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Wednesday, 2 November 2016

31/10/16 simi ८ बंदे का वाकीये के कुच बाते

http://www.jantakareporter.com/blog/simi-bhopal-central-jail/72273/

सिमी सदस्यों का फ़र्ज़ी एनकाउंटर? इस पूरी ‘कहानी’ में कहीं न कहीं झोल है

By Abdul Alim Jafri -

October 31, 2016

देश के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से 17 दिनों से लापता छात्र नजीब अहमद का अबतक कोई सुराग नहीं मिल पाया है न ही ऐसा कुछ आसार दिख रहा है। दिल्ली पुलिस का काम भी इतना ‘काबिले तारीफ’ है कि खुद पुलिस ने खुद को निकम्मी साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

लेकिन आज भोपाल सेंट्रल जेल से आठ विचाराधीन कैदी “भागे”- वो “आतंकवादी” घोषित कर दिए गए जबकि अभी देश की किसी अदालत ने उन पर कोई आरोप तय नहीं किया था।
Jansatta

गौर करने वाली बात तो ये है कि पूरे सेंट्रल जेल में उन्हें सिर्फ एक ही गार्ड नजर आया, जिसकी उन्होंने हत्या कर दी। आठों अलग-अलग “भागने” की बजाय एक ही साथ एक ही दिशा में “भाग” रहे थे। पुलिस ने आठों को “मुठभेड़” में मार गिराया। कमाल की बात है कि पूरे भोपाल सेंट्रल जेल से सिर्फ आठ कैदी “भागे”…..और सब के सब ‘मुसलमान’ थे। हिन्दू कैदियों ने भागने से मना कर दिया होगा, है न?

पर क्या ये बात चौकाने वाली नहीं है कि एक सेंट्रल जेल से जहाँ पुलिस कि इतनी चौकसी होती है वहां 8 कैदी बेडशीट के सहारे कैसे भाग सकते हैं? दूसरी बात जो मुझे पर्सनली सुनकर अटपटा लगा है कि एक कांस्टेबल को बर्तन से गला काटकर कैसे मारा जा सकता है?

तीसरी बात, पूरी रात थी उनके पास भागने के लिए फिर वो पास के गावँ में ही जाकर क्यों छिपे जबकि ये जानते हुए भी कि उनके फरार होने के बाद पुलिस उनकी खोजबीन में जूट गयी होगी। चौथी पर आखिरी नहीं, फरार होने से लेकर एनकाउंटर होने तक कि इस छोटी अवधी में उनके पास हथियार कहाँ से आया जिससे उन्होंने पुलिस पर फायर किया?

खुद मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने NDTV से बात करते हुए कहा कि उनके पास हथियार थे। तो सवाल ये उठता है कि हथियार आया कहाँ से, जेल में उन्हें हथियार किसने दिया?

सोशल नेटवर्क पर ज़ारी फोटे देखने से पता चलता है “आतंकियों” का हुलिया जेल से भागने के बाद इतने अच्हे तरह से कैसे तैयार हो सकते हैं, आप खुद ही उनके जीन्स, स्पोर्ट्स शूज, हाथ में घडी, साफ़ टशर्टस पर गौर कर सकते हैं और खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं।

मैं जोर देकर कहा नहीं कर रहा हूँ कि यह एक “फर्जी मुठभेड़” है, लेकिन ये काफी प्रासंगिक सवाल है जो हर पत्रकार को एनकाउंटर में मारे जाने वाले सिमी सदस्य के बारे में अपनी स्टोरी फाइल करने से पहले पूछना चाहिए था।

ये भी संयोग है कि घटना ऐसे समय में हुई है जब भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में तनाव चरम पर है। हर रोज कोई न कोई जवान शहीद हो रहा है। सिनेमा हॉलों में फिल्म की शुरुआत से पहले मुसलमानों और ईसाइयों को नसीहत दी जा रही है कि उन्हें भी ‘देशभक्त’ बनना चाहिए। संयोग ये भी है कि उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में चुनाव होने को हैं। जातियों के आधार पर वोट बंटने से एक पार्टी को हार का डर सताता रहता है। इसलिए ‘राष्ट्रवाद’ की भावना जगाकर देश की सुरक्षा और सेना के नाम पर वोट बटोरने की कोशिश है। इस पूरी ‘कहानी’ में कहीं न कहीं ‘झोल’ है।

