From: *Salim Hafezi*
Ahmedabad
salimhafezi@gmail.com
*Dt. Aug 2, 2021.*
*जनाब असदुद्दीन ओवैशी साहब*
सदर, ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लिमीन
हैदराबाद (तेलंगाना)
*Subject:* _*गुजरात मजलिस को लेकर कुछ अहम बातें, जो आप को जानना बेहद जरूरी हैं।*_
*1.* 19 जनवरी 2021 को आप ने गुजरात मजलिस के सदर के तौर पर जनाब साबिर क़ाबलिवाला को जिम्मेदारी थी। उस के बाद आप के गुजरात दौरे से गुजरात के मुसलमानों में एक नई राजनीतिक ऊर्जा का जोश आया था जिस के चलते गुजरात मे अहमदाबाद में 7, मोडासा में 9, गोधरा में 7 और भरूच में 1 कुल मिलाकर 24 काउंसिलर मजलिस के सिम्बोल पर चुनकर आये थे।
*2.* गुजरात के मुसलमान मजलिस को इस लिए पसंद करने लगे थे कि मजलिस मुसलमानो की आवाझ बनेगी और मुसलमानों में नई लीडरशिप पैदा करेगी लेकिन बदनसीबी से इन दोनों पहलू पर गुजरात मजलिस ने कोई ध्यान नहीं दिया। गुजरात मे मजलिस के आने के बाद गुजरात मे मुसलमानो पर 6 सामुदायिक हमले हुए और पुलिस उत्पीड़न के दो व्यक्तिगत मामले सामने आए। गुजरात के भुज, सोनगढ़, वटवा, कलोल, भावनगर, और कपडवंज में मुस्लिम बस्तियों पर, मस्जिद पर, और दरगाहों पर हमले हुए। इन तमाम 6 मामले में गुजरात मजलिस और सदर साबिर क़ाबलिवाला मुस्लिमो की हामी बनकर सामने नहीं आये। इस के उलट कपडवंज मामले में डीजीपी को लिखे लेटर में साबिर क़ाबलिवाला ने मुस्लिमो को ही असामाजिक दंगाई बताया। इस के अलावा अहमदाबाद के दरियापुर वोर्ड में जहां मजलिस ने चुनाव लड़ा था वहां पर रेहान नामक लड़के पर पुलिस ने अत्याचार किया जिस में एसडीपीआई तो पीड़ित परिवार के साथ खड़ी रही मग़र मजलिस नदारद थी। इसी प्रकार सूरत में मास्क न पहनने के मामले में समीर को पुलिस ने इतना पीटा कि आज वो अस्पताल में कोमा में है, लेकिन आज दस बारह दिन के बाद भी साबिर क़ाबलिवाला को उस लड़के को देखने के लिए अस्पताल जाने की फुरसत नहीं हैं। गुजरात के मुसलमान मजलिस की हरकत पर नज़र बनाये हुए हैं। गुजरात मजलिस मुसलमानो की आवाझ बनने में नाकाम रही है ये आप को भी तस्लीम करना पड़ेगा।
*3.* गुजरात मजलिस में आज एक मात्र पोस्ट सदर की हैं। 80 लाख मुसलमानो की लीडरशिप करने के लिए गुजरात मजलिस में कम से कम 80 स्टेट ऑफिसियल होने चाहिए। जब कि साबिर क़ाबलिवाला ने अपनी नियुक्ति के 7 महीने बाद भी किसी को स्टेट बॉडी में जगह नहीं दी हैं। जिस से साफ होता है कि मजलिस को मुसलमानो में लीडरशिप पैदा करने की कोई रुचि नहीं हैं।
*4.* गुजरात मजलिस ने 7 महीने में अब तक एक भी धरना, प्रोटेस्ट, प्रदर्शन, नुक्कड़ सभा या पब्लिक मीटिंग नहीं की हैं। गुजरात मे मुसलमानो की बड़ी समस्याओ में पुलिस दमन, अशांत विस्तार धारा, स्टेट बजेट में माइनॉरिटी बजट का आवंटन, आरटीई में मुस्लिम बच्चो से भेदभाव, मुस्लिम विस्तारो में म्युनिसिपल सेवा का अभाव, वगैरह हैं। लेकिन गुजरात मजलिस ने आज तक इन मुद्दों पर कोई आवाझ नहीं उठाई