मुबारक हो दिल्ली, नया रॉलेट एक्ट आया है~
"तानाशाही वाली अंग्रेज के कदम के साथ कदम"
सुबह सबेरे जब आप अपने बिस्तरों से उठ रहे होंगे, चाय का इंतजार कर रहे होंगे, तब तक सरकार आपके जुबान सिलने का कानूनी इंतजाम कर चुकी है. 19 जनवरी यानी कल से अगले 3 महीने तक दिल्ली में 'राष्ट्रीय सुरक्षा कानून' लागू कर दिया गया, मतलब कि 'रासुका' अब पूरे दिल्ली में अगले तीन महीने तक रहेगी. आपके सामने, आपकी नाक के नीचे, लोकतंत्र को मिडिल फिंगर दिखाकर धीरे-धीरे रामराज्य इंस्टाल किया जा रहा है.
'रासुका', धारा 144 की तरह एक नॉर्मल सेक्शन भर नहीं है, कि इस गली में हिरासत में लिया अगली गली में छोड़ दिया, ये इतना बड़ा काला कानून है कि आप प्री आपातकाल में पहुंच चुके हैं.
1. इस कानून के हिसाब से सरकार को आपको ये बताने की जरूरत ही नहीं कि आपका अपराध क्या है? सरकार को जिसपर भी शक हो उसे गिरफ्तार कर सकती है, सरकार जिसे भी संदिग्ध मानती है उसे डिटेन कर सकती है. बिना कुछ बताए.
2. बिना आरोप तय किए ही सरकार आपको 1 साल तक जेल में रख सकती है, जबकि सामान्य स्थिति में गिरफ्तारी के 24 घन्टें के अंदर आरोपी को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है.
3. इसके आंकड़े एनसीआरबी (नेशनल क्राइम रिपोर्ट ब्यूरो) में भी दर्ज नहीं किए जाते, मतलब जब रिपोर्ट ही नहीं होगी, चार्जेस ही नहीं होंगे तो पता ही नहीं चलेगा कि कितने लोग जेल में पटक दिए गए.
4. इस कानून के अनुसार आप कानूनी मदद के लिए वकील की सहायता भी नहीं ले सकते.
5. सरकार चाहे तो गिरफ्तार किए गए इंडिविजुअल पर्सन को बताने के लिए भी जिम्मेदार नहीं है कि किस कारण जेल में डाले जा रहे हो, उसकी गलती क्या है!
6. आप इस बाबत नॉर्मल जिला न्यायालय या सेशन न्यायालय में अपना केस नहीं लड़ सकते, इसके लिए हाईकोर्ट ही विकल्प है, हाईकोर्ट में ही अपका केस लड़ा जा सकता है, यदि वहां भी सक्षम अधिकारी यह साबित कर दे कि आरोपी को जेल में रखा जाना जरूरी है तो उसपर आगे कोई रोक नहीं है, जितने दिन सरकार चाहे जेल में रख सकती है. सक्षम अधिकारी से मतलब है कि सरकार का कोई नुमाइंदा जैसे डीएम, या पुलिस का कोई बड़ा अधिकारी.
इस कानून को शार्ट में समझें तो- "न वकील, न दलील, न अपील"
इस कानून के कितने खतरे हैं इसका एक छोटा सा उदाहरण लीजिए, मणिपुर में एक पत्रकार थे, उन्होंने फेसबुक पर पोस्ट लिखी, वह नॉर्मल पोस्ट थी, जिसमें मणिपुर के मुख्यमंत्री की कुछ आलोचना थी, केवल इसी बात के लिए उनपर रासुका लगा दी गई, और महीनों जेल में रखा गया. ये इतना बड़ा काला कानून है अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है. यूपी में भी 3 लोगों पर गो हत्या के फर्जी मुकदमें में रासुका लगा दी गई. हालांकि पिछली सरकारें भी इस कानून का सहारा लेती रहीं हैं. इंदिरा गांधी ने ही इस कानून को इंट्रोड्यूस किया था. इंदिरा ने तो इस देश में आपातकाल भी लगाया था. यही कारण भी हैं कि इंदिरा को इस देश ने आईना दिखाया. इंदिरा या कांग्रेस इस देश का आदर्श नहीं हैं. लेकिन पुराने उदाहरणों का तर्क लेकर वर्तमान का विध्वंस नहीं किया जा सकता.
