*नागरिकता संशोधन बिल*
*अध्यक्ष ओबीसी सेवा संघ*
मोदी सरकार में पास किए हुए नागरिकता संशोधन बिल में मुस्लिमेतर अन्य अल्पसंख्यकों का नागरिकता देने से; नजदीकी मुस्लिम राष्ट्रों में वहां के अल्पसंख्यकों यानी कि हिंदू बौद्ध ईसाई जैन सीख आदि पर अन्याय अत्याचार और बढ़ेगा; वहां के बहुसंख्यक मुस्लिमों में जो गुस्सा पैदा होगा; उस गुस्से के शिकार भारत के बाहर रहने वाले अल्पसंख्याक हिंदू होंगे। इससे दक्षिण आशिया खंड में शांति का बहुत बड़े पैमाने पर भंग होगा। पाकिस्तान अफगानिस्तान और बांग्लादेश से हिंदुओं को बड़ी संख्या में भगाने का उपक्रम चालू होगा; और वहां के बहुसंख्यक मुस्लिम हिंदुओं को यह कहेंगे की जाओ भारत में सिर्फ तुम्हें ही नागरिकता दी जाती है; हमें नहीं; तो हम भी तुम्हें हमारे नागरिक बनाए क्यों रखे ?
कुछ साल पहले महाराष्ट्र में जब राज ठाकरे ने बिहारियों के खिलाफ आंदोलन किया था; कुछ बिहारियों की टैक्सिया जलाई गई थी; कुछ बिहारियों को पीटा गया था; उसके परिणाम स्वरूप बिहार में कई मराठी लोगों को चलती ट्रेन से ढकेल के मारा गया था। फिर भी यह बात भारत इस एक राष्ट्र के भीतर की थी; दोनों तरफ के पीड़ितों के साथ भारतीय संविधान खड़ा था। आज ऐसी स्थिति नहीं है। अब जो बात है वह अलग-अलग राष्ट्रों की है। भारत के बाहर पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान में रहने वाले हिंदुओं के प्रति सुरक्षा का बहुत बड़ा गंभीर मामला निर्माण हो सकता है; *भारत-पाकिस्तान के विभाजन के दरमियान ऐसा ही भावनिक मामला पैदा हुआ था; और फिर भारत और पाकिस्तान दोनों तरफ के अल्पसंख्यकों की लाशें बिछी थी। अब यह जख्म भर गई थी। इस जख्म को कुरेद कर सरकार ने जो कदम उठाया है; भविष्य में इस देश के भीतर भी हिंदू मुसलमान के बीच की दरी बढ़ा सकता है; आप लोगों को कितने दिन तक भय में रख सकते हो; सुकून की बात यही है कि इस बिल के विरुद्ध भारत की राज्यसभा में 125 के बनाम 105 वोट गिरे; जो भारत का सर्व धर्म समभाव स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है; और यहां के अल्पसंख्यकों को खासकर के मुसलमानों को यह हौसला देता है कि भारत में आज भी सेकुलरिज्म जिंदा है सर्वधर्म समभाव जिंदा है।* महाराष्ट्र में जिस कदर भाजपा के मुंह में आया हुआ निहा निवाला ऐन वक्त पर छीन लिया गया; वैसा ही कुछ दिनों में भारत में होगा। *भारत का संविधान प्रचंड बुद्धिवादी मानवतावादी डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने लिखा है; भारत का संविधान बहुत विचारों के साथ बना है; इसे बनाने में 2 साल 11 महीने 17 दिन लगे थे* क्षणिक भावनिक जीत कोई बड़ी चीज नहीं है। यह विधेयक लोकसभा में बड़े मतों से पारित हुआ उस समय अमित शाह की जो बात थी; वह बात आज राज्यसभा में नहीं दिखी; नरम दिखे; कहीं-कहीं तो बौखलाई गए; शब्द मिलना मुश्किल हुआ; लोकसभा जैसी खुशी नहीं थी; चेहरे पर मायूसी थी। *बार-बार यह कहना पड़ रहा था यह बिल किसी की नागरिकता छीन नहीं रहा है बल्कि नागरिकता दे रहा है। बड़ी कमजोर दलील दी जा रही थी। मगर समझने वाले समझ रहे थे हिंदू मुस्लिम वोटों की राजनीति करने के लिए यह सब किया जा रहा है।*
