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Thursday, 30 April 2020

coronavirus lockdown के समय RSS की खामोशी बहोत बडा प्रलय ला सकती हे.

पुरी दुनिया मे कोरोना वायरस को लेकर कइ देशमे लोकडाउन किया गया हे.


SAFTEAM 24 MARCH 2020 
रिसर्च 


हमारे भारत देशमे  १९ मार्च को टीवी पर  आकर मोदीजी ने घोषणा की जनता से २२ मार्च को जनता कर्फ्यू को लेकर घरों मे रेहने की  अपील कि गइ.


उसके बाद २२ मार्च को रात  ८ बझे दुसरी बार टीवी पर  आकर  १૪ अेप्रिल तक लोकडाउन की  घोषणा कि बाद  देशमे बहोत बदी खलबली मच गइ देश के गरीब और मजबूर लाचार मजदूरों का  पैदल  अपने घरो की तरफ निकलने लगे उसके बिचमे कइ सामाजिक संगठनों ने समाज को मददरुप होने के लिये छोटे मोटे प्रयास करना सुरु किया.

बस उसी समय से  हमे ध्यान देना हे  RSS देश भक्ति को लेकर बडे बडे दावे करता  आ रहा हे,  कभी  देशकी सुरक्षा को लेकर देश की बोर्डर  पे   RSS  के  कार्यकर्ता भेजने की बदि बदि बातें  फेकने वाला  एसे गंभीर समय मे खामोश नजर  आइ.


हमारा  अनुमान हे   RSS ने  अपनी पुरी  शक्ति  तिन काम करने मे लगाइ.

नंबर १ - देश के हर राज्य मे  अपना खुफिया कार्यलय बनाने और बहोता फंद जमा करने मे बहोत सा  काम किया.

नंबर  २ - देश की कार्यपालिका  के बहोत से विभाग मे  अपने कार्यकर्ता और चुने गये लोगों  को  लीगल करने कार्य किया, जेसे  CRPF जवानों  मे पोलिश विभाग के उच्च पड से लेकर निचे के पड मे  उनके  लोगों को सरकारी  दफतर मे लीगल करने का कार्य किया.

नंबर  ३ - देश के  हेल्थ विभाग के तमाम उच्च पड से लेकर निचे के पदों  मे उनके लोगो को लीगल करने का कार्य किया.


ये हमारा रिसर्च हे अनुमान हे  अगर   RSS  ने  ये काम कर लिया हे  हो सकता हे  आने वाले समय मे बहोत बडा प्रलय आने वाला हे.

 २२ मार्च   जनता कर्फ्यू 
२३ मार्च से  १૪ अप्रैल  लोकडाउन 
१૪ अप्रैल  से ३ मे लोकडाउन  


देश के कइ हिस्सो को अलग अलग विभाग मे  बता गया रेडजोन,यलोजोन,ग्रिनजोन 

Wednesday, 29 April 2020

General Knowledge Covid19 coronavirus part-1

General Knowledge


कोरोना वायरस, 5G और एजेंडा नैनो-चिप...…!

इकोनोमिस्ट मैगज़ीन अप्रैल 2020 शुमारे में 5 खुफिया प्लान का ऐलान किया गया है। 
इस तहरीर में पाँचों यहूदी प्लान को डिकोड किया जायेगा।

*_नंबर 1: Everything is Under Control._*
*_इसका अर्थ है... “हर चीज़ तयशुदा मंसूबे के मुताबिक हमारे कंट्रोल में है”।_*

एक तरफ पूरी दुनिया कोरोना से डरकर घरों में बैठी हुई है, हुकूमतें सिकुड़कर दारुल-हुकूमतों तक महदूद हो गयीं, अवाम को दो वक्त की रोटी के लाले पड़ गये, कई मुल्कों को अपनी हैसियत बरकरार रखने के लिये खतरे का सामना है... 
लेकिन आप देखें, वहीं यहूदी मैगज़ीन फखरिया अंदाज़ में कहता है कि *_Everything is Under Control._*
ये बात अक्लमंदों के कान खड़े करने के लिये काफी है।

कोरोना वायरस के जरिये जिस जाल को बिछाया गया है वो बिल्कुल उम्मीद के ऐन मुताबिक पूरा हो रहा है, तभी तो यहूदी मैगज़ीन फख्र से कहता है कि सब कुछ तयशुदा मंसूबे के मुताबिक उनके कंट्रोल में है। 

*_नंबर 2: Big Government_*
*_इससे मुराद आलमी हुकूमत है।_* 
इस बड़ी हुकूमत को यहूदी दाना बुजुर्गों की खुफिया दस्तावेज़
दी इलुमिनाटी प्रोटोकोल्स में “सूपर गवर्नमेंट” के नाम से बार-बार बयान किया गया है। इसकी तफ्सीलात भी बयान की गयी हैं जिनके मुताबिक पूरी दुनिया की एक ही “आलमी सूपर गवर्नमेंट” बनाई जायेगी जिसका हुक्मरान फिरऔन व नमरूद की तरह पूरी दुनिया पर अपने मसीहा के जरिये हुक्मरानी करेगा। 

यहाँ ये बताना भी जरूरी समझूँगा कि इनकी आलमी हुकूमत बन चुकी है... ये अक्वामे मुत्तहिदा है। सिर्फ इसका ऐलान नहीं किया गया। इनका मंसूबा ये है कि भविष्य में किसी भी वक्त दुनिया में क्राइसिस पैदा करके (जैसे इस वक्त हैं) अक्वामे मुत्तहिदा को एक आलमी सूपर हुकूमत में तब्दील कर दिया जायेगा। 
अक्वामे मुत्तहिदा के जो भी इदारे होंगे उन्हें विज़ारतों में तब्दील करके उसे आलमी सूपर गवर्नमेंट करार दे दिया जायेगा और इस हुकूमत की बागडोर यहूदी नस्ल के ऐसे व्यक्ति को दी जायेगी जो दज्जाल के लिये हैकले सुलेमानी निर्माण करेगा और यहूदियों को छोड़कर बाकी पूरी दुनिया की कौमों को अपना गुलाम बना लेगा। 
अब मौजूदा दौर में आ जायें,
ब्रिटिश प्रधानमंत्री से लेकर बहुत से आलमी रहनुमाओं ने अब खुलकर कहना शुरू कर दिया है कि एक आलमी हुकूमत बननी चाहिये। ये सब उसी आलमी सूपर गवर्नमेंट बनाने की राह हमवार कर रहे हैं। 
अब अगर अक्वामे मुत्तहिदा का कोई ऐसा हुक्मरान बन जाये जो वैक्सीन देने का ऐलान कर दे......तो दुनिया का कौनसा मुल्क होगा जो उसकी हुक्मरानी तस्लीम ना करेगा??

*_नंबर 3: Liberty_*
*_लिबर्टी का मतलब है “आजादी”।_* 
यहाँ आजादी से मुराद दुनिया को जो आजादी हासिल है उसका कंट्रोल इस “खुफिया हाथ” के पास है जो इकोनोमिस्ट ने बतौर अलामत अपने कवर फोटो पर नुमायाँ किया है। ये वो “खुफिया हाथ” है जो पर्दे में रहकर पूरी दुनिया को चलाता है। आप इस हाथ को यहूदियों के 13 खुफिया खानदान समझें, जो पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था, ट्रैडिंग, मीडिया, हुकूमत मतलब हर चीज़ की बागडोर संभालते हैं, वर्ल्ड बैंक हो या आईएमएफ ये तमाम इदारे इनके फंड से चलते हैं। अक्वामे मुत्तहिदा का खर्चा पानी यही देते हैं, अक्वामे मुत्तहिदा के सभी बड़े इदारों के मुखिया इनके अपने लोग और यहूदी नस्ल के हैं। 
अक्वामे मुत्तहिदा को आप इनके घर की लौंडी समझें, आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक जैसे संस्थान हकीकत में अक्वामे मुत्तहिदा के संस्थान ही हैं। 
आज ये 13 यहूदी खानदान अपने मसीहा के इंतेज़ार में हैं जिसके बारे में हाल ही में इजराइली यहूदी रब्बी और यहाँ तक कि इजराइली सरकारी नेतृत्व भी ऐलान कर चुके हैं कि मसीहा इसी साल आ रहा है। 
एक ने तो ये भी कह दिया है कि वो मसीहा से मुलाकात भी कर चुका है और बता दिया कि मसीहा इसी साल किसी भी वक्त आ जायेगा। 
यानि ये लोग जानते हैं कि मसीहा कौन है लेकिन इसका फिलहाल ऐलान नहीं कर रहे। 