हैं। हम जब गुजरात मजलिस का उल्लेख करते हैं तो उस का मतलब सदर साबिर क़ाबलिवाला है क्योंकि गुजरात मजलिस में उन के सिवा कोई ओर की हिस्सेदारी है ही नहीं। साबिर क़ाबलिवाला ने अलग अलग विस्तार के लिए ऑब्ज़र्वर की नियुक्ति की है। ये तमाम लोग साबिर क़ाबलिवाला के या तो नौकर रह चुके है, या उन की अपनी छिपा कॉम्युनिटी से है, या फिर कोंग्रेस के लिए सेटिंग करनेवाले लोग है। दो चार तो ऐसे भी हैं जिन्होंने कभी भी पोलिंग एजंट के तौर पर भी काम नही किया है। मसलन राजनिति का र भी नहीं आता हो लेकिन चाटुकारिता और जिहजुरी आती हो ऐसे लोगो को मजलिस का निरीक्षक पद दिया गया है। लेनेवाले को लगता है कि उसे बड़ी जिम्मेदारी मिली है लेकिन देनेवाले को पता है कि 30, 35 लोगो को स्टेट के अलग अलग हिस्से में बांट दिया है यानि जब निर्णय लेने का मामला आएगा तब सदर के अलावा किसी को कुछ बोलने की जगह ही नहीं होगी।
*5.* मजलिस के 24 काउंसिलरों के साथ साबिर क़ाबलिवाला का व्यवहार बॉसगिरी और जोहुकमी का है जिस के चलते गोधरा नगरपालिका में भाजपा फिर से सत्ता पर आ गई हैं। मोडासा के चार काउंसिलरों ने मजलिस से इस्तीफा दे दिया है। साबिर क़ाबलिवाला ने सूरत, वडोदरा, अहमदाबाद में सिटी प्रेसिडेंट और कच्छ जिला प्रमुख की नियुक्ति की थी जिस में से सूरत प्रमुख ने हाल ही में इस्तीफा दे दिया हैं। अहमदाबाद शहर बॉडी में भी अब तक दो तीन इस्तीफे गिर चुके हैं।
*6.* अहमदाबाद के 192 काउंसिलर में से मजलिस के सिर्फ 7 काउंसिलर हैं। नियमोनुसार कुल काउंसिलर के दस प्रतिशत या दस प्रतिशत वाली सब से बड़ी विपक्षी पार्टी को विपक्ष नेता पद मिल सकता हैं। मजलिस इस नियम में फिट नहीं बैठती है फिर भी मजलिस ने अहमदाबाद महानगरपालिका में विपक्ष नेता पद की दावेदारी कर के राजनितिक हल्के में अपनी किरकीरी करवाई हैं। लोकल न्यूज़ पेपर में साबिर क़ाबलिवाला की इस मामले में काफी मझम्मत हुई और सोसियल मीडिया पर मजलिस की प्रतिष्ठा को आंच आई।
*7.* राज्य में विधायकी चुनाव के लिए काफी कम समय बचा हैं लेकिन गुजरात मजलिस की तरफ़ से कोई राजनितिक कार्रवाई या हलचल नहीं हो रही हैं। इस के उलट अहमदाबाद स्कूल बोर्ड के चुनाव में साबिर क़ाबलिवाला ने मजलिस की उम्मीदवारी वापस ले ली, जिस के चलते स्कूल बोर्ड में 11 सदस्य भाजपा के और एक सदस्य कोंग्रेस का निर्विरोध चुना गया। मजलिस के 7 और कोंग्रेस के एक्सेस वोट से मजलिस का उम्मीदवार चुनाव जीत सकता था लेकिन सूत्रों से पता चलता है कि भाजपा के दबाव में साबिर क़ाबलिवाला ने मजलिस का नॉमिनेशन वापस ले लिया। अगर हारने का इतना ही डर है तो फिर गुजरात मजलिस को राज्य विधानसभा की एक भी सीट पर चुनाव लड़ना नहीं चाहिए। क्योंकि गुजरात की 11 मुस्लिम सीट पर अगर कोंग्रेस मजलिस दोनों पार्टी मुस्लिम उम्मीदवार उतारती है तो निस्संदेह इन तमाम सीट पर भाजपा आसानी से जीत दर्ज कर लेगी। तो क्या ऐसे में मजलिस विधानसभा चुनाव में नहीं उतरेगी?
