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Wednesday, 7 December 2016

BAMCEF का पारिचय अोर बाबा साहेब के विचार सामजिक परिवरतन

डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के 60वें परिनिर्वाण दिवस 6 दिसंबर 2016 के अवसर पर उनको मूलनिवासी बहुजन समाज के तरफ से विनम्र श्रद्धान्जलि

सत्यशोधक समाज के आंदोलन के अनुयायियों द्वारा आंदोलन का विघटन कर उसको कांग्रेस पार्टी में विलय करने के बाद डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने घोषित किया कि वह राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले के सामाजिक क्रांति के आंदोलन को आगे ले जाने के लिए उनके एकमात्र अनुयायी है। उनको आंदोलन को गतिमान करने के लिए साहित्य के महत्व का एहसास था। बाबा साहब अपने आप में एक संस्था थे। अपने विशाल ज्ञान और क्षमता का भरपूर सदुपयोग करके, ब्राह्मणवाद से लड़ने के लिए, मूलनिवासी बहुजन समाज के आंदोलन के लिए आवश्यक सभी क्षेत्रो मे जैसे कि सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षणिक, धार्मिक आदि मे साहित्य का निर्माण किया। एक आदमी की सीमा अच्छी तरह से समझते हुए उन्होंने आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए संस्थाओं की स्थापना की। । 6 दिसम्बर 1956 को बाबा साहब डा भीम राव अंबेडकर का परिनिर्वाण हुआ और उनके परिनिर्वाण की घटना के बाद मूलनिवासी बहुजन समाज का बढ़ता हुआ कारवां रुक गया और मिसन थम गया। उसकी गति अत्यंत धीमी पड़ गयी थी । 
उनके परिनिर्वाण के बाद उनके कद का न तो कोई नेता हुआ और न ही कोई ऐसी संस्था बनी जो उनके आंदोलन को आगे बढ़ा सके। इस रुके हुये कारवां को आगे बढ़ाने के बात आई तो ऐसा सोचा गाया कि जिस दिन कारवा रुका था उसी दिन से कारवां आगे बढ़ाया जाय इस लिए बाबा साहब के परिनिर्वाण दिवस के ही दिन का चयन किया गया और मान्यवर कांशी राम, यशकाई डी के खापर्डे, और मान्यवर दीना भाना, ये तीन महापुरुषो ने समाज के और जागरूक साथियों के साथ मिलकर बामसेफ की संकल्पना 6 दिसम्बर 1973 को किया और उसके पाँच वर्ष बाद परिनिर्वाण दिवस 6 दिसम्बर 1978 नई दिल्ली मे बामसेफ का पहला अधिवेशन करके इसको मूर्त रूप दिया । 
हमारा आंदोलन सेल्फ रिस्पेक्ट का आंदोलन है अतः यह सेल्फ हेल्प से ही लड़ा जायेगा क्योकि अगर हम किसी का सहारा लेते है तो हमे उसका इशारा भी मानना पड़ेगा। इस लिए हमे इस व्यवस्था से दुख भोगी अर्थात एससी/एसटी एवं सह दुखभोगी अर्थात ओबीसी एवं इनसे धर्म परिवर्तित अल्पसंख्यक समाज के लोगो को को ही संगठित करना पड़ेगा। बामसेफ(BAMCEF) का उद्देश्य व्यवस्था परिवर्तन है। बामसेफ, पिछड़े वर्ग (Backward Class अर्थात SC /ST /OBC /एवं इनसे धर्मपरिवर्तित अल्पसंख्यक समाज) के पढे-लिखे कर्मचारियों और शिक्षित प्रोफेसनल जैसे कि वकील, डाक्टर, एंजिनियर, वास्तुविद, इत्यादि का, एक गैर-राजनीतिक(Non-Political), गैर-आंदोलनात्मक (Non-Agitational) एवं गैर-धार्मिक (Non-Religious), सांस्कृतिक संगठन है। राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले एवं डॉ बाबासाहेब आंबेडकर का मिसन ही बामसेफ का मिसन है। मान्यवर ने कहा कि “बामसेफ को समाज के दिमाग (Brain) का काम करना चाहिए और समाज से गाइड होने के बजाय उन्हे समाज को गाइड करना चाहिए”। BAMCEF should work as the brain of society and guide them and not to be guided by them। ऐसा उन्होने क्यो कहा कि, बामसेफ को समाज को गाइड करना चाहिए लेकिन समाज से गाइड नहीं होना चाहिए। क्योकि यदि आप समाज से गाइड होने लगते है तो फिर आप समाज परिवर्तन(Social Change) का कार्य नहीं कर सकते क्योकि समाज की वर्तमान शक्तियाँ यथा स्थिति को बना कर रखना चाहती है जबकि यदि आप को समाज परिवर्तन का कार्य करना है तो आप को समाज को परिवर्तन की दिशा मे मोड़ना होगा। अर्थात