*_नंबर 4: वायरस_* 
*_यानि कि “कोरोना वायरस” का कंट्रोल भी इसी “खुफिया हाथ” के पास है। जब पूरी दुनिया वायरस के खौफ से काँप रही है... तो ये लोग कौन हैं जो कहते हैं कि वायरस उनके काबू में है?_*
या हम यूँ कह सकते हैं कि वायरस के जरिये उन्होंने पूरी दुनिया को अपने काबू में कर रखा है। 
इजराइली रक्षामंत्री खुद कहते हैं कि हमें वायरस से कोई परेशानी नहीं है, क्योंकि जब 70% आबादी को कोरोना प्रभावित कर लेगा तो फिर स्वत: समाप्त हो जायेगा। 
यानि वो पहले से जानते हैं कि इतने प्रतिशत आबादी प्रभावित होगी लेकिन साथ ही किसी किस्म की उन्हें परेशानी भी नहीं है। ये इस बात का प्रतीक है कि पर्दे के पीछे वो बहुत कुछ जानते हैं तभी तो बिल्कुल संतुष्ट हैं, इसीलिये ना लॉकडाउन करते हैं ना ही उन्हें कोई परेशानी है बल्कि अधिसूचित करते हैं कि वायरस उनके काबू में हैं। 

*_नंबर 5: The Year Without Winterv_*
*_इसको अगर डिकोड करें तो इसका मतलब होगा कि इस साल दुनिया को सर्दी का मौसम घरों में कैद रहकर गुजारना पड़ सकता है।_* 
याद रहे इस वक्त साल का चौथा महीना यानि अप्रैल चल रहा है... लेकिन उन्होंने ऐलान कर दिया है कि इस साल सर्दी का मौसम नहीं होगा यानि दुनिया सर्दी के मौसम के मजे इस साल नहीं ले सकेगी। 
अगर लॉकडाउन कुछ महीने अधिक चलता है तो हर देश के पास खाने-पीने की सामग्री की किल्लत हो जायेगी, डाके पड़ना शुरू हो जायेंगे, इस दफा लोग पैसे नहीं बल्कि रोटी और राशन छीनने के लिये एक दूसरे पर बंदूक चलाएंगे,
इसके अलावा... कुछ और कारक भी हैं जिन्हें अभी तक इकोनोमिस्ट मैगज़ीन ने उजागर नहीं किया। शायद अगले महीने के पत्रांक में प्रस्तुत कर दें। मैं आपको पहले ही आगाह कर देता हूँ। 

पहला प्रोजेक्ट 5G है -
सबसे पहले 5G इंस्टालेशन है जो लॉकडाउन के दौरान दुनिया के अधिकांश देशों में चुपके से की जा रही है। वैश्विक मीडिया को इसकी रिपोर्टिंग से रोका गया है। मीडिया पर आपको 5G से संबंधित कोई खबर नहीं मिलेगी। लंदन में मुकम्मल लॉकडाउन है लेकिन वहाँ 5G इंस्टालेशन के कर्मचारी फिर भी दिनरात पोल्स पर टॉवर स्थापित करने में व्यस्त हैं। 
पाकिस्तान में टेलीनॉर और ज़ोंग कंपनियों ने विज्ञापनों के द्वारा 5G की प्रोमोशन शुरू कर दी है। 

*_आखिर ये 5G क्या बला है?_*
ये आपके लिये समझना बहुत जरूरी है। ये वास्तव में इंटरनेट गति की तीव्रतम रफ्तार है, जो अगर किसी इलाके में लगा दी (इंस्टाल कर दी) जाये तो उस पूरे इलाके को एक “सूपर कंप्यूटर” के द्वारा हर वक्त वीडियो पर देखा जा सकेगा, इलाके का कोई व्यक्ति ऐसा नहीं बचेगा जिसकी जासूसी मुमकिन ना हो। 
मोबाईल से लेकर टीवी, एलसीडी या एलएडी, फ्रिज, ऑटो-पार्ट्स और घर की तमाम सुविधाओं में स्थापित छोटे खुफिया कैमरों के द्वारा चौबीस घंटे हर व्यक्ति की जासूसी मुमकिन हो जायेगी। 
सैन्य स्तर पर ये काम पहले ही दुनिया की बड़ी फौजें करती रही हैं लेकिन सार्वजनिक स्तर पर इसे लाने का बहुत ज्यादा वैज्ञानिक नुकसान भी है, क्योंकि... इस टेक्नॉलजी की किरणें इंसानी दिमाग के लिये बहुत खतरनाक हैं, विशेषज्ञों के अनुसार 5G सिग्नल में रहने वाला इंसान ऐसा होगा जैसे उसका दिमाग माइक्रोवेव ओवेन में पड़ा हुआ हो। ये इंसान को विभिन्न मानसिक रोगों का शिकार कर देगी लेकिन खुफिया हाथ को इसकी परवाह नहीं है कि इंसानों के दिमाग पर क्या बीतती है, उन्हें सिर्फ पूरी दुनिया को डिजिटलाइज़ करना है और इस मकसद के लिये लाखों इंसानों को मारना पड़ा तो वो इससे भी संकोच नहीं करेंगे। 

*_दूसरा प्रोजेक्ट Nano Chip वैक्सीन द्वारा -_*
हाल ही में एक आर्टिकल पढ़ा जिसमें बिल गेट्स ने 1 बिलियन डॉलर का निवेश करने का ऐलान किया। ये ऐलान पूरी दुनिया को डिजिटलाइज़ करने से संबंधित था। सवाल ये है कि पूरी दुनिया को डिजिटलाइज़ कैसे किया जायेगा?
इसका जवाब है... 5G और Nano Chip से। 
देखें... 5G के टॉवर बज़ाहिर तो आपको इंटरनेट की तेज रफ्तार देने के लिये होंगे, लेकिन उनका असल खुफिया मकसद इंसानों में लगी नैनो चिप (बहुत ज्यादा छोटी चिप) में जमा होने वाला डाटा... (यानि आपकी दिमागी सोच) किसी खुफिया जगह जमा करना होगा। 
वो खुफिया हाथ जिसे आप इकोनोमिस्ट मैगजीन पर देख सकते हैं, पूरी दुनिया के इंसानों के दिमागों में पैदा होने वाली सोच को किसी अंजान जगह पर अपने “सूपर कंप्यूटर” के जरिये देखेगा। 
मैं जिम्मेदारी से कह सकता हूँ
वो यहूदियों का मसीहा होगा जो “अक्वामे मुत्तहिदा की सूपर गवर्नमेंट” संभालते ही इन टेक्नॉलजी से इंसानों के दिमाग भी पढ़ लेगा बल्कि किसी के बोलने से पहले उसके विचार भी जान लेगा। 
यहाँ ये भी साबित होता है कि दज्जाल और उसकी कुव्वतों को शयातीन की मदद हासिल हो जायेगी। यानि वो किसी ऐसी टेक्नॉलजी हासिल करने में कामयाब हो जायेंगे जिससे दुनिया में मौजूद अदृश्य प्राणियों यानि जिन्नात से उनका राबता मुमकिन हो जायेगा और इसी की मदद से दज्जाल शैतानों से मदद लेगा। 
अब इस सारे मंजरे आम को संक्षेप में बयान किया जाये तो ये कुछ ऐसा होगा कि;
खुफिया हाथ कामयाब हो रहा है, हर चीज़ तयशुदा मंसूबे के मुताबिक उनके कंट्रोल में है। कोरोना वायरस के जरिये दुनिया को लॉकडाउन करवाकर वो अपने मंसूबे में कामयाब हो रहे हैं, साथ ही उन्होंने चुपके से 5G इंस्टालेशन शुरू कर दी है और बिल गेट्स ने नैनो चिप्स की शुरुआत के लिये अक्वामे मुत्तहिदा से 1 बिलियन डॉलर का अनुबंध भी कर लिया है। 
इस अनुबंध में वैक्सीन बनेगी और इसी वैक्सीन के अंदर इतनी छोटी नैनो चिप होगी कि जो इंसान को माइक्रोस्कोप से ही नज़र आ सकती है, वो दुनिया के हर इंसान को दी जायेगी... जिससे उनको किसी खुफिया जगह से मॉनीटर किया जा सकता है। 
मुझे पूरा यकीन है... 
बिल गेट्स भी अक्वामे मुत्तहिदा को चलाने वाले खुफिया हाथ के साथ मिलकर ऐसी ही वैक्सीन बनाएगा जो नाक या मुँह में डाली जायेगी और इसी के जरिये नैनो चिप भी हर इंसान के जिस्म में दाखिल की जायेगी। चूँकि चिप सूक्ष्म है और किसी भी वैक्सीन के जरिये जिस्म में डाली जा सकती है, लिहाज़ा किसी इंसान को पता ही नहीं चलेगा कि वो चिप्ड हो चुका है। 

