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Sunday, 29 May 2022

JUH देवबंद अधिवेशन . 27-28- May 2022

 प्रेस नोट

सांप्रदायिकता और नफरत का जवाब प्रेम और सद्भाव से दिया जाना चाहिए - मौलाना महमूद मदनी

देश में जारी सांप्रदायिकता और इस्लामोफोबिया के खिलाफ जमीअत उलेमा-ए-हिंद ने एक हजार सद्भावना संसद आयोजित करने की घोषणा की।
नई दिल्ली: 28 मई 2022

जमीअत उलेमा-ए-हिंद की राष्ट्रीय प्रंबंधक कमेटी का अधिवेशन आज सुबह देवबंद के उस्मान नगर (ईद गाह मैदान) में शुरू हुआ, जिसमें जमीअत उलेमा-ए-हिंद के लगभग दो हजार सदस्यों और गणमान्य अतिथियों ने भाग लिया। जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष महमूद असद मदनी की अध्यक्षता में हुए बैठक के पहले सत्र में देश में बढ़ती नफरत की रोकथाम, इस्लामोफोबिया की घटनाओं और मुसलमानों और गैर मुस्लिम समुदाय के संयुक्त मंच जमीअत सद्भावना मंच के गठन पर विस्तार से चर्चा हुई और प्रस्तावों को मंजूरी दी गई।

अपने अध्यक्षीय भाषण में मौलाना महमूद मदनी, अध्यक्ष, जमीअत उलेमा ए हिंद, ने सामाजिक समरसता के महत्व को उजागर किया। उन्होंने कहा कि देश के हालात मुश्किल जरूर हैं लेकिन मायूस होने की कोई आवश्यकता नहीं है।

उन्होंने कहा कि मुसलमान आज देश का सबसे कमज़ोर तबका है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हम हर बात को सर झुका कर मानते जायेंगे, हर ज़ुल्म को बर्दाश्त करते जायेंगे। हम ईमान पर कोई समझौता नहीं करेंगे। आपने कहा कि देश में नफ़रत के खिलाड़ियों की कोई बड़ी तादाद नहीं हैं लेकिन सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि बहुसंख्यक खामोश है लेकिन उन्हें पता है की नफ़रत की दुकान सजाने वाले देश के दुश्मन हैं।

उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों ने बड़ी कुर्बानियां दी हैं और हम साम्प्रदायिक शक्तियों को देश की अस्मिता से खिलवाड़ नहीं करने देंगे। मुसलमानों को अतिवाद और तीव्र प्रतिक्रिया से बचना चाहिए। आग को आग से नहीं बुझाया जा सकता। इसलिए सांप्रदायिकता और नफरत का जवाब नफरत नहीं हो सकता। इसका जवाब प्रेम और सद्भाव से दिया जाना चाहिए।

मौलाना महमूद मदनी ने परोक्ष रूप से अंग्रेजों से माफी मांगने वालों को भी आड़े हाथों लिया। आपने कहा कि घर को बचाने और संवारने के लिए कुर्बानी देने वाले और होते हैं और माफी नामा लिखने वाले और होते हैं। दोनों में फर्क साफ होता है। दुनिया ये फर्क देख सकती है कि किस प्रकार माफी नामा लिखने वाले फासीवादी सत्ता के अहंकार में डूबे हुए हैं और देश को तबाही के रास्ते पर ले कर जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि जमीअत उलमा ए हिंद भारत के मुसलमानों की दृढ़ता का प्रतीक है। साथ ही जमीअत सिर्फ मुसलमान तक ही सीमित नहीं है बल्की यह देश की पार्टी है। मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि साम्प्रदायिक नफ़रत को दूर करना मुसलमानों से कहीं अधिक सरकार और मीडिया की जिम्मेदारी है।

इससे पहले जमीअत के पदाधिकारियों ने देश और समाज के मुददों पर प्रस्ताव पेश किये जिनका अनुमोदन भी किया गया। इन प्रस्तावों के ज़रीये देश की समस्याओँ के समाधान के लिये एक रूर रेखा देने का भरसक प्रयत्न किया गया।

देश में नफ़रत के बढ़ते हुए दुषप्रचार को रोकने के उपायों पर विचार के लिये प्रस्तुत प्रस्ताव में देश में नफ़रत के बढ़ते हुए दुषप्रचार को रोकने के उपायों पर विचार के लिये व्यापक चर्चा की गयी। प्रस्ताव के माध्यम से इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त की गयी कि देश के मुस्लिम नागरिकों, मध्यकालीन भारत के मुस्लिम शासकों और इस्लामी सभ्यता व संस्कृति के खि़लाफ़ भद्दे और निराधार आरोपों को ज़ोरों से फेलाया जा रहा है और सत्ता में बैठे लोग उनके खि़लाफ़ कानूनी कार्रवाई करने के बजाय उन्हें आज़ाद छोड़ कर और उनका पक्ष लेकर उनके हौसले बढ़ा रहे हैं।

जमीअत उलेमा-ए-हिंद इस बात पर चिंतित है कि खुले आम भरी सभाओं में मुसलमानों और इस्लाम के खि़लाफ़ शत्रुता के इस प्रचार से पूरी दुनिया में हमारे प्रिय देश की बदनामी हो रही है और उस की छवि एक तास्सुबी, तंगनज़र, धार्मिक कट्टरपंथी राष्ट्र जैसी बन रही है। इससे हमारे देश के विरोधी तत्वों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने का मौक़ा मिल रहा है।

प्रस्ताव में कहा गया कि जमीअत उलेमा-ए-हिंद ख़ास तौर से मुस्लिम नौजवानों और छात्र संगठनों को सचेत करती है कि वे देश के दुश्मन अंदरूनी व बाहरी तत्वों के सीधे निशाने पर हैं, उन्हें निराश करने, भड़काने और गुमराह करने के लिए हर सम्भव तरीक़ा अपनाया जा रहा है। इससे निराश न हों, हौसले और समझदारी से काम लें और जमीअत उलेमा ए हिंद और इसके नेतृत्व पर भरोसा रखें।

मौलाना सलमान मंसूरपुरी, उपाध्यक्ष, जमीअत उलेमा ए हिंद ने इस्लाम धर्म के खिलाफ़ जारी नफरत
( इस्लामोफोबिया ) से संबंधित प्रस्ताव के अनुमोदन पर अभिभाषण में कहा कि  मुसलमान अपने रवैए से ये साबित करने की कोशिश करें कि वो सिर्फ अपने धर्म को ही सर्वोपरि नहीं मानते। इस्लाम के विश्वबन्धुत्व के सन्देश को आम किया जाये। अंतरधार्मिक संवाद को बढ़ाने के भी प्रयास किए जाएं। मुसलमान अपने क्रिया कलापों से इस्लाम के सही पैरोकार बनें। सरकार ऐसे मेनस्ट्रीम और यूट्यूब चैनलों जो इस्लाम धर्म के खिलाफ उन्माद फैलाते हैं रोक लगाई जानी चाहिये।

अधिवेशन में जमीअत द्वारा सामाजिक सौहार्द के लिये सद्भावना मंच गठित किये जाने के प्रस्ताव को भी मंज़ूरी दी गयी जिसके तहत जमीअत ने देश में 1000 ( एक हज़ार ) सद्भावना मंच स्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसका उद्देश्य देश और समाज में आपसी सहिष्णुता और सद्भावना को बढ़ाना है। इस प्रस्ताव पर अपने संबोधन में हज़रत मौलाना मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी, कुलपति, दारुल उलूम देवबंद ने देश की सांस्कृतिक विविधता की प्रशंसा की।  आपने कहा कि मुसलमानों ने हमेशा देश की सद्भावना को सुदृढ़ करने में योगदान दिया है। समाज के दबे कुचले तबके के उत्थान के लिए भी प्रयास किए जाने चाहिए। सद्भावना मंच के दायरे को बढ़ाया जाना चाहिए।

इस अवसर पर जमीअत उलेमा-ए-बंगाल के अध्यक्ष मौलाना सिद्दीकउल्लाह चौधरी, शैखुल हदीस दारुल उलूम देवबंद मौलाना सलमान बिजनौरी, मौलाना हबीब-उर-रहमान इलाहाबाद और अन्य ने भी संबोधित किया।

बैठक का संचलन जमीअत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना हकीमुद्दीन कासमी ने किया। उन्होंने जमीअत उलेमा-ए-हिंद के द्विवार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत किया जिसमें जमीअत की महत्वपूर्ण सेवाओं का उल्लेख किया गया है।उन्होंने पिछली कार्यवाही भी पढ़ी।
 

