपनियों को हो रहे भारी नुकसान में राहत देने के लिए सरकार (Government of India) ने बड़ा फैसला लेते हुए IBC (Insolvency and Bankruptcy Code) में बदलाव किया है. आइए जानें इसके बारे में...

नई दिल्ली.  सरकार ने एक अध्यादेश (Ordinance) के जरिए इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC-Insolvency and Bankruptcy Code) में बदलाव कर दिया है. इस संसोधन के बाद कोविड-19 महामारी की वजह से जिन कंपनियों ने डिफॉल्ट किया है, उन्हें उनके लेंडर्स (कर्ज़ देने वाली बैंक या कंपनी) IBC (कोर्ट) में नहीं घसीट सकते हैं. सरकार ने ऑर्डिनेंस के जरिए IBC के सेक्शन 7, 9 और 10 को फिलहाल सस्पेंड कर दिया है. अगर आसान शब्दों में कहें तो आपने कारोबार चलाने के लिए बैंक में कर्ज लिया है और लोन नहीं चुकाने की वजह से अगर आपको डर हैं कि कहीं आप पर आईबीसी के तहत कार्रवाई न हो जाए तो  इसका इंतजाम कर दिया गया है. केंद्र सरकार ने दिवाला से संबंधिन एक नए अध्यादेश को लागू करने की मंजूरी दे दी है. ये कानून आपको कर्जों से फिलहाल राहत देने में मददगार है.

मार्च तक मिली कंपनियों को राहत- कोरोनवायरस और लॉकडाउन की वजह से 60 दिनों तक आर्थिक गतिविधियां ठप रहीं जिसके वजह से कई कंपनियों ने डिफॉल्ट कर दिया है.


ऑर्डिनेंस के मुताबिक, 25 मार्च 2020 के बाद से अगले 6 महीने या 1 साल तक किसी भी कंपनी के खिलाफ CIRP का आवेदन नहीं किया जा सकता यानी उन्हें IBC में लेकर नहीं जाया जा सकता.

केंद्रीय कैबिनेट ने 3 जून को उस प्रस्ताव को पास कर दिया जिसमें IBC के तहत इनसॉल्वेंसी की प्रक्रिया पर फिलहाल रोक लगा दी गई है.


सरकार ने इस प्रक्रिया पर अभी इसलिए रोक लगाई है क्योंकि अभी डिफॉल्ट करने वाली कंपनियों की संख्या बहुत ज्यादा है.ऑर्डिनेंस के मुताबिक, डिफॉल्ट करने वाली कंपनियों पर सेक्शन 10 A 25 मार्च से अगले छह महीने या 1 साल तक लागू नहीं होगा.

क्या है आईबीसी-इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड के अंतर्गत कर्ज न चुकाने वाले बकाएदारों से निर्धारित समय के अंदर कर्ज वापसी के प्रयास किए जाते हैं. इस कोशिश से बैंकों की आर्थिक स्थिति में कुछ हद तक सुधार जरूर हुआ है.




कुंभ मेले को लेकर सरकारी बजेत को लेकर कुच रिपोर्ट .

SAFTEAM 

15 APRIL 2021

Haridwar Kumbh 2021 : कोरोना का झटका, 4000 करोड़ का कुंभ 800 करोड़ में सिमटा

न्यूज़ डेस्क, अमर उजाला, देहरादून Updated Mon, 14 Dec 2020 10:31 AM IST

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कुंभ मेला 2021: आपको कुंभ नहाने का मिल सके पुण्य, इसके लिए रेलवे ने की बड़ी तैयारी

Updated on: December 10, 2020, 07.00 AM IST,

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Kumbh Mela 2021 : केंद्र सरकार ने कुंभ मेला के लिए 375 करोड़ रुपए दिए

मुख्य संवाददाता , देहरादून।Last Modified: Thu, May 07 2020. 08:15 AM IST

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Haridwar Kumbh 2021: कुंभ को लेकर केंद्र सरकार ने जारी की गाइडलाइन, श्रद्धालुओं को रखना होगा इस बात का ध्यान.


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Tuesday, 13 April 2021

कोरोना क्या वाकीमे बिमारी हे? षड्यंत्र हे? साजिश हे, कोरोना से गरीबों की क्यु मौत होती हे?

अब दिमाग लगाकर सोचिए :: 

 🛑अगर कोरोना संक्रमित बीमारी है, तो परिंदे और जानवर को अभी तक कैसे नहीं हुआ❓

🛑 यह कैसी बीमारी है जिसमें सरकारी लोग और हीरो ठीक हो जाते हैं और आम जनता मर जाती है❓

🛑 कोई भी घर में या रोड पर तड़प कर नहीं मरता हॉस्पिटल में ही क्यों मौत आती है❓

🛑 यह कैसीबीमारी है, कोई आज पॉजिटिव है तो कल बिना इलाज कराए नेगेटिव हो जाता है❓

🛑 कोरोना संक्रमित बीमारी है:- जो जलसे में / रैली में/ और लाखों के प्रोटेस्ट में नहीं जाता, लेकिन गरीब नॉर्मल खांसी चेक कराने जाए तो 5 दिन बाद लाश बनकर आता है❓

🛑 गजब का कोरोनावायरस है, जिसकी कोई दवा नहीं बनी, फिर भी लोग 99% ठीक हो रहे हैं❓

🛑 यह कौन सी जादुई बीमारी है, जिसके आने से सब बीमारी खत्म हो गई और अब जो भी मर रहा है कोरोना से ही मर रहा है❓

 जरा सोचिये

साबुन और सैनिटाइजर से कोरोना मर जाता है तो इस को मारने की दवाई क्यों नहीं बनाई❓

🛑 यह कैसा कोरोना है? हॉस्पिटल में गरीब आदमी के जिस्म का महंगा पार्ट निकालकर लाश को ताबूत में छुपा कर खोल कर नहीं देखने का हुक्म देकर बॉडी दी जाती है❓

है कोई जवाब ::????

अगर है जरूर देना, अगर नहीं है तो सोचना कि कोरोना की आड़ में क्या चल रहा है

🛑कुछ हास्पिटल से न्यूज आ रहीं हैं कि सुबह मरीज़ को भर्ती किया जाता है और शाम को न्यूज मिलती है कि मरीज़ की करोना से मौत हो गई! (क्या सुबह से शाम तक करोना की रिपोर्ट भी आ गयी और शाम को करोना से डेथ भी हो गयी, और लाश का अंतिम संस्कार भी हो गया)

🛑इनके हिसाब से तो करोना की कोई स्टेज ही नहीं होती, जो पहले पाजिटिव से नेगटीव हुए, वो कैसे ठीक हुए, 15-20 दिन मे तो कनीका कपूर भी ठीक होकर घर चली गयी, आखिर ऐसा कौन सा इलाज था जो कनीका की 5 रिपोर्ट पोजिटिव आई और 6 रिपोर्ट मे नेगटीव आई..... और गरीबो की सुबह रिपोर्ट पोजिटिव आती है और शाम को उसकी डेथ हो जाती है

क्या गरीब और माध्यम बर्ग की सिर्फ एक ही रिपोर्ट आती है positive या negative या डेथ❓❓

🛑हैरानी की बात है की कोई खांसी, जुकाम, बुखार और कोई लक्षण नहीं फिर भी रिपोर्ट पॉजिटिव, कहीं कोई किडनी स्कैम तो नहीं हो रहा है..❓
किडनी ही क्यों आंख, लीवर, ब्लड, प्लाजमा और भी बहुत पार्ट हैं, क्या कोई बहुत बड़ा झोल हो रहा है❓
अंतराष्ट्रीय बाजार में व्यक्ति के पार्टस की कीमत करोड़ो रूपये हैं, क्या कोरोना की आड़ में कोई षड्यंत्र चल रहा है❓

क्योंकि मृत देह को घरवालों को देते नहीं और ना ही कोरोना के नाम से घर वाले बॉडी लेते हैं और बंद लिफाफे में क्या हुआ है बॉडी के साथ किसे पता❓

सबको मिलकर ऐसा कदम उठाना होगा जिससे कम से कम S.C. की निगरानी में जांच हो, ताकी हकीकत सामने आए...

साभार अज्ञात   

अपने हक अपने अधिकार को मत खोइए जागिये 


इस मैसेज को अपने तक मत रखिए आगे भी फॉरवर्ड करते रहिए  🙏🏽

हरिद्वार कुंभ मेला 2021 कोरोना काल का महाकाल हे .