*_दज्जाल को दुनिया में खुश आमदीद कहने के लिये तैयारियाँ उरुज पर हैं, जो पहले से इस फितने से आगाह होंगे वही इससे बच पायेंगे।_*

*_जो लाइल्म होंगे वो फँस जायेंगे, बहक जायेंगे, गुमराह हो जायेंगे, सैलाबी पानी में तिनकों की तरह बह जायेंगे।_* 

ख्वातीन व हज़रात से दरख्वास्त है कि इस दज्जाल के फितने को कुरआन व सुन्नत की रौशनी में समझने की भरपूर कोशिश करें, और इस फितने से बचने के लिये दीने इस्लाम में जो राहनुमाई दी गयी है उसे अपनी ज़िंदगियों में फौरी तौर पर अख्तियार करें ताकि कहीं बेखबरी में अपनी दुनिया व आखिरत अपने हाथों से बर्बाद ना कर लें। 

दज्जाल के फितने से बचने के लिये सूरह अल-कहफ की पहली दस आयात की रोजाना तिलावत करें और दज्जाल के फितने से बचने की मसनून दुआएं याद करके अपने मामूल के अज़कार में शामिल फरमायें । 

*_अल्लाह तआला हमें तौबा करने और कुरआन व सुन्नत के मुताबिक ज़िंदगी गुजारने की तौफीक अता फरमाए, आमीन_*

Tuesday, 28 April 2020

corona19 क्या तबलिग जमात से वायरस फैला हे???

उत्तर मे नया शासनादेश जारी हुआ है। इसके मुताबिक़ कोरोना संक्रमितो डाटा इकट्ठा करके उसे पोर्टल पर अपलोड किया जाएगा।इस शासनादेश मे तीन काॅलम बहुत ज्यादा विवादित हैं। यह पूछता है कि कोरोना संक्रमित जमाती है? क्या वह तब्लीग़ी है? वह कहां से लौटा है? पूरी तरह सांप्रदायिकता से ग्रस्त है। शासनादेश मे इस तरह के विवादित काॅलम सांप्रदायिक कुंठा को साफ ज़ाहिर कर रहे हैं। यूपी सरकार, भारत सरकार, स्वास्थय मंत्रालय को इस तरह के शासनादेश क्या विवादित नही लगते? क्या ये समाज मे दूरियां और नफरत नहीं फैलाऐंगे? भारत सरकार को पहला यह तय करना चाहिए कि उसे कोरोना से लडना है या जमातियो से?

तब्लीग़ी जमात के बहाने मुस्लिमो का समाजिक बहिष्कार करने का ऐजेंडा परवान चढ रहा है? अगर ऐसा नही है तो शासनादेश मे तब्लीगी जमात/जमाती का काॅलम क्यो दिया गया है? क्या यह माना जाए कि सरकार अपनी नाकामी का ठीकरा जमातियो के सर फोड़ना चाहती है? क्या यह भारत को म्यांमार बनाने की योजना है? आज जिस तरह का शासनादेश UP मे जारी हुआ है, यह 19वीं सदी के अमेरिका के वेस्टकोर्ट की याद दिलाता है। वहां Hindoos के खिलाफ ऐसा ही प्रोपेगेंडा चला था कि ये लोग बीमारी फैलाते हैं, इन्हें छूने से दिमाग़ी बुखार हो जाता है। और फिर वही हुआ जो स्टेट की मंशा थी, Hindoos का जनसंहार हुआ। दंगे हुए, इन दंगों में स्टेट मशीनरी शामिल थी जिन्होंने दक्षिण एशिया से गए लोगों का जनसंहार किया। हद तो यह कि Hindoos के खिलाफ हिंसा करने वाले एक भी दंगाई को सज़ा तक नहीं हुई। 
लगभग सवा सो साल बाद वही स्थिती भारत में बनती जा रही है। एक महामारी को 'जमाती' साबित करने के लिए पूरा सरकारी तंत्र, सरकार के सहयोगी माध्यम जी तोड़ कोशिशें कर रहे हैं। क्या यह एक बड़े वर्ग का समाजिक बहिष्कार करके उसका जनसंहार करने के शुरूआती लक्षण हैं? कोरोना आज है, कल नहीं होगा, लेकिन इसकी क्या गारंटी है कि कोरोना के नाम पर जो ज़हर फैलाया गया है वह भी कोरोना के साथ दफ्न हो जाएगा? निश्चित रूप से कोरोना भारत और भारतीय मुसलमानों को बुरी तरह प्रभावित कर जाएगा।
*Wasim Akram Tyagi✍✍*

सामाजिक परिस्थितियों के जिम्मेदार पोलिटिकल लीडरशिप हे ? पार्ट -1

*मुस्लिम समाज की भारत जेसे लोकतांत्रिक देश मे पोलिटिकल शक्ति नही होना जिसको लेकर मुस्लिम पोलिटिकल लीडरशिप सिर्फ और सुर्फ जिम्मेदार मानना कितना उचित (सही) हे ❓*

आजका विषय हमने अापको उपर बताया हे, इस विषय पर मे अपने सामाजिक कार्यो के बाद अभ्यास और अनुभव के बाद लिखने जा रहा हु. आशा हे, *इस वक्त हम लोकडाउन मे वैसे भी फुरसत मे हे इसको गेहराइ से समझने की कोशिश करेंगे.*


सबसे पेहले हमे ये सोचना हे आज वर्तमान समय मे जिन लोगों ने पोलिटिकल शक्ति हासिल की हे, *इसके लिये क्या उन्के समाज की सामाजिक शक्ति उनके पास नही हे❓*

पिछले सालों मे जिस तरहा मुस्लिम समाज की परिस्थितियां  बनती गई बहोत सी सामाजिक  संस्थान ने अपने कार्यो को लेकर समाज मे जागृति लाने मे सफलता हासिल की हे, लेकीन ईस मे ज्यादातर गरीब और मध्यमवर्गीय निडर बेखोफ लोकों का  100% योगदान हे, लेकीन जेसे जेसे समाज हालात को लेकर जागृत होता गया समाज का बहोत सा तबका हालात को लेकर सबसे पेहले जिम्मेदार पोलिटिकल लोगों पर आरोप लगाते रहे हे, मे पोलिटिकल लीडरशिप की चाप लुसी नही करता हु, *नाही मे किसी पार्टी का कार्य करता हु,लेकीन जो सच्चाई मेने अपने अनुभव से देखी समझी हे उसको यंहा समझा रहा हु.* 


*आप हमारे बडे देशमे जब बहोत से षड्यंत्र और परिस्थितियों को समझे बगैर किसी को खास मुस्लिम समाज के हालात को लेकर जिम्मेदार नही केह सकते हे,* आप इतिहास की घटना ये देखो जेसे देशकी आजादी के पेहले क्या हालात थे? उसके बाद तथाकथित आजादी मिलने के बाद मुस्लिम समाज की हर पेहलु मे क्या कार्य नीति रही उसको समझो, *उसके साथ हम  300 साल पेहले की परिस्थितियों को जाने जिसमे बहोत सी ताकतवर और शक्तिशाली हुकूमत और बादशाह को कमजोर करने खतम करने के लिये क्या क्या उस वक्ता इतिहास जाने आप और जानकारी हासील कर सकते हे.*


बहोत से बादशाह की हुकूमत को कमजोर करने के लिये मीरजाफर,मीरसादीक के साथ बहोत से धार्मिक गुरुओं ने षड्यंत्र के साथ हुकूमत को कमजोर किया हे, *और खतम भी किया हे,आप इसको  इतिहास की किताबों  से जान सकते हे.*

अब रहा सवाल हमारे विषय पर ध्यान करने का भारत देशके मुस्लिम समाज की पोलिटिकल लीडरशिप को लेकर सवाल उठाना हम समझते हे,हमारे देश मे आजादी के पेहले से धार्मवाद,जातिवाद,फिरकावाद को लेकर सामाजिक सत्ता देशकी हुकूमतखे लिये सारे षड्यंत्र होते रहे हे, *लेकिन भारत देशके मुस्लिम समाजकी सोशल लीडरशिप और धार्मिक लीडरशिप ने इन विषय पर गेहराइ से अभ्यास नही किया नाही कोइ ठोस कदम उठाये,*जिसको लेकर हमारे पोलिटिकल लीडरशिप मजबूत करने के बजाये हम और दिन बदीन कमजोर होते गये,आज एसी परिस्थितियों मे अगर हम सिर्फ पोलिटिकल लीडर को जिम्मेदार मानते हे ये बिलकुल सरासर गलत हे,और इसकी हवा चलाने वाले सबसे पेहले धार्मिक और सामाजिक लीडरशिप ने किया हे.