इससे पहले जमीअत उलेमा-ए-हिंद ने एक अहम प्रस्ताव में कहा  कि सरकार के संरक्षण में देश में सांप्रदायिकता की काली हवा बह रही है, जिसने बहुसंख्यक वर्ग के दिमाग में जहर घोलने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। मुसलमानों, मुस्लिम शासकों और इस्लामी सभ्यता के खिलाफ निराधार प्रचार का अभियान जोरों पर है और अधिकारी इसमें लिप्त लोगों को  कानूनी रूप से गिरफ्तार करने के बजाय रिहा कर रहे हैं। इससे विश्व स्तर पर प्यारी मातृभूमि को बदनाम किया जा रहा है  और भारत दुनिया में कट्टरता, संकीर्णता और धार्मिक अतिवाद का प्रतीक बनता जा रहा है, जिसके कारण भारत विरोधी तत्व अंतरराष्ट्रीय मंच पर आ गए हैं। ऐसे में, देश की अखंडता और विकास के संबंध में जमीअत उलेमा -ए-हिंद ऐसे उपायों को तत्काल रोकने के लिए भारत सरकार का ध्यान आकर्षित करना चाहती है क्यों कि ये लोकतंत्र, न्याय और समानता की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं हैं।
जमीअत उलेमा-ए-हिंद इस स्थिति पर चिंतित है और निम्नलिखित उपाय करने की आवश्यकता महसूस करता है:
 2017 में प्रकाशित विधि आयोग की 267वीं रिपोर्ट के अनुसार, हिंसा भड़काने वालों और सभी अल्पसंख्यकों को विशेष रूप से दंडित करने के लिए एक अलग कानून बनाया जाना चाहिए; विशेष रूप से, मुस्लिम अल्पसंख्यकों को सामाजिक और आर्थिक रूप से अलग-थलग करने के प्रयासों को विफल किया जाना चाहिए।  इस अधिवेशन में हर साल 15 मार्च को "विश्व इस्लामोफोबिया" दिवस मनाने की भी घोषणा की गई।
सद्भावना मंच पर एक प्रस्ताव में, जमीअत ने घोषणा की कि वह धर्म संसद के माध्यम से घृणास्पद व्यक्तियों और समूहों के प्रभाव को खत्म करने के लिए देश भर में कम से कम एक हजार सद्भावना संसद बुलाएगा। विभिन्न धर्मों के प्रभावशाली लोगों को आमंत्रित किया जाएगा।

आज की बैठक में जमीअत उलेमा, दारुल उलूम देवबंद, दारुल उलूम वक्फ से जुड़ी देश की कई अहम हस्तियां और अन्य जिम्मेदार व्यक्ति भी मौजूद थे.
आवाज उठेगी फिर देवबंद से
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Friday, 27 May 2022

વહોરા કૌમની જાહોજલાલી ખતમ થવાનુ કારણ શુ?.

       "સમાજના વડીલ જાગૃત નાગરીક ની કલમથી સોશિયલ મિડીયા વાયરલ મેસેજ"

   વહોરા કૌમનો સુવર્ણ કાળ ક્યારનો ખતમ થઈ ગયો છે. એક સમયે દક્ષિણ ગુજરાતમા દબદબો ધરાવતી વહોરા કૌમ પાસે ઘણુ બધુ હતુ પણ આજે એ ખાલીખમ થઈ ચુકી છે. દેશમા કોગ્રેસનુ રાજ તપતુ હતુ ત્યારે વહોરાઓ પાર્ટીમા અને સત્તામા નાના મોટા હોદ્દાઓ ભોગવતા અને શોભાવતા. અમુક તો જિલ્લા પંચાયત પ્રમુખ બનતા અમુક સંગઠનના જિલ્લા પ્રમુખ બનતા. એક વ્હોરા અહમદ પટેલ લોકસભા જીતીને સાંસદ બનતા. રાષ્ટ્રીય રાજકારણમા અહમદ પટેલનુ કદ મોટુ થતા અંહીના વ્હોરાઓ આકાશમા ઉડતા. 
    આર્થિક દ્રષ્ટિએ આકલન કરીએ તો બહુધા ગામડા અને કસ્બામા વસવાટ કરતા વહોરાઓ મોટી મોટી જમીન જાગીરના માલિક હતા.  આખેઆખા ગામના મહેસૂલી રુકબાઓ લગભગ વહોરાઓની માલિકીના હતા. આંબાવાડીઓ, ચીકુવાડીઓ પર વહોરાઓ માલિકી ભોગવતા તો રાંદેર, ખોલવડ, કઠોર જેવા ગામોના વહોરાઓ શાહ સોદાગર હતા. મોટા મોટા ધંધાઓના માલિક હતા. સમૃદ્ધિની છોળ ઉડાડતા વહોરાઓ મોભાદાર હતા. વિદેશમા વસવાટ કરી ત્યાના ચલણમા કમાણી કરી દેશના રુપિયામાં ડાયવર્ટ કરનારા વહોરાઓ માલામાલ હતા. એક તરફ લીલી ખેતીવાડી અને બીજી તરફ વિદેશની ધૂમ કમાણીથી વહોરાઓ મલકાટા. 
    ધાર્મિક નજરીયાથી જોઇએ તો વહોરાઓ દીનદાર હતા. ભોળા અને મુખ્લિસ હતા. રાંદેર, તડકેશ્વરમા દીની દર્સગાહો બનાવી નિભાવતા. તબ્લીગ જમાતને દાવતો ખવડાવતા વહોરાઓ મોટા મોટા ઇજતેમાઓ કામયાબી સાથે યોજતા અને દીનની ખિદમત કરતા.વહોરાઓ એખલાસ થી દીન પર અમલ કરતા.
સમાજની સોસાયટી બનાવી એ દ્રારા સ્કૂલ, બોર્ડિંગ બનાવતા, ચલાવતા વહોરાઓ ભવિષ્ય ને વધારે દીપાવવા પ્રયાસ કરતા. સારા સારા સમાજ સેવકોની ભરમાર હતી જેઓ ગામેગામ નો પ્રવાસ કરી કૌમના તકાજાઓ પૂરા કરતા.  
  આટલી બધી જાહોજલાલી એક દિવસ મા નથી ચાલી ગઈ. આ જાહોજલાલી ખતમ થવાના કારણ શુ? આ સવાલ દરેક વહોરા નવયુવાનો ને સતાવે છે પણ કોઈ સાચો જવાબ આપતુ નથી. જો અગર આપ ઇતિહાસ અને વર્તમાનનો સચોટ અભ્યાસ કરશો તો આપને સચ્ચાઈ જાણવા મળશે. સત્તાપક્ષમા દબદબો અને આર્થિક મોરચે પણ સમૃદ્ધ વહોરાઓ કે જેઓએ દેશ આઝાદ થનાર વર્ષે જ એજ્યુકેશન સોસાયટીનો પાયો નાંખી શિક્ષણ તરફ અગ્રેસર થયા હતા એઓ આટલી લાંબી મજલ કાપ્યા બાદ એક યુનિવર્સિટી પણ કેમ બનાવી શક્યા નથી? એક આઇએએસ, આઇપીએસ કેમ બનાવી શક્યા નથી? જમીન જાગીર કેમ સાચવી શક્યા નથી? અન્ય સમાજોને પોતાની સાથે કેમ રાખી શક્યા નથી? 
   ઇતિહાસમા ડોકિયુ કરીએ તો જાજરમાન ઈતિહાસ ધરાવતા વહોરા વડીલો પોતાના સમયના જાગૃત પ્રહરીઓ હતા. મસલા મસાઇલનો ઇલમ ઓછો હશે પણ હક અને બાતિલનો તફાવત ખૂબ સમજતા હતા. ભવિષ્યની જરુરિયાતો પર ચિંતન કરી એ ઉપલબ્ધ કરવા માટે પ્રયાસરત રહેતા હતા. 
    હક પરસ્ત વહોરાઓ દીની મિજાજ ધરાવતા અને દીનના નામે આંખો મીચીને મદદ કરતા વહોરાઓની પડતી માટે સૌથી મોટુ કારણ એ છે કે વહોરાઓ ને પોલીટીકલ લેવલ પર દૂર રાખવામાં આવ્યા. ગામના  લાલચી લીડરો વહોરાઓ નુ ભારે બ્રેઇન વોશિંગ કર્યુ. અમે બેઠેલા છે . તમારે આગળ જવું નહિ. વહોરાઓ ને પ્રગતિના પથ પર થી હટાવવા માટે સૌથી વધારે જવાબદાર ઢોંગી લીડરો છે.   મસ્જિદોમાં ઉપર પણ આવા લીડરો નો કબજો છે. પોતાની આપવડાઇ કરવા માટે  કૌમના માનસ પટલ પર કબજો જમાવનાર આ લીડરો કૌમને અન્ય શોબાઓથી વિમુખ કરી દીધી.  વહોરાઓમા માનસિક પકડ બનાવીને આ લીડરો એ એમની જમીન જાગીરો પણ વેચાવી રહ્યા છે. પોતાના પ્રાઇવેટ કિલ્લાઓના કૌભાંડો ઢાંકવા સત્તાના દલાલ બની ચુક્યા છે. સમાજના માલથી તાકતવર થયેલા આ લીડરો ખરાબ હાલાતમા સમાજના પડખે ઉભા રહેવાના બદલે આ હાલાત માટે સમાજને જવાબદાર ઠેરવી એહસાસે કમતરી પૈદા કરી ચૂક્યા છે. 
     જ્યા સુધી વહોરા સમાજ  લાલચી લીડરશીપને ફગાવી નહી દે ત્યા સુધી વોહરા સમાજનું ભલું થવાનું નથી.

Sunday, 22 May 2022

राजनीति और सियासत .

