दोस्तों राजनीति हर किसी के बूते की बात होती नहीं है और इस बात का जिक्र तो सौ बरस से हर कोई करता चला आ रहा है अगर आप एक सामान्य आदमी है ईमानदार व्यक्ति हैं तो राजनीति मत कीजिए
यह बात कोई आज की नहीं है लेकिन जरा कल्पना कीजिए कि एक सामान्य पॉलिटिकल पार्टी के लिए भी अब राजनीति करना और चुनाव में जाना और चुनाव में जीत जाना असंभव सा है
सिर्फ व्यक्ति तक बात नहीं रही है अब तो राजनैतिक दलों तक यह बात आ गई है और इस देश के भीतर में तमाम छोटे छोटे राजनीतिक दल जब तक उनकी ताकत कुछ राजनीतिक सौदेबाजी करने की है तब तक तो वह बचे हुए हैं टिके हुए हैं
लेकिन इसके बाद वह अपने बूते कोई चुनाव जीत सकते हैं इस कल्पना को छोड़ दें तो की राजनीति के तौर तरीके दो हज़ार चौदह के बाद जिस तेजी से बदले हैं
उसने राजनीति और राजनीति की पूंजी भर को नहीं परोसा बल्कि इस देश की इकोनॉमिक पॉलिसी और इस देश के विकास का खाका भी उस राजनीतिक सत्ता से जाकर जुड़ गया जिसकी कल्पना इससे पहले कभी किसी राजनीतिक दल ने किसी नेता ने यहां तक कि किसी प्रधान
मंत्री ने भी की नहीं होगी
भारत की राजनीति का मतलब क्या इस देश की इकोनॉमिक पॉलिसी हो सकती है
भारत में चुनाव लड़ने का मतलब क्या कॉरपोरेट का नेटवर्थ हो सकता है
भारत में कॉरपोरेट फंडिंग और पॉलिटिकल फंडिंग के बीच कोई तालमेल हो सकता है इस देश के भीतर में बैंकों का एनपीए और बैंकों से जुडे हुए विलफुल डिफॉल्टर यानी जो जान बूझकर पैसा नहीं लौटाते हैं उनके बीच भी कोई तारतम्य इस देश की
राजनीतिक सत्ता या पॉलिटिकल फंडिंग से जुड़ी हुई हो सकती है और अगर यह जुड़ी हुई है तो फिर जो सत्ता में है उसके पास ही सब पैसा आएगा क्या ये सब कोई इससे पहले कहा जा सकता था इस देश में कॉर्पोरेट पैसा देता है डफली पैसा देते हैं बिजनस पसंद
ऐसा देते हैं
और तो और ऐसी अज्ञात चोर सभी पैसा आता है जिसकी जानकारी इलेक्शन कमीशन तक पहुंचती जरूर है लेकिन एक क्षण के लिए कल्पना कीजिए कि बीते नौ बरस पर इस देश में तकरीबन पच्चीस लाख करोड़ रुपए सरकार ने गायब कर दिए तो आप क्या कहेंगे
गायब करने का मतलब यह नहीं है कि अचानक छूमंतर हो गया पैसा गायब का मतलब यह है कि इस देश में आरबीआई ने नोट छापे बैंकों ने नोट पार्टी और वहीं नोट जब बैंक में वापस नहीं आ पाए तो सरकार ने नोट छापकर उसी दोस्त जो कि
दिए गए थे उसकी भरपाई करती और जिसके जरिए भरपाई की और जो पैसा बैंकों से लेकर फरार हो गए फिर उन्होंने नए तरीके से इस देश की सत्ता को सादा या सत्ता को साधने का तरीका पहले ही अपनाया जा चुका था
और नौ बरस में अगर पच्चीस लाख करोड़ रुपए इस देश के भीतर में ब्रिटेन ऑफ कर दिए जाते हैं बट्टे खाते में डाल दिए जाते हैं तो यह रुपया क्या आपको किसी बजट में इस तरीके से नजर आता है
