Followers

Tuesday, 18 August 2020

जिस आर्टिकल 19 की सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को याद दिलाई , वो क्या है?

सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में लगी हुई पाबंदियों पर सुनवाई की. इसमें आर्टिकल 19 का हवाला देते हुए इंटरनेट को मौलिक अधिकार बताया. धारा 144 के दुरूपयोग पर भी सवाल उठाए. (तस्वीर: बायीं ओर लोकसभा के शीत सत्र में बैठे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह: Mail Today/ दायीं ओर सांकेतिक तस्वीर: Getty Images)

पांच अगस्त, 2019 से कश्मीर में इंटरनेट सेवा बंद है. इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई. जस्टिस एनवी रमन्ना, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस बीआर गवई ने इस पर फैसला सुरक्षित रखा था. ये बात है 27 नवंबर 2019 की. अब 10 जनवरी, शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस जनहित याचिका पर फैसला सुनाया है.


क्या है संविधान के आर्टिकल 19 में?

ये आर्टिकल ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ यानी अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़ा हुआ है. इस आर्टिकल के पहले क्लॉज में लिखा है कि सभी नागरिकों को ये अधिकार प्राप्त हैं:

# बोलने और अपने आप को अभिव्यक्त करने की आज़ादी

# शान्ति से बिना हथियारों के कहीं भी इकट्ठा होने की आज़ादी

# एसोसिएशन/संगठन/यूनियन बनाने की आज़ादी

# भारत की सीमा में कहीं भी बेरोक-टोक घूम सकने की आज़ादी

# भारत की सीमा में कहीं भी बस सकने की आज़ादी

# किसी भी प्रोफेशन को अपनाने या नौकरी/व्यापार करने की आज़ादी

आर्टिकल में आगे भी कुछ शर्तें हैं, इन सभी अधिकारों के लिए. इनमें यही बताया गया है कि इन अधिकारों का इस्तेमाल इस तरह नहीं किया जाना चाहिए कि ये किसी क़ानून का उल्लंघन करें. ये अधिकार इस तरह इस्तेमाल किए जाने चाहिए कि वे भारत की संप्रभुता और एकता को खतरा न पहुंचाएं. आम जनजीवन को अस्त-व्यस्त न करें. भारत की सुरक्षा के साथ समझौता न करें. जितने भी अधिकार हैं, उनके इस्तेमाल के लिए कुछ नियम तय किए गए हैं संविधान में. उदाहरण के तौर पर कहीं भी बस सकने की आज़ादी के अधिकार का इस्तेमाल इस तरह न हो कि किसी जनजाति के अधिकारों का हनन हो.

इसी का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट ने ये कहा कि राज्य सरकार को इंटरनेट पर पाबंदी, धारा 144, यात्रा पर रोक से जुड़े सभी आदेशों को पब्लिश करना होगा. कोर्ट ने एक कमेटी बनाई है, जो राज्य सरकार के फैसलों का रिव्यू करेगी और सात दिन के बाद कोर्ट को रिपोर्ट करेगी.


इंटरनेट क्या एक बेसिक ह्यूमन राइट (जरूरी मानवाधिकार) है?

यूनाइटेड नेशंस (संयुक्त राष्ट्र) ने 2016 में ही इंटरनेट को ‘मानवाधिकार’ घोषित कर दिया था. एक नॉन-बाइंडिंग प्रस्ताव पास किया गया, जिसमें किसी भी तरह से इंटरनेट पर रोकथाम को गलत बताया गया है. 70 देशों इसके पक्ष में रहे. 17 देशों ने विरोध किया. उन 17 देशों में भारत शामिल है. यही नहीं, भारत के साथ बांग्लादेश, दक्षिण अफ्रीका, चीन, सऊदी अरब, क्यूबा, और वियतनाम जैसे देश भी इसके खिलाफ रहे.


भारत सरकार ने पिछले पांच साल में डिजिटल इंडिया पर जोर दिया है. इसके लिए ऑनलाइन ट्रांजेक्शन, नए पोर्टल इत्यादि सामने आए हैं. जैसे भीम-पे, फोन-पे. बिजली का बिल भरने से लेकर यूनिवर्सिटी का फॉर्म भरने तक- सब कुछ ऑनलाइन करने पर जोर है. और बिना इंटरनेट के आप ऑनलाइन नहीं हो सकते. यानी इंटरनेट एक लक्जरी नहीं है. बेसिक जरूरत की तरह है.

भारत में केरल पहला ऐसा राज्य है, जिसने इंटरनेट को बेसिक ह्यूमन राइट घोषित किया है. 2017 में इस घोषणा के बाद 1000 करोड़ की लागत से प्रोजेक्ट शुरू किया गया, जिससे तकरीबन 20 लाख गरीब परिवारों को मुफ्त में इंटरनेट सुविधा मिलने की बात कही गई, और बाकियों को सब्सिडी के साथ.

इंटरनेट इसलिए भी जरूरी बनता जा रहा है, क्योंकि कई सरकारी पेमेंट भी ऑनलाइन हो गई हैं. कई एक्जाम ऑनलाइन हो गए हैं. कई एडमिशन प्रक्रियाएं ऑनलाइन हो गई हैं. यही नहीं, पढ़ाई-लिखाई से जुड़े कई दूसरे काम ऑनलाइन होने लगे हैं. नौकरियां ऑनलाइन हो गई हैं. बिना इंटरनेट के लोग अपना काम नहीं कर पा रहे हैं.

ऐसे में अगर एक जगह के लोगों को इंटरनेट की सुविधा मिल रही हो और दूसरी जगह के लोगों को नहीं, तो ये उनके साथ भेदभाव और उनके अधिकारों का हनन ही कहा जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने अपने स्टेटमेंट में भी कहा है कि इंटरनेट बैन करना बेहद कड़ा कदम है.


मानवाधिकार और मौलिक अधिकार में क्या अंतर है?

मौलिक अधिकार हर देश के हिसाब से अलग होते हैं. लेकिन मानवाधिकार पूरी दुनिया में स्वीकृत ऐसे अधिकार होते हैं, जिनसे किसी भी इंसान को अलग नहीं किया जा सकता. भारत का सुप्रीम कोर्ट इसे मौलिक अधिकार मानता है, संविधान के आर्टिकल 19 के तहत.

लेकिन ज़रूरी नहीं है कि हर देश इसे मौलिक अधिकार का दर्जा दे ही. ये अंतर है. लेकिन जहां सुप्रीम कोर्ट इसे मौलिक अधिकार कह रहा है, वहीं भारत पूरी दुनिया का ऐसा पहला लोकतंत्र बन गया है, जहां 158 दिनों तक इंटरनेट बंद किया गया.

Indiaspend नाम की वेबसाइट के अनुसार, 2011 से 2017 तक तकरीबन 16,000 घंटों तक इंटरनेट शटडाउन रहा भारत में. इसमें देश का तकरीबन 213.36 अरब रुपयों का नुकसान हुआ. कश्मीर इससे सबसे ज्यादा प्रभावित इलाका है.



Sunday, 16 August 2020

ખોટી આવક રજૂ કરીને સરકારી સહાય મેળવવી.

આ મેસેજ વોટસ્એપ  થી તા.૧૬ ઓગસ્ટ ના દિવસે કોપી કરેલ છે.


સવાલ: ગુજરાત સરકાર ધ્વારા તાજેતર માં આવેલ RTE આરટીઇ નામની યોજના આવી છે, જેનો અર્થ છે કે બાળકોની સ્કૂલનું શિક્ષણ મફત છે, આખા વર્ષ માટેની ફી માફ કરવામાં આવે છે અને Rs. 3000 પણ આપવામાં આવે છે જેની પ્રાપ્તિ માટે સરકાર દ્વારા કેટલીક શરતો લાદવામાં આવી છે એક શરત એ છે કે આ બાળકની માતા-પિતા ની વાર્ષિક આવક જો ગ્રામીણ વિસ્તાર માં હોય તો એક લાખ વીસ હજાર અને જો શહેરી નાગરિક હોય તો દોઢ લાખથી વધુ નહીં પરંતુ તેનાથી ઓછી. આ યોજનાનો લાભ મેળવી શકાય છે  હવે મોટા ભાગના લોકો  જેમની સ્થિતિ સારી હોવા છતાં આ યોજના માં જણાવેલ વાર્ષિક આવક કરતા વધારે છે. તેઓ પણ આ યોજના નો લાભ લેવા માટે ફોર્મ ભરે છે અને ખોટું બોલીને તેમની આવકનો દાખલો આપે છે હવે સરકાર ધ્વારા જે ફોર્મ્સ Form સ્વીકારવાનો ક્વોટા છે તે મર્યાદિત હોય છે જેમાં ખરેખર જરૂરીયાત મંદ લોકો વંચિત રહે છે અને બિન જરૂરીયાત લોકો આમાં પ્રવેશ મેળવી લે છે તો આવી ખોટી આવક જાહેર કરી ને સરકારી સહાય મેળવવી માન્ય છે કે નહીં?  જવાબ કુરાન અને હદીસના રોશની માં આપવામાં આવે.

*જવાબ:*  અલ્લાહ દ્વારા, ખોટું બોલવું અને છેતરવું ઇસ્લામમાં એકદમ ગેરકાયદેસર અને હરામ છે કારણ કે હદીસમાં સખત વઈદો છે તેથી મુફ્તી સાહબો અને ઊલમાએ કિરામે લખ્યું છે કે આવી ખોટી અને ભ્રામક કાર્યવાહીના પરિણામે જે લાભ લો છો તે પણ હરામ છે તેનો ઉપયોગ કરવાની છૂટ નથી. તેમ કરવું તે તેમના માટે માન્ય રહેશે નહીં અને જો તેમને પૈસા મળ્યા છે તો તેઓએ તેને સરકાર ની જાહેર તિજોરીમાં પરત આપવી જોઈએ પરંતુ જો તે જાહેર તિજોરીમાં પરત ન આપી શકાય તો આ નાણાં સવાબ ના હેતુ વગર ગરીબોને દાનમાં આપવું પડશે.

ઉપરના પ્રશ્નના જવાબમાં દાર-ઉલ-ઇફ્તા દેવબંધે લખ્યું છે કે, સરકારમાં કોઈ પ્રકારની ઓછી આવક બતાવીને સરકાર દ્વારા મળતા લાભ મેળવવાની મંજૂરી નથી અને તે હલાલ નહીં થાય.

તેવી જ રીતે મુફ્તી જાફાર મિલિ રહેમાની સાહેબએ લખ્યું છે કે જે સહાય-નાણાં અથવા લોન મેળવવા માટે  સરકારે નક્કી કરેલી શરતો નો ભંગ કરી ખોટી રજૂઆત કરી અને સહાય કે લોન ખોટી રીતે મેળવવી શરિયહ મુજબ માન્ય નથી કારણ કે તેમાં જૂઠ અને વિશ્વાસઘાત છે.

[المسائل المهمۃ ۃ / ١٠]

શિષ્યવૃત્તિ વગેરેના નામે આપવામાં આવેલી યોજના ઓ  બધા માટે નહીં  માત્ર ગરીબો માટે જ  માન્ય છે, અને ઘણા લોકો શિષ્યવૃત્તિ આપતી સંસ્થા દ્વારા પણ નિર્ધારિત શરતોને પૂર્ણ કરતા નથી અને જે લોકોએ ખરેખર શિષ્યવૃત્તિ મેળવવા ના મુસ્તહીક ના હોય અને શિષ્યવૃત્તિ મેળવી હોય તો આ માન્ય નથી. અને તેમના માટે અનુમતિપાત્ર નથી, અને જો કોઈને આ ફતવાની ખબર ન હોવાને કારણે હકદાર ના હોવા છતાં શિષ્યવૃત્તિ મેળવી હોય તો સમસ્યાની જાણ થતાંની સાથે જ તે તેને શિષ્યવૃત્તિ બંધ કરી દેવી અને તેઓને મેળવેલ પૈસા સવાબ ના હેતુ વગર ગરીબોને આપી દેવા અને જો તે એક જ સમયમાં આખી રકમ ચૂકવી શકે તેમ ન હોય તો તેણે આ રીતે મેળવેલા તમામ પૈસા ધીમે ધીમે તેની સુવિધા મુજબ થોડી થોડી રકમ બનાવીને કોઈ સવાબ ના હેતુ વિના આપી દેવી.

[المسائل المهمۃ ۃ / ۱۰]

આ બધા ફતવોથી સ્પષ્ટ થાય છે કે આવા ખોટા અને ભ્રામક કાર્યો કરીને કોઈ સરકારી યોજના મેળવવી અનિચ્છનીય બિન જરૂરીયાત લોકો માટે માન્ય નથી કે તે પૈસા પણ હલાલ નથી અને મુસ્લિમનો મહિમા એ છે કે જે હરામ છે. તે હરામ ખોરાક નો ઉપયોગ કરતો નથી. તેથી પ્રામાણિકપણે ફોર્મ ભરો અથવા એવા પ્રામાણિક લોકો પાસે ફોર્મ ભરાવવા જાઓ જે કોઈપણ પ્રકારના વિશ્વાસઘાત ન કરે.

*મોલાના સૈફુલ્લાહ* *મજાદર-કાસમી દ્વારા લખાયેલ*
*પ્રતિ : મોલાના & માસ્ટર ઉમર ભોરણીયા – મજાદર*

www.bcimarket.com

*આ ને વધુ માં વધુ લોકો સુધી પહોંચાડવા વિનંતી.*

Friday, 14 August 2020

ईद के दिन कांग्रेस की सरकार में मुसलमान का नरसंहार हुआ था.

मुरादाबाद का मुस्लिम नरसंहार, 13 अगस्त 1980 : एक किशोर प्रत्यक्षदर्शी की दर्दनाक यादें.
ईद के दिन कांग्रेस की सरकार में मुसलमान का नरसंहार हुआ था.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मुरादाबाद शहर मेरी यादों में एक खास जगह रखता है। मैं अप्रैल 1980 में एक किशोर के रूप में इस शहर के लिए आया था और मुस्लिम मुसाफिरखाना (गेस्ट हाउस), में रुका था. मैं हिंदू कॉलेज में एक संयुक्त प्रवेश परीक्षा देने के लिए आया था.

मुरादाबाद की कुछ अच्छी यादों के बावजूद शहर की कुछ बहुत ही दर्दनाक यादें 1980 के दंगों की हैं। अगस्त 1980 में मैं दिल्ली में पुलिस परिसर में अपनी बहन के घर पर रह रहा था। उसका पति, अब एक सेवानिवृत्त पुलिस महानिरीक्षक, उस समय केंद्रीय पुलिस बल में असिस्टेंट कमांडेंट (अधीक्षक पुलिस) के रूप में सेवारत था।

मैं उसे इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में प्रवेश के लिए एनआईटी कालीकट, केरल, जाने से पहले अलविदा कहने गया था क्योंकि मैं दो सप्ताह में कालीकट जा रहा था.

13 अगस्त, 1980 ईद का दिन था। मैं और मेरे भाई-भाभी देर शाम दोस्तों के साथ आराम से बैठे थे जब उनका सूबेदार मेजर एक मोटर साइकिल पर आया और उनके कमांडिंग अफ़सर का एक लिखित आदेश उन्हें सौपा जिसमें उन्हें अपनी यूनिटों को तैयार करने और तुरंत मुरादाबाद के लिए निकलने को कहा गया था.

मेरे बहनोई ने सूबेदार मेजर को थोड़ी देर इंतजार करने के लिए कहा, अंदर गये, अपनी वर्दी पहनी और उसी समय उसके साथ बैरकों की तरफ़ निकल गये मुरादाबाद जाने के लिए अपने सैनिकों को आदेश देने.

उन्होंने हमें बताया की मुरादाबाद में क्या हुआ था और मुझे और मेरी बड़ी बहन को उनके साथ ही चलने के लिए तैयार करने को कहा। दिल्ली में रुके रहने का कोई मतलब नहीं था.

दो से तीन घंटे के भीतर, लगभग 500 सैनिक और अफ़सर अपने सामान हरे पुलिस ट्रकों और जीपों में लोड कर साथ जाने के लिए तैयार थे।

मैं, मेरी बहन और उनका डेढ़ वर्षीय बेटा भी उनके साथ जीप में सवार हुए और 11-12 बजे हमने दिल्ली छोड़ दिया और लगभग 3-4 बजे सुबह मुरादाबाद पहुंचे जहाँ प्रदर्शनी ग्राउंड पर टेंट पिचिंग शुरू हो गयी. देसी बंदूकों और बमों की गरज लगता सुनाई दे रही थी. ये सब बहुत डरावना था.