 सियासत व्यवस्था हे,राजनीति गुलामी हे।
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हम ने आवाज उठाई है की विदेशी पॉलिटिकल सिस्टम भगाओ और स्वदेशी पॉलिटिकल सिस्टम लाओ।
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लोग हम से सवाल करते हैं की स्वदेशी पॉलिटिकल सिस्टम और विदेशी पॉलिटिकल सिस्टम क्या है,उन लोगों को मोटे मोटे तरीके से बताना चाहता हूं।
काले फिरंगियोंव का पोलीटिकल सिस्टम पहले चोरी करना सिखाता है, फिर चोर पकड़ने के लिए क़ानून बनता है,फिर चोर को बचाने के लिए रिस्वत लेता है, फिर चोर और सिपाही दोनों साथ साथ रहते हैं,और देश में भरष्टाचार को बढ़ावा देते हैं.
विदेशी पॉलिटिकल सिस्टम गोरे फिरंगियों का है जो काले फिरंगियों के हाथ में देकर गए थे और यह लोग अभी भी उसी को चला रहे हैं।
महात्मा बुद्ध के विचार,श्री कृष्णा के विचार,श्री राम चंद्र जी के आदर्श,श्री महावीर के विचार,गुरु नानक जी के विचार,हजरत ईसा के विचार,मोहम्मद (sw)के विचारों में स्वदेशी पॉलिटिकल सिस्टम मौजूद है और पूरे देश के लोग इनके सिस्टम को ही पसंद करते हैं इसलिए इस देश में इस सिस्टम को लाना होगा और इसको लागू करने में बहुत आसानी है।
हमारे पुरखों ने गोरे फिरंगियों से देश की जमीन खाली करा लिए थे और अब हमारी जिम्मेदारी है की उनके पॉलिटिकल सिस्टम से देश को खाली करना है तभी आजादी मुक्कमिल होगी।
राजनीति और सियासत का फ़र्क़ का वीडियो लिंक। https://youtu.be/2lvC8g5SQUg
राजनीति की खूबी और खराबी का वीडियो लिंक। https://youtu.be/P_XKKd40Xwo 
अच्छे लीडर बनाने के लिए 13 सुझाव.वीडियो लिंक। https://youtu.be/dxwBN6dYmNA 
राजनीतिक,सामाजिक संस्था वालों को धन उगाहने का सुझाव. https://youtu.be/LWiuLQLQtKQ 
जय हिन्द,
इस्माईल बटलीवाला मुंबई मोबाइल न-9029341778

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जनाब इस्माईल बाटलीवाला साहेब,आपकी यह बात सौ फीसद सच है कि राजनीति हराम है और सियासत हलाल है।
मदरसों में आलिमाना कोर्स में एक सब्जेक्ट फलसफा पढ़ाया जाता है आज की जदीद साइंस साईकालजी तर्क शास्त्र पोलिटिकल साइंस इस तरह के तमाम बौद्धिक विषय फलसफा से ही बनाए गये विषय हैं ।
मैंने फलसफा में सियासत की जो परिभाषा पढ़ी थी उसको राजनीति के माने में कतई नहीं लिया जा सकता राजनीति का मतलब जैसा कि शब्द से पता चलता है , राज+नीति= राजनीति यानी राज करने के लिए बनाए गये, नियम कानून।
अब देखिए सियासत का क्या मतलब होता है सियासत का मतलब जैसा कि फलसफा में बताया गया है।अक्ल-व-हिक्मत से किसी समस्या का समाधान या अक्ल व तदबीर से हालात ठीक करना तथा सुख शांति स्थापित करना। 
इसकी तीन किस्में बताई गई हैं।

(1)सियासत-ए-शख्सी (व्यक्तिगत सियासत) 
(2)सियासत-ए-बैती(बैत-घर) घरेलू सियासत। 
(3)सियासत-ए-मदनी शहर या मुल्क की सियासत।

मतलब अक्ल तदबीर से व्यक्तिगत हालात ठीक करना एंव सुख और शांति स्थापित करना या अपने घर के हालात ठीक करना या फिर शहरों और मुल्कों के हालात ठीक करना तथा शांति स्थापित करना। 
जबकि चाणक्य नीति के अनुसार राजनीति साम दाम दण्ड भेद का दमनात्मक एक स्वार्थी नियम मात्र है जो मानने से ज्यादा मनवाने पर बल देता जिसे मानवीय कतई नहीं कहा जा सकता है। 

इसलिए इस्माईल बाटलीवाला साहेब ने बिल्कुल सही कहा कि सियासत जायज़ है और राजनीति नाजायज़ है।

आप का मोहम्मद शफीक खलीलाबाद उत्तर प्रदेश मोबाइल  98389 11349
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मोहतरम जनाब इस्माईल बाटलीवाला साहब बहुत ही सही टापिक "राजनिति और सियासत" आप आवाम के बीच लेकर आये और इस टापिक पर अगर भारत का हर आम व खास शख्स गौर फ़िक्र करे तो इसके बहुत ही दूरगामी परिणाम निकलेंगे l

आपने अपनी वाल पर मोहम्मद शफ़ीक साहब खलिलाबाद ने इस टापिक पर अपनी बात रखी है जिसमे उन्होने 3 किस्मे सियासत की बताई है बहुत ही लाजवाब है 

(1)सियासत-ए-शख्सी (व्यक्तिगत सियासत) 
(2)सियासत-ए-बैती(बैत-घर) घरेलू सियासत। 
(3)सियासत-ए-मदनी शहर या मुल्क की सियासत 
और इन तीनो में से सिर्फ़ पहली और दूसरी सियासत की किस्म पर गौर फ़िक्र करे तो तीसरी तरह की सियासत कैसी हो उसके लिये भी रास्ता साफ़ दिखाई दे रहा है l 

पहली और दूसरी दोनो तरह की सियासत को अगर थोड़ा डिटेल मे बताऊ तो वो साफ़ पता चलता है कि सियासत खुद की भलाई और दूसरे मे अपने घर परिवार की भलाई हर हाल मे हर कीमत में कोई भी इंसान चाहेगा और इसी को आगे बढाते हुए अगर इंसान शहर और मुल्क की सियासत करता है तो अपने शहर और मुल्क की भलाई के लिए और उसकी तरक्की के लिए काम करेगा l 
बेशक अगर एक अल्फ़ाज़ मे कहू तो कुर्बानी के बगैर सियासत मुमकिन नहीं है या सियासत का दूसरा नाम कुर्बानी है l 
जबकि राजनीति इसके ठीक उल्टा प्रचलन है l 
राजनीति मतलब यही से निकल जाता है राज करने की नीति भारत में अंग्रेजी हुकुमत के काबिज़ होने की तह में जाते है तो पाएंगे अंग्रेजों ने हुकूमत हासिल करने के लिए हर वो रास्ता अख्तियार किया जो कोई अपनो के साथ नहीं कर सकता सिर्फ़ इसलिए किया कि हम भारतीय  उनके अपने नही थे जितना लूट सके उन्होने लूटा जितना जुल्म कर सकते थे उन्होने किया हुकुमत चलती रहे उसके लिए जितना लडा सकते थे हम भारतीयों को आपस मे लडाया l 
ये छोटा सा example दिया l 

आखिर मे यही कहूंगा अपनो पर हुकुमत सियासत का हिस्सा है और गैरो पर हुकुमत करना राजनीति का हिस्सा हैं l 
भारत में वही अंग्रेजों वाली राजनीति की आदत पडी हुई है जिसमे राजनेता आम शहरियो को अंग्रेजी हुकुमत की तरह अपना गुलाम तस्लीम करते हुए साम दाम दन्ड भेद हर नुक्सा अपनाते है जो कि आज़ाद भारत की तरक्की की राह में बड़ा रोडा है l 
अगर हम चाहते हैं स्वतंत्रता आंदोलन मे अपनी जान कुर्बान करने वाले शहीदो की सोच वाला भारत बने तो हमे सियासत को अपने बीच मज़बूती देने की ज़रूरत है जिसका दूसरा नाम कुर्बानी है l 