*हमारा मानना हे मुस्लिम समाज की तमाम परिस्थितियों के जिम्मेदार सबसे पेहले नंबर पर धार्मिक लीडरशिप के लोग जिम्मेदार हे,अंग्रेज हुकूमत के सामने आवाज उठाने के जव आवाज लगाई तब हजारों  लाखों  की संख्या मे मुस्लिम समाजने कुरबानी दी हे,* जिसका एक लंबा इतिहास हे,लेकीन तथाकथित आजादी के बाद हमारी शक्ति को कमजोर करने के लिये जो षड्यंत्र किये गये उसको समझते हुये जो रणनीति तैयार करने की जरुरत थी वो उस वक्त नही किया गया,आजकी तरहा उस वक्त भी ये नारा देते रहे,  *"देशकी आजादी को लेकर बनाया गया संगठन"* लेकीन संगठन सिर्फ लोगो की बली चरहाने के लिये हो वो संगठन कभी इतने बडे देशमे सामाजिक शक्ति हासिल नही कर शकता हे, एक बात और इस बात को हर समझदार और बुद्धिजीवी लोग मानते हे सत्ता पर बैठे लोग और बिजनेस करने वाले लोग जनता के लिये ईमानदारी से कार्य नही कर सकते हे, *दुनिया मे बहोत कम लोग ऐसे गुजरे हे, अब सवाल ये बनता हे क्या हमारे समाज के सामाजिक और धार्मिक संस्थान चलाने बडे बडे बिजनेस करने वाले हो और अपनी संस्थान को करोबार समझने वाले साथ मे सत्ता पर बैठे लोगों  की चाप लुसी करने वाले हो क्या वो समाज को बेहतर व्यवस्था और समाज की थफ आने वाले हालात से बचाने के लिये कोइ खास कार्य कर सकते हे?*


*ज्यादातर मुस्लिम समाज के जानकार बुद्धिजीवी लोग इसको समझे समाज को सामाजिक शक्ति हासिल करे बगेर हम पोलिटिकल शक्ति हासिल नहि कर सकते हे,* जिसको लेकर हर किसी की जिम्मेदारी हे किसि एक व्यक्ति और समुह की जिम्मेदारी नही हे, हमे बदलाव की जरुरत हे , सामाजिक,धार्मिक और लीडरशिप को बहोत गेहराइ से बदलाव की जरुरत हे, *और इस कार्यो को करने वाले हमारे समाज से ईमानदारी रखने वाले कर सकते हे,* हमारे भारत देश के कुच मजबुत पोलिटिकल लीडरशिप को लेकर ध्यान करते हे, आजम खान आज अपने परिवार के साथ जेल मे हे हमारी सामाजिक संस्थान इसमे क्या कर पाई हे ? ये सवाल पेहले हे उसको साथ कश्मीर के मैहबुबा मुफ्ती और फारूक को लेकर आप जानते हे क्या हालात हे, इस हमारी समाज के आम लोगों  के पास कितनी जानाकरी हे? इसमे हमारे संगठन के दावे करने वाले लोगों की क्या भुमिका हे? ये सारे सवाल हमेशा हमे सोचने की जरुरत हे.

*हमारे पोलिटिकल लीडरशिप को लेकर ये हमारा आर्टिकल-1 आने वाले समय मे हम इसका दुसरा हिस्सा आपतक शेर करेंगे.*


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Sunday, 26 April 2020

WhatsApp masej

*बेटी बचाने का सुनहरा मौका:* 
इस्लाम के कट्टर दुश्मन यहूदीओं की बरसों से कौशिश रही है की मुसलमानों को बरबाद करने के लिये उन्हें उनके मज़हबी लीडरों प्रति इतना अँधा करदो की मजहबी लीडर मुसलमान को रस भरे आम की तरह चूस ले और इतना गुमराह करदे की मुसलमान अपने बेटी-बेटियों के कैरियर की तरफ ध्यान देने की बजाय धर्म और फिरकों में इतना उलज जाये की उनकी बहन बेटियों की अजमत से खिलोने से भी कम किमंत पर हर कौम खिलवाड़ कर शके.
हम लोग बरसों से मद्रसों और यतीमखानों को ज़कात और मस्जिदों को लिल्लाह इमदाद इतना दिल खोल कर करते आये है और उसकी बदौलत पिछले 7-8 सालों में हम हम ऑलरेडी 1 लाख से ज्यादा मुफ़्ती, 1.5 लाख से ज्यादा कुर्रान हाफिज और आलिम तैयार कर चुके हैं , हर मोहल्ले और गली में नयी और भव्य मस्जिदें भी तामीर कर चुकें है, दूसरी तरफ पिछले 7-8 सालों में Ias, Ips, Magistrate, Engineer, Collector Doctor, Professor, Accountant बने मुसलमान की संख्या 100 तक भी नहीं पहुँच पाई है.
पिछले तीन वर्ष में 1250 से अधिक मुसलमान बहन- बेटियों ने महंगाई, बेरोजगार और गरीबी की वजह से इस्लाम धर्म छोड़कर गैरमुस्लिम (काफ़िर) से शादी की है.और सन 2002 के कलंकित दंगों के बाद से कई मुस्लिम महिलायें गलत कारोबार कर के अपना जीवननिर्वाह कर रही है. अभी माहौल ऐसा है की अच्छे घर की बुरखे वाली महिला पॉश एरिया में दिखाई दे तो भी दिमाग में हज़ार तरह के वसवसे आ जातें है. 24 मार्च से चल रहे लोकडाउन के तहत और धारा 144 के अमलवारी के चलते अभी भी ह्ज्जारों मुसलमानों के पास दो वक्त का खाना नहीं है, रोजमर्रा की ज़रूरत के सामान के लिये पैसा नहीं है, अभी यह कोरोना की बिमारी कहा तक चलेगी और लोकड़ाउन कब तक बढ़ता रहेगा उसकी कोई गारंटी नहीं है मुसलमानों का सबसे पाक और बा-बरकत महिना माहे रमजान शुरू हो गया है लोगों को सहेरी और इफ्तारी के भी लाले पड़े हुवे हैं लोकड़ाउन से अबतक कई खिदमतगार बंदों ने अपने से जो कुछ भी बना वो सब्जी, अनाज और राशन की किट बनाकर ऐसे स्लम एरिया में पहुंचाई, कुछ खिदमत गुजार लोगों ने खाना बनवाकर तकलीफ जदा लोगों में तकसीम करवाया लेकिन अब मस्ला रमजान का है. देश के आजाद होने से आजदीन तक मुसलमानों ने अपने सियासी लीडरों की, समाजी लीडरों की और मज़हबी लीडरों की हर अपील और बात को सर आँखों पर चढ़ाकर माना है. अब इस साल सभी पेश इमामों, दारुल उलूम के मालिक और ट्रस्टीगण, यतीमखानों के संचालक और रमजान में लाखो-करोडो रूपये ज़कात इकठ्ठा करने वाले तमाम संस्थान, संगठन और NGO से हाथ जोड़कर दर्द मंदाना अपील-गुज़ारिश और अनुरोध है अल्लाह और उसके हबीब (स.अ.व्.) का वास्ता है की इस साल अपने इदारे, तंजीमे, मद्रसे, दारुल उलूम, यतीमखाने तथा हर तरह के संस्थान के लिये ज़कात की अपील और चंदा न करें और बराये महेरबानी जो रोज कमाकर रोज खाने वाले ह्ज्जारो लोग अभी लोकड़ाउन की वज़ह से भूख से पीड़ित है सेहरी और इफ्तारी का मामूली भी प्रबंध नहीं कर शकते वैसे लोगो को इस साल रोज़े चैन-शुकून और इत्मिनान से रख लेने दीजिये और अपनी बहन-बेटियों को पैसों के लिये गैरमुस्लिम से गैर-मज़हब में शादी करने पे मजबूर होने से बचा लीजिये जो मुसलमान औरतें माली हालात खराब होने की वज़ह से जीवन निर्वाह के लिये गलत कारोबार-गुमराही की तरफ धकेलाई जा रही है उन्हें और आने वाली हमारी नस्लों को बरबादी से बचा लीजिये. यह मेसेज किसी खास तंजीम को फायदा पहोंचाने या किसी का भी नुकशान करने के लिये तैयार नहीं किया गया इसलिये बदले की भावना से कोई जवाबी मेसेज न फेलायें तो बहेतर रहेगा. और मुसलमान भाइयों अगर आप लोगों को इस मेसेज में कोई वजूद और सच्चाई नज़र आती हो तो जितना हो शके उतना गरीब मुस्लिम इलाकों में अभी घर बैठे रोजदारों को अपनी ज़कात और लिल्लाह रकम पहोंचाये और अपने दिल को पूरशुकून का एहसास करायें. अगर आप के दिल में खौफ ए खुदा है तो यह मैसेज पुरे हिंदुस्तान में वाइरल करते रहिये.
-शुक्रिया   