बरस दर बरस चुनाव दर चुनाव
राज्यों के चुनाव लोकसभा के चुनाव अगर सारे हाथी को एक एक करके परखना शुरू कीजिएगा तो हो सकता है आपके सायं में ये सवाल बड़ा छोटा हो जाए कि पांच राज्यों के चुनाव में किसी पॉलिटिकल पार्टी ने कौन सी सूची जारी कर दी
कितने उम्मीदवारों का चयन अभी और करना है और क्यों आखिर राजस्थान के भीतर वसुंधरा राजे सिंधिया को हाशिए पर धकेला गया उन्हें मुख्यमंत्री पद की दौड़ से बाहर किया गया शिवराज सिंह चौहान के साथ ही ऐसा हुआ और दिल्ली में बैठे ऐसे ऐसे कैबिनेट मिनिस्टर जिनकी ताकत का एहसास दो हज़ार
चौदह से पहले हर कोई लगाता था लेकिन इस दौर में उनकी कोई ताकत नहीं बची है और वह भी कुछ खुद नहीं बोल पाते हैं यह कैसे संभव है यह संभव तभी है जब इस देश की राजनीति आपकी मुट्ठी में
राजनीति के जरिए चुनाव कराने के तौर तरीके आपके बुद्धि में हो और किसी भी पॉलिटिकल पार्टी के भीतर यह ताकत जिन मुट्ठियों में होगी उस व्यक्ति की ही चलेगी तो क्या इस दौर के भीतर में यह कहना कि इस देश के भीतर जितना माफी या जितना बट्टे खाते में डाले
गई रकम है उसी के इर्द गिर्द इस देश के भीतर में जो इलेक्टोरल ट्रस्ट का पैसा कर फंडिंग के जरिए राजनीतिक दलों तक पहुंचता है
जो कॉर्पोरेट का पैसा फंडिंग तक राजनीतिक दलों तक पहुंचता है उसको अगर कैटेगराइज किया जाए तो क्या यह बात निकलकर आ सकती है कि कितने लोग कितने इंडस्ट्री कितने कॉर्पोरेट कितने एमएसएमई और कितने छोटे बड़े व्यापारी कितनी बड़ी तादाद है जिन्होंने बैंकों से नोट
लिए आरबीआई ने नोट छापे सरकार ने उस नोट को माफी दे दी अगर इस दौर में भारत की राजनीति सिर्फ और सिर्फ पूंजी के आसरे चलती है जो चलती थी चलती है लेकिन अगर उसका सोर्स एक ही जगह जा रहा है
तो क्या कोई राजनीतिक दल जो क्षत्रपों की तादाद इस देश के भीतर पटी पड़ी है यह कितने दिन चुनाव लड़ पाएंगे
दो बार सत्ता से बाहर रहते नहीं है कि क्षत्रप इस दौर में अपने तौर पर घबराने लगते हैं और उनके सामने मुश्किल होती है संगठन को भी कैसे चला पाए
ऐसा नहीं है कि इस देश के भीतर में इससे पहले यह परिस्थिति नहीं रही होगी लेकिन पहले पाइपलाइन पैसे की तमाम जगहों पर जाती थी
पहले चुनाव लड़ने के तौर तरीकों में कहीं कोई विचारधारा मायने रखती थी ध्यान दीजिए सबकुछ खत्म हो गया गौण हो गया महत्वपूर्ण इस दौर में दो ही चीज हुई एक इस देश के भीतर में पहली बार कौन कितना पैसा रेवड़ी के तौर पर जनता को पढ़ सकता है ऐलान
घोषित करता है वह एक बड़ा हिस्सा चुनावी जीत का हो गया दूसरा हिस्सा सरकार किसी की बने लेकिन वह सरकार आखिर में हमारी होगी यह ताकत विधायकों से लेकर सांसदों की खरीद फरोख्त का खुला खेल इस देश ने बार बार देखा और किस तरीके से विधायक और