शुक्रिया
मो.खालिद चौधरी 
प्रदेश संयुक्त सचिव ,#Aimimup मोबाइल -97114 39404
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इस्माईल बाटलीवाला साहब,आप की बात बिलकुल दुरुस्त है की सियासत और राजनीति अलग अलग है।
जबकि जम्हूरी हुकुमत कायम करने को सियासत कहते हैं और इसी को जमीनी हकीकत से जोडने के लिये सियासत,के अमल से जोडना होता है तभी इंसाफ कायम होगा।
राजनीति तो एक फितना है जो मुआशरा के इत्तेहाद को रोकने के लिये यूरोप के सभी देशो ने मिल कर गढ़ा है और सारे मुआशरा पर थोप दिया,जो तारीख जानते है उन लोगो को यह पता है।
एक तरफ भारत के मुसलमान भारत की आजादी के लिए लड रहे थे दुसरे महाज़ पर सियासी आदोलन को भी ऐक बेहतर अंदाज़ में सियासत के लिए लड रहै थे।
लेकिन आज दुनिया भर में कहां सियासत और कहां हक की बात हो रही है एक मुरदार मुआशरा है जिस पर हम हम लोग चल रहे हैं।
ऐक मिसाल देता हु,
आप ने कई वक्त यह सुना होगा  के,साम दाम दंड भेद से राजनीति चलता है।
अगर सियासत को कायम करना है, यानि इंसाफ को कायम करना है तो इस को समझना पडेगा।
राजनीति,और सियासत में फर्क क्या है_
(1) राजनीति का मतलब ताकत और सिर्फ अपनी ताकत को बचाऐ रखने के लिये हर हरबा यूज करना,अपने ही नागरिकों को एक तरह से लोगो को गुलाम बनाऐ रखना,
(2) सियासत का मतलब है,इंसाफ कायम करना,अगर सीधा कंहु तो अपने नागरीको के लिये नीतियां बनाना,और उन के मुस्तकबिल के लिये,सब को बराबरी का दरजा देना,देश वासियों ने जो जिम्मेदारी दी है उस को फर्ज जानते हुए लोगो की पूरी ईमानदारी से रक्षा करना
जनता के टैक्स के पैसो को वापस देश के लोगो को विकास के रूप में वापस देना,और पुरे दुनिया मै और देश में इंसानियत का राज कायम करना,हर धर्म की रक्षा के साथ साथ सभी मजहबो की धर्मस्थल  यानी,मंदिर,मस्जिद,चर्च,गुरुद्वारा,और बौद्ध विहार की रक्षा करना और उस की हिफाज़त करना,यह सियासत है जो पूरे देश में लागू होना चाहिए,तभी यह देश विश्वगुरु बनेगा,यही है सियासत,
इरशाद खान, औरंगाबाद ,महाराष्ट्र मोबाइल--99754 46402
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*सियासत व्यवस्था हे,राजनीति गुलामी हे"*
सियासत और राजनीति अलग अलग हे भले वो किसी एक काम के लिये बोला जा रहा हो लेकिन दोनों के उद्देश्य अलग अलग हे.
सियासत इस्लामिक विचारधारा  शब्द से आता हे, जो सामाजिक व्यवस्था निर्माण करने का उद्देश्य देता हे,और राजनीति गुलामी से आजाद होने के बाद राज करने की नीतियों पर आधारित हे.
शब्दों मे बहुत कुछ छुपा होता हे जिसमे वर्तमान और भविष्य होता हे खास नीति, पॉलिसी,एजेंडा होता है।
इस्माईल बाटलीवाला साहब की बात से मैं सहमत हूं।

सियासत और राजनीति अलग अलग हे.
राजनीति लोगों को गुलाम बनाने के लिये बनाई गई आज आप दुनिया भरके उन मुल्क के हालात उठाकर देखलो जो आजद हुये जंहा राजनीति की जाती हे,वंहा की सामाजिक व्यवस्था का एनालिसिस कर लो,राज करने की नीतियों पर बहुत कुछ समझ आ जायेगा.
असल मे सियासत के उसुल और ज्ञान से मुसलमानों ने इस सदी मे अपने आपको बहुत पीछे कर लिये जिसकी वजह से हमने सोचने समझने की शक्ती को खो दिया मानने के बात तो दुर हे,लेकिन हम परिस्थितियों ना समझ सकने की वजह से शब्दों की मायाजाल मे फस जाते हे.
जो मुस्लिम पार्टियां पॉलिटिक्स से जुडी हे वो अगर सियासत के उसूलों पर अपने आपको आने वाले 10 साल मे ला सकते हे तो बहुत कुछ हो सकता है।

बाकी राजनीति मे सत्ता हासिल करने के लिये सिर्फ चिल्लाते रहना नुकसान कर सकता हे.
सियासत पुरे समाज को बेहतर निजाम के लिये तैयार करता हे.
राजनीति कुछ खास लोगों को तैयार करता हे प्रजा पर अंकुश लगाने के लिये भटका ने के लिये उलझाने के लिये राज करने की नीतियाँ पर काम होता हे,अब आप तय करे आप क्या करना चाहते हे❓
पूंजीपतियों और राज घरानों  के साथ दबंग लोगों की कठपुतली  बना रहना चाहते हे ❓ या फिर सामाजिक व्यवस्था की तरफ सोच बनाते हे❓
आपकी सोच आपको दिशा दिखाती हे. अगर सोच नही होगी कुछ नही होगा.

   एक विषय तेभी हे के समाज सेवा के कार्य और सामाजिक बदलाव के कार्य क्या दोनों एक हे❓
   समाज सेवा के कार्य से जुडे लोग राजनीति को मददगार हो सकते हे,सामाजिक बदलाव के कार्य से जुडे लोग सियासत को मददगार हो सकते हे.
Huzaifa Patel,Dedicated Worker,Gujarat-Bharuch,Mo.9898335767 

सेवा में,
 सम्मानित, श्रीमान जनाब इस्माइल बाटलीवाला साहब जी, विदेशी पोलटिक्स पिछले 73 सालों भारत देश का पूरा स्वरूप ही खराब कर दिया है अगर हम विदेशी पॉलटिक्स सिस्टम नही अपनाते तो देश के ये हालात नही होते। 
सियासत  पूरी तरह स्वदेशी है और देश की जनता की खुशहाली व बेहतरी के लिए काम कर रहा हूँ,विदेशी पॉलिटिकल सिस्टम ने देश को जख्मी बना दिया देश चरित्र को खराब कर दिया ह। 
हम आपकी बात से पूरी तरह से सहमत है जब तक स्वदेशी पॉलिक्स सिस्टम को नही अपनाया जायेगा तब तक व्यवस्था किसी भी कीमत पर नही सुधरेग। 
आज देश की राजनीति अग्रेजो के सिस्टम पर चल रही हैं आम जनता गांव गरीब किसान मजदुर का शोषण हो रहा है और जब ये शोषण अग्रेजो के समय मे हो रहा था। 
आज  फिर आजादी कैसी है लोग पहले गोरे अग्रेजो के गुलाम थे आज काले अग्रेजो के गुलाम है आजादी व स्वतंत्रता केवल कहने मात्र है, देश के लोगो को विदेशी व स्वदेशी राजनीतिक सिस्टम को समझना होगा नही तो आगामी समय मे हालात और खराब होंग। 
हम  सियासत चाहते हैं राजनीति नही चाहते हैं क्यों की सियासत स्वदेशी है राजनीति विदेशी है, यह फर्क है सियासत और राजनीति में इस को समझना होगा और देश के लोगो को अध्ययन करना होग। 
सियासत अध्ययन मांगती राजनीति का कोई अध्ययन नही है चार बात को जानने वाला खुद को राजनीतिक बना लेता है सियासत सघर्ष का नाम है और आम जनता के हितों और लोगो की भलाई के लिये काम करने का नाम है। 
जबकी राजनीति जनता का शोषण करती है लोगो को बांटने का काम करती है अपने हितों के लिये झूठ फरेब मौका परस्ती करना जाति व धर्म के नाम पर लोगो को बाटने का नाम राजनीति है और भी बहुत कुछ जो हम आपको लिखकर भेजेंगे आपका सुझाव हमारे लिये सर्वोपरी है आपके सहयोग और समर्थन की हमे सदैव अपेक्षा रहेगी मंगल कामनाओ सहित ।
परम समानित श्रीमान इस्माईल बाटलीवाला जी आपकी सकारात्मक सोच की क्रांति पूरे देश मे जायेगे और आपकी सोच और विचारों का आज के युवाओं को लाभ लेना होगा।
आपका अपना संजय गुर्जर, राष्ट्रीय अध्यक्ष, भारत बचाओ सविधान बचाओ आंदोलन. मोबाइल न 8851202163

Saturday, 14 May 2022

salim hafeji AMIM SAWALO

Date : 13 May 2022 Viral 

 *हमारे सारे आलीमे दिन, इमाम साहब, और मोअझझिन साहब काबिले एहतराम है, इज्जत के हक्कदार है,* और कौम अपने इस फरीझे में कई मर्तबा कमजोर नजर आई भी हैं। मुस्लिम सियासत में आलिमे दिन और उलूमा ए दिन का बड़ा कामियाब रोल रहा है। ऐसे में मजलिस के सदर असदुद्दीन ओवैसी अगर गुजरात आकर कई मजहबी रहनुमाओं से मिलते है, उन से बात करते है तो उस में किसी को कोई एतराज़ नहीं होना चाहिए।

लेकिन मुस्लिम अवाम जो कभी ओवैसी से या मजलिस के जिम्मेदार लोगो से जो सवाल करने से हिचकिचाती है वो सवाल अवाम की तरफ से हमारे मजहबी रहनुमाओं को ओवेशी के सामने रखने चाहिए। 

*अवाम में अक्सर उठनेवाले सवाल इस प्रकार है!*

*1.* दो हजार इक्कीस की 19 जनवरी को गुजरात में प्रदेश मजलिस का गठन हुआ, उस के तुरंत बाद 21 जनवरी को भुज में मस्जिदों पर हमला हुआ, वहां से लेकर आखिर में खंभात तक मुस्लिमो पर व्यक्तिगत या सामुदाइक घटना की कुल 34 घटना पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज हुई। तो सवाल नंबर एक ये है कि मजलिस ने आवेदन आवेदन खेलने के अलावा और फोटो लगाने के सिवा इन घटनाओं पर पीड़ितो के लिए क्या ठोस काम किया? _*गुजरात मजलिस मुस्लिमो पर हमले की हरेक घटना पर अपना वर्क शीट अवाम के सामने रखें।*_

*2.* अहमदाबाद में पिराणा दरगाह को मंदिर में तब्दील करने की कोशिश हो रही है, _*मजलिस का पिराणा दरगाह मामले में क्या स्टैंड है?*_

