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Sunday, 24 July 2022

हज पैदल या सवारी से की अहम बहस के बीच कुछ बातें याद दिलाने के लिये, क्यों कि जो कुछ लिखा है यह सब हो चुका है और आप भूल भी चुके होगे .

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अगर मैं आज से 4 साल पहले किसी से कहता कि हमारी नागरिकता खत्म करने का कानून पास होगा तो सायद ही कोई इस बात पर यकीन करता, मुल्क के हालात हर दिन बिगड़ते जा रहे हैं,हमारे सफर का खाना तक बदल चुका है, सफर में कवाब लेकर चलने वाला आज आलू की सब्जी लेकर निकलता है, कल का दिन क्या खबर लेकर आये कुछ खबर नहीं , NRC बिल पास होने के चंद दिन पहले तक इसकी भनक भी नहीं थी मैं नवम्बर खत्म पर में नार्थ ईस्ट के सफर पर था और पहुँचकर एक दो दिन ही हुये थे कि 7 दिसम्बर आसाम के तिन्सुकिया से विरोध शुरु हुआ और देखते देखते पूरे मुल्क में प्रोटेस्ट फैल गया जो कि दिल्ली दंगे और कोरोना पर खत्म हुआ ।

कोरोना लाकडाऊन की भी एक दिन पहले तक कोई खबर नहीं थी और मेरा 14 मार्च महाराष्ट्रा का सफर था पहुँचा ही था कि 21 को जनता कर्फ्यू और फिर लाकडाऊन और पूरा भारत थम गया और हम तीन महीने के लिये फस गये, 27 मार्च निजामुद्दीन मरकज का मामला उठा और कोरोना बम और न जाने क्या क्या पूरा महीना मुसलमानों को न्यूज डिबेट में बदनाम किया गया, हालात ऐसे किये गये कि जमात बताओ ईनाम पाओ की मुहिम चालू की गई ।

जुमा के दिन को दंगा डे, हरियाणा में पार्क में होती जुमा नमाज़ पर बवाल, अज़ान पर बवाल, हिजाब पर हंगामा , नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहिवसल्लम की ज़ात पर कीचड़ उछालना विरोध करने पर बुल्डोजर , जेल और गोली, जगह जगह धर्म संसद के नाम पर जहर उगलना खुलेआम कत्लेआम की धमकी रैली में हिंसात्मक और घिनौनी नारे बाजी , आर्थिक बहिस्कार की मुहिम और गरीब मजबूर मुसलमानों को पीटना , भगवा लव ट्रेप में मुस्लिम लड़कियों को जाल में फसाने की मुहिम , घर वापसी और मुस्लिम दाईयों को जेल और उनकी जमानत तक न होना क्या कुछ नहीं हो रहा है, कौम के फिक्रमंद नौ जवानों को जेल, कभी गौर भी किया इन बातों पर ?

अब तो आप अकेले तन्हा भी कहीं नमाज़ नहीं पढ़ सकते जो अब तक स्टेशन या पार्क में पढ़ लेते थे , न जाने कौन विडिओ बनाये और वायरल करें और जेल की हवा खानी पढ़ जाये, कुछ दिन में हो सकता है मस्जिद में नमाज़ भी जुर्म हो जाये और फिर घर पर भी, माथे पर सज़्दे का निशान देख संदिग्ध बोलकर हिरासत में ले लिया जाये कुछ कहा नहीं जा सकता ।

लेकिन आप लोग पैदल हज पर बहस करिये यह सबसे जरूरी मसला है , आज जिस मसले पर इक्तिलाफ की कोई गुंजाइश ही नहीं है उस मसले पर लोग दो धड़ो में बट चुके है, 
न जाने हम कब एक होगें ?
न जाने कब फिक्र मंद होगें ?
न जाने कब अपनी जिम्मेदारियों को समझेगें ?
न जाने कब हम एक उम्मत बनेगें ?
सायद उस वक़्त , जब हम बहुत कुछ खो चुके होगें  😢!!

Thursday, 21 July 2022

"एक अजान के देने मे 22 मुसलमान शहीद" जुलाई 13 jul 1931, शेख अब्दुल्ला के देशविरोधी और विभाजनकारी राजनीतिक उदय का इतिहास, शेख के अलगाववाद में साथी थे अंग्रेज़ और कांग्रेस


   सर सैयद अहमद खान ने 1875 में मदरसातुल ऊलूम मुसलमान-ए-हिंद के नाम से अलीगढ़ में एक शिक्षा संस्थान खोला, जो कालांतर में अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अरब संस्कृति की पहचान का प्रतीक खजूर का पौधा विश्वविद्यालय के प्रतीक चिह्न के रूप में इस्तेमाल किया गया। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद सल्तनत-ए-इंगलिशिया भी चाहने लगी थी कि भारत के मुसलमान भारत की मुख्य सांस्कृतिक धारा से टूटकर अपनी अलग पहचान विकसित करें, ताकि बाद में वक्तबेवक्त उनका अंग्रेजों के हितों के लिए उपयोग किया जा सके। मतांतरित मुसलमानों में यह भावना भरी जाए कि उनका भारतीय राष्ट्र से कोई भावात्मक संबंध नहीं है, बल्कि वे एक अलग राष्ट्र हैं। इस प्रकार का मुसलिम नेतृत्व तैयार करने में अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय बेहतरीन माध्यम हो सकता था। इस पृष्ठभूमि में अलीगढ़ विश्वविद्यालय धीरे-धीरे द्विराष्ट्र सिद्धांत का बहुत बड़ा केंद्र बन गया।
 
 
इसने मतांतरित भारतीय मुसलमानों को मानसिक रूप सेअरब मूल के सैयदों का बौद्धिक नेतृत्व स्वीकारने के लिए तैयार किया। कश्मीर घाटी से भी बहुत से नौजवान, जिनकी पढ़ने में रुचि थी, नजदीक के पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर को छोड़कर अलीगढ़ की ओर भागने लगे। कश्मीरी युवकों का एक बहुत बड़ा केंद्र अलीगढ़ विश्वविद्यालय के परिसर में पनपने लगा। उन बहुत से नौजवानों में श्रीनगर से कुछ दूर स्थित सौरा गाँव के मोहम्मद अब्दुल्ला भी थे, जो घाटी से अलीगढ़ में रसायनशास्त्र की पढ़ाई करने गए थे। अलीगढ़ से लौटे हुए ऐसे अनेक नौजवानों ने श्रीनगर में गपशप के लिए नियमित उठना-बैठना शुरू किया। बाद में गपशप का यही अड्डा फतहकदल रीडिंग रूम पार्टी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
 
 
 
इस दौरान 14 अक्टूबर 1925 के बाद से ही अंग्रेज रेज़ीडेंट प्रतिनिधि के जरिये जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह को काबू करने में नाकाम रहे थे। लेकिन महाराजा हरि सिंह कई मामलों में अंग्रेजों की नीतियों का विरोध करते रहे थे, उनकी सलाह लेना तो दूर महाराजा ने अंग्रेजों से मुक्ति का आंदोलन छेड़ दिया था और राज्य में अंग्रेजों के राजनीतिक दखल को भी धीरे-धीरे खत्म करते जा रहे थे। दक्षिण एशिया में वर्चस्व और सोवियत संघ को रोकने के लिए विशेष भौगोलिक स्थिति के चलते जम्मू कश्मीर पर अंग्रेजों का कब्जा होना बेहद जरूरी थी। लिहाजा अपने ग्रेट गेम में कामयाबी हासिल करने के लिए अंग्रेजों ने भारत के पश्चिमोत्तर का इतिहास बदलकर रख दिया। इसी ग्रेट गेम के कारण पाकिस्तान और इसी के कारण अभी तक जम्मू-कश्मीर सुलग रहा है।
 
 
 
1930 में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों से बात करने के लिए गोलमेज सम्मेलन बुलाया। इस सम्मेलन में ब्रिटिश इंडिया और रियासतों का एक संघ बनाने की भी चर्चा होनी थी। लंदन में आयोजित इस सम्मेलन का प्रतिनिधित्व करते हुए, भारतीय राजाओं महाराजाओं के प्रतिनिधि महाराजा हरि सिंह ने अंग्रेजों का जवाब देते हुए कहा कि- ब्रिटिश सरकार के मित्र के नाते हम आपके साथ हैं, लेकिन भारतीय होने के नाते हम सभी अपनी मातृभूमि, जिसने हमें जन्म दिया और हमारा पालन-पोषण किया, के प्रति निष्ठावान हैं। हम अपने समस्त देशवासियों के साथ, ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में अपने देश की सम्मानजनक एवं समान स्थिति की माँग के पक्ष में मजबूती से खड़े हैं।
 
 
महाराजा के इस विषय पर लिए गए रुख ने ब्रिटिश सरकार को चौकन्ना कर दिया था। सम्मेलन में दिए गए भाषण से ब्रिटिश सरकार नाराज ही नहीं हुई, बल्कि हरि सिंह को लेकर अतिरिक्त चौकन्नी भी हो गई। इसी चर्चा पर उन्होंने दूसरा भाषण 15 जनवरी, 1931 को दिया। इसमें हरि सिंह ने कहा, '' हमारी मातृभूमि निराशाजनक तरीके से दो अलग-अलग राजनैतिक व्यवस्थाओं में विभक्त है। दोनों इकाइयाँ एक-दूसरे से अलग रहकर काम करती हैं। प्रस्तावित फेडरेशन से हमारे देश की एकता सुनिश्चित हो जाएगी।'' दरअसल अपने इन दो भाषणों में ही महाराजा ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रति अपने दृष्टिकोण एवं भविष्य की नीति की घोषणा कर दी थी।
 