समाज मे प्रचलित गलत मूल मान्यताओ, परम्पराओ, अंध विश्वासों, मिथ्या धारणाओ को हटा कर तर्क एवं विज्ञान के आधार फुले-अंबेडकरी विचारधारा के अनुरूप सोच विकसित करनी होगी जिससे लोग स्वतः दिन प्रति दिन घटने वाली घटनाओ की व्याख्या तर्क एवं विज्ञान के आधार फुले-अंबेडकरी विचारधारा के अनुरूप कर सके। क्या यह काम एक राजनीतिक संगठन कर सकता है? यदि हमे समाज परिवर्तन करना है तो यह कार्य राजनीतिक संगठन नहीं बल्कि सामाजिक संगठन कर सकता है। क्योकि राजनीतिक संगठन की अपनी मज़बूरियां है। जबकि सामाजिक संगठन की ऐसी मजबूरी नहीं है। इस लिए समाज परिवर्तन का कार्य सामाजिक संगठन ही कर सकता है। राजनीतिक संगठन समाज को गाइड करने के बजाय समाज से गाइड होते है। राजनीतिक संगठन समाज के प्रतिनिधि होते है। इस लिए जैसा समाज होगा वैसा ही उनका प्रतिनिधि होगा अर्थात जैसा समाज होगा वैसा ही राजनीतिक संगठन होगा। राजनीतिक संगठन को हमेशा चुनाव लड़ना होता है और चुनाव मे सफलता के लिए बहुमत का मत प्राप्त करना होता है। इसलिए वे समाज मे प्रचलित गलत मूल मान्यताओ, परम्पराओ, अंध विश्वासों, मिथ्या धारणाओ इत्यादि से एक सीमा से ज्यादा नहीं लड़ सकते है। यदि राजनीतिक संगठन के लोग समाज मे प्रचलित मूल मान्यताओ से एक सीमा से ज्यादा लड़ते है तो इन गलत मूल मान्यताओ मे विश्वास रखने वाले मतदाताओ के उनसे नाराज होने की संभावना होती है और इससे उनके चुनाव जीतने मे समस्या हो सकती है। ऐसा क्यों है? क्योकि आज हम मूलनिवासी बहुजन समाज के लोग देश मे भले बहुसंख्यक है लेकिन हमारे विचारधारा के लोग बहुसंख्यक नहीं है?। लोग भले हमारे है लेकिन उनकी विचारधारा हमारी नहीं है?। यह हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इस लिए हमे कोई गोली बंदूक नहीं चलानी है केवल हमारे लोगो का विचार परिवर्तन का कार्य करना है। उनके दिमाग से ब्राह्मण वाद की विचारधारा निकालकर हमे फुले-अंबेडकरी विचारधारा डालना है और यह काम सामाजिक संगठन ही कर सकता है। इस विषय पर बाबा साहेब आम्बेडकर ने कहा था कि “जिस तरह व्यक्ति एक दिन मर जाता है उसी तरह विचार भी प्रचार एवं प्रसार के अभाव में मर जाता है। जिस तरह पौधे को जिन्दा रखने के लिए उसको हमेश पानी देना पड़ता है, उसी तरह विचार को अगर जिन्दा रखना है तो उसका हमेशा प्रचार एवं प्रसार करना होगा” मान्यवर कांशी राम ने कहा कि “न बिकने वाला समाज ही न बिकने वाला नेता पैदा करता है। अगर समाज बिकने वाला है, तो नेता भी बिकने वाला ही पैदा होगा” अब सवाल यह है की विचार का प्रचार एवं प्रसार कौन करेगा एवं न बिकने वाला समाज तैयार कौन करेगा? निश्चित रूप से न बिकने वाला समाज बनाना एक सामाजिक काम है। आप काम करने के लिए तैयार है तो हम आप का स्वागत करेंगे। बामसेफ का मानना है कि विचार परिवर्तन ही व्यवस्था परिवर्तन का मूल है। विचार परिवर्तन से आचरण मे परिवर्तन होता है। आचरण मे परिवर्तन से सामाजिक परिवर्तन होता है। सामाजिक परिवर्तन से राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक परिवर्तन होता है। राजनीतिक परिवर्तन से आर्थिक परिवर्तन होता है और उपरोक्त सारे परिवर्तनो से व्यवस्था परिवर्तन होता है। विचार में परिवर्तन हुए बिना आचरण में परिवर्तन संभव नहीं है और यदि विचार में परिवर्तन नहीं होता है तो हमारा आदमी भी यदि पोजीसन ऑफ़ पावर पर पहुचता है तो वह भी ब्राह्मणवादी एजेंडा को ही आगे बढ़ाने में लगा रहता है। अगर विचार में परिवर्तन हुए बिना किसी तरह से सत्ता परिवर्तन हो भी जाता है तब भी उस सत्ता का प्रयोग आप व्यवस्था परिवर्तन करने के लिए नहीं कर पाएंगे क्योकि आप के अपने लोग आप के विचार धारा के नहीं होंगे और आप के अपने लोग ही व्यवस्था परिवर्तन का विरोध कर देंगे। इस लिए हमारे अपने समाज के लोगो में अपने महापुरुषों- तथागत बुद्ध, सम्राट अशोक, राष्ट्रपिता फुले, बाबा