दोस्तों आप मानें या न मानें लेकिन मोदी सरकार मान चुकी है कि भारत विकसित राष्ट्र होने की दिशा में बढ़ चला है और अगर विकसित देश भारत नहीं हो रहा है और आपके भीतर कोई सवाल है तो फिर हो सकता है
कल आपके घर के दरवाजे पर भी एक फरमान आ जाए और जिसमें लिखा हुआ हो कि आप ही को यह प्रचार करना है कि भारत विकसित राष्ट्र व चला है और यह प्रचार आपको अपने घर पर अपने मोहल्ले में अपने गांव में अपने उस पूरे इलाके के भीतर करना है जहां
पर भी आप जा सकते हैं क्योंकि यह फरमान है तो आपको यह काम करना पड़ेगा आप कहेंगे कैसे यह संभव है जिस देश के भीतर अभी भी रोजगार को लेकर लाले पड़े हुए हूँ किसानों को अपनी आय जो लागत होती है वहां भी मिल नहीं पा रही हो
आंखों में डिग्री लेकर इस देश के भीतर का युवा अभी भी सड़कों पर धूल फांक रहा हो और आप कहते हैं हम विकसित हो चले हैं
अगर विकसित का मतलब प्रति व्यक्ति आय ही सही तो अभी भी हम लगभग तेरह गुना विकसित राष्ट्रों की तुलना में पिछड़े हुए हैं तो हम विकसित कैसे हो गए लेकिन फरमान है तो आपको मानना पड़ेगा आप सोच रहे हैं यह बड़ी अजीबो गरीब स्थिति है कि फरमान कोई ऐसा कैसे
सकता है कि हम विकसित हो गए जिन्हें अभी आपके पास यह फरमान नहीं आएगा लेकिन कल परसों उसके बाद कभी भी आभी सकता है ये सवाल अब इसलिए बड़ा हो चला है क्योंकि इस देश के तमाम नौकरशाहों को इस देश में घूम घूमकर और पकाएं
फायदा ग्राम पंचायतों तक में घूम घूमकर यह बताना है कि भारत विकसित राष्ट्र होने की दिशा में संकल्प लेकर चल पड़ा है और इस देश के भीतर में जो एग्रीकल्चर यानी खेती है और जो किसान है उसकी माली हालत में कितना सुधार हुआ है सरकार ने किस किस
तरह के कि कौन कौन सी योजनाएं इस देश में लागू करती है यह बताने का का इस देश के आईएएस करेंगे वह तमाम अधिकारी करेंगे जो पीढ़ियों से लेकर कलेक्टर तक तमाम जिलों को संभालते हैं अब उनका यह काम है कि सरकार की उन कार्यक्रमों को जनता तक यह कहकर पहुंचा
माना है कि दरअसल हम कितने विकसित राष्ट्र होने की दिशा में पर चले तो हो सकता है आपके जहन में एक सवाल इस बात को लेकर भी हो क्या ऐसा तो नहीं है इससे पहले सेना को कहा गया कि आप सरकार के फ्लैगशिप कार्यक्रम को लेकर नौ शहरों में खून जाइए
और वहां पर अलग अलग प्वॉइंट बताइए और चूंकि सेना के प्रति जनता का भाव बेहतरीन होता है उसे गौरव महसूस होता है तो सरकार की योजना अगर सेना ही बताने लगे तो क्या फर्क पड़ता है सरकार तो जनता की है और उसकी योजनाएं जनता के लिए है तो फिर सेना को इसमें लगा दिया जाए उसका
अगला स्टेप अब नौकर शाही की दिशा में बढ़ा है
यानी सवाल बहुत पुराना हो चला है कि सरकार पूरे सिस्टम को अपने प्रचारक के तौर पर कैसे इस्तेमाल कर रही थी
यह सवाल पुराना हो चला है कि सत्ता में बने रहने के लिए सपा के लिए जो अलग अलग सरकारी संस्थानों का उपयोग इस दौर में हो रहा था वो सारे सवाल अब पीछे छूट गए