 
 
इस सम्मेलन के बाद ब्रिटिश सरकार ने महाराजा हरि सिंह को रास्ते से हटाने का षड़यंत्र शुरू कर दिया। जिसको अमलीजामा पहनाया जम्मू कश्मीर में महाराजा हरि सिंह के राजनीतिक और पीडब्ल्यूडी मंत्री जी. ई. सी. वेकफील्ड। जोकि 1929 से 1931 तक महाराजा के प्रधानमंत्री भी रहे थे। जी. ई. सी. वेकफील्ड ने अपने इस काम के लिए मुस्लिम नेतृत्व को उभारना शुरू किया और राज्य में मुस्लिमों को डोगरा रूल के खिलाफ भड़काने के लिए काम करने लगे। इसी कड़ी में जी. ई. सी. वेकफील्ड ने शेख अब्दुल्ला को तराशना शुरू किया।
 
 
 
ऐसा माना जाता है कि शेख अब्दुल्ला आर उसकी रीडिंग रूम पार्टी द्वारा चलाया जानेवाला यह आंदोलन परोक्ष रूप में इस दूरगामी ब्रिटिश नौति का ही अंग था। महाराजा हरि सिंह के युरोप प्रवास के दौरान रियासत के प्रशासन का व्यावहारिक तौर पर मुखिया जी.ई.सी. वेकफील्ड था। ‘‘वेकफील्ड ने श्रीनगर में पढ़े-लिखे युवा मुसलमानों, जो फतहकदल की रीडिंग रूम पार्टी के तौर पर जाने जाते थे, को राज्य सरकार की नौकरियों में मुसलमानों को ज्यादा हिस्सा देने की माँग करने । के लिए प्रोत्साहित किया। उसी समय वेकफील्ड और ब्रिटिश रेजीडेंट, दोनों की प्रेरणा से ऐसा ही एक आंदोलन जम्मू में भी शुरू किया गया। शेख अब्दुल्ला कश्मीर में मुसलिम सांप्रदायिकता के नेता बन गए। उधर जम्मू में चौधरी गुलाम अब्बास मुसलिम सांप्रदायिकता के नेता स्थापित किए गए।'' अगले कुछ महीनों में जम्मू और कश्मीर दोनों ही क्षेत्रों में महाराजा हरि सिंह के खिलाफ हिंसक मुस्लिम विरोध शुरू हो गया। जिसके नतीजे में 13 जुलाई 1931 को श्रीनगर जेल के बाहर हजारों मुस्लिमों की भीड़ ने जेल पर हमला बोल दिया, जोकि जेल में बंद अब्दुल कादिर को छुड़ाना चाहते थे। भीड़ के हमले को रोकने के लिए प्रशासन ने हल्का बल प्रयोग किया। जिसमें 10 हिंसक प्रदर्शनकारियों की जान चली गयी। इसके विरोध में हिंसक प्रदर्शनकारियों ने श्रीनगर की हिंदू इलाकों और बाज़ारों में दंगा किया। जिसमें हिंदूओं की दुकानें लूट ली गयीं और कईं कश्मीरी हिंदूओं की जान गयीं।
 
 
 
श्रीनगर में सांप्रदायिक दंगे सुलगने के बाद महाराजा हरि सिंह ने इन्हें दबाने में कामयाबी तो पायी। लेकिन दंगों के बहाने शेख अब्दुल्ला एक मुस्लिम नेता के तौर पर उभर चुका था।

 मुस्लिम कॉन्फ्रेंस में फूट ऑर नेशनल कान्फ्रेंस का उदय
 
 
अगस्त, 1936 तक आते-आते मुसलिम कॉन्फ्रेंस ने रियासत में निर्वाचित सरकार की स्थापना की माँग शुरू कर दी, जिसमें महाराजा रियासत के केवल संवैधानिक अधिकार होंगे और शेष शक्तियाँ निर्वाचित सदन के पास आ जाएँ लेकिन कालांतर में मुस्लिम कॉन्फ्रेंस में ही फूट पड़ गई और एक ग्रुप ने 11 जून, 1939 को नई पार्टी का निर्माण कर लिया, जिसका नाम नेशनल कॉन्फ्रेंस रखा गया। इसके अध्यक्ष शेख मोहम्मद अब्दुल्ला बने।
 
 
 
दरअसल कश्मीर के बारे में शेख की राय थी कि, ''वह कभी भी भौगोलिक, सांस्कृतिक व ऐतिहासिक लिहाज से भारत का हिस्सा नहीं रहा। इसके लिए वे ताराचंद नाम के इतिहासकार की गवाही देते हैं। मुसलिम कॉन्फ्रेंस का व्यावहारिक नेतृत्व जम्मू के मुसलमानों के पास था। इसके कारण घाटी का आम मुसलमान इस पार्टी से जुड़ नहीं रहा था। इसलिए शेख अब्दुल्ला ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के नाम से अपनी अलग पार्टी का गठन कर लिया। चाहे नाम इसका भी जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस ही रखा गया, लेकिन इसका दायरा मोटे तौर पर कश्मीर घाटी तक ही सीमित था। नेशनल कॉन्फ्रेंस स्वयं भी अपने संबोधन में अपने आपको घाटी के लोगों का प्रतिनिधि मानती थी। जम्मू, लद्दाख, गिलगित और वल्तीस्तान उसके एजेंडा में नहीं थे। इसीलिए पार्टी ने अपने आंदोलनों का आधार 1846 की अमृतसर संधि को बनाया था। अमृतसर संधि का गिलगित, लद्दाख और बल्तिस्तान से कोई दूर का संबंध नहीं है।
 
 
 
नेशनल कॉन्फ्रेंस का कश्मीर छोड़ो अभियान
 
 
 
1939 में नेशनल कॉन्फ्रेंस के गठन के बाद से शेख अब्दुल्ला ने महाराजा सिंह के खिलाफ नया आंदोलन शुरू किया। ऊपर से चाहे यह आंदोलन पंथ नि दिखाई देता था, लेकिन कहीं गहराई में यह कालांतर में ब्रिटिश हितों की पूर्ति करनेवा था। यह चरण पहले चरण से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण था, क्योंकि इसी चरण में जम्मू के मुसलमानों का, घाटी के शहरी और ग्रामीण विवाद से परे अपना अलग संसार था। दरअसल रियासत में यदि भेदभाव था तो वह क्षेत्रीय आधार पर हो सकता था न कि मजहब के आधार पर। जम्मू संभाग के हिंदू-मुसलमान दोनों को ही सेना में भरती किया जाता था। इसके विपरीत कश्मीर संभाग से हिंदू-मुसलमान दोनों को ही। सेना में भरती किए जाने की मनाही थी। जम्मू के मुसलमानों पर पंजाब का ज्यादा प्रभाव था। सांस्कृतिक लिहाज से भी वे पंजाब के ज्यादा नजदीक थे। इस सामाजिक पृष्ठभूमि के आधार पर ही जम्मू के मुसलमानों के हाथ मुसलिम कॉन्फ्रेंस लगी, जो मुसलिम लीग का ही रूपांतरण था। श्रीनगर के मुसलमानों के हाथ आई बकरा पार्टी और घाटी के कश्मीरी भाषा बोलनेवाले देहाती मुसलमानों की पार्टी बनी नेशनल कॉन्फ्रेंस यानी शेर पार्टी, लेकिन कुल मिलाकर यह सारा राजनैतिक आंदोलन एक प्रकार से मुसलिम आंदोलन ही था। इस आंदोलन ने शुरू से ही अपनी मुसलिम पहचान बना ली थी, क्योंकि इनकी माँगे जम्मू-कश्मीर के संपूर्ण अवाम के अधिकारों को लेकर नहीं था बल्कि मुसलमानों की माँगों को ही थीं। कालांतर में इस आंदोलन का स्वरूप हि । विरोधी होने लगा। उसका लेकर मुख्य कारण यह भी था कि रियासत के महाराजा हिंदू था।

