कि यही वह संसद है जो संसद के भीतर इस देश में इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर सहमति हो गई
यही वह संसद है जिसके भीतर इस देश में कर्ज लेकर भागने वाले रईसों पर ठप्पा लग गया यही वह संसद है जिसके जरिए इस देश में प्राइवेटाइजेशन या मोनेटाइजेशन को लेकर मुहर लगाई गई
यही वह संसद है जिसके भीतर प्रधानमंत्री की खामोशी कई लोगों को नहीं बल्कि इस देश को परेशान करती है और यही वह संसद है जिसके जरिए इस देश में बीते नौ बरस में जोड़ते चले जाइएगा और हैरत में आ जाइएगा तकरीबन पचास लाख करोड़ से ज्यादा का खेल इस संसद के भीतर हो गया
यह सब कुछ होता कैसे है और राज्यसभा के मद्देनजर भी यह भी सवाल बड़ा है कि राज्य सभा में सौ से ज्यादा सांसद ऐसे हैं जिनके सीधे ताल्लुका इस देश के कॉरपोरेट से जुड़े हुए हैं और कॉर्पोरेट अपने हक के लिए जिस भी आवाज को उठाना चाहते हैं संसद में वह आवाज
उठ जाती है वह चाहे क्वेश्चन आभार हो या फिर सामान्य तौर पर किसी सवाल के जरिए सरकार से जवाब मांगने की सोच हो लेकिन इस देश के भीतर में जनता से जुड़े सवाल गायब हो जाते हैं हमें लगता है कि आज तो संसद के बीच जब हम खड़े हैं तो हो सकता है आपको पुरानी संसद और उसकी तमाम कार्रवाइयां
याद आ रही हो और नई संसद को लेकर यह भी सवाल हो कि इसी संसद के भीतर तो चंद दिनों के भीतर ही कुछ ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया जो शब्द सामान्य तौर पर सड़क पर नहीं बोले जाते हैं लेकिन संसद के भीतर बोले गए और प्रधानमंत्री ने खामोशी बरत लेकिन हमें लगता है कि आज थे
देश की सबसे ताकतवर जगह पर खड़े होकर क्या उस संसद का जिक्र किया जाए जो संसद के भीतर पार्लियामेंट की सुनवाई और पार्लिमेंट की कार्रवाई दोनों के मद्देनजर प्रधानमंत्री की खामोशी और लगातार सरकार द्वारा ठप्पा लगाकर इस देश के भीतर लूट की परिस्थितियों को कैसे पैदा
किया गया
एक एक करके खोला जाय या इस बात का जिक्र शुरू में किया जाए कि प्रधानमंत्री मणिपुर पर खामोश क्यों रहे प्रधानमंत्री अपने ही पार्टी के सांसदों को लेकर कभी कुछ क्यों नहीं बोलते और उसकी एक लंबी फेहरिस्त है कानून मंत्री रिजिजू इस देश के जर्जर रिटायर्ड जज को धमकाते हैं प्रधानमंत्री खामोश रहते हैं
इस देश के गृह राज्यमंत्री टेनी और उनका बेटा उनका बेटा जीप से किसानों को रोक देता है लेकिन प्रधानमंत्री खामोश रहते हैं बीजेपी के सांसद ब्रजभूषण सिंह जोकि यौन शोषण पर आरोप लगता है उनके ऊपर में और आरोप लगाने वाली अंतरराष्ट्रीय पहचान पाई महिला खिलाड़ी प्रधानमंत्री खामोश
रहते हैं और नई संसद में हाल में एक नाम रमेश बिधूड़ी का जोर दिया लेकिन प्रधानमंत्री की खामोशी को थोड़ी देर के लिए दरकिनार कीजिए और लौट आइए इस पार्लियामेंट के सामने खड़े होने का मतलब और मकसद क्या है