सांसद जाकर छुप जाते हैं सबको सब किसी ने देखा हमें लगता है कि आज इन परिस्थितियों को जरा बारीकी से समझना है क्योंकि जब हम इस बात का जिक्र कर रहे हैं पच्चीस लाख करोड़ तो जाहिर है इस देश के भीतर में जो भी पब्लिक सेक्टर के बैंक हैं या जो शीतल कॉमर्शियल बैंक है उनका एक खाका मौजूद है जो
बताता है कि चौबिस लाख पचानवे हजार अस्सी करोड़ रुपए इस दौर में
बट्टे खाते में डाल दिए गए और यह एक आरटीआई के जरिए निकलकर आया जो की सूरत के एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं संजय जावा उन्होंने उस आरटीआई के जरिए निकाली इस रकम को और बरस दर बरस जानकारी भेजी और तमाम जगहों पर यह जानकारी जब आई तो लोग भी हैरत अंगेज तक की पार्लियामेंट में तो आप बताते थे
लगभग ग्यारह लाख करोड़ लेकिन यहां तो खेल लगभग पच्चीस लाख करोड़ का है तो क्या वो सिर्फ सरकारी बैंकों का आंकड़ा होता था जी वो सिर्फ सरकारी बैंकों का खड़ा था शीतल कॉमर्शियल बैंक को देखिए कहा अगर तो उसमें समझते चले जाइए कि इलेक्शन से ठीक पहले लोकसभा चुनाव के इलेक्शन से पहले
जो पब्लिक सेक्टर का बैंक था उसको अगर रिटर्न ऑफ सरकार ने एक लाख तिरासी हजार दो सौ दो करोड़ जो दो हज़ार अट्ठारह उन्नीस का साल है उस बरस किया तो दूसरी तरफ शेड्यूल कॉमर्शियल बैंक में उस दौर में दो लाख छत्तीस हजार दो सौ पैंसठ करोड़ रुपए माफी थी
और यह सिलसिला लगातार चलता चला गया बरस दर बरस उसके बाद उत्तर प्रदेश का इलेक्शन था उसमें भी जो कॉमर्शियल बैंक के दो लाख करोड़ से ज्यादा कहीं चल रहे थे
यह परिस्थिति बताती है कि एक तरफ यह खाखा आरबीआई के जरिए आरटीआई निकलकर आता है कि यह पच्चीस लाख करोड़ का है
दूसरी तरफ जरा सोचिए इस देश में जिद अकाउंट का पैसा है जो कि विलफुल डिफॉल्टर इस दौर में आए उनकी संख्या सोलह हजार आठ सौ तिरासी जो एनपीए के दायरे में आए उन अकाउंट्स की तादाद छत्तीस हजार एक सौ पचास इन दोनों को मिलाई जायेगा तो यह तकरीबन बावन हजार
चार अकाउंट्स पार कर जाता है टोटल जो जानकारी आती है वह लगभग सात हजार के लगभग है जिन अकाउंट्स के जरिए इस दौर में जो भी पैसे निकले और नहीं आए वापस लौटकर वह इन अकाउंट के जरिए अगला सवाल आपका होगा अच्छा ऐसे कौन लोग थे
यह बार बार आर बी आई ने बताया सरकार ने पार्लियामेंट के भीतर भी बनाया कि देख यहां ऐसे टॉप मोस्ट दस यह है उसमें मान लीजिए उन्होंने मेहुल चौकसी का नाम लिया उसमें नीरव मोदी का नाम ले लिया विजय माल्या का नाम लिए बात से नहीं चलेगी सवाल यह है कि जब हम सात हजार अकाउंट का जिक्र कर रहे हैं तो ये सात हजार एकाउंट एक
शहर में तो नहीं है इस देश के अलग अलग शहरों में बिखरे पड़े हैं सभी के एक धंधे तो नहीं है सबकी अलग अलग धंदे होंगे को इंडस्ट्री में है कोई बिजनेस में है कोई ट्रेडर है कोई एमएसएमई से जुड़ा है कोई बड़ा कॉर्पोरेट है सभी अपने तौर पर जुड़े होंगे और जो पैसा पॉलिटिकल फंडिंग होती है वह इनके जरिए होती और क्या