1946 आते-आते सिर्फ रियासत भविष्य का ही नहीं, बल्कि इसके साथ ही भारत के भविष्य का निर्णय होने वाला था। भारत की प्राकृतिक सीमा से छेड़-छाड़कर उसे नए सिरे से निर्धारित किया जा रहा था। 1946 में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 'डोगरो कश्मीर छोड़ो' का नारा देकर पूरे आंदोलन को नया आयाम दिया, लेकिन इस बार डोगरा शासन के खिलाफ यह आंदोलन किन्हीं प्रशासन संबंधी समस्याओं या जन समस्याओं को लेकर नहीं चलाया गया था, बल्कि 1846 की अमृतसर संधि को निरस्त करने के लिए चलाया गया था। शेख अब्दुल्ला की माँग 1846 की संधि रद्द करने को लेकर थी। इस संधि को रद्द करने के लिए माहौल बनाया जाने लगा। डॉ. मोहम्मद इकबाल ने अमृतसर की संधि को लेकर तराने लिखे थे, जिसे शेख अब्दुल्ला कश्मीर घाटी में गाते फिरते थे। अमृतसर संधि को रद्द करने का अर्थ था कि कश्मीर घाटी फिर से ब्रिटिश सरकार के पास आ जाती। ऐसा हो जाने पर कश्मीर घाटी ब्रिटिश इंडिया का हिस्सा बन जाती और मुसलमान बहुलता के सिद्धांत को बहाना बनाकर उसे भारत स्वतंत्रता अधिनियम में पाकिस्तान को दिए जानेवाले इलाकों में शामिल किया जा सकता था। यह आंदोलन भारत की शेष रियासतों में चलाए जानेवाले प्रजा मंडल आंदोलनों से अलग किस्म का था। वहाँ आंदोलन रियासतों के शासकों को हटाने को लेकर था, लेकिन जम्मू-कश्मीर में आंदोलनकारी शासक को रियासत के केवल एक हिस्से से चले जाने के लिए रहे थे। उसका कारण भी केवल इतना ही बताया जा रहा था कि महाराजा हिंदू था। यह पूरी रियासत से राजशाही आंदोलन को समाप्त किए जाने के लिए नहीं था।"
 
 
आंदोलन नारा ही डोगरो कश्मीर छोड़ो था। यह आंदोलन अपने मूल स्वरूप में आंदोलन था और शेख अब्दुल्ला इस स्वरूप को कभी छिपाते भी नहीं थे। या प्रजहब के नाम पर रियासत के विभिन्न समुदायों को बाँटकर चलाया जाने वाला ये आंदोलन अपने मूल स्वरूप में जन विरोधी तो था ही, लेकिन उस समय वातावरण में सांप्रदायिक हिंसा को भड़कानेवाला भी था। |लेकिन दुर्भाग्य से इस चरण में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भी महाराजा हरि सिंह के साथ खड़े न होकर शेख अब्दुल्ला के समर्थन में जा खडी हई । कांग्रेस ने अन्य रियासतों की आंतरिक राजनीति में अहस्तक्षेप की नीति अपनाई हुई थी, लेकिन जम्मू-कश्मीर को । उसने इस मामले में अपवाद माना। इसका एक कारण शायद यह भी हो सकता है कि कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर में मुसलिम कॉन्फ्रेंस और नेशनल कॉन्फ्रेंस द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन को अन्य रियासतों में राजशाही के खिलाफ चलाए जा रहे प्रजा मंडलों के आंदोलनों के समान ही समझा। यह कांग्रेस की भारी भूल थी। | शेख अब्दुल्ला गिरफ्तार कर लिये गए और उन पर मुकदमा चला, लेकिन सभी को आश्चर्य हुआ, जब इस पूरे मामले में दिल्ली से पंडित जवाहर लाल नेहरू इस मामले में कूद पड़े। उन्होंने शेख अब्दुल्ला के पक्ष में श्रीनगर में आने की घोषणा कर दी, यहाँ तक कि उनकी अपनी पार्टी भारतीय नेशनल कांग्रेस भी इस पक्ष में नहीं थी। नेहरू के इस व्यवहार से रियासत में सांप्रदायिक दंगे भड़क सकते थे, लेकिन शेख अब्दुल्ला के मुकदमे की पैरवी के नाम पर पंडित जवाहर लाल नेहरू श्रीनगर के लिए चल पड़े। उस समय रियासत में जिस प्रकार का उत्तेजक वातावरण था, उसमें नेहरू के आने से। हालात बिगड़ सकते थे। अत: प्रशासन ने उन्हें कोहाला के पास एक सरकारी गेस्ट हाउस में ठहराकर आगे जाने की अनुमति नहीं दी। उन दिनों अंग्रेजी राज की समाप्ति की कार्यविधि पर दिल्ली में निरंतर विचार-विमर्श हो रहा था। कांग्रेस में उनके साथी उनके इस प्रकार अचानक श्रीनगर जाने के निर्णय पर हैरान थे। उन्होंने उन्हें तुरंत वापस दिल्ली आने के लिए कहा। अत: नेहरू उस राजकीय अतिथि गृह से ही वापस दिल्ली चले गए। बाद में जल्दी ही वे पुनः श्रीनगर गए और जेल में शेख अब्दुल्ला को मिले, लेकिन शेख अब्दुल्ला न्यायालय में हार गए और उनको इस मुकदमे में सजा हो गई। कालांतर में नेहरू ने इस घटना को व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया और महाराजा हरि सिंह के खिलाफ अभियान छेड़ दिया। 
 
 
  
जिसके नतीजे में जम्मू कश्मीर के अधिमिलन के समय नेहरू ने महाराजा हरि सिंह को जेल में बंद शेख अब्दुल्ला को बाहर निकाल सत्ता सौंपने के लिए मज़बूर किया। नतीजा ये हुआ कि लगभग 20 सालों की साजिश के बाद जम्मू कश्मीर शेख अब्दुल्ला के हाथों में आ चुका था।



Wednesday, 20 July 2022

एक्टिवीस को तीन बातें ध्यान करने वाली.

  Date:20 Jul 2022

      सामाजिक कार्यो मे एक्टिव और प्रयासिल व्यक्ति को ध्यान करने वाली बातें .

नं १ - अगर आप किसी कार्यों को निर्धारित कर चुके हे प्रोग्राम करना हो या फिर संस्थान बनाने को लेकर उस्से कभिो पिछी ना हतना.

नं २ - आम जन जिवन जिने वाले व्यक्ति जो आपसे मजबूत संपर्क ना बना सका हो  कोई अहम भुमिका ना निभाता हो उसकी बातों मे सिर्फ नोट करे अमल करने के लिये फैसला करने मे उसका इस्तेमाल ना करे.

नं. ३ -  संगठन अपने विचारो पर आधारित होता हे वो समाज के आम विचारो के साथ कभी नही चलता हे.

Tuesday, 19 July 2022

हदीस की किताबे हिंदी PDF

 


https://islamic1articles.home.blog/2022/02/11/hadith-books-in-hindi-pdf/

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Thursday, 14 July 2022

कैंसर को हराएगी समय पर इलाज और मरीज की बीमारी से लड़ने की इच्छाशक्ति


कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसका समय पर इलाज नहीं होने के कारण मरीज की जान जाने की भी संभावना होती है लेकिन डाक्टरों का कहना है कि समय पर बीमारी की पहचान करने और इलाज कराने से बहुत लाभ मिलता है। बीमारी के शुरुआत में पहचान और इलाज मरीज को सस्ता होने के साथ फायदेमंद होता है। डाक्टरों का कहना है कि अक्सर लोग मानते हैं कि कैंसर बीमारी हो गई है तो मृत्यु तय है लेकिन यह धारणा गलत बनी हुई है। आज बेहतर इलाज संभव है। मरीज को डाक्टर पर विश्वास करने के साथ अपने अंदर बीमारी से लड़ने की इच्छाशक्ति बनानी होगी। मंगलवार को दैनिक जागरण ने अपने हेलो जागरण कार्यक्रम में नारायणा अस्पताल के कैंसर विशेषज्ञ डा. प्रवीण मेंहदीरत्ता तथा डा. शिल्पी शर्मा को शामिल किया। डाक्टरों ने दोपहर 12 से एक बजे तक फोन पर कैंसर से बचाव तथा लक्षण जानने के साथ इलाज के बारे में दर्जनों लोगों को सलाह दी। डाक्टरों ने कहा कि जीवन बचाने के साथ-साथ सस्ता इलाज लेने के लिए कैंसर की समय पर पहचान करनी होगी। कैंसर विशेषज्ञों का कहना है कि कैंसर के प्रति लोगों में जागरूकता कम है। महंगे इलाज के डर में लोग बीमारी को गंभीर बना रहे हैं। डाक्टरों ने कहा कि जल्द इलाज लेना सस्ता भी होता है और जीवन बचाता है।

पांच से 14 वर्ष के बच्चों में मृत्यु का नौवां बड़ा कारण कैंसर है। बच्चों में 10 प्रकार के कैंसर देखने में पाए गए हैं। एक्यूट ल्यूकेमिया, ब्रेन ट्यूमर, लिम्कोमा,न्यूरोब्लास्टोमा, विल्म ट्यूमर, रेटिनोब्लास्टोमा, साफ्ट टिश्यू सरकोमा शामिल है। डाक्टरों का कहना है कि इसमें बच्चों में सबसे अधिक एक्यूट ल्यूकेमिया (ब्लड कैंसर) है। इसमें हीमोग्लोबिन का स्तर कम होना, श्वेत रक्तकण कम होना और कई बार अधिक हो जाना, प्लेटलेट्स कम होना लक्षण है। लेकिन यह होने का मतलब यह भी नहीं है कि यह कैंसर के लक्षण ही है। बच्चों में बेवजह बुखार आना और आलस होना, रक्तस्त्राव, हड्डी में दर्द, गर्दन में दर्द की शिकायत रहना।