नया फरमान नौकर शाही के लिए है और इस नौकर शाही फरमान की एक तस्वीर जरा आप देख लीजिए जो तीन दिन पहले ही जारी की गई इस देश के भीतर में चाहे वह डिप्टी सेक्रेटरी हो ज्वाइंट सेक्रेटरी और डायरेक्टर लेवल का अधिकारी हो इस देश के भीतर में जितने भी जिले हैं
उन जिलों में जितने भी ग्राम पंचायतें हैं उन तमाम जगहों पर अगले सात दिनों तक ऐसा कार्यक्रम चलाया जाए जिससे लोगों के जहन में यह बात बस जाए कि हाँ यही वह परिस्थिति है जिसमें भारत विकसित तो हो चला है और इसके लिए बकायदा
जो फरमान जारी किया गया है व जे एस मलिक अंडर सेक्रेटरी गवर्नमेंट ऑफ इंडिया उनके जरिए यह फरमान प्रिंसिपल चीफ कमिश्नर ऑफ इनकम टैक्स उनको बताया गया कि आप ज्वाइंट सेक्रेटरी डायरेक्टर डिप्टी सेक्रेटरी हर अलग अलग सर्विस के भीतर डिप्लॉयमेंट होगा और एक रथ यात्रा निकलेगी
जिसके जरिए गांव गांव में आप सोचेंगे कितने का तो गांव तकरीबन दो लाख उनहत्तर हजार गांव और झीलें लगभग सात सौ पैंसठ जिले इन तमाम जगहों पर यह अधिकारी घूमेंगे हम इस बात का और आगे बढ़ाएं उससे पहले जरा इस फरमान को देख लीजिए
ठीक देखा आपने यही वह चिट्ठी है जो जारी की गई है और इसकी तारीख जो है वह सत्रह दस दो हज़ार तेईस की है जो फाई नंबर है वह आई तो एक सीरो फोर सेवन एक पब्लिक टू जीरो टू थ्री
और देश के सात सौ पैंसठ जिले दो लाख उनहत्तर हजार ग्राम पंचायतों में इस देश के भीतर एग्रीकल्चर यानी खेती और किसानों के कल्याण को लेकर सरकार ने जो भी काम किया है उसको बकायदा सेलिब्रेशन के साथ बतलाना है इन तमाम अधिकारियों को और नौ
हाल में सरकार की जो उपलब्धियां इस दौर में की गई वो सबकुछ इस दौर में बताना है और उसका नाम रखा गया है विकसित भारत संकल्प यात्रा जानकारी लेनी है जानकारी देनी है जागरुकता पैदा करनी है ग्राम पंचायत लेवल पर करनी है और यह बीस नवंबर दो हज़ार इक्कीस
से यह रथ यात्रा शुरू हो जाएगी जो कि पच्चीस जनवरी दो हज़ार चौबिस तक चलेगी यानी छब्बीस जनवरी के एक दिन पहले तक और इस दौर में जो भी प्रिपरेशन होगा जो भी प्लानिंग होगी उसका जो भी एक्सप्रेशन होगा उसकी जो भी मॉनिटरिंग होगी इस रथयात्रा को लेकर तमाम बड़े
अधिकारी एकजुट हो जाएं और इसके जो पद घोषित किया गया इसमें बड़े बड़े अधिकारी यह न सोचे कि उनका यह काम नहीं है इसी लिए बकायदा लिख दिया गया सरकार के भीतर डायरेक्टर तक कि अधिकारी ज्वाइंट सेक्रेटरी तक के अधिकारी डिप्टी सेक्रेटरी तक के अधिकारी से जुड़ेंगे और दिल्ली जैसे क्षेत्र
में भी पंद्रह अधिकारियों की स्पेशल तौर पर नियुक्ति होगी
हो सकता है आप सोच रहे होंगे अगर वाकई सरकार सूबे से लेकर रात तक और उनके इलाके का वीडियो हो या फिर जिले के भीतर में कलेक्टर और डीएम ही क्यों ना हो वहां भी अगर बताने लगेगा कि यह कमाल की स्थिति इस देश के भीतर आ चुकी है और हम विकसित राष्ट्र होने की दिशा में बढ़ चुके हैं तो सरकार का का