आपने कभी सुना है किसी विधायक को खरीदने के लिए कोई पॉलिटीशियन पैसा लेकर गया और उसने दे दिया जी ने ऐसा नहीं होता है होता यह है कि स्वस्थ व्यक्ति बता दिया जाता है वह सोर्स व्यक्ति को इंडस्ट्रियलिस्ट होता है कोई कॉर्पोरेट से जुड़ा हुआ व्यक्ति होता है कोई बड़ा वह पारी होता है वह अलग अलग माध्यम से
की जाती है जो खरीद फरोख्त विधायकों की होती है उसके मद्देनजर और चूंकि सरकार ही यह सब कर रही है तो फिर उन पर छापा कौन मारेगा
सक्रिय कैसे होगी या क्लीन चिट उनको दे दी जाती और महाराष्ट्र में जो कुछ हुआ इसका खुला खेल और उससे पहले मध्यप्रदेश में जो वार्ता खुले तौर पर चीजें निकलकर आई यह बात कर्नाटक में भी निकल कर आई थी
जब वहां की सरकार दामाद ट्रोल हुई थी लेकिन उसके बाद है कि जो जानकारी हमारी टीम ने निकाली वह बड़ी रोचक जानकारी इस मायने में है कि इस देश के भीतर में जो पैसा लिए हुए हैं अलग अलग बैंकों से इसमें यह जान लीजिए कि जो भारत के सरकारी बैंक है वह लगभग बारह और लगभग बाईस शिड्यूल कॉमर्शियल बैंक
निकलकर आते हैं उसमें तमाम बैंकों के छोटे बड़े नाम है उसमें एक्सिस बैंक भी आएगा बंदर भी आएगा सीएसपी बैग भी आएगा सिटी यूनियन भी आएगा डीसीबी भी आएगा धन लक्ष्मी भी आएगा एचडीएफसी भी आएगा दस बैंक भी आएगा आईडीएफसी भी आएगा जेके बैंक भी आएगा कर्नाटक बैंक भी आएगा कौड़ा वैश्य बैंक भी आएगा कोटक बैंक भी आएगा लक्ष्मी विलास बैंक के तमाम
बैंकों के नाम है जो कि एक से शुरू प्राइवेट सेक्टर के बैंक सभी को जो माफ सरकार ने किया लेकिन हमारी टीम ने जब चीजें कलेक्ट किया तो वो हैरत अंगेज इसलिए थी क्योंकि इस देश के भीतर में जो कॉर्पोरेट खुद को बतलाते हैं उनकी संख्या लगभग एक हजार से बारह
के बीच है जो इस दौर में एनपीए के दायरे में शामिल है या विलफुल डिफॉल्टर के तौर पर शामिल एक हजार से बारह के बीच में वह रेड जाए जो अलग अलग तरीके से निकला रहा क्योंकि एक हजार से बारह का जिक्र हम इसलिए करें उसमें से कुछ ने कहा या कुछ ने जो जानकारी दी वह इंडस्ट्री के तौर पर गई थी
इन दस किस्तों की तादाद सबसे ज्यादा एक छोटी बड़ी इंडस्ट्री जो इस देश के भीतर चल रही है वह होटल इंडस्ट्री भी हो सकती है और वह किसी स्टील या आयरन से जुडी हुई इंडस्ट्री भी हो सकती है
वह कुछ भी बना सकती है वो ताड़ बना सकती है वह प्लग बना सकती है वह ग्लास बना सकती है वह प्लेट बना सकते हैं कुछ भी बना सकती है इनकी संख्या लगभग पच्चीस हजार है जिन्होंने पैसा रिटेन नहीं किया एनपीए के दायरे में या विलफुल डिफॉल्टर है