चिता चिता समान है

मरीज जितना खुश रहेगा, उसके शरीर में बीमारियों से लड़ने वाली रोग प्रतिरोधक शक्ति ज्यादा पैदा होगी। किसी भी बीमारी से ग्रस्त मरीज को खुश रखा जाए तो उसे दवा से ज्यादा फायदा होगा। कैंसर का मरीज चिता ज्यादा करता है। यही कारण है कि कैंसर का मरीज जल्द बीमारी की जकड़ में आता है। जो मरीज ज्यादा चितित रहता है उसपर दोहरी मार होती है। क्योंकि उसके बीमारी शरीर को खोखला कर रही है और उसका साथ चिता दे रही है।

पहचानें इन लक्षणों को


 गर्भाशय कैंसर के अंदर कोशिका की हानिकारक वृद्धि तेजी से होने लगती है। गर्भाशय कैंसर के शुरुआती लक्षणों में पीरियड्स के बीच असामान्य खून बहना, दर्द होता है। हार्मोन असंतुलित होने से अंडाशय एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन नाम के दो हार्मोन पैदा करते हैं। एंडोमेट्रियल कैंसर के खतरे को बढ़ा सकता है। - कैंसर का समय पर इलाज नहीं होने से इलाज में लगने वाला खर्च बच जाएगा। आज भी ब्रेस्ट कैंसर और गर्भाशय कैंसर का इलाज तब शुरू होता है जब वह बीमारी गंभीर हो चुकी है। यही हाल पुरुषों में है। गले का कैंसर होने के शुरुआती दौर में परेशानी शुरू हो जाती है लेकिन डाक्टर से जांच नहीं कराई जाती। - सबसे बड़ी परेशानी यह है कि महिला बीमारी की शुरुआत में बोलती नहीं है। वह लंबे समय तक दर्द और बीमारी सहन करती रहती है। यही कारण है कि बीमारी गंभीर रूप ले लेती है। अगर समय पर जांच हो जाए, तो बीमारी गंभीर नहीं हो पाती है। ब्रेस्ट और गर्भाशय कैंसर के लक्षण बहुत शुरुआती दौर में महसूस किए जा सकते हैं। - महंगी जांच भी कैंसर का कारण है। क्योंकि लोग महंगे खर्च के कारण समय पर जांच नहीं करा रहे हैं लेकिन समय पर जांच नहीं कराने से बीमारी गंभीर हो जाती है और इलाज भी अधिक महंगा हो जाता है। इसलिए कैंसर के लक्षणों की समय पर पहचान कर इलाज कराने में देरी ना करें।

लाइफ स्टाइल के कारण कैंसर का खतरा:

बड़े शहरों में बदलती लाइफ स्टाइल भी कैंसर का एक कारण बन रहा है। इसमें खान-पान बड़ा कारण है। आज बहुत बड़े स्तर पर लोग फास्ट फूड का सेवन कर रहे हैं। फास्ट फूड से हमारा पेट भर जाता है लेकिन शरीर को पौष्टिक तत्व नहीं मिलते। स्ट्रीट फूड और फास्ट फूड सामग्री में मिलाए जाने वाले केमिकल कार्सिनोजेनिक यानी कैंसर का कारण बन रहे हैं। यही कारण है कि हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है।

तला हुआ खाना:

बड़े शहरों में बड़े स्तर पर यह देखा गया है कि अधिकतर युवा तला हुआ बहुत खाते हैं। डाक्टरों का कहना है कि जब हम खाने की सामग्री को बहुत गर्म तेल में तलते हैं और उसमें हेट्रोसाइक्लिक अमीन और ग्लाइसेशन बनता है।

तंबाकू और धूमपान:


आज युवाओं में धूमपान करना एक स्टेटस सिबल बन रहा है लेकिन वह लोग समझ नहीं रहे हैं कि वह अपने को बीमारी के करीब लेकर जा रहे हैं। युवा लड़के और लड़कियां धूमपान करने को स्टेटस सिबल समझ रहे हैं। डब्ल्यूएचओ के अनुसार देश में 10 फीसदी लड़कियां धूमपान कर रही है और देश का 15 से 35 वर्ष तक के युवा ज्यादा सेवन कर रहे हैं। देश में हर रोज पांच हजार से अधिक बच्चे धूमपान की शुरुआत करते हैं। आज देश में 35 से 40 प्रतिशत लोग किसी ना किसी रूप में धूमपान कर रहे हैं।

गले के कैंसर के लक्षण:

- तंबाकू और गुटखा खाने वालों को मुख का कैंसर हमेशा संभव है। तंबाकू का सेवन बंद कर देना चाहिए।

- गाल, जबड़ा या मसूड़ों से जुड़े हुए छाले होने और जल्द ठीक नहीं होना कैंसर के लक्षण है।

- गाल और जीभ के कैंसर के कारण बोलने में कठिनाई और बदलाव होते है। जब आवाज बदले तो डाक्टर को दिखाएं।

- कैंसर होने पर खाना निगलते समय गले में दिनोंदिन अटकाव महसूस होना कैंसर सूचक मानना चाहिए।

- कोई आशंका हो तो डाक्टर से मिलें।

- डाक्टरी सलाह के अनुसार उचित समय कैंसर के लिए अपनी जांच करा लें।

. मेरा नाम अजय है। डाक्टर साहब मैं धूमपान करता हूं। क्या कैंसर हो सकता है।

- देखिए कैंसर का खतरा पूरा रहेगा लेकिन बहुत से लोग ऐसे हैं कि वह ताउम्र धूमपान करते हैं और उन्हें कैंसर नहीं होता है। वही लोग प्रचार करते हैं कि धूमपान से कैंसर नहीं हुआ। जबकि कैंसरग्रस्त मरीजों को संख्या देखो जो धूमपान के कारण कैंसर ग्रस्त हुए हैं। धूमपान से कैंसर ही नहीं टीबी होने का भी खतरा रहता है। जो धूमपान, तंबाकू और शराब का सेवन करते हैं उन्हें गले का कैंसर होने का खतरा अधिक रहता है। सबसे अधिक खतरा तंबाकू, धूमपान का सेवन करने से रहा है और दूसरा कारण शराब होता है।

. मेरा नाम रामकरण सिंह है। मेरे गले में कई बार दर्द रहता है और दो-तीन दिन बाद स्वयं ठीक हो जाता है। क्या यह कैंसर के लक्षण है?

आपके बताए मुताबिक आपको यह समस्या लंबे समय से है । देखिए यह कैंसर नहीं है लेकिन आपको जांच करा लेनी चाहिए। मुझे लगता है आपको टौंसिल होते हैं और आप ध्यान रखें कि यह क्या खाने से आपको होते हैं और उस सामग्री को खाने से बचें। . मेरा नाम गौतम है। मुंह में छाले होते रहते हैं। क्या यह कैंसर होने के लक्षण है?

- इसके कई कारण हो सकते हैं। आप का कहना है कि आप धूमपान नहीं करते हैं और न तंबाकू खाते। आपको छालों की समस्या भी पुरानी है तो यह आपको अन्य कारणों से समस्या है। आप किसी फिजिशियन डाक्टर को दिखाएं। कई बार पेट में समस्या होने के कारण यह परेशानी होती है। . मेरा नाम नताशा और आयु 34 वर्ष है। मेरे ब्रेस्ट की साइड में गांठ है लेकिन दर्द नहीं है। क्या कैंसर होने की संभावना है?


दर्द नहीं होने का मतलब नहीं है कि कैंसर नहीं है। आप जांच जरूर कराएं। जांच कराना कोई महंगा नहीं है। जरूरी नहीं है कि गांठ होना कैंसर ही है लेकिन जांच कराना बहुत जरूरी है। हम दर्द नहीं होने कारण कई बार जांच नहीं कराते हैं और लंबे समय के बाद पता चलता है कि वह कैंसर है और तीसरी-चौथी स्टेज का कैंसर है। ऐसे में मरीज का बेहतर इलाज संभव नहीं होता और अधिक महंगा होता है। . 12वीं कक्षा में मैंने धूमपान करना शुरू कर दिया था। दस साल से लगातार धूमपान कर रहा हूं। क्या कैंसर का खतरा है?


खतरा रहेगा लेकिन कैंसर हर हाल में होगा, ऐसा कहना ठीक नहीं है। अगर संभव हो तो आप धूमपान छोड़ दें। देखिए, जो लोग धूमपान नहीं करते हैं और वह उनके साथ रहते हैं जो धूमपान करते हैं तो उसके अंदर भी वह धुआं जाता है जो धूमपान नहीं कर रहा है और उन्हें भी नुकसान करता है। अब सोचिए कि जो धूमपान कर रहा है उन्हें कितना खतरा होगा। वैसे भी गुरुग्राम और एनसीआर के शहरों में पहले ही वायु प्रदूषण का कहर रहता है। यहां पर हर व्यक्ति सांस के द्वारा अपने अंदर जितना धुआं लेता है वह रोजाना 20 सिगरेट पीने के बराबर है। . डाक्टर साहब मैं जानना चाहता हूं कि कौनसा तंबाकू कैंसर बीमारी का कारण होता है?