दल के कुछ सैनिकों को तुरंत सिविल पुलिस के सक्रिय मार्गदर्शन के साथ स्ट्रॅटेजिक स्थानों पर तैनात कर दिया गया और सुबह 9.00 बजे तक सभी सैनिकों को तैनात कर दिया गया था।

हवा में दंगाइयों द्वारा चलाई देसी बंदूकों और हर हर महादेव और अल्लाहो अकबर के नारों का शोर गूँज रहा था. पुलिस जवाबी गोलियाँ चला रही थी लेकिन केवल मुसलमानों पर. मुसलमान बहुत गुस्से में थे क्योंकि जानबूझ कर उन्हें उकसाने के लिए सूअरों को ईद की नमाज पढ़ रहे लोगों की पंक्तियों के बीच से गुज़ारा गया और पुलिस ने उन पर अंधाधुंध और अकारण गोलीबारी की.

केंद्रीय बलों के आगमन से कुछ ख़ास असर नहीं पड़ा हालाँकि वे तटस्थ थे और बस निष्पक्ष ढंग से दंगों को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे थे। उनके पास सूचना का अभाव था और स्थानीय पुलिस के सहयोग के बिना वो असहाय थे।

पूरी रात, यहां तक की ​​कर्फ्यू के दौरान भी, उपद्रवी मुसलमानों, हिंदुओं और पुलिस के बीच दंगे और घमासान युद्ध जारी रहा.

अगले दिन 15 अगस्त थी और प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने राष्ट्र को संबोधित किया और अपने पहले वाक्य में ही मुरादाबाद में हो रहे खूनखराबे का उल्लेख किया.

दिन के अंत तक पुलिस कुछ हद तक स्थिति को नियंत्रण में लाने में कामयाब रही, लेकिन छिटपुट हिंसा जारी रही। सैकड़ों मुसलमानों को दंगा करने के आरोप में कुख्यात प्रांतीय सशस्त्र बल (पीएसी) द्वारा उठाया गया और बसों में भरके पीएसी परिसर में लाया गया, जो की केंद्रीय बलों के शिविर के ठीक सामने था, और निर्दयता से पीटा गया.

जब बंदी बसों से उतर रहे थे तभी उनकी पिटाई शुरू हो जाती थी, लाठियों से उनके सिर, कंधे, पैर, पेट और छाती पर वार हो रहे थे. उनमें से ज्यादातर बसों से कुछ ही मीटर की दूरी तक चलने के बाद खून में भीग रहे थे।
मैने एक बूढ़े मुस्लिम आदमी की सफेद दाढ़ी की उसके सर और चेहरे पर लगी चोटों से बहते खून से लाल होते देखा. लेकिन पीएसी के जवान अभी भी संतुष्ट नहीं थे। उनमें से एक ने पूरी ताकत के साथ उस बूढ़े की खून में भीगी दाढ़ी को खींचा. असहनीय दर्द के चलते बूढ़े आदमी ने चेतना खो दी और संभवतः बाद में मारा गया.

कांटेदार बाड़, जो पीएसी और केंद्रीय बलों के शिविरों को अलग करती थी, के दूसरी तरफ़ खड़े हुए कुछ ही मीटर की दूरी से मैने ये सब देखा और मैं बहुत डर गया. इस घटना ने मेरे किशोर मस्तिष्क और चेतना पर जीवन-व्यापी प्रभाव छोड़ा।

यह बाद में मुरादाबाद के लोगों ने बताया की *इस दंगे की योजना श्रीमती गांधी की कांग्रेस ने ही बनाई थी क्योंकि वो अपनी जनवरी 1980 की चुनावी जीत के बाद हिंदू वोट बैंक का निर्माण करना चाहती थीं. उनके लिए मुसलमान, जिन्होंने 1977 में कांग्रेस का साथ छोड़ दिया था, अब भरोसे के लायक नहीं थे. गुजरात में 2002 नरसंहार के दौरान नरेंद्र मोदी की तरह, उन्होने भी मुसलमानों को "सबक सिखाने" की कोशिश थी.*

दंगे साल के अंत तक जारी रहे और अनाधिकारिक रूप से 2500 से अधिक लोगों की जानें गयीं. हालांकि आधिकारिक तौर पर केवल 400 को मृत के रूप में सूचीबद्ध किया गया। यह 1919 के प्रसिद्ध जलियाँवाला बाग नरसंहार के बराबर है।

मुरादाबाद के मुस्लिम नरसंहार और 1980 के दंगों की दर्दनाक यादें सिर्फ़ उनको झेलने वालों के लिए ही नहीं बल्कि भारत के पूरे मुस्लिम समुदाय के लिए हैं. छत्तीस साल बाद भी उन परेशान करने वाले दृश्यों और दर्दनाक यादों को मैं अपने बुरे सपनों में देखता हूँ. मैं इन अनुभवों को पहली बार आप सबसे बाँट रहा हूँ जिन्हें मैने अपने परिवार के अलावा किसी से भी सांझा नहीं किया था, इस उम्मीद के साथ की मुरादाबाद, गुजरात और मुजफ्फरनगर फिर कभी ना घटें.

- तारिक़ फ़ारूक़ी

Thursday, 13 August 2020

राम मंदिर ट्रस्ट के चीफ़ को हुआ कोरोना, भूमि पूजन पर पीएम के साथ साझा किया था मंच

महंत नृत्य गोपाल दास कृष्ण जन्माष्ठमी समारोह के लिए कृष्ण जन्मस्थान क्षेत्र मथुरा में मौजूद थे, तभी उन्हें सांस लेने में दिक्कत हुई। इसके बाद हुई जांच में वे कोरोना संक्रमित पाए गए। महंत नृत्य गोपाल दास कृष्ण जन्माष्टमी समारोह के लिए यहां आए हुए थे।

इस दौरान अचानक उनकी तबीयत बिगड़ी और उन्हें सांस लेने में परेशानी होने लगी। इसके बाद एम्बुलेंस पहुंची। कोरोना के लक्षण नजर आने के बाद उनका टेस्ट किया और उन्हें कोरोना पॉजिटिव पाया गया।

महंत नृत्य गोपाल दास के एक शिष्य ने कहा कि महाराज लंबी दूरी तय कर यहां पहुंचे थे। सफर की थकान और मौसम में बदलाव की वजह से उनकी तबीयत बिगड़ी।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महंत नृत्य गोपाल दास के हालचाल पूछे। मुख्यमंत्री ने मथुरा के कलेक्टर और मेदांता के डॉ. त्रेहान से बात कर महंत नृत्य गोपाल दास का पूरा ध्यान रखने को कहा।

महंत नृत्य गोपाल दास 5 अगस्त को अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन समारोह में शामिल हुए थे। वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ इस समारोह में मंच पर मौजूद थे।

इनके अलावा उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और RSS प्रमुख मोहन भागवत भी मंच पर मौजूद थे।


हिंदी अनुवाद 

सीएम ने COVID19 पॉजिटिव का परीक्षण करने वाले महंत नित्या गोपालदास (फाइल तस्वीर में) पर स्वास्थ्य स्थिति का विवरण लिया है। उन्होंने डीएम मथुरा और मेदांता के डॉ। त्रेहन से बात की और अस्पताल में उनके लिए तत्काल चिकित्सा ध्यान देने का अनुरोध किया: मुख्यमंत्री कार्यालय


એક સંબંધીનું માત્ર 9 દિવસનું 1,75,000 કરતા વધુ બિલ આવ્યું. મેં એમને પૂછ્યું કે કેમ આટલું મોટું બિલ ?

કોવિડ-19ની સારવાર માટે ખાનગી હોસ્પિટલમાં દાખલ થયેલા એક સંબંધીનું માત્ર 9 દિવસનું 1,75,000 કરતા વધુ બિલ આવ્યું. મેં એમને પૂછ્યું કે કેમ આટલું મોટું બિલ ? તમારે વેન્ટિલેટરની જરૂર પડી હતી ? તમારે આઇસીયુંમાં રહેવું પડેલું ? 

મને કહે ના એવું કશું નહોતું. મને એવી કોઈ ખાસ તકલીફ નહોતી. હોસ્પિટલ તરફથી માત્ર સામાન્ય દવા, ઇન્જેક્શન અને ચા-નાસ્તો તથા ભોજન મળતું હતું. મને થયું આટલામાં કાંઈ રોજના 20000 જેવો ખર્ચો થોડો થાય ? મેં કહ્યું તમારું બિલ મોકલો. એમણે મને બિલ મોકલ્યું. 

બિલ જોઈને હું ચોંકી ગયો. એક દિવસમાં ડોક્ટરની 2 વિઝિટ બતાવી હતી અને દરેક વિઝિટનો ચાર્જ 2000 હતો એટલે કે રોજની વિઝટના જ 4000. તેમજ રોજનો પીપીઈ કીટનો ચાર્જ 3000 હતો. 4000ના વિઝિટ ચાર્જ અને 3000ના પીપીઈ કીટ ચાર્જ સામે પણ વાંધો ન હોય કારણકે જે ડોક્ટર પોતાનો જીવ જોખમમાં મૂકીને સારવાર કરે એને ઊંચો ચાર્જ લેવાનો પૂરો અધિકાર છે પણ બિલ જોતા સ્પષ્ટ દેખાયું કે દર્દીઓ સાથે છેતરપીંડી કરવામાં આવે છે.

પાકી ખાતરી કરવા માટે એ જ હોસ્પિટલના બીજા દર્દીઓના બિલ પણ મંગાવ્યા અને બધા જ દર્દીઓના બિલમાં આ ચાર્જ હતા. હવે જરા વિચારો એક હોસ્પિટલમાં 30 દર્દી દાખલ હોય તો બધા દર્દીઓ માટે જેટલી વાર વિઝીટમાં આવે એટલી વાર જુદી-જુદી  પીપીઈ કિટ વપરાતી હશે ? એક કિટ પહેરી એક દર્દીને તપાસવાનો પછી કીટ બદલી નાંખવાની અને બીજી કીટ પહેરી બીજા દર્દીને તપાસવા જવાનો. આવું શક્ય જ નથી કારણકે પીપીઈ કીટ બદલવાનો સમય ગણો તો આખો દિવસ પીપીઈ કીટ બદલવામાં જ જાય.

વાસ્તવમાં એક કીટ પહેરીને જ બધા દર્દીની તપાસ થાય. મતલબ કે ખર્ચો એક કીટનો કરવાનો પણ વસુલ બધા જ દર્દીઓ પાસેથી કરવાનો. ખર્ચો એક કીટનો થાય અને આવક 30 કીટની. ચાલે છે ને ગઝબનો ખેલ.

કોરોનાના આ કપરા કાળમાં ડોક્ટરો ભગવાન બનીને લોકોની સેવા કરે છે એ વાત સૌ સ્વીકારે જ છે અને આવા કોરોના યોદ્ધાઓને વંદન. પણ સાથે સાથે આ રીતે મજબૂર લોકોને લૂંટવાનું કામ કરતા ડોકટરોને એનો અંતરાત્મા નહીં ડંખતો હોય ? સરકારશ્રી દ્વારા સિવિલમાં મફત સારવાર મળે છે એટલે જેને પોસાતું હોય એ જ ખાનગી હોસ્પિટલમાં આવે એવું ન હોય કેટલાક સામાન્ય લોકોની પણ મજબૂરી હોય જેનો ગેરલાભ ઉઠાવવાનો ન હોય. 

વૈશ્વિક મહામારી સામેની લડાઈમાં સરકાર સાથે ખભે ખભો મિલાવીને સહકાર આપતી ખાનગી હોસ્પિટલોને સલામ છે પણ જ્યાં આવું થતું હોય એમણે પોતાના અંતરાત્માને પૂછવું જોઈએ કે આ યોગ્ય છે ? મારો કાનુડો મારા આવા કામથી રાજી થશે ? 

જન્માષ્ટમી ચિંતન.

Shailesh Sagapariya 
Rajkot

दुनिया के मुसलमान कितने फिरके में बंटे हैं? और उनकी मान्यताएं (विचारधारा) क्या हे?


 सलाहुद्दीन ज़ैन (बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए)
 
चरमपंथ और के जुड़ते रिश्तों से परेशान भारत में इस्लाम की बरेलवी विचारधारा के सूफियों और नुमाइंदों ने एक कांफ्रेंस कर कहा कि वो दहशतगर्दी के खिलाफ हैं। सिर्फ इतना ही नहीं बरेलवी समुदाय ने इसके लिए वहाबी विचारधारा को जिम्मेदार ठहराया।
 
इन आरोप-प्रत्यारोप के बीच सभी की दिलचस्पी इस बात में बढ़ गई है कि आखिर ये वहाबी विचारधारा क्या है। लोग जानना चाहते हैं कि मुस्लिम समाज कितने पंथों में बंटा है और वे किस तरह एक दूसरे से अलग हैं?
इस्लाम के सभी अनुयायी खुद को कहते हैं लेकिन इस्लामिक कानून (फ़िक़ह) और इस्लामिक इतिहास की अपनी-अपनी समझ के आधार पर मुसलमान कई पंथों में बंटे हैं। बड़े पैमाने पर या संप्रदाय के आधार पर देखा जाए तो मुसलमानों को दो हिस्सों-सुन्नी और शिया में बांटा जा सकता है। हालांकि शिया और सुन्नी भी कई फ़िरकों या पंथों में बंटे हुए हैं।
 
बात अगर शिया-सुन्नी की करें तो दोनों ही इस बात पर सहमत हैं कि अल्लाह एक है, मोहम्मद साहब उनके दूत हैं और कुरान आसमानी किताब यानी अल्लाह की भेजी हुई किताब है। लेकिन दोनों समुदाय में विश्वासों और पैगम्बर मोहम्मद की मौत के बाद उनके उत्तराधिकारी के मुद्दे पर गंभीर मतभेद हैं। इन दोनों के इस्लामिक कानून भी अलग-अलग हैं।
 
सुन्नी : सुन्नी या सुन्नत का मतलब उस तौर तरीके को अपनाना है जिस पर पैगम्बर मोहम्मद (570-632 ईसवी) ने खुद अमल किया हो और इसी हिसाब से वे सुन्नी कहलाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, दुनिया के लगभग 80-85 प्रतिशत मुसलमान सुन्नी हैं जबकि 15 से 20 प्रतिशत के बीच शिया हैं।
 
सुन्नी मुसलमानों का मानना है कि पैगम्बर मोहम्मद के बाद उनके ससुर हजरत अबु-बकर (632-634 ईसवी) मुसलमानों के नए नेता बने, जिन्हें खलीफा कहा गया। इस तरह से अबु-बकर के बाद हज़रत उमर (634-644 ईसवी), हज़रत उस्मान (644-656 ईसवी) और हज़रत अली (656-661 ईसवी) मुसलमानों के नेता बने।
 
इन चारों को ख़ुलफ़ा-ए-राशिदीन यानी सही दिशा में चलने वाला कहा जाता है। इसके बाद से जो लोग आए, वो राजनीतिक रूप से तो मुसलमानों के नेता कहलाए लेकिन धार्मिक एतबार से उनकी अहमियत कोई ख़ास नहीं थी।
 
जहां तक इस्लामिक क़ानून की व्याख्या का सवाल है सुन्नी मुसलमान मुख्य रूप से चार समूह में बंटे हैं। हालांकि पांचवां समूह भी है जो इन चारों से ख़ुद को अलग कहता है। इन पांचों के विश्वास और आस्था में बहुत अंतर नहीं है, लेकिन इनका मानना है कि उनके इमाम या धार्मिक नेता ने इस्लाम की सही व्याख्या की है।
दरअसल सुन्नी इस्लाम में इस्लामी क़ानून के चार प्रमुख स्कूल हैं। आठवीं और नवीं सदी में लगभग 150 साल के अंदर चार प्रमुख धार्मिक नेता पैदा हुए। उन्होंने इस्लामिक क़ानून की व्याख्या की और फिर आगे चलकर उनके मानने वाले उस फ़िरक़े के समर्थक बन गए।
 
ये चार इमाम थे- इमाम अबू हनीफ़ा (699-767 ईसवी), इमाम शाफ़ई (767-820 ईसवी), इमाम हंबल (780-855 ईसवी) और इमाम मालिक (711-795 ईसवी)।
 
