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Thursday, 24 September 2020

समस्या मुग़लों से या मुसलमानों से?? क्या नाम बदलने से देशकी तरक्की हो सकती हे?


उत्तर प्रदेश सरकार ने आगरा में निर्माणाधीन मुग़ल म्यूजियम का नाम बदलकर शिवाजी म्यूजियम कर दिया है। आदेश जारी करते हुए सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने कहा:
 मुग़ल हमारे हीरो नहीं हो सकते उत्तर प्रदेश में हम गुलामी की किसी यादगार को रहने नहीं देंगे"

 यूपी में नाम परिवर्तन का यह पहला मामला नहीं है भाजपा सरकार बनने के बाद ही मुगलों और इस्लामी नामों को बदलने का सिलसिला जारी है इससे पहले योगी हुकूमत इलाहाबाद को प्रयागराज, फैजाबाद को अयोध्या, मुगलसराय जंक्शन को दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन में बदल चुकी है।शहरों के नामों से जी नहीं भरा तो मुहल्लों का नाम बदलने पर उतर आए इस कड़ी में गोरखपुर को अलीनगर को आर्य नगर, उर्दू बाजार को हिंदी बाजार, हुमायूं नगर को हनुमान नगर और मीना बाजार को माया बाजार कर दिया गया और अब ताजा-ताजा मुग़ल म्यूजियम का नाम बदल दिया गया।

 नाम बदलने का यह सिलसिला इस्लाम विरोधी भावना को दर्शाता है।ब्रिटिश इंडिया में मुस्लिम बादशाहों को बदनाम करने का षडयंत्र शुरू हुआ। अंग्रेज चले गए मगर नफरत आज तक बाकी है इसी नफरत का असर है कि हमारे देश में आज एक ऐसा बड़ा तबका तैयार हो चुका है जो मुस्लिम बादशाहों के दौर को गुलामी का दौर कहता है।

 ऐतिहासिक तौर पर यह बात सही है कि मुगल सल्तनत के संस्थापक ज़हीर उद्दीन मोहम्मद बाबर(1530 ईसवी) बाहर से आए लेकिन दिलचस्प बात यह है कि बाबर किसी हिंदू राजा से नहीं बल्कि एक मुस्लिम शासक इब्राहिम शाह लोधी से लड़ने हिंदुस्तान आए थे। उससे भी मजेदार बात यह है कि बाबर को हिंदुस्तान बुलाने वाला कोई मुस्लिम राजा नहीं बल्कि एक हिंदू राजा राणा सांगा थे। राणा सांगा के बुलाने पर बाबर भारत आया और अपनी सैन्य क्षमता की बदौलत बड़ा हिस्सा जीत कर मुग़ल सल्तनत की बुनियाद डाली। बाबर की औलादें भारत में पैदा हुईं और उन्होंने इंसाफ के साथ भारत पर अपनी हुकूमत कायम की। टुकड़ों में बंटे हुए देश को एक व्यवस्था का हिस्सा बनाया। सुंदर इमारतें बनवाईं, बड़े-बड़े रास्ते,शैक्षिक संस्थान,सराय, मुसाफिर खाने, कारोबारी मंडियाँ और कृषि व्यवस्था को मज़बूत बनाकर भारत को सोने की चिड़िया बनाया,अमेरिकी शोधकर्ता Cris Mathew "Time Magazine" में लिखते हैं:
 "मुगलों के समय में भारत की जीडीपी दुनिया की कुल जीडीपी का एक चौथाई %25 थी।(जबकि आज आजादी के 70 वर्षों के बाद भारत की जीडीपी माइनस में पहुंच चुकी है)

 जेफरी विलियमसन और डेविड कलिंग स्मिथ अपनी किताब  India Di-industrialization in 18the and 19the century मैं लिखते हैं:
"मुगलों का भारत उत्पाद और निर्माण में विश्व गुरु था...उस समय भारत की प्रति व्यक्ति आय आज के ब्रिटेन और फ्रांस के बराबर थी इसी आर्थिक समृद्धि ने यूरोपियन लोगों को भारत की तरफ आने को मजबूर किया"

 मुगलों के दौर में भारत की समृद्धि इस कदर थी कि जब अंग्रेज पहली बार भारत आए तो उन्होंने रात को दिल्ली की सड़कों पर बड़े बड़े चिराग़, मशालें जलते हुए देखीं। यह देखकर उन्होंने हैरत से दांतों तले उंगलियां दबा लीं क्योंकि उस वक्त तक लंदन मैं रात होते ही सन्नाटा छा जाता था क्योंकि लंदन की सड़कें इस लायक नहीं थी कि उन पर रात को टहला जाए न वहां की सरकारों के पास ऐसी कोई योजना थी और न ही चिराग जलाने के पैसे!लेकिन मुग़लों के भारत में दिल्ली की सड़कें रात में भी दिन का नजारा पेश करती थीं।