*3.* गुजरात मजलिस सिर्फ कांग्रेस का विरोध करती हुई नजर आती है, भाजपा का नहीं। कांग्रेस में भी सिर्फ दो मुस्लिम विधायको का ही विरोध हो रहा है, कांग्रेस के तीसरे मुस्लिम विधायक वाकानेर का तो नाम तक नहीं लिया जाता। मुस्लिम वोट का बिखराव होता है और गुजरात विधानसभा मुस्लिम मुक्त हो जाती है तो क्या ओवेशी गुजरात में मुस्लिम राजनीति को समाप्त करने का कारण नही बनेंगे? क्या वो ये जिम्मेदारी लेते है कि कांग्रेस के मुस्लिम विधायक को हरा देने के बाद भी गुजरात विधानसभा वो मुस्लिम मुक्त नहीं होने देंगे? _*क्या ओवैसी को अपनी काबिलियत पर इतना भरोसा है कि कांग्रेस के मुस्लिम विधायको को हरा देने के बाद वो मजलिस का कम से कम एक उम्मीदवार जीता देंगे?*_

*4.* गुजरात के स्थानीय निकाय चुनावों में मजलिस ने दागी और मुस्लिम समाज में अस्वीकार्य लोगो को टिकट दिया था, आनेवाले विधायकी चुनाव में _*क्या मजलिस साफ सुथरी छवि वाले कैंडिडेट उतारेगी या फिर से दागी लोगो को प्राथमिकता दी जाएगी?*_

*5.* गुजरात मजलिस डेढ़ साल से काम कर रही है। अहमदाबाद के 48 वार्ड है, इतने लम्बे समय में अब तक मजलिस 12 वार्ड प्रमुख नियुक्त नही कर पाई हैं। मजलिस के कुल सदस्य की संख्या अब तक 3000 तक नहीं पहुंची हैं। एक विधानसभा मतविस्तार में एवरेज 250 से 300 बूथ होते है, तो ऐसे में _*मजलिस चुनाव लडने के लिएं मेन पावर कहां से लाएगी?*_

*6.* 2021 में मजलिस ने बिटीपी से गठबंधन किया था, सिर्फ एक साल में ऐसा तो क्या हुआ कि _*छोटूभाई वसावा ने अपनी भारतीय ट्रायबल पार्टी को मजलिस से अलग कर लिया?*_

*7.* गुजरात में मजलिस के आने के बाद मुसलमानो में आपसी मतभेद, लड़ाई झगड़ा और कोर्ट कचहरी के मामले बढ़ गए है। पूरे देश में मजलिस के लौंडे अपने मूखालिफीन के साथ गाली गलोच करते हुए नजर आते है, धमकी देते हुए, मारामारी करते हुए नजर आते हैं। _*ओवेशी अपनी पार्टी के बदतमीज लोगो को कंट्रोल क्यों नहीं करते?*_

*8.* तेलंगाना के कई विधायको के और कार्यकर्ताओ के विडियो सामने आए है जो मुस्लिमो से फिरौती मांगते हुए या दादागिरी करते हुए नजर आए है। _*मजलिस एसे विडियो पर अपना स्टैंड क्यों क्लियर नही करती?*_

*9.* तेलंगाना वकफ बोर्ड के चेयरमैन मसीउल्लाह खान अपने ओहदे का चार्ज लेने से पहले हाल ही में ओवेशी से मिलने पहुंचे थे। तेलंगाना में वकफ जमीन से कब्जा छुड़ाने के लिए वकफ बोर्ड ने जो मुकदमे दाखिल किए है, उस में से कितने केस में मजलिस के लोगो पर, मजलिस के विधायको पर और ओवेशी के रिश्तेदारों पर आरोप पत्र दाखिल हुए है? क्या ओवैसी एसे लोगो को मजलिस से बाहर करने का सोच रहे है? क्या ओवैसी अपने ही लोगो को वकफ जमीन का कब्जा छोड़ने का आदेश करने की सोचते है? _*वकफ प्रॉपर्टी बेचने का आरोप मजलिस के कितने लोगो पर लगा है? ओवैसी का एसे लोगो के लिए क्या स्टैंड है?*_

*10.* उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद भाजपा सरकार ने 15 मिनट वाले अकबर ओवेशी के बयान मामले केस में क्लीन चिट दे दी है। अब कोर्ट ने विडियो में अकबर ओवेशी की आवाज न होने की दलील को स्वीकार करते हुए उन्हें आरोपमुक्त घोषित कर दिया है। अगर वो विडियो फर्जी है तो आज भी मजलिस उसे सोसियल मीडिया पर चलाती क्यों है? और _*अगर वो विडियो असली है तो फिर अकबर ओवेशी ने कोर्ट में झूठ क्यों बोला? मजलिस वाले अल्लाह रसूल की इतनी बाते करते है तो फिर इस तरह झूठ और फरेब को अमल में क्यों लाते है?*_

*11.* और आखरी सवाल: ओवेशी जिस के चेयरमैन है वो दारुस्सलाम बैंक मुसलमानो को लोन देकर उस पर 18% सूद वसूल करना कोई मजबूरी हो सकती है, लेकिन अल्लाह की कसम खाकर ओवैसी ने जिस अस्पताल में 15 बोतल खून देने का दावा किया था, उस की तस्दीक क्या ओवेशी किसी डॉक्टर या अस्पताल से करवा सकते है? 

ये 11 सवाल में से कोई एक सवाल करने की हिम्मत वही करेगा जो हकीकत में कौम का हामी होगा, बाकी जो खामोश रहेगा उसे भाजपा का एजेंट अवाम मानने लगे तो उस में अवाम की कोई गलती नहीं। 

*✍️Salim Hafezi 90331 64631*

ISA ફાઉન્ડેશન અહમદાબાદ મેસેજ વાયરલ

 પ્રતિ,
માનનીય ટ્રસ્ટીઓ,
ISA ફાઉન્ડેશન.
યુકે.
   
*અમદાવાદ સ્થિત મૌલાના દ્વારા તમારા બેનર અને ઝકાત ફંડનો રાજકીય પ્રવૃત્તિઓમાં દુરુપયોગ*

અસ્સલામુઅલૈકુમ,
અમદાવાદ સ્થિત મૌલાના કે જેઓ સત્તાધારી ભાજપના નેતાઓ સાથે ગાઢ સંબંધ ધરાવે છે તથા અમદાવાદમાં આપના ઝકાત ફંડ અને ચેરિટી પ્રવૃત્તિઓનું સંચાલન કરે છે.
ISA ફાઉન્ડેશનના આ ઝકાત ભંડોળ અને ચેરિટી પ્રવૃત્તિઓ દ્વારા આ મૌલાનાએ મુસ્લિમ સમુદાયમાં ખ્યાતિ મેળવી છે.
કમનસીબે, તેઓ સાંપ્રદાયિક ભાજપ સરકારના હાથા બની ગયા છે અને મુસ્લિમ ચૂંટાયેલા જન પ્રતિનિધિઓને અસ્થાપિત કરવાનું આયોજન કરી રહ્યા છે.
તાજેતરમાં તેમણે AIMIM સાથે જોડાણ કર્યું છે અને આડકતરી રીતે મુસ્લિમ ધારાસભ્યોને નુકસાન પહોંચાડવાનું કાવતરું ઘડી કાઢ્યું છે.
આપના ISA ફાઉન્ડેશનની ઇમેજ અને સત્કાર્યો ના કારણે મેળવેલ ક્રેડીટ નો મૌલાના રાજકારણમાં સતત દુરુપયોગ કરી રહ્યા છે.
અમારી આપ સૌ ટ્રસ્ટીઓ ને નમ્ર વિનંતી છે કે કૃપા કરીને આ મૌલાનાને તમારા ISA ફાઉન્ડેશનમાંથી દૂર કરવામાં આવે અને ઈમાનદાર નિઃ સ્વાર્થ, બિન રાજકીય વ્યક્તિને જવાબદારી સોંપવામાં આવે. જેથી ઉમ્મત ની સાચી ખિદમત થઈ શકે.
આભાર.

લી.
અમદાવાદ શહેરના જાગૃત મુસ્લિમો વતી.

Date:14 Viral Image
_*अहमदाबाद के तमाम आलिमें दिन, मुफ्ती साहिबान और दीगर मुस्लिम तंजीमों के रहनुमाओं का शुक्रिया और दिली मुबारकबाद!*_

भाजपा से जुड़े हुए कुछ मुस्लिमो ने आज मजलिस के सदर ओवैसी की आड़ में गुजरात के मुस्लिमो को दो हिस्सो मे बांटने की कोशिश की। अहमदाबाद और अहमदाबाद से बाहर के आलिमों और मुफ्ती साहिबान को दावतनामे भिजवाए और खाने पीने का बड़ा तामझाम किया और एक तरीके से गुजरात में सिकुड़ती हुई मुस्लिम राजनीति को सिफर यानि शून्य कर देने की कोशिश की। 

अल्लाह पाक का लाख लाख शुक्र है कि मुस्लिम समाज के जागरूक और चौकन्ना तबके ने इस की पुरजोश मुखालिफत की। जिस के चलते गुजरात के किसी भी मुफ्ती साहब ने इस प्रोग्राम में शिरकत नही की। आखिरकार भाजपा से जुड़े हुए मौलवी जिन्होंने ये प्रोग्राम किया था उन को मजबूरन खुद के मदरसे हॉस्टल के तलबाओ को ही प्रोग्राम में बिठाना पड़ा। आज ओवैसी के साथ में जिन लोगो ने स्टेज शेर किया वो लोग आए दिन गुजरात के भाजपाई मुख्यमंत्री, मंत्री, और आरएसएस के लोगो के साथ स्टेज शेर करते आए है। और ये बात अहमदाबाद का बच्चा बच्चा जानता है लेकिन *ISSA Foundation* के मातहत जो काम कौम के लिए होता है उस की शर्म भर के कुछ लोग इस प्रोग्राम में मजबूरन दिखे। 