कार्यक्रम जरा समझ लीजिए
दिसंबर के महीने में प्रधानमंत्री मोदी इस देश में दो हज़ार सैंतालीस का वीजा रखें
कैसा विकसित राष्ट्र होगा उससे पहले विकसित राष्ट्र आपके जहन में बस जाना चाहिए इसीलिए इसकी शुरुआत बीस नवंबर से वह जाएगी और चूंकि यह रथ यात्रा के जरिए निकलेगा जो जिले जिले गांव गांव ग्राम पंचायत के भीतर रथ यात्रा के तौर पर देखा जाएगा तो जनवरी के महीने
आते आते अयोध्या में राम मंदिर और उसमें भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम भी हो जाएगा जिसमें प्रधानमंत्री शरीफ भी होंगे
यानी चुनाव की दिशा में बढ़ते हुए देश के भीतर में पहले सेना को झोंका गया अब देश की नौकरशाही को झोंका जा चुका है इस देश के भीतर में मीडिया उसको तो पहले ही अपने हाथ में ले लिया गया और बताया गया आपको किस रूप में कौन सा कार्य करना है
फरवरी के महीने में अंतरिम बजट कामना है उस अंतरिम बजट में इस रथयात्रा निकाली जायेगी गांव किसान मजदूर इनके कल्याणकारी योजना इनके हक को बताते हुए कि हमने आपको यही दे दिया है अब आप आंखमिचौली न करें कोई सवाल न करें तो एक क्षण के लिए जरा हमें लगता है
कि आज इस देश की उस स्थिति को समझिए जहां पर इस देश के ग्राम पंचायत और झीलों के भीतर सरकार इस संकल्प यात्रा जो विकसित भारत के नाम के साथ निकाल रही है उसका सच क्या है
बकायदा सरकार का नीति आयोग यह कहता है कि इस देश के भीतर में एक सौ पच्चीस एस्प्रेसो डिस्टिक उन्होंने बनाया जो बड़े ही गरीब जिले हैं उन गरीब जिलों के भीतर की प्रति व्यक्ति आय इस देश की औसत आय जो सरकार ने बताई उसकी तुलना में लगभग एक चौथाई है या
यानी पच्चीस पर्सेंट है
और अगर इन गांव के भीतर चले जाइएगा जिनकी संख्या एक सौ पच्चीस ब्रेसनन डिस्टिक के भीतर तकरीबन चालीस हजार से ज्यादा गांव जो यहां पर मौजूद हैं वहां पर न्यूनतम जरुरतों को पूरा करने के लिए भी इन लोगों को अभी भी पांव पर खड़ा हो पाने की स्थिति स
कार पैदा नहीं कर पाए भारत ग्रामीण जीवन का भारत है और ग्रामीण जीवन का मतलब यह है कि कमोवेश साठ फीसदी आबादी खेती पर निर्भर है
दो हज़ार चौबिस से पहले उनके जहन में इस बात को डाल दिया जाए कि भारत विकसित होकर कैसे पता चला है और यह फरमान नौकर शाही के लिए है इससे पहले सेना को था उससे पहले मीडिया को था और उसके साथ साथ इस देश की न्यायपालिका के जरिए भी बहुत कुछ अपने अनुकूल करने की कोई
कई माध्यमों से की गई बचा किया बची है संसद जिस संसद के भीतर जब कृषि कानून पर रिफॉर्म लेकर आया जाता है या तीन कानून लाए जाते हैं तो उसमें भी वोटिंग तक नहीं कराई जाती है और शोर शराबे के बीच उसको पार करा दिया जाता और देश में सात सौ अस्सी
ज्यादा किसानों की मौत उस आंदोलन को चलाते हुए हो जाती है जो प्रधानमंत्री जिस कानूनों की तारीफ कर रहे थे और सात सौ मौतों के बाद प्रधानमंत्री जागते हैं और कहते हैं ठीक है मैं इसे वापस लेता हूं लगता है आपको मैं समझा नहीं पाया तो इस देश के समूचे सिर्फ