यह सही है कि तंबाकू अलग-अलग तरह के हैं लेकिन यह करना कि कौन से तंबाकू से कैंसर होने का खतरा रहता है और कौन से तंबाकू से कैंसर नहीं होता है, ऐसा कुछ नहीं है। आप कोई भी तंबाकू का सेवन करते हैं वह कैंसर का कारण बन सकता है। . डाक्टर साहब मैंने एक भी ऐसा मरीज नहीं देखा जो कैंसर से ग्रस्त था और स्वस्थ हो गया।

- आप हमारे पास आएं, हम ऐसे दर्जनों मरीजों से मिलाएंगे, जो कैंसर से ग्रस्त थे और आज स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। उन्होंने समय पर इलाज लिया और बीमारी को हरा दिया। कैंसर के इलाज में समय का बहुत महत्व होता है। अगर आपने बीमारी गंभीर कर ली तो डाक्टर के लिए बेहतर इलाज देना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। . क्या व्यायाम करना कैंसर से बचाव है?

- व्यायाम करना कैंसर ही नहीं, अन्य बीमारियों से बचाव होता है। व्यायाम करने के साथ पौष्टिक आहार के सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। . क्या बच्चेदानी के कैंसर की पहचान पहले की जा सकती है?


बच्चेदानी के कैंसर ही ऐसी बीमारी है जो शुरुआत में ही पहचान ली जाती है। बस महिला को अपनी बीमारी के संबंध में छिपाना नहीं चाहिए। अगर छिपाया जाता है तो बीमारी गंभीर हो जाएगी। बच्चेदानी से गंदे पानी का रिसाव, महामारी का अनियमित होना, सहवास के समय खून आना, कमर या पैर में अधिक दर्द होना और पेशाब में रुकावट इसके शुरुआती लक्षण हैं। बच्चेदानी के मुंह का कैंसर महिलाओं में होने वाले कैंसर में दूसरे स्थान पर आता है। . मेरा नाम महावीर है। मुझे वर्ष 2006 में गले का कैंसर हुआ था। अब आपरेशन के बाद सिंकाई चल रही है। क्या दोबारा कैंसर होने का खतरा है?

- जैसा आपने बताया कि आपने वर्ष 2010 में कैंसर का आपरेशन कराया था। अब आपको सावधानी बरतने की जरूरत है। ऐसे में आप समय-समय पर अपने डाक्टर से मिलते रहें और जांच कराते रहें। आपने बताया कि आपको नसों में खिचाव महसूस होता है तो आप एक बार सीटी स्कैन कराइए और जिस डाक्टर से आपका इलाज चल रहा है उनको दिखाइए। . मेरा नाम जय प्रकाश मिश्रा है। मुझे जानना है कि कैंसर होने के क्या कारण होते हैं?


देखिए, कैंसर होने का कोई एक कारण नहीं होता है। अगर कैंसर बीमारी का समय पर पता लग जाए तो बेहतर और सस्ता इलाज संभव है। मरीज के पूरी तरह ठीक होने के चांस अधिक होते हैं। अगर आप सावधानी की बात कर रहे हैं तो सभी प्रकार के मादक पदार्थों का सेवन छोड़ दें। अधिकतर बीमारियां मादक पदार्थों के सेवन से होती हैं। . मेरा नाम मनोज कुमार है। मेरी बहन को ब्रेस्ट कैंसर है। क्या वह पूरी तरह से ठीक हो सकती है?

- जी, आप अभी कहां इलाज ले रहे हैं। कैंसर के पहली और दूसरी स्टेज में प्रयास रहता है कि मरीज को आपरेशन की नौबत न आए। आपकी बहन को कैंसर की कौन सी स्टेज है इसपर निर्भर करता है वह पूरी तरह ठीक हो पाएंगे या नहीं। लेकिन आप किसी प्रकार की लापरवाही न बरतें। . मेरा नाम जतिन है। मुझे फूड पाइप और सांस नली के बीच में कैंसर है?

- आपको कब पता चला कि आपको कैंसर है। देखिए, अभी आप जहां इलाज ले रहे हैं, अपने डाक्टर के बताए अनुसार जांच और इलाज लेते रहिए। घबराइए मत, कैंसर लाइलाज बीमारी नहीं है। मरीज घबराएं नहीं बल्कि सावधानी बरतें और इलाज लेते रहें। . मेरा नाम अंजलि है। मुझे ब्रेस्ट में कई बार दर्द होता है। क्या मुझे ब्रेस्ट कैंसर है?

- आप घबराएं नहीं, ब्रेस्ट में दर्द कई कारणों से होता है। क्या आपको ब्रेस्ट में कोई गांठ दिख रही है या कोई और समस्या महसूस हो रही हो डाक्टर से मिलें। डाक्टर ठीक प्रकार से जांच कर आपको सही जानकारी दे सकेंगे। . मेरा नाम अनिल कुमार है। मुझे हड्डी में कैंसर है। क्या यह कैंसर फैल सकता है?


देखिए, आपको शरीर में किसी और जगह कैंसर होगा जोकि बढ़ कर हड्डियों तक फैल गया है। यह कैंसर आगे न फैले इसके लिए आप दूध और दूध से बनी चीजें खाइए। आपने बताया कि कैंसर की दूसरी स्टेज है। अभी आप जहां से इलाज ले रहे हैं वहां से लेते रहिए। .मेरा नाम ज्योति है। मेरे जानने वाले हैं जिन्हें फूड पाइप में कैंसर है और अंतिम स्टेज मे हैं। क्या वह पूरी तरह ठीक हो पाएंगे?

- कैंसर लाइलाज बीमारी नहीं है। बस हमें सतर्क रहना होगा। शरीर में किसी प्रकार का बदलाव दिखे तो डाक्टर से संपर्क करें। कहीं पर आपको गांठ हो रही है तो उसे नजरअंदाज न करें बल्कि डाक्टर को दिखाएं और ठीक से जांच कराएं। अंतिम स्टेज में ठीक होने के चांस 40 प्रतिशत होते हैं। . मेरा नाम राजपाल है। मेरा पैर और कमर कई बार सुन्न हो जाता है और दर्द होता है। क्या यह कैंसर के लक्षण हैं?

- नहीं, यह कैंसर का कारण नहीं है। आप फिजिशियन को दिखाएं। यह कैंसर से संबंधित बीमारी नहीं है। आपको कोई और दिक्कत होगी जो फिजिशियन से मिलकर ठीक हो पाएगी। . मेरा नाम महेंद्र सिंह है। मेरी पत्नी को ब्रेस्ट कैंसर था। सर्जरी होने के बाद कई बार ब्रेस्ट में दिक्कत रहती है।


आपने जहां सर्जरी कराई थी वहां जाकर डाक्टर से मिलें। वह कुछ जांच करेंगे उसके बाद ही स्पष्ट हो पाएगा कि क्यों यह दिक्कत हो रही है। आप एक बार आकर हमें यहां अस्पताल में दिखा सकते हैं। अपनी पुरानी रिपोर्ट भी साथ लेकर आएं। . मेरा नाम राकेश है। मुझे सिर में गांठ है। यह कई सालों से है। क्या मुझे कैंसर का खतरा है?

- क्या आपने गांठ की कोई जांच कराई है। अगर नहीं तो एक बार करा लीजिए। घबराने की जरूरत नहीं है। यह रसोली या अन्य गांठ भी हो सकती है। लेकिन इसको नजरअंदाज न करें। एक बार जांच करा लीजिए। बहुत सी ऐसी गांठ होती हैं कि वह दर्द नहीं करती है लेकिन आगे चलकर गंभीर बीमारी बना देती हैं। इसलिए किसी भी बीमारी का इलाज स्वयं न करें, उसे डाक्टर को जरूर दिखाएं। डाक्टर को तय करने दें, कि वह कौनसी बीमारी है या नहीं।