इसी पार्लियामेंट में राफेल का मुद्दा या तो देश की सरकार ने कहा जी नहीं हम नहीं बताएंगे क्योंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ मसला है इसी पार्लियामेंट के भीतर में जब सरकार जासूसी कर रही और पेगासस का जिक्र हुआ तो सरकार ने कहा हम नहीं बताएंगे और सरकार खामोश हो गई तो नेशनल सिक्योरिटी
का मसला था लेकिन इससे इतर होकर लोकतंत्र के मंदिर में अगर धंधे के तरीके से इस देश की इकोनॉमी को चलाया जाने लगा तो फिर क्या हो सकता है यह हैरतअंगेज स्थिति नहीं है भारत के भीतर बीते नौ बरस में एक के कच्चे चिट्ठे को खोलिए का तो सरकार द्वारा लिया गया हर निर्णय हो सकता है आपको आज
परेशान करते हैं जब पहली बार इलेक्टोरल बॉन्ड पर ठप्पा लगा तो उस वक्त सोचा नहीं गया था कितने हजार करोड़ रुपए पॉलिटिकल पार्टी की फंडिंग में चलते चले जाएंगे और आज की तारीख में जुलाई तक का जुर्माना खड़ा है वो तेरह हजार सात सौ इक्यानवे करोड़ का है किसने दिया क्यों दिया किस रूप में दिया इसकी
जानकारी नहीं ली जाएगी और पार्लियामेंट में इस का ठप्पा लगा अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट के पास करवाए सुप्रीम कोर्ट ने भी अभी तक खामोशी बढ़ती हुई है लेकिन सवाल तेरह हजार सात सौ इक्यानवे करोड़ का नहीं है इसी पार्लियामेंट के भीतर मोनेटाइजेशन को लेकर जब वित्त मंत्री बताने लगी कि हमारे सामने टारगेट छः लाख करोड़
का है और इस देश के भीतर में तकरीबन बाईस मंत्रालय अपने विभागों के जरिए बताएंगे कि उन्हें किस किस रूप में किस किस तरीके से क्या कुछ बेचना है और प्राइवेट हाथों में सौंपना है और उसको मोनेटाइजेशन शब्द दिया गया और छः लाख करोड़ का डाटा रख दिया गया
उसके बाद जो प्राइवेटाइजेशन और जिस कॉर्पोरेट का जिक्र होता था उसको और पेट भर भी तो खामोशी बरती गई
आप कहेंगे कहा इन बातों का जिक्र करना शानदार हरी घास है पीछे दो दो पार्लियामेंट है इन बातों का गौर करना चाहिए तो हमें लगता है कि तीन मौके इस देश के भीतर में तब आए जब कॉर्पोरेट इकनॉमी को लेकर नेहरू के दौर में इंदिरा के दौर में और उसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में भी यह सवाल
उठा कि कॉरपोरेट और सत्ता के नेक्सस के जरिए पॉलिटिकल पार्टीज कैसे लाभ उठाती है और कॉर्पोरेट को कितनी सुविधाओं के साथ कौड़ियों के मोल क्या कुछ दिया जाता है
व तीन ऐतिहासिक तारीख के तौर पर तब्दील कर दी गई लेकिन मौजूदा वक्त में ये सारी चीजें रोजमर्रा की चीज बन गई और स्थितियां जी आ गई कि जब कॉर्पोरेट के हवाले करने का पूरा खाका हमारी पूरी टीम ने जब निकालना शुरू किया तो सवाल सिर्फ अंबानी अडानी का नहीं है इस देश के जो टॉप दस कॉर्पोरेट
सेक्टर हैं उनके हवाले इस देश की जो संपत्ति दी गई उसकी कीमत कुल मिलाकर अट्ठारह लाख करोड़ से ज्यादा की है
और उसको जिन कौड़ियों के मोल दिया गया अगर उसको आप इस इन्वेस्टमेंट के दायरे में लाकर खड़ा करेंगे तो सिर्फ तीन लाख करोड़ का आंकड़ा आपके सामने आकर खड़ा होगा