सिस्टम को ही प्रचारक के तौर पर ये संघ के प्रचारक नहीं ही आप कह सकते हैं मोदी प्रचारक है जो बोधि प्रचारक जो संघ के प्रचारक से भी एक पायदान ऊपर खड़ा है क्योंकि सत्ता अब उसके हाथ में है और उसे ही देश के भीतर में उन बातों को पहुंचाना है जो नौ बरस में सरकार अपनी
नीतियों के आसरे हो सकता है न पहुंचा पाई हो लेकिन सरकार को लगता है उसने कर दिया काम तो कर दिया यानी कागज पर जो भी उपलब्धियां खींची गई है वही सच है और उसी को काम अब हर किसी को बताना है तो हो सकता है कल अगर आपको ऐसा लग रहा हो कि जी नहीं अभी हम
विकसित राष्ट्र कहा हुए हैं और विकसित राष्ट्र कैसे हो जाएंगे तो एक क्षण के लिए जरा समझने की कोशिश कीजिएगा भारत की ओवर ऑल इकनॉमी जो है उस इकोनॉमी के भीतर का सच क्या है यह हम बताएं उससे पहले दो बात दिमाग में रखिएगा
इकनॉमी कॉर्पोरेट के नेटवर्क से भारत में बढ़ रही है
भारत के भीतर में लोअर क्लास लोवर मिडिल क्लास मिडिल क्लास अपर मिडल क्लास सभी की स्थिति इस दौर में नाजुक होती चली जा रही है बड़ी तादाद में नौकरियां गईं बड़ी तादाद में नौकरियां पैदा हो नहीं पाई हमारे यहां का प्रोडक्शन कम हो गया उत्पादन सेक्टर नीचे चला गया इस देश के अलग
सेक्टर को लेकर जो स्थिति है उसमें स्थिति इतनी नाजुक है कि भारत की कैटगरी अगर इस देश की इंडस्ट्री और प्रोडक्शन और बेरोजगारी से जुड़ी जाए तो फिर हम एक गरीब राष्ट्र के तौर पर हमारा नाम आता है और इसीलिए जब भूख को लेकर यानी खाली पेट इस देश की कैसी स्थिति है
है जब वह एक सौ ग्यारह नंबर पर आ गया निचली पायदान से एक सौ इक्कीस देशों में तो सवाल था सरकार इसे मानेगी या नहीं मानेगी तो सरकार ने एक सिरे से इनकार कर दिया और जरा कल्पना कीजिए एक कैबिनेट मिनिस्टर यह कहती हैं कि मैं जब सुबह से लेकर शाम तक अलग अलग जगहों पर कहीं कॉन्फ्रेंस करने
हवाई जहाज की जाती हो फिर दूसरे शहर में जाते हो हवाई जहाज से और उसके बाद अचानक मुझे कोई फोन करके पूछे आपको भूख लगी है क्या तो मैं कहूंगी यहां मुझे भूख लगी है तो मुझे भी भूखों की शुमारी में शामिल कर दिया जाएगा यह बात इस देश के एक कैबिनेट मिनिस्टर कहती हैं
सवाल यह नहीं है कि यह देश के भीतर गरीब और सरकार के बीच कितनी बड़ी रेखा इस दौर में खींची जा चुकी है इतनी मोटी लकीर है कि अब उसे कौन सा सिस्टम पार करेगा तो सिस्टम नहीं बना पाए तो पूरे सिस्टम को ही सत्ता और सरकार और मोदी की उपलब्धियों के मद्देनजर अब
प्रचारक के तौर पर पूरे देश में फैलाने का जिम्मा सरकार ने ले लिया लेकिन बाहर आए जब हम आपसे जिक्र कर रहे थे एक सौ पच्चीस प्रश्न डिस्ट्रिक जहां की आए जो है तीस से चालीस हजार के बीच में घूमती है जो चार सौ से ज्यादा जो चालीस हजार से ज्यादा गांव है इस देश के भीतर दें
