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Monday, 9 March 2020

नरोडा गांव दंगा फैसला सुनाने से पहले जज का तबादला, वकीलों को फिर से रखनी पड़ेगी दलील

गुजरात हाई कोर्ट ने वर्ष 2002 के नरोडा गांव दंगे की सुनवाई कर रहे विशेष एसआइटी जज एमके दवे का तबादला प्रधान जिला न्यायाधीश वलसाड के पद पर कर दिया है. इस दंगे में गुजरात की तत्कालीन नरेंद्र मोदी सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री रहीं माया कोडनानी भी आरोपित हैं. यह दंगा गोधरा कांड के बाद हुआ था. जिसमें दंगाईयों ने 11 अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को मार दिया था.
9 march 2020
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शुक्रवार को जारी अधिसूचना के अनुसार, ‘अहमदाबाद सिविल कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एमके दवे का तबादला वलसाड जिले के प्रधान न्यायाधीश पद पर किया गया है. उनकी जगह पर एसके बक्शी को नियुक्त किया गया है, जो अब तक भावनगर के प्रधान जिला न्यायाधीश थे.’ जज दवे नरोडा गांव दंगे में अंतिम बहस की सुनवाई कर रहे थे. पूर्व मंत्री कोडनानी के वकील ने पिछले ही सप्ताह अपनी जिरह शुरू की थी.

इस मामले में अभियोजन और कई आरोपितों के वकील की दलील पूरी हो चुकी है. जज दवे के तबादले के बाद अब संभव है कि नए जज को सुनवाई के अंतिम दौर की सभी दलीलें नए सिरे से सुननी पड़ें. कोर्ट ने इस मामले में फरवरी 2018 से बयान दर्ज करने शुरू किए थे. इससे पहले मामले की सुनवाई कर रहे प्रधान सत्र न्यायाधीश बीपी देसाई दिसंबर 2017 में सेवानिवृत्त हो गए थे. जज दवे उन 18 प्रधान जिला न्यायाधीशों में से एक हैं, जिनका स्थानांतरण गुजरात हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने किया है. उन्होंने 17 डिवीजन के सत्र न्यायाधीश भी नियुक्त किए हैं.



नरोडा गांव दंगा गोधरा कांड के बाद हुए उन नौ प्रमुख दंगों में से है, जिनकी जांच हाई कोर्ट की तरफ से गठित विशेष जांच दल (एसआइटी) ने की थी. इस दंगे में अहमदाबाद के नरोडा गांव इलाके में रहने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के 11 सदस्य मारे गए थे. इसमें कुल 82 लोग आरोपित हैं. जिसमें गुजरात की तत्कालीन नरेंद्र मोदी सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री रहीं माया कोडनानी भी आरोपित हैं.

2002 के गुजरात दंगे , जिसे 2002 गुजरात पोग्रोम के रूप में भी जाना जाता है, पश्चिमी भारतीय राज्य गुजरात में तीन दिनों की अंतर-सांप्रदायिक हिंसा थी। प्रारंभिक घटना के बाद, अहमदाबाद में तीन महीने तक हिंसा का प्रकोप रहा; राज्यव्यापी, अगले वर्ष के लिए अल्पसंख्यक मुस्लिम आबादी के खिलाफ हिंसा का अधिक प्रकोप था। 27 फरवरी 2002 को गोधरा में एक ट्रेन को मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा जलाने से 58 हिन्दू कारसेवकों की मौत हो गई थी जो अयोध्या से लौट रहे थे।[6][7][8][9] इससे गुजरात में मुसलमानों के ख़िलाफ़ एकतरफ़ा हिंसा का माहौल बन गया। इसमें लगभग 790 मुसलमानों एवं 254 हिन्दुओं की बेरहमी से हत्या की गई या ज़िन्दा जला दिया गया था। [2]

उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री, नरेन्द्र मोदी पर हिंसा को शुरू करने और निंदा करने का आरोप लगाया गया था, क्योंकि पुलिस और सरकारी अधिकारी थे जिन्होंने कथित रूप से दंगाइयों को निर्देशित किया था और उन्हें मुस्लिम-स्वामित्व वाली संपत्तियों की सूची दी थी।[3] हालांकि भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2014 के आम चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे दी गई थी।[4]



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