SAFTEAM 
DATE:- 13 April 2021

🚩RSS-BJP ने भारत के बहुसंख्यक सनातन धर्म के लोगो और जनता को हरिद्वार में बने लाखों भगवा "कोरोना मानव बम"  के सामने मरने के लिए पहुंचा दिया🚩*

कोरोनावायरस आने के एक साल बाद भारत आज दुनिया का दूसरे नंबर का कोरोनावायरस से पीड़ित देश बन चुका है। जहां करीब दो लाख कोरोनावायरस के मरीज हर दिन मिल रहे हैं। अस्पतालों में लाशों के ढेर लग चुके हैं। यह खतरनाक और भयानक परिस्थिति है। यह सरकारों की नाकामी, नाएहली और बेवकूफी का नतीजा है। जिसका खामियाजा भारत की गरीब परेशान अव्वाम को कब्रिस्तानों और श्मशान घाटों में अपने लोगों को पहुंचाकर उठाना पड़ रहा है।
भारत में कोरोनावायरस को लाने वाले कोई और नहीं बल्कि आरएसएस बीजेपी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही पूरी तरह से जिम्मेदार है। जिन्होंने कोरोनावायरस के केसेस सामने आने के बाद भी अमेरिका के बेवकूफ व्यापारी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की चुनावी रैली करने के लिए भारत में कोरोना को फैलने का खुला रास्ता दिया। दिल्ली में सरकारी दंगे करवाकर दिल्ली को कोरोनावायरस का हब बना दिया।

मध्य प्रदेश की कांग्रेसी सरकार को गिराने के लिए ही लॉकडाउन लगाने में देरी की और बगैर सोचे समझे बिंडोक तरीके से लॉकडाउन लगाकर, ट्रांसपोर्ट बंद करवाके पूरे देश में महावारी को फैलाने का काम किया है। जिसकी वजह से हजारों लोगों की मौत हो चुकी है। भारत की अर्थव्यवस्था पूरी तरीके से खत्म हो चुकी है, करोड़ों लोग बेकार हो चुके हैं। सिर्फ गुजराती मारवाड़ी व्यापारी मालामाल है। यह कोरोनावायरस से भी बड़ी, आरएसएस और गुजराती राजनेताओं की पैदा की गई त्रासदी है।

दुनिया भर की सरकारों ने कोरोनावायरस के चलते अपने अपने लोगों के लिए करोड़ों अरबों डॉलर के पैकेज दिए। लेकिन यहां का फंटेबाज गुजराती नेतृत्व ने देशवासियों को बेवकूफ बनाने और आश्वासन देने के अलावा और कोई काम नहीं किया है। जो आरएसएस और गुजराती लोगों की मानसिक प्रर्वती को दिखाता है। जिसने पूरे देशवासियों को बेकार और बीमार बनाकर गरीबी के दलदल में फंसा दिया।

भारत में कोरोनावायरस की वजह से आज हालात बेकाबू हो चुके हैं। हॉस्पिटल में वेंटिलेटर के साथ बेड नहीं मिल रहे हैं तो कहीं रेमडेसिविर के इंजेक्शन नहीं है। लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं पूरे देश में लॉकडाउन लगाने की बात हो रही है। लेकिन गुजराती प्रधानमंत्री और तड़ीपार बना गृह मंत्री अमित शाह बंगाल में चुनाव जीतने के लिए सारे बंगालियों को कोरोनावायरस के ज़रिए मौत के मुंह में पहुंचा दिया है। इसके लिए सिर्फ सरकारें ही नहीं बल्कि केंद्र सरकार के साथ साथ चुनाव आयोग भी जिम्मेदार है। जिसने बंगाल में 8 चरणों में चुनाव कराकर कोरोनावायरस को बंगाल में फैलने का पूरा मौका दिया है।

भारत में जब लॉकडाउन जैसी स्थिति हो रही है। उस वक्त हरिद्वार में लाखों देसी-विदेशी लोगों और अखाड़ों के लाखों साधुओं को आमंत्रित करके महाकुंभ करवाया जा रहा है। जबकि पूरे भारत में राजनीतिक और धार्मिक कार्यक्रमों पर बंदी लगाई जा चुकी है। लेकिन यहां आरएसएस और बीजेपी का नाकारा केंद्रीय नेतृत्व उत्तराखंड के हरिद्वार में महाकुंभ को करवाके लाखों करोड़ों भगवा साधुओं, देशी विदेशी लोगों को "कोरोना मानव बम" बना रहा है। जो देश मे कोरोनावायरस को महामारी में तब्दील कर देंगे। जैसे दिल्ली में तीन हजार तबलीगी जमात के लोगों को कोरोनावायरस फैलाने के लिए जिम्मेदार माना था। वैसे ही अब हरिद्वार के महाकुंभ से देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी कोरोनावायरस का दूसरा भयानक दौर शुरू हो जाएगा। लाखों भगवा साधुओं और लोगों को कोरोना मानव बम बनाने के लिए सिर्फ और सिर्फ भारत के गुजराती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ही जिम्मेदार है।

इसलिए भारतीय जनता से अपील की जाती है कि, वोह अपना बचाव खुद करें। केंद्र सरकार तो आपके वोट लेकर धोखेबाजों की तरह अपनी जिम्मेदारी झटक चुकी है। वो सिर्फ अपने गुजराती, मारवाड़ी व्यापारियों अदानी, अंबानी व्यापारियों का ही अच्छे से ख्याल रख रही है। हर जगह उनका ही बचाव भी कर रही है। इसीलिए आप लोग लॉकडाउन का ईमानदारी से पालन करें, डिस्टेंस बनाए रखें। अपनी इम्यूनिटी को बढ़ाकर रखें। और हो सके तो कोरोनावायरस का टीका भी लगवा लें।
*🌴आने वाले चुनावों में, आपके साथ गद्दारी करने वाले, आपके घर-परिवार के बर्तन से आपका और आपके बच्चों का निवाला छीनकर अदानी अंबानी को देने वाले, आपके बच्चों की नौकरीयां छिनकर उन्हें बेकार बनाने वालों को अपने "वोटों" से खुलकर सबक सिखाएं⚔️*

*🌷मोहम्मद हसन इनामदार🌷*,
प्रवक्ता व विदर्भ प्रदेश अध्यक्ष,
*🌴माइनॉरिटीज़ डेमोक्रेटिक पार्टी🍁, (🔥एमडीपी⚔️)* नागपुर।

डॉ अंबेडकर ने सबसे पहले आगाह किया था कि भक्त सामाजिक और राजनीति में तानाशाही को जन्म देते हैं।



बीते छह दशकों में भारतीय लोकतंत्र ने बार-बार उन खतरों का सामना किया है जिनके प्रति डॉ भीमराव अंबेडकर ने सबसे पहले चेताया था,

*🇮🇳14 अप्रैल 2021🇮🇳*
*🛑🛑🛑डॉ बाबासाहेब अंबेडकर के जन्म दिवस मनाने के विषय के अंतर्गत उन्हीं के भक्तों के लिए खास बाबासाहेब डॉक्टर आंबेडकर की चेतावनी🛑🛑🛑*


*डॉ भीमराव अंबेडकर ने 25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में दिए अपने भाषण में भारतीय लोकतंत्र के लिए तीन बड़े खतरे बताए थे.*  ताज्जुब की बात है कि ये सभी परिस्थितियां अतीत में देश देख चुका है. वर्तमान में भी इसके छिटपुट उदाहरण मौजूद हैं.


*(1) उनकी पहली चेतावनी* जनता द्वारा *सामाजिक-आर्थिक लक्ष्य हासिल करने के लिए अपनाई जाने वाली गैरसंवैधानिक प्रक्रियाओं पर थी.* 
अपने भाषण में अंबेडकर सामाजिक-आर्थिक लक्ष्यों की प्राप्ति में संविधान प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग जरूरी बताते हुए कहते हैं, ‘इसका मतलब है कि हमें खूनी क्रांतियों का तरीका छोड़ना होगा, अवज्ञा का रास्ता छोड़ना होगा, असहयोग और सत्याग्रह का रास्ता छोड़ना होगा.’ यहां अंबेडकर यह भी कहते हैं कि लक्ष्य हासिल करने के कोई संवैधानिक तरीके न हों तब तो इस तरह के रास्ते पर चलना ठीक है लेकिन संविधान के रहते हुए ये काम अराजकता की श्रेणी में आते हैं और इन्हें हम जितनी जल्दी छोड़ दें, हमारे लिए बेहतर होगा.

*संविधान निर्माता की लोकतंत्र के लिए यह पहली चेतावनी कितनी सही थी ओर है भी*  आजादी के बाद हम इसके कई उदाहरण देख चुके हैं. नक्सलवाद का उभार, जम्मू-कश्मीर का अलगाववादी आंदोलन, उत्तर-पूर्वी राज्यों में चल रहे विद्रोही आंदोलन आज भले ही राष्ट्रीय स्तर पर हमारे लोकतंत्र के लिए खतरा न हों, लेकिन जहां भी ये विद्रोही गतिविधियां चल रही हैं वहां लोकतंत्र देश के बाकी हिस्सों की तरह मजबूत नहीं है.

