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Wednesday, 18 January 2017

चुन‍ाव आयोग अोर चुनाव के दिन

सैंया भए कोतवाल अब डर काहे का
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हम नहीं जानते कि उत्तर प्रदेश में कौन जीतेगा। मगर धीरे-धीरे जो माहौल बनता जा रहा है उससे यही लगता है कि देश तेज़ी से हिंदू राष्ट्र के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। कहीं कोई बाधा नज़र नहीं आती। जो बाधा है भी, उसे दूर करने के लिए सारे संस्थान एक मिशन के तहत अपने अपने काम से लग गए हैं। मीडया पर संघ का क़ब्ज़ा हो चुका है। पुलिस पहले भी उनके साथ थी मगर कभी-कभार ग़रीबों की सुन ली जाती थी मगर अब वहाँ भी ठन ठन गोपाल है। अदालतें उनकी जेब में हैं और चुनाव आयोग खुलेआम भाजपा की दलाली कर रहा है।
पिछले दिनों चुनाव आयोग ने एक आदेश जारी किया। धर्म के नाम पर वोट नहीं मांगोगे, किसी वर्ग की बात नहीं करोगे। ऐसी बातों से देश बंटता है इसलिए उन्हें बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पहली नज़र में क्या ख़राबी नज़र आएगी किसी को? पर, काश चुनाव ऐसे होते कि लोग विकास और समृद्धि को ही मुद्दा बनाते। मगर हमारी नज़र पूरे हालात पर है और जिनकी भी नज़र पूरे हालात पर है, वह पूरा खेल समझ चुके हैं। दरअसल यह सारा प्लाट भाजपा को जिताने के लिए है। कोई अनहोनी हो जाए तो बात दूसरी है वरना तैयारी इसी की है और इसी तैयारी के साथ भाजपा 2019 का चुनाव भी लड़ने जा रही है।
अब आप इस खेल को समझने की कोशिश करें। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फै़सले में हिंदुत्व को धर्म नहीं माना है। उसका कहना है कि हिंदुत्व जीवन शैली है, धर्म नहीं। मानो जो हिंदुत्व की बात करेंगे उन पर चुनाव आयोग का फ़रमान लागू नहीं होगा। भाजपा और उसके प्रत्याशी खुलेआम हिंदुत्व की बात करेंगे, लेकिन आप उनके किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे सकेंगे। आप ऐसा करेंगे तो आप पर देश को बांटने का आरोप लगेगा, देश को नुक़सान पहुंचाने वाले कहलाएंगे आप। इस तरह भाजपा के हाथ में दो हथियार होंगे। एक से वह अपना बचाव करेगी और दूसरे से अपने विरोधियों पर हमला करेगी। एक से तलवार का काम लिया जाएगा और दूसरे से ढाल का जबकि सामने वाला निहत्था होगा, पूरी तरह निहत्था।
भाजपा अयोध्या में राम मंदिर बनाने की बात कर सकती है। भाजपा पूरे संविधान को बदलकर उसके स्थान पर नया संविधान लाने की बात भी कर सकती है। वह धर्म संसद बना सकती है, भारत माता की पूजा अर्चना का आदेश जारी कर सकती है, घर वापसी का क़ानून बना सकती है, अज़ान पर प्रतिबंध लगा सकती है, मुस्लिम पर्सनल लॉ को समाप्त कर सकती है, गाय की पूजा को सभी के लिए अनिवार्य क़रार दे सकती है, स्कूलों में गौमूत्र पीने पिलाने की क्लास लगा सकती है, सूर्य नमस्कार सब पर थोप सकती है, योगा करवा सकती है, मतलब यह कि वह कुछ भी कर सकती है क्योंकि वह इन्हें अपने हिंदुत्व के कार्यक्रम का हिस्सा मानती है और हिंदुत्व कोई धर्म नहीं बल्कि जीवन शैली है जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मुहर लगा दी है।
जरा सोचिए! कितनी ज़बरदस्त तैयारी है उनकी। देश के सारे संस्थान उनकी पीठ पर हैं। और हम हैं कि आज भी जाति, फ़िरक़ाबन्दी और न जाने किस किस जाल में फंसे हैं। पहले शिया सुन्नी का चक्कर था। फिर बरेलवी देवबंदी बने। इसके बाद तबलिग़ियों और देवबंदियों में ठनी। आजकल तब्लीग़ी एक दूसरे का गला काट रहे हैं। मौलवी सअद और मौलवी ज़ोहैर अपने अपने साथियों के साथ बंगले वाली मस्जिद को पहलवानी का अखाड़ा बनाए हुए हैं। दसियों बार पुलिस मकर्ज़ में दाखि़ल होकर झगड़ा करने वालों को गिरफ़्तार कर थाने ले जा चुकी है। देवबंद का मदरसा बुजु़र्गों की निशानी बन कर रह गया है। न जमियत उनकी सुन रही है और न ही तब्लीग़ी। दूसरी ओर बरेलवी पहले पीरों में बंटे, फिर टोपी और पगड़ी वालों की अलग टोलियां बनीं। अब मज़ार वालों ने अपनी अलग दुनिया बसायी जहां वह मोदी के सुर में ढोलक की थाप पर देशभक्ति के गीत गा रहे हैं। उनकी सफलता ने टोपी वालों का भी दिमाग़ ख़राब कर दिया। वह भी कुछ अल्लाह वालों को छोड़कर भगवा चोला पहन बैठे। अब हरी पगड़ी वाले ही भला क्यों पीछे रहते। उन्होंने भी सुन्नतों का दामन थामा और दो एक फ़र्ज़ांे को छोड़कर पूरी शरीयत से आज़ाद हो गए। सब एक दूसरे को गुमराह और काफ़िर क़रार दे रहे हैं। उनके सिर पर जन्नत में जा बसने की ऐसी जल्दी सवार है कि डर लगता है, कहीं यह एक दूसरे से टकरा कर जन्नत के दरवाज़े पर ही ढेर न हो जाएँ। इनकी हरकतों से इतना तो लगभग तय है कि उन्हें जन्नत मिले न मिले, मगर हमारे हमारी ज़िन्दगियां ज़रूर जहन्नुम में तब्दील हो जाएंगी।

दि मीडिया प्रोफ़ाईए नई दिल्ली
एम हसनैन मुख्य सम्पादक

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