तो क्या पार्लियामेंट का मतलब सिर्फ एक बिजनेस डील की जगह हो गई है और क्या बिजनेस डील ही इस देश को चला रही है हाक रही है और एक ऐसी परिस्थिति को पैदा कर रही है जिसके बाद इस देश के खजाने में कुछ नहीं बचेगा और एक नई परिस्थिति इस देश के भीतर चलती चली जाए जिसमें आम लोगों से जुड़े सवाल गौण हो जाएं
जो अपराधी या उस पर खामोशी बरती जाए क्योंकि जैसे ही हम अपराधी शब्द बोलते हैं तो हमें ध्यान में आता है इसी पार्लियामेंट के भीतर जो सांसद बैठे हैं वो लोकसभा और राज्यसभा दोनों को मिला दीजिएगा तो सात सौ तिरेसठ सांसद हैं उन सात सौ तिरेसठ सांसदों में से तीन सौ छः पर क्रिमिनल केस चल रहे हैं
अब आप एक क्षण के लिए सोचिए कि पिछले दिनों जब महिला आरक्षण को लेकर यहां से सर्वसम्मति के साथ लोकसभा में दो लोगों ने विरोध किया लेकिन सर्वसम्मति के साथ जब मुहर लगी तो जो मुहर लगाने वाले लोग थे उसमें अट्ठाईस सांसद ऐसे भी थे
झीलों ने अपने हलफनामे में कहा था कि हां हमने महिलाओं के खिलाफ अपराध किया है और अपराध जितना विभत्स आप सोच सकते हैं वो सारी चीजें
हालांकि मर्डर किए हुए उनके आरोप लगे हुए हत्या के आरोपी का आरोप लगे हुए इस दौर में जो भी क्रिमिनल आस्पेक्ट हो सकता है उसके हलफनामे के साथ चुनाव लड़ने वाले सांसदों की तादाद तीन सौ छः है
सौ से ज्यादा कॉर्पोरेट से जुड़े हुए हैं जो कॉर्पोरेट की बात को पार्लियामेंट के भीतर रखते हैं तो फिर लोकतंत्र के मंदिर को लेकर कौन सा सवाल खड़ा किया जाए और यह सवाल अब इसलिए बड़ा महत्वपूर्ण हो चला है क्योंकि जब आप चुनाव की दिशा में बढ़ रहे हैं और दो हज़ार चौबिस के चुनाव को लेकर यह सवाल देशभर में है कि आखिर आईडी
ऑफ इंडिया होता क्या है
जिसका जिक्र राहुल गांधी कर रहे हैं ओबीसी आरक्षण का जिक्र वह क्यों कर रहे और अपने तौर पर सत्ता इस बात का जिक्र को कर रही है कि महिलाओं को लेकर वक्त पीछे खड़ी हो गई जबकि महिलाओं के खिलाफ अपराध इस दौर में बीते छह वर्षों के एनसीआरबी के दाते दो हज़ार चौदह से लेकर दो हज़ार बीस इक्कीस तक का बतलाता है कि
इससे पहले के दस बरस की तुलना में कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ते चले गए हैं
मैं सच क्या है
पहला मैसेज यह है कि पार्लियामेंट को क्या लोकतंत्र और कानून के नाम पर इस देश के सांसदों ने अपना कवच बना लिया और झूठ डीलिंग होने लगी संसद के भीतर वह सामान्य तौर पर पहले दिल्ली के अलग अलग हिस्सों में पांच सितारा होटलों में या कुछ अलग जगहों पर होती थी जिसमें लगता था कि यह क्रोनिक कैप
कलेजा है लेकिन उसको भी जामा कानूनी तौर पर अगर राजनीतिक सत्ता पहना देती है तो आप क्या करेंगे
सवाल इतना भर नहीं है क्योंकि जो पूरे आंकड़े निकलकर आई उसमें इलेक्टोरल बॉन्ड के और तो और जो बैंक का एनपीए जो माफ किया गया जो ओवरऑल तकरीबन अट्ठारह लाख करोड़ तक जाता है
