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Monday, 23 August 2021

_मौजूदा_मुस्लिम_लड़कियों_का_कड़वा_सच



👉  मुर्तद होती मुस्लिम लड़कियों की बहुत सी कहानियाँ जान लेने के बाद आइये एक कड़वा सच और जान लीजिए कि आज हम इस्लामी तारीख़ के सबसे बड़े अलमिया(त्रासदी) पर क्यों खड़े हैं.? और क्यों हमारी बहन बेटियां अपनी मर्ज़ी से कुफ़्र और शिर्क को गले लगा रही हैं...




👉  अगर मैं आप से कहूँ कि आज हिंदुस्तान की *70% नौजवान मुस्लिम लड़कियाँ ईमान लफ्ज़ का मतलब तक नहीं जानतीं*, हिजाब करने वाली *60%* लड़कियाँ हिजाब की अज़मत नहीं जानतीं, *50%* लड़कियाँ न आख़िरत के बारे में जानती हैं न आख़िरत की उनको फिक्र है, और इस्लामी तारीख़ और मोमिनों की क़ुर्बानियों के सिर्फ़ कोई दो वाक़ये तो *90%* लड़कियाँ नहीं बता पाएंगी, नमाज़ रोज़ा करने वाली *60%* लड़कियाँ नमाज़ रोज़े का मक़सद और ख़ुदा के हुक्मों से वाकिफ़ नहीं हैं, *40%* लड़कियों के दिलों में अपनी ऐश के आगे ईमान वालों की तक़लीफ़ और उन पर हो रहे ज़ुल्मों से कोई हमदर्दी नहीं है, *60%* लड़कियों की नज़र में इस्लामी उसूल उनके ऊपर ज़ुल्म और पाबंदी जैसे हैं, तो क्या आप इस कड़वे सच को क़ुबूल कर पाएंगे...

👉  मगर आपको ये कड़वा सच इसलिए क़ुबूल करना पड़ेगा कि आज हमारी क़ौम की बेटियां वो कर रही हैं जो *इस्लामी तारीख़ में कमज़ोर से कमज़ोर मुसलमानों की ख़्वातीन ने नहीं किया था..* वो उन कुफ़्र के हामियों के बिस्तर गर्म कर रही हैं, शादियाँ कर रही हैं, जिनके हाथ छुआ पानी ख़ुद उनके समाज के लोग नहीं पी सकते.... वो हिजाब इसलिए पहन रही हैं कि *अय्याशी के लिए जाते वक़्त कोई अपना उनको पहचान न सके*, हिजाब देख कर *दुनिया उसको दीनदार समझें* और *शक न करें*, हिजाब/बुर्क़ा पहन कर वो *ख़ूबसूरत दिखे* और उसके *सादा कपड़े* उस में छुप जाएं, यानि *हिजाब उनके लिए एक फ़ैशन से ज़्यादा कुछ नहीं है*, वो *नमाज़ रोज़ा सिर्फ़ मुस्लिम घर में पैदा होने की वजह से एक रस्म के तौर पर अदा कर रही हैं*... अगर *किसी को ये तल्ख़ हक़ीक़त चुभ रही हो तो वो अपने घर की ख़्वातीन से कुछ इस्लामी सवाल कर के देख सकता है... और उनसे क्यों बस अपने आप से ये एक सवाल कर लीजिए कि आपने ज़िन्दगी में कितनी बार अपनी ख़्वातीन से दीन-ईमान, आख़िरत और ख़ुदा के अज़ाब की बात की है...* मगर इस सवाल का जवाब आम मुसलमान तो छोड़िए बल्कि बहुत से इमाम न दे पाएँगे...  😢😢

👉  और ये कड़वा सच इसलिए भी क़ुबूल करना पड़ेगा कि आज जब कोई सुबह ऐसी न आती हो, जो मुसलमानों पर ज़ुल्म और जब्र की दास्ताँ साथ न लाती हो..  तब उन्ही मुसलमानों की औलादें उन पर ज़ुल्म करने वाले ज़ालिमों और कुफ़्र के हामियों की अय्याशियों का खिलौना बन रही हों तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उन ख़्वातीनों के दिलो-ज़हन और ईमान पर गुनाह और गुमराही की कितनी गहरी कालिख पुती हुई है जो इनको न कुछ देखने देती है ना सुनने देती है ना सोचने-समझने देती है.. *न इनको क़ब्र के अज़ाब और तन्हाई की याद आती है, न ख़ुदा का ख़ौफ़, न आख़िरत का दर्दनाक अज़ाब इनके दिलों को झिंझोर पाता है*.. इनकी हालात उस मुर्दा इंसान के ही जैसी है जिन तक ईमान की दौलत पहुंची ही नहीँ... 