ग्राम पंचायत कहिए वहां पर जो स्थिति है अगर प्रति व्यक्ति आय के तौर पर देखेंगे तो बत्तीस हजार से नीचे यानी उस औसत से भी नीचे जिस दायरे में में डिस्टिक आते हैं अब यहां पर सवाल सबसे बड़ा ये आता है कि अगर ऐसी स्थिति है
तो क्या इस देश के भीतर में पहली बार सरकार को समझ में आ गया कि इस देश का गरीब सरकार से रूठा हुआ है सरकार समझ गई इस देश का किसान सरकार से रूठा हुआ है इस देश में ग्रामीण भारत के भीतर जितनी मुश्किल है अब सरकार को क्या समझ में आ गया तो सरकार ने प्रोपगेंडा का या स
कार ने अपनी उपलब्धियों को बताने के तौर तरीके में उस पूरे सिस्टम को ही लगाना तय किया जो बीस नवंबर से पच्चीस जनवरी तक हर गांव गांव में घूमकर बताएगा क्या कमाल हुआ है तो सच क्या हमें लगता है हम पूरे देश में जाए उससे पहले चुकी चुनाव का मौसम भी है स्थिति इस देश के भीतर में
ग्रामीण भारत और एग्रीकल्चर कि क्या है यह भी एक क्षण के लिए जरा समझ मसला इस देश में जीडीपी में जो योगदान होता है वह तकरीबन अट्ठारह पर्सेंट कृषि का योगदान होता है लेकिन एम्प्लॉयमेंट कृषि जो देती है इस देश के पैंतालीस छियालीस पर्सेंट लोगों को देती है
अब यहां पर सवाल है कि पैंतालीस छियालीस परसेंट औसत है पूरे देश का जिन राज्यों में चुनाव हो रहे हैं उन राज्यों का अगर औसत निकाला जाएगा तो वह तकरीबन साठ पर्सेंट बनेगा यानी साठ पर्सेंट एग्रीकल्चर पर निर्भर है मध्यप्रदेश राजस्थान और छत्तीसगढ़
हो या तेलांगना तेलांगना में कम है तकरीबन अड़तालीस परसेंट है छत्तीसगढ़ में यह लगभग तिरेसठ परसेंट है मध्यप्रदेश में यह लगभग साठ परसेंट है और जो जीडीपी का योगदान होता है राज्यों के भीतर भी अब आप कल्पना कीजिए कि मध्य प्रदेश के भीतर इंडस्ट्री है ही नहीं क्योंकि चौवालीस से ज्यादा परसेंट
जीडीपी में योगदान एग्रीकल्चर का है
यह स्थिति राजस्थान में लगभग उनतीस तीस पर्सेंट की है छत्तीसगढ़ के भीतर लगभग इक्कीस बाईस पर्सेंट की है लेकिन कृषि पर लोग टिके हुए हैं लगभग बारह पर्सेंट पहला मैसेज किया है कि अगर एग्रीकल्चर ना हो ग्रामीण भारत के भीतर की परिस्थिति में तो इस देश के भीतर
लोगों की मौत हो जाएगी परिस्थितियां इतनी नाजुक है कि क्या आर्थिक और सामाजिक तौर पर यह ऐसी परिस्थिति ले जाती है जहां व्यक्ति को लील ली
क्योंकि जब आप भूख का जिक्र करते हैं तो यूनाइटेड नेशन की रिपोर्ट इस सिलसिले में भी बताती है कि कितनी बड़ी तादाद में इस देश के भीतर में लोगों की परिस्थिति कैसे नाजुक होती चली गई और उनकी जिंदगी इस दौर में कैसे समाप्त हुई
लेकिन हमें लगता है फिर दोबारा लौटी है गांव के भीतर में सरकार रोजगार दे पाने की स्थिति में सिर्फ मनरेगा के साथ है मनरेगा में स्थिति इतनी नाजुक है कि जो लोग काम मांगने आ रहे हैं उनको भी काम दे पाने की स्थिति में नहीं है सरकार जो कि प्रति दिन दो सौ से ढाई सौ रुपए के बीच में अलग अलग राज्यों