Wednesday, 13 July 2022

Bodeli Mesag Viral

 *ખીદમત અને સેવા ના નામ પર ઉમ્મત માં ફૂટફાટ અને વિભાજન કરનારા ને ઓળખો,*

*"બોડેલી" ખાતે કુદરતી આફત સમયે પણ માનવતા ને શર્મસાર કરનાર કિસ્સો બહાર આવ્યો*

બોડેલી ખાતે કુદરતી હોનારત સર્જાઈ વરસાદી પાણીમાં હજારો લોકો જ્યાં બેઘર થયા લોકોને ખાવાના ફાંફા હતાં અને આવા સમયે જયારે લોકો ધર્મ અને નાત જાત નો પણ ભેદભાવ રાખ્યા વિના એકબીજાને મદદરૂપ થાય છે ત્યારે અમુક જાહીલ અને ફીરકા પરસ્ત લોકો આવા સમયે પણ નફરત અને ભેદભાવ વાળી વાતો કરતા હોય છે, 
વાત એમ બની કે બોડેલી ખાતે વરસાદ માં અસરગ્રસ્તો ને મદદ માટે એક અપીલ બહાર પડી જેમાં મદદ માટે નો એક કોન્ટેક્ટ નંબર *ઇમરાન ભાઈ મેમણ* નો હતો, ભરૂચ થી એક સેવાભાવી અને નિસ્વાર્થ રૂપે મદદ કરવા માટે એક ભાઈએ તેમનો કોન્ટેક્ટ કરીને ત્યાંની હાલત અને તહકીક કરીને દિલાસો આપ્યો કે અમે પણ ભરૂચ થી કોશિશ કરીને તમને મદદ પહોંચાડીશું તો સામે થી એ ભાઈએ કહ્યું કે "ટ્રસ્ટ હુજુર શેખુલ ઇસ્લામ મદની મિયાં" ના હાથ નીચે ચાલે છે અને આ ગ્રુપમાં ફક્ત સુન્ની લોકોની મદદ માટે નું નક્કી કર્યું છે" આમાં જમાતી લોકોનું કવર નથી કરતા, 
આ કેવી ખતરનાક માનસિકતા છે, શું પોતાને સુન્ની અને મદની કહેવડાવતા અને આશિકે રસુલ નો દાવો કરતા આ દંભીઓને નબવી તાલીમ ખબર નથી કે અલ્લાહ ના રસુલે રિફાએ આમ માં કોઈ ધર્મનો પણ ભેદભાવ નથી રાખ્યો તો એકજ અલ્લાહ અને એકજ રસુલ એકજ કુરઆન એકજ કિબલાને માનનારાઓ માટે આ લોકો કેવી રીતે અલગ કરી શકે છે? 
શું આ લોકો પોતાની દુકાનોમાં પણ આ રીતે ભેદભાવ કરે છે? 
શું તેઓ પોતાની મસ્જિદ અને મદ્રેસા બનાવવાના ચંદા ઉઘરાવવામાં પણ આ રીતે ભેદભાવ કરે છે? 
લોકડાઉનમાં અનાજ ની કીટો લેતી વખતે આ વિચાર ના આવ્યો? 
અને જયારે બધાજ મસલક અને ફિરકાના લોકો મૌત સામે જજુમી રહ્યાં હતાં ત્યારે વધુ પડતી જગ્યાએ કોવિડ સેન્ટરો માં મદદ કરવા માટે દરેકનો હિસ્સો લાગેલો હતો તેવા સમયે આ ફીરકા પરસ્તિ ક્યાં ગાયબ હતી? 
સારવાર લેતી વખતે કોઈએ પણ એ નથી જોયું કે જ્યાં હું સારવાર લઈ રહ્યો છું એ ક્યાં મસલક ના માનનારાઓ એ મદદ કરી છે? 
આવા દંભીઓ ત્યારે ક્યાં હતાં જયારે એમના પરિવાર ના સદસ્યો ના ઈલાજ માટે જે ડોકટરો સેવા આપતા હતાં તે અલગ અલગ મસલક અને ફીરકા ને માનનારા હતાં? 
મુસ્લિમોને તોડવા માટે અને અંદરો અંદર ફાટફૂટ માટે "આર એસ એસ" જે કામ કરી રહ્યું છે તેને વધારે આસાન બનાવવાનું કામ શું આ *દંભી* અને *તકસાધુ* બની બેઠેલા *રેહબરો* અને સઁસ્થાઓ ના *જીમ્મેદારો* કરી રહ્યાં છે? 

મુસ્લિમ સમાજ હવે સારી રીતે ઓળખે આ તકસાધુ અને કૌમ ની એકતા ને તોડનારાઓ ને, આવા લોકોની ધૃણાસ્પદ માનસિકતા ને નાબૂદ કરવા માટે હવે સમાજના બુદ્ધિજીવીઓ આગળ આવે તો સારું છે નહીં તો આ પોતાને કૌમના રેહબર અને લીડર બતાવનારાઓ આ કૌમને ડુબાડી દેશે, 
અલ્લાહ આવા નફરતના સોદાગરો થી ઉમ્મત ની હિફાઝત ફરમાવે, આમીન.

_____________part-2_____________

અસ્સલામુઅલયકુમ…

ઘર ફુટે ઘર જાઈ.. એક તરફ કુદરતી આફત અને બીજી તરફ આકાઓ ની ફીરકાપરસતી કરીને મુરતદ બની રહેલી કોમ…

અંધકારથી રોશની તરફ અને અંધશ્રદ્ધા છોડી ફીરકા પરસ્તી ત્યાગી હીદાયત ના રોશન માર્ગ ઉપર આવવા ફાંફા મારતી મારી ગુજારાતી કોમ માટે કુરઆન કરીમ, હદીસે નબવી સઅવ.. શરીયત અને સીરત નબવી સઅવ કાફી છે જ્યારે .. બોડેલી ના જનાબ ઈમરાન ભાઈ મેમણના આલા હઝરતનુ બનાવેલું બંધારણ કોમ ઉપર આવેલી કુદરતી આફત વખતે પણ કોમને ઉગારવા કરતા ડુબાવવાનું ફીરકાપરસતી કામ છોડત નથી…
એક ભાઈ આલા હઝરતનો વાસતો આપે છે અને બીજો હઝરત અકદસ મુફતી અહમદ ખાનપુરીનો વાસતો આપે છે.. પોતપોતાની ઓળખાણ અને આગવી પહેચાન પોતપોતના બનાવેલા માઅબુદો આલા હઝરત અને મુફતી ખાનપુરી સાથે જોડાયેલા છીયે એમ ગર્વથી કહી રહ્યા છે.. એક ભાઈ કોમને તમામા જાતીવાદ ભુલાને ઈન્સાનીયતના રીશતે મદદ કરવા ચાહે છે જ્યારે બીજો ભાઈ સુન્ની બરેલવી આલા હઝરતનુ ફીરકાપરસતી નુ બંધારણ ને સર્વોપરી ઠેરવીને તબ્લીગી જમાઅતી પાસે મદદ લેવાનું સ્પષ્ટ ઈનકાર કરે છે…
આ સાથે એક વીડીયો ફોરવરડ કર્યો છે… કંપકંપી આવી જશે… આતંકવાદી કોમવાદી હીદુંત્વનુ ઝનૂની ઝેર સમાજમા કેવું રેડવામા આવ્યું છે તે વીડીયો જોવા પછી તબ્લીગી ખાનકાહ જમીયતીઓ / સુન્ની બરેલવી ને સવાલ કરો કે જે નીર્દોષ મુસલમાનને તલવારથી વીંઝી નાંખ્યો તે કંઈ જમીયતનો હતો? 

બોડેલીના ઈમરાન ભાઈ મેમણ.. તમે જરા ધ્યાનથી આ વીડીયો જુઓ અને પછી જવાબ આપશો એવી વીનંતી છે ..


*મો. અરશદ મદની કે મુફતી મહમુદ મદની ફીરકાનો હતો*?  
*દેવબંદી હતો કે બરેલ્વી*? 
*આલા હઝરતનો મુરીદ હતો કે મુફતી અહમદ ખાનપુરી નો*?
*ખાનકાહી કે તબ્લીગી હતો*? 
*તબ્લીગી હતો તો સાદયાની કે શુરાની તબ્લીગ નો હતો*? 
*મરકઝના ઈજતેમામા  જતો હતો કે દરગાહના ઉર્સ ઉપર જતો હતો*? 
*જમાઅતે ઈસ્લામી વારો હતો કે એહલે સુન્નત વારો હતો*? 
*ઉવૈસીની પાર્ટીનો હતો કે કોંગ્રસ પાર્ટીનો હતો*? 

જેનું દીન દહાડે ખુલ્લે આમ કતલ કરવામા આવ્યું તેને માત્ર અને માત્ર મુસલમાન સમજીને કોમવાદી આતંકાવાદીઓ એ વીંઝી નાંખ્યો…તલવારથી વીંઝી નાંખવામા પહેલા એને પુછયુ  નહી કે તુ કયા ફીરકાનો છે? 