लेकिन इस प्रोग्राम के बाद अब *ISSA Foundation* भी शक के दायरे में आ गया है। क्या कौम के जकात फित्रे सदका लिल्लाह के पैसे से कौम को मजबूत करने की बजाय कौम को भाजपा की गुलाम बनाने की साजिश तो नहीं हो रही है ये सवाल खड़ा होता हैं। _*सवाल ये भी खड़ा होता है कि कौम के जकात फितरे के पैसे से आज का प्रोग्राम हुआ है तो कौम के पैसे का गलत इस्तेमाल हुआ है इस की जिम्मेदारी किस की रहेगी?!*_  ISSA Foundation  के जिम्मेदारों को इस के बारे में आगे अब सोचना पड़ेगा। और *ISSA Foundation* से ऐसे लोगो को दूर करना पड़ेगा। 

बहरहाल एक बार फिर से अहमदाबाद और अहमदाबाद के बाहर के सभी आलिम हजरात, मुफ्ती साहिबान, इमाम साहब और मोअजझिन हजरात का भाजपा और ओवेशी के संयुक्त प्रोग्राम का बहिष्कार करने के लिए शुक्रिया और तमाम को दिली मुबारकबाद। 

सोसियल मीडिया पर मुस्लिमो के हक में सच को उजागर करनेवाले कौम के लिए लड़ाई लड़नेवाले तमाम का भी शुक्रिया।

✍ *भाजपा आरएसएस के एजेंटो का कट्टर विरोधी एक मुस्लिम स्माजसेवक*

Thursday, 12 May 2022

नफरत और श्रीलंकाई जनता .

 आज से ठीक एक साल पहले जो श्रीलंकाई अपने देश में बुर्का बैन कर थे और मदरसों पर ताले लगा रहे थे.. आज वो अपना ही देश छोड़कर भाग रहे हैं या सड़कों पर आक्रोशित भीड़ से पिट रहे हैं

सालभर पहले तक इस्लामोफोबिया में गले तक डूबे श्रीलंकाई सरकार और राजपक्षे-भक्तों को मुस्लिमों से दिक्कत थी, अज़ान से चिढ़ थी, मदरसों के नाम से खून खौलता था, पर्दे/हिज़ाब में खुद की आबरू ढंके हुई ख़्वातीन इन्हें काटने दौड़तीं थीं.. आज वो पूरा मुल्क जल रहा है.

*मजहबी नफरत में डूबे श्रीलंकाई बहुसंख्यकों को पता भी नहीं चला कि कब उनकी अंधभक्ति ने विकास की रफ्तार रोककर उन्माद की आग में पूरे देश को तबाह कर डाला*
*अंधभक्ति में चूर श्रीलंका की जो अवाम कहती थी कि "राजपक्षे नहीं तो और कौन?" वही अवाम आज राजपक्षे का महल फूँक रही है, उनके मंत्रियों को कार समेत झील में फेंक रही है, उनके अंधसमर्थको को दौड़ा-दौड़ाकर सड़कों पर पीट रही है, उनके सांसद बन्द कमरों में आत्महत्या कर रहे हैं*

*अफसोस श्रीलंकाई अवाम का नशा तब उतरा है जब उनके पास खोने को कुछ नहीं बचा.. आज उनके सामने मस्जिद-मदरसे, अज़ान-बुर्का से ज्यादा अहम मुद्दे पेट की भूख है. अब  उनकी प्रायोरिटी किसी मदरसों पर ताला लगाने की जगह अपने भूखे बच्चों के लिए रोटी जुटाना है, किसी मस्जिद को खोदकर उसके नीचे मूर्तियाँ तलाशने से बेहतर वो अपने लिए रोजगार तलाशना बेहतर समझेगा*

*जिन नेताओं ने अंधभक्तों का झुंड पैदा करके देश में नफरत की आग फैलाई और राज किया, वो नेता अब मुल्क छोड़कर भाग गए या भाग रहे हैं.. जनता से पिटने के लिए अब वही समर्थक और अंधभक्त बचे हैं, जिन्हें धर्म बचाने का कीड़ा था.. अब अगर वो जनता से बच भी गए तो बेरोजगारी और भुखमरी मार देगी*

श्रीलंका और म्यांमार की तबाही पूरी दुनिया के लिए नज़ीर है, जो भी मुल्क इनसे सबक लेना चाहें उनके लिए वक़्त अभी भी हाथ से फिसला नहीं है

Monday, 9 May 2022

મનુસ્મૃતિ મુજબ કોર્ટો એ ન્યાય કરવાનો છે ભારતીય બંધારણ મુજબ ?

  *સુરતમા થયેલ ગ્રીષ્મા હત્યાકાંડ ના આરોપીને સજાનો ચુકાદો સંભળાવતી વેળાએ જજે મનુસ્મૃતિનો શ્લોક ટાંકયો હતો જે બાબત કેટલી યોગ્ય કે અયોગ્ય છે એનુ વિશ્લેષણ કરતી પોસ્ટ.*
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@kb
મનુસ્મૃતિ મુજબ કોર્ટો એ ન્યાય કરવાનો છે ભારતીય બંધારણ મુજબ  ?

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આ દેશની કોઇ  કોર્ટ મનુ સ્મૃતિ ના શ્લોક નો રેફરન્સ પોતાના ટાંકીને  અને તે મનુસ્મૃતિના સંસ્કૃત ભાષાના શ્લોક પર  આધાર રાખીને કોઇ ફોજદારી કે સેશન્સ કેશનો ચુકાદો આપી શકે ખરી ?

આવા મનુસ્મૃતિ નામના હિન્દુવાદ માં માનતા હોય તેવું કે જ્ઞાતિવાદ  ધર્મ કે સંપ્રદાય માં માનનાર હોય તેવુ બને. તેના ચુકાદાઓમાં ધર્માંધતા જ્ઞાતિગત ભેદભાવ ની શંભાવના ખરી.  તેઓની કારકીર્દી દરમિયાન ના ચુકાદાઓનો અભ્યાસ કરવામાં આવે તે જરુરી છે. એવું પણ બને કે તેની કોર્ટ માં જો કોઈ દલિત ફરીયાદી કે પિડીત હોય અને ગુનેગાર બિનદલિત હોય તો રેકર્ડ પર ગુનેગાર ની વિરૂદ્ધ પુરાવો આવવા છતાં એટ્રોસિટી એકટ કે પ્રોટેક્શન ઓફ સીવીલ રાઇટ્સ ના  તુલસી કૃત રામાયણ ના શ્લોક  "ઢોલ ગવાર શુદ્ર પશુ ઔર નારી યે સબ તાડન કે અધિકારી " નો સંદર્ભ ટાંકીને તે પ્રમાણે ચુકાદાઓ આપે તેવું બને. 

મનુસ્મૃતિમાં વર્ણાશ્રમ અને વર્ણવ્યવસ્થા ને પ્રોત્સાહન આપનાર શ્લોકો અથવા શુદ્ર ને સાવ નીચલી જ્ઞાતિના ગણ્યા છે જ્યારે બ્રાહ્મણ સૌથી ઉચ્ચ વર્ણ ના ગણ્યા છે તેનો આધાર લઈ ચુકાદાઓ આપે તેવું બને ખરૂ. મનુસ્મૃતિમાં ગુનાઓ અને શિક્ષા ઓ પક્ષકારોના વર્ણ પ્રણાણે વર્ગીકરણ કરીને તે અંગે જે ભેદભાવયુકત શ્લોકો લખ્યા છે તેનો રેફરન્સ ટાકી ને તે પ્રમાણે જ ચુકાદાઓ આપે તેવું બને.

જજો માટે કોડ ઓફ કન્ડકટ ના રુલ્સ છે. ચુકાદાઓ કેમ લખવા ? ચુકાદાઓ માં શેનો રેફરન્સ ટાંકી શકાય અને શેનો નહિ તેના માપદંડ નક્કી કરેલ છે. જજ ચાહે તે કોઈ પણ જ્ઞાતિના હોય, તેનો અમુક ધર્મના હોય પણ તે જજ નો હોદ્દો ગ્રહણ કરે એટલે ભારતીય બંધારણ ને અનુસરવાના અને વફાદાર રહેવાના સોગંદ લીધા હોય છે. એટલું જ નહિ પણ કોઈ પણ પ્રકારની અસ્પૃશ્યતા નહિ આચરવાના સોગંદ લીધા હોય છે. હકીકતમાં ચુકાદાઓ માં કેસની હકીકત, રજુ થયેલ પુરાવાઓ, કાયદાની લાગુ પડતી કલમો, ભારતીય બંધારણ ની લાગુ પડતી જોગવાઈઓ, નામદાર સુપ્રીમ કોર્ટ અને હાઇકોર્ટો ના લાગુ પડતા ચુકાદાના રેફરન્સ લઇ શકાય. આમ તો કાયદા અને ન્યાય ની ભાષા અંગ્રેજી છે. મૂળભૂત અધિકારો મૂળ તો મેગ્ના કાર્ટા ની નિપજ છે. કાનૂની પરિભાષા સમજવી હોય તો લેટીન ગ્રીક અને રોમન કાનૂની સૂત્રો છે. તે સૂત્રોનો રેફરન્સ આજે પણ નામદાર સુપ્રીમ કોર્ટ, હાઈકોર્ટો અને ક્યારેક લોઅર કોર્ટે લ્યે છે. જે જજ આવા સૂત્રોના રેફરન્સ ટાકી જાણે તેની વિદ્વતા ઉપસી આવતી હોય છે. 