मैं उसे देना पड़ता है
बजट में इस बार ही सात हजार रुपए निर्धारित किए गए छह महीने के भीतर उसमें से लगभग नाइंटी एक परसेंट खत्म हो गए यानी सत्तावन हजार रुपए खत्म हो गए
अब सरकार कहती है चालीस हजार रुपए और डाल देंगे चालीस हजार करोड़ रुपया और डाल देंगे
ताऊ करो और डालेगा तो एक लाख करोड़ हो जाएगा तो इस देश की ग्रामीण माली हालत के भीतर अगर और चलिएगा तो जरा सोचिए कि इस देश में किसानी से जुड़े हुए लगभग बारह करोड़ किसान और उसमें से हटकर जो महिलाएं हैं उनकी संख्या भी लगभग
सत्तर लाख महिलाएं भी किसानी से जुड़ी हुई हैं उनकी आय और उन पर किसान का वक्त करते वक्त उनकी लागत है उस लागत का रिटर्न भी नहीं मिल पा रहा है व फसल इस दौर में जो बर्बाद होती है उसमें जो सरकार की बीमा योजना है उस बीमा योजना का लाभ
सिर्फ बारह पर्सेंट को हुआ और कंपनियों को लाभ एक सौ बारह पर्सेंट से ज्यादा का होगी
किस इकोनॉमी के तहत कौन सी उपलब्धि सरकार जाकर बताने वाली है ये सिर्फ सोचिए कि इस देश के आईएएस भी अब इस काम में लगेंगे आईपीएस भी काम में लगेंगे सेना पहले से काम में लगी है प्रोफेशनल्स जो मीडिया से जुडे तो उनको उसमें झोंका जा चुका है और इन तमाम पृष्ठ
में पूरा सिस्टम ही एक ऐसा क्रिएट कर लिया गया जिसमें बोधि प्रचारक की परिस्थिति इस देश में हाई रैंकिंग में आकर टिक गई
हमें लगता है कुछ और चीज समझिए एम्प्लॉयमेंट ग्रोथ
दो हज़ार बाईस तेईस में एक परसेंट
अगले साल यानी तेईस चौबिस के से से हैं फ़ोन दिखला रहा है ग्रोथ में वन प्वाइंट गौण पर्सेंट का ग्रोथ है यानी कल्पना कर रहे हैं कि कैसे एम्प्लॉयमेंट ग्रोथ है गांव के भीतर में एम्प्लॉयमेंट ग्रोथ माइनस में है
इस देश के भीतर में जो एम्प्लॉयमेंट रेत की स्थिति है अगर उसको परखेंगे तो अगर युवाओं के बीच देखें बीस से चौबिस साल के भीतर में तो पिछले इलेक्शन से पहले यानी दो हज़ार उन्नीस के इलेक्शन से पहले दो हज़ार अट्ठारह उन्नीस में व एम्प्लॉयमेंट रेट बीस से चौबिस साल में अट्ठाईस पर्सेंट था
जो अब घटकर उन्नीस परसेंट हो गया है
जो हमारे यहां का ग्रामीण लेबर मार्केट है वहां पर अन्य एम्प्लॉयमेंट रेट इस दौर में लगभग साढ़े सात पर्सेंट तक आ चुका है
हमारी जो वर्क फोर्स है वह लगातार बढ़ रही है लेकिन काम न होने की वजह से स्थितियां नाजुक हो चली है
कौन कौन से सवाल किस किस रूप में इस देश के भीतर में जाकर टिक गई उसमें पहला बड़ा सवाल यही आ गया सरकार ने मान लिया कि वह जिन भी योजनाओं को इस देश में लेकर आती है वह जमीन तक पहुंच जाती है
उसका प्रचार प्रसार नहीं हो पा रहा है तो पहली बार पूरे सिस्टम को उसके प्रचार प्रसार में लगा दी
और लोगों के जहन में सुबह से लेकर रात तक सिर्फ अभी टेलीविजन पर चलता था अखबारों में रहता था अब अगर द्वारे द्वारे वहां के अधिकारी निचले स्तर के अधिकारी से लेकर कलेक्टर तक अगर इस बात का ऐलान करने लगे कि देखिए खेती की दिशा में हमने कितना सुधार कर दिया और सरकार की यह योजना