*(2) डॉ अंबेडकर के इस भाषण में दूसरी चेतावनी यह थी कि भारत सिर्फ राजनीतिक लोकतंत्र न रहे बल्कि यह सामाजिक लोकतंत्र का भी विकास करे.*
उनका मानना था कि यदि देश में जल्दी से जल्दी *आर्थिक-सामाजिक असमानता की खाई नहीं पाटी गई यानी सामाजिक लोकतंत्र नहीं लाया गया तो यह स्थिति राजनीतिक लोकतंत्र के लिए खतरा बन जाएगी.* उन्होंने अपने भाषण में कहा है, ‘राजनीति में हम एक व्यक्ति एक वोट के सिद्धांत को मान रहे होंगे. लेकिन सामाजिक और आर्थिक ढांचे की वजह से हम अपने सामाजिक-आर्थिक जीवन में एक व्यक्ति की कीमत एक नहीं मानते... *हम कब तक हमारे सामाजिक और आर्थिक जीवन में समानता को नकारते रहेंगे?*... यदि हम लंबे अरसे तक यह नकारते रहे तो ऐसा करके अपने राजनीतिक लोकतंत्र को खतरे में डाल रहे होंगे...’

**‘धर्म में भक्ति आत्मा की मुक्ति का मार्ग हो सकता है लेकिन राजनीति में, भक्ति या नायक पूजा पतन का निश्चित रास्ता है और जो आखिरकार तानाशाही पर खत्म होता है’*"*

हमने अभी देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे जिन हिंसक और अलगाववादी आंदोलनों का जिक्र किया उनके व्यापक समर्थन की एक बड़ी वजह सामाजिक लोकतंत्र विकसित न कर पाने की हमारी नाकामयाबी भी है. यदि बंगाल-आंध्र प्रदेश या केरल के किसानों को वाजिब हक मिलते तो वहां कभी-भी नक्सलवाद इतनी मजबूती से जड़ें नहीं जमा पाता. केरल ने इस दिशा में बहुत अच्छा काम किया है और इसका नतीजा है कि वहां अब नक्सली हिंसा तकरीबन खत्म हो चुकी है. देश के सबसे प्रगतिशील इस राज्य में शायद लोकतंत्र अपने सबसे बेहतर स्वरूप में है.


अपने इसी भाषण में डॉ अंबेडकर लोकतंत्र के लिए एक🛑 *(3) तीसरा खतरा बताते हैं और जो वर्तमान राजनीति में बिल्कुल साफ-साफ देखा जा सकता है.*🛑

डॉ अंबेडकर ने संविधान सभा के माध्यम से आम लोगों को चेतावनी दी थी कि वे *किसी भी राजनेता के प्रति अंधश्रद्धा न रखें नहीं तो इसकी कीमत लोकतंत्र को चुकानी पड़ेगी.*
(इन मे स्वयं डॉक्टर बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर और उनके भक्त गण भी गिने जा सकते हैं।)

*{*धर्म में भक्ति आत्मा की मुक्ति का मार्ग हो सकता है शायद,  लेकिन राजनीति में, 🛑भक्ति या 🛑नायक पूजा 🛑पतन का निश्चित रास्ता है और जो आखिरकार तानाशाही पर खत्म होता है’।।*
*डॉ बी आर अम्बेडकर}*

दिलचस्प बात है कि उन्होंने यहां राजनीति में सीधे-सीधे *भक्त और भक्ति की बात की है.* .......वे अपने भाषण में कहते हैं, ‘*महान लोग, जिन्होंने अपना पूरा जीवन देश को समर्पित कर दिया उनके प्रति कृतज्ञ रहने में कोई बुराई नहीं है. लेकिन कृतज्ञता की भी एक सीमा है*..... ........ *दूसरे देशों की तुलना में भारतीयों को इस बारे में ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है. भारत की राजनीति में भक्ति या आत्मसमर्पण या नायक पूजा दूसरे देशों की राजनीति की तुलना में बहुत बड़े स्तर पर अपनी भूमिका निभाती है.*  *धर्म में भक्ति आत्मा की मुक्ति का मार्ग हो सकता है लेकिन राजनीति में, भक्ति या नायक पूजा पतन का निश्चित रास्ता है और जो आखिरकार तानाशाही पर खत्म होता है.’*

इतिहासकार रामचंद्र गुहा अपने एक आलेख में कहते हैं कि अंबेडकर ने उस समय गांधी, नेहरू और सरदार पटेल के लिए जनता में अंधश्रद्धा देखी थी. इस स्थिति में ये नायक किसी सकारात्मक आलोचना से भी परे हो जाते हैं और शायद यही समझते हुए अंबेडकर ने अपने भाषण में राजनीतिक भक्ति को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया था. बदकिस्मती से भारतीय राजनीति में यह बीमारी काफी गहरी है. 

*‘महान लोग, जिन्होंने अपना पूरा जीवन देश को समर्पित कर दिया उनके प्रति कृतज्ञ रहने में कोई बुराई नहीं है. लेकिन कृतज्ञता की भी एक सीमा है’*

वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कट्टर समर्थकों के लिए सोशल मीडिया पर प्रचलित ‘भक्त’ शब्द अब आम बोलचाल की भाषा में भी इस्तेमाल होने लगा है. सोशल मीडिया में यह स्थिति है कि प्रधानमंत्री की आलोचना पर किसी को भी हजारों गालियां पड़ने की पूरी गारंटी ली जा सकती है. तानाशाही प्रवृत्ति का आरोप उनके ऊपर भी लगता है. ये ठीक वही स्थितियां हैं जिनके बारे में डॉ अंबेडकर ने अपने भाषण में जिक्र किया था और जिन्हें लोकतंत्र के लिए खतरा माना जाता है.

**डॉ बी आर आंबेडकर**
25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में दिए अपने भाषण से अनुवादित,

🙏 *अंतिम कथन🙏*
🛑 यहां चेतावनी सिर्फ पक्ष विपक्ष और तानाशाही में मानने वाले लोगों के लिए ही नहीं है लेकिन खुद डॉ बाबासाहेब आंबेडकर में अपने भक्तों को भी दे दी है। *जो उन्हे समजनी चाहिए*)🙏

Thursday, 8 April 2021

इटली के कोरोना से मृत मरीज का पोस्टमार्टम कोरोना का पर्दाफाश .


*BREAKING NEWS*
दुनिया की बड़ी खबर, 
इटली ने किया मृत कोरोना मरीज का पोस्टमार्टम,
हुआ बड़ा खुलासा
इटली विश्व का पहला देश बन गया है जिसनें एक कोविड-19 से मृत शरीर पर अटोप्सी  (पोस्टमार्टम) किया और एक व्यापक जाँच करने के बाद पता लगाया है कि वायरस के रूप में कोविड-19 मौजूद नहीं है, बल्कि यह सब एक बहुत बड़ा ग्लोबल घोटाला है। लोग असल में “ऐमप्लीफाईड ग्लोबल 5G इलैक्ट्रोमैगनेटिक रेडिएशन (ज़हर)” के कारण मर रहे हैं।