કોઇ અમુક ધર્મ ના ગ્રંથો ના શ્લોકો ટાંકવાથી તે ચુકાદામાં ધાર્મિક કે જ્ઞાતિગત ભેદભાવ યુક્ત માનસિકતા તે જજ ધરાવે છે તે છતી થયા વગર ન રહે. એક જજમેન્ટમાં મોરના આંસુ થી ઢેલ પ્રેગનન્ટ બને તેવું લખેલ. આ લોજીક ન સમજાય તેવું છે.

ચુકાદો એ ન્યાયાધીશના અંતરાત્માનું પ્રતિબિંબ પણ છે, તે ચુકાદામાં  જે લખે છે  તે તેની નિષ્પક્ષતા, પ્રામાણિકતા અને બૌદ્ધિક પ્રામાણિકતાનો પુરાવો કે પ્રમાણ છે.  ચુકાદો લેખન ન્યાયિક અધિકારીઓને તેમની પોતાની ક્ષમતા અને નૈતિક અખંડિતતા અને સામાજિક ઉપયોગિતાની ઉચ્ચ પરંપરામાં સહભાગી બનવાની તેમની યોગ્યતા દર્શાવવાની તક પૂરી પાડે છે. પણ આવી તક ના ઉપયોગ પોતે જે ધર્મ પાળતા હોય તેના ગ્રંથો નો  દુરુપયોગ  કરીને ન કરાય.

ન્યાયાધીશ એ માનવ છે.  તે એક સામાન્ય માણસની જેમ ચારિત્ર્યમાં સમાન શક્તિ અને નબળાઈ ધરાવે છે.  બધા માણસોની જેમ જજની અંગત પસંદગીઓ અને પૂર્વ-સ્વભાવ હોય છે.  ન્યાયાધીશને તેની કારકિર્દીની શરૂઆતમાં, ચુકાદો લખવા માટે સ્થાયી ધોરણો અને પ્રેક્ટિસનું પાલન કરવાની સલાહ આપવામાં આવે છે.  જજો પક્ષપાત અને પક્ષપાતથી મુક્ત નથી.   ઘણીવાર છૂપો અથવા અર્ધજાગ્રત પૂર્વગ્રહ હોઈ શકે છે, આવો પૂર્વગ્રહ કોઈપણ પરિબળને કારણે ઉદ્ભવ્યો હોઈ શકે છેજેમા ધર્મ તો ખાસ પ્રભાવિત કરે જ. ન્યાયાધીશ વ્યક્તિલક્ષી પસંદગીઓ અથવા અસ્વીકાર્ય રીતે પૂર્વગ્રહોથી પ્રભાવિત થઈ શકે છે જ. અપવાદ હોઈ શકે છે.

ડો.બાબાસાહેબ આંબેડકરે મનુસ્મૃતિને જાહેરમાં હોળી કરીને સળગાવી હતી. ડો.બાબાસાહેબ આંબેડકરે આ દેશને દુનિયાનું શ્રેષ્ઠ ગણાય છે તેવું બંધારણ આપ્યું  તે સૌ જાણે છે. છતાં મનુસ્મૃતિના શ્લોકો નો આધાર હજુ જજો તેના ચુકાદાઓમાં લ્યે તે શું સૂચવે છે ?

મનુસ્મૃતિમાં ગુનાઓ કરનાર માટે વર્ણવ્યવસ્થા આધારિત ભેદભાવ ની વાત લખી છે બ્રાહ્મણોને ગમે તેવા ભયંકર ગુનાઓ કરે તો પણ ઓછી સજા કરવાનુંલખ્યુંછે જ્યારે ક્ષત્રિય, વૈશ્ય અને શુદ્ર વર્ણ ના લોકો ને ક્રમશઃ આકરી સજા કરવાની વાત લખી છે. તો પછી આવા ધર્મગ્રંથનો ચુકાદામાં આધાર ન લેવો જોઈએ @kb

Saturday, 7 May 2022

બરૂચ બંબાખાના ઇશહાકપુર મેસેજ વાયરલ . . .


ભરૂચ શહેર ની પશ્ચિમે આવેલા બંબાખાના વિસ્તાર ની નજીક મુસ્લિમો ની એક ખૂબ નાનકડી વસતી નું ફળીયું છે - જેનું નામ ઈસ્હાકપુરા છે, આ વિસ્તાર આજથી ચાળીસેક વરસ પર મુસ્લિમોની ખૂબ બહોળી વસ્તી ધરાવતો હતો, સ્ટેશન થી દહેજ તરફ જતા મુસ્લિમ ગામો ના રહીશોનું એ બારુ હતું. આ વિસ્તારમાં આખા ભરૂચ શહેર ની જુદી-જુદી જમાતોના વધતા ઓછા પંદર થી વીસ કબ્રસ્તાનો છે, નજીકમાં ગુજરાત ની ઐતિહાસિક ઈદગાહ છે, તેનાથી થોડે ક અંતરે માટલી વાલા દારૂલ‌ઉલુમ  દીની  દર્સગાહ છે, આ ગરીબ વસ્તી ના મુસ્લિમો હીંમત વાળા હતા, ત્યાં હિન્દુ ખારવા,માછી ઓ ની પણ ગીચ વસ્તી છે, તે લોકો માં અભણતા ગરીબી, ધર્મ ઝનૂન અને મકાનોની તંગી ને ધ્યાને લ‌ઈ આર એસ એસ એ તેમની પાછળ ખૂબ મહેનત કરી, ૧૯૮૯ પછી દેશનો માહોલ બદલતાં ની સાથે જ આ લોકો એ માથું ઊંચક્યું, વાતે વાતે અહીં ના મુસ્લિમો ની કનડગત શરૂ થઈ, નાના ઝઘડાઓ માં જાનમાલ પર હૂમલા ઓ વધ્યા, ઉપરથી આ કોમવાદી તત્વો ને સત્તા વાળા ઓ ની હૂંફ અને હીંમત મળી, લૂંટફાટ કરનારા ઓ ની હીંમત વધી, નાની વાતમાં તોફાનો થાય, મુસ્લિમો ની માલમિલકત પર પોલીસ ની હાજરી માં જ ભયંકર હૂમલા ઓ વધ્યા, મુસ્લિમો ની હીજરત વધી, ખૂન લૂંટફાટ મકાનો સળગાવવા ના બનાવોથી મફતના ભાવે આ જ ખારવા માછી ઓ ને હીજરત કરનારા મુસ્લિમો ના મકાન મિલકતો મળવા લાગ્યા,  હવે આજે આશરે દોઢસો કુટુંબમાં થી લગભગ પચ્ચીસેક કુટુંબ અલ્લાહ ના ભરોસા પર મસ્જિદ, મદ્રેસા અને કબ્રસ્તાનો ની સલામતીની ફીકર ચિંતા માં ટકી રહ્યાં છે, ખરેખર તો આજના તેમનાં કસોટી ના  સમયમાં સખાવતી દાનિશમંદો એ આ વિસ્તાર ની વસ્તી વધારવા એડીચોટીનું જોર લગાવી ફીકરમંદ બનવાની જરૂર છે, તેવા વખતે આ ઈસ્હાકપુરા નું નાક ગણાતી મુસ્લિમ વસતી ની બરાબર વચ્ચે, મસ્જિદ તથા કબ્રસ્તાનોની બરાબર સામે આવેલી  લગભગ સત્તર અઢાર હજાર ચોરસ ફૂટ જેટલી ખુલ્લી જમીન જે લગભગ પાંત્રીસ ચાળીસ વરસ થી ખુલ્લી પડી છે ( જે ખરેખર તો આ મુસ્લિમ વસતી ના પરિણામ સ્વરૂપ જ સલામત રહી શકી છે ) 
     આ જમીન ના માલિકો  ફાંસીવાલા ફેમિલી તથા તેમના ભાગીદારો એ,  અહીં ના બિન મુસ્લિમો સાથે  આ જમીન વેચવા માટે સોદો કર્યો છે.

 અમારી મુસ્લિમ સમાજ ને ખૂબજ દર્દમંદાના અપીલ છે, આવા સંજોગોમાં ઈસ્હાકપુરા ની આ લાચાર નાનકડી મઝલૂમ મુસ્લિમ વસતી જે આટ‌આટલા ભયંકર તોફાનો ના ઝંઝાવાતો માં પણ અલ્લાહ ભરોંસે અડીખમ રહી છે, તેની મદદે આગળ આવે, આ  વેચનારા  ભાઈઓને  રોકે, હિન્દુ ખારવા માછી સમાજ ના હાથમાં આ જમીન વેચાતી અટકાવે, અથવા આ મઝલૂમ વસતી ના વિશાળ હીત માં આ જગ્યા ને ખરીદી લ‌ઈ, ગરીબ મુસ્લિમો ને રાહતદરે રહેણાંક મકાનો બનાવી દ‌ઈ મઝલૂમ ઉમ્મતીઓનો સહારો બને, એનાથી મોટી ક‌ઈ ઈબાદત હશે.