इतना कर्ज अगर माफ कर दिया गया और कर्ज लेकर भागने वाले लोग लगातार कहते रहे कि हम कर्ज नहीं लौटा पाएंगे और पार्लियामेंट के भीतर जब ये सवाल सरकार से पूछा गया तो सरकार अपने तौर पर रिटर्न जवाब देती है कि हां इतना एनपीए तो हुआ है और इसमें इतनी हमले रिटर्न ऑफ किया यानी
ही देती है
खुले तौर पर सारी चीजे अगर होने लगे तो सवाल इसका दूसरा निकलकर आता है पुरानी पार्लियामेंट से आप चंद फर्लांग सटा हुआ आप दूसरी पार्लिमेंट को देख सकते हैं
लोकतंत्र के मंदिर के तौर पर ही इसकी पहचान और राजदंड के साथ इसकी पहचान दी गई लेकिन काहे का राजदंड और काहे का लोकतंत्र जिस पार्लियामेंट के भीतर संसद शब्द कहें जिस पार्लियामेंट के भीतर महिलाओं के खिलाफ अपराध करने वाले आरोपी महिला आरक्षण पर मुहर लगाई
अभी तो यही दो चीजें हुई है
तो तीसरी परिस्थिति क्या निकलती हमको लगता यह तीसरी स्थिति इस पार्लियामेंट के भीतर जितनी बड़ी तादाद में सवाल इस देश के लोगों से जुड़कर आए और बीते तीन बरस के भीतर सिर्फ तीन बरस हम ले रहे हैं आपको जानकर हैरत होगी कि जनता से जुड़े हुए तकरीबन एक हजार
सवाल उठ ही नहीं पाए
वो आए चले गए सौंप दिया गया मंत्रालयों के भीतर में चीजें चलती चली गई अब यहां सवाल होता है क्या वाकई इस देश के भीतर में अगर कॉर्पोरेट घोटाला हुआ हो तो देश का प्रधानमंत्री खामोश रह सकता है इंदिरा गाँधी खामोश नहीं रही अटल बिहारी वाजपेयी खामोश नहीं रहा है मनमोहन सिंह को बोलना पड़ा पीवी
भराव भी बोले नेहरू भी जिक्र किया करते थे कि क्रोनी कैपिटलिज्म से कैसे बचा जाए किस रूप में बचा जाए
इस दौर में नहीं बोलेंगे
आज की तारीख में जब हम आपसे बात कर रहे हैं तब भी मणिपुर जल रहा है वहां के मुख्यमंत्री के घर पर हमला हो जाता है वहां बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष जो है उनके घर पर हमला हो जाता है लेकिन सरकार मौन है सरकार कुछ नहीं कहेगी तो इस पार्लियामेंट के सामने खड़े होकर दो हज़ार चौबिस के चुनाव का आकलन इस देश में किया जाए
मीडिया की यह मजबूरी हो गई है
ये सवाल इसलिए जरूरी है क्योंकि जैसे जैसे चुनाव करीब आ रहा है वैसे वैसे लोकसभा और सांसदों को लेकर और सांसद बनने वाले उम्मीदवारों को लेकर और जो सांसद हैं उनको विधान सभा में उम्मीदवार के तौर पर भेजने को लेकर बड़ी गहन चर्चा हो रही है
लेकिन हमें लगता है कि आज इस पार्लियामेंट का जिक्र इसलिए भी जरूरी है
लगभग
एक सौ तीन सवाल ऐसे रहे जो किसानों के आंदोलन के बाद किसानों से जुड़कर पार्लियामेंट के भीतर उठने चाहिए थे नहीं उठ पाए इस देश के भीतर में जो दिहाड़ी मजदूर और मनरेगा से जुडे हुए सवाल थे वह तकरीबन नाइंटी एक सवाल ऐसे थे जिन सवालों को उठना
चाहिए था लेकिन नहीं उठ पाए इसके भीतर इस देश में बेरोजगारी को लेकर ग्यारह बड़े सवालों का जिक्र विपक्ष करना चाहता था लेकिन वह नहीं उठ पाया इस दौर में महंगाई को लेकर और पीपीएफ का पैसा निकालने को लेकर और उसी के जरिए जिंदगी चलेगी इसको लेकर सवाल तकरीबन सोलह