लोकडाउन मे रमजान के पेहले रोजा के बाद सरकार के फरमान के बाद सोशल मिडिया वायरल मेसेज.

हुकूमत ने आज यानी पहले रमज़ान से सभी दुकानों को सशर्त खोलने की इजाज़त दे दी है। मॉल व मल्टी ब्रांड रिटेल को इससे वंचित रखा गया है। पहले रमज़ान का मतलब आप समझ गए होंगे। गौरतलब है कि रमज़ान एक ऐसा महीना है जिस महीने में अमीर मुसलमान दिल खोल कर शॉपिंग करते हैं और जकात भी निकालते हैं जिसकी वजह से गरीब भी खरीदारी कर पाते हैं। यानी प्रत्येक 20 करोड़ मुसलमान ईद की खरीदारी जरूर करते हैं।

 अब एक नज़र बाज़ार पर डालिए। अधिकतर स्थानों पर कपङे से लेकर जुते की दुकानें अग्रवाल से लेकर बनिया भाईयों की है। लगभग ब्रांडस के मालिक अग्रवाल, जैन , गुप्ता समेत हिंदू समुदाय के लोग ही हैं। मेरे कई मित्र जो अग्रवाल समुदाय से आते हैं, बताते हैं कि रमज़ान में पूरे साल भर की कमाई हो जाती है क्योंकि इस त्योहार में मुसलमान हर हाल में खरीदारी करते ही करते हैं। चाहे उधार ही क्यूँ न लेना पड़े। अब आप सारा गेम समझ गए होंगे कि हुकूमत ने पहले रमज़ान से दुकानों को खोलने की इजाज़त क्यूँ दी है।

 इसे आप हुकूमत का स्वागत योग्य कदम न समझें बल्कि हुकूमत ने मोटा चंदा देने वाले अपने भक्तों को खुश किया है। ऐसा करके एक बार फिर हुकूमत ने अपने भक्तों को आर्थिक सहायता पहुंचाने के चक्कर में कोरोना जैसी महामारी में आम जन के जान को जोखिम में डाल दिया है। सभी दुकानों को खोलने की इजाज़त से क्या सरकार यह कह रही है कि अब हमारे देश में कोरोना पर काबू पा लिया गया है? क्या सरकार यह कह रही है कि आप अब शॉपिंग दिल खोल कर कीजिए क्योंकि अब कोरोना महामारी नहीं रहा ? अगर ऐसा नहीं है तो फिर यह क्यूँ नहीं माना जाए कि सरकार ने अपने बनिया समुदाय को खुश करने के लिए करोङों लोगों के जान को जोखिम में डाल दिया है। 

अब देखने वाली बात यह होगी कि जो हिंदू समाज कल तक मियांओं को अपने मुहल्लों में आने नहीं दे रही थी अब अपने दुकानों के बाहर ईद मुबारक का बड़ा बड़ा बैनर लगाकर मियांओं का स्वागत करेंगे। जबकि यही सबसे बेहतरीन समय है इस नस्लीय ,मीडिया व तंत्र को सबक सिखाने का । मुसलमानों को हुकूमत से सामुहिक रूप से गुहार लगाना चाहिए कि एक महीने तक राशन व मेडिकल के अलावा कोई दुकान नहीं खुलनी चाहिए। अगर हुकूमत यह नहीं मानती है तो सभी मुसलमानों को इस बार सामुहिक ऐलान कर देना चाहिए कि इस बार ईद हम नए कपङे, जुते, चप्पल के बिना मनाएंगे।

 अगर मुसलमान ऐसा नहीं करते हैं तो याद रखिए यदि एक भी दुकानदार को कोरोना हुआ तो मरकज़ प्रकरण की तरह आप पर फिर से ठिकरा फोङ दिया जाएगा। और इसके लिए दुकानों में कुर्ता पैजामा से लेकर जुते चप्पल खरीदते हुए हम आप की भीङ का वीडियो दिखाया जाएगा। आप सबको मालूम है कि आखिरी के दिनों में सामान खरीदने की भीङ होती ही होती है और मियां जी को घेरने के लिए इसी भीङ का बतंगङ मीडिया वाले बनाएंगे। वैसे भी लॉकडाउन की वजह से लोगों का ऐसा आर्थिक नुकसान हुआ है जिससे उबरने में कम से कम छह महीने लगेंगे।

 इसलिए इस बात से खुश न होकर कि दुकानें खुलेंगी , मुसलमानों को इस बार ईद शॉपिंग नहीं करनी चाहिए ताकि शॉपिंग से बचे पैसे को अगले छह महीने स्कूल , राशन, मेडिकल आदि पर खर्च करने के लिए बचा कर रखना चाहिए। कुल मिलाकर हुकूमत द्वारा सभी दुकानें खोलने का ऐलान मुसलमानों को जबर्दस्त आर्थिक नुकसान एवम् बनिया समुदाय को जबर्दस्त मुनाफा दिलवाने का प्लान भर है ।
Limra News

मिडिया लोकतंत्र मे संविधान का चौथा स्तंभ हे परहे.

https://hindi.scoopwhoop.com/Journalism-are-behaving-like-a-dictator-please-save/
ये पोस्ट 