👉  और इस कड़वी हक़ीक़त का अंजाम ये है कि आम मुसलमान तो छोड़िए बल्कि बड़े बड़े हाजी-नमाज़ियों के घरों से घिनौने मामले सामने आ रहे हैं, *एक मुस्लिम लड़की दूसरी मुस्लिम लड़की को रोकने के बजाए शिर्क अपनाने में मदद कर रही है, बहुत से माँ बाप अपनी औलाद को ये नहीँ समझा पा रहे कि शिर्क और ईमान में क्या बहतर है और उनके शिर्क में रज़ामंदी दे रहे हैं,  और ऐसा होना भी था क्योंकि, हम हिंदुस्तानी मुसलमान इस खुशफ़हमी का शिकार हो चुके हैं कि हम बहुत अच्छे हैं। और हमारे बच्चे भी*... और हम ये जानते भी नहीं के *जिसके हाथ में मोबाइल है, उसकी पहुंच दुनिया के हर गुनाह तक है और इसी बेख़याली में हमने अपने बच्चों को कभी ये भी नहीं सिखाया कि उनको इस मोबाइल का सही इस्तेमाल कैसे करना है*....

👉  हमने मोबाइल तो सबके हाथों में थमा दिए मगर *दीन*..??  ख़ास कर ख़्वातीन के मामले में हमने ये किया कि *उनसे दीन ख़ुद अपने हाथों से छीन लिया*... आप दुनिया के किसी काम में मुस्लिम ख़्वातीन की तादाद देखेंगे... तो कहेंगे कि *हर बाज़ार में मुस्लिम औरतें ज़्यादा हैं*, सिनेमा में भी, पार्कों में भी, मॉल में भी, नौकरी में, स्कूलों में भी, यहां तक के हर बेहयाई के काम में वो मर्दों से पीछे नहीं हैं *लेकिन दीन में*..?? दीन में आलम ये है कि *वो दूर दूर तक दिखाई नहीं देती*..दीनी कामों में मर्दों के मुक़ाबले उनकी तादाद *10%* भी नहीं है.... इसीलिए आज हमारी 10, 20% ख़्वातीन में ही सच्चा दीन बाक़ी रह गया है और ये हमने ख़ुद किया है... *हमने उनकी इज़्ज़त और हिफ़ाज़त का हवाला दे कर उनको दीनी हिस्सेदारी से अलग कर के घरों में तो बैठा दिया मगर क्या उनके लिए घर तक दीनी इल्म पहुंचाने की कोई पहल की*.. नहीं की हरगिज़ नहीं की.. जब हमने उनको बाज़ारों से, पार्कों से, सिनेमा से नहीं रोका तो *दीनी कामों से क्यों रोक दिया*...?? है किसी के पास कोई *जवाब*...?? और इसका नतीजा ये निकल रहा है कि रोज़ सोशल मीडिया पर ऐसी लड़कियों से सामना होता है जिनकी ज़िन्दगी में एक इस्लामी अमल नहीं होता मगर *उनको ये शिकायत है कि उनको इस्लाम आज़ादी से नहीं जीने देता*, और वो ज़ालिमों और बेहयाओं कि तरफ़ माइल दिखाई देती हैं, *आलम ये है कि आज आप किसी ग़ैरमुस्लिम को इस्लाम आसानी से समझा सकते हैं लेकिन आज की मुस्लिम लड़कियों को नहीं*.... 😢😢