यह पच्चीस हजार में से कुछ एक हजार से बारह के बीच में हमने रखा महत्वपूर्ण यह है कि जिस एमएसएमई को लेकर सरकार जिक्र करती है छोटे छोटे जो अपने तौर पर खड़े होते उसमें भी बड़ी तादाद आ गई और बॉबी तकरीबन छोटे बड़े मिलाकर अलग अलग साल को जोड़ते चले जाइएगा तो सत्रह हजार अकाउंट जो है
से जुडे हुए नजर आने लगते हैं
और बाकी कुछ और है जो अलग हैं अब यहां पर दूसरा इस दौर में जो अलग अलग तरीके से इलैक्शन पर जो कहते हैं कि पैनी नजर रहती है सरकार की रहती है इलेक्शन कमीशन की रहती है
तो क्या यह पैसा रोटेट करके उन तक पहुंच जाता है जो कि एनपीए के दायरे में हैं या विलफुल डिफॉल्टर है
क्योंकि अगर एक बरस का ही जिक्र करें दो हज़ार बाईस तेईस का जिक्र करते हैं अगर हम तो एसबीआई के पास कितने अकाउंट पर एक हज़ार नौ सौ इक्कीस अकाउंट जो विलफुल डिफॉल्टर के तौर पर आए पंजाब नेशनल बैंक में दो हज़ार दो सौ इकतीस डिफॉल्टर यूनियन बैंक में एक हज़ार आठ सौ इकहत्तर डिफॉल्टर बैंक ऑफ बड़ौदा में
दो हज़ार दो सौ बीस डिफॉल्टर अलग अलग तरीके से अलग अलग बैंकों के भीतर डिफॉल्टर है और इनके पास जो रकम है वह मिनिमम रकम जो है वह लगभग बीस से चौबिस हजार करोड़ के बीच की है मैक्सिमम रकम जो है एसबीआई के उस पर में लगभग एक थाउजेंड गढ़ सामंती नाइन थाउजेंड
तू अंदर सामंती करोड़ की कुल रकम है
मैसेज किया है पहला पहला में से सबसे बड़ा है कि इस देश के भीतर भी सरकार जो
रिटर्न ऑफ करती है जो बट्टे खाते में पैसा डालती और बैंक उसको अपनी बुक से निकालता है लेकिन जो पैसा लिए हुए और नहीं लौटाते हैं और उस पैसे की एवज में बहुत सिर्फ पांच सितारा जीवन ही नहीं जी रहे बल्कि उनकी रईसी में कोई कमी नहीं आ रही है वह फिर दोबारा दूसरे अकाउंट के जरिये
दूसरे इंडस्ट्री के जरिए दूसरे तरीके से वह बैंकों के जरिए फिर से लिए क्या ले लेते हैं इसमें एक एक्सपर्ट का कहना है कि देखिए लगभग ट्वंटी ट्वंटी फाइव परसेंट अकाउंट जो होते हैं और रिप्रेजेंटेटिव होते हैं यानी एक व्यक्ति ने जहां से उठाए उसके बाद नहीं लौटाए फिर वह दूसरे नाम दूसरे तरीकों से अकाउंट
वह खोल देता है
और उसके बाद बैंक से फिर वह लोन उठाता है और पुरानी हिस्सेदारी साझेदारी दोस्ती यारी जो कहना चाहिए और पॉलिटिकल तौर पर निर्णय होते हैं इस देश के भीतर में इसीलिए बैंकों के बोर्ड में भी नियुक्तियां राजनीतिक तौर पर होती है यह कोई छुपी हुई बात नहीं है यहां तक कि आरबीआई के बोर्ड में ही
जो नियुक्तियां होती है वह यूं ही नहीं होती है यह हर कोई जानता है इस देश के भीतर में इसको बताने की जरूरत होनी नहीं चाहिए कि इस देश के भीतर में जितने भी पब्लिक सेक्टर से जुड़े हुए ऑर्गनाइजेशन से उसमें नियुक्तियां बोर्ड के भीतर में पॉलिटिकल तौर पर होती है और बड़ी तादाद में जो बीजेपी से जुड़े पॉलिटीशियन उनको भी या बोर्ड में डाल दिया जाए