इटली के डॉक्टरों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के कानून का उल्लंघन किया है, जो कि करोना वायरस से मरने वाले लोगों के मृत शरीर पर आटोप्सी (पोस्टमार्टम) करने की आज्ञा नहीं देता ताकि किसी तरह की वैज्ञानिक खोज व पड़ताल के बाद ये पता ना लगाया जा सके कि यह एक वायरस नहीं है, बल्कि एक बैक्टीरिया है जो मौत का कारण बनता है, जिस की वजह से नसों में ख़ून की गाँठें बन जाती हैं यानि इस बैक्टीरिया के कारण ख़ून नसों व नाड़ियों में जम जाता है और यही मरीज़ की मौत का कारण बन जाता है।
इटली ने इस वायरस को हराया है, ओर कहा है कि “फैलीआ- इंट्रावासकूलर कोगूलेशन (थ्रोम्बोसिस) के इलावा और कुछ नहीं है और इस का मुक़ाबला करने का तरीका आर्थात इलाज़ यह बताया है……..
ऐंटीबायोटिकस (Antibiotics tablets}
ऐंटी-इंनफ्लेमटरी ( Anti-inflamentry) और
ऐंटीकोआगूलैटस ( Aspirin) को लेने से यह ठीक हो जाता है।
ओर यह संकेत करते हुए कि इस बीमारी का इलाज़ सम्भव है, विश्व के लिए यह संनसनीख़ेज़  ख़बर इटालियन डाक्टरों द्वारा कोविड-19 वायरस से मृत लाशों की आटोप्सीज़ (पोस्टमार्टम) कर तैयार की गई है। कुछ और इतालवी वैज्ञानिकों के अनुसार वेन्टीलेटर्स और इंसैसिव केयर यूनिट (ICU) की कभी ज़रूरत ही नहीं थी। इस के लिए इटली में अब नए शीरे से प्रोटोकॉल जारी किए गए है ।
CHINA इसके बारे में पहले से ही जानता था मगर इसकी रिपोर्ट कभी किसी के सामने उसने सार्वजनिक नहीं की ।
कृपया इस जानकारी को अपने सारे परिवार, पड़ोसियों, जानकारों, मित्रों, सहकर्मीओं को साझा करें ताकि वो कोविड-19 के डर से बाहर निकल सकें ओर उनकी यह समझ मे आये कि यह वायरस बिल्कुल नहीं है बल्कि एक बैक्टीरिया मात्र है जो 5G रेडियेशन के कारण उन लोगो को नुकसान पहुँचा रहा है जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम है। यह रेडियेशन इंफलामेशन और हाईपौकसीया भी पैदा करता है। जो लोग भी इस की जद में आ जायें उन्हें Asprin-100mg और ऐप्रोनिकस या पैरासिटामोल 650mg लेनी चाहिए । क्यों…??? ….क्योंकि यह सामने आया है कि कोविड-19 ख़ून को जमा देता है जिससे व्यक्ति को थ्रोमोबसिस पैदा होता है और जिसके कारण ख़ून नसों में जम जाता है और इस कारण दिमाग, दिल व फेफड़ों को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती जिसके कारण से व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है और सांस ना आने के कारण व्यक्ति की तेज़ी से मौत हो जाती है।
इटली के डॉक्टर्स ने WHO के प्रोटोकॉल को नहीं माना और उन लाशों पर आटोप्सीज़ किया जिनकी मौत कोविड-19 की वजह से हुई थी। डॉक्टरों ने उन लाशो की भुजाओं, टांगों ओर शरीर के दूसरे हिस्सों को खोल कर सही से देखने व परखने के बाद महसूस किया कि ख़ून की नस-नाड़ियां फैली हुई हैं और नसें थ्रोम्बी से भरी हुई थी, जो ख़ून को आमतौर पर बहने से रोकती है और आकसीजन के शरीर में प्रवाह को भी कम करती है जिस कारण रोगी की मौत हो जाती है। इस रिसर्च को जान लेने के बाद इटली के स्वास्थ्य-मंत्रालय ने तुरंत कोविड-19 के इलाज़ प्रोटोकॉल को बदल दिया और अपने पोज़िटिव मरीज़ो को एस्पिरिन 100mg और एंप्रोमैकस देना शुरू कर दिया। जिससे मरीज़ ठीक होने लगे और उनकी सेहत में सुधार नज़र आने लगा। इटली स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक ही दिन में 14000 से भी ज्यादा मरीज़ों की छुट्टी कर दी और उन्हें अपने अपने घरों को भेज दिया।
स्रोत: *इटली स्वास्थ्य मंत्रालय*

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गदीरे खुम की हदीस . WhatsApp acopy

हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का आखिरी खुतबा
इस्लाम मजहब के आखरी पैगंबर हजरत मोहम्मद मुस्तफा  सल्लल्लाहो वाले वसल्लम  । रसूलुल्लाह का आखिरी हज का खुत्बा 
मैदान-ए-अरफ़ात(मक्काह) में 9 ज़िल्हिज्ज् ,10 हिजरी को मोहम्मद सल.अलैहि वसल्लम ने हज का आखरी ख़ुत्बा दिया था। बहोत अहम संदेश दिया था। गौर से पढे हर बात बार बार पढे सोचे कि कितना अहम संदेश दिया था 

1. ऐ लोगो ! सुनो, मुझे नही लगता के अगले साल मैं तुम्हारे दरमियान मौजूद हूंगा, मेरी बातों को बोहत गौर से सुनो, और इनको उन लोगों तक पहुंचाओ जो यहां नही पहुंच सके। 

2. ऐ लोगों ! जिस तरह ये आज का दिन ये महीना और ये जगह इज़्ज़त ओ हुरमत वाले हैं, बिल्कुल उसी तरह दूसरे मुसलमानो की ज़िंदगी, इज़्ज़त और माल हुरमत वाले हैं। ( तुम उसको छेड़ नही सकते )

3. लोगों के माल और अमानतें उनको वापस कर दो। 

4. किसी को तंग न करो, किसी का नुकसान न करो, ताकि तुम भी महफूज़ रहो। 

5. याद रखो, तुम्हे अल्लाह से मिलना है, और अल्लाह तुम से तुम्हारे आमाल के बारे में सवाल करेगा। 

6. अल्लाह ने सूद(ब्याज) को खत्म कर दिया, इसलिए आज से सारा सूद खत्म कर दो। (माफ कर दो )

7. तुम औरतों पर हक़ रखते हो, और वो तुम पर हक़ रखती है, जब वो अपने हुक़ूक़ पूरे कर रही हैं तो तुम भी उनकी सारी ज़िम्मेदारियाँ पूरी करो। 

8. औरतों के बारे में नरमी का रवय्या अख्तियार करो, क्योंकि वो तुम्हारी शराकत दार और बेलौस खिदमत गुज़ार रहती हैं। 

9. कभी ज़िना के करीब भी मत जाना

10. ऐ लोगों !! मेरी बात ग़ौर से सुनो, सिर्फ अल्लाह की इबादत करो, 5 फ़र्ज़ नमाज़ें पूरी रखो, रमज़ान के रोज़े रखो, और ज़कात अदा करते रहो, अगर इस्तेताअत हो तो हज करो।

11. हर मुसलमान दूसरे मुसलमान का भाई है। तुम सब अल्लाह की नज़र में बराबर हो। बरतरी सिर्फ तक़वे की वजह से है। 

12. याद रखो ! तुम सब को एक दिन अल्लाह के सामने अपने आमाल की जवाबदेही के लिए हाज़िर होना है, खबरदार रहो ! मेरे बाद गुमराह न हो जाना। 

13. *याद रखना ! मेरे बाद कोई नबी नही आने वाला, न कोई नया दीन लाया जाएगा, मेरी बातें अच्छी तरह समझ लो।*

14. मैं तुम्हारे लिए दो चीजें छोड़ के जा रहा हूँ, क़ुरआन और मेरी सुन्नत, अगर तुमने उनकी पैरवी की तो कभी गुमराह नही होंगे। 

15. सुनो ! तुम लोग जो मौजूद हो, इस बात को अगले लोगों तक पहुंचाना, और वो फिर अगले लोगों तक पहुंचाए। और ये मुमकिन है के बाद वाले मेरी बात को पहले वालों से ज़्यादा बेहतर समझ ( और अमल ) कर सके। 
 
फिर आपने आसमान की तरफ चेहरा उठाया और कहा
16. *ऐ अल्लाह ! गवाह रहना, मैंने तेरा पैग़ाम तेरे बंदों तक पहुंचा दिया*

हम पर भी फ़र्ज़ है इस पैगाम को सुने, समझे, अमल करें और इसको आगे दुसरो तक़ भी भेजे ताकि अहम बाते सीखे 

(या रब इसको लिखने वाले, पढ़ने वाले ओर दुसरो तक़ पोहचाने वाले की हर परेशानि‍या दूर कर ओर उनको दुनिया ओर अखिरत मे कामयाबी अता कर ओर तेरे सिवा किसी का मोहताज ना बना.... आमीन या रब) 

Reference ; ( सही अल-बुखारी, हदीस न. 1623 ) इस्लाम मजहब के पैगंबर

कोरोना महामारी के बाद अब बिल गेट्स ने की दो अगली आपदाओं की भविष्यवाणी.2015

  • बिल गेट्स ने कोरोना वायरस महामारी की भविष्यवाणी वर्ष 2015 में ही कर दी थी।
  • माइक्रोसॉफ्ट के सह-संस्थापक बोले- कोरोना के बाद अब दो और खतरनाक बीमारियां आएंगी।
  • दी चेतावनी कि कोरोना के बाद अब श्वसन और जलवायु संबंधी महामारी आएंगी।


नई दिल्ली। माइक्रोसॉफ्ट के सह-संस्थापक और अध्यक्ष बिल गेट्स ने 2015 में ही कोरोना वायरस जैसी महामारी की चेतावनी दी थी। कोरोना वायरस के बाद अब गेट्स ने दो और आपदाओं की चेतावनी दी है। गेट्स का कहना है कि कोरोना के बाद अब दो ऐसी भयानक विपदाएं आने वाली हैं, जो इंसान को झकझोर के रख देंगी।

BIG NEWS: कोरोना वायरस से ठीक हो चुके व्यक्तियों में वैक्सीन का एक शॉट ही कारगर

वर्ष 2015 में बिल गेट्स की दी हुई भविष्यवाणी 2020 में सच साबित हुई। अभी लोग कोरोना जैसी भयानक महामारी से उबरे भी नहीं हैं और आम जनता तक वैक्सीन पहुंची भी नहीं है, ऐसे वक्त में गेट्स की ये भविष्यवाणी क्या कोहराम मचाएगी, सोचने वाली बात है।

