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Sunday, 25 April 2021

कपडवंज में पुलिस के साथ जिन की झड़प हुई क्या वो नमाझि नहीं थे? क्या वो दंगाई थे?

जब जब कहीं पर भी स्टेट पुलिस द्वारा मुस्लिमो पर दमन होता है तो गोदी मीडिया और फासिस्ट ताकते मुस्लिमो को दंगाई करार देने पर बेबाक होती हैं। फिर चाहे वो जामिया की लाइब्रेरी हो, जामा मस्जिद का एहतेजाज हो या फिर गुजरात का कपडवंज हो जहां पर तरावीह पढ़ रहे मुस्लिमो को पुलिस ने एक एक कर के मस्जिद से बाहर निकाला और उन्हें बुरी तरह पीटा। नमाझियों में बड़े बूढ़े और बच्चे भी थे, पुलिस ने अमानुषी तरीके से लाठी चलाई। बात यहां से खत्म नहीं हुई, रास्ते से आनेजाने वालो को नाम पूछ कर मारा गया जिस में मुस्लिम महिलाओं के कपड़े तक तार तार हुए। कपडवंज में जो कुछ हुआ, उस के सबूत के तौर पर कई सारे वीडियो कपडवंज डिवाईएसपी मेडम को मुहैया कराए गए जिस के आधार पर उन्होंने इस मामले में पुलिस की गलती होने का स्वीकार किया हैं। नमाझियों पर अत्याचार करने के बाद भी रास्ते पर जब जुल्म होता रहा तो लोगो की साहजिक प्रतिक्रिया के रुप में पथराव की घटना हुई। इसे किसी भी एंगल से दंगाईयो का कृत्य नही कह सकते। 

लेकिन ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लिमीन गुजरात के सदर *साबिर क़ाबलिवाला ने डीजीपी को लिखे लेटर में कहा है कि कपडवंजमें जिन के साथ पुलिस की झड़प हुई वो मुस्लिम दंगाई थे।* भाजपा सरकार की पुलिस एफआईआर में, गुजरात की गोदी मीडिया में भी कपडवंज के मुस्लिमो को दंगाई बताया गया है, लेकिन गुजरात मजलिस के सदर भी उन्हें दंगाई कहने लगे तो बोलने के लिए क्या बाकी रह जाता है!

गुजरात मजलिस के सदर के इर्द गिर्द चंद वामपंथी मुस्लिमो ने घेरा डाला हुआ है। नजदीकी भूतकाल में ये लोग जमीयत उलेमा हिन्द, और दीगर मुस्लिम तंजीमो को टारगेट कर रहे थे, जो लोग नास्तिक वामपंथी एंटी मुस्लिम जिग्नेश मेवानी को सर पर चढ़ाकर घुम रहे थे, पिछले 5 साल से उन के साथ प्रोग्राम कर रहे थे, कुछ लोग चन्द्रशेखर आजाद के साथ दिल्ली के रोहिदास मन्दिर मामले में अहमदाबाद की सड़कों पर *'मन्दिर वहीं बनेगा'* के नारे लगा रहे थे, ऐसे लोगो ने *मजलिस की पतंग को उड़ते देख अपने जाति मफाद के लिए मजलिस की डोर थाम ली हैं।* इन की वजह से मजलिस के ओरिजिनल कार्यकर्ता आज मजलिस से दूरी बना लिए है। मजलिस के सदर साबिर क़ाबलिवाला कोंग्रेस के विधायक पद पर रहकर भी वो अपनी छवि कोंग्रेस में मजबूत नहीं कर पाए थे। दस साल तक राजनीतिक वनवास के बाद बेरिस्टर साहब ने उनको सहारा दिया और पूरे स्टेट की जिम्मेदारी सौंप दी। मग़र उन्हें असलामती का डर दिखाकर वामपंथी गुट सदर साहब के मन मष्तिष्क पर सवार है, नतीजतन सदर साहब किसी की सुनते ही नहीं, और *आज पार्टी मजलिस की आइडियोलॉजी के बजाय वामपंथी लाइन पर चल रही है जिस का सुबुत सदर साहब द्वारा गुजरात डीजीपी को लिखे गए लेटर में मिलता है जिस में कपडवंज के मुस्लिमो को दंगाई बताया गया है।*