आता है जिससे व निगरानी रखें कि बात इधर से उधर न चली जाए
अब यहां पर अगला सवाल यह था कि इस देश के भीतर में जब इतनी बड़ी रकम
जो आई चली गई जानकारी नहीं कुछ पता नहीं और उसके जरिए पॉलिटिकल तौर पर अगर पाइपलाइन में जा रहा है तो अगला सवाल कोई भी पूछेगा कि राज्यों के चुनाव हो या फिर लोकसभा के चुनाव अगर सरकार यह अगर सरकार नहीं अगर सत्ता यह सोच ले कि इस चुनाव को हमें जीतना
और राजनीतिक तौर पर जो पॉलिटिकल फंडिंग का पैसा होता है उसका भी एक किस्सा हमको लगता है यहां पहले आपको जिक्र कर देना चाहिए यह हमारी टीम ने जानकारी दी मसलन इलेक्टोरल बॉन्ड जो है इलेक्टोरल बॉन्ड जितना भी कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी राजनैतिक दल जो तमाम नेशनल पार्टी है या दूसरे छात्र
रीजनल पॉलिटिकल सभी को जितना मिला उससे तीन गुना ज्यादा बीजेपी को गया
तीन गुना ज्यादा जो कॉर्पोरेट ट्रस्ट का पैसा है जो अलग अलग इलेक्टोरल ट्रस्ट के जरिए पैसा आता है उसने जितना भी सबको मिला उसका तकरीबन पाँच गुना ज्यादा बीजेपी को मिला
जो अननोन शोर से जिसमें कहा जाता है कि दो हजार रुपए से कम पहले वह बीस हजार था उसको दो हज़ार किया गया उसका भी जोरशोर से इसे बॉडी दस गुना ज्यादा से लगभग में बीजेपी के हिस्से में आ जाता है अगर रकम की पूरी की पूरी रकम को अगर जोड़िएगा परसेंट जोड़िएगा तो बीजेपी नीचे आ जाएगी लेकिन जब पूरी
रकम जोड़िएगा तो वह दस गुना ज्यादा अब यहां पर पहला सवाल फिर आपके लिए महत्वपूर्ण हो जाएगा अगर सारा पैसा इस तरीके से सिर्फ बीजेपी के पास जा रहा है और चुनाव लड़ने के लिए पैसा ही मायने रखता है या पैसा भी मायने रखता है
तो इन दोनों चीजों से जो नेशनल पार्टी है वह तो मान लीजिए उम्मीद बनाए रखें
और जो उम्मीद बनाकर चलती है कि हम चुनाव जीत जाएंगे यह भरोसा और आश्वासन चुनावी बाजार में लगातार देती चलती है तो उसको भी कुछ पैसा आ रहा होगा मसलन कुछ पैसा आम आदमी पार्टी के पास आ रहा है कुछ पैसा इस दौर में ममता बनर्जी के पास आता है कुछ पैसा स्टालिन यानी डीएमके के पास आ रहा है कुछ पैसा
गाहे बगाहे नीतीश कुमार के पास पहुंच जाता है सत्ता में हो तो बने रहते हैं तो जो रीजनल फोर्सेस में जो सत्ता में है इनके पास कुछ परसेंट आता है लेकिन वह ओवरऑल का पांच से सात पर्सेंट से ज्यादा पैसा होता नहीं जो अलग अलग माध्यमों से पैसा आ रहा है दूसरी बड़ी बात जिन राज्यों में क्षत्रपों की मौजूद
की है उन राज्यों में जो कॉर्पोरेट है जो वह पारी है जो इंडस्ट्रियलिस्ट है जो एमएसएमई है इसमें हमने एक जिक्र नहीं किया था ट्रेडर्स और बिजनेस पर संस्था उनसे जुडे हुए अकाउंट भी तकरीबन दस हजार के लगभग है