सवाल थे जो नहीं उठ पाए जो बड़े सवाल थे लेकिन उसको उठाने की इजाजत नहीं मिल पाई या शोर शराबे में सारी चीजें गायब हो गई
जो चीजें उठी अगर वह लाखों करोड़ के हिस्से के आसरे इस दौर में चल रही है तो फिर अब क्या नई संसद के जरिए हम उस राजदंड को परखना शुरू करते हैं जिसके जरिए तीन बातें निकलकर आ रही है कि जब हाथ में राजखंड होगा तो फिर राजा का राज होगा और वह जनता को प्रति कहीं न कहीं निष्पक्ष भाव से दे
रहेगा यानी हम राजतंत्र की परंपरा में आकर खड़े हो गए
और जो पुरानी संसद है उसको तो संविधान सभा के तौर पर घोषित कर दिया गया तो संविधान में लिखे शब्द और नए लोकतंत्र के मंदिर में उन शब्द का महत्व कुछ भी नहीं है जबकि दोनों इमारतें बिल्कुल सटी हुई यह ध्यान से देखिए ये दोनों इमारतें फर्लांग की दूरी पर है
यह दोनों इमारतों के बीच अगर तारतम्य इमारतों के तौर पर नहीं है तो फिर इसका क्या मतलब है
जहां पर एक सवाल हर कोई करता है कि नौ सौ करोड़ में नए पार्लमेंट को बनाने की जरूरत क्या थी
इस नौ सौ करोड़ के नए पार्लियामेंट के जरिए एक झटके में आप पुरानी पार्लियामेंट के भीतर दो हज़ार चौदह के बाद से जो भी इकनॉमिक आस्पेक्ट में डील हो रही थी
अलग अलग तरीके से कॉर्पोरेट को लेकर बैंकों को लेकर एनपीए को लेकर इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर वो सारी कि और प्राइवेटाइजेशन और मॉडर्नाइजेशन को लेकर वो सारी चीजें वहीं दफ्न हो गई अब नई पार्लियामेंट है तो आप नए तरीके से चीजों को सोचना समझना शुरू कीजिए
और इस नौ सौ कोड की पार्लियामेंट में अगले छह महीने के भीतर सिर्फ छह महीने का वक्त है उसके बाद यह देश इलेक्शन में चला जाएगा नोटिफिकेशन आ जाएगा सरकार कोई निर्णय लेने नहीं पाएगी और उसके बाद की परिस्थिति बहुत साफ बताती है कि इन छह महीनों में कैसी होनी है
इसकी एक आहत आपको सिर्फ इससे लग सकती है कि प्रधानमंत्री इस छह महीने के भीतर देश भर में अलग अलग राज्यों में घूमें और जहां जहां बीजेपी की हालत खस्ता है वहां वहां जाकर व हजारों करोड़ रुपये की योजनाओं का ऐलान करेंगे जैसे आज तेलांगना में तकरीबन तेरह करोड़ रुपये की योजना का
उन्होंने ऐलान कर दिया यही परिस्थिति कल मध्यप्रदेश के साथ थी
तो छह महीने का वक्त मिला है कि जितनी भी योजनाओं का ऐलान आप कर सकते हैं करिए
और लोगों को उसकी मदहोशी में ले आइए और सामान्य तौर पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर जब कोई भी सवाल हो तो सवाल का जवाब यही दीजिए कि भारत उसकी तो डीएनए में डेमोक्रेसी है उसकी रगों में डेमोक्रेसी दौड़ती है तब यहां पर डेमोक्रेसी का सवाल भी शुरू होता है और डेमोक्रेसी के आसरे