https://www.pravakta.com/the-fourth-pillar-of-democracy-is-really-the-media/

Saturday, 25 April 2020

Gujarat sarkar lockdown masej 25 April 2020

*♦રાજ્યમાં તમામ જિલ્લાઓમાં રવિવાર તા. ર૬ એપ્રિલથી 
મોલ-માર્કેટીંગ કોમ્પલેક્ષ સિવાય દુકાનો-ધંધા વ્યવસાયો શરૂ કરવા દેવાશે*
-: *નિયમો-શરતોને આધિન છૂટછાટો*:- 
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-: *ભારત સરકારના ગૃહના જાહેરનામાના અનુસંધાને મુખ્યમંત્રીશ્રીનો નિર્ણય* :- 
......
*બાર્બર શોપ –હેર કટીંગ સલૂન -પાન-ગુટકા-બીડી-સીગારેટની દુકાનો - ટી સ્ટોલ
- હોટલ- રેસ્ટોરન્ટ શરૂ નહિં થાય*
.....
*શોપ એન્ડ એસ્ટાબ્લિશમેન્ટ એકટ-ગુમાસ્તા ધારા હેઠળ નોંધાયેલ  અન્ય દુકાનો વ્યવસાયો શરૂ કરી શકાશે* 
......
*ફરજિયાત માસ્ક-સોશિયલ ડિસ્ટન્સીંગના નિયમોનું પાલન કરવું પડશે*
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*કન્ટેનમેન્ટ ઝોન બહારની આઇ.ટી તેમજ આઇ.ટી.ઇ.એસ ઇન્ડસ્ટ્રીઝ  ૫૦ ટકા સ્ટાફ સાથે શરૂ કરવા મંજુરી અપાશે* 
......
-: *મુખ્યમંત્રીશ્રીના સચિવે આપી વિગતો*:- 
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મુખ્યમંત્રી શ્રી વિજયભાઇ રૂપાણીએ રાજ્યના નાના-મોટા દુકાન ધારકો, ધંધા વ્યવસાયકારો માટે એક મહત્વપૂર્ણ નિર્ણય કર્યો છે. 
ભારત સરકારના ગૃહ મંત્રાલયના જાહેરનામાના અનુસંધાને મુખ્યમંત્રીશ્રીએ રાજ્યમાં આ નિર્ણયની જાહેરાત કરી છે.
આ મહત્વપૂર્ણ નિર્ણય અનુસાર રાજ્યના તમામ જિલ્લાઓમાં આવતીકાલ, રવિવાર તા. ર૬ એપ્રિલથી મોલ તેમજ માર્કેટીંગ કોમ્પલેક્ષ સિવાય તમામ દુકાનોને પોતાના ધંધા વ્યવસાય કરવા માટે છૂટ આપવામાં આવશે. આવી છૂટછાટ નિયમો અને શરતોને આધિન આપવામાં આવી છે. 
તદ્દઅનુસાર, જે દુકાનો-ધંધા વ્યવસાયને વ્યવસાય માટે છૂટ આપવામાં આવી છે તે વિસ્તાર કન્ટેનમેન્ટ વિસ્તારની બહાર હોવો જોઇશે. 
એટલું જ નહિ, દુકાન-ધંધા વ્યવસાયના નિયમિત સ્ટાફના પ૦ ટકા સ્ટાફ રાખવાનો રહેશે તેમજ માસ્ક પહેરવાનું અને સોશિયલ ડિસ્ટન્સ જાળવવાનું પણ ફરજિયાત પાલન દુકાન-ધંધા વ્યવસાયકારોએ કરવાનું રહેશે
મુખ્યમંત્રીશ્રીના સચિવ શ્રી અશ્વિનીકુમારે આ નિર્ણયની વધુ વિગતો આપી હતી. 
તેમણે કહ્યું કે રાજ્ય સરકારે એવો પણ નિર્ણય કર્યો છે કે રાજ્યમાં હેર કટીંગ સલૂન-બાર્બર શોપ તેમજ પાન-ગુટકા-સીગારેટનું વેચાણ કરતી દુકાનો અને ટી-સ્ટોલ તથા રેસ્ટોરન્ટ અને હોટલ્સ ચાલુ રાખી શકાશે નહીં. 
શોપ એન્ડ એસ્ટાબ્લીશમેન્ટ એકટ-ગુમાસ્તા ધારા હેઠળ નોંધાયેલી અન્ય દુકાનો અને ધંધા વ્યવસાયો ચાલુ કરી શકાશે. 
રાજ્યમાં જે-તે સ્થાનિક સત્તામંડળે જાહેર કરેલા કન્ટેનમેન્ટ વિસ્તારો માન્ય ગણાશે તેવું પણ ઠરાવવામાં આવ્યું છે. 
મુખ્યમંત્રીશ્રીના સચિવે સ્પષ્ટપણે જણાવ્યું કે, દુકાન ધારકો-વ્યવસાયકારોએ પોતાના ધંધા વ્યવસાય શરૂ કરવા માટે કોઇ વધારાનું પ્રમાણપત્ર લેવા જવાનું રહેશે નહિ. ગુમાસ્તા ધારા હેઠળ મેળવેલું લાયસન્સ તેમજ ઓળખના પૂરાવાને માન્ય ગણવામાં આવશે અને તેના આધારે વ્યવસાય-દુકાન શરૂ કરી શકાશે. 
મુખ્યમંત્રીશ્રીએ આ ઉપરાંત એવો પણ નિર્ણય કર્યો છે કે I.T તેમજ ITES ઇન્ડસ્ટ્રીઝમાં પણ પ૦ ટકા સ્ટાફ કામકાજ માટે રાખવાની શરતે અને જો આવી ઇન્ડસ્ટ્રી કન્ટેનમેન્ટ ઝોન બહારના વિસ્તારમાં હોય તો તેવી ઇન્ડસ્ટ્રીઝને પણ મંજૂરી આપવામાં આવશે, તેની વિગતો પણ મુખ્યમંત્રીશ્રીના સચિવે આપી હતી.  
મુખ્યમંત્રીશ્રીએ કોરોના સંક્રમણની પ્રવર્તમાન સ્થિતીમાં રાજ્યની બજાર સમિતિઓ માટે પણ એક અગત્યનો નિર્ણય કર્યો છે. 
મુખ્યમંત્રીશ્રીના આ નિર્ણય સંદર્ભમાં મુખ્યમંત્રીશ્રીના સચિવે ઉમેર્યુ કે, લોકડાઉનની સ્થિતીમાં જે બજાર સમિતિઓની વ્યવસ્થાપન કમિટીની મુદત પૂર્ણ થઇ ગઇ છે તેવી તથા જે બજાર સમીતિઓની મુદત તા.૩૧ જુલાઇ-ર૦ર૦ સુધીમાં પૂર્ણ થનારી છે તેવી બજાર સમિતિઓની મુદત તા.૩૧ જુલાઇ સુધી લંબાવી દેવામાં આવી છે. 
શ્રી અશ્વિનીકુમારે એમ પણ જણાવ્યું કે, રાજ્યમાં જે બજાર સમિતિઓની વ્યવસ્થાપન સમિતીની ચૂંટણી કોર્ટના આદેશને આધિન યોજવાની થતી હોય તો તે કરી શકાશે. અન્યથા સામાન્ય સંજોગોમાં અન્ય મંડળીઓ-સમિતીઓની વ્યવસ્થાપન સમિતીની મુદત તા.૩૧ જુલાઇ-ર૦ર૦ સુધી વધારી દેવામાં આવી છે. 
મુખ્યમંત્રીશ્રીના સચિવે જણાવ્યું કે, અંત્યોદય અને PHHના NFSA અન્વયે અનાજ મેળવતા ૬૬ લાખ પરિવારોને વિનામૂલ્યે ૩.પ૦ કિલો ઘઉં અને ૧.પ૦ કિલો ચોખા વધારાના આપવાનો પ્રારંભ થયો છે. 
અત્યાર સુધીમાં ૪.પ લાખ પરિવારો આ અનાજ વિતરણનો લાભ લઇ ચૂકયા છે એમ પણા તેમણે જણાવ્યું હતું. 
શ્રી અશ્વિનીકુમારે રાજ્યના માર્કેટયાર્ડમાં ખેત ઉત્પાદનોની વેચાણ માટે થયેલી આવકની વિગતો આપતાં જણાવ્યું કે, પ લાખ પ૯ હજાર કવીન્ટલ ખેત ઉત્પાદનો વેચાણ માટે આવ્યા છે તેમાં ર લાખ ૯૯ હજાર કવીન્ટલ ઘઉં, ૧ લાખ પપ હજાર કવીન્ટલ એરંડા અને ૩૦૬પ૮ કવીન્ટલ રાયડો મુખ્યત્વે છે. 
રાજ્યમાં લોકડાઉનના બત્રીસમાં દિવસે ૪૮.૮૦ લાખ લીટર દૂધનું વિતરણ થયું છે તેમજ ૧ લાખ ૧૪ હજાર ૯પ૭ કવીન્ટલ શાકભાજી અને પ૦પ૪ કવીન્ટલ ફળોનો આવરો થયો છે એમ પણ તેમણે ઉમેર્યુ હતું. 
સીએમ-પીઆરઓ/અરૂણ

Thursday, 23 April 2020

तबलिग जमात के मरकज़ को कोरोना वायरस की बिमारी को लेकर मिडिया की भुमिका के बाद गुजरात के जिम्मेदार की खामोशी और रमजान आते आप समाज को लोकडाउन मे प्रशासन को सहयोग करने अपील करते हे?

आज का ये लेख  आपको सायद हमारे खिलाफ  सोचने पर मजबूर करेगा हम जानते हे,मुस्लिम समाज का  बहोत बदा हिस्सा  अभी बी मानसिक गुलाम हे.