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मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादक
#Pravin_Dubey ने जो कुछ लिखा है, उसके बाद कुछ भी लिखने को नहीं बचता।
वे लिखते हैं-
शिवराज जी...
इस सिमी के कथित आतंकवादियों के एनकाउंटर पर कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है....
मैं खुद मौके पर मौजूद था..
सबसे पहले 5 किलोमीटर पैदल चलकर उस पहाड़ी पर पहुंचा, जहां उनकी लाशें थीं...
आपके वीर जवानों ने ऐसे मारा कि अस्पताल तक पहुँचने लायक़ भी नहीं छोड़ा...
न...न आपके भक्त मुझे देशद्रोही ठहराएं, उससे पहले मैं स्पष्ट कर दूँ...
मैं उनका पक्ष नहीं ले रहा....
उन्हें शहीद या निर्दोष भी नहीं मान रहा हूँ लेकिन सर इनको जिंदा क्यों नहीं पकड़ा गया..?
मेरी एटीएस चीफ संजीव शमी से वहीं मौके पर बात हुई और मैंने पूछा कि क्यों सरेंडर कराने के बजाय सीधे मार दिया..?
उनका जवाब था कि वे भागने की कोशिश कर रहे थे और काबू में नहीं आ रहे थे, जबकि पहाड़ी के जिस छोर पर उनकी बॉडी मिली, वहां से वो एक कदम भी आगे जाते तो सैकड़ों फीट नीचे गिरकर भी मर सकते थे..
मैंने खुद अपनी एक जोड़ी नंगी आँखों से आपकी फ़ोर्स को इनके मारे जाने के बाद हवाई फायर करते देखा, ताकि खाली कारतूस के खोखे कहानी के किरदार बन सकें..
उनको जिंदा पकड़ना तो आसान था फिर भी उन्हें सीधा मार दिया...
और तो और जिसके शरीर में थोड़ी सी भी जुंबिश दिखी उसे फिर गोली मारी गई...
एकाध को तो जिंदा पकड लेते....
उनसे मोटिव तो पूछा जाना चाहिए कि वो जेल से कौन सी बड़ी वारदात को अंजाम देने के लिए भागे थे..?
अब आपकी पुलिस कुछ भी कहानी गढ़ लेगी कि प्रधानमन्त्री निवास में बड़े हमले के लिए निकले थे या ओबामा के प्लेन को हाइजैक करने वाले थे, तो हमें मानना ही पड़ेगा क्यूंकि आठों तो मर गए...
शिवराज जी सर्जिकल स्ट्राइक यदि आंतरिक सुरक्षा का भी फैशन बन गया तो मुश्किल होगी...
फिर कहूँगा कि एकाध को जिंदा रखना था भले ही इत्तू सा...
सिर्फ उसके बयान होने तक....
चलिए कोई बात नहीं...मार दिया..मार दिया
लेकिन इसके पीछे की कहानी ज़रूर अच्छी सुनाइयेगा, जब वक़्त मिले...
कसम से दादी के गुज़रने के बाद कोई अच्छी कहानी सुने हुए सालों हो गए...
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विचाराधीन कैदियों को
मार गिराकर जेल प्रशासन ने
छुपाई अपनी लापरवाही
http://www.jantakareporter.com/blog/simi-bhopal/72256/
दिवाली की रात जेल प्रशासन की चूक से फरार
आठ विचाराधीन कैदियों जिनको अंडर ट्रायल
रखा गया था, पुलिस ने एनकांउटर कर मार
गिराया। इन आठों आरोपियों में मोहम्मद खालिद
अहमद (सोलापुर, महाराष्ट्र), मोहम्मद अकील
खिलजी (खंडवा, मध्य प्रदेश), मुजीब शेख
(अहमदाबाद, गुजरात), मोहम्मद सलिक, जाकिर
हुसैन सादिक, मेहबूब गुड्डू, अमजद को अदालत में
फैसला आने के बाद सजा सुनायी देनी थी या फिर
निर्दोष साबित होने पर छोड़ दिया जाना था।
लेकिन उससे पहले ही पुलिस ने इन आठों लोगों को
तलाश कर एनकांउटर में मार गिराया जबकि पुलिस
ने अगर उनको तलाश कर ही लिया था तो
गिरफ्तार भी किया जा सकता था? आठों लोगों
के पास किसी तरह के कोई हथियार नहीं थे। जब
पुलिस आसानी से इन लोगों को गिरफ्तार कर
सकती थी तो उनको मारने की जरूरत क्या थी?
पुलिस की इस तानाशाही कार्यवाही के पीछे
गुजरात माॅडल की छवि के अक्स उभरे नज़र आए।
मोदी सरकार में पहले भी फर्जी एनकांउटर की
कहानी और प्रशासनिक लापरवाही साथ ही
दबाव की राजनीति का ये एक और नया उदाहरण
है।
दिवाली की रात भोपाल सेन्ट्रल जेल में
लापरवाही का क्या आलम था कि बंद कैदियों ने
भागने की हिमाकत दिखाई हम इस पर बात करने
की बजाय एक तरफा आंतकियों को मार गिराने
का मेडल अपने सीने पर चिपकाए नज़र आ रहे है।
मोदी राज में इस नये चलन का फैशन अब सरकार की
आदत बन गयी है। जहां आपनी लापरवाही और
नाकामियों को छुपाने के लिये तरह-तरह प्रोपगंडे
इस्तेमाल किए जाते है। जब सरकार के 2 साल गुजर
जाने के बाद भी विकास कहीं ढुंडे से नहीं मिलता
अगर कहीं मिलता है तो सर्जिकल स्ट्राइक की
कहानी, सैना के बलिदान का क्रेडिट लुटने के तरीके
और तानाशाही, फरमान किसको क्या खाना है?
क्या पहनना है? कहां जाना है? कहां आना है?
अभी तक ये फैसला नहीं हुआ था कि मारे गए आठों
लोग आंतक की घटनओं में सलिंप्त थे या नहीं लेकिन
पुलिस ने अपने निकम्मेपन को छिपाने के लिये इस
कहानी का ही अंत कर दिया। पुलिस ने इन लोगों
को क्यों मारा ये आवाज़ कहीं नहीं उठने वाली
अगर कुछ सुनाई देता है तो सिर्फ इतना कि आठ
आंतकियों को मार गिराया गया। जब सरकार और
उनकी पुलिस खुद ही ‘आॅन द स्पाॅट’ फैसले कर
रही है तो इन अदालतों को बंद कर देना चाहिए और
फरमान जारी कर देना चाहिए कि जो हम कर रहे है
वो न्यायोचित है। भले ही आप इसको माने या ना
माने।
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👉🏻राम मंदिर
👉🏻लव जिहाद
👉🏻घर वापसी
👉🏻गौ मांस
👉🏻गौ रक्षा
👉🏻सहिष्णुता
👉🏻असहिष्णुता
👉🏻शाहरुख़ खान
👉🏻आमिर खान
👉🏻सलमान खान
👉🏻कन्हैया
👉🏻भारत माता की जय
👉🏻वन्दे मातरम्
👉🏻कश्मीर
👉🏻बांग्लादेश
👉🏻पाकिस्तान
👉🏻बलूचिस्तान
      और
👉🏻सर्जिकल स्ट्राइक