 बाबर के अलावा सारे मुग़ल बादशाह इसी देश में पैदा हुए और यहीं की मिट्टी में दफन हुए। मुग़लों ने जो किया भारत के लिए किया, इसे अपना घर समझा लेकिन अंग्रेजों के लिए भारत सिर्फ एक सोने की मंडी था जिसे उन्होंने जी भर कर लूटा और सब कुछ लूट लाट कर वापस अपने देश भाग गए। भारत का कोहिनूर हीरा अंग्रेजी लूट का सबसे बड़ा सबूत है जो आज भी इंग्लैंड में मौजूद है।
 लेकिन घृणित सोच वाले मुग़लों के दौर को गुलामी का दौर कहते हैं और अंग्रेजी गोरों से प्यार करते हैं।
मुगलों की तरह अंग्रेज भी विदेशी थे मुगलों ने इंसाफ के साथ हुकूमत चलाई लेकिन अंग्रेजों ने छल कपट के साथ भारत पर कब्ज़ा जमाया। मुग़लों ने सब कुछ भारत के लिए किया और अंग्रेज सब कुछ लूट कर इंग्लैंड वापस चले गए। लेकिन आज जितनी नफरत मुग़लों से की जाती है उसका 0.1 हिस्सा भी अंग्रेजों से नहीं किया जाता।मुग़लों की बनाई इमारतों और नामों को बदला जाता है उन्हें खत्म करने की बातें होती हैं मगर न अंग्रेजी इमारतों को गुलामी की यादगार बताया जाता है और न ही उनके ख़िलाफ मुहिम चलाई जाती है। 
लखनऊ से लेकर दिल्ली कोलकाता मुंबई चेन्नई तक अंग्रेजी इमारतें अपने असली नामों के साथ मौजूद है मगर मजाल है जो आज तक किसी चरमपंथी ने इन्हें गुलामी की यादगार कहा हो?
लखनऊ का किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज, इलाहाबाद का मेयो मेमोरियल हॉल, कोलकाता की राइटर्स बिल्डिंग, दिल्ली का कनॉट पैलेस, कोलकाता का विक्टोरिया मेमोरियल, और सेंट पॉल कैथेड्रल चर्च, गेटवे ऑफ़ इंडिया मुंबई, इंडिया गेट दिल्ली, सेंट मैरी चर्च चेन्नई, मुंबई का विक्टोरिया स्टेशन (VT) आदि अंग्रेजों की निर्मित इमारतें हैं और अपने अंग्रेजी नामों के साथ मौजूद हैं लेकिन मुग़ल इमारतों और इस्लामी नामों को दिन रात  कोसने वाले कट्टरपंथी अंग्रेजी इमारतों और अंग्रेजी नामों पर एक शब्द भी बोलने तैयार नहीं हैं।
आक्रांता और हमलावर बताकर हिंदुस्तान के रिहाइशी बादशाहों को गालियां देने वाले भक्त गोरे अंग्रेजों को एक लफ्ज़ भी बोलने को तैयार नहीं है, जो वास्तव में आक्रांता और आक्रमणकारी थे जिन्होंने लगभग 200 वर्षों तक भारत को लूटा और सारा धन संपदा लूटकर इंग्लैंड ले गए !!

 कट्टरपंथी एक तरफ अखंड भारत का दावा करते हैं और दूसरी तरफ मुग़लों को विदेशी कहते हैं अफगानिस्तान से आने वाले मुगल तो उसी अखंड भारत का हिस्सा हैं फिर विदेशी कैसे? इस पाखंड से ही पता चलता है कि परेशानी मुगलों से नहीं मुसलमानों से है उन्हें सिर्फ उन्हीं इमारतों और नामों से दिक्कत है जो उन्हें मुसलमानों के गौरव की याद दिलाएं, उन्हें उसी नाम से दिक्कत है जिससे इस्लामी पहचान जाहिर हो इसलिए उनकी नफरत सिर्फ मुग़लों की इमारतों और इस्लामी नामों पर ही निकलती है लेकिन उन पर लोगों को ये प्राकृतिक नियम याद रखना चाहिए कि सत्ता का वजूद न्याय पर टिका है न्याय नहीं किया गया तो सत्ता भी नहीं रहेगी।

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