इसमें हम मान लेते हैं कि लगभग बीस पर्सेंट रिप्रेजेंटेटिव होता है लेकिन बावजूद इसके यह पूरा खाका निकल कर सामने आता है कि पैसा अगर एक ही जगह पॉलिटिकल तौर पर जा रहा है तो किसी भी पार्टी के लिए अपने ऑर्गेनाइजेशन को जिंदा रखना कोई सामान्य सी बात नहीं होती है
वो सिर्फ पारंपरिक छापने का जिक्र नहीं है सिर्फ गंदा और झंडा उठाने का जिक्र नहीं है कार्यकर्ताओं को जो फुलफिल एजेंट जुड़े हुए हैं उनको कुछ पैसा देने भर का जिक्र नहीं है यह पूरी प्रक्रिया है जो कि सालों साल चलती है और अगर आप सालों साल सत्ता से बाहर रहते हैं तो फिर आप उस दिशा में समझौता कर
ने के लिए बढ़ी जाते हैं जहां पर आपको यह महसूस होता है कि कुछ पैसा तो आ जाएगा तो इसके भी दो तरीके इस दौर में उभरकर आते हैं वो पॉलिटिकल पार्टी जिनके पास ब्लैक मनी है
वह सत्ता के साथ नहीं जायेगी तो कल ईडी उनके दरवाजे पर है तो पॉलिटिकल तौर पर एक सौदेबाजी हो गई आप मत जाइए खिलाफ बताने की जरूरत नहीं है उसमें कौन पॉलिटिकल पार्टी आती है दूसरा हिस्सा होता है ठीक है जो हमारे पास है या नहीं लेकिन हमको पाइपलाइन में पैसा चाहिए क्योंकि हम पॉलिटिकल तौर पर अपने वोटरों को
आप शिफ्ट भी कर सकते हैं और अपने वोटरों के जरिए आपके विरोधी जो खड़े हैं उनको हम काउंटर भी कर सकते हैं यानी उस वोट में सेंध भी लगा सकते हैं तो जब राष्ट्र तौर पर लड़ाई होती है या रिजनल फोर्स के तौर पर लड़ाई होती है राज्यों के चुनाव के तौर पर तो बहुत छोटे छोटे दल ने इसलिए रखते हैं क्योंकि उनकी
पॉलिटिकल सौदेबाजी उस इकोनॉमी को अपने अनुकूल कर लेती है जहां पर उनको अपने ऑर्गनाइजेशन को बचाने के लिए या चलाने के लिए पैसा कुछ आ जाए
इसका एक दूसरा हिस्सा भी हमको लगता समझना चाहिए तमाम रिजनल फोर्सेज में एक परिवार का ही पूरा योगदान होता है एक व्यक्ति और एक परिवार गिर्द पूरी राजनीति सिमटी होती है जो भी क्षत्रपों को आप देखिएगा और डीएमके से शुरू कीजिए या तमाम राज्यों में महाराष्ट्र में चले जाइए बिहार में आई
देश में आइए झारखंड में कहीं भी जायेगा तो आपको नजर आने लगेगा कि हां बात तो सही है एक ही परिवार के इर्द गिर्द उसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि जो पैसा कंसंट्रेट होता है वह एक ही जगह होना चाहिए और यह सारी बात बोल घूमकर आपको जब वापस बीजेपी में आती है तब आप एक सवाल कर
सकते हैं अच्छा है इसीलिए बीजेपी ने कोई नेता नहीं खा पाता है अपने आप को खड़ा नहीं कर पाता है क्योंकि वह ऑर्गेनाइजेशन को नहीं खड़ा कर सकता है पार्टी दफ्तर को नहीं चला सकता उसके पास पैसा कहां है और वह कैसे चला पाएगा और जैसे ही चलाने बढ़ेगा तो वही ही वह पैसा कहां से आया है
इसकी जांच शुरू हो जाएगी कोई ना कोई फाइल तो पड़ी होगी सबकी और यह फैक्ट है कि हर नेता की फाइल तो बनी हुई है पड़ी हुई है तो वह खड़ा कैसे हो तो जिसको कहा जायेगा आपको अब इस भूमिका में रहना बहुत सी भूमिका में चला जाएगा यह एक परिस्थिति बीजेपी के भीतर ही नहीं बनी ये तमाम पॉलिटिकल पार्टी के भीतर है लेकिन