मजलिस की आइडियोलॉजी सिर्फ और सिर्फ मजलुमो को इंसाफ दिलाने की है, जब कि गुजरात मजलिस की आइडीयोलॉजी गुजरात की भाजपा सरकार, गुजरात पुलिस का समर्थन करने की दिख रही हैं। मजलिस को ये सवाल करना चाहिए कि जब शांति समिति की मीटिंग में ये तय हुआ था कि मुस्लिम मस्जिदों में जाकर तरावीह पढ़ेंगे और पुलिस उन्हें परेशान नहीं करेगी तो फिर मस्ज़िद में पुलिस दाखिल हुई क्यों? मस्जिद से लोगो को शांतिपूर्वक घर रवाना करने के बजाय उन पर लाठी क्यों बरसाई गई? रास्ते से आने जाने वालों को नाम पूछकर मुस्लिम नामधारियों को ही क्यों पिटा गया? मस्जिद से अपने बच्चों को लेने आए माँ बहनों को पुलिस ने क्यों मारा? मुस्लिम इलाके के वाहनों को पुलिस ने क्यों नुकसान किया? 

ये सारे सवाल करने के बजाय *गुजरात मजलिस के सदर साबिर क़ाबलिवाला कपडवंज के मुस्लिमो को दंगाई करार देकर भाजपा सरकार और स्टेट पुलिस की बोली बोलने लगे तो ये मजलिस का स्टैंड नही हो सकता,* ये गुजरात मजलिस में घुसे चंद वामपंथियो की कारगुजारी है, लेकिन ऐसे लेटर पर सदर साहब ने सिग्नेचर किया कैसे ये भी सवाल बनता है। सदर साहब न तो कपडवंज गए, न डीजीपी ऑफिस गए और लेटर सोसियल मीडिया में डाल दिया गया? *इस लेटर से कपडवंज के मुस्लिमो को क्या फायदा होगा?* क्या इस लेटर से मजलिस को नुकसान नहीं होगा?  

अभी ये लिखने से पहले जांच की गई कि क्या डीजीपी ऑफिस को मजलिस का ये लेटर मिला है, लेकिन अभी तक किसी ने भी डीजीपी ऑफिस को प्रस्तुत लेटर मिलने की पुष्टि नही की है।
सदर साहब ने गुजराती में लेटर लिखते हुए कहा है कि *"અમુક તોફાનીઓ દ્વારા કપડવંજ પોલીસ સ્ટેશન પર પણ હુમલો થયેલ હતો."* यानि *"कुछ दंगाइयों द्वारा कपडवंज टाउन पुलिस स्टेशन पर भी हमला हुआ था।"*

अब ये स्टेटमेंट तो वही दे सकता है ना जो मौके पर मौजूद हो। सदर साहब बताये, 20 अप्रैल को कपडवंज में रात 9 बजे के बाद ये घटना की शुरुआत हुई तब मौके पर मजलिस का कोई प्रतिनिधि मौजूद था? कैसे आप को पता चला कि मस्जिद में तरावीह पढ़ रहे थे वो नमाझि नहीं बल्कि दंगाई थे? 

गुजरात में मजलिस आई उस के बाद गुजरात मे मुस्लिमो पर दमन की ये छठवीं घटना है। इन में से कितनी घटना पर मजलिस मुस्लिमो के पक्ष में खड़ी रही वो सदर साहब को सोचना चाहिए। वामपंथी लॉबी नहीं चाहती कि गुजरात मे मजलिस लोकप्रिय और मजबूत हो। मजलिस की वजह से वामपंथियो के एनजीओ बिजनेस में मंदी आ गई है। इस लिए वो लोग गुजरात मे मजलिस को गलत रास्ते पर ले जा रहे हैं। 

अब देखना है कि पार्टी का आला कमान और बैरिस्टर साहब इस लेटर की दूरगामी राजनीतिक असर को देखते हुए कुछ कड़े कदम उठाते है या फिर _वही बेढंगी रफ्तार से चलते रहना है, जैसे साबिर क़ाबलिवाला चला रहे है।_

✍️ *Salim Hafezi* 
_90331 64631_

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