साहब आंबेडकर, नारायणा गुरु, संत कबीर ,संत रैदास, गुरु घासीदास, पेरियार, साहू जी महाराज॰ राम स्वरूप वर्मा, ललई सिंह यादव इत्यादि महापुरुषों की विचारधारा को स्थापित करना होगा और बामसेफ यही कार्य अपने स्थापना काल से कर रहा है और देश मे बहुत से लोगो को तैयार किया है जो आज समाज जीवन मे घटने वाली दिन-प्रतिदिन की घटनाओ की व्याख्या फुले-अंबेडकरी विचारधारा से कर रहें है इस लिए ही भारत मे कुछ परिवर्तन हुआ है। लोग पूछते थे कि बामसेफ ने क्या किया तो खापर्डे साहेब का उत्तर था कि “ऐसा मानव संसाधन तैयार करना जो की फुले-आंबेडकर की विचार धारा के अनुरूप सोच सके, अपने आप मे रिवोलुसन है और बामसेफ यही कार्य अपने स्थापना काल से सफलता पूर्वक कर रहा है और देश मे बहुत से लोगो को तैयार किया है जो आज समाज जीवन मे घटने वाली दिन-प्रतिदिन की घटनाओ की व्याख्या फुले-अंबेडकरी विचारधारा से कर रहें है।“ लेकिन जीतने लोगो का हमने तैयार किया उसी परिमाण मे परिवर्तन भी हुआ। ऐसे लोगो की संख्या अभी बहुत प्रभाव शाली नहीं है इस लिए परिवर्तन भी प्रभाव शाली नहीं हुआ है। अगर हम 20 % लोगो का विचार परिवर्तन मे सफल हुए तो हम व्यवस्था परिवर्तन मे कामयाब हो जाएगे। बामसेफ संगठन राष्ट्रीय अधिवेशन, प्रदेश अधिवेशन, कैडर कैम्प, सेमिनार, वर्कशाप, मूलनिवासी मेला, प्रबोधन सत्र लगा कर अपने समाज के मानव संसाधन को अपने महापुरुषों की विचार धारा में प्रशिक्षित करने एवं प्रशिक्षित मानव संसाधन को तैयार करने में लगा हुआ है। व्यक्ति का विचार परिवर्तन आसान नहीं अपितु यह अत्यंत कठिन कार्य है। वह भी तब और कठिन है जबकि प्रतिगामी शक्तिया इसके विरोध करने अर्थात इसको काउंटर करने में अपने भारी बित्तीय एवं मानव संसाधन लगा रही है।
आज हम इसकी बामसेफ के संकल्पना वर्ष (1973) के बाद तिरालिसवें वर्ष मे पहुचे है और तब से यह कारवां तमाम कठिनाइयो और चुनौतियों का डट कर मुक़ाबला करते हुये तमाम सफ़लताए अर्जित करते हुये और अपने कई गलतियो से शबक लेते हुये आगे बढ़ा है। आज हम व्यक्ति वाद के दौर से बाहर निकल कर प्रजातांत्रिक संगठन और संस्थागत नेतृत्व मे विश्वास करते हुये आगे बढ़ रहे है। लोग पूछते थे कि बामसेफ ने क्या किया तो खापर्डे साहेब का उत्तर था कि “ऐसा मानव संसाधन तैयार करना जो की फुले-आंबेडकर की विचार धारा के अनुरूप सोच सके, अपने आप मे रिवोलुसन है और बामसेफ यही कार्य अपने स्थापना काल से सफलता पूर्वक कर रहा है और देश मे बहुत से लोगो को तैयार किया है जो आज समाज जीवन मे घटने वाली दिन-प्रतिदिन की घटनाओ की व्याख्या फुले-अंबेडकरी विचारधारा से कर रहें है।“
बामसेफ संगठन ने सामाजिक क्रांति के आंदोलन को आगे ले जाने की ज़िम्मेदारी अपने कंधो पर लिया है और आंदोलन के लिए अति आवश्यक मानव संसाधन और साहित्य निर्माण करने के लिए एक संस्था की जरूरत के महत्व को समझा। इसलिए बामसेफ ने अपने संस्थापक यशकाई डी के खापर्डे के नाम से एक ट्रस्ट का गठन किया और फुले-अंबेडकरी आंदोलन के लिए आवश्यक मानव संसाधन एवं साहित्य उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले सामाजिक क्रांति संस्थान की स्थापना रिंगनाबाड़ी, नागपुर मे की। जिन लोगो को बाबा साहब के मिसन से लगाव है और वे बाबा साहब के कारवा को तेज गति से आगे ले जाना चाहते है हम उनका स्वागत करते है। बाबा साहब को श्रद्धांजलि उनके कारवा को बढ़ाने मे है। बाबा साहब ने कहा था कि “मेरी जय - जय कार करने की बजाय, मेरे द्वारा बताए गए मिसन/उद्देश्य-पूर्ति को मंजिल तक पहुचाने में, अपनी जान की बाजी लगा दो”।
“Don’t cheer my name. Instead wage your life for the mission undertaken by me”
Dr B R Ambedkar..
What is Mission of Dr BR Ambedkar? बाबा साहब का मिसन क्या है .
Social Transformation (व्यवस्था परिवर्तन) and Economic Emancipation (आर्थिक मुक्ति)