*भारत का संविधान कलम 14 सबको कायदे के सामने समान दिखता है और कानून की समान सुरक्षा देता है। सबको मतलब सिर्फ भारतीय नागरिकों को नहीं दुनिया के किसी भी आदमी को। हम पर गोली चलाने वाले कसाब को भी चाहे तो हम जिंदा मार सकते थे मगर हमारा एक कॉन्स्टेबल शहीद ओंबले ने अपनी जान दी मगर कसाब को जिंदा पकड़ा* ,.... और आज भी 26 नवंबर को संविधान दिन को हम शहीद ओंबले के सामने अपना सर झुकाते हैं... *मरते मरते भी ओंबले ने भारत के संविधान के कलम 14 का पालन किया। मारने वाला चाहे आतंकवादी भी हो मगर उसके साथ भी कानून बराबरी का व्यवहार करेगा और बराबरी की सुरक्षा प्रदान करेगा..... हमने कसाब का न्याय किया। उस से जानकारी हासिल की। उस जानकारी कि मिलते अंतरराष्ट्रीय फोरम पर पाकिस्तान को एक्सपोज किया। और पूरा न्याय करते हुए कसाब को भी फांसी पर लटकाया। हमने तो आतंकवादी कसाब के साथ भी भारतीय संविधान के कलम 14 के तहत व्यवहार किया; और यहां तो बात अपनी जान बचाते आने वाले गिड़गिड़ाने वाले मुस्लिम अल्पसंख्यकों की है; वाह रे शाह तूने क्या न्याय किया... बस इस बल पर कि आज तुम्हारे साथ मेजॉरिटी है... वह मेजॉरिटी सांसदों की है... और यह सांसद बराबर है या नहीं इसका फैसला आने वाला चुनाव करेगा... छत्रपति शिवाजी महाराज महात्मा ज्योतिराव फुले राजर्शी शाहू महाराज डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इन महापुरुषों के महाराष्ट्र भूमि से मैं यह बात कह रहा हूं। शहीद ओंबले इस महाराष्ट्र का पुत्र था।*
*शहीद ओंबले अमर रहे। शहीद ओंबले जिंदाबाद*
*जय भारत जय संविधान*
मोदी सरकार में पास किए हुए नागरिकता संशोधन बिल में मुस्लिमेतर अन्य अल्पसंख्यकों का नागरिकता देने से; नजदीकी मुस्लिम राष्ट्रों में वहां के अल्पसंख्यकों यानी कि हिंदू बौद्ध ईसाई जैन सीख आदि पर अन्याय अत्याचार और बढ़ेगा; वहां के बहुसंख्यक मुस्लिमों में जो गुस्सा पैदा होगा; उस गुस्से के शिकार भारत के बाहर रहने वाले अल्पसंख्याक हिंदू होंगे। इससे दक्षिण आशिया खंड में शांति का बहुत बड़े पैमाने पर भंग होगा। पाकिस्तान अफगानिस्तान और बांग्लादेश से हिंदुओं को बड़ी संख्या में भगाने का उपक्रम चालू होगा; और वहां के बहुसंख्यक मुस्लिम हिंदुओं को यह कहेंगे की जाओ भारत में सिर्फ तुम्हें ही नागरिकता दी जाती है; हमें नहीं; तो हम भी तुम्हें हमारे नागरिक बनाए क्यों रखे ?