જો આ વીડીયો જોવા પછી પણ જાતીવાદ અને ફીરકાપરસ્તી નહી છોડીયે તો શુ જીબ્રઈલ ફરીશતા ને વહી લઈને આવવની રહા જોઈ રહ્યા છો… એક જુથ થાઓ એક ઉમ્મત બનો.. ચાલોને ઈમરાન ભાઈ મેમણ એક કદમ તમે ઉપાડો ચાર કદમ હમે ઉપાડીયે… મીટાવી દઈએ તમામ ફીરકાપરસતી.. દેવબંદી અને બરેલવી તમામાં બની બેઠેલા ફીરકાપરસ્ત આકાઓ ને જાકારો આપીયે અને ફરીથી અલ્લાહના પ્યારા નબી સઅવની એક ઉમ્મત બની  જઈએ… તમને યા રસુલ્લાહ પઢીને સલામ કરવા ઉપર બીદઅતનો ફતવો આપવા વારા મદારીઓ યા રસગુલ્લા ખાઈને કરોડોપતી બની ગયા છે.. પીસાઈ રહ્યો છે તો સામાન્ય મુસ્લીમવર્ગ જેને બંન્ને બરેલવી અને દેવબંદી આકાઓ ઉમ્મત બનાવીથી વંચીત રાખ્યો છે.. જો આપણે એક ઉમ્મત બની જઈશું તો આ કચકડાના કૌભાંડી આકાઓ ના ભુખે મરવાના દીવસો આવશે… 
મારી ગુજરાતી કોમ..કુરઆન અને હદીસે નબવી સઅવ આપણું બંધારણ છે .. શીક્ષીત બનો અને એક તાકાત બનીને .. અને કુરઆન અને હદીસે નબવી સઅવની શરીયત આધીન ભારત દેશના વીશાળ અને વીરાટ સંવીધાને આપેલા હક્ક પ્રાપ્તી માટે સંધર્ષ કરવા કટીબધ્ધ થાઓ… કચકડાના બની બેઠેલા અકાબીરો ને જાકારો આપો અને એક કાબીલ લીડરશીપ હેઠળ પોતાના અસતીત્વને બચાવવાની લડત લડો.. અલ્લાહના પ્યારા નબી સઅવની શાનમા ખુશતાખી કરવાવારા વીરુધ કોઈ એક શબ્દ નહી બોલી શકનારા કાકા/ ભત્રીજા દેવબંદના મદનીઓ, અને સુન્ની બરેલ્વીઓ અકાબીરો,  5G કૌભાંડી નેટવર્કનો મહા માફીયા મહાગુરુ ઘંટાલ બાલઠાકરેજી મુફતી ખાનપુરી,ઐતીહાસીક  બાદશાહી મસ્જીદની ૩૨ એકર વકફ જમીન હડપી ગયેલો મોલ્વી ગુલામ  વસ્તાનવી, અલ ફેંકું વલ ભોંકુ મોલ્વી લુહારવી, ચતુર મનનો માનવી મુફતી મહમુદ બારડોલી બીરબલ , ૨૧મી સદીના બુરાક ઉપર ઉડતો અમીરુલ ફકીર મોલ્વી રશીદ અજમેરી , મોલ્વી કયામત મોલ્વી ખલીલ દીવા, તકવા અને પરહેઝગારીના ઉંચા મુકામ ઉપર હોવાનો દાવો કરનાર મુફતી રશીદ લાજપુરી અને જીવનમાં એક તહ્જ્જુદ પણ કઝા નથી થઈ એવો દાવો કરનાર મુફતી અબ્બાસ બીસ્મીલ્લાહ અને મોલ્વીવુડનો નાનાપાટેકર તાંત્રિક કારી અહમદઅલી જેવા અકાબીરો ને હજુ કેટલા અજમાવશો.. કોમ સમક્ષ ઉઘાડા પડી ગયેલા આકાઓ સફેદલીબાસમા ધોળે દહાડે ફરતા નાગાબાવાઓ મદારીઓને જાકારો આપો…

અલ્લાહ તઆલા મારી અને ઉમ્મતની ગુમરાહી અને ગુમરાહ સફેદઉંદરડાઓથી હીફાઝત ફરમાવે.. આમીન 

ઈદરીસ નવલખી
૧૩ જુલાઈ ૨૨
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તાક: જમીયતનો મુશરીક મુફતી મહમુદ મદનીને આ સાથે ફોરવરડ કરેલ વીડીયો દેખાડીને પુછશો કે *અત્યાચાર સહી લઈશુ પણ દેશ ઉપર કોઈ આંચ આવવા દઈશું નહી* નો મતલબ દેશના મુસલમાનો એ તલવારના વીંઝાતા ઘા સહન કરીને મરી જવું?

_____________part-3 _______________

*આજ ની વાયરલ ઓડીયો માં થયેલ વાતચીત માં જે ચર્ચા થઈ છે જે દુઃખદ છે. મોહસિને આઝમ મિશન ખિદમતે ખલ્ક ના કાર્યો માં કોઈપણ પ્રકાર નો ભેદભાવ રાખતી નથી, તમામ સેવાકીય કાર્યો  માં માત્ર અને માત્ર માનવ સેવા નો અભિગમ રાખે છે... બુજુર્ગોના નકશે કદમ ઉપર ચાલી ને  કૌમ ની ખિદમત નો જઝબો રાખે છે.*
        *મિશન ના સર્વે સર્વા સૈયદ હસન અસકરી સાહેબ છે અને તેમના માર્ગદર્શન હેઠળ તમામ સેવાકીય કાર્યો શરીઅત ના અનુસાર ઓલમા-એ-કિરામ ની સરપરસ્તી માં થાય છે.*
       *મોહસિને આઝમ મિશન આવા કોઈ પણ વિચારો ને સમર્થન આપતું નથી.*
 
 *🖋️મોહસિને આઝમ મિશન (સેન્ટ્રલ કમિટી)*

भारत मे जीवदया और मासाहारी.

 *भारत मे लगभग 71% लोग मांसाहारी हैं। जबकि मुस्लिम जनसंख्या 16% है। फिर ये 56 प्रतिशत लोग तो नॉन मुस्लिम हैं, जो मांसाहारी हैं, जो साल भर मांस का सेवन करते हैं, लेकिन जीव हत्या का विलाप हर साल ईद पर ही होता है।*

*परिवार स्वास्थ्य सर्वे के अनुसार देश के 16 राज्यों में लगभग 90 प्रतिशत लोग मांस खाते हैं। पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा 98.7 फीसदी लोग मांसाहारी हैं. तेलंगाना 98%, तमिलनाडु में 97.8%, केरल 97%, आंध्रप्रदेश में 97℅, झारखंड 96%, ओडिसा में 79%, कर्नाटक 78%,  असम में 78.6%, दिल्ली में 63.2%, मांसाहारी हैं।*

*यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ़ एग्रीकल्चर की रिपोर्ट के अनुसार हमारा देश प्रतिवर्ष 42,50,000 मीट्रिक टन मांस का निर्यात करता है, और इस सन्दर्भ में हम ब्राजील के साथ पहले स्थान पर हैं।*

*देश के चार शीर्ष मांस निर्यातक हिंदू हैं। अल कबीर एक्सपोर्ट (सतीश और अतुल सभरवाल), अरेबियन एक्सपोर्ट ( सुनील करन) एमकेआर फ्रोजन फूड्स (मदन एबट) पीएमएल इंडस्ट्रीज (एमएस बिंद्रा) के मालिक हैं।*

*सारांश यह है कि सिर्फ ईद उल अजहा के मौके पर ही निर्दयता के साथ जीव हत्या होती है, बाकि साल भर पशु अपना मांस स्वेच्छा से डोनेट करते हैं। दुनिया मे सबसे ज्यादा बीफ निर्यात हम करते हैं, तब जीव हत्या नहीं होती,, लेकिन ईद उल अज़हा  पर ही विलाप ख़ूब होता है।*

Tuesday, 5 July 2022

૦૫ જુલાઈ ૨૦૨૨ નેશનલ પાર્ક સોસાયટી રોડ બાબત મિડીયા સમક્ષ રજુઆત .

    સાંજે  ૬ વાગે . ૫ જુલાઈ ૨૦૨૨ 
 *મુસ્લિમ નેતાઓ પોતાના વિસ્તારના લોકોને પ્રાથમિક સુવિધાઓ આપવામાં અસફળ.*

     ૦૫ જુલાઈ ૨૦૨૨
    
     ભરૂચ શહેરના નગરપાલિકા પશ્ચિમ વિસ્તારમાં  વોર્ડ નંબર ૧ માં આવેલ ઘણી સોસાયટીઓમાં રોડ,ગટર જેવી નાની સમસ્યાઓનો ઉકેલ લાવવામાં મુસ્લિમ નેતાઓ  અસફળ થયા છે, *આજની તારીખમાં તમે ભરૂચ શહેરના પશ્ચિમ વિસ્તારની મુસ્લિમ સોસાયટીમાં એકવાર પ્રવાસ કરી જોવો તમને આ સમસ્યાઓ તમારી નજરો સમક્ષ જોવા મળશે,* ઘણી સોસાયટીના લોકો સમય સમય પર પોતાની પ્રાથમિક સુવિધાઓ બાબત અવાજ ઉઠાવે છે, પણ ફકંત વોટ લેવાથી ટેવાયેલા મુસ્લિમ નેતાઓ ચુટણી સમયે મોટા મોટા વાયદા કરી ચુટણી પછી પોતાના વિસ્તારમાં જોવા પણ નથી આવતા.

    ભરૂચ શહેર નો પશ્ચિમ વિસ્તાર વોર્ડ નંબર ૧ A કેટેગરી નો હાઉસ ટેકસ ભરવા છતા તેમના નેતા પ્રજાતંત્ર માં પ્રજાના વોટ લઈને પ્રજાને *નાની નાની પ્રાથમિક સુવિધાઓ સરકાર પાસેથી અપાવવામાં અસફળ હોય તો શું  આ ફક્ત વોટ લેતા નેતાઓ પ્રજાના પ્રતિનિધિ કહેવાય ખરા❓* જ્યારે પણ ચુટણી આવે મુસ્લિમ સમાજે આંખો બંધ કરીને હર હમેશ કોંગ્રેસ પાર્ટીને વોટ આપી પ્રજાના પ્રતિનિધિ માટે  અપેક્ષા રાખી છે, પણ જોવામાં એમ પણ આવે છે, કોંગ્રેસ પાર્ટી ના ભરૂચ જિલ્લાના અને શહેરના આલા કમાન હોદ્દાઓ પર બેઠેલા નેતાઓ  તેમની પાર્ટીના ચૂંટાયેલા નેતાઓ  પ્રજા માટે કેવા કામ કરે છે❓ કેટલો વિશ્વાસ જીતે છે ❓ તેનું  વિશ્લેષણ કરવા પણ આ કોંગ્રેસ પાર્ટી ના *આલા કમાનના લોકો કદી મુસ્લિમ વિસ્તારમાં પ્રાથમિક સુવિધાઓ બાબત વિશ્લેષણ નથી કરતા,* જ્યારે નગરપાલિકા, વિધાનસભા, લોકસભા, જેવી ચુટણી આવે એટલે મુસ્લિમ વિસ્તારમાં જઈને વોટ લેવા આવી જાય છે.