*मूलनिवासी बहुजन समाज के राष्ट्रव्यापी संघटन बामसेफ का 33 वाँ राष्ट्रीय अधिवेशन-2016, शहीद बिरसा मुंडा नगर, रायपुर, छत्तीसगढ़ ( दशहरा मैदान, डबल्यु. आर. एस. रेल्वे कालोनी ) में  25 से 28 दिसंबर को होने जा रहा है। आप सभी आमंत्रित है ।*

बामसेफ का 33वां अधिवेशन ऐसे समय मे होने जा रहा है जब देश मे समता स्थापित करने के लिए आंदोलन चला रहे बामसेफ संगठन एवं उनके अन्य सहयोगी लोकतान्त्रिक संगठनो एवं विषमता को बरकरार रखने वाली ब्राह्मण वादी, पुजीवादी एवं सामंत वादी ताकतों के मध्य तीब्र द्वंद चल रहा है। साथियो यह द्वंद नया नहीं है। भारत के इतिहास मे पहले भी इन दो विचार धाराओ मे द्वंद चलता रहा है। बाबा साहब डा आंबेडकर इतिहास के बारे मे अपनी पुस्तक “प्राचीन भारत में क्रांति और प्रतिक्रांति” में कहा है कि, “भारत का इतिहास बुद्धवाद और ब्राह्मणवाद के बीच एक संघर्ष के सिवा कुछ भी नहीं है। प्रसिद्ध इतिहासकर रोमिला थापर कहती है कि कि भारत का इतिहास श्रमण संस्कृति एवं ब्राह्मण संस्कृति के मध्य संघर्ष का इतिहास है। साथियों, यह संघर्ष वर्तमान मे भी जारी है। श्रमण संस्कृति श्रम/मेहनत मे विश्वास रखने वालो लोगो की है जबकि ब्राह्मण संस्कृति जिसे आश्रम संस्कृति भी कहते है वह दूसरे के श्रम पर मौज उड़ाने वाले लोगो की संस्कृति है। श्रमण संस्कृति कर्म पर आधारित संस्कृति है, जबकि ब्राह्मण संस्कृति जन्म पर आधारित संस्कृति है। आज भी वर्तमान मे श्रमण संस्कृति एवं ब्राह्मण संस्कृति के मध्य संघर्ष जारी है और जहा आरएसएस संगठन ब्राह्मण संस्कृति को आगे बढ़ा रहा है वही बामसेफ संगठन श्रमण संस्कृति के पथ का अनुशरण कर समतमूलक समाज की स्थापना के लिए 1973 से मूलनिवासी बहुजन समाज के जागरूक लोगो को संगठित कर रहा है।