*8.* गोधरा नगरपालिका में नतीजे आते ही साबिर क़ाबलिवाला ने इम्तियाज जलील साहब को अपडेट दिया था कि गोधरा में भाजपा को रोक नहीं सकते। फिर जलील साहब को मैने क्लियर किया था कि मजलिस की तरफ से कोई कोशिश हुई ही नहीं है, अगर कोशिश करते है तो हम भाजपा को रोक सकते है। फिर इम्तियाज जलील साहब ने मैटर पर ध्यान दिया और गोधरा में भाजपा को रोका था। लेकिन साबिर क़ाबलिवाला ने गोधरा में मजलिस का संघठन खड़ा ही नही होने दिया जिस के चलते गोधरा के निर्दलीय काउंसिलरों पर मजलिस का प्रभाव खत्म हुआ और 3 महीने के भीतर ही गोधरा में भाजपा सत्ता पर काबिज हो गईं। अहमदाबाद में भी जमालपुर वोर्ड में पार्टी की स्टेट ऑफिस है उस वोर्ड में आज तक साबिर क़ाबलिवाला ने किसी को वोर्ड प्रमुख नहीं बनाया है न ही स्टेट के किसी भी बूथ पर बूथ कमिटी बन पाई हैं।
*9.* अहमदाबाद मजलिस ने दरियापुर वोर्ड में महंगाई विरोधी प्रदर्शन किया उस मे सिर्फ 14 कार्यकर्ता उपस्थित रहे जब कि ये वो एरिया है जहां पर मजलिस की सब से बड़ी चुनावी रैली निकली थी जो रात 8 बजे से सुबह साढ़े तीन बजे तक एरिया में घूमी थी। आज ऐसा क्या हो गया कि मजलिस के कार्यक्रम में सिर्फ 14 लोग आते हैं।
*10.* गुजरात मजलिस की ऑफिस में 30 से ज्यादा लोगो की बैठक क्षमता नही है, और मजलिस ने आज तक कोई कार्यक्रम ऑफिस के बाहर नहीं किया जिस से आप को गुजरात मजलिस की कार्यपद्धति और कार्यक्षमता का परिचय होता हैं। सदर के तौर पर साबिर क़ाबलिवाला ने मजलिस के पुराने साथियो, राजनितिक लोगो को, कोंग्रेस छोड़कर मजलिस के लिए काम करनेवालो को अपने आप से दूर रखा हैं। उस के बजाय खुद के नौकरो, दोस्तो, और गैर राजनीतिक लोगो को इकट्ठा कर लिया है, जिन्हें न तो संघठन बनाने की सूझबूझ है न ही राजनीतिक समझ हैं। अगर ऐसे लोगो को लेकर मजलिस गुजरात विधायकी चुनाव में जाती है तो अत्यंत खराब परिणाम के लिए हमे तैयार रहना चाहिये। गुजरात के मुसलमान साबिर क़ाबलिवाला से नाउम्मीद हो चुके हैं। आये दिन ये बात सामने आती रहती है कि साबिर क़ाबलिवाला कोंग्रेस के नेताओ के सम्पर्क में है, जिस के चलते मुसलमानो को मजलिस से भरोषा उठता जा रहा हैं।