हनफ़ी : इमाम अबू हनीफ़ा के मानने वाले हनफ़ी कहलाते हैं। इस फ़िक़ह या इस्लामिक क़ानून के मानने वाले मुसलमान भी दो गुटों में बंटे हुए हैं। एक देवबंदी हैं तो दूसरे अपने आप को बरेलवी कहते हैं।
 
देवबंदी और बरेलवी : दोनों ही नाम उत्तर प्रदेश के दो ज़िलों, देवबंद और बरेली के नाम पर है। दरअसल 20वीं सदी के शुरू में दो धार्मिक नेता मौलाना अशरफ़ अली थानवी (1863-1943) और अहमद रज़ा ख़ां बरेलवी (1856-1921) ने इस्लामिक क़ानून की अलग-अलग व्याख्या की।
 
अशरफ़ अली थानवी का संबंध दारुल-उलूम देवबंद मदरसा से था, जबकि आला हज़रत अहमद रज़ा ख़ां बरेलवी का संबंध बरेली से था। मौलाना अब्दुल रशीद गंगोही और मौलाना क़ासिम ननोतवी ने 1866 में देवबंद मदरसे की बुनियाद रखी थी। देवबंदी विचारधारा को परवान चढ़ाने में मौलाना अब्दुल रशीद गंगोही, मौलाना क़ासिम ननोतवी और मौलाना अशरफ़ अली थानवी की अहम भूमिका रही है।


भारतीय उपमहाद्वीप यानी भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़गानिस्तान में रहने वाले अधिकांश मुसलमानों का संबंध इन्हीं दो पंथों से है।
 
देवबंदी और बरेलवी विचारधारा के मानने वालों का दावा है कि क़ुरान और हदीस ही उनकी शरियत का मूल स्रोत है लेकिन इस पर अमल करने के लिए इमाम का अनुसरण करना ज़रूरी है। इसलिए शरीयत के तमाम क़ानून इमाम अबू हनीफ़ा के फ़िक़ह के अनुसार हैं।
 
वहीं बरेलवी विचारधारा के लोग आला हज़रत रज़ा ख़ान बरेलवी के बताए हुए तरीक़े को ज़्यादा सही मानते हैं। बरेली में आला हज़रत रज़ा ख़ान की मज़ार है जो बरेलवी विचारधारा के मानने वालों के लिए एक बड़ा केंद्र है। दोनों में कुछ ज़्यादा फ़र्क़ नहीं लेकिन कुछ चीज़ों में मतभेद हैं। जैसे बरेलवी इस बात को मानते हैं कि पैग़म्बर मोहम्मद सब कुछ जानते हैं, जो दिखता है वो भी और जो नहीं दिखता है वो भी। वह हर जगह मौजूद हैं और सब कुछ देख रहे हैं।
 
वहीं देवबंदी इसमें विश्वास नहीं रखते। देवबंदी अल्लाह के बाद नबी को दूसरे स्थान पर रखते हैं लेकिन उन्हें इंसान मानते हैं। बरेलवी सूफ़ी इस्लाम के अनुयायी हैं और उनके यहां सूफ़ी मज़ारों को काफ़ी महत्व प्राप्त है जबकि देवबंदियों के पास इन मज़ारों की बहुत अहमियत नहीं है, बल्कि वो इसका विरोध करते हैं।
 
मालिकी : इमाम अबू हनीफ़ा के बाद सुन्नियों के दूसरे इमाम, इमाम मालिक हैं जिनके मानने वाले एशिया में कम हैं। उनकी एक महत्वपूर्ण किताब 'इमाम मोत्ता' के नाम से प्रसिद्ध है। उनके अनुयायी उनके बताए नियमों को ही मानते हैं। ये समुदाय आमतौर पर मध्य पूर्व एशिया और उत्तरी अफ्रीका में पाए जाते हैं।


शाफ़ई : शाफ़ई इमाम मालिक के शिष्य हैं और सुन्नियों के तीसरे प्रमुख इमाम हैं। मुसलमानों का एक बड़ा तबक़ा उनके बताए रास्तों पर अमल करता है, जो ज्यादातर मध्य पूर्व एशिया और अफ्रीकी देशों में रहता है। आस्था के मामले में यह दूसरों से बहुत अलग नहीं है लेकिन इस्लामी तौर-तरीक़ों के आधार पर यह हनफ़ी फ़िक़ह से अलग है। उनके अनुयायी भी इस बात में विश्वास रखते हैं कि इमाम का अनुसरण करना ज़रूरी है।
 
हंबली : सऊदी अरब, क़तर, कुवैत, मध्य पूर्व और कई अफ्रीकी देशों में भी मुसलमान इमाम हंबल के फ़िक़ह पर ज्यादा अमल करते हैं और वे अपने आपको हंबली कहते हैं।
 
सऊदी अरब की सरकारी शरीयत इमाम हंबल के धार्मिक क़ानूनों पर आधारित है। उनके अनुयायियों का कहना है कि उनका बताया हुआ तरीक़ा हदीसों के अधिक करीब है। इन चारों इमामों को मानने वाले मुसलमानों का ये मानना है कि शरीयत का पालन करने के लिए अपने अपने इमाम का अनुसरण करना ज़रूरी है।
 
सल्फ़ी, वहाबी और अहले हदीस : सुन्नियों में एक समूह ऐसा भी है जो किसी एक ख़ास इमाम के अनुसरण की बात नहीं मानता और उसका कहना है कि शरीयत को समझने और उसका सही ढंग से पालन करने के लिए सीधे क़ुरान और हदीस (पैग़म्बर मोहम्मद के कहे हुए शब्द) का अध्ययन करना चाहिए। इसी समुदाय को सल्फ़ी और अहले-हदीस और वहाबी आदि के नाम से जाना जाता है।
 
यह संप्रदाय चारों इमामों के ज्ञान, उनके शोध अध्ययन और उनके साहित्य की क़द्र करता है। लेकिन उसका कहना है कि इन इमामों में से किसी एक का अनुसरण अनिवार्य नहीं है। उनकी जो बातें क़ुरान और हदीस के अनुसार हैं उस पर अमल तो सही है लेकिन किसी भी विवादास्पद चीज़ में अंतिम फ़ैसला क़ुरान और हदीस का मानना चाहिए।


सल्फ़ी समूह का कहना है कि वह ऐसे इस्लाम का प्रचार चाहता है जो पैग़म्बर मोहम्मद के समय में था। इस सोच को परवान चढ़ाने का सेहरा इब्ने तैमिया और मोहम्मद बिन अब्दुल वहाब हुआ और उनके नाम पर ही यह समुदाय वहाबी नाम से भी जाना जाता है।

मध्य पूर्व के अधिकांश इस्लामिक विद्वान उनकी विचारधारा से ज़्यादा प्रभावित हैं। इस समूह के बारे में एक बात बड़ी मशहूर है कि यह सांप्रदायिक तौर पर बेहद कट्टरपंथी और धार्मिक मामलों में बहुत कट्टर है। सऊदी अरब के मौजूदा शासक इसी विचारधारा को मानते हैं। अल-क़ायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन भी सल्फ़ी विचाराधारा के समर्थक थे।
 
सुन्नी बोहरा : गुजरात, महाराष्ट्र और पाकिस्तान के सिंध प्रांत में मुसलमानों के कारोबारी समुदाय के एक समूह को बोहरा के नाम से जाना जाता है। बोहरा, शिया और सुन्नी दोनों होते हैं। सुन्नी बोहरा हनफ़ी इस्लामिक क़ानून पर अमल करते हैं जबकि सांस्कृतिक तौर पर दाऊदी बोहरा यानी शिया समुदाय के क़रीब हैं।


अहमदिया : हनफ़ी इस्लामिक क़ानून का पालन करने वाले मुसलमानों का एक समुदाय अपने आप को अहमदिया कहता है। इस समुदाय की स्थापना भारतीय पंजाब के क़ादियान में मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ने की थी। इस पंथ के अनुयायियों का मानना है कि मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ख़ुद नबी का ही एक अवतार थे।
 
उनके मुताबिक़ वे खुद कोई नई शरीयत नहीं लाए बल्कि पैग़म्बर मोहम्मद की शरीयत का ही पालन कर रहे हैं लेकिन वे नबी का दर्जा रखते हैं। मुसलमानों के लगभग सभी संप्रदाय इस बात पर सहमत हैं कि मोहम्मद साहब के बाद अल्लाह की तरफ़ से दुनिया में भेजे गए दूतों का सिलसिला ख़त्म हो गया है। लेकिन अहमदियों का मानना है कि मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ऐसे धर्म सुधारक थे जो नबी का दर्जा रखते हैं।
 
बस इसी बात पर मतभेद इतने गंभीर हैं कि मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग अहमदियों को मुसलमान ही नहीं मानता। हालांकि भारत, पाकिस्तान और ब्रिटेन में अहमदियों की अच्छी ख़ासी संख्या है। पाकिस्तान में अहमदियों पर हिंसक मामले ज़्यादा देखने को मिलते हैं। पाकिस्तान में तो आधिकारिक तौर पर अहमदियों को इस्लाम से ख़ारिज कर दिया गया है।
 
शिया : शिया मुसलमानों की धार्मिक आस्था और इस्लामिक क़ानून सुन्नियों से काफ़ी अलग है। वह पैग़म्बर मोहम्मद के बाद ख़लीफ़ा नहीं बल्कि इमाम नियुक्त किए जाने के समर्थक हैं। उनका मानना है कि पैग़म्बर मोहम्मद की मौत के बाद उनके असल उत्तारधिकारी उनके दामाद हज़रत अली थे। उनके अनुसार पैग़म्बर मोहम्मद भी अली को ही अपना वारिस घोषित कर चुके थे लेकिन धोखे से उनकी जगह हज़रत अबू-बकर को नेता चुन लिया गया।
 
शिया मुसलमान मोहम्मद के बाद बने पहले तीन ख़लीफ़ा को अपना नेता नहीं मानते बल्कि उन्हें ग़ासिब कहते हैं। ग़ासिब अरबी का शब्द है जिसका अर्थ हड़पने वाला होता है।

उनका विश्वास है कि जिस तरह अल्लाह ने मोहम्मद साहब को अपना पैग़म्बर बनाकर भेजा था उसी तरह से उनके दामाद अली को भी अल्लाह ने ही इमाम या नबी नियुक्त किया था और फिर इस तरह से उन्हीं की संतानों से इमाम होते रहे। आगे चलकर शिया भी कई हिस्सों में बंट गए।
 
इस्ना अशरी : सुन्नियों की तरह शियाओं में भी कई संप्रदाय हैं लेकिन सबसे बड़ा समूह इस्ना अशरी यानी बारह इमामों को मानने वाला समूह है। दुनिया के लगभग 75 प्रतिशत शिया इसी समूह से संबंध रखते हैं। इस्ना अशरी समुदाय का कलमा सुन्नियों के कलमे से भी अलग है।
 
उनके पहले इमाम हज़रत अली हैं और अंतिम यानी बारहवें इमाम ज़माना यानी इमाम महदी हैं। वो अल्लाह, क़ुरान और हदीस को मानते हैं, लेकिन केवल उन्हीं हदीसों को सही मानते हैं जो उनके इमामों के माध्यम से आए हैं।
 
क़ुरान के बाद अली के उपदेश पर आधारित किताब नहजुल बलाग़ा और अलकाफ़ि भी उनकी महत्वपूर्ण धार्मिक पुस्तक हैं। यह संप्रदाय इस्लामिक धार्मिक क़ानून के मुताबिक़ जाफ़रिया में विश्वास रखता है। ईरान, इराक़, भारत और पाकिस्तान सहित दुनिया के अधिकांश देशों में इस्ना अशरी शिया समुदाय का दबदबा है।
 
ज़ैदिया : शियाओं का दूसरा बड़ा सांप्रदायिक समूह ज़ैदिया है, जो बारह के बजाय केवल पांच इमामों में ही विश्वास रखता है। इसके चार पहले इमाम तो इस्ना अशरी शियों के ही हैं लेकिन पांचवें और अंतिम इमाम हुसैन (हज़रत अली के बेटे) के पोते ज़ैद बिन अली हैं जिसकी वजह से वह ज़ैदिया कहलाते हैं। उनके इस्लामिक़ क़ानून ज़ैद बिन अली की एक किताब 'मजमऊल फ़िक़ह' से लिए गए हैं। मध्य पूर्व के यमन में रहने वाले हौसी ज़ैदिया समुदाय के मुसलमान हैं।
 
इस्माइली शिया : शियों का यह समुदाय केवल सात इमामों को मानता है और उनके अंतिम इमाम मोहम्मद बिन इस्माइल हैं और इसी वजह से उन्हें इस्माइली कहा जाता है। इस्ना अशरी शियों से इनका विवाद इस बात पर हुआ कि इमाम जाफ़र सादिक़ के बाद उनके बड़े बेटे इस्माईल बिन जाफ़र इमाम होंगे या फिर दूसरे बेटे।
 
इस्ना अशरी समूह ने उनके दूसरे बेटे मूसा काज़िम को इमाम माना और यहीं से दो समूह बन गए। इस तरह इस्माइलियों ने अपना सातवां इमाम इस्माइल बिन जाफ़र को माना। उनकी फ़िक़ह और कुछ मान्यताएं भी इस्ना अशरी शियों से कुछ अलग है।
 
दाऊदी बोहरा : बोहरा का एक समूह, जो दाऊदी बोहरा कहलाता है, इस्माइली शिया फ़िक़ह को मानता है और इसी विश्वास पर क़ायम है। अंतर यह है कि दाऊदी बोहरा 21 इमामों को मानते हैं।


उनके अंतिम इमाम तैयब अबुल क़ासिम थे जिसके बाद आध्यात्मिक गुरुओं की परंपरा है। इन्हें दाई कहा जाता है और इस तुलना से 52वें दाई सैय्यदना बुरहानुद्दीन रब्बानी थे। 2014 में रब्बानी के निधन के बाद से उनके दो बेटों में उत्तराधिकार का झगड़ा हो गया और अब मामला अदालत में है।
 
बोहरा भारत के पश्चिमी क्षेत्र ख़ासकर गुजरात और महाराष्ट्र में पाए जाते हैं जबकि पाकिस्तान और यमन में भी ये मौजूद हैं। यह एक सफल व्यापारी समुदाय है जिसका एक धड़ा सुन्नी भी है।
 
खोजा : खोजा गुजरात का एक व्यापारी समुदाय है जिसने कुछ सदी पहले इस्लाम स्वीकार किया था। इस समुदाय के लोग शिया और सुन्नी दोनों इस्लाम मानते हैं। ज़्यादातर खोजा इस्माइली शिया के धार्मिक क़ानून का पालन करते हैं लेकिन एक बड़ी संख्या में खोजा इस्ना अशरी शियाओं की भी है। लेकिन कुछ खोजे सुन्नी इस्लाम को भी मानते हैं। इस समुदाय का बड़ा वर्ग गुजरात और महाराष्ट्र में पाया जाता है। पूर्वी अफ्रीकी देशों में भी ये बसे हुए हैं।
 
नुसैरी : शियों का यह संप्रदाय सीरिया और मध्य पूर्व के विभिन्न क्षेत्रों में पाया जाता है। इसे अलावी के नाम से भी जाना जाता है। सीरिया में इसे मानने वाले ज़्यादातर शिया हैं और देश के राष्ट्रपति बशर अल असद का संबंध इसी समुदाय से है। इस समुदाय का मानना है कि अली वास्तव में भगवान के अवतार के रूप में दुनिया में आए थे। उनकी फ़िक़ह इस्ना अशरी में है लेकिन विश्वासों में मतभेद है। नुसैरी पुर्नजन्म में भी विश्वास रखते हैं और कुछ ईसाइयों की रस्में भी उनके धर्म का हिस्सा हैं। इन सबके अलावा भी इस्लाम में कई छोटे छोटे पंथ पाए जाते हैं।

Copy By BBC NEW 

Wednesday, 12 August 2020

आप अपने छोटे बच्चों मे डर और खौफ पैदा मत करो.

मन मे  बैठा दर बच्चों  को जिवने मे  खौफ़ मे रखता हे.

मिलिए भारतीय मुस्लिम वैज्ञानिक इफ्फत अमीन से, गोरखपुर की मुस्लिम महिला वैज्ञानिक ने बनाया सबसे चमकीला पदार्थ, मुख्यमंत्री योगी ने दी बधाई.