    ભરૂચ શહેરના કોંગ્રેસ પાર્ટીના જિલ્લા પ્રમુખ "શ્રી.પરીમલ રાણા" અને મુસ્લિમ સમાજના સમ્માનિત એવા ગુજરાત લઘુમતી મોર્ચાના પ્રમુખ "જનાબ યુનુસ પટેલ (અમદાવાદી)  જેવા પાર્ટીના મોટા હોદ્દાઓ બિરાજમાન નેતાઓ પણ કદી મુસ્લિમ વિસ્તારની પ્રાથમિક સુવિધાઓમા અસફળ રેહતા મુસ્લિમ નેતાઓના કાર્યથી અસંતોષ મુ.પ્રજાનું  વિશ્લેષણ નથી કરતા.

  હમારી નેશનલ પાર્ક સોસાયટી ના લઈને રોડની ગ્રાન્ડ મંજુર થવા છતા આજ દીન સુધી કેટલી ગલીઓમાં રોડની પરિસ્થિતિ ખરાબ છે, કેટલી વાર રજુઆત કરવા છતા પ્રજાને સંતોષ થાય તેમ પ્રયાસો કરવામાં નથી આવતા, પશ્ચિમ વિસ્તારમાં  આવેલ  સોસાયટીના જાગૃત લોકોને ખાસ અપીલ આપણે આવી નાની સમસ્યા માટે એક સાથે થઈને ફક્ત વોટ લેવા આવતા નેતાઓ સામે જનતાની શક્તિ  અને જાગૃતિ બતાવવા માટે પ્રયાસ કરવો પડશે, આપણે અલગ અલગ પોતાની સમસ્યા માટે અવાજ ઉઠાવવા કરતા *"એક સાથે એક અવાજ"* તરફ આવવાની સખ્ત જરૂર છે, તે માટે આવનાર ટુક સમયમાં પશ્ચિમ વિસ્તારની દરેક સોસાયટીની પ્રાથમિક સમસ્યાઓ ની યાદી બનાવી આગળની રણનીતિ બનાવવા માટે આગળ વધવું પડશે.

    *ચુટણી સમયે ફક્ત વોટ લઈને ગાયબ થઈ જતા નેતાઓ સામે પ્રજા શક્તિ બનાવવી ઘણી જરૂરત છે.*
       
     *"જન સંપર્ક જાગૃતિ અભિયાન"*
 ✒️  હુજૈફા પટેલ મો.9898335767







  

Monday, 4 July 2022

मुसलमानों होश के नाखून लो WhatsApp Masej Viral

 
जिस सत्ता के लोभ से मुसलमान बे ख़बर है उसी लोभ के लिए मुसलमान को जगाया जा रहा है, लाशों के ढेर पर कुछ वक़्त का सुकून तुमको मुबारक, हमें बस अपने हिंदू भाईयों के साथ मुल्क के प्यार की ख़ातिर रहने दो...?

लींचिंग मैं शहीद हुए...?
(1) मोहसिन शैख़ पुणे 2 जून 2014
(2) अखलाक दादरी यूपी 28 सितंबर 2015
(3) पहलू खान अल्वर राजस्थान 5 अप्रैल 2017
(4) अफराजुल राजस्थान 7 दिसंबर 2017 शंभु रैगर
(5) रकबर अल्वर राजस्थान 20 जुलाई 2018
(6) तबरेज़ अंसारी झारखंड 17 जून 2019
(7) अरबाज कर्नाटक अक्टूबर 2021
(8) आसिफ खान मेवात मई 2021
(9) समीर चौधरी शामली यूपी सितंबर 2021
(10) मोहम्मद अंजान इमरान बिहार अक्टूबर 2021
(11) दिलशाद हुसैन गोरखपुर यूपी जनवरी 2022
(12) राहुल खान हरियाणा दिसंबर 2021
(13) आलम रिज़वी बिहार फरवरी 2022
(14) ज़ैनुल अंसारी सीतामढ़ी बिहार 2018
(15) गुलनाज हाजीपुर बिहार 17 नवंबर 2020
(16) आमिर हंजला  पटना बिहार 2019 
(17) सनव्वर खातून बिहार अधारपुर जून 2021
(18) शौकत अली असम अप्रैल 2019
(19) जाबिर अंसारी झारखंड 18 अप्रैल 2020
(20) सुभान अंसारी झारखंड 11 मई 2020
(21) मुबारक खान झारखंड 13 मार्च 2021
(22) शौकत दिल्ली कंझावला 2020 
(23) हाफिज जुनैद हरियाणा बल्लभगढ़ 2021
(24) अकबर खान अलवर राजस्थान 2018
(25) आजम अहमद कर्नाटक 15 जुलाई 2018
(26) अनवर अली यूपी सोनभद्र 20 मार्च 2019
(27) गुलाम अहमद यूपी बुलन्दशहर 2मई 2017 
(28) शेर खान उर्फ शेरा यूपी मथुरा 4 जून 2021
(29) शाकिर कुरैशी यूपी मुरादाबाद साल?
(30) मोहम्मद काशिम यूपी हापुड़ जून 2018

ना तो ये भारतीय थे और ना ही ये किसी मां के लाल या किसी मासूम के बाप थे...?

दोहरी मानसिकता इस मुल्क को तबाह कर रही है, जल्द से जल्द मिलकर रोकना होगा, वरना सत्ता के लालची इस मुल्क को तबाह कर देंगे. 
  
📗क्रिएटिव
शादाब आलम रज़वी
📞9171345434

 *रज़ा यूनिटी फाउंडेशन छत्तीसगढ़*

Sunday, 3 July 2022

આલીમ કી બાતકા રિસર્ચ કરના .

 મહેગાઈ બહૂત બન્હ ગઈ હઝરતજી મૌલાના યુસુફ સાહબ (રહ.) કે ઝમાને કા કિસ્સા હૈ કે ઉનકે ઝમાનેમેં મહેંગાઈ બહૂત બઢ ગઈ. કુછ લોગ મૌલાના કે પાસ આયે ઔર મહેંગાઈ કી શિકાયત કી ઔર કહા કે કયા હમ હુકૂમત કે સામને મુઝાહિરે (આંદોલન) કર કે અપની બાત પેશ કરે ?

હઝરતને ઉનસે ફરમાયાઃ મુઝાહિરે કરના એહલે બાતિલ કા તરીકા હે : ' .. ફિર સમજાયા કે દેખો ! ઈન્સાન ઔર ચીંઝે દોનોં અલ્લાહ કે નઝદીક તરાઝૂ કે દો પલળોં કી તરહ હૈ, જબ ઈન્સાન કી કીમત અલ્લાહ તઆલા કે યહાં ઈમાન ઔર આમાલે સાલેહા કી વજહ સે બઢ જાતી હૈ તો ચીઝોં કી કીમતવાલા પલળા ખૂદ બ–ખૂદ હલ્કા હોકર ઉપર ઉળ જાતા હૈ. ઔર મહેંગાઈમેં કમી આ જાતી હૈ. ઔર જબ ઈન્સાન કી કીમત અલ્લાહ તઆલા કે યહાં ઉસકે ગુનાહોં ઔર મઅસીયતોં કી કષરત કી વજહ સે કમ હો જાતી હૈ તો ચીઝોંવાલા પલળા વઝની હો જાતા હૈ ઔર ચીઝોં કી કીમતે બઢ જાતી હૈ.

લિહાઝા તુમ પર ઈમાન ઔર આમાલે સાલેહા કી મેહનત ઝરૂરી હૈ તાકે અલ્લાહ પાક કે યહાં તુમ્હારી કીમત બઢ જાએ ઔર ચીઝોં કી કીમત ગિર જાયે.

ફિર ફરમાયાઃ લોગ ફક્ર (ગરીબી) સે ડરાતે હૈં હાલાંકે યે શૈતાન કા કામ હૈ ( iÚ15.jha.) ઈસ લિયે તુમ લોગ જાને અંજાનેમેં શૈતાની લશ્કર ઔર ઉસકે એજન્ટ મત બનો.

અલ્લાહ કી કસમ ! અગર કિસી કી રોઝી સમંદર કી ગેહરાઈયોં મેં કિસી છંદ પથ્થર મેં ભી હોગી તો વો ટેગા ઔર ઉસકા રિક ઉસકો પહૂંચ કર રહેગા. મહેંગાઈ ઉસ રિઝક કો રોક નહીં સકતી જો તુમ્હારે લિયે અલ્લાહ પાકને લિખ કર મુકર્રર કર દિયા હૈ. અલ્લાહ પાક હમારે ગુનાહોં કો મુઆફ ફરમાએ. (આમીન) (મસ્કૂલ : મલ્લૂઝ કાબિલે તવજ્જુહ ઔર લાઈકે અમલ)

7/11 मुंबई विस्फोट: यदि सभी 12 निर्दोष थे, तो दोषी कौन ❓

सैयद नदीम द्वारा . 11 जुलाई, 2006 को, सिर्फ़ 11 भयावह मिनटों में, मुंबई तहस-नहस हो गई। शाम 6:24 से 6:36 बजे के बीच लोकल ट्रेनों ...