कुछ साल पहले महाराष्ट्र में जब राज ठाकरे ने बिहारियों के खिलाफ आंदोलन किया था; कुछ बिहारियों की टैक्सिया जलाई गई थी; कुछ बिहारियों को पीटा गया था; उसके परिणाम स्वरूप बिहार में कई मराठी लोगों को चलती ट्रेन से ढकेल के मारा गया था। फिर भी यह बात भारत इस एक राष्ट्र के भीतर की थी; दोनों तरफ के पीड़ितों के साथ भारतीय संविधान खड़ा था। आज ऐसी स्थिति नहीं है। अब जो बात है वह अलग-अलग राष्ट्रों की है। भारत के बाहर पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान में रहने वाले हिंदुओं के प्रति सुरक्षा का बहुत बड़ा गंभीर मामला निर्माण हो सकता है; *भारत-पाकिस्तान के विभाजन के दरमियान ऐसा ही भावनिक मामला पैदा हुआ था; और फिर भारत और पाकिस्तान दोनों तरफ के अल्पसंख्यकों की लाशें बिछी थी। अब यह जख्म भर गई थी। इस जख्म को कुरेद कर सरकार ने जो कदम उठाया है; भविष्य में इस देश के भीतर भी हिंदू मुसलमान के बीच की दरी बढ़ा सकता है; आप लोगों को कितने दिन तक भय में रख सकते हो; सुकून की बात यही है कि इस बिल के विरुद्ध भारत की राज्यसभा में 125 के बनाम 105 वोट गिरे; जो भारत का सर्व धर्म समभाव स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है; और यहां के अल्पसंख्यकों को खासकर के मुसलमानों को यह हौसला देता है कि भारत में आज भी सेकुलरिज्म जिंदा है सर्वधर्म समभाव जिंदा है।* महाराष्ट्र में जिस कदर भाजपा के मुंह में आया हुआ निहा निवाला ऐन वक्त पर छीन लिया गया; वैसा ही कुछ दिनों में भारत में होगा। *भारत का संविधान प्रचंड बुद्धिवादी मानवतावादी डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने लिखा है; भारत का संविधान बहुत विचारों के साथ बना है; इसे बनाने में 2 साल 11 महीने 17 दिन लगे थे* क्षणिक भावनिक जीत कोई बड़ी चीज नहीं है। यह विधेयक लोकसभा में बड़े मतों से पारित हुआ उस समय अमित शाह की जो बात थी; वह बात आज राज्यसभा में नहीं दिखी; नरम दिखे; कहीं-कहीं तो बौखलाई गए; शब्द मिलना मुश्किल हुआ; लोकसभा जैसी खुशी नहीं थी; चेहरे पर मायूसी थी। *बार-बार यह कहना पड़ रहा था यह बिल किसी की नागरिकता छीन नहीं रहा है बल्कि नागरिकता दे रहा है। बड़ी कमजोर दलील दी जा रही थी। मगर समझने वाले समझ रहे थे हिंदू मुस्लिम वोटों की राजनीति करने के लिए यह सब किया जा रहा है।*
*भारत का संविधान कलम 14 सबको कायदे के सामने समान दिखता है और कानून की समान सुरक्षा देता है। सबको मतलब सिर्फ भारतीय नागरिकों को नहीं दुनिया के किसी भी आदमी को। हम पर गोली चलाने वाले कसाब को भी चाहे तो हम जिंदा मार सकते थे मगर हमारा एक कॉन्स्टेबल शहीद ओंबले ने अपनी जान दी मगर कसाब को जिंदा पकड़ा* ,.... और आज भी 26 नवंबर को संविधान दिन को हम शहीद ओंबले के सामने अपना सर झुकाते हैं... *मरते मरते भी ओंबले ने भारत के संविधान के कलम 14 का पालन किया। मारने वाला चाहे आतंकवादी भी हो मगर उसके साथ भी कानून बराबरी का व्यवहार करेगा और बराबरी की सुरक्षा प्रदान करेगा..... हमने कसाब का न्याय किया। उस से जानकारी हासिल की। उस जानकारी कि मिलते अंतरराष्ट्रीय फोरम पर पाकिस्तान को एक्सपोज किया। और पूरा न्याय करते हुए कसाब को भी फांसी पर लटकाया। हमने तो आतंकवादी कसाब के साथ भी भारतीय संविधान के कलम 14 के तहत व्यवहार किया; और यहां तो बात अपनी जान बचाते आने वाले गिड़गिड़ाने वाले मुस्लिम अल्पसंख्यकों की है; वाह रे शाह तूने क्या न्याय किया... बस इस बल पर कि आज तुम्हारे साथ मेजॉरिटी है... वह मेजॉरिटी सांसदों की है... और यह सांसद बराबर है या नहीं इसका फैसला आने वाला चुनाव करेगा... छत्रपति शिवाजी महाराज महात्मा ज्योतिराव फुले राजर्शी शाहू महाराज डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इन महापुरुषों के महाराष्ट्र भूमि से मैं यह बात कह रहा हूं। शहीद ओंबले इस महाराष्ट्र का पुत्र था।*
*शहीद ओंबले अमर रहे। शहीद ओंबले जिंदाबाद*
*जय भारत जय संविधान*
*प्रदीप ढोबले*
*अध्यक्ष ओबीसी सेवा संघ*