भारतीय वैज्ञानिक ने दुनिया का सबसे चमकीला पदार्थ बनाने में सफलता हासील की है। यह खोज इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है कि इसकी मदद से दो वॉट की एलईडी में 20 वॉट तक कि रोशनी मिल सकती है।

उत्तरप्रदेश के गोरखपुर शहर के दीनदयाल उपाध्यक्ष विश्वविद्यालय में रसायन शास्त्र की शोधार्थी इफ्फ्ट अमीन ने पांच साल में ऐसा शोध पूरा किया है। जिसके कॉप्लेक्स की चमक क्षमता 91.9 फीसदी है। अब तक बने चमकीले कोप्लेंक्सकी क्षमता 80 फीसदी तक है।
गोरखपुर की इस बेटी ने प्रदेश और देश का नाम रोशन किया है। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने इस कामयाबी पर ट्वीट करके बधाई देते हुए लिखा है कि बहुत बधाई इफ्फत आमीन। आपने गोरखपुर और उत्तरप्रदेश का नाम रोशन करने के साथ ही देश के सभी युवाओं के लिए एक प्रेरणा बन गई हो।

आज के इस दौर में लड़कियों ने हर क्षेत्र में बाजी मारी है और अपना नाम, पिता, राज्य का नाम रोशन कर रही है। इफ्फत ने सनस्लोषित कोप्लेंक्स का आईआईटी मद्रास और चेन्नई, सीडी आरआई लखनऊ और जापान के क्यूशू इंस्टिट्यूट की लैब में परीक्षण कराया गया है। वहां पर इनकी चमक क्षमता 91.9 तक पाई गई है।

लखनऊ, 30 जून | उत्तर प्रदेश के गोरखपुर की रहने वाली इफ्फ़त अमीन को ख़ूब बधाईयाँ मिल रही हैं. उन्होंने अपने रिसर्च के द्वारा ख़ुद को एक वैज्ञानिक के रूप स्थापित कर अपने शहर गोरखपुर ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के और साथ ही भारत का नाम पूरी दुनिया में रौशन किया है.    

 

हिन्दुस्तान अख़बार के अनुसार, गोरखपुर की रहने वाली इफ्फ़त अमीन ने सबसे चमकीला पदार्थ (कई तत्वों के मिश्रण) बनाने में सफलता हासिल की है. ये रिसर्च इस लिहाज़ से अहम है क्योंकि इसकी मदद से दो वॉट की एलईडी में 20 वॉट तक की रोशनी मिल सकेगी.

 

गोरखपुर विश्वविद्यालय में केमिस्ट्री की रिसर्च छात्रा इफ्फ़त अमीन ने विश्व के सबसे चमकीले पदार्थ/कांप्लेक्स के निर्माण में सफलता पाई है. इस कांप्लेक्स की चमक क्षमता 91.9 प्रतिशत है. अब तक सबसे चमकीले कांप्लेक्स की क्षमता अधिकतम 80 प्रतिशत तक है.

 

रिपोर्ट के अनुसार इफ्फ़त ने बताया कि, संश्लेषित कांप्लेक्स के सटीक परीक्षण की सुविधा यहां नहीं थी इसलिए इन्हें परीक्षण के लिए आईआईटी मद्रासचेन्नईसीडीआरआई लखनऊ व जापान के क्यूशू इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की लैब भेजना पड़ा. इन बड़ी प्रयोगशालाओं ने इन कांप्लेक्स की चमक 91.9 प्रतिशत तक पाई गई.

 

शोध के लाभ:

·       भविष्य में इन कांप्लेक्स के इस्तेमाल से एलईडी का एडवांस वर्जन (ऑर्गेनिक एलईडी) बनाए जा सकेंगेजो केवल एक-दो वोल्ट के करंट में तेज रोशनी देंगे.

·       इनके इस्तेमाल से रडार में ऊर्जा की खपत कम और इमेजिंग तकनीक उत्कृष्ट होगी.

·       यह दवाओं व बॉयोलॉजिकल सिस्टम की जांच तथा लेवलिंग में भी बेहद कारगर होंगे.

 

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दी बधाई!

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने ट्वीटर अकाउंट से इफ्फ़त अमीन को बधाई दी है.  उन्होंने अपने ट्वीटर हैंडल से लिखा कि,


“बहुत बहुत बधाई इफ्फत अमीन! आपने गोरखपुर और उत्तर प्रदेश का नाम रोशन करने के साथ ही देश एवं प्रदेश के युवाओं के लिए एक अनुकरणीय प्रतिमान स्थापित किया है. आप जैसे युवा ही एक नए और सशक्त भारत का निर्माण कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश की जनता और सरकार आपके साथ है। आपके सुनहरे भविष्य के लिए शुभकामनाएं.”



Tuesday, 11 August 2020

Muslim Sarif 6229


حَدَّثَنَا قُتَيْبَةُ بْنُ سَعِيدٍ ، حَدَّثَنَا عَبْدُ الْعَزِيزِ يَعْنِي ابْنَ أَبِي حَازِمٍ ، عَنْ أَبِي حَازِمٍ ، عَنْ سَهْلِ بْنِ سَعْدٍ ، قَالَ : " اسْتُعْمِلَ عَلَى الْمَدِينَةِ رَجُلٌ مِنْ آلِ مَرْوَانَ ، قَالَ : فَدَعَا سَهْلَ بْنَ سَعْدٍ فَأَمَرَهُ أَنْ يَشْتِمَ عَلِيًّا ، قَالَ : فَأَبَى سَهْلٌ ، فَقَالَ لَهُ : أَمَّا إِذْ أَبَيْتَ ، فَقُلْ : لَعَنَ اللَّهُ أَبَا التُّرَابِ ، فَقَالَ سَهْلٌ : مَا كَانَ لِعَلِيٍّ اسْمٌ أَحَبَّ إِلَيْهِ مِنْ أَبِي التُّرَابِ ، وَإِنْ كَانَ لَيَفْرَحُ إِذَا دُعِيَ بِهَا ، فَقَالَ لَهُ : أَخْبِرْنَا عَنْ قِصَّتِهِ لِمَ سُمِّيَ أَبَا تُرَابٍ ، قَالَ : جَاءَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ بَيْتَ فَاطِمَةَ فَلَمْ يَجِدْ عَلِيًّا فِي الْبَيْتِ ، فَقَالَ : أَيْنَ ابْنُ عَمِّكِ ؟ فَقَالَتْ : كَانَ بَيْنِي وَبَيْنَهُ شَيْءٌ فَغَاضَبَنِي ، فَخَرَجَ فَلَمْ يَقِلْ عِنْدِي ، فَقَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ : لِإِنْسَانٍ انْظُرْ أَيْنَ هُوَ ؟ فَجَاءَ ، فَقَالَ : يَا رَسُولَ اللَّهِ ؟ هُوَ فِي الْمَسْجِدِ رَاقِدٌ ، فَجَاءَهُ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ وَهُوَ مُضْطَجِعٌ ، قَدْ سَقَطَ رِدَاؤُهُ عَنْ شِقِّهِ ، فَأَصَابَهُ تُرَابٌ ، فَجَعَلَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَمْسَحُهُ عَنْهُ ، وَيَقُولُ : قُمْ أَبَا التُّرَابِ ، قُمْ أَبَا التُّرَابِ " .

سیدنا سہل بن سعد رضی اللہ عنہ سے روایت ہے کہ مدینہ 
میں ایک شخص مروان کی اولاد میں سے حاکم ہوا۔ اس نے سہل کو بلایا اور حکم دیا سیدنا علی رضی اللہ عنہ کو گالی دینے کا۔ سہل نے انکار کیا۔ وہ شخص بولا: اگر تو گالی دینے سے انکار کرتا ہے تو کہہ لعنت ہو اللہ کی ابوتراب پر۔ سہل نے کہا: سیدنا علی رضی اللہ عنہ کو کوئی نام ابوتراب سے زیادہ پسند نہ تھا اور وہ خوش ہوتے تھے اس نام کے ساتھ پکارنے سے۔ وہ شخص بولا: اس کا قصہ بیان کرو ان کا نام ابوتراب کیوں ہو ا؟ سہل نے کہا: رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم سیدہ فاطمہ رضی اللہ عنہا کے گھر تشریف لائے تو سیدنا علی رضی اللہ عنہ کو گھر میں نہ پایا۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے پوچھا: تیرے چچا کا بیٹا کہاں ہے؟ وہ بولیں: مجھ میں اور ان میں کچھ باتیں ہوئیں وہ غصے ہو کر چلے گئے اور یہاں نہیں سوئے۔ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے ایک آدمی سے فرمایا: دیکھو علی کہاں ہیں؟ وہ آیا اور بولا: یا رسول اللہ! سیدنا علی رضی اللہ عنہ مسجد میں سو رہے ہیں۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم سیدنا علی رضی اللہ عنہ کے پاس تشریف لے گئے وہ لیٹے ہوئے تھے اور چادر ان کے پہلو سے الگ ہو گئی تھی اور (ان کے بدن سے) مٹی لگ گئی تھی۔ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے وہ مٹی پونچھنا شروع کی اور فرمانے لگے: اٹھ اے ابوتراب، اٹھ اے ابوتراب۔

Monday, 10 August 2020

सलमान रुश्दी ने की आत्महत्या, आयतुल्लाह ख़ुमैनी ने दिया था क़त्ल का फ़तवा.


न्यूज़ वेबसाइट सलामे नो ने खबर देते हुए कहा कि कुख्यात लेखक सलमान रूश्दी ने इंग्लैंड के मैनचेस्टर में आत्महत्या कर ली है।

रिपोर्ट के अनुसार सेटेनिक वर्सेस जैसी पुस्तक लिख कर दुनिया भर के मुसलमानों की आस्था पर गहरा प्रहार करने वाले सलमान रुश्दी के खिलाफ ईरान की इस्लामी क्रांति के नायक आयतुल्लाह खुमैनी ने कत्ल का फत्वा दिया था।

आयतुल्लाह ख़ुमैनी के फत्वे के बाद पश्चिमी जगत के भरपूर समर्थन के बाद भी सलमान रूश्दी की ज़िंदगी जहन्नम बन कर रह गई थी।

नेशन वाइसेस के अनुसार रूक्ना न्यूज़ एजेंसी ने खबर देते हुए कहा कि इस कुख्यात लेखक ने मैनचेस्टर में आत्महत्या कर ली है।



એક એસા ભી કલયુગ આએગા હંસ ચુનેગા દાના દુનકા કૌવા મોતી ખાએગા"

સર્જનહારે દુનિયાની દરેક ભૌતિક વસ્તુને એના મૂળ સ્વરૂપે તો ઊર્જા તરીકેજ આપણા માટે મૂકી છે તેના માટે વિજ્ઞાનને ઈસ્લામિક દ્રષ્ટિકોણ થી સમજવું જરૂરી છે..!!

આપણો દરેક વિચાર આપણી અદ્રશ્ય હકીકત છે જો આપણે એમ વિચારીએ કે અલ્લાહ ની નજર આપણાં દરેક કૃત્યો પર છે છતાંય આપણે ગુનાહિત પ્રવૃતિઓ અને અલ્લાહ તરફથી મનાઈ ફરમાવેલ કાર્યો કરતાં રહીએ તો અલ્લાહની નજરમાં આપણાંથી મોટો પાંખડી કોઈ નથી આવા કાર્યો થકી સૌ પ્રથમ આપણે પોતાની જાતનેજ છેતરીએ છીએ તો શું ? આપણી ગણના મુસલમાન તરીકે શક્ય છે ?

જ્ઞાન અને વિજ્ઞાન ની દ્રષ્ટિએ જોઈએ તો જેવું રોમટીરીયલ તેવા વિચારો અને જેવા વિચારો તેવો અભિગમ જેવો અભિગમ તેવા નિર્ણયો જેવા નિર્ણય તેવું કાર્ય જેવું કાર્ય તેવું પરિણામ હવે જો જ્ઞાન અને વિજ્ઞાન ની દ્રષ્ટિએ મુસ્લિમ સમુદાયને પ્રગતિના પંથે લઈ જવો હોય તો વર્તમાન સમયમાં ક્યાં સામાજીક નીતિનિયમો બદલવાની જરૂર છે ?

શું ? આપણા સમુદાયમાં સિધ્ધાંત વાદી લોકો હયાત છે ? અને જો છે તો કેમ દેખાતા નથી શું અદ્રશ્ય થઈ કાર્ય કરવા નું પસંદ કરે છે ? ખરેખરતો ઉપરોક્ત તમામ ની એક પ્રકારની મજબૂરી છે એવું નથી કે મુસ્લિમ સમુદાયમાં સારા માણસો નથી પણ વાસ્તવિકતા કંઈક અંશે અલગ અને તે સમજવી જટિલ છે.

હું વાત ને આગળ વધાવતા પહેલા સંત કબીરજી ના દોહાની એક પંક્તિ અહીંયા મુકવા માંગુ છું કે "એક એસા ભી કલયુગ આએગા હંસ ચુનેગા દાના દુનકા કૌવા મોતી ખાએગા" બસ આજ સિધ્ધાંત જો અહીંયા સત્ય રીતે લાગુ કરવામાં આવે તો દા.ત ચૂંટણી દરમિયાન ચવાણું વહેંચનાર અને પોલીસ સ્ટેશનમાં તોળપાણી કરનાર બેનર અને ઝંડા લગાડનાર સૌથી વધુ કોઈ સમુદાયમાં હોય તો તે મુસ્લિમ અને જેની ગુજરાતમાં કોઈ પોતાની પાર્ટી ઊભી કરવાની ક્ષમતા નથી અને દરેક ગામ કસબા કે શહેર માં  જો કોઈ વ્યક્તિ સમાજનાં સારા કાર્ય માટે રચનાત્મક અભિગમ અપનાવી પાર્ટી કે એનજીઓ ની રચના કરવા ની વાત પણ મૂકે તો આવા કહેવાતા અને ખોટકાયેલા સમજમાટે જીવતી લાશો સમાં તેમનાં આકાઓ ને રાજી કરવા વર્તમાન સમયમાં મીર જાફર અને મીર સાદિક ના લકબ વાળા આવા સમયે સારા વ્યક્તિઓને ફસાવવાના અને બદનામ કરવાના નિતનવા શકુંની પ્રયાસો કરતાં હોય છે તે પણ આજનાં આધુનિક યુગમાં મુસ્લિમ સમુદાયમાં ચિંતા નો વિષય છે.

આજે દુઃખ થાય છે કે આપણો સમુદાય ખુદ પોતાનો વજૂદ ખત્મ કરવા નિમિત્ત બની રહ્યો છે બીજા ને દોસ આપી શું ફાયદો આજે દુનિયામાં ઈસ્લામનું ઓજસ ફેલાવનાર આપણા વડવાઓ જેમણે ભારત ભરમાં ઉમદા સ્થાપત્ય કલાં ના નમૂના સમાન એતિહાસિક ઈમારતો નું નિર્માણ કર્યું હતું જેમાં તાજ મહલ લાલા કિલ્લો કુતુબ મીનાર હુમાયું નો મકબરો દિલ્હી ની જામાં મસ્જિદ જેવી અનેક ઈમારતો નું નિર્માણ કરનાર કોમને આજે પોતાનાં અસ્તિત્વ ની લડાઈ લડવા માટે મજબૂર કરી દેવામાં આવી હોય તો આપણે સૌ કોઈએ આપણી ભૂલોના સરવાળા બાદબાકી કરવાનો પ્રયત્ન કરી આવી વિકટ અને સંઘર્ષમય પરિસ્થિતિમાં આપણે સૌ કોઈ એ સાથે મળી સહિયારા પ્રયાસ રૂપે આર્થિક સામાજીક અને રાજનેતિક સમસ્યાઓના સમાધાન માટે ચિંતન મંથન કરી યોગ્ય માર્ગ સોધવાનો હવે સમય પાકી ગયો છે.

યોગ્ય સમયે યોગ્ય નિર્ણય લેવામાં નહી આવે તો દિવસે દિવસે આપણા સમાજની પરિસ્થિતિ વિકટ બનતી રહેશે સમાજને જેટલું નુકસાન ખોટા માણસો થકી થઈ રહ્યું છે તેના કરતાં અનેક ગણું નુકશાન સાચાં માણસો ના મૌન ધારણ કરવાથી થઈ રહ્યું છે એટલે સમાજનાં બુદ્ધિજીવી અને શિક્ષિત યુવાઓને ફરી એકવાર વિનંતી કરું છું કે હવે ચુપકી તોડો અને ખોટાઓ ને ખુલ્લા પાડો સાચા ઓ ને સાથ સહકાર અને સહયોગ આપો જેથી સમાજમાં સામાજીક બદલાવ લાવી શકાય નહિતર આવનાર પેઢી ક્યારેય આપણને સૌને માફ કરશે નહીં કે એકવીસમી સદી અને આધુનિક યુગમાં પ્રવેશ કરવા છતાં અમારા પૂર્વજોએ અમારા માટે કોઈ યોગ્ય પ્લેટફોર્મ ઉભું કર્યું નહી એટલેજ આજે અમને "પંચરવાળી" કોમ નું બિરુદ આપવમાં આવી રહ્યું છે...!!