लोगों की भागीदारी गवर्नेंस के साथ कितनी है या गवर्नेंस जो निर्णय लेती है उसकी भागेदारी कितनी जनता के साथ होती है जहां पर आपको ध्यान देना होगा तक तकरीबन इस दौर में इस दो हज़ार उन्नीस में जब दोबारा सरकार चुनकर आई तब से लेकर अब तक जो लोक कल्याणकारी
योजनाओं का जो बजट था वह भी गायब हो गया
प्रचार प्रसार पर बजट जरूर हुआ आज इसका जिक्र इसलिए भी जरूरी है क्योंकि आज ही स्वच्छता अभियान महात्मा गांधी की जयंती से एक दिन पहले एक अक्टूबर के दिन श्रम दान के तौर पर सांसदों और सरकार ने इसलिए अपने आप को उसमें खपाया कि जनता के भीतर जो सवाल है उनकी जो जोड़ते हैं
उस को दरकिनार किया जा सके क्योंकि एक अक्टूबर दो हज़ार इक्कीस को जब सेकंड फेज की शुरुआत प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत को लेकर की थी तो उस समय बजट तय हुआ था तकरीबन अट्ठारह करोड़ रुपए उसके अगले बरस यह दो हजार करोड़ रुपए हो गया और पिछले बजट में यह पाँच हजार करोड़ तक चला गया
एक सवाल हर कोई जानना चाहता है कि इस देश में स्वच्छ भारत के प्रचार पर कितना खर्च हुआ और आपको जानकर हैरत होगी कि सरकार द्वारा निर्धारित बजट जो दो हज़ार चौदह से चला आ रहा है उसका लगभग अड़तालीस फीसदी हिस्सा प्रचार में खर्च हुआ सभी की स्थिति क्या है ये हम आप लगातार
परख रहे हैं तो ऐसे में दोबारा उस आखिरी सवाल पर लौटकर आई है कि आखिर लोकतंत्र का मंदिर सरकार के लिए कवच का काम करता है लोकतंत्र का मंदिर इस देश के जो आरोपी अपराधी है
उनके लिए एक पांच सितारा हसीन होटल के तौर पर है
क्योंकि जेल तो उन्हें हो नहीं सकती है तो क्यों विशेषाधिकार से लैस है लेकिन इसके ठीक समानांतर
जो इस देश की जांच एजेंसियां है उनके पास जो केस दो हज़ार चौदह तक बीजेपी के सांसदों को लेकर थे बीजेपी के नेताओं को लेकर थे
उसके तकरीबन एक सौ तेईस के इस दौर में बंद होगा या ठंडे बस्ते में पड़े हैं उसके बाद एक सौ उनतीस सांसद और विधायकों के खिलाफ जो केस बंद कर निकला वह सभी विपक्षी राजनीतिक दलों के हिस्सा थे
यानी इस पार्लियामेंट के भीतर मुहर लगती है इस बात को लेकर कि इस देश का पूरा सिस्टम पूरी ब्यूरोक्रेसी और पूरी गवर्नेंस सिर्फ राजनीति को साधने के लिए ही काम करेगी इससे हटकर वह कोई काम नहीं करेगी
तो क्या वाकई पार्लियामेंट के सामने खड़े होकर किसी तरीके से आप गौरवान्वित खुद को महसूस यह कह कर कर सकते है कि शानदार हरी चादर है शानदार खास है शानदार इमारत बनी हुई है एक अंग्रेजों की बनाई इमारत है दूसरी प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल के दौर की इमारत है और यही लोकतंत्र का मंदिर है जिसमें इस देश के
भीतर लोकतंत्र को लेकर कुछ सवाल तो किए जाते हैं
सबसे आखिर की सबसे महत्वपूर्ण बात है
पार्लियामेंट के भीतर प्रधानमंत्री के भाषण जितने भी हुए उन भाषणों का लगभग बहत्तर पर्सेंट हिस्सा बहत्तर फीसदी हिस्सा सरकार ने अपनी उपलब्धियों को बताने पर खर्च किया यानी हमने यह किया है हमने हो किया है हमने