SAFTEAM GUJ.
DA.23 APRIL 2020 


आज की तारीख़ मेने एक विडियो  देखा उसके बाद   मुझे  इस विषय   पर आपतक हमारी बात रखना जरुरी हो जाता हे.




सामाजिक कार्यकर्ता के लिये दिशानिर्देश और संगठन के उद्देश्य से जानकार होना जरुरी हे.

@नेतृत्व करने से पहले कायॅकताॅ को केडर में रुपांतरित       होना चाहिए....,

एक बार मान्यवर कांशीराम हरियाणा में कुछ कार्यकर्ताओं की मीटिंग ले रहे थे।

मीटिंग संबोधित करने के बाद साहब के कान के पास आकर बड़े अदब के साथ एक कायॅकताॅने कहा -
साहब...! हमारे समाज के दो कद्दावर ,नेता हमारे मिशन में काम करना चाहते हैं,..वो उधर पीछे बैठे हुए हैं...उनको किसी पद की जिम्मेदारी दे दें तो...कैसा ?

साहब, थोड़ा पहले रुके, फिर  कार्यकर्ता से कहा- " एक मोमबत्ती और माचिस लाओ..." 

कार्यकर्ता दौडकर दुकान से मोमबत्ती लाया, और उसे साहब को दे दिया। साहब ने मोमबत्ती का धागा निकालकर उसे जलाने को कहा। कार्यकर्ता ने उसे हाथ में लेकर कहा "साहब...यह बिना धागे के नहीं जल सकती।"  साहब ने उसे धागा देते हुए उसे पुन: डालकर जलाने को कहा।

कार्यकर्ता ने जैसे ही धागे को पुन: डालने का प्रयास किया, वैसे ही मोमबत्ती कई टुकड़ों में टूट गयी। 
साहब ने कार्यकर्ता से पूछा - " हमें इस मोमबत्ती को जलाना है, इसके लिए क्या करना होगा?

कार्यकर्ता ने कहा -"साहब! हमें इस मोमबत्ती के मटेरियल को पहले भट्टी में तपाना होगा , फिर मोमबत्ती के सांचे में  धागा डालते हुए मटेरियल डालकर उसे पुन: मोमबत्ती के रूप में ढालना होगा।"

साहब ने कार्यकर्ता की तारीफ करते हुए कहा -" तुम  कुछ समझदार लगते हो..."
तब साहब ने मीटिंग में उपस्थित कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा- ".. साथियो! जिस तरह इस मोमबत्ती के मटेरियल को भट्टी में  तपाकर और उसे मोमबत्ती के सांचे में ढालकर मोमबत्ती का रूप दिया जाता है, उसी प्रकार  हर कार्यकर्ता को पहले मिशन की वैचारिक भट्टी में तपना होता है...फिर क्रीटीकल समय में टेस्ट होता है। तब जाकर जिम्मेदार कायॅकताॅ के रुप में पहेचान मिलती है । केडरबेज
संगठन में कोई नेता नहीं होता , सभी कार्यकर्ता होता है, कोई छोटा कार्यकर्ता है, तो कोई बड़ा कार्यकर्ता है। उनके बाद नोन-पोलिटीकल बामसेफ संगठन, मा.डी.के.खापडेॅ , मा. दिनाभाना और वतॅमान में यही मिशन को आगे बढ़ाते हुए ...,मा.वामन मेश्राम सर, राष्ट्रीय अध्यक्ष, बामसेफ, मजबूत नैतृतव समाज को प्रदान कर रहे हैं,..., लोक डाउन के समय में भी हर तरह के प्रश्न का सटीक जवाब देकर कार्यकर्ता की संगठनात्मक ज्ञान की बढोतरी कर रहे हैं।

हमें, इससे सिखना चाहिए की संगठन में कार्यकर्ता को हर एक निणॅय उद्देश्यपुतिॅ के अनुरूप लेना चाहिए । जब उद्देश्य से कायॅकताॅ भटकता है, तब विचलित हो जाता है, और गलत आचरण करता है। जिससे समाज और संगठन को नुक्सान भुगतना पड़ता है।

घर पर रहिए, सुरक्षित रहिए। अपना ख्याल रखें।

धन्यवाद।

जय मुलनिवासी,

कीर्ति कुमार परमार,
प्रभारी गुजरात-बामसेफ

BJP IT SEAL PART-1

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*फासीवादी प्रचार के खिलाफ*

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_*यह महत्वपूर्ण लेख जरूर जरूर पढ़ें और दूसरों तक पहुंचाने के लिए शेयर करें।*_
*फ़ासिस्ट झूठ-उत्पादन कारख़ाना और संघी साइबर गुण्डों के गाली-गलौज के बारे में कुछ बातें*
✍ कविता कृष्णपल्लवी
🖥 http://www.mazdoorbigul.net/archives/12763
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यूट्यूब पर अगर बीजेपी आईटी सेल लिखकर खोजा जाये तो दर्जनों ऐसे वीडियो मिलेंगे जिनसे पता चलेगा कि किस तरह हज़ारों भाड़े के लोगों को बैठाकर भाजपा सैकड़ों फ़र्ज़ी वेबसाइट चलाती है (इनमें से कई भारतीय सेना के नाम पर हैं) और फे़सबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप आदि के ज़रिये अफ़वाहें और झूठी ख़बरें फैलाने का काम करती है। दिल्ली से लेकर छोटे शहरों तक 30,000 से लेकर 5-10 हज़ार रुपये पगार पर हज़ारों युवाओं को इस काम पर लगाया गया है और केन्द्रीय स्तर पर बड़ी आई.टी. कम्पनियों के विशेषज्ञों की भी सेवाएँ ली जाती हैं। भा.ज.पा. के आई.टी. सेल में काम कर चुके महावीर नाम के व्यक्ति ने ध्रुव राठी से इनकी पूरी कार्य-प्रणाली के बारे में विस्तार से बताया है। आल्ट न्यूज़ की वेबसाइट (Altnews.in) ज़रूर देखें और जानें कि फ़र्ज़ी ख़बरें और तस्वीरें किस तरह और कितने बड़े पैमाने पर हिन्दुत्व फैक्ट्री में तैयार की जाती हैं !

*झूठी खबरों से उत्तेजना भड़काने वाली और अफ़वाहें फैलाने वाली संघ की प्रोपेगंडा फैक्ट्री जितने बड़े पैमाने पर नवीनतम आई.टी. तकनोलोजी का सहारा लेकर काम कर रही है, उसके आगे हिटलर के प्रचार मंत्री गोएबल्स की प्रचार मशीनरी भी बेहद छोटी और कम असरदार थी। कांग्रेस और अन्य बुर्जुआ पार्टियों के भी आई.टी.सेल हैं पर उनकी साइज़, ताक़त, विस्तार और प्रभाविता संघियों के आई.टी.सेल के आगे कुछ भी नहीं है ! गौरतलब है कि आई.टी. सेल के अतिरिक्त अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों और मोहल्ले-मोहल्ले तक फैले शाखाओं के नेटवर्क के ज़रिये काम करने वाली संघ की पारंपरिक प्रचार मशीनरी आज भी उसी प्रभाविता के साथ काम कर रही है।*