                 શકીલ સંધી...!!
               

Sunday, 9 August 2020

BJP कार्यालय को लेकर अहम खबर .

बीजेपी कार्यालय को लेकर अहमतरीन खबर .

बाबरी के बाद अब दरगाह से नफरत दैलाने का कार्य होगा .

#काशी_मथुरा_बाकी_है???
#बाबरी_मस्जिद पर अधिग्रहण के बाद हिंदुत्व के द्वारा काफी ज़ोर व शौर के साथ काशी व मथुरा की ईदगाह के लिए मांग उठाई गई है
उनका दावा है कि मथुरा की ईदगाह भी अस्ल में मंदिर की जगह है जहां कृष्णा मंदिर था जिसे 1670 ई० में औरंगजेब रह० ने ढहा दिया था! 
ये दावा बिल्कुल ऐसा ही है जैसे बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर के लिए किया गया था! 
यहां तक कि ताज महल व खाना-ए-काबा तक पर मंदिर होने का दावा ठोक चुके हैं!
इस सूरतेहाल में कुछ लोग बाबरी मस्जिद को फसाना बताकर भूल जाने की बात कर रहे हैं तो वहीं कुछ लोग हास्पिटल व यूनिवर्सिटी आदि की बातें करते हैं
कुछ राम मंदिर के नैतिक मूल्यों के खिलाफ अवैध निर्माण पर मुबारकबाद दे रहे हैं, और कुछ लोग पडोस की मस्जिद में नमाज अदा करने की नसीहत कर रहे हैं, ऐसे लोग दरअसल हिंदुत्व एजेंडे के "ह" से भी परिचित नहीं हैं, दौलत, डिग्री, राजनीति व पदों की चमक से उनकी आंखे चुंधिया गई हैं और अक्ल पर पत्थर पड़े हुए हैं! 
 "अयोध्या तो झांकी है, काशी - मथुरा बाकी है"!
#बेजमीर मुस्लिम रहबरों, बुद्धिजीवियों, राजनीतिज्ञों, समाजसेवियों को अब इन सबका हल जल्द से जल्द पैश करना चाहिए ताकि ये मसले न बाबरी मस्जिद की तरह लंबे चलें और न इतना खून बहे, न भाईचारा खराब हो और न इनका खुदा - आदरणीय सुप्रीम कोर्ट आत्महत्या करे!
~Danish

MUSLIM SARIF HADIS 179 URDU - HINDI - ENGLISH


SAFTEAM 08 2020 
BY Huzaifa Patel 

صالح بن کیسان نے حارث ( بن فضیل ) سے ، انہوں نے جعفر بن عبد اللہ بن حکم سے ، انہوں نے عبد الرحمٰن بن مسور سے ، انہوں نے ( رسول اللہ ﷺکے آزاد کردہ غلام ) ابو رافع سے اور انہوں نے حضرت عبد اللہ بن مسعود ‌رضی ‌اللہ ‌عنہ ‌ ‌ سے روایت کی کہ رسول اللہ ﷺ نے فرمایا : ’’ اللہ نے مجھ پر پہلے کسی امت میں جتنے بھی نبی بھیجے ، ان کی امت میں سے ان کے کچھ حواری اور ساتھی ہوتے تھے جوان کی سنت پر چلتے اور ان کے حکم کی اتباع کرتے تھے ، پھر ایسا ہوتا تھا کہ ان کے بعد نالائق لوگ ان کے جانشیں بن جاتے تھے ۔ وہ ( زبان سے ) ایسی باتیں کہتے جن پر خود عمل نہیں کرتے تھے اور ایسے کا م کرتے تھے جن کا ان کو حکم نہ دیا گیا تھا ، چنانچہ جس نے ان ( جیسے لوگوں ) کے خلاف اپنے دست و بازو سے جہاد کیا ، وہ مومن ہے اور جس نے ان کے خلاف اپنی زبان سے جہاد کیا ، وہ مومن ہے اور جس نے اپنے دل سے ان کے خلاف جہاد کیا وہ بھی مومن ہے ( لیکن ) اس سے پیچھے رائی کے دانے برابر بھی ایمان نہیں ۔ ‘ ‘ ابو رافع نے کہا : میں نے یہ حدیث عبد اللہ بن عمر ‌رضی ‌اللہ ‌عنہ ‌ ‌ کو سنائی تو وہ اس کو نہ مانے ۔ اتفاق سے عبد اللہ بن مسعود ‌رضی ‌اللہ ‌عنہ ‌ ‌ بھی ( مدینہ ) آ گئے اور وادی قتاۃ ( مدینہ کی وادی ہے ) میں ٹھہرے ۔ عبد اللہ بن عمر ‌رضی ‌اللہ ‌عنہ ‌ ‌ نے مجھے بھی ان کی عیادت کے لیے اپنے ساتھ چلنے کو کہا ۔ میں ان کے ساتھ چلا گیا ہم جب جاکر بیٹھ گیا تو میں نےعبداللہ بن مسعود ‌رضی ‌اللہ ‌عنہ ‌ ‌ سے اس حدیث کے بارے میں پوچھا تو انہوں نے مجھے یہ حدیث اسی طرح سنائی جس طرح میں عبداللہ بن عمر ‌رضی ‌اللہ ‌عنہ ‌ ‌ کوسنائی تھی ۔ صالح بن کیسان نےکہا : یہ حدیث ابو رافع سے ( براہ راست بھی ) اسی طرح روایت کی گئی ہے 


____________________________________________

सालेह इब्न कैसन हरिथ (इब्न फ़ाधिल) से, वह जाफ़र इब्न अब्दुल्ला इब्न हुकम से, वह अब्दुल रहमान इब्न मसूर से, वह अबू रफ़ी से अल्लाह के रसूल का गुलाम हुआ) और हज़रत अब्दुल्लाह इब्न मसूद से। यह narی रेडी अल्लाह अल्लाह अन्ना के अधिकार पर सुनाया गया है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा: वह के आदेशों का पालन करता था, फिर अक्षम लोग उसके बाद उसके उत्तराधिकारी बन जाते थे। वे ऐसी बातें कहते थे जो वे खुद नहीं करते थे, और उन्होंने वही किया जो उन्हें करने की आज्ञा नहीं थी। इसलिए जो कोई भी अपने हाथों से उनके खिलाफ लड़े, वह एक आस्तिक है, और वह जो अपनी जीभ से उनके खिलाफ प्रयास करता है, वह एक आस्तिक है, और जो अपने दिल से उनके खिलाफ प्रयास करता है, वह भी एक विश्वास है। अबू रफ़ी 'ने कहा: मैंने अब्दुल्लाह बिन उमर (अल्लाह उस पर प्रसन्न हो सकता है) को यह हदीस सुनाई लेकिन वह नहीं माना। संयोगवश, अब्दुल्ला इब्न मसऊद (उससे अल्लाह खुश हो सकता है) भी (मदीना के लिए) आए और क़ातेत (मदीना की घाटी) की घाटी में रहे। अब्दुल्ला बिन उमर (अल्लाह उससे खुश हो सकता है) ने मुझे उसके साथ जाने के लिए कहा। मैं उसके साथ गया। जब हम जाकर बैठ गए, मैंने अब्दुल्लाह बिन मसूद (अल्लाह उससे खुश हो सकता है) से पूछा कि इस सेठ के बारे में क्या है। । सालेह इब्न कैसन ने कहा: इस हदीस को अबू रफ़ी '(सीधे भी) से इसी तरह सुनाया गया है।
______________________________________________
saaleh ibn kaisan harith (ibn faadhil) se, vah jaafar ibn abdulla ibn hukam se, vah abdul rahamaan ibn masoor se, vah aboo rafee se allaah ke rasool ka gulaam hua) aur hazarat abdullaah ibn masood se. yah nary redee allaah allaah anna ke adhikaar par sunaaya gaya hai ki allaah ke rasool (sallallaahu alaihi va sallam) ne kaha: vah ke aadeshon ka paalan karata tha, phir aksham log usake baad usake uttaraadhikaaree ban jaate the. ve aisee baaten kahate the jo ve khud nahin karate the, aur unhonne vahee kiya jo unhen karane kee aagya nahin thee. isalie jo koee bhee apane haathon se unake khilaaph lade, vah ek aastik hai, aur vah jo apanee jeebh se unake khilaaph prayaas karata hai, vah ek aastik hai, aur jo apane dil se unake khilaaph prayaas karata hai, vah bhee ek vishvaas hai. aboo rafee ne kaha: mainne abdullaah bin umar (allaah us par prasann ho sakata hai) ko yah hadees sunaee lekin vah nahin maana. sanyogavash, abdulla ibn masood (usase allaah khush ho sakata hai) bhee (madeena ke lie) aae aur qaatet (madeena kee ghaatee) kee ghaatee mein rahe. abdulla bin umar (allaah usase khush ho sakata hai) ne mujhe usake saath jaane ke lie kaha. main usake saath gaya. jab ham jaakar baith gae, mainne abdullaah bin masood (allaah usase khush ho sakata hai) se poochha ki is seth ke baare mein kya hai. . saaleh ibn kaisan ne kaha: is hadees ko aboo rafee (seedhe bhee) se isee tarah sunaaya gaya hai.

Copy by Google Translate Urdu to Hindi 

__________________________________________

It is narrated on the authority 'Abdullah b. Mas'ud that the Messenger of Allah (may peace and blessings be upon him) observed: Never a Prophet had been sent before me by Allah towards his nation who had not among his people (his) disciples and companions who followed his ways and obeyed his command. Then there came after them their successors who said whatever they did not practise, and practised whatever they were not commanded to do. He who strove against them with his hand was a believer: he who strove against them with his tongue was a believer, and he who strove against them with his heart was a believer and beyond that there is no faith even to the extent of a mustard seed. Abu Rafi' said: I narrated this hadith to 'Abdullah b. 'Umar; he contradicted me. There happened to come 'Abdullah b. Mas'ud who stayed at Qanat, and 'Abdullah b 'Umar wanted me to accompany him for visiting him (as 'Abdullah b. Mas'ud was ailing), so I went along with him and as we sat (before him) I asked Ibn Mas'ud about this hadith. He narrated it in the same way as I narrated it to Ibn 'Umar.
______________.__.__________.__________________
حَدَّثَنِي عَمْرٌو النَّاقِدُ، وَأَبُو بَكْرِ بْنُ النَّضْرِ، وَعَبْدُ بْنُ حُمَيْدٍ، وَاللَّفْظُ لِعَبْدٍ، قَالُوا: حَدَّثَنَا يَعْقُوبُ بْنُ إِبْرَاهِيمَ بْنِ سَعْدٍ، قَالَ: حَدَّثَنِي أَبِي، عَنْ صَالِحِ بْنِ كَيْسَانَ، عَنِ الْحَارِثِ، عَنْ جَعْفَرِ بْنِ عَبْدِ اللهِ بْنِ الْحَكَمِ، عَنْ عَبْدِ الرَّحْمَنِ بْنِ الْمِسْوَرِ، عَنْ أَبِي رَافِعٍ، عَنْ عَبْدِ اللهِ بْنِ مَسْعُودٍ، أَنَّ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ: «مَا مِنْ نَبِيٍّ بَعَثَهُ اللهُ فِي أُمَّةٍ قَبْلِي إِلَّا كَانَ لَهُ مِنْ أُمَّتِهِ حَوَارِيُّونَ، وَأَصْحَابٌ يَأْخُذُونَ بِسُنَّتِهِ وَيَقْتَدُونَ بِأَمْرِهِ، ثُمَّ إِنَّهَا تَخْلُفُ مِنْ بَعْدِهِمْ خُلُوفٌ يَقُولُونَ مَا لَا يَفْعَلُونَ، وَيَفْعَلُونَ مَا لَا يُؤْمَرُونَ، فَمَنْ جَاهَدَهُمْ بِيَدِهِ فَهُوَ مُؤْمِنٌ، وَمَنْ جَاهَدَهُمْ بِلِسَانِهِ فَهُوَ مُؤْمِنٌ، وَمَنْ جَاهَدَهُمْ بِقَلْبِهِ فَهُوَ مُؤْمِنٌ، وَلَيْسَ وَرَاءَ ذَلِكَ مِنَ الْإِيمَانِ حَبَّةُ خَرْدَلٍقَالَ أَبُو رَافِعٍ: فَحَدَّثْتُ عَبْدَ اللهِ بْنَ عُمَرَ فَأَنْكَرَهُ عَلَيَّ، فَقَدِمَ ابْنُ مَسْعُودٍ فَنَزَلَ بِقَنَاةَ فَاسْتَتْبَعَنِي إِلَيْهِ عَبْدُ اللهِ بْنُ عُمَرَ يَعُودُهُ، فَانْطَلَقْتُ مَعَهُ فَلَمَّا جَلَسْنَا سَأَلْتُ ابْنَ مَسْعُودٍ عَنْ هَذَا الْحَدِيثِ، فَحَدَّثَنِيهِ كَمَا حَدَّثْتُهُ ابْنَ عُمَرَ، قَالَ صَالِحٌ: وَقَدْ تُحُدِّثَ بِنَحْوِ ذَلِكَ عَنْ أَبِي رَافِعٍ،
__________________________..__.________________

Saturday, 8 August 2020

बाबरी मस्जिद 05 Aug 2020 के दिन मुर्ति इस्थापना को का राज जाने .



यह सिर्फ़ एक मंदिर का शिलान्यास ही नहीं
बल्कि यह एक हिन्दू राष्ट्र की बुनियाद भी है, नीला, सफेद,हरा रंग जमीन में दफनाया जारहा है, लेकिन भावना रंग क्यूं नहीं?

👇
क्या किसी ने ध्यान दिया
कुछ समझे या नहीं !
अगर नहीं समझे तो मैं समझता हूं ।
#नीला बहुजन समाज बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर का प्रतीक है। #सफ़ेद बौद्ध और क्रिस्चियन का प्रतीक है मतलब शांति का प्रतीक है। और #हरा इस्लाम का प्रतीक है मतलब टोटल सब ख़तम कर रहे हैं  अब मनुस्मृति लाने की फुल तैयारी हो रही है 
मुझे जो समझ में आया वो बता दिया।
अब आप लोगों को क्या समझ में आ रहा है वो भी बता दो 👉भगवा रंग 👈नहीं दफ़नाया क्यों ?

Friday, 7 August 2020

हिन्दू शब्द का अर्थ – अरबी – फ़ारसी – लिपियों – व्याख्याकारों के संग्रह से .

