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*हमारे लोगों को निम्नलिखित शब्दों का प्रयोग आम जीवन, सार्वजनिक स्थानों और अपने उद्बोधनों में करने से परहेज करना चाहिए*
"यदि कोई दूसरा भी इनका उपयोग करें, तो बेझिझक उसे ऐसा करने से रोक देना चाहिए"
1. *दलित* एक असंवैधानिक शब्द है
2. *भंगी* भी एक आपत्तिजनक शब्द है
3. *चमार* भी एक अपमानजनक संबोधन है
4. *ढेड* अयोग्यता दर्शाता है
5. *गंवार* से रूढ़िवादिता प्रदर्शित होती है
6. *अपभ्रंस उपनाम* मूलनाम को बिगाड़ने की कुरीति बताता है
7. *अछुत* अस्पृश्यता का भाव पैदा करता है
8. *शूद्र* वर्ण-व्यवस्था का हिस्सा बताता है
9. *शोषित* लाचारी प्रदर्शित करता है
10. *वंचित* कमजोरी दर्शाता है
11. *आर्य* विदेशी जाति का प्रतीक है
*उक्त जैसे और भी अनेक असंवैधानिक शब्द हैं जिनका प्रयोग आपत्तिजनक है*
*अतः उक्त असंवैधानिक शब्दों को लेखन, उद्बोधन, संबोधन में कतई काम में ना लें*
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इसके अतिरिक्त हमें निम्नलिखित शब्दों की अभिव्यक्ति पर भी विशेष ध्यान रखना चाहिए
1. *हिन्दुस्तान* देश का असंवैधानिक नाम है, *भारत* देश का संवैधानिक नाम है
2. *हिन्दुस्तानी* इस देश की नागरिकता नहीं हैं, *भारतीयता* इस देश की संवैधानिक नागरिकता है
3. *भारत माता* के बोलने के बजाय *मेरा भारत महान* बोलना चाहिए जिसमें देश की महानता का प्रदर्शन है ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
*बाबा साहब ने 6743 जातियों को बहुत गहरी और दूरगामी सोच के साथ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के नामकरण के साथ तीन समूहों में समाहित कर सामाजिक एकता के क्षेत्र में जबरदस्त अनुकरणीय काम किया था* और 6743 जातियों के समूह को अपरोक्ष रूप से एक संदेश दिया था कि जब भी तीनों समूहों में सामाजिक समरसता की सोच उत्पन्न हो जाएं, तो SC+ST+OBC तीनों समूह एक हो सकते हों क्योंकि *बाबा साहब ने SC+ST+OBC तीनों को सामाजिक और भौगोलिक आधार पर एक पिता की ही संतान* भारत के मूलनिवासी माना था जो *सन् 2001 की डीएनए रिपोर्ट के आधार पर प्रमाणित भी हो गया है कि SC+ST+OBC का आनुवांशिकी आधार पर वैज्ञानिक तौर पर डीएनए 99.99% मिलता है*
जब बाबा साहब ने SC+ST+OBC की 6743 जातियों को एक ही माना है और वैज्ञानिकों ने भी बाबा साहब की बात को प्रमाणित कर दिया है, तो हमें भी SC+ST+OBC को एक पिता की तीन संतानें मानकर एक हो जाना चाहिए
*अर्थात हम भारत के SC+ST+OBC के लोग भारत की मूलजाति द्रविड़ों की संताने भारत के मूलनिवासी हैं*
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अतः जब हम ही *दलित, शोषित, अछूत, वंचित, अस्पृश्य, ढेड, गंवार* जैसे शब्दों की अभिव्यक्ति संबोधन में करेंगे, तो अनारक्षित समाज तो उक्त शब्दावली का खुलकर दुरुपयोग करेगा ही और प्रमाण के तौर पर हमारे संबोधनों के उदाहरण प्रस्तुत भी करेगा और इन असंसदीय शब्दों के उच्चारण से हमारा वर्ग भी हिन भावना से ग्रसित होता है
अत: उक्त शब्दों के प्रयोग पर SC+ST+OBC के लोगों को ही पाबंदी लगानी होगी, तभी हम दूसरों को उक्त असंवैधानिक शब्दों के इस्तेमाल पर रोक-टोक सकते हैं
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अब हमारे मार्गदर्शकों को ऐसे असरकारक संबोधन का प्रयोग करना चाहिए जिसके संबोधन से हमारे लोगों में गौरव की भावना का संचार हो सकें और वो पूर्व-अधिरोपित सामाजिक हिन भावना से उभर सकें और हमारे गौरवशाली इतिहास पर गर्व महसूस कर सकें........
वह संबोधन है
*मूलनिवासी*
इस एक नाम की अभिव्यक्ति में *एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग की 6743 जातियों को समता, समानता, बंधुत्व और सामाजिक समरसता के आधार पर एकता के सूत्र में समा सकते हैं* और हमारी गौरवशाली ऐतिहासिक पहचान का असरदार प्रदर्शन भी कर सकते हैं
*यह एक नाम पूरे ब्राह्मणवाद को ध्वस्त करने के लिए काफी है*
अपनी कोमेंट जरुर दे