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Friday, 28 May 2021

बिल गेट्स इतना प्रसिद्ध क्यों हे?

क्या आप जानते हैं कि बिल गेट्स इतना प्रसिद्ध क्यों है? इसलिए कि इंसान को आज उसके गुण और स्वभाव से नहीं, बल्कि दौलत, पद, शक्ति और कार्यकारिता के नजरिये से नापा जाता है। हम यह नहीं सोचते कि एक अपराधी ने इतना धन कैसे कमा लिया। अगर वह निःस्वार्थ सेवा कर रहा है, तो उसका व्यापार कैसे फल-फूल रहा है?

क्या बिल गेट्स के कम्प्युटर से वैक्सीन की दूनिया में कदम रखते ही उसमें बदलाव आ गया? नहीं। उसने सिर्फ मिडिया को पटाकर और जनसम्पर्क बेहतर करके (Media Management और Public Relations के जरिए) अपनी छवि सुधार लिया। आज भी उसकी आपराधिक गतिविधियाँ विद्यमान हैं, पर मिडिया इन बातों को दबा देती है। उसने कम्प्यूटर के क्षेत्र में भी मोनोपली यानि एकाधिकार बनाने के लिए कई अपराध किये थे। उसने अपने बिजनेस पार्टनर को धोखा भी दिया था। इस तरह विश्व का सबसे धनी व्यक्ति बनने के बाद उसने टीके की दूनिया में कदम रखा। उसका हृदय परिवर्तन तो नहीं हुआ, पर मिडिया (पैसा खाकर) उसकी छवि सुधारने में जुट गया। दिखावे का दान देकर बिल गेट्स महान बन गया। ऐसे दान उसके दो और काम आये- टैक्स कम भरना पड़ा और व्यावसायिक स्वार्थ भी सिद्ध हुआ। आगे इसका उदाहरण मिलेगा।

बिल गेट्स और मिडिया ने मिलकर हमें बेवकुफ बनाया। ऐसा क्यों हुआ? दरअसल, हम खोखलेपन के शिकार हैं। हमें यह नहीं दिखता कि कोई इंसान जैसा है, उसका काम भी वैसा ही होगा। स्वभाव से ही कर्म उपजता है। हमें तो सिर्फ फल खाने से मतलब है, फिर चाहे वह फल कैसे भी उगाया गया हो। उस फल के अंदर जहरीले रासायनिक तत्त्व भरे हों सकते हैं, जो कि सार और कीटनाशक के रूप में जमीन और छिड़काव से पौधे में प्रवेश कर जाते हैं। वह फल बिना बीज का या अप्राकृतिक जेनेटिकली माॅडिफाइड/genetically modified (आजकल नया नाम चला है- बायोफर्टिफाइड/biofortified) हो, तो भी हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। तो, यही लापरवाही हमें बरबाद कर रही है।

और लापरवाही क्यों न हो? हम कर्म में यकीन ही नहीं रखते, हमें सिर्फ फल चाहिए। यह हमारा स्वभाव ही बन गया है। दुनियादारी सीखकर हम उसी की राह पर shortcut to success यानि सफल होने का द्रुततम मार्ग ढूंढते है। नैतिकता का विसर्जन न दिये होते, तो बिल गेट्स को समझना, उसका अभिप्राय बहुत ही आसान common sense की बात होती।

World Health Organization (विश्व स्वास्थ्य संगठन) क्यों कोरोना के बचाव में सिर्फ और सिर्फ वैक्सीन की पैरवी कर रहा है, जब कि हर वैक्सीन  experimental (प्रायोगिक) है? इन vaccine (वैक्सीन/टीकों) के long-term effect (दीर्घकालीन प्रभाव) का अभी आकलन नहीं हो सका है। इसके दुष्प्रभाव के लिए न तो वैक्सीन बनानेवाली कम्पनियाँ उत्तरदायी होंगी, न ही सरकारें। फिर इतने सारे लोगों को टीका लगवाने के किसी भी दुष्परिणाम का जिम्मेदार कौन होगा? डाॅक्टर या नर्स?