हिन्दू शब्द का अर्थ – अरबी – फ़ारसी – लिपियों – व्याख्याकारों के संग्रह से –

हिन्दू शब्द का अर्थ – अरबी – फ़ारसी – लिपियों – व्याख्याकारों के संग्रह से – —————————————————————————————- हिन्दू दर मुहावरा फारसियां ब मअने दुज़दो रहज़नों ग़ुलाम मे आयद। अर्थ – हिन्दू शब्द फ़ारसी भाषा के अनुसार चोर, डाकू, रहजन (मार्ग का लुटेरा) और ग़ुलाम (दास, बंदी) के अर्थो में आता है सन्दर्भ – ग़यास – ग़यास नामी कोष —————————————- हिन्दू बकसर ग़ुलाम व बन्दह, काफ़िर व तेरा। अर्थ : हिन्दू का अर्थ ग़ुलाम, कैदी, काफ़िर और तलवार है। सन्दर्भ – कशफ – कशफ नामी कोष ——————————————- चे हिन्दू हिंदुए काफ़िर चे काफ़िर, काफ़िर रहजन। चे रहज़न रहज़ने ईमान अर्थ : हिन्दू क्या है ? हिन्दू काफ़िर है। काफ़िर क्या है ? काफ़िर रहज़न है। रहज़न क्या है ? रहज़न ईमान पर डाका मारने वाला है। (सन्दर्भ – चमन बेनज़ीर) ……………………………. क्या अभी भी अपने को हिन्दू कहोगे ? नोट : पोस्ट पर बेतुकी और व्यर्थ चर्चा – तथा भद्दी भद्दी गालियां देने से पूर्व सोच ले की आप स्वयं अपने को “हिन्दू” गर्व से कहकर – खुद ही अपने पर पड़ी गाली को गर्वान्वित करते हो – कृपया असभ्य चर्चा न करे – मेरे पास १०० से भी ऊपर प्रमाण हैं – हिन्दू शब्द के अर्थ के – इसलिए कुतर्क करने से अच्छा है – सत्य को जाने – वेदो में ईश्वर पुत्र “आर्य” हैं – और कुछ नहीं तो कम से कम अपने पुरखो को तो हिन्दू कहकर अपमानित न करे –

Read more at Aryamantavya: हिन्दू शब्द का अर्थ – अरबी – फ़ारसी – लिपियों – व्याख्याकारों के संग्रह से – http://aryamantavya.in/?p=16912

Thursday, 6 August 2020

लिंचिंग का अर्थ है भीड़ द्वारा पीट पीट कर मार दिया जाना.WhatsApp


भारत में आजकल यह बढ़ता जा रहा है,

हम सब को इसके बढ़ने के कारणों पर विचार करना चाहिए,

ताकि इसे रोका जा सके,

लिंचिंग कौन करता है,

लिंचिंग उस समुदाय के लोग करते हैं जिन्हें लगता है कि उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता,

इसलिए लिंचिंग हमेशा सत्ताधारी समुदाय के लोग करते हैं,

इस समय भारत की सत्ता द्वारा भारत के एक समुदाय हिन्दू को यह संकेत दिए जा रहे हैं कि यह सत्ता हिन्दुओं की है,

इसलिए लिंचिंग के मामलों में हिन्दू समुदाय के लोग शामिल पाए जा रहे हैं,

यह एक समुदाय को अपराधी बना दिए जाने की प्रक्रिया है,

इसके अलावा लिंचिंग के लिए घृणा का होना बहुत ज़रूरी है,

अगर कोई समुदाय घृणा से भरा हुआ ना हो तो वह किसी को पीट पीट कर मार ही नहीं सकता,

भारत में सत्ता पर बैठा हुआ दल भाजपा और उनका वैचारिक आधार संगठन राष्ट्रीय सेवक संघ हिन्दू समुदाय के भीतर मुसलमानों और ईसाईयों के खिलाफ नफरत भरने का काम लम्बे समय से लगातार कर रहा है,

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उसके अन्य हिंदूवादी संगठन इस नफरत को जिंदा रखने के लिए मुसलमानों के खिलाफ लगातार दंगे करवाते रहते हैं,

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने मुसलमानों के विरुद्ध दंगे को राष्ट्र निर्माण जैसा पवित्र कार्य बना दिया है,

इसके साथ ही जब दंगा करके दंगाई नेता नरेंद्र मोदी और अमित शाह सत्ता पर बैठे,

उससे पूरे देश में यह सन्देश गया कि मुसलमानों के खिलाफ दंगा करना राष्ट्र निर्माण का काम है,

अगर आप ध्यान से देखें तो मुसलमानों को पीटने वाली भीड़ इस काम को बहुत पुन्य और शान का काम मानती है,

पीट पीट कर मारे जाने के बाकायदा वीडिओ बनाये जाते हैं और हिन्दुत्ववादी सोशल मीडिया ग्रुप में फैलाए जाते हैं,

इससे यह साफ़ हो जाता है कि यह माब लिंचिंग राजनैतिक फायदे के लिए जान बूझ कर करवाया जा रहा है,

इस के द्वारा बहुसंख्यक समुदाय यानी हिन्दू युवाओं को ज्यादा साम्प्रदायिक बनाया जा रहा है,

क्योंकि भाजपा तभी जीत सकती है जब हिन्दू युवा अधिक साम्प्रदायिक बन जाएँ,

माब लिंचिंग को सत्ताधारी दल द्वारा बढ़ावा दिए जाने का दूसरा कारण यह है कि भाजपा हर मुद्दे पर फेल हो रही है,

रोज़गार भयानक रूप से घट गए हैं, व्यापार चौपट हो चुका है, 

ऐसे में भाजपा किसी भी राजनैतिक बहस का जवाब देने की हालत में नहीं है,

इसलिए भाजपा देश में गंभीर राजनैतिक विचार विमर्श को समाप्त कर देना चाहती है,

इसलिए भाजपा ने सोशल मीडिया पर भी विरोधियों को लिंच करने के लिए गुंडों को नौकरी पर रखा है,

जो कोई भी भाजपा सरकार की नीतियों की समीक्षा करने की कोशिश करता हैं,

या कोई विमर्श शुरू करने की कोशिश करता हैं,

तो भाजपा के यह तनख्वाह खाने वाले गुंडे आकर गाली गलौज और ऊलजलूल बातें करके पूरे विमर्श को असम्भव बना देते हैं,

ठीक यही काम सड़कों पर भी किया जा रहा है,

यह भाजपा ब्रांड राजनीति है,

लिंचिंग भाजपा की सोच समझ कर बनाई राजनैतिक गतिविधी है,

इस लिंचिंग का फायदा यह है कि भाजपा पूंजीपतियों के फायदे के लिए मजदूर नेताओं पर अपने लिंच माब द्वारा हमले करवा सकती है,

लिंचिंग द्वारा विरोधी राजनातिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों को डराया जा सकता है और ज़रूरत पड़ने पर मरवाया जा सकता है,

अमीर पूंजीपतियों, साम्प्रदायिक गुंडों, अमीरों की संसद और बिकाऊ मीडिया के गठजोड़ का यह नया राजनैतिक दौर है,

इससे निकलने के लिए समाज को बहुत मेहनत करनी पड़ेगी,

अन्यथा यह वाली राजनीति समाज को बुरी तरह बाँट कर बहुत खून बहा सकती है,

पड़ोसी देश से युद्ध करवा सकती है और राजनैतिक प्रगति को बहुत पीछे ले जा सकती है,

लिंच माब एक दिन में तैयार नहीं होती है इसे लम्बे समय की मेहनत के बाद तैयार किया जाता है,

इसलिए जब भी आपके आसपास लोग किसी एक समुदाय के खिलाफ नफरत भरी बातें करें तो तुरंत उन्हें सही बात बताइये,

भाजपा और संघ का सामना विचारधार के स्तर पर ही किया जा सकता है,

गलत इतिहास के सामने सही इतिहास, नफरत के सामने प्यार और मारने के स्थान पर बचाने की बात कीजिये,

हमारे दौर के युवाओं को नफरत के रास्ते से बचा कर समझदारी के रास्ते पर लाना ही इस युग का सबसे बड़ा राजनैतिक काम है,

नमाज मनुष्य के शारिरिक शक्ति के लिये सबसे बेहतरीन योग.

बेशक योगा कई बीमारियों से जिस्म की हिफाज़त करता है और नमाज़ सबसे बड़ा योगा है। अगर रोज 5 वक़्त की नमाज़ सुकून और त्वज़्ज़ो के साथ सही तरीके से अदा की जाए तो कोई अलग से योगा करने की ज़रूरत नही पड़ेगी। नमाज़ में हमारे ज़िस्म के हर हिस्से की एक्सरसाइज होती है सुबह फ़ज़र से लेकर रात ईशा की नमाज़ तक। अल्लाह ने अपनी इबादत में भी इंसानों की भलाई छिपा रखी है बस इंसान अमल नही करता।

दिन में 5 बार नमाज़ से पहले वज़ु किया जाता है जिससे बॉडी सेनेटाइज होती है। नाक के अंदर पानी डाल जाता है जिससे फ़्लू का खतरा कम होता है।

नमाज़ में एक खास पॉइंट पर ही नज़र रखनी होती है जो मेडिटेशन का काम करती है।

रुकू की हालत में जिस्म 90 डिग्री पर मुड़ता है जिससे कन्धा, पेट,  कमर, गुर्दे और घुटने की बीमारियों में शिफा होता है, कैलोरी बर्न होती है पेट की चर्बी कम हिती है, गठिया रोग से हिफाज़त होती है।

सज़दे की हालत में पैर की उंगलियां मुड़ी हुई होती है जो बॉडी को एक्यूप्रेशर करती है फेफड़ों को आराम मिलता है,  खून ब्रेन तक पहुचता है जितना लम्बा सज़दा उतना दिमाग स्वस्थ रहेगा।

सलाम में सीधा बैठ कर गर्दन दोनो तरफ मोड़ने से माइग्रेन से हिफाज़त होती है।

दुआ की हालत में थोड़ी देर आंखे बंद होती है, नम होती है, आंखे फ्रेश हो जाती है। 

Tuesday, 4 August 2020

ALMPB Social Media Viral later 4 aug 2020 बाबरी मस्जिद के सिलसिले मे.


Da.05 Jul 2020 
   "बाबरी मस्जिद हमे माफ करना"

      बाबरी मस्जिद तेरी सर जमीन पर बुतपरस्ती की सुरुआत हमारी लीडरशिप की रेहबरी को लेकर ये तारीख  हमेशा हमे याद दिलाती रहेगी हम मजबूर हे सौदागरों ने तेरी अजमत का सौदा किया हे बाबरी मस्जिद हमे माफ करना.

     आज की तारीख़ आने वाली नशलों और आज के डोर मे सोचने और समझने वाले हक परस्त  मुसलमानों को हमेशा बाबरी की एतिहासिक तारीख याद रहेगी.

     हमारी नाकारा, फिरका परस्त ,सुद परस्त और सुस्त , सौदागर सहूलत वाली लीडरशिप पर हमेशा सवाल करने पर मजबूर करेगी.


     बाबरी मस्जिद को लेकर सबसे पेहले जिम्मेदार हमारी धार्मिक लीडरशिप जिम्मेदार हे, उसके बाद हमारी पोलिटिकल लीडरशिप दुसरे नंबर पर जिम्मेदार हे, और इस के बाद हमारी सामाजिक लीडरशिप तिसरे नंबर पर जिम्मेदार हे, फिर अवाम बाबरी मस्जिद की सर जमीन पर बुतपरस्ती को लेकर जिम्मेदार हे.
ओल इन्डिया मुस्लिम प्रसनल लो बोर्ड.

ता. 04 Aug 2020 social media letar 


बाबरी मस्जिद  थी  और हमेशा रहेगी  गास्बाना  क्बजे से हक्कित खतम नही होती .
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला जरुर दिया हे मगर इन्साफ को शर्मसार किया हे.

नई देहली 4 aug 2020 आज जब के बाबरी मस्जिद के मकाम पर एक मंदीर की बुनियाद रखी जा रही हे. ओल इन्डिया मुस्लिम प्रशनल लो बोर्ड अपने डेरीना मौकुफ दोहराना जरुरी समझता हे, शरीयत की रोशनी मे जंहा एक बार मस्जिद काईम हो जाती हे, वो ता कयामत मस्जिद रेहती हे, लिहाजा बाबरी मस्जिद कलभी मस्जिद थी आज मस्जिद हे,और  इन्शाअल्लाह आइंदा मस्जिद ही रहेगी, मस्जिद मे मुर्तीया़ रख देने से पुजा पाथ सुरु कर देने से या एक लंबे अरसे तक नमाज पर रोक लगा देने से मस्जिद की हेसियत खतम नही होती ओल इन्डिया मुस्लिम प्रशनल लो बोर्ड के जनर्ल सेक्रेटरी  हजरत मोलाना मुहमद वली रेहमानी ने अपने एक  प्रेश बयान मे कहा हे के हमारा हमेशा से ये मौकुफ रहा हे के बाबरी मस्जिद कीसी मंदिर हिंदू इबादतगाह को तोर कर नही बनाइ गइ अल्लह दुर्रिल्लाह सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले मे  (नवेंबर 2019)  हमारे इस मौकुफ की तसदीक़  करदी हे सुप्रीम कोर्ट येभी कहा हे के बाबरी मस्जिद के निचे खुदाई मेजो आसार मिले वो 12 मी सदी के कीसी इमारत के थे बाबरी मस्जिद की तामिर से  ૪०० साल कब्ल लिहाजा किसी मंदिर को तोडकर मस्जिद नही बनाइ गइ सुप्रीम कोर्ट ने साफ तोर पर कहा के बाबरी मस्जिद मे 22 दिसम्बर  1949 की रात तक नमाज होती रही हे सुप्रीम कोर्ट का येभी मानना हे 22 दिसम्बर 1949  मे मुर्तियों का रख्खा जाना एक गैर कानूनी गैर दशतुरी अमल था  सुप्रीम कोर्ट येभी मानता हे  के  ६ दिसम्बर 1992  को बाबरी की शहादत एक गैर कानूनी गैर दस्तुरी और मुज़रिमाना फआल था अफसोस इन तमाम वाजेह हकाइद को तसलिम करने के बावजुद कोर्ट एक इंतिहाइ गैर मुंसिकाना फैसला दिया मस्जिद की जमीन उन लोगो के हवाले करदी जिन होने मुजरिमाना तरिका पर उसमे मिर्तियां रखी और उसके सहादत के मुरतकिब हुये. .


बोर्ड के जनर्ल सेक्रेटरी ने आगे कहा चुंके अदालत अजमी मुल्के आला तरीन अदालत हे लिहाजा उसके हतमी फैसले को तसलीम करने के अलावा कोइ चारा नही हे ता हम हम ये जरुर कहेंगे के ये जालिमाना और गैर मुन्सिफाना  फैसला हे जो अक्सरियत जएम मे दिया गया हे सुप्रीम कोर्ट  09 नवेंबर 2019 को फैसला जरुर दिया हे मगर इन्साफ को स्रमशार किया हे. अल्हमदुरिल्लाह हिंदुस्तानी मुसलमाने के नुमाइंदा इसतिमाइ प्लेटफॉर्म  ओ.इ.मु.प.बोर्ड  और दिगर फिरको मे ने भी अदलती लडाई कोइ दकिका नही उथा रख्खा यंहा येभी केहना जरुरी हे के हिंदतो एनासर की पुरी तहरिक जुल्म जहेर दुंस  धांधली कजीब और इफतिराह पर बमनी तेहरिर थी ये सरासर एक सियासी तहरिक थी जिसका मजहब या मजहबी तालिमात से ताअलुक नही था जुठ और जुल्म पर मबनी इमारत कभी बी पाइदार नही होती . . . .

जनर्ल सेक्रेटरी साहाब ने अपने बयान मे आगे कहा के हालत चाहे जितने खराब हो हमे होशला नही हारना चाहिये और अल्लाह पर भरोसा रखना चाहिये. मुखालिफ हालात मे जिनेका मिजाज बनाना चाहिये हालात हमेशा यकशा नही रेहते अल्लाह ताआला कुरुन मजिद इरशाद फरमाता हे वतिल्कल अय्यामु लिहा नुदाविलु हा बयन्नाश येतो जमाना के नसिब व फराज  हे जिनहे हम लोंगों के दरमियान गरदिश देते रेहते हे. लिहाजा हमे नतो मायुश होना हे ना हालात के आगे सुपुर्ट होना हे हमारे समाने इस्तंबुल की आया सुफिल मस्जिद की मिशाल इस आयत की मुह पर बोलतिो तस्वीर हे  मुसलमानाने हिंद अपिल करता हु वो सुप्रीम कोर्ट के फैसला और मस्जिद की जमीन पर मंदिर की तामिर से हरगिज बी दिल बर्दाश्ता ना हो हमे येभी याद रखना चाहिये तौव्हिद का अलमी मरकज और अल्लाह का घर खानाए काबा भी एक लंबे अरसे तक सिर्को बुत परस्ती का मरकज़ बना रहा बिल आखीर फतहे मक्का के बाद प्यारे नबी स.अ.व. के जरिये वो दौ बारा मरकजे तौहव्हिद बना इन्शाअल्लाह हमे पुरी तव्वकु हे सिर्फ बाबरी मस्जिद ही नही ये पुरा चमन नगए तौव्हिद से माअमुर होगा हमारी जिम्मेदारी एसे नाजुक मोकेपर अपनी गलतियो से तौबाह करे अखलक और किरदार को सवारे घर और समाज दिनदार बनाये अपने होसले के साथ मुखालिफ हालत आगे बडने का फैसला करे.

Monday, 3 August 2020

सैनिटाइजर लगे हाथों से खाना खतरनाक हो सकता हे परहे पुरी खबर .

सैनिटाइजर लगे हाथों से खाना खतरनाक या सेफ? जानें सही तरीका.