ये तो तमाम पॉलिटिकल पार्टी दो हज़ार चौदह से पहले मायने रखती थी
आज की स्थिति में कोई भी एक राजनीतिक दल को अगर खड़ा करना चाहेगा या खडे हुए राजनीतिक दल को चुनाव मैदान में ले जाना चाहेगा तो लड़ेगा कैसे और यह जो पॉलिटिकल फंडिंग का जो पूरा आंकड़ा है कि डराने वाला इसलिए है क्योंकि हमने तो यह कहा कि भाई नौ साल में पच्चीस लाख करोड लेकिन जिक्र यह है कि
अगर कॉरपोरेट फंडिंग देखें इस दौर के भीतर में तो यह तकरीबन आपको एक लाख करोड़ के ऊपर चला जाता है जो अलग अलग माध्यमों से बीते नौ बरस में निकलकर आया वह इलेक्टोरल ट्रस्ट के जरिए पैसा आया कुछ डोनेशन के जरिए आया को दूसरे माध्यमों के जरिये आया और जो इलेक्टोरल बॉन्ड है वह लगभग तेरह हजार करोड़ का है
उसकी रकम जो है तेरह हजार सात सौ इक्यानवे करोड़ है
अगर इस स्थिति के भीतर में तमाम रकम को आप जोड़ते चले जाइएगा और इसको मान कर चलिए कि एक तीन पर्सेंट पैसा अगर मौजूदा केंद्र की सत्ता में बैठी हुई पॉलिटिकल पार्टी के हिस्से में जा रहा है जिसका खाखा वह अपने तौर पर इलेक्शन कमीशन को बताते हैं जो बड़ा ही कम होता है क्योंकि
अकाउंटेंट मनी ही तो विधायकों को खरीदेगी अन्य अकाउंटेंट बनी तो सरकार को इधर से उधर करेगी अन्य अकाउंटेंट मनी तो सफर को कराएगी जो एक जहाज में बैठकर सारे विधायक कहीं उड़ जाते हैं किसी होटल में ठहरते हैं ये क्या मैं मसला है और उनकी भरपाई कैसे होती है तो रिटर्न ऑफ का मतलब एक
और आखिर में समझ लीजिए
बैंकों का रिटर्न ऑफ़ तो वहां की बुक को ठीक करने के लिए होता है लेकिन जो एयर लाइन्स है
जो पोर्टल है जहां से पैसे का पेमेंट होना है जिस कॉर्पोरेट को आदेश दिया गया जिस दस को कहा गया वो सारी परिस्थितियों में व चुटका चलता है और उसको इनफार्मेशन होती है कि इस पैसे को इतना यहां दे देना उसकी भरपाई दूसरे माध्यमों से रिटर्न ऑफ की जाती है
तो इस देश की इकोनॉमी का पूरा का पूरा खर्चा अगर इस देश के पॉलिटिकल इलैक्शन की चुनावी फंडिंग और सत्ता को बनाने और दूसरे की सत्ता को बिगाड़ने से जाकर जुड़ चुकी है तो आप रकम कितनी भी गिरते चले जाइए कोई मायने नहीं रखेगा सवाल तो यह है कि हम एक दम
सेटअप में है
लोकतंत्र में हैं जहां चुनाव उस लोकतंत्र की सबसे बड़ी पहचान है और उसी लोकतंत्र के तौर तरीके बदल गए और कल तक कि यह बात भी कि एक सामान्य व्यक्ति के लिए या ईमानदार व्यक्ति के लिए राजनीति नहीं है अब सवाल दिया है एक सामान्य पॉलिटिकल पार्टी एक छोटी पॉलिटिकल पार्टी
जिसके पास फंडिंग की व्यवस्था नहीं हो उसके लिए भी यह राजनीति और यह चुनाव नहीं समझ गए तो ठीक है
बहुत बहुत बहुत शुक्रिया