टीकों पर पहले से ही बहुत से सवाल हैं। ये दवा से काफी अलग होते हैं। न तो इनका double blind placebo study होता है, न ही इन टीकों में मिलाये गये वस्तुओं की जानकारी मिलती है। और तो और, डाॅक्टरों को भी इन चीजों का पूरा ज्ञान नहीं होता।

इन बातों को समझने के लिए इस खेल के अगले परत में चलते हैं। यहाँ शुद्ध व्यापार मिलेगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन को सबसे ज्यादा आर्थिक सहायता बिल गेट्स से मिलता है। इस संगठन के आधिकारिक भ्रष्टाचार में डुबे हुए हैं। सब बड़े बड़े फार्मास्यूटिकल कंपनियों के पिट्ठू हैं। तो, ये लोग बिल गेट्स की वैक्सीन के धंधे को बढ़ावा दे रहे हैं। बिल गेट्स कहीं भी यूँ ही दान नहीं देता, उसके दिये हुए पैसे कई गुणा बढ़कर उसके पास वापस आ जाते हैं। दान करने के इस ढोंग से उसकी छवि सुधर जाती है। मिडिया उसे महान और हमारी उद्धार करनेवाला मसीहा बना देता है। उसे ऐसे दान से टैक्स में भी छुट मिलती है, सो अलग।

क्या अब आप बिल गेट्स की किरदार समझ पा रहे हैं? बताइये तो, कि बिल गेट्स के पास कौन सी डाॅक्टरी चिकित्सा का ज्ञान है? या उसके पास कौन सा तजुर्बा है जिसके कारण मिडिया उसकी बातों का प्रचार करता है? बिल गेट्स महामारी के इस साजिश में एक अहम भूमिका निभा रहा है। इवेंट 201 के जरिये वह पहले ही इस फर्जी महामारी का अभ्यास करा चुका है।

तो, सतर्क रहिए और समझदारी से काम लीजिए। इस खेल का एक और परत है, जिसके बारे में अब जागरूकता बढ़ने लगी है। इस परत में आपको New World Order (नयी विश्व व्यवस्था) depopulation (जनसंहार), total control (पूर्ण नियंत्रण) और  technocracy (तकनीकी तंत्र) मिलेगा।

कुछ संकेत दे रहा हूँ। Wealth Pyramid, Occupy Wall Street आंदोलन, 1% और 99% का टकराव, इत्यादि विषय का ज्ञान प्रयोग कीजिए। अगले कदम पर 5G, Internet of Things, Internet of Bodies, RFID chip implants, Transhumanism, Fourth Industrial Revolution, इत्यादि बातों पर एकसाथ चिंतन कीजिए। आपको एक technocracy की झलक मिलेगी। अब उस technocracy पर सवार इन एजेंडों को देखिए- CBDC (Central Bank Digital Cryptocurrency), Social Credit Score और Surveillance State. आपको Economic dependence and slavery (अर्थनैतिक निर्भरता और दासता) मिलेगी। Artificial Intelligence, Supercomputer system और Robotics के युग में आपका जरूरत कम होता जाएगा। वैसे भी हमारी (99% लोगों की) संख्या ज्यादा होने के कारण हम सब पर नियंत्रण मुश्किल है। तो जनसंख्या घटाया जा रहा है। जो बचेंगे, वे मूलतः smart cities में Universal Basic Income scheme के तहत One World Government का गुलाम बने रहेंगे। पूरी धरती के संसाधनों पर, इंसानो पर भी 1% elites का राज होगा। खेतीबाड़ी भी उन्ही के अधीन होगा। Farm Bills का मुख्य उद्देश्य भी यही है।

अब सवाल उठता है, कि इन सबसे फर्जी महामारी और टीके का क्या संबंध है? तो, कुछ संकेत दूँगा। 5G से भी बीमारी होती है, और उसके उपसर्ग फर्जी कोरोना से मिलते हैं। क्या यह सिर्फ संयोगवश है? मैं इनलोगों के कर्मपद्धति से परिचित हूँ। इनका प्लान काफी जटिल होता है, तभी तो लोग समझ नहीं पाते हैं, और गुत्थी सुलझा नहीं पाते हैं। मसलन, तरह तरह की हिदायतें, दवाइयाँ और चिकित्सा पद्धति को देखिए। ये आधिकारिक सुझाव हमें इतना भ्रमित कर चुके हैं कि हम सोचना बंद कर दिये हैं। इनके योजना में बहुत सारी परतें होती हैं, जैसा कि हम देख रहे हैं। बिल गेट्स सिर्फ इनका एक कारिंदा है, असल योजनाकार पीछे से छुपकर वार कर रहा है।