इन दिनों लोग धड़ल्ले से सैनिटाइजर का कर रहे हैं प्रयोगसैनिटाइजर खरीदने से पहले जाने WHO की गाइडलाइनकोरोना वायरस का संक्रमण दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है. लोग जानते हैं कि इसे साफ-सफाई से ही हराया जा सकता है. इसलिए हाल के दिनों में सैनिटाइजर की खपत काफी बढ़ गई है. लोग धड़ल्ले से इसका प्रयोग कर रहे हैं. बिना यह जाने कि इसका आपके स्वास्थ्य पर क्या असर होगा? लोगों को यह तक पता नहीं है कि सैनिटाइजर के प्रयोग का सही तरीका क्या है. इस लेख के जरिए aajtak.in की कोशिश है कि लोगों के बीच सैनिटाइजर को लेकर सही जानकारी आप तक पहुंचाई जाए. ADS क्या आप जानते हैं कि बाजार में मिलने वाले सभी सैनिटाइजर प्रभावी नहीं हैं? तो ऐसे में सवाल उठता है कि सैनिटाइजर खरीदने से पहले किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के पूर्व सचिव, इंफेक्शन एक्सपर्ट और दिल्ली मेडिकल काउंसिल की साइंटिफिक कमेटी के चेयरमैन डॉक्टर नरेंद्र सैनी बताते हैं कि लोगों को अभी यह नहीं पता है कि सैनिटाइजर इस्तेमाल करने या खरीदने को लेकर WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) की सही गाइडलाइन क्या है? कभी कोरोना के संपर्क में नहीं आए, फिर शरीर में कैसे मिल गई इम्यूनिटी? डॉक्टर सैनी के मुताबिक साबुन और पानी से हाथ धोना सबसे अच्छा अभ्यास है. अगर आपके आस-पास साफ पानी मौजूद है तो फिर सैनिटाइजर के प्रयोग से बेहतर होगा कि आप अपने हाथों को साफ पानी से धोएं. सैनिटाइजर का प्रयोग तभी करें, जब ऐसा कर पाना मुमकिन ना हो. ज्यादातर लोग सैनिटाइजर हाथ में लेते हैं और 2-3 सेकेंड मल कर समझते हैं कि हाथ साफ हो गया. जबकि यह सही सोच नहीं है. सैनिटाइजर का इस्तेमाल करते हुए इसे कम से कम 10-12 सेकेंड तक अपने हाथों पर मलें. आपके हाथों के गस्से-गस्से तक सैनिटाइजर पहुंचना चाहिए, तभी यह वायरस को हटाने में प्रभावी हो सकता है. जैसा कि WHO की गाइडलाइन भी कहती है कि हथेलियों को आपस में रगड़ें. दोनों हाथों की उंगलियों को जोड़कर मलें. अंगूठों को अच्छे से हल्के-हल्के रगड़ना न भूलें. उन्होंने सैनिटाइजर की मात्रा को लेकर कहा कि मटर के दाने जितना इस्तेमाल करने से कुछ नहीं होगा. क्योंकि लोगों के हाथों के आकार अलग-अलग होते हैं. इसलिए सही तरीका है कि सैनिटाइजर चुल्लू भर होना चाहिए. मात्रा में कहें तो 5 एमएल से ज्यादा. इसके साथ ही सैनिटाइजर इस्तेमाल करते हुए आपके हाथ दिखने में साफ सुथरे होने चाहिए. ऐसा नहीं कि आपके हाथ में पेंट या मिट्टी लगी है और आपने 5 एमएल सैनिटाइजर इस्तेमाल कर सबकुछ साफ कर लिया. अनलॉक-3 में खुलेंगे जिम और योगा सेंटर, जरूरी होंगे ये नियम? डॉक्टर सैनी ने कहा कि सैनिटाइजर खरीदते हुए यह सुनिश्चित करें कि उसमें 60-70 प्रतिशत एल्कोहल की मात्रा हो. वो भी ईथाइल या आइसोप्रोपाइल एल्कोहल होना चाहिए. इससे ज्यादा मात्रा भी ठीक नहीं है. सैनिटाइजर लगे हाथों से खाना खतरनाक हो सकता है. क्योंकि उसमें भारी मात्रा में एल्कोहल होता है, जो आपकी किडनी, लीवर और दिल को प्रभावित कर सकता है. सैनिटाइजर लगाने के 20 सेकेंड बाद ही खाना शुरू करें. इतनी देर में वो भाप बन जाता है. सैनिटाइजर कितने देर तक प्रभावी होता है? इस सवाल के जवाब में डॉक्टर सैनी ने कहा कि सैनिटाइजर लगाने तक. यानी कि जब आपने सैनिटाइजर से हाथ साफ किया तभी तक के विषाणु खत्म होते हैं. इस्तेमाल के 20 सेकेंड बाद अगर आपने फिर कोई सामान छुआ है तो आपको फिर से हाथ साफ करना होगा. उन्होंने बताया कि बार-बार सैनिटाइजर का प्रयोग करना भी ठीक नहीं है. इसलिए कोशिश ज्यादा से ज्यादा बार हाथ धोने की होनी चाहिए. क्या एल्कोहल पीने वालों में कोरोना का डर कम होता है? इस सवाल के जवाब में डॉक्टर सैनी ने कहा कि ऐसा बिल्कुल भी नहीं होता है. क्योंकि विषाणु जब आपके शरीर में घुसता है तो वो नली के अंदर बैठा नहीं रहता है. वो कोशिका के अंदर घुस जाता है. दूसरी बात पीने वाले एल्कोहल में उसकी मात्रा विषाणु को खत्म करने के लिहाज से बहुत कम होती है. क्योंकि अगर आपके शरीर में एल्कोहल की मात्रा बहुत ज्यादा होगी तो फिर हार्ट या किडनी फेल्योर हो सकता है. इसलिए लोगों के बीच में शराब को लेकर बहुत बड़ी गलतफहमी है. अयोध्या: प्रधानमंत्री के कार्यक्रम को देखते हुए खास कैंप लगा कर की जा रही कोरोना टेस्टिंग सैनिटाइजर इस्तेमाल करते हुए इन दस बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी 1. सैनिटाइजर का इस्तेमाल साफ दिखने वाले हाथों में ही करें. 2. सैनिटाइजर में 60-70 प्रतिशत ईथाइल या आइसोप्रोपाइल एल्कोहल हो. 3. हाथ साफ करते हुए WHO की गाइडलाइन को ध्यान में रखें. 4. 15-20 सेकेंड तक हाथ को रगड़े, सभी हिस्से तक यह पहुंचना चाहिए. 5. हैंड सैनिटाइजर को प्राथमिकता बिल्कुल ना बनाएं. 6. साफ पानी से हाथ धोने के बाद सैनिटाइजर का इस्तेमाल ना करें. 7. सैनिटाइजर की मात्रा का ख्याल रखें. 8. अपने मुंह पर सैनिटाइजर का इस्तेमाल ना करें 9. सैनिटाइजर का इस्तेमाल उन्हीं जगहों पर करें, जहां हाथ धोने की व्यवस्था ना हो. 10. साबुन-पानी से हाथ धोना ज्यादा प्रभावी है, इसलिए जरूरत के हिसाब से ही सैनिटाइजर का प्रयोग करें.

Sunday, 2 August 2020

लीडरशिप के लिये जागृति लाना जरुरी हे.

बेहतरीन लीडरशिप  परिवार, समाज  और किसीभी  देश के लिये  कैसी होनी  चाहिये?
कीसी भी परीवार, समाज या देश को प्रगती के पंथ पर ले जाने के लिए एक अच्छे लीडर का होना बेहद आवश्यक है।
                    
अच्छा लीडर वहीं इन्शान बन सकता है जीस के ख्वाब बुलंद हो और वह भी अपने स्वार्थ के लिए न हो यानी खूदगर्ज न हो अपने आप में समाज और देश की सकारात्मक सोच के साथ सेवा करने का जज्बा रखता हो और निस्वार्थ सेवा भाव से लोगों को और समुदायों को एक साथ जोड़ ने की सलाहीयत रखता हो लोगों के हितों के लिए काम करें सत्ता के लालच में नहीं बल्कि लोगों के दुःख दर्द बांटते हुए लोगों की आवाज बनें
                       वह अपने खौफ पर काबू पाने वाला इस का मतलब की अपने इरादों का मजबूत हो, अपने दिल की आवाज सूनने वाला हो क्योंकि एक अच्छे लीडर में चेलेंज को स्वीकार कर उस पर काबू पाने का हुनर भी चाहिए क्योंकि लीडर बनना इतना आसान नहीं आपको काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है बाज वक्त लोग आपका मजाक भी उड़ाते हैं जो लोग दो मिनट पहले आपके लिए जिन्दाबाद के नारे लगाते हैं वहीं लोगों को आपके लिए मुर्दाबाद के नारे लगाते ने भी देर नहीं लगती इस लिए एक अच्छे लीडर को लोगों के कहने पर नहीं जाना लोगों का क्या उनका तो काम ही आलोचना करते रहना है इस लिए आप हमेशा अपने दिल की सोचे और वही करें जो आप का दिल चाहे मुश्किल घड़ी में हिम्मत ना हारे बल्कि संघर्ष करते हुए आगे बढ़ते रहे क्योंकि जो गीर कर उठने का हूनर रखता है उस की ताकत दुगनी हो जाती है एवरेस्ट पर चढ़ने वाला अगर उस की उंचाई देखकर डर जाये तो क्या वह एवरेस्ट सर कर पायेगा इस लिए याद रहे अपने दिल से खौफ को नीकाल दे इतिहास गवाह है बुजदिल इन्शान कभी एक अच्छा लीडर नहीं बन सकता अच्छा लीडर बनने के लिए चट्टानों से टकराने का होंसला चाहिए.

                      अच्छा लीडर हमेशा सच बोलने वाला होना चाहिए क्योंकि सच में वह ताकत होती है कि सच्चा इन्शान जहां खड़ा हो जाए वहां इन्कलाब ला देता है और सच्चे के साथ अल्लाह की भी मदद हो जाती हैं.
                        आखरी बात यह की अच्छा लीडर इन्शाफ करने वाला हो जो इन्साफ पसंद होगा वह लोगों के साथ भी इन्साफ करेगा और यकीन मानीये अगर आप इन्साफ पसंद होंगे तो लोगों को आपके साथ जूडने में देर नहीं लगेगी
                        कुल मिलाकर हमारा रहबर ऐसा होना चाहिए कि जो हमेशा बुलंद ख्वाब देखता हो जो की खूद के स्वार्थ के लिए न हो, अपने खौफ पर काबू पाने वाला हो, सच्चा हो और इन्साफ करने वाला हो
                      यह मेरी अपनी नीजी सोच है जरूरी नहीं कि सब इस बात से सहमत हो.

                   अमीर मलेक
          राष्ट्रीय मुस्लिम महासभा
             खंभात तालुका अध्यक्ष

corona kal ki aethik mandi

દુનિયાભરમાં ભારતના લગભગ 2,81,98,352 લોકો છે. જે પાસપોર્ટ સાથે દુનિયાના અલગ અલગ દેશોમાં રહે છે.

યુનાઇટેડ અમિરાતમાં 34લાખ;
સાઉદી અરેબિયામાં 25,94,947;
કુવૈતમાં   10,29,861; 
ઓમાનમાં 7,81,141; 
કતારમાં  7,45,775;
બેહરીનમાં 3,26,658;
કુલ મળીને 89,03,526 ભારતીય લોકો અરબ વર્લ્ડમાં કામ કરે છે.

અમેરિકામાં રહેતા લોકોની સંખ્યા સાડા ચાર લાખ છે.
બ્રિટનમાં લગભગ 17,64,000
સિંગાપોરમાં 6,50,000
મલેશિયામાં 2,27,950
ઈટાલીમાં 2,03,000
જર્મનીમાં 1,85,000
ફિલિપિન્સમાં1,20,000  ભારતીય લોકો રહે છે.

2018 ના યુનાઈટેડ માઇગ્રેશન રિપોર્ટ મુજબ;
689બિલિયન ડોલર માત્ર માઇગ્રન કમાતા હતા.
તેમા સૌથી વધુ ભારતીય કમાતા હતા જે લગભગ 1.6 બિલિયન ડોલર જેટલું.

2020 ના રિપોર્ટ મુજબ,
પાછલાં વર્ષે દુનિયાના તમામ માઇગ્રેન વર્કરની લગભગ 714 બિલિયન ડોલરની કમાણી હતી.
જે ઘટીને 572 બિલિયન ડોલર થઈ ગઈ.

અમેરિકમાં 2020 માં 370લાખ નોકરીઓ જતી રહેશે. તેના વિવિધ ફિલ્ડમાં કામ કરતાં લોકોની સંખ્યા આ મુજબ છે:
ક્લોથિંગ એન્ડ રિટલ સેક્ટરમાં 65લાખ વર્કર 
સપોર્ટ એન્ડ એકૉમેડેશન સર્વિસમાં 58લાખ
ઓટોમોબાઇલ સર્વિસમાં 44લાખ
એજ્યુકેશન ફિલ્ડમાં 37લાખ
ટ્રાવેલ ફિલ્ડમાં 32લાખ
મેમ્બરશીપ એસોસિયેશન એન્ડ ઓર્ગેનાઇઝેશનમા 30લાખ
સ્પોર્ટ્સ એન્ડ એન્ટરટેઇનમેન્ટશિપમાં 20લાખ
રિયલ સ્ટેટમાં 14લાખ જેટલા વર્કર્સ કામ કરતા હતા.જેમા સૌથી વધુ ભારતીય છે.

બાંગ્લાદેશમાં લગભગ 10000 ભારતીયો કામ કરે છે.

Saturday, 1 August 2020

जो हमारे हिन्दू भाई कुर्बानी करने पर सवाल उठाते हैं उन के लिए खास.

_______________________________
▪️📜📜 *अल - बलाग* 📜📜▪️
▪️  ✍️ ⁩ *अली बारडोली वाला* ▪️
          الحمد لاهله و الصلاة و السلام على اهلهما
_________________________________
▪️ हिन्दू धर्म और जानवर को मारना▪️
_________________________________
जो हमारे हिन्दू भाई कुर्बानी करने पर सवाल उठाते हैं उन के लिए खास.
➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖
1 👉 राम जी के पिता दशरथ भी शिकार के लिए जाया करते थे और एक दिन गलती से पानी पीता हुआ हाथी समझकर उन्होंने सरवन कुमार को अपने तीर से मार डाला अब सवाल ये उठता है क्या जंगल में शांति से पानी पीता हुआ हाथी हिंसक हो सकता है।

Reference

 *(वाल्मीकि रामायण जगदीश्वरानंद सरस्वती अयोध्या कांड,48/9-15)*

2 👉सीता जी के कहने पर राम हिरण को पकड़ने गए और जब हिरन ना पकड़े गए तो उन्होंने हिरण को जान से मारने के लिए तीर चलाया यहां भी वह सवाल उठता है कि भला हिरण हिंसक कैसे हो सकता है।

Reference

*(वाल्मीकि रामायण जगदीश्वरानंद सरस्वती अरण्यकांड 27/7-8)*

3 👉राम जी और लक्ष्मण जी दोनों ने मिलकर 4 किस्म के महा मुर्गों का तीर से प्रहार करके वध कर दिया।

Reference

 *(वाल्मीकि रामायण गीता प्रेस अयोध्या कांड 52/102)*

4 👉 साधु के भेष में रावण को सीता ने कहा कि उनके स्वामी आते होंगे  और जंगली सूअर को मारकर खाना लाते होंगे।

Reference

*( वाल्मीकि रामायण गीता प्रेस अरण्यकांड 47/23,24)*

5 👉 राम की सेना में निषाद लोगों को मुर्ग और मांस खाने को दिया गया।

Reference

*(वाल्मीकि रामायण गीता प्रेस 91/70)*

6 👉रामायण काल में पशु हत्या को बड़ी चीज नहीं थी असवा महंगा यज्ञ में राजा दशरथ ने कई पशुओं की बलि दी थी।

Reference

*( वाल्मीकि रामायण गीता प्रेस बाल कांड सर्ग ,14)*
 7 👉और यह बात कोई वेद विरुद्ध नहीं है शतपथ ब्राह्मण जो मध्याधीन वेद का ब्राह्मण ग्रंथ है मैं भी अश्वमेघ में पशु हत्या के बारे में लिखा है।