👉🏻इन सभी ऐतिहासिक कारनामों ने पूरे तीन साल मीडिया को व्यस्त रख कर आम आदमी के बुनियादी सवालों को गायब कर दिया गया !
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          अब ज़रा गौर करो

👉🏻 *क्या इन तीन सालों में*कभी आपने टीवी पर सरकारी शिक्षा के गिरते स्तर पर बहस देखीं हैं?

👉🏻 *क्या इन तीन सालों में*कभी आपने ग्रामीण भारत में आज भी हो रहे बाल विवाह की समस्या पर "एक्सपर्ट्स की कोई टीम टीवी पर देखी है?

👉🏻 *क्या इन तीन सालों में*कभी आपको सड़को पर भीख मांगते और भूख से बिलखते बच्चों के पीछे लगा कोई मीडिया कैमरा देखा है?

👉🏻 *क्या इन तीन सालों में*कभी आपने नालों फुटपाथों पर जिंदगी को कूडे के ढेर की तरह ढोते हुए लोगों के लिए किसी को चिल्लाते हुए देखा है?

👉🏻 *क्या इन तीन सालों में*कभी आपने आत्महत्या करते किसानों के बारे में किसी को सहानुभूति जताते हुए देखा है?

👉🏻 *क्या इन तीन सालों में* कभी आपने बेरोजगारी की मार झेल रहे नौजवानों के हक में किसी को बात करते हुए देखा है?

👉🏻 *क्या इन तीन सालों में* कभी आपने मीडिया में जेलों में बंद बेगुनाह नौजवानों की रिहाई के बारे में बहस करते हुए देखा है?

👉🏻मीडिया को व्यर्थ के मुद्दों पर व्यस्त रख कर बहुत बड़े बड़े "कारनामे" किये जा रहे है और हमें इसकी भनक तक नहीं !

*जाकिर नाईक* पुराना हुआ तो सलमान खान शाहरुख खान है न?

👉🏻 *सर्जिकल स्ट्राइक"*से जी भर गया हो तो अब नया शगूफा
*"समान नागरिक संहिता"*
तैयार है

👉🏻 *कुछ सप्ताह तीन तलाक* पर बहस करके अपने राष्ट्रवाद पर इतरा सकते हो तो ठीक है, अगर इस मुद्दे को ज्यादा ना चला सको तो फासीवाद की फेक्ट्री में अगला "एपिसोड" बनकर तैयार होगा।

👉🏻 *आखिर हम कब तक*इन मुद्दों पर चर्चा करते रहेंगे. जिस का देश और आम जनता को कोई फायदा नहीं।
👉🏻 *आखिर हम कब तक*अपनी नाकामी और काले कारनामों को छुपाने व देश का बंटवारा करने की साजिश रचने वालों का शिकार होते रहेंगे।
👉🏻 *आखिर हम कब तक*सिर्फ एक जुमला सुन कर खुश होते रहेंगे।
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मोलाना मुहम्मद अकरम
राष्ट्रिय अध्यक्ष
एकता समाज समिती
08445100911
09027570886

7/11 मुंबई विस्फोट: यदि सभी 12 निर्दोष थे, तो दोषी कौन ❓

सैयद नदीम द्वारा . 11 जुलाई, 2006 को, सिर्फ़ 11 भयावह मिनटों में, मुंबई तहस-नहस हो गई। शाम 6:24 से 6:36 बजे के बीच लोकल ट्रेनों ...