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Tuesday, 31 December 2019

आंदोलन और नेतृत्व के लिये नीति और रणनीति के साथ विरोध करने की पूरी तैयारी के साथ काम करे।

*छिटपुट प्रदर्शनों से आप CAA और NRC पर सरकार को झुका लेंगे तो ये आपकी गलतफहमी है?*

मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं कि जामिया और शाहीन बाग में NRC व CAA को लेकर हो रहा विरोध प्रदर्शन नेतृत्व विहीन और अदूरदर्शी है। आप अपने इलाके में प्रदर्शन कर-करके मर जाएं, इस देश में किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। जंतर-मंतर पे भी लोग धरने पे बैठे रहते हैं, कौन पूछता है?

किसी भी आंदोलन या विरोध प्रदर्शन की एक दिशा तय होती है। हवा में तलवार भांजने से कुछ नहीं होता। अपनी ऊर्जा ही नष्ट होती है। महात्मा गांधी से सीखिए। उनका आंदोलन, विरोध और प्रतिकार अहिंसक ज़रूर था लेकिन ना वह नेतृत्व विहीन था और ना दिशाहीन। सब कुछ calculated था कि ये करने से ये हासिल होगा। दांडी मार्च का ही उदाहरण ले लीजिए  या फिर चौरा-चौरी का।

सड़क पर आकर मोमबत्ती जलाने से या दो नारे लगाने से कुछ नहीं होता। निर्भया के वक़्त भी जनता मोमबत्ती लेकर इंडिया गेट पे जुटी थी। क्या हुआ केस का? दोषी अभी तक जेल की रोटी तोड़ रहे हैं। फिर कहाँ गयी वो सारी पब्लिक, जो निर्भया का नाम लेकर सड़क पर थी! इसलिए भीड़ जुटाने से आंदोलन नहीं हो जाते या लक्ष्य हासिल नहीं होता। इसके लिए आपको जनता की ताकत को रुख देना पड़ता है। तभी मंजिल हासिल होती है। ठीक वैसे ही, जैसे नदी की धारा को एक रुख देकर बिजली बनाई जाती है।

इस देश में लोकपाल बिल को लेकर हुए आंदोलन और उसका हश्र आप देख ही चुके हैं। कुछ नहीं मिला। आज लोकपाल का कोई नामलेवा नहीं। दफ्तर तक नहीं मिला। सुना है जनता के पैसे से 50 लाख महीना ऑफिस का किराया जाता है। बस जनता के गुस्से को अरविंद केजरीवाल ने भुना लिया और अपना राजनीतिक कैरियर सेट कर लिया। चालू आदमी निकला। अन्ना नामक प्राणी भी रालेगण सिद्धि में सेट हैं। जनता वहीं की वहीं है।

अगर आप ये सोच रहे हैं कि jamia और शाहीनबाग जैसे छिटपुट प्रदर्शनों से आप CAA और NRC पर सरकार को झुका लेंगे तो बहुत बड़ी गलतफहमी में हैं। दो साल बैठिए हाथ में मोमबत्ती लेकर। कुछ नहीं होने वाला। बताया तो था कि गंगा मैया को बचाने के लिए अनशन पे बैठा संत उत्तराखण्ड में मौत को प्राप्त हुआ। किसे फर्क पड़ा इस देश में?

आंदोलन कोई बच्चों का खेल नहीं। जोश तक ठीक है पर दिशा और स्ट्रेटेजी के बिना आप एक साधारण एग्जाम पास नहीं कर सकते, आंदोलन को कैसे सफल कर लेंगे! बहुत कड़वी बात बोल रहा हूँ पर ये सच है। जामिया और शाहीन बाग मामले का पोस्टमार्टम करने के बाद ये बात कही है। बाकी हर कोई अपनी मर्ज़ी का मालिक है इस देश में। शौक से विरोध प्रदर्शन करें पर ये देख लें कि बिना किसी काबिल नेतृत्व और तय दिशा के इसका हासिल क्या मिलेगा? मेरे हिसाब से जो अभी वहां हालात हैं और अदूरदर्शी नेतृत्व है, उससे होना-जाना कुछ नहीं है। करते रहिए विरोध प्रदर्शन। कभी मीडिया में 5 लाइन की खबर चल जाएगी। बस।

बिजली बनाने वाले डैम की सुनियोजित धारा बनिए, बाढ़ का पानी नहीं।

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सैयद नदीम द्वारा . 11 जुलाई, 2006 को, सिर्फ़ 11 भयावह मिनटों में, मुंबई तहस-नहस हो गई। शाम 6:24 से 6:36 बजे के बीच लोकल ट्रेनों ...