बिल गेट्स के हिसाब से अब कोरोना वायरस से भी भयानक आपदाएं लोगों के ऊपर मंडराने वाली हैं। गेट्स ने ये भविष्यवाणी इसलिए भी की ताकि लोग पहले से ही सतर्क हो जाए और भविष्य में आने वाले इस संकट से अपना बचाव कर सकें।

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Wednesday, 7 April 2021

હવે મોટો પ્રશ્ન છે કોરોનાના બીજા મોજાના ડૅમેજ કન્ટ્રોલનો

06 April 2021

૨૪ માર્ચ, ૨૦૨૦ના રોજ ૨૧ દિવસનો રાષ્ટ્રવ્યાપી લૉકડાઉન જાહેર કરાયો ત્યારે આપણે ત્યાં કોરોનાના ૫૦૦ કેસ હતા અને તેને કારણે ૧૦ મૃત્યુ નોંધાયા હતા. આજે એક વર્ષ પછી પરિસ્થિતિ કાંઈક જુદી છે. પહેલું મોજું સપ્ટેમ્બર ૨૦૨૦ના અંત સુધીમાં ટોચ પર પહોંચ્યું અને ફેબ્રુઆરી ૨૦૨૧માં નવા કેસની સંખ્યા સતત ઘટતી જતા મહામારીનો અંત નજીક દેખાવા લાગ્યો.
આપણી એ ગણતરી છેતરામણી સાબિત થઈ અને ફરી એકવાર રોજિંદા ધોરણે નવા કેસ જેટ સ્પીડે વધવા માંડ્યા. એ પહેલાં મોજાનું વિસ્તરણ છે કે બીજું મોજું આપણે એની અવઢવમાં રહ્યા. કદાચ પાછલે દરવાજેથી એ બીજું મોજું પ્રવેશી પણ ગયું.એ અંતર્ગત છેલ્લા મળતા આંકડા પ્રમાણે રોજના નવા કેસ ૬૦,૦૦૦ આસપાસ પહોંચી ગયા. મહારાષ્ટ્ર અને મુંબઈ માટે એ આંક ૩૬,૦૦૦ અને ૫૫૦૦ ઉપર પહોંચી ગયો. હવે એના સામના માટે આપણો અનુભવ કામે લગાડવો પડશે.
 
દેશવ્યાપી લૉકડાઉનના રૂપમાં લેવાયેલ ઝડપી અૅકશનની સફળતાના પુરાવા આપણી સામે છે જ. એ જે સમય મળ્યો તેમાં ભવિષ્યમાં ઊભી થનારી 
ગંભીર પરિસ્થિતિના સામના માટે આપણા હેલ્થકૅર ઇન્ફ્રાસ્ટ્રકચરને મજબૂત કરવાના આપણા આશયને સફળતા મળી. મોટા પ્રમાણમાં જાનહાનિ અટકાવવા માટેની એ ડૅમેજ કન્ટ્રોલ કવાયત સફળ થઈ.

હવે નિષ્ણાતો અને સંશોધનાત્ક અભ્યાસનાં તારણો એ નિષ્કર્ષ પર આવ્યા છે કે આપણે ત્યાં કોવિડ-19નું બીજું મોજું શરૂ થઈ ગયું છે અને રોજના કેસ વધતા રહી ૧૫ એપ્રિલ સુધીમાં ટોચ પર પહોંચશે. પછી ધીમે ધીમે ઘટતા રહીને મેના અંત સુધીમાં તે કન્ટ્રોલમાં આવશે. મુંબઈમાં એ કેસ રોજના ૧૦,૦૦૦ની ટોચ પર પણ પહોંચી શકે. દેશમાં રોજના સૌથી વધુ કેસ નોંધાવી રહેલ ૧૦ જિલ્લામાંના નવ જિલ્લા મહારાષ્ટ્રમાં છે અને લગભગ ૭૪૦ જિલ્લામાંથી ૬૬ જિલ્લાઓ રોજના નવા કેસનો મોટા ભાગનો હિસ્સો ધરાવે છે. પંજાબ, કેરલા, કર્ણાટક, ગુજરાત અને મધ્ય પ્રદેશ પણ વધારે અસરગ્રસ્ત થતા જાય છે.

આ આંકડાઓને અને માર્ચ ૨૦૨૦ના સંજોગોના ફેરફારને લક્ષમાં રાખીને આપણે આપણી વ્યૂહરચના બદલવી પડશે.

સવાલ આ પહેલું મોજું છે કે બીજું એ નથી, એ જે પણ હોય તે, આપણે માટે અગ્રક્રમ તો  કોરોનાના ચાલુ તબક્કાને (રોજના વધતા કેસને) બનતી ત્વરાએ કાબૂમાં  લાવવાનો  છે, જેથી   જાનહાનિ ઓછામાં ઓછી અને આર્થિક નુકસાન પણ જેટલું બને તેટલું ઓછું થાય. 

વધતા કેસ વચ્ચે પણ મૃત્યુનો દર ૨૦૨૦ કરતાં ઓછો છે એનો યશ જાય છે આપણી સ્વાસ્થ્ય અંગેની માળખાકીય સુવિધાઓના સુધારાને. ઉપરાંત કોરોના પૉઝિટિવ થઈ ચૂકેલ કેટલાક દરદીઓ અને વૅક્સિનેશનને કારણે પ્રજાના અમુક વર્ગમાં કોવિડ-19 સામેના ઘટેલા જોખમને પણ તેનો કેટલોક યશ મળે જ. કોરોના સામે લડી લેવાની આપણી માનસિક ઇમ્યુનિટી (શારીરિક ઇમ્યુનિટી તો ખરી જ)એ પણ મોટો ભાગ ભજવ્યો જ હોય. 

 મૃત્યુનો દર ઘટાડવામાં નવા વાઇરસનું જોર ઓછું થયું છે કે નહીં એ અંગેના અભ્યાસના આખરી તારણો હજી ઉપલબ્ધ થયાં નથી. બે નવા વાઇરસનું ટ્રાન્સમિશન તો ઝડપી પુરવાર થયું છે. મહારાષ્ટ્ર અને અન્ય પાંચથી છ રાજ્યો કોવિડ-19 માટેની હૉટ-બેડ સમાન પુરવાર થયા છે અને રોજ વધતા નવા કેસમાં તેમનો હિસ્સો ૮૦ ટકા જેટલો છે, પણ તેને કારણે આખા દેશ સામેનું જોખમ ઓછું થતું નથી. જરા ચૂક્યા તો કોવિડ-19ના મરણનું પ્રમાણ પણ ૨૦૨૦ કરતાં વધી જવાની સંભાવના નકારી શકાય તેમ નથી.

 આ આંકડાઓ આપણને કોરોનાને નાથવા માટેની નવી વ્યૂહરચના ઘડવામાં કામે લાગી શકે.

કેન્દ્ર સરકારે પ્રાદેશિક અને સ્થાનિક લૉકડાઉન અને પ્રતિબંધો માટેની છૂટ રાજ્ય સરકારોને આપી જ છે. એટલે આખા રાજ્યમાં નહીં, પણ કોરોના માટેના હૉટ-સ્પૉટ કે કલસ્ટર ગણાય તેવા સ્થાનિક લૉકડાઉનથી વધુ જોખમવાળા પ્રદેશોને આઇસોલેટ કરાય તો કડક સર્વવ્યાપી લૉકડાઉનથી થતાં મોટા આર્થિક નુકસાનને સીમિત કરી શકાય. મહારાષ્ટ્રમાં પણ નાઇટ કરફ્યુ દાખલ કરાયો છે.
કેન્દ્ર સરકારે ૧ એપ્રિલથી ૪૫ વરસની ઉપરના બધા નાગરિકો માટે વૅક્સિનેશનની છૂટ આપી છે. કોરોનાના કન્ટ્રોલ માટે જરૂરી બધા નાગરિકોને જ્યારે ટૂંક સમયમાં વૅક્સિન આપી શકાય તેમ ન હોય તો વૅક્સિન માટેની પરવાનગી એજ ગ્રુપ કરતાં, આરોગ્ય સેતુ અૅપની મદદથી નોખા તારવેલ હૉટ-સ્પૉટ પ્રદેશોમાં પુખ્ત ઉંમરના બધા નાગરિકો માટે તાત્કાલિક આપવી જોઈએ. જે પ્રદેશો ઓછા અસરગ્રસ્ત છે તેમને ભલે પછીના તબક્કે વૅક્સિનેશન માટે આવરી લેવાય તો પણ વધુ પડતા નુકસાનની સંભાવના ઓછી છે.

કોઈ કુદરતી આફત સમયે જ્યાં ન પહોંચી શકાય તેવા અસરગ્રસ્ત વિસ્તારમાં સર્વાઇવલ કિટ (તત્કાલ પૂરતા જીવનગુજારા માટેની સાધનસામગ્રી અને દવાઓ) હેલિકૉપ્ટર દ્વારા અૅર-ડ્રોપ કરીને પૂરી પડાય છે તેવી રીતે વૅક્સિન માટે યુદ્ધના ધોરણે કોવિડ-19 માટેના હૉટ-સ્પૉટની પસંદગી કરી શકાય.