👉 यानि *उन पर दुश्मन-ए-इस्लाम की चारो तरफ़ से की जा रही तमाम साजिशों और प्रोपगेंडों का पूरा असर है। और उन साजिशों से मुक़ाबला करने वाले दीनी इल्म से उनके दिल और ज़हन पूरी तरह ख़ाली हैं*... और उनको दीनी इल्म से ख़ाली करने में हमारे रहनुमाओं के साथ हमारे वालिदैन का पूरा हाथ है, इसलिए *आज इस क़ौम की बेटियां उन लोगों की शैतानी ख़्वाहिशात पूरा करने का ज़रिया बन रही हैं... जो लोग कभी इस्लामी शहज़दियों की जूती की धूल के लायक़ भी न थे, वो अपने हाथों ख़ुद को बाज़ारू बना रही हैं, ख़ुद जहन्नुम ख़रीद रही हैं, एक लड़की एक नस्ल को शिर्क के हवाले कर जहन्नुम में धकेल रही है या कुफ़्र के हामियों के बिस्तर गर्म कर के आने वाले मुसलमानों की नस्लें गंदी कर रही हैं*.. आज ये जुमला हमारी क़ौम पर साबित हो रहा है कि *किसी क़ौम को बर्बाद करना हो तो उस पर बम गोलियां न बरसाओ बल्कि, उसमें बेहयाई पैदा कर दो फिर वो क़ौम ख़ुद ही बर्बाद हो जाएगी*...

👉 *जो काम 1400 साल में यहूद और नसारा न कर सके वो आज क़ौम की लड़कियाँ ख़ुद कर दे रही हैं*.. आज ज़्यादातर लड़कियाँ नमाज़ रोज़ा सिर्फ़ इसलिए करती हैं कि उनके वालिदैन ये करते हैं। और *उनको भी कुछ आयतें रटा दी गई होती हैं, इस से ज़्यादा उनको दीन के बारे में कुछ नहीं पता होता है*, वरना *वो हिजाब पहन कर ख़ुदा से डरती न के गुनाह करती, वो सहेली को गुनाह से रोकतीं न के सहारा देतीं.. उनके दिलों में ज़ालिमों से नफ़रत होती न के मुहब्बत, उनको ख़ुदा का डर होता न के हराम की ख्वाहिश, यानि उनकी इबादतें ख़ुद उनके दिल और नफ़्स तक न पहुंच सकीं तो वो ख़ुदा तक क्या ख़ाक पहुंचेंगी*....

👉 ऊपर से *हमारे मुआशरे और रहनुमाओं की वो गहरी नींद जो शायद कभी नहीं टूटेगी*.. हमने कितनी आसानी से को-एजुकेशन, फिल्में, मोबाइल, माहौल, वालिदैन और फ़ैशन को इसका ज़िम्मेदार साबित कर दिया और *अपने गिरेबान में झांकने की हिम्मत नहीं दिखाई*... जबकि ये साफ़ साफ़ हमारी नाकामी और *कमज़ोर ईमान का मामला है*.. हमारे मज़हबी रहनुमा जो वजहें बता रहे हैं, तो क्या हम आज तमाम लड़कियों को स्कूलों, नौकरियों, मोबाईलों, मुआशरे, बाज़ारों, से दूर कर दें..?? .. या फिर उनको ये सबक़ सिखाएँ के वो मौजूदा हालात में रहते हुए इन साजिशों से कैसे अपने ईमान की हिफ़ाज़त करें....

👉 तारीख़ के बदतरीन मोड़ पर भी हमारे रहनुमाओं ने कितनी बेशर्मी से सिर्फ़ चंद तहरीर या वीडियो रिकॉर्ड कीं और इंटरनेट पर डाल दीं और उनमें हिदायत के नाम पर उन लड़कियों को दीन, ईमान, ख़ुदा और नबी का वास्ता दे रहे हैं, अब उन रहनुमाओं को कौन समझाए के अगर *वो लड़कियां दीन, ईमान, ख़ुदा और नबी या आख़िरत का इल्म रखतीं तो क्या वो ये सब करतीं जो आज कर रहीं हैं*..? तो फिर उन पर इन वास्तों का कोई असर क्यों होगा.. ?? ... और असर तो तब होगा जब वो *आपकी कोई वीडियो देखेंगी या सुनेंगी*.. अगर उनको वीडियो से ही दीन ईमान सीखना होता तो पहले से लाखों वीडियो इंटरनेट पर मौजूद हैं, वो उनको ही न देख चुकी होतीं..?? ... *इस सबके बावजूद हम कितनी बेशर्मी से ये ख़्वाब देखते हैं कि एक दिन सारी दुनिया में इस्लाम होगा.... जबकि हम वो बदतरीन और नाकाम मुसलमान हैं हो जो अपने घरों तक दीन ईमान न पहुंचा सके*😢😢