______________ઉપરના મેસેજ નો જવાબ________

 અસ્સલામુ અલયકુમ વરહમતુલ્લાહિ વબરકાતુહ.

ભરૂચ જિલ્લાના તમામ મુસ્લિમ બિરાદરો ને ઈસ્હાકપુરા, ભરૂચ ના  ભાઈઓ તરફથી   ખાસ અપીલ કરવામાં આવે છે કે,

 હાલમાં    "ભરૂચની પશ્ચિમે આવેલા બંબાખાના...."   નામનો  ૩-૪ વરસ જૂનો મેસેજ  કોઈક લોકોએ હાલમાં અમારા  ઈસ્હાકપુરા  ના  નામે  ખોટી  રીતે ફરીથી  ફરતો કરેલ છે. 
કેટલાક વરસો પહેલાં જ્યારે  આ મેસેજ જાહેર કરાયો હતો, ત્યારે  જિલ્લાના એક મોટા  વડીલ ની દરમ્યાનગીરી થી  વેલફેર હોસ્પિટલ સંચાલક મર્હુમ સલીમ ભાઈ ફાંસીવાલા એ આ મિલકત બાબતે સમાધાનકારી લોકોની હાજરીમાં  ખાતરી આપી હતી કે ઈસ્હાકપુરા તથા કૌમના હીતને નુકસાન થાય એવી કોઈ જ કાર્યવાહી કરવામાં નહિ આવે, એટલું જ નહીં  એમણે એ સોદો  કેન્સલ કર્યો હતો‌.  
વળી  આ  જગ્યાના અન્ય ભાગીદાર  હાજી ઈસ્માઈલ દુધવાલા ભાઈજીહાલ એ પણ  જાહેરમાં મહોલ્લાના  મુસ્લિમ બિરાદરો ને જણાવેલું કે ઈસ્હાકપુરાની નાનકડી  વસ્તી ને નુકસાન થાય એવું કોઈ જ પગલું અમે નહિ ભરીએ.
જેથી  તે સમયે જ આ વિવાદ નો અંત આવી ગયેલો.
જોકે  મર્હુમ સલીમભાઈ ફાંસીવાલા ના ઈન્તેકાલ પછી આ જગ્યાના   તેમના કોઈ ભાગીદાર તરફથી  આ અંગેની કોઈક  હરકત ફરીથી શરૂ  થવા ને કારણે,  ફરીથી આ અંગેનો વિવાદ ઉભો થવાથી,  ભરૂચ વેલફેર હોસ્પિટલ ના અત્યારના  સંચાલક જનાબ ડોક્ટર ખાલીદભાઈ ફાંસીવાલા એ ખૂબજ વ્યવહારૂ અને પોઝીટીવ અભિગમ અપનાવી ઈસ્હાકપુરાની આ ગરીબ મઝલુમ મુસ્લિમ વસ્તી ની હમદર્દી માં એમના થી જે કંઈ પણ સાથ સહકાર અને સહયોગ આપી શકાશે તે આપવાનું વચન આપ્યું હતું અને એવી ઉમ્મીદ પણ જાહેર કરી હતી કે અલ્લાહ ‌ત‌આલા સમાજના એવા કોઈ હમદર્દ ઉભા કરે જે જરૂરતમંદોના હીત માં આ મિલકત ખરીદી લે .
જનાબ ડો. ખાલીદભાઈ ના આવા નિખાલસ અને હમદર્દાના પોઝિટિવ વ્યવહાર પછીથી આ બાબતના વિવાદ નો અંત આવ્યો હતો ‌‌.
તેમ છતાં ઘણાં સમય પછી અત્યારે ફરીથી ૩ વરસ જૂનો મેસેજ મુસ્લિમ સમાજમાં જે કોઈએ પણ  ફરતો કર્યો હોય, ભલે પછી તેમનો  ઈરાદો  ઈસ્હાકપુરા ની ગરીબ મઝલુમ વસ્તીની  હમદર્દી માટે નો ભલાઈ નો હોય અથવા તો પછી કોઈ વ્યક્તિ કે વ્યકિત‌ઓને નુકસાન પહોંચાડવાનો  ફીત્નાખોરી  નો હોય,  તેમના આવા કૃત્ય  ને અમે યોગ્ય સમજતા નથી.
એમ પણ બંબાખાના વિસ્તારના  આ ગરીબ મઝલુમ ઈસ્હાકપુરાની વસ્તી વરસોથી  મુસીબતો અને તકલીફો નો માર  વેઠતી આવી રહી છે,  જેથી અમારા  વહાલા વડીલો, બુઝુર્ગો, ભાઈઓ,  આ વસ્તી વરસોથી  કૌમની હમદર્દી અને ખુસુસી દુઆઓ ની મોહતાજ રહી છે,  આ ઈસ્હાકપુરા લાચાર વિસ્તાર ને કૌમના  સાચા  નિસ્વાર્થ અને હમદર્દી ભર્યા સાથ સહકાર ની  આજે પણ ઘણી  જરૂરત છે,  એવા વખતે બિનજરૂરી રીતે,  જૂના ભૂલાઈ ગયેલા મેસેજ થી  લોકોમાં  ખોટી સમજ ન ફેલાય અને   આ કમજોર  વસ્તીને કોઈ પણ રીતે નુકસાન ન થાય તેનો ખ્યાલ કરવા અમારી નમ્ર વિનંતી છે.

        લિ. અમો છીએ, આપની ભલી દુઆઓ અને ભલી લાગણીઓ ના મોહતાજ  -
ભરૂચ ઈસ્હાકપુરા બંબાખાના ના રહીશો.
ભરૂચ તા. ૦૫/૦૫/૨૦૨૨

Wednesday, 4 May 2022

WhatsApp Masej બોગસ ચંદો કરનાર પકડાયા,કબૂલાત કરી, માફી માંગી અને ફરી ચાલુ.

*બોગસ ચંદો કરનાર પકડાયા,કબૂલાત કરી, માફી માંગી અને ફરી ચાલુ....*

આ બે મહાનુભાવો જેમાંથી એક *મુફતી ઈમ્તિયાઝ વલણવી (સેલાત)* અને બીજો *મૌલવી તાહીર વલણવી* છે ...તેઓ રમઝાન પહેલાં પાલેજ એક મસ્જિદમાં એક *મુફતી સાહેબ* ના નામથી બોગસ ચંદો ઉઘરાવતા રંગે હાથે પકડાઈ ગયા હતા...જેની રીસ રાખીને તેમણે એ મસ્જિદના ઇમામ સાહેબને *અભદ્ર ભાષાનો પ્રયોગ કરી ગાળો આપી હતી..* જે ઓડિયો આપણા ગૃપમાં વાયરલ થયેલ... ત્યારબાદ આ બન્ને સુવ્વરની ઔલાદ (આલીમ ના નામે કલંક) ને પાલેજ મસ્જિદ જ્યાંથી તેઓના કાળા કરતૂતોનો પર્દાફાશ થયો હતો ત્યાં બોલાવીને સંપૂર્ણ છાનબીન કરતાં તેઓએ આ તેમની ગેન્ગમાં *બીજા ૧૫-૧૭* આલીમો સામેલ હોવાનો અને હવે પછી તેઓ આવું નહીં કરે તે અંગેનું *લેખિત માફીનામુ* સમાજના આગેવાનો અને પાલેજ સરપંચ સલીમ વકીલની રૂબરૂમાં લખી આપેલ...સલાહ મશવેરા અને રમઝાન માસમાં બીજા ઈદારાઓ અને સફીરોને તેમના કલેક્શન માટે કોઈ ગલતફેહમી કે અવામની શંકાનો ભોગ ન બનવું પડે એ કારણોસર એમના કરતૂતોના પર્દાફાશની હકીકત ઉજાગર કરતા ફોટાઓ, ઓડિયો વીડિયો ક્લિપ *વાયરલ ન કરવાનો વાયદો કરી,તે આજદિન સુધી પાળવામાં આવ્યો..* પરંતુ આજે ફરીથી એમણે એક ઈદારાના નામે ફરીથી ઉઘરાણું કરેલ *ધ્યાનમાં આવતાં* મેં આ ફોટો, ઓડિયો વાયરલ કરેલ છે..! 
આવા *બોગસ અને આલીમના નામે કલંક* એવા  *મુફતી ઈમ્તિયાઝ વલણવી (સેલાત)* અને *મૌલવી તાહીર વલણવી* અને આમના હાથ નીચે રહી બોગસ ઉઘરાણુ કરનાર *એમની ટીમ ના બીજા 15-17* ચંદાચોરો થી લોકો હવે જાગૃત થાય અને સારા કામ કરતા ઈદારાઓને નુકશાન થતા બચાવે એ જ અપીલ.....
04-May-2022
Wednesday

7/11 मुंबई विस्फोट: यदि सभी 12 निर्दोष थे, तो दोषी कौन ❓

सैयद नदीम द्वारा . 11 जुलाई, 2006 को, सिर्फ़ 11 भयावह मिनटों में, मुंबई तहस-नहस हो गई। शाम 6:24 से 6:36 बजे के बीच लोकल ट्रेनों ...