બે વૅક્સિન વચ્ચેનો સલામત સમયગાળો નવા સંશોધન પ્રમાણે છથી આઠ અઠવાડિયાંનો (જે પહેલાં ચારથી છ અઠવાડિયાંનો ગણાતો હતો) હોઈ બીજો ડોઝ મોડો આપી શકાય તેમ હોઈ પહેલા ડોઝ માટે પ્રજાના થોડા વધુ મોટા વર્ગને આવરી લેવાની શક્યતા પણ ઊભી થઈ છે. કોરોનાનું બીજું મોજું આપણા પર સવાર થઈ જાય અને અકલ્પનીય નુકસાન પહોંચાડે તે પહેલાં સમયસર આપણે આપણી નવી વ્યૂહરચના અમલમાં મૂકવી પડશે.
વૅક્સિનના બીજા ડોઝ પછી ઇમ્યુનિટી ડેવલપ થતાં બે-એક અઠવાડિયાં લાગતાં હોઈ પહેલા ડોઝમાં અસરગ્રસ્ત વિસ્તારના જેટલા વધુ લોકોને બનતી ત્વરાથી આવરી લેવાશે તેટલું દેશનું નુકસાન ઓછું થશે.
દેશનો યુવા વર્ગ તેમના ઑફિસ અને ધંધાકીય કાર્યો અને રોકાણોને લીધે કોરોના માટે સુપર-સ્પ્રેડર સાબિત થયો છે. સામાજિક અને ધાર્મિક પ્રસંગો પણ ડિસિપ્લિનના અભાવે સુપર-સ્પ્રેડર સાબિત થયા છે. એટલે હોળી-ધુળેટી, બીહુ અને ઇસ્ટરના તહેવારોની ઉજવણી બાબતે જેટલા રિસ્ટ્રિકશન્સ મુકાશે તેટલું દેશને નુકસાન ઓછું થશે.

રિઝર્વ બૅન્કના મતે રોજેરોજ ઝડપથી વધી રહેલ નવા કેસને હળવાશથી લઈ શકાય નહીં. તે આપણે માટે જરૂરથી ચિંતાનો વિષય છે. બિઝનેસની ઝડપ તાજેતરના અઠવાડિયાઓમાં વધી રહેલ કેસને કારણે ધીમી પડી રહી હોવાના સંકેતો મળી રહ્યા છે તો પણ ભારતના આર્થિક વિકાસની ઝડપ ધીમી પડે તેવા સંજોગો હજી દેખાતા નથી. દેશની કેન્દ્રવર્તી બૅન્કનો આ આશાવાદ આશ્વાસનરૂપ છે.
તો પણ મુંબઈની બગડતી પરિસ્થિતિ સારા દેશની પ્રગતિને પાછળ ધકેલી શકે એ ભુલાવું ન જોઈએ. રોજના નવા કેસ ૧૫, સપ્ટેમ્બર ૨૦૨૦ આસપાસના (૯૮,૦૦૦ જેટલા) ટોચના સ્તર ભણી મક્કમ ઝડપે આગળ વધી રહ્યા છે તેના પર અંકુશ રાખવા કોઈ એક સાધન કારગત ન જ નીવડે.  Abdul Hafiz Lakhani Ahmedabad GUJARAT

Friday, 2 April 2021

देश के NGO और सामाजिक संस्थान को लेकर बहोत अहम जानकारी प्राप्त करे.

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*ग़ैर-सरकारी संगठनों का सरकारी तन्त्र*
✍ अपूर्व मालवीय
🖥 http://www.mazdoorbigul.net/archives/12550
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अगर आप किसी भी सरकारी विभाग में जायें और सरकारी योजनाओं की जानकारी लें तो निम्न जवाब सामान्य तौर पर मिलेगा – ”हमारे विभाग की बहुत सी कल्याणकारी योजनाएँ हैं और इन योजनाओं को विभिन्न एनजीओ के सहयोग के माध्यम से क्रियान्वित किया जा रहा है।” 

*ज़्यादातर सरकारी विभागों की यही स्थिति है। सरकारी योजनाओं में ग़ैर-सरकारी संगठनों की घुसपैठ को समझा जा सकता है। नब्बे के दशक में जब भारत में उदारीकरण-निजीकरण की नीतियाँ लागू की गयीं, उस समय हमारे देश में एनजीओ की संख्या क़रीब एक लाख थी। आज इन नीतियों ने जब देश की मेहनतकश जनता को तबाह-बर्बाद करने में कोई कोर-कसर बाक़ी नहीं रख छोड़ी है, इनकी संख्या 32 लाख 97 हज़ार तक पहुँच चुकी है (सीबीआई की तरफ़ से सुप्रीम कोर्ट में दाखि़ल रिपोर्ट)। यानी देश के 15 लाख स्कूलों से दुगने और भारत के अस्पतालों से 250 गुने ज़्यादा!*

अकेले उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में ही 5 लाख 48 हज़ार एनजीओ हैं। दिल्ली जैसे छोटे राज्य में 76000 एनजीओ हैं। उत्तराखण्ड में 16674 गाँव हैं, लेकिन एनजीओ हैं 51675! यानी तीन एनजीओ प्रति गाँव। *उत्तराखण्ड में साठ फ़ीसदी से अधिक एनजीओ का काम ग्रामीण विकास पर केन्द्रि‍त है। लेकिन उत्तराखण्ड के गाँवों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। जो कम्पनियाँ यहाँ पर्यावरण, जंगलों, पहाड़ों, नदियों के विनाश के लिए जि़म्मेदार हैं, वही कम्पनियाँ इन मुद्दों को लेकर गोष्ठी, सेमिनार और कैम्प आदि लगाया करती हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य आदि क्षेत्र को भी बड़े-बड़े एनजीओ ट्रस्ट, धर्मार्थ सेवा संगठनों ने अपने शिकंजे में जकड़ लिया है।* अभी उत्तराखण्ड सरकार ने 300 सरकारी विद्यालयों को “10 से कम बच्चे आ रहे थे, का तर्क देकर” बन्द कर दिया। सिर्फ़ यहीं तक यह मामला नहीं रुका। इसके साथ ही इन सरकारी विद्यालयों की इमारतों को विद्या भारती (फ़ासिस्ट संगठन आरएसएस की संस्था) को दे दिया। अब जहाँ बच्चे ही नहीं आ रहे थे, उन स्कूलों का विद्या भारती क्या करेगी, यह सोचा जा सकता है। सरकार चार जि़लों के उन जवाहर नवोदय विद्यालयों को भी बन्द करने जा रही है, जिनमें अच्छी-ख़ासी संख्या में ग़रीब घरों के बच्चे आते हैं। उत्तराखण्ड में शिक्षा को लेकर ‘अज़ीम प्रेमजी फ़ाउण्डेशन’ सबसे अधिक काम करता है। पहाड़ों के कई स्कूलों को इसने गोद लिया है। उत्तराखण्ड में ज़्यादातर विश्वविद्यालय, कॉलेज बाबाओं-महन्तों के ट्रस्ट द्वारा संचालित हो रहे हैं। यही हाल स्वास्थ्य का है। स्वास्थ्य में मैक्स, फ़ोर्टिस जैसी कम्पनियों की दख़ल तो है ही, साथ ही बाबाओं-महन्तों के ट्रस्ट द्वारा संचालित कई मेडिकल कॉलेज सरकारी अस्पतालों को गोद लेकर ख़ूब मुनाफ़ा कमा रहे हैं। उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून के डोईवाला तहसील में एक सरकारी अस्पताल है, जो अब स्वामी राम हिमालयन हॉस्पिटल ट्रस्ट की देख-रेख में संचालित होता है। सरकारी अस्पताल में आये थोड़े से भी गम्भीर मरीजों को हिमालयन में रेफ़र कर दिया जाता है। सरकारी अस्पताल में ज़्यादातर ग़रीब-मेहनतकश ही आते हैं जो बमुश्किल ही पैसा देकर अपना इलाज करवा सकते हैं। लेकिन हिमालयन अस्पताल में भेजकर उनसे ठीक-ठाक फ़ीस वसूल ली जाती है। सुधीर नाम के व्यक्ति बताते हैं कि उनका रोड एक्सीडेण्ट हो गया था। ‘परिवार के लोग सरकारी अस्पताल लाये तो यहाँ के डॉक्टर ने हिमालयन रेफ़र कर दिया। मैं ठीक तो हो गया लेकिन क़र्ज़ के बोझ से दब गया।’