अतः मूलनिवासी बहुजन समाज के सभी जागरूक साथियों से अपील की जाती है की बामसेफ के सदस्य् बन कर आप फुले-अम्बेडकर आंदोलन के अंतिम उद्देश्य को पूरा करने के कार्य में अपना तन-मन-धन रुप से सक्रिय सहभाग दर्ज कराएं और अनुरोध है कि बामसेफ के 33 वें अधिवेशन मे तन, मन एवं धन से सहयोग एवं सहभाग करें जिससे कि हम महापुरुषों द्वारा तय व्यवस्था परिवर्तन के लक्ष्य को हासिल कर सकें।

बामसेफ के केंद्रीय कार्यालय का पता एवं संपर्क दूरभाष: 
बामसेफ भवन, म.नं. 527 (ए), 
नेहरु कुटिया, अम्बेडकर पार्क के नजदीक, 
कबीर बस्ती, मलकागंज, दिल्लीं – 7 
दूरभाष: 011-23854369,
ईमेल: contact@bamcef.org
वेबसाईट: www.bamcef.org
फेसबुक: www.fb.com/bamcefnetwork
धन्यावाद
जयभीम - जयमूलनिवासी- जयभारत

7/11 मुंबई विस्फोट: यदि सभी 12 निर्दोष थे, तो दोषी कौन ❓

सैयद नदीम द्वारा . 11 जुलाई, 2006 को, सिर्फ़ 11 भयावह मिनटों में, मुंबई तहस-नहस हो गई। शाम 6:24 से 6:36 बजे के बीच लोकल ट्रेनों ...