दिल्ली देशभर के लोकतांत्रिक अधिकारों को लागू करने का मंच है. तमिलनाडु के किसानों को भी कोई समस्या होती है तो दिल्ली आते हैं, दिल्ली पर कब्जे का मतलब है देश की जुबान पर कब्जा. एक ऐसे समय में जबकि लोग एनआरसी, नागरिकता कानून, फीस वृद्धि के मुद्दे पर सड़कों पर हैं, सरकार इस कानून की आड़ लेकर विरोधियों को कुचलने का पूरा प्लान तैयार कर चुकी है.
अब सरकार जिसे चाहे फेसबुक पोस्ट के लिए उठा सकती है, बिना कारण बताए जेल में डाल सकती है, न वकील मिलेगा, न कोई दलील चलेगी. जिसे चाहो जेल में डाल दो, मुझे लिखने के लिए, आपको पोस्ट लाइक-शेयर करने के लिए भी जेल में ठूंसा जा सकता है. राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा किससे है? लोकतंत्र बचाने के लिए सड़कों पर उतरीं औरतों से या पुलिस से उन्हें पिटवाने वाले क्रिमिनल गृहमंत्री से है?
'राष्ट्रीय सुरक्षा' शब्द अपने आप में काफी वेग है, अपरिभाषित है, अमित शाह के बेटे पर पोस्ट लिखने को भी राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा माना जा सकता है, मोदी पर बनाए मीम्स को भी. सरकार की आलोचना भी अब देश के लिए खतरा मानी जाएगी.
धीरे धीरे आप प्री आपातकाल में पहुंच चुके हैं. लेकिन आप टेंशन मत लीजिए, जबतक कि व्हाट्सएप पर ॐ भेजने की सुविधा है, ट्विटर पर जय माता दी लिखने की सुविधा है. देश को कोई खतरा नहीं है।
तानाशाही वाली अंग्रेज हुकुमत जैसा बीजेपी सरकार लोकतंत्र विरोधी कानून लागते हुये.
गाँधीजी ने व्यापक हड़ताल का आह्वान किया। रोलेट एक्ट गांधीजी के द्वारा किया गया राष्ट्रीय लेवल का प्रथम आंदोलन था। 24 फरवरी 1919 के दिन गांधीजीने मुंबई में एक "सत्याग्रह सभा"का आयोजन किया था और इसी सभा में तय किया गया और कसम ली गई थी की रोलेट एक्ट का विरोध 'सत्य'और 'अहिंसा' के मार्ग पर चलकर किया जाएंगा। गांधीजी के इस सत्य और अहिंसा के मार्ग का विरोध भी कुछ सुधारवादी नेताओं की और से किया गया था, जिसमें सर डि.इ.वादी, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, तेज बहादुर सप्रु, श्री निवास शास्त्री जैसे नेता शामिल थे।किन्तु गांधीजी को बड़े पैमाने पर होमरूल लीग के सदस्यों का समर्थन मिला था।
हड़ताल के दौरान दिल्ली आदि कुछ स्थानों पर भारी हिंसा हुई। इस पर गांधी जी ने सत्याग्रह को वापस ले लिया और कहा कि भारत के लोग अभी भी अहिंसा के विषय में दृढ रहने के लिए तैयार नहीं हैं।
13 अप्रैल को सैफुद्दीन किचलू और सत्यपाल की गिरफ्तारी के विरोध में जलियाँवाला बाग में लोगों की भीड़ इकट्ठा हुई। अमृतसर में तैनात फौजी कमांडर जनरल डायर ने उस भीड़ पर अंधाधुंध गोलियाँ चलवाईं। हजारों लोग मारे गए। भीड़ में महिलाएँ और बच्चे भी थे। यह घटना ब्रिटिश हुकूमत के काले अध्यायों में से एक है जिसे जालियाँवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना जाता है।
10 दिसम्बर 1917 को रॉलेट एक्ट की स्थापना हुई थी। इस समिति के द्वारा लगभग 4 महीनों तक “खोज” की गई और रॉलेट समिति की एक रिपोर्ट में भारत के जाबाज देशभक्तों द्वारा स्वतंत्रता के लिए किये गए बड़े-बड़े और छोटे आतंकपूर्ण कार्यों को बढ़ा-चढ़ाकर, बड़े उग्र रूप में प्रस्तुत किया गया था। नौकरशाही के दमन चक्र, मध्यादेशराज,युद्धकाल में धन एकत्र करने और सिपाहियों की भर्ती में सरकार द्वारा कठोरता बरते जाने के कारण अंग्रेजी शासन के खिलाफ भारतीय जनता में तीव्र असंतोष पनप रहा था। देश भर में उग्रवादी घटनाएं घट रही थीं। इस असंतोष को कुचलने के लिए अंग्रेजी सरकार रौलट एक्ट लेकर आई।