*उत्तराखण्ड के पहाड़, जंगल अपनी बहुमूल्य जड़ी-बूटियों, वानस्पतिक विविधताओं आदि के लिए जाने जाते हैं। लेकिन यहाँ की “सरकार इन जड़ी-बूटियों, वनस्पतियों के दोहन-संवर्द्धन के साथ ही इनके वास्तविक मूल्य लगा पाने में नाकाम है।” इसलिए इसकी जि़म्मेदारी बाबा रामदेव एण्ड कम्पनी को दे दी है। ये वही बाबा हैं जो काला धन और भ्रष्टाचार पर ज़ोर-शोर से प्रचार करते आज से चार-पाँच साल पहले दिखा करते थे। इन महोदय के पास क़रीब 100 ट्रस्ट, सोसायटी और कम्पनियाँ हैं, जो जन-कल्याण का काम करती हैं। अभी फि़क्की के एक सम्मेलन में इन्होंने बताया कि अभी तक उनकी कम्पनी 11 हज़ार करोड़ का जन-कल्याण कर चुकी है और अभी वे कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण में एक लाख करोड़ का जन-कल्याण करना चाहते हैं। बाबा जी का जन-कल्याण जानने के लिए जब इनका खाता-बही देखा गया तो पता चला कि पतंजलि की बिल्डिंग की सफ़ेदी-सफ़ाई भी “जन-कल्याण” है! वहाँ 12 घण्टे काम करने वाले ‘मज़दूर-कर्मचारी’ नहीं बल्कि “सेवक” हैं जिनके परिवार के गुज़ारे एवं सेवा के लिए बाबा कुछ सेवा फल मासिक तौर पर “जन-कल्याण” के नाम पर प्रदान करते हैं!* बाक़ी आप जानते ही हैं कि समय-समय पर जो “जन-कल्याणकारी” योग-शिविर लगता है और अलग-अलग स्तर के जो करोड़ों रुपये के शुल्क बाबा योग सिखाने का लेते हैं, वो तो “जन-कल्याण” है ही!

*सेवा के नाम पर अपने ही कर्मचारियों का शोषण*

ये “जन-कल्याणकारी” संस्थाएँ अपने कर्मचारियों का शोषण करने में भी गुरेज़ नहीं करतीं। बहुत से एनजीओ, सोसायटी स्व-रोज़गार के उद्यम चलाते हैं। पहाड़ों में या दूरदराज के गाँवों में स्थानीय जड़ी-बूटियाँ, सब्जि़याँ, अचार या किसी क्राफ़्ट की वस्तुएँ आदि लेकर शहरों में हाई-क्लास सोसायटी के बीच में उसकी मार्केटिंग करते हैं और ख़ूब मुनाफ़ा कमाते हैं। लेकिन इन्हें बनाने वाले, जड़ी-बूटियों को जंगलों से लाने, उसकी प्रोसेसिंग, पैकिंग करने या इसकी मार्केटिंग में लगे कर्मचारियों तक को उनके श्रम की वाजिब क़ीमत तक नहीं मिलती।

पिछले साल देहरादून में एक बड़े ट्रस्ट राफ़ेल राइडर शशाया इण्टरनेशनल सेण्टर (जहाँ विकलांग बच्चों का इलाज, देखरेख और पढ़ाई आदि होती है) के कर्मचारियों ने अपने वेतन बढ़ाने के लिए आन्दोलन किया। 15-20 साल तक काम करने वाले इन कर्मचारियों को केवल 6000-7000 हज़ार रुपये ही मासिक वेतन दिये जा रहे थे। वहाँ के कर्मचारियों ने बताया कि पहले तो हम कम तनख़्वाह के बावजूद कुछ भी नहीं बोलते थे, क्योंकि हम यह मानकर चलते थे कि ये सेवा का काम है। लेकिन हमने देखा कि इसके प्रबन्धक, मैनेजिंग कमेटी के लोग विलासिता से रह रहे हैं। जब-तब वे अपनी तनख़्वाहें बढ़ा लेते हैं। जब हमारी बात आती है तो संसाधनों और पैसे की कमी का रोना रोते हैं। जबकि यहाँ सालों-साल कुछ-न-कुछ निर्माण का काम भी चलता रहता है। इससे भी यहाँ का मैनेजमेण्ट अपनी जेब गर्म करता है। जब इस ट्रस्ट के 2015-16 के वार्षिक वित्तीय हिसाब को देखा गया तो पता चला कि उस वर्ष इसे विदेशों से 3 करोड़ 62 लाख 3 हज़ार, 1 करोड़ 87 लाख 84 हज़ार का भारतीय अनुदान और ख़ुद राफ़ेल की आय 8 लाख 49 हज़ार थी। इसकी फ़ण्डिंग रतन टाटा समूह, ओएनजीसी, मैक्स इण्डिया, आरईजीई फ़ाउण्डेशन से होती है। करोड़ों की सलाना आय के बावजूद ये अपने कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन तक नहीं देता है।

ये सिर्फ़ राफ़ेल का ही मामला नहीं है। रामदेव एण्ड कम्पनी के मज़दूर भी न्यूनतम वेतन और श्रम क़ानूनों के तहत मिलने वाली तमाम सुविधाओं के लिए हड़ताल कर चुके हैं। आपने गोरखपुर के गीता प्रेस के मज़दूरों के आन्दोलन के बारे में सुना ही होगा, जो सम्मानजनक वेतन की माँग कर रहे थे। गीता प्रेस ने इसका ख़ूब प्रचार किया कि धर्मार्थ कार्यों के लिए चलने वाली संस्था इतनी तनख़्वाह कैसे दे सकती है! लेकिन इसकी मैनेजमेण्ट ने यह नहीं बताया कि कैसे इसकी वितरण शाखाएँ पूरे देश में बढ़ती जा रही हैं? मैनेजमेण्ट ने यह भी नहीं बताया कि उसकी किताबों की वार्षिक बिक्री क़रीब 54 करोड़ रुपये है।

असल में किसी बड़े एनजीओ का वार्षिक बजट सैकड़ों-हज़ारों मिलियन्स या कई बिलियन डॉलर्स हो सकता है। 1999 में ही ‘अमेरिकन एसोसियेशन ऑफ़ रिटायर्ड पर्सन्स’ का बजट 540 मिलियन डॉलर्स से अधिक था! अधिकतर एनजीओ अपने वित्त के लिए सरकारों पर बहुत अधिक निर्भर होते हैं। सरकारें जनकल्याणकारी योजनाओं को लागू करने में राजस्व की कमी का रोना रोती हैं, जबकि इससे ज़्यादा की राशि को तमाम एनजीओ की गतिविधियों के लिए दे देती हैं। इन एनजीओ के मालिक व मैनेजमेण्ट देशी-विदेशी फ़ण्डिंग से विलासिता की ज़िन्दगी जीते हैं, जबकि इसमें काम करने वाले कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन तक नहीं मिलता है। बहुत से नौजवान एनजीओ आदि में काम करके बमुश्किल अपना जेब-ख़र्च निकाल पाते हैं, लेकिन वे यह सोचकर अपने दिल को ख़ुश किये रहते हैं कि वे समाज-सेवा का काम कर रहे हैं।

*रँगे सियारों की समाज-सेवा*

क्या आप आड़ू के पेड़ में आम फलने की कल्पना कर सकते हैं? या गेहूँ की फ़सल बोकर गन्ना काटने की उम्मीद कर सकते हैं? नहीं न! उसी तरह क्या आप उम्मीद कर सकते हैं कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ, कॉर्पोरेट्स या पूँजीपति जो पूरी दुनिया के मेहनतकशों को लूट रहे हैं, इनके द्वारा खड़े किये गये एनजीओ, ट्रस्ट, धर्मार्थ सेवा संगठन आदि वास्तव में जनता की सेवा के लिए हैं? ऐसा कैसे हो सकता है कि एक तरफ़ ये पूँजीपति अपने मुनाफ़े के लिए मेहनतकशों की हड्डियों को भी पाउडर बनाकर बेच देंगे, संसाधनों पर कब्ज़े के लिए युद्ध तक छेड़ देंगे, खाद्यानों को बर्बाद करके उसको अपने गोदामों में सड़ा देंगे, भुखमरी का संकट खड़ा कर देंगे, लेकिन इसके बाद वही पूँजीपति, बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपने ट्रस्ट, एनजीओ के माध्यम से समाजसेवा का काम करेंगे? आखि़र इन पूँजीपतियों की दयालुता, सहृदयता का राज क्या है? दोनों हाथों से जनता को लूटने वाले ये रँगे सियार आखि़र बीच-बीच में समाजसेवी-खैरात की दुकानें क्यों सजाते हैं? अब आप थोड़ा असमंजस में पड़ गये होंगे। इस असमंजस को दूर करने के लिए चलिए एनजीओ आदि की राजनीति, अर्थनीति, समाजनीति पर थोड़ी चर्चा की जाये।