*11.* गुजरात मजलिस द्वारा 15 अगस्त को गोलगप्पा हरिफाई का आयोजन किया जा रहा है, जिस में महिलाओं से रजिस्ट्रेशन के नाम पर आधार कार्ड और फोटो मांगा जा रहा हैं। आप हमेशा इस्लामी वेल्यूस की बात करते हैं, मगर एक पोलिटिकल पार्टी में गोलगप्पे के बहाने महिलाओंके फोटो और आधार कार्ड इकट्ठा करना कितना सलामत और मुनासिब हैं? हाल ही में मोडासा की 4 महिला काउंसिलरों ने मजलिस से इस्तीफा दे दिया हैं। इस घटना की जड़ तक जाओगे तो पता चलेगा कि महिलाओं के आधार कार्ड और फोटो मजलिस में इकट्ठा करना कितना बड़ा जोखिम हैं।
*12.* इस के अलावा वामपंथी एनजीओ जीवी रह चुके अहमदाबाद मजलिस के प्रमुख शमसाद पठान और साबिर क़ाबलिवाला द्वारा एक एनजीओ को गुजरात मजलिस के साथ जोड़कर केक डेकोरेशन कोर्स करवाया जा रहा हैं। तीन दिन के इस प्रोग्राम के लिए महिलाओ को सरकार मान्य सर्टिफिकेट की लालच देकर 500 रुपये की रजिस्ट्रेशन फीस वसूल की जा रही हैं। गुजरात सरकार केक डेकोरेशन कोर्स न तो करवाती हैं, न ही इस कोर्स के लिए कोई सर्टिफिकेट इसयू करती हैं। ये मजलिस के नाम पर 500 रुपये वसूलने की धोखाधड़ी हैं। वैसे भी इस्लाम मे बर्थ डे मनाना जायज नहीं है, ये ईसाइयो की रिवायत हैं जिसे मुस्लिमो में आम करने की कोशिश हो रही हैं। आप जानते है कि ज्यादातर मुस्लिम बर्थडे नहीं मनाते हैं। इस कार्यक्रम के जरिये रोजगारी मिलने की भी लालच दी जा रही हैं। जाहिर सी बात हैं कि अगर केक डेकोरेशन से रोजगारी मिलती भी हैं तो मुस्लिम महिलाओं को गैर मुस्लिम मालदारों के घर जाकर या उन के सम्पर्क में आकर केक डेकोरेट का काम करना होगा। लंबी अवधि में ये मुस्लिम महिलाओमें फ़ितने का बाईश बनेगा। लिहाजा आप की जानिब से गुजरात मजलिस को इन दोनों कार्यक्रमो को रद्द करने का आदेश जारी होना बहुत जरूरी हैं।
उम्मीद है, आप जल्द से जल्द गुजरात मजलिस के मामले को हाथ में लेंगे ताकि गुजरात मजलिस को मुस्लिम महिलाओं में फितना फैलाने से बचाया जा सके और समय रहते विधायकी चुनाव के लिए पार्टी को फिर से तैयार किया जाए। मजलिस पोलिटिकल पार्टी हैं तो उसे पोलिटिकल ही काम करने की हिदायत दी जाए, न कि मुस्लिम महिलाओं से आधार कार्ड, फोटो, और 500 रुपया लेकर उन्हें रोजगारी के लिए ललचाया जाए और कॉम को फितनाखोरी में उलझा दिया जाए।
✍️ *Salim Hafezi*
90331 64631
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*Cc: Imtiyaz Jaleel Sahab*
M.P. Aurngabad.