सरकार ने 1916 में न्यायाधीश सिडनी रौलट की अध्यक्षता में एक समिति गठित की, जिसे आतंकवाद को कुचलने के लिए एक प्रभावी योजना का निर्माण करना था। रौलट कमेटी के सुझावों के आधार पर फरवरी 1918 में केंद्रीय विधान परिषद में दो विधेयक पेश किए गए। इनमें से एक विधेयक परिषद के भारतीय सदस्यों के विरोध के बाद भी पास कर दिया गया। [1]
जलियांवाला बाग हत्याकांड: क्या था रोलेट एक्ट? जिसके विरोध में गई सैकड़ों लोगों की जान
आज जलियांवाला बाग हत्याकांड को 100 साल पूरे हो गए हैं। 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में रोलेट एक्ट के विरोध में हजारों लोग एकत्र हुए थे। अंग्रेज अफसर जनरल डायर ने इस बाग के मुख्य द्वार को अपने सैनिकों और हथियारंबद वाहनों से रोककर निहत्थी भीड़ पर बिना किसी चेतावनी के 10 मिनट तक गोलियों की बरसात कराई थी।
इस घटना में तकरीबन 1000 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 1500 से ज्यादा घायल हुए थे। लेकिन ब्रिटिश सरकार मरने वाले लोगों की संख्या 379 और घायल लोगों की संख्या 1200 बताती है। ये लोग यहां रोलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एकत्रित हुए थे।
क्या था रोलेट एक्ट?
रोलेट एक्ट जिसे काला कानून भी कहा जाता है, भारत की ब्रिटानी सरकार द्वारा भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के लिए बनाया गया। ये कानून सर सिडनी रौलेट की अध्यक्षता वाली सेडिशन समिति की सिफारिशों के आधार पर बनाया गया था।
इस कानून से ब्रिटिश सरकार को ये अधिकार प्राप्त हो गया था, कि वह किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकदमा चलाए, उसे जेल में बंद कर सकती थी।
कानून का जमकर हुआ विरोध?
इस कानून के तहत अपराधी को उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने वाले का नाम जानने का भी अधिकार नहीं था। इस कानून का पूरे देश में जमकर विरोध हुआ। देशव्यापी हड़तालें, जूलूस और प्रदर्शन होने लगे। महात्मा गांधी ने बड़े पैमाने पर हड़ताल का आह्वान किया।
अमृतसर के दो बड़े सामाजिक नेता डॉ सत्यपाल और डॉ सैफुद्दीन किचलू भी गिरफ्तार कर लिए गए। तब अमृतसर समेत पूरे पंजाब में लोगों में रोष फैल गया। उन दिनों 13 अप्रैल 1919 को वैशाखी वाले दिन पंजाब के किसान अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में एकत्र हुए थे। इसी दिन जलियांवाला बाग में एक विरोध सभा का आयोजन हुआ। जिसमें जनरल डायर ने लोगों पर गोलियां बरसा दीं। इस घटना को ब्रिटिश भारतीय इतिहास का सबसे काला दिन माना जाता है।
आपके लिए- 13 अप्रैल, 1919 ब्रिटिश भारतीय इतिहास का सबसे काला दिन माना जाता है। इसी दिन अंग्रेज अफसर ने सैकड़ों लोगों पर गोलियों की बरसात करवा दी। वो भी बिना किसी चेतावनी के। ब्रिटिश प्रधानमंत्री टेरिजा मे ने भी बुधवार को इस घटना के प्रति खेद प्रकट किया है।
"अभितो बहोत कूच बाकी है, आगे आपकी खामोसी गुलामी के दलदल में इस फसा देगी जिसमे से निकलना मुश्किल होगा"