*नक़ाब के पीछे की सच्चाई*

वैसे देखा जाये तो मानव सेवा, समाज सेवा का काम कोई नया नहीं है। मध्यकाल में धर्म और उससे जुड़ी संस्थाएँ ये काम बख़ूबी किया करती थीं। लेकिन इसके साथ ही ये संस्थाएँ मौजूदा व्यवस्था को वैधता भी प्रदान किया करती थीं। जनता के बीच ये भ्रम बनाने में कि राजा ही हमारा वास्तविक प्रतिनिधि है, राजा की इच्छा ही ईश्वर की इच्छा है और राजा की सेवा ही हमारा धर्म है, ये सोच बनाने में इन्हीं धार्मिक संस्थाओं का ही योगदान होता था। इस कारण इन मठों, मन्दिरों, चर्च आदि को राजे-रजवाड़ों, सामन्तों आदि से अकूत धन-दौलत, ज़मीन इत्यादि मिला करती थी और ये संस्थाएँ पूरी निष्ठा के साथ अपने हुक्मरानों के कि़लों की हिफ़ाज़त किया करती थीं। अब आप कहेंगे कि ये तो पुराने ज़माने की बात है। चलिए नये ज़माने पर आते हैं –

*नये ज़माने का पुराना भ्रम*

वर्तमान शासकों को इन एनजीओ, ट्रस्ट की क्या ज़रूरत? अभी चर्चा हुई कि धार्मिक संस्थाएँ पुराने शासकों की वैधता की गारण्टी थीं। आज के शासक वैधता किससे प्राप्त करते हैं? ग्राम्शी ने बताया है कि मीडिया से। सिर्फ़ मीडिया से ही! नहीं! ये स्वयंसेवी संगठन, ट्रस्ट, एनजीओ आदि भी आज के शासकों को वैधता के सर्टिफि़केट प्रदान करते हैं। कैसे?

ये जनता के बीच उस भ्रम को पैदा करते हैं कि इस व्यवस्था में छोटे-छोटे सुधार करके इसको बेहतर बनाया जा सकता है। ये बताते हैं कि जनता की तबाही-बर्बादी की जि़म्मेदार यह पूँजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था नहीं बल्कि कुछ शासकों की ग़लत नीतियाँ, भ्रष्टाचार आदि है – जिसको ठीक किया जा सकता है।

आप जानते हैं कि 20वीं शताब्दी क्रान्तियों, जन-संघर्षों और युद्ध की शताब्दी रही है। ये वो दौर रहा है जब भारत सहित तीसरी दुनिया के तमाम देशों की जनता उपनिवेशवाद, अर्द्धउपनिवेशवाद, पूँजीवाद और साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ सड़कों पर थी। इसी दौर में रूस के मज़दूरों ने समाजवादी क्रान्ति की। इन संघर्षों और क्रान्तियों ने पूँजीपतियों और साम्राज्यवादी देशों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। अपने लूट के साम्राज्य को बचाये रखने और सम्भावित क्रान्तियों के डर से साम्राज्यवादियों ने अपनी रणनीति को बदला। कुछ देशों में अपने जूनियर पार्टनरों को, कुछ में अपने पिट्ठुओं को, कुछ में सैनिक तानाशाहों को सत्ता सौंपी। नवस्वाधीन देशों में भी पूँजीवादी-साम्राज्यवादी लूट की नीतियाँ बदस्तूर जारी रहीं और इन नीतियों के कारण होने वाली तबाही-बर्बादी, शोषण-उत्पीड़न के ख़िलाफ़ जन-संघर्ष भी जारी रहे। हमारे देश में भी आज़ादी के बाद तेलंगाना, तेभागा, पुनप्रा-वायलार, नक्सलबाड़ी आन्दोलन के साथ ही आपातकाल के दौर के संघर्षों का इतिहास रहा है। ये जनसंघर्ष कहीं पूँजीवाद-साम्राज्यवाद विरोधी क्रान्तियों में न बदल जायें, इसके लिए ज़रूरी था कि ऐसे संगठन खड़े किये जायें जो जनता के क्रान्तिकारी आन्दोलन को दिशाहीन कर सकें। जनता में इसी व्यवस्था को बेहतर बनाने का भ्रम पैदा कर सकें।

*हमारे हितैषी पूँजी के सरपरस्त गुलाम हैं*

दूसरे विश्व युद्ध के बाद तीसरी दुनिया के तमाम देशों में स्वयंसेवी संगठन, ट्रस्ट, एनजीओ आदि बहुतायत में उठ खड़े हुए। ये मानवाधिकार के मुद्दे, दलित-उत्पीड़न, आदिवासी उत्पीड़न, जल-जंगल-ज़मीन, पर्यावरण, स्त्री-प्रश्न आदि-आदि पर हस्तक्षेप करते दिखायी देते हैं। लेकिन ये कभी-भी इन सारे सवालों को पूँजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था से जोड़कर नहीं प्रस्तुत करते, बल्कि इन सवालों को अलग-अलग टुकड़ों में हल करने का समाधान प्रस्तुत करते हैं। ये पर्यावरण के विनाश को रोकने के लिए पूँजीपतियों, उनकी सरकारों, और साम्राज्यवादियों से गुहार लगायेंगे! शासकों के दमन-उत्पीड़न की नीतियों के ख़िलाफ़ न्यायपालिका से गुहार लगायेंगे! लेकिन कभी-भी जनता को क्रान्तिकारी संघर्ष के लिए लामबन्द नहीं करेंगे।

    मज़े की बात यह है कि 1960 के दशक में जहाँ अमेरिकी साम्राज्यवाद परस्त सैनिक तानाशाहियाँ क़ायम हुईं या नवस्वाधीन देशों के शासकों ने अपनी नीतियों के लिए जनता का दमन किया, उन देशों में फ़ोर्ड फ़ाउण्डेशन ने जनहित क़ानून के निर्माण की दिशा में ख़ूब काम किया। मुक़दमेबाजी से सम्बन्धित ढेर सारे संगठन उठ खड़े हुए जैसे – विमेंस लॉ फ़ण्ड, एनवायरमेण्टल डिफ़ेंस फ़ण्ड, नेचुरल रिसोर्सेज डिफ़ेंस काउंसिल आदि-आदि। ‘अमेरिकी वॉच’ जैसे संगठन दमन-उत्पीड़न, भ्रष्टाचार, मानवाधिकारों के उल्लंघन पर पैनी निगाह रखने लगे और जनता में इस विचार को स्थापित करने का काम करने लगे कि विद्रोह मूर्ख शासकों की नीतियों का परिणाम होते हैं। लुब्बेलुबाब यह कि जिन्होंने पर्यावरण को तबाह किया उनके द्वारा खड़े किये एनजीओ ने पर्यावरण पर चीख़ना-चिल्लाना शुरू किया, जिन्होंने प्राकृतिक संसाधनों का अन्धाधुँध दोहन किया उनके ट्रस्टों ने प्राकृतिक संसाधनों की हिफ़ाज़त का रोना रोया, जिन्होंने अपने मुनाफ़े के लिए जनता का दमन और क़त्लेआम किया उनके स्वयंसेवी संगठन मानवाधिकारों के पैरोकार हो गये।

अब आप ख़ुद सोचिए कि देशी-विदेशी फ़ण्डिंग एजेंसियों, सरकारों आदि से लाखों-करोड़ों का अनुदान प्राप्त करने वाली इन संस्थाओं की राजनीति क्या है? क्या कारण है कि ये संस्थाएँ तीसरी दुनिया के उन देशों में सबसे ज़्यादा सक्रिय हैं, जहाँ क्रान्तिकारी परिवर्तन की सम्भावनाएँ मौजूद हैं? अपने चेहरे पर मानवीय मुखौटा लगाये हुए ये पूँजी के मालिकों के गुलाम हैं जो यह नहीं चाहते कि जनता एकजुट होकर उनकी बनी-बनायी व्यवस्था को नेस्तनाबूद कर दे। ये जनता को टुकड़ों-टुकड़ों में बाँटकर उसकी वर्गीय एकजुटता को तोड़ने का काम करते हैं। इसके साथ ही ये क्रान्तिकारी बनने की सम्भावना से लैस नौजवानों को सुधारवाद की घुट्टी पिलाकर उन्हें वेतनभोगी समाज-सुधारक बना देते हैं। एनजीओ के इस ख़तरनाक साम्राज्यवादी कुचक्र को समझने और उसे बेनक़ाब करने की आज सख्त ज़रूरत है।
मज़दूर बिगुल, जनवरी 2019 अंक में प्रकाशित 
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7/11 मुंबई विस्फोट: यदि सभी 12 निर्दोष थे, तो दोषी कौन ❓

सैयद नदीम द्वारा . 11 जुलाई, 2006 को, सिर्फ़ 11 भयावह मिनटों में, मुंबई तहस-नहस हो गई। शाम 6:24 से 6:36 बजे के बीच लोकल ट्रेनों ...