दो सौ दो योजनाएं कल्याणकारी लिए आए हैं हम इस दौर में डिजिटलाइजेशन जो देश में कर उससे यह लाभ हुआ है कमोबेश हर क्षेत्र को लेकर सिर्फ
एक दर्जन या कहें सत्रह मामले ऐसे हैं जिसको लेकर सरकार को जिस कॉर्पोरेट जिस प्राइवेटाइजेशन जिस मोनेटाइजेशन जिस बैंक और जिससे एनपीए और जिस इलेक्टोरल बॉन्ड और जिस पॉलिटिकल इकोनॉमी को लेकर सवाल करने थे उसमें सिर्फ सत्रह मामले ही आए जिसमें जवाब भी फाइनेंस मिनिस्टर ने दिया और उसमें भी
बारह जवाब लिखित तौर पर दिए गए यानी पार्लियामेंट के भीतर वह खड़े होकर बोल पाने की स्थिति में नहीं थी
तो क्या भारत की राजनीति कल तक जो पार्टियों के हेडक्वार्टर में बंटी और सजती थी व नए सिरे से निकलकर अगर आपके पास दो सौ बहत्तर के जादुई आंकड़े को पार करने की ताकत है तो फिर यह संसद आपके लिए स्वागत करने को तैयार है इसके बाद आप जैसे चाहें वैसी मन
जी कर सकते हैं और एक प्रक्रिया के बाद इस देश की हर नियुक्ति भी आपके हाथ में होगी क्योंकि इसी पार्लियामेंट के भीतर इलेक्शन कमीशन के इलेक्शन कमिश्नर की नियुक्ति हम भी करेंगे इस पर भी ठप्पा लग गया इसी पार्लमेंट के भीतर दिल्ली सरकार के पास कोई पावर नहीं है सभी राज्यपाल के पास पावर है लेफ्टिनेंट गवर्नर के पास पावर है सुप्रीम कोर्ट
यह कहते रहा कि एक चुनी हुई सरकार है उसको भी पार्लियामेंट के भीतर ठप्पा लगा दिया गया जी नहीं चुनी हुई सरकार का कोई मतलब नहीं है क्योंकि यह दिल्ली
तो सुप्रीम कोर्ट का खत्म होना इलेक्शन कमीशन का खत्म होना इस देश की प्रीमियर जांच एजेंसियों का खत्म होना इस देश के भीतर में इकनॉमिक डील कॉर्पोरेट के साथ खुले तौर पर करना इस देश के भीतर की तमाम परिस्थितियों में अपनी उपलब्धियों को ही रखते हुए ज
जनता के सवालों से दूर हो जाना ये सारी परिस्थितियां बहुत साफ तौर पर बतलाती है यही वो पार्लियामेंट है जहां के सवाल आप तक इसलिए नहीं पहुंचते हैं क्योंकि आपकी सरोकार इस पार्लियामेंट से खत्म हो चले हैं और पार्लियामेंट को भी फिक्र नहीं है कि आपके साथ कोई सरोकार
करने की स्थिति में आए तो की ताकत उसके पास है हर चौराहे पर खड़ा पुलिसकर्मी हो या हर दफ्तर में बैठा हुआ बाबू हो वह घबराता और धर्ता है कि सत्ता जो है
उसके साथ नहीं चले तो आने वाले वक्त में मुश्किल होगी और यह स्थिति दिल्ली से निकलकर तमाम राज्यों में धीरे धीरे फैलती चली गई और राज लखनऊ हो यानी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ हो या पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता ही क्यों ना हो हर राज्य की ताकत उस ताकत के आसरे जाकर
खड़ी हो गई कि अब हम चुन लिए गए हैं तो सिर्फ और सिर्फ हम ही हैं यही डेमोक्रेसी है और डेमोक्रेसी का यह रूप आप इसको लोकतंत्र का मंदिर कहें या बगल में संविधान सभा के तौर पर देखें स्थितियां कितनी नाजुक है यह सिर्फ उसकी एक तस्वीर भरा है
बहुत बहुत शुक्रिया