Reference

*(शतपथ ब्राह्मण 13/5/2/1,2)*

8 👉 और वैदिक कोष में भी यही चीज है कि आव मेघ में 300 पशुओं की हत्या किया जाता है।

Reference

*(वैदिक कौश पेज 29)*

9 👉 और हिंसक पशु सिर्फ मांस खाने वाले नहीं होते बल्कि घास खाने वाले भी होते हैं और उन दोनों को मारने का आदेश है और जो रूके उन लोगों को हिंसक जानवरों के मुंह में फेंकने का आदेश है|

Reference

 *(यजुर्वेद दयानंद भाषा 10 46 14))*

10 👉रामायण के अनुसार राम जी इंदिरा के तुल्य है।

 और ऋग्वेद संयम भाषा के अनुसार इंद्रा15 से 20 सांड और बेल पकाकर खा खा कर मोटा होता हैं।

Reference

 *(ऋग्वेद संयण भाष्य 10/ 86/14)*
👉 मैने सिर्फ कॉपी पेस्ट किया है 
बली प्रथा माँन्स भक्षण को कैसे प्रचलन.मे लाया गया निचे उदाहरण निये गये आये जानते हैं निम्न श्लोकों के माध्यम से 

ऋग्वेद के निम्न मंत्र को देखिए-
उक्ष्णो   हि    मे   पंचदश   साकं   पचन्ति   विंशमित्।
उताहमद्मि पवि इदुभा कुक्षी पृणन्ति में विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः।।
(ऋग्वेद, 10-86-14)

भावार्थ – मेरे लिए इंद्राणी द्वारा प्रेरित यज्ञकर्ता लोग 15-20 बैल मार कर पकाते हैं, जिन्हें खाकर मैं मोटा होता हूँ। वे मेरी कुक्षियों को भी सोम रस से भरते हैं।
यजुर्वेद के एक मंत्र में पुरुषमेध का प्राचीन इतिहास इस तरह प्रस्तुत किया गया है।
देवा यद्यज्ञं तन्वानाऽ अवध्नन् पुरुषं पशुम।
(यजुर्वेद, 31-15)

भावार्थ – इंद्र आदि देवताओं ने पुरुषमेध किया और पुरुष नामक पशु का वध किया।
अथर्ववेद में स्पष्ट ‘ाब्दों में पांच प्राणियों को देवता के लिए बलि दिए जाने योग्य कहा है –
तवेमे पंच पशवो विभक्ता गावो अश्वाः पुरुषा अजावयः।
(अथर्ववेद, 11-29-2)
भावार्थ – हे पशुपति देवता, तेरे लिए गाय, घोड़ा, पुरुष, बकरी और भेड़ ये पांच पशु नियत हैं।

मनुस्मृति जो स्वामी दयानंद के चिंतन का मुख्य आधार रही है उसमें न केवल मांस भक्षण का उल्लेख और संकेत है, बल्कि मांस भक्षण की स्पष्ट अनुमति दी गई है। मनुस्मृति में मांस भक्षण की अनुमति के साथ मांस भक्षण की उपयोगिता और महत्व भी बताया गया है –
यज्ञे वधोऽवधः।
(मनु0, 5-39)
भावार्थ – यज्ञ में किया गया वध, वध नहीं होता।

या वेदविहिता हिंसा नियतास्ंिमश्चराचरे।
अहिंसामेव तां विद्याद्वेदाद्धर्मो हि निर्बभौ।।
(मनु0, 5-44)
भावार्थ – जिस हिंसा का वेदों में विधान किया गया है, वह हिंसा न होकर अहिंसा ही है, क्योंकि हिंसा, अहिंसा का निर्णय वेद करता है।

एष्वर्थेषु पशून्हिसन्वेदतत्त्वार्थविद्द्विजः।
आत्मानं च पशुं चैव गमयत्युत्तमां गतिम्।।
(मनु0, 5-42)
भावार्थ – वेद-कर्मज्ञ द्विज यज्ञ-कर्म में पशु वध करता है तो वह पशु-सहित उत्तम गति को प्राप्त करता है।
उष्ट्रवर्जिता एकतो दतो गोऽव्यजमृगा भक्ष्याः।
(मनु0, 5-18)
भावार्थ- ऊंट को छोड़कर एक ओर दांतवालों में गाय, भेड़, बकरी और मृग भक्ष्य अर्थात् खाने योग्य हैं।
‘वभिर्हतस्य यन्मांसं ‘ाुचि तन्मनुरब्रवीत।
क्रव्याöिश्च हतस्यान्यैश्चाण्डालाद्यैश्च दस्युभिः।।
(मनु0, 5-134)
भावार्थ- मनु के अनुसार, कुत्तों द्वारा पकड़े गए मृग, ‘ोरों द्वारा खाया गया कच्चा मांस, चांडाल व चोरों द्वारा मारे गए मृग का मांस शुद्ध है।
दौ मासौ मत्स्यमांसेन त्रीन्मासान् हारिणेन तु।
औरभ्रेणाथ चतुरः ‘ााकुनेनाथ पत्र्च वै।।
(मनु0, 3-269)
भावार्थ- विधि-विधान के द्वारा प्रदत्त मछली के मांस से मानव-पितर दो महीने तक, मृग के मांस से तीन महीने तक, भेड़ के मांस से चार महीने तक, पक्षियों के मांस से पांच महीने तक तृप्त संतुष्ट होते हैं।
“ाण्मासांश्छागमांसेन पार्षतेन च सप्त वै।
अष्टावैणेस्यमांसेन रौरवेण नवैव तु।।
(मनु0, 3-270)
भावार्थ- बकरे, चित्रमृग, भेड़ व रूरूमृग के मांस से क्रमशः सात, आठ और नौ महीने तक मानव-पितर तृप्त-संतुष्ट रहते हैं।
दशामासांस्तु तृप्यन्ति वराहमहिषामिषैः।
‘ाशकूर्मयोस्तु मांसेन मासानेकादशैव तु।।
(मनु0, 3-271)
भावार्थ- सूअर और भैंस के मांस से मानव-पितर दस महीने तक संतृप्त रहते हैं और खरगोश व कछुए के मांस से ग्यारह महीने तक।

महाभारत में आया है –
गव्येन दत्तं श्राद्धे तु संवत्सरमिहोच्येत।
(अनुशासन पर्व, 88-5)
भावार्थ- गौ के मांस से श्राद्ध करने पर पितरों की एक साल के लिए तृप्ति होती है।
महाभारत में रंतिदेव नामक एक राजा का वर्णन मिलता है जो गोमांस परोसने के कारण यशस्वी बना। महाभारत, वन पर्व में आता है –
राज्ञो महानसे पूर्व रन्तिदेवस्य वै द्विज,
द्वे सहस्रे तु वध्येते पशूनामन्वहं तदा,
अहन्यहनि वध्येते द्वे सहस्रे गवां तथा,
समांसं ददतो ह्यन्नं रन्तिदेवस्य नित्यशः,
अतुला कीर्तिरभवन्नृपस्य द्विजसत्तम,
(वनपर्व 208-8,10)
भावार्थ- राजा रंतिदेव की रसोई के लिए दो हजार पशु काटे जाते थे। प्रतिदिन दो हजार गाय काटी जाती थी। मांस सहित अन्न का दान करने के कारण राजा रंतिदेव की अतुलनीय कीर्ति हुई।

उक्त से कमअक़्ल व्यक्ति भी समझ सकता है कि महाभारत काल में गोवध और गोमांस भक्षण सराहनीय कार्य था न कि निंदनीय।
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण में भी मांस भक्षण का स्पष्ट उल्लेख है। निम्न ‘लोक देखिए-
जब भरत सेना सहित भरद्वाज मुनि के आश्रम में जाते हैं तो भरद्वाज मुनि के आश्रम में भरत का सेना सहित मृग, मोर और मुर्गों के मांस से स्वागत सत्कार होता है।
वाप्यो मैरेयपूर्णाश्च मृष्टमांसचयैर्वृताः।
प्रतप्तपिठरैश्चापि मार्गमायूरकौक्कुटैः।।
(अयोध्या कांड, 91-70)
भावार्थ – भरत की सेना में आये हुए निषाद आदि निम्न वर्गों के लोगों की तृप्ति के लिए वहां मधु से भरी हुई बावड़ियां प्रकट हो गई थी तथा उनके तटोंपर तपे हुए पिठर (कुण्ड) में पकाये हुए मृग, मोर और मुर्गाें के स्वच्छ मांस भी ढेर के ढेर रख दिये गये थे। जब रावण सीता के हरण की नीयत से साधु का वेष बनाकर वन में सीता के पास जाता है तो सीता अपना परिचय देते हुए रावण से राम के विषय में बतलाती है-
रुरून् गोधान् वराहांश्च हत्वाऽ ऽदायामिषं बहु।।
स त्वं नाम च गोत्रं च कुलमाचक्ष्व तत्त्वतः।।
एकश्च दण्डकारण्ये किमर्थ चरसि द्विज।।
(अरण्यकांड, 47-23, 24)
भावार्थ- ‘रुरू, गोह और जंगली सूअर आदि हिंसक पशुओं का वध करके तपस्वी जनों के उपभोग में आने योग्य बहुत सा फल-मूल लेकर वे अभी आयेंगे। (उस समय आपका विशेष सत्कार होगा)। ब्रहान्! अब आप भी अपने नाम गोत्र और कुल का ठीक-ठीक परिचय दीजिए। आप अकेले इस दण्डकारण्य में किस लिये विचरते हैं ?
श्री राम जब गंगा पार करके समृद्धिशाली वत्स देश (प्रयाग) में पहुंचे तो वहां लक्ष्मण सहित दोनों भाइयों ने चार महामृगों का शिकार किया।
तौ तत्र हत्वा चतुरो महामृगान्
वराहमृश्यं पृषतं महारुरुम्।
आदाय मेध्यं त्वरितं बुभुक्षितौ
वासाय काले ययतुर्वनस्पतिम्।।
(अयोध्याकांड, 52-102)
भावार्थ- वहां उन  दोनों भाइयों ने मृगया विनोद के लिए वराह, ऋश्य, पृषत् और महारुरु- इन चार महामृगों पर बाणों का प्रहार किया। तत्पश्चात् जब उन्हें भूख लगी, तब पवित्र कंद-मूल आदि लेकर सायंकाल के समय ठहरने के लिए (सीताजी के साथ) एक वृक्ष के नीचे चले गये।

स्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस का भी एक दोहा देखिए-
बंधु  सखा  संग लेहिं बोलाई। बन मृगया नित खेलहिं जाई।।
पावन मृग मारहिं जियं जानी। दिन प्रति नृपहि देखावहिं आनी।
(बालकांड, 204-1)
भावार्थ- श्रीराम चन्द्र जी भाइयों और इष्ट-मित्रों को बुलाकर साथ ले लेते हैं और नित्य वन में जाकर शिकार खेलते हैं। मन में पवित्र समझकर मृगों को मारते हैं और प्रतिदिन लाकर राजा (दशरथ जी) को दिखलाते हैं।

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण में राजा दशरथ द्वारा किए गए अश्वमेध यज्ञ का वर्णन मिलता है। बाल कांड में आता है कि राजा दशरथ के कोई संतान नहीं थी। पुत्रोत्पत्ति की लालसा से राजा दशरथ ने सरयू नदी के उत्तर तट पर यज्ञ भूमि का निर्माण कर शास्त्रोक्त रीति से यज्ञ किया।
देखिए अयोध्या राजा दशरथ द्वारा किया गया अश्व-
मेध नामक महायज्ञ किस प्रकार संपन्न हुआ।
अथ संवत्सरे पूर्णे तस्मिन् प्राप्ते तुरंगमे ।
सरय्वाश्रचोत्तरे तीरे राज्ञो यज्ञोडभ्यवर्तत ।।
ऋष्यश्रृंग पुरस्कृत्य कर्म चक्रुद्र्विजर्षभाः ।
अश्वमेधे महायज्ञे राज्ञोडस्य सुमहात्मनः ।।
नियुक्तास्तत्रः पशवस्तत्तदुद्दिश्य दैवतम्।
उरगाः पक्षिणश्चैव यथाशास्त्रं प्रचोदिताः।।
‘ाामित्रे तृ हयस्तत्र तथा जलचराश्च ये।
ऋषिभिः सर्वमेवैतन्नियुक्तं ‘ाास्त्रतस्तदा।।
पशुनां त्रिशतं तत्र यूपेषु नियतं तदा ।
अश्वरत्नोत्तमं तत्र राज्ञो दशरथस्य ह।।
कौसल्या तं हयं तत्र परिचय समन्ततः ।
कृपाणैर्विससारैनं त्रिभिः परमया मुदा ।।
पतत्त्रिणा तदा सार्धे सुस्थितेन च चेतसा ।
अवसद् रजनीमेकां कौसल्या धर्मकाम्यया।।
होताध्वर्युस्तथोदाता हस्तेन समयोजयन ।
महिष्या परिवृत्त्याथ वावातामपरां तथा ।।
पतत्त्रिणस्तस्य वपामुद्धृत्य नियतेन्द्रियः ।
ऋत्विक्परमसम्पन्नः श्रपयामास ‘ाास्त्रतः।।
धूमगन्धं वपायास्तु जिघ्रति स्म नराधिपः।
यथाकालं यथान्यायं निर्णुदन् पापमात्मनः।।
हयस्य यानि चांगनि तानि सर्वाणि ब्राह्मणाः
अग्नौ प्रास्यन्ति विधिवत् समस्ताः“ाोडशत्र्विजः
इधर वर्ष पूरा होने पर यज्ञ सम्बन्धी अश्व भूमण्डल में भ्रमण करके लौट आया। फिर सरयू नदी के उत्तर तट पर राजा का यज्ञ आरम्भ हुआ।
महामनस्वी राजा दशरथ के उस अश्वमेध नामक महायज्ञ में ़ऋष्य श्रृंग को आगे करके श्रेष्ठ ब्राह्मण यज्ञ सम्बन्धी कार्य करने लगे।
वहाँ पूर्वोक्त यूपों में शास्त्र विहित पशु, सर्प और पक्षी विभिन्न देवताओं के उद्देश्य से बाँधे गये थे ।
‘ाामित्र कर्म में यज्ञिय अश्व तथा कूर्म आदि जलचर जन्तु जो वहाँ लाये गये थे, ऋषियों ने उन सबको शास्त्र विधि के अनुसार पूर्वोक्त यूपों में बाँध दिया।
उस समय उन यूपों में तीन सौ पशु बँधे हुए थे तथा राजा दशरथ का वह उत्तम अश्वरत्न भी वहीं बाँधा गया था।
रानी कौसल्या ने वहाँ प्रोक्षण आदि के द्वारा सब ओर से उस अश्वका संस्कार करके बड़ी प्रसन्नता के साथ तीन तलवारों से उसका स्पर्श किया।
तद्नन्तर कौसल्या देवी ने सुस्थिर चित्त से धर्मपालन की इच्छा रखकर उस अश्व के निकट एक रात निवास किया।
तत्पश्चात् होता, अध्वर्यु और उदªाता ने राजा की (क्षत्रिय जातीय) महिषी ‘कौसल्या’, (वैश्य जातीय स्त्री) ‘वावाता’ तथा (शूद्र जातीय स्त्री) ‘परिवृत्ति’- इन सबके हाथ से उस अश्व का स्पर्श कराया।
इसके बाद परम चतुर जितेन्द्रिय ऋत्विक् ने विधि पूर्वक अश्वकन्द के गूदे को निकालकर शास्त्रोक्त रीति से पकाया।
तत्पश्चात् उस गूदे की आहुति दी गयी। राजा दशरथ ने अपने पाप को दूर करनेे के लिये ठीक समय पर आकर विधि पूर्वक उसके धुएँ की गन्ध को सूँघा।
उस अश्वमेध यज्ञ के अंग्भूत जो-जो हवनीय पदार्थ थे, उन सबको लेकर समस्त सोलह ऋृत्विज ब्राह्मण अग्नि में विधिवत् आहुति देने लगे।
(बालकांड, 14-1,2,30-38)

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=2301912643451095&id=2034043720237990

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=2301912643451095&id=2034043720237990


7/11 मुंबई विस्फोट: यदि सभी 12 निर्दोष थे, तो दोषी कौन ❓

सैयद नदीम द्वारा . 11 जुलाई, 2006 को, सिर्फ़ 11 भयावह मिनटों में, मुंबई तहस-नहस हो गई। शाम 6:24 से 6:36 बजे के बीच लोकल ट्रेनों ...