कुछ और संकेत देखें। पहले लाॅकडाउन में 5G के टावर लगे। क्या यह essential services में आती है, या देश के economy के लिए इतना महत्त्वपूर्ण था? न ही यह essential service था (repair का काम होता, तो ऐसा मान भी सकते थे), न ही economy के लिए जरूरी। कितने लोग बेरोजगार हो गये, भूखे मरे, आत्महत्या कर लिए, किसान खेती नहीं कर पाया- फिर 5G से कौन सी अर्थनीति की बात कही जा सकती है? क्या tower लगानेवाले लोगों की जान को खतरा नहीं था? दूसरा लाॅकडाउन फिर फ्लू के मौसम में हुआ। इसबार 5G का परीक्षण हो गया। कई जगहों से शिकायतें आईं। तीसरे लाॅकडाउन में 5G चालु हो जाएगा, या फिर उसकी frequency (फ्रीक्वेंसी) बढ़ाकर घातक कर दी जाएगी। न तो मोदी चिकित्साविज्ञान के जानकार हैं, न ही अरविंद केजरीवाल। पर दोनों अपने अपने राजनीति के अनुभव से जानते हैं कि तीसरा लहर और लाॅकडाउन होना है, जिसमें बच्चे भी शिकार होंगे। यही योजना है। राजनीति, मिडिया, इत्यादि हर महत्वपूर्ण क्षेत्र 1% elites के कब्जे में है। पैसा बोलता है। इसके अलावा वे हर चीज पर कब्जा करने के तरीके जानते हैं। ये तरीके मनस्तत्त्व, विज्ञान, गुप्त हथियार, गुप्त हत्याओं से लेकर blackmail और mind control तक जाते हैं। 

वैक्सीन में शुरू से ही nanoparticles होते थे। इस कोरोना के कुछ वैक्सीन में और भी तत्त्व होंगे, जो शायद मैग्नेट इत्यादि को टीके के स्थान से चिपका दे रहे हैं। तो, ये 5G radiation से ज्यादा प्रतिक्रिया करेंगे। तो, ऐसे में बच्चों का टीकाकरण खतरों से खाली न होगा। बचाव के नाम पर धोखाधड़ी से मारना elites (एलिट्स) की फितरत है।

जरूरत है सारा खेल समझकर उसका विरोध करने का। हमारी संख्या 99% से भी कहीं अधिक है। हमारी चेतना, नैतिकता और आध्यात्मिकता हमारी शक्ति है।

विशेष द्रष्टव्य: सही मायने में देखा जाए तो ये एलिट हमको वशीभूत करके रखे हैं। इनके Central Banks (केंद्रीय बैंक), जैसे कि भारत में RBI, Fiat Currency (फियाट करेंसी) छापती है, जिसके पीछे हमलोग जिन्दगीभर भागते रहते हैं। शिक्षा-व्यवस्था भी इनके अधीन होकर हमें गुलाम बना रही है। इनका ये सारा षडयंत्र सदियों से चला आ रहा है, और हम इन सब से अनजान बने रहे हैं, क्योंकि ये छुपकर अपने काम को अंजाम देते हैं। इनके बहुत सारे गुप्त संगठन (secret societies) दुनियाभर में सक्रिय रहकर इन षडयंत्रों को अंजाम दे रहे हैं। ये धीरे धीरे हमारे समाज को पतन की ओर ले जा रहे हैं।

इनके काम करने का अंदाज बड़ा ही खुफिया होता है। सरकारों पर इनकी पकड़ है। मिडिया भी इनके अधीन है। ये लोग एक pyramid structure (पिरामिड स्ट्रक्चर) को मडेल बनाकर चलते हैं। ये दुनियाभर में धन, आय, तथ्य, नियंत्रण, सब इसी पिरामिड मडेल पर चलाते है। ये निर्मम और निरंकुश लोग हैं, जो आज्ञाकारिता के बलबूते पर अपना काम करवाते हैं। इस 1% के अंदर भी पिरामिड मडेल है। दरअसल, मुट्ठीभर लोग (100 से 150 लोग) ही सारे निर्णय लेते हैं। शेष इनके हिसाब से चलते हैं।

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