👉 *अब मुसलमानों को इन रहनुमाओ से उम्मीद छोड़ कर ख़ुद मैदाने अमल में उतर जाना चाहिए और अपने घर के साथ अपनी गली-मोहल्ले की ज़िम्मेदारी लेते हुए हर जुमा को मस्जिदों में तक़रीर और ख़्वातीन के छोटे छोटे इज्तेमा कुछ-कुछ दिन के फ़ासले पर कराने चाहियें और ये मुहिम मुल्क के हर हिस्से और हर मुस्लिम घर तक जानी चाहिए.. अगर आज हम अपनी इस नस्ल को ख़ुदा के अज़ाब से न डरा सके और राहे हिदायत पर न ला सके तो यक़ीनन हश्र के मैदान में हम भी ख़ुदा के सामने गुनाहगारों की सफ़ में खड़े होंगे*... जब तक हम अपनी ख़्वातीन को दीन से सीधा और ज़मीनी तौर पर नहीं जोड़ेंगे तब तक तमाम कोशिशें कुछ मामले तो हल कर सकती हैं मगर इस अलमिया(त्रासदी) कि जड़ नहीं... और ये बड़ी बड़ी इमारतों वाले हमारे बुलंद क़द-व-बेदाग़ लिबास वाले रहनुमा तो ज़मीन पर इसलिए नहीं उतरेंगे कि *उनके लिबास गंदे हो जाएंगे और वैसे भी वो सियासी मजमों में ही अच्छे लगते हैं*.... 😢😢 

👉 तो फिर ऐ मुसलमानों जागो और *जगाओ अपनी ग़ैरत को इस से पहले कि बहुत देर हो जाये और ये ज़ख़्म नासूर बन जाये.. क्योंकि, आज मुर्तद होती दिख रहीं ये चंद लड़कियाँ कल हमारे और हमारी नस्लों के साथ हमारे दीन-ईमान के वजूद के ख़ात्मे की वजह बन जाएंगी.. हमारे बुज़ुर्गाने दीन की क़ुर्बानियों को तबाह करने का ज़रिया बन जाएंगी..  हमारे नबी की तरबियत की दुश्मन बन जाएंगी*.. और अगर हम ये सब होता देखते रहे तो फिर न ज़िन्दगी हमको मुआफ़ करेगी न क़ब्र न जहन्नम न हमारा रब...😢😢 तो ऐ मुसलमानों.! *निकलो इस मुग़ालते से कि हम और हमारी औलादें बहुत नेक हैं और बात करो इस मसले पर खुल कर अपने घरों में... सख़्ती करो अपने बच्चों पर.. सख़्त नज़र रखो अपनी औलादों पर और उनके आमाल पर भले ही वो कितनी भी नेक क्यों न हों... और उतर आओ मैदान में इस दज्जाली दौर के ख़िलाफ़ अपने ईमान में हरारत पैदा करने को और देखो पलट कर अपने बुज़ुर्गाने दीन की क़ुर्बानियों की तरफ़ जिनकी बदौलत हम तक ये ख़ुदा का अज़ीम दीन पहुंचा और कराओ अपनी औलादों को उन क़ुर्बानियों का एहसास जो हमारे बुज़ुर्गों ने दी हैं*.. 

👉 क्योंकि, अब ये वक़्त सिर्फ़ लिखने पढ़ने और आगे बढ़ा देने का नहीं बल्कि, ज़मीन पर उतर कर काम करने का है...  वरना हमसे बड़ा *बे-ग़ैरत* और *मुर्दार* कोई नहीं हो सकता जो अपनी आँखोँ से अपने दीन का ख़ात्मा होते देखता रहे , मगर याद रखो हम वो ही मुसलमान हैं जो मुल्क से बेदख़ल करने वाले क़ानून CAA के पास हो जाने भर से उसके ख़िलाफ़ बच्चा बच्चा अपने घरों से निकल आये थे.... लेकिन, जब अपने दीन से हमारी क़ौम ख़ुद बेदख़ल हो रही है तब हमारे कानों पर जूँ तक नहीं रेंग रही.. तो फिर तैयार रहिये अल्लाह के सख़्त अज़ाब के आने के लिए और अपने गुनाहों की खौफ़नाक सज़ा पाने के लिए

*लेख* 
*- मंसूर अदब पहासवी*
*9267095874*
*अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़*

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