हैं इन योजनाओं से आपको इतना लाभ हुआ है तो अगले दो महीनों में यानी बीस नवंबर से पच्चीस जनवरी तक यही बात अगर बोली जायेगी तो उसके बाद चुनाव की दिशा में बढ़ते वक्त आपके जहन में हो सकता है आप खुद को न देखें कि आपके कपड़े कैसे हैं आप अपने आप को
देखिए आपके पेट में भोजन है या नहीं है आप यह न देख पाएं कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं नहीं जा रहे हैं आपके जहन में रहेगा हाथ सरकार ने यह कहा है तो उसी दिशा में चल पड़ी है यह एक तात्कालिक परिस्थितियां है जो बताती है कि भविष्य की दिशा में क्या वाक्य या आपके दरवाजे पर कोई फरमा इस तरीके
से आकर
चस्पा किया जा सकता है
क्योंकि कोई दूसरा सिस्टम इस देश में बचा ही नहीं जिस सिस्टम के आसरे ये सवाल किया जा सके कि सरकार ऐसा क्यों कर रही है अगर उसकी योजनाएं इस देश के भीतर में प्रभावी है
तो फिर जनता को बताने की क्या जरूरत है जनता अगर उसे महसूस कर रही है कि शानदार सरकार की योजनाएं हैं तो सरकार के साथ खड़ी है इसमें कौन सी मुश्किल है लेकिन पहली बार यानी जो सिस्टम को बनाने के लिए इस देश में एक रोजगार की लकीर एक वक्त नेहरू के दौर से शुरू हुई
कि बीडीओ तक का अधिकारी क्यों बनाने की जरूरत है और गांव के डेवलपमेंट में वीडियो का क्या योगदान होगा कैसे वह जुड़ेगा और ऊपर से नीचे तक पाइपलाइन नहीं बल्कि नीचे से ऊपर तक की पाइपलाइन जाएगी उस पाइपलाइन को तो मौजूदा सत्ता ने पकड़ लिया लेकिन उस पाइपलाइन के भीतर का जो मैटीरियल था वो रोजगार
से नहीं जुड़कर खेती से नहीं कर बेरोजगारी से नहीं कर व जुड़ गया कि इन योजनाओं को उपलब्धियों को बताने का काम है और यही काम सबको करना है तो इस स्थिति में एक आखरी सवाल यह है क्या चुनाव के वक्त जब पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं तो ऐसा न
ही है कि इन पांच राज्यों के भीतर अब यह अधिकारी सक्रिय नहीं होंगे क्योंकि वह तो बीस नवंबर से शुरू हो जाएगा
हालांकि उसके बाद की परिस्थिति है कि सत्रह नवंबर को जब वोटिंग हो जाए मध्य प्रदेश के भीतर में उसके बाद यहां पर जाएं अधिकारी लेकिन बावजूद इसके राजनीतिक तौर पर चुनावी बरस में सरकार का अपना कार्यक्रम बिल्कुल तय शुदा है दिसंबर दो हज़ार तेईस से भारत
विकसित हो रहा है भारत विकसित हो जाएगा भारत चकाचौंध में समाज जाएगा दुनिया में भारत एक ताकत के तौर पर होगा और उसके प्रहरी और उसके लिए आप ही सब कुछ होंगे और आप ही का जीवन बेहतरीन हो रहा है इसको आप को मानना शुरू दिसंबर के महीने से करना होगा
जिसका पूरा फार्मेट नीति आयोग बना रहा है कि भारत विकसित हो चला है और दो हज़ार सैंतालीस में कमाल हो जाएगा लेकिन अभी से आप उस कमाल को महसूस करना शुरू कर दीजिए भूल जाइए बाकी तमाम परिस्थिती
बहुत बहुत शुक्रिया
बहुत बहुत शुक्रिया