ज़ाहिर है कि इस विराट अफ़वाह-तंत्र और उत्तेजना-भड़काऊ तंत्र को संगठित करने में पैसे की बहुत बड़ी भूमिका है, पर उससे भी बड़ी भूमिका मानव-उपादान की है। असाध्य ढाँचागत संकट से ग्रस्त जिस भारतीय पूँजीवाद ने राजनीतिक-सामजिक पटल पर धार्मिक कट्टरपंथी फ़ासिज़्म के इस विकट उभार को जन्म दिया है, उसी ने सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में उस गन्द भरे आत्मिक-सांस्कृतिक महागर्त का निर्माण किया है जिसमें आत्मा और शरीर पर संक्रामक बीमारियों के चकत्ते लिये पीले-बीमार चेहरों वाले मध्यवर्गीय कीड़े बिलबिला रहे हैं। इन कीड़ों को उग्र फ़ासिस्ट नारों की उत्तेजक नशीली खुराक से ही थोड़ा चैन मिलता है। *सोशल मीडिया पर जो ट्रोल और साइबर गुण्डे लगातार आकर गाली-गलौज करते रहते हैं, ये सभी वेतनभोगी टट्टू नहीं हैं। इनमें से बहुतेरे ऐसे हैं जो अपनी ज़िन्दगी की निराशाओं-कुंठाओं-रुग्णताओं में जीते हुए और फ़ासिस्ट प्रचार की नियमित खुराक पर पलते हुए तर्क और विवेक की दुनिया से कोसों दूर जा चुके हैं। ये मनोरोगी किस्म के लोग तर्क, विवेक और सेक्युलर-लोकतांत्रिक मूल्यों की बात करने वालों से रोम-रोम से घृणा करते हैं, मुसलमानों से घृणा करते हैं, आज़ादख़याल स्त्रियों से घृणा करते हैं और उन मज़दूरों से घृणा करते हैं जो ग़ुलामों की तरह पीठ झुकाए जीने के बजाय अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाते हैं।* जब भी ये भड़क कर उन्माद के रोगियों की तरह प्रलाप शुरू करते हैं तो इनके मुँह से निकालने वाली गालियाँ स्त्रियों के प्रति इनकी मनोरुग्णता को सरेआम उघाड़कर रख देती हैं। अपने रोज़मर्रा के जीवन में किसान भी अक्सर गालियाँ देते हैं, पर ये उनकी आदत-सी होती है जो उनके किसानी जीवन की उबाऊ गतिहीनता और प्रतिगामी सांस्कृतिक माहौल की देन होती है। किसान जब अपने बेटे को भी बेटी की गाली देता है तो उसके शब्दार्थ पर उसका दिमाग़ जाता ही नहीं। गालियाँ उसके लिए डाँटने, अपमानित करने और स्त्रियों और युवाओं को अपनी सत्ता का अहसास दिलाने का माध्यम होती हैं। *लेकिन एक फ़ासिस्ट ज़हनियत का मध्यवर्गीय नागरिक जब यौन-हिंसा का अर्थ लिये हुए कोई गाली देता है तो वह शाब्दिक स्तर पर वह हिंसा स्वयं करने का, कल्पना में उसे जीने का रुग्ण परपीड़क आनन्द लेता है। फ़ासिस्ट जब अपने किसी विरोधी पर चुन-चुन कर और रच-रच कर गालियों और तमाम भद्दी बातों की बौछार करता है तो उसके राजनीतिक स्तर के हिसाब से यह उसके राजनीतिक संघर्ष का उच्चतम रूप होता है, और सांस्कृतिक-आत्मिक स्तर के हिसाब से, यह उसका उच्चतम कोटि का मनोरंजन होता है। उसके मनोरंजन का उच्चतम स्तर एक कामोन्माद के रोगी के आत्म-उत्तेजन और एक सड़क के कुत्ते के चरमसुख से अधिक कुछ नहीं हो सकता !*

अब यह सवाल कि इन मनोरोगी, कटकटाये कुत्तों जैसे गुण्डों की भीड़ के पीछे चिकने-चुपड़े चेहरों वाले जो शान्तचित्त फ़ासिस्ट नीति-निर्धारक और रणनीतिशास्त्री बैठे हैं, दरअसल वे क्या सोचते हैं। पहली बात, फ़ासिस्ट नेता और बुद्धिजीवी भी विभाजित व्यक्तित्व और विकृत मानसिकता के लोग हुआ करते हैं। बुर्जुआ राजनीति की बाध्यताएँ उन्हें खुलकर गाली-गलौज की भाषा में बात नहीं करने देतीं, पर उनके भाड़े के टट्टू और छुटभैय्ये नेता जब गाली-गलौज और बेहद फूहड़-गन्दी बातें करते हैं तो यह चीज़ उन्हें भी एक किस्म की मानसिक तृप्ति और आत्मिक आनन्द देती है। भूलना नहीं चाहिए कि स्त्रियों को बर्बर, गन्दी गालियाँ देने वाले अनेक साइबर गुण्डों को  ट्विटर पर नरेन्द्र मोदी ख़ुद फ़ॉलो करते हैं। हर गाली में फ़ासिस्ट को अपने विरोधी को पराभूत करने के साथ ही स्त्रियों को अपमानित करने और कुचलने का भी आनन्द मिलता है। इसीलिए, कह सकते हैं कि जो स्त्रियाँ फ़ासिस्टों की नेतृत्व मण्डली में स्थान हासिल करती हैं और उनकी वाहिनियों में पल्लू खोंसकर उन्मादी नारे लगाती हैं, वे दोनों ही अपने व्यक्तिगत इतिहास और वर्ग-पृष्ठभूमि के मिले-जुले कारणों से विघटित और विकृत स्त्री-चेतना वाली स्त्रियाँ होती हैं।

वैज्ञानिक आलोचना अपने सबसे तीखे रूप में भी आक्रामक तर्क के साथ साहित्यिक भाषा में विपक्ष पर प्रहार करती है, व्यंग्य करती है, उसपर चोट करती है, पर किसी भी सूरत में वह व्यक्तिगत गन्दे आक्षेपों और भद्दे-अश्लील, स्त्रियों और पूरी मानवता को अपमानित करने वाले गाली-गलौज तक नहीं उतर सकती। समाज में आप आम तौर पर देखेंगे कि अफ़वाहबाज़ी और गाली-गलौज पर आम तौर पर वही लोग उतारू होते हैं जो या तो वैज्ञानिक मनोवृत्ति के लोग नहीं होते, या फिर ऐसे फ़र्ज़ी भद्रपुरुष होते हैं जिनकी आलमारी में कंकाल बन्द रहते हैं। जैसे, मार्क्सवादी यह मानकर चलते हैं कि राजनीति और सिद्धान्त की बात छोड़कर जब भी कोई व्यक्तिगत आक्षेप और कुत्सा-प्रचार करता है, तो वह कोई भगोड़ा, पतित तत्व या स्टेट-एजेंट होता है। प्रतिक्रियावादी बुर्जुआ चेतना का उन्नततम संगठित रूप होने के नाते, फ़ासिस्ट मानस की संरचना ही ऐसी होती है जो बुनियादी तौर पर वैज्ञानिक तर्कणा का ही विरोधी होता है। फ़ासिस्ट मानस किसी न किसी किस्म की ‘फे़टिश’ (अन्धभक्ति) की ख़ुराक पर जीता है। तर्क और तथ्य की बातें, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और इतिहास-बोध की बातें उसके तन-बदन में आग लगा देती हैं। फ़ासिस्ट बुद्धिजीवी के मिथ्याभासी तर्क गढ़े गये तथ्यों की बुनियाद पर खड़े होते हैं। अगर आप उसकी धारणाओं पर चोट करते हैं, तो, चूँकि वह तर्क कर ही नहीं सकता, इसलिए उसके सामने गाली-गलौज के सिवा कोई रास्ता बच ही नहीं जाता। उसका बस चले तो वह ऐसे तमाम लोगों की जान ले ले। लेकिन समस्या यह है कि एक रस्मी ही सही, लेकिन बुर्जुआ संसदीय प्रणाली में काम करने के चलते सारे तर्कशील बुद्धिजीवियों को दाभोलकर, पानसारे, कलबुर्गी, गौरी लंकेश की तरह मौत के घाट तो नहीं उतारा जा सकता। गाली-गलौज, मारपीट और आतंकित करने से, और सत्ता में होने पर क़ानूनी दबावों के द्वारा ही फ़ासिस्ट लक्ष्य पाने की कोशिश करेंगे। फिर अन्तिम विकल्प, यानी हत्या, तो हाथ में रहेगा ही।

फ़ासिस्ट सोचते हैं कि जब वे भद्दी-भद्दी गालियाँ सड़कों पर या सोशल मीडिया पर देंगे तो शरीफ़ नागरिक, और विशेषकर स्त्रियाँ, सकुचाकर, शरमाकर, हतोत्साहित होकर चुप लगा जायेंगी। इसका एकमात्र जवाब यह है कि उन्हें यह दो-टूक बता दिया जाये कि कुत्तों और मनोरोगियों से भला क्या शरमाना? कुकर्म करो तुम, मानसिक बीमार हो तुम, और शर्मायें हम? अगर वे बरखा दत्त, रवीश कुमार, स्वाति चतुर्वेदी, अभिसार आदि से लेकर साध्वी मीनू जैन और कविता कृष्णपल्लवी पर बेहद अश्लील टिप्पणियों और गालियों की बौछार करते हैं तो इन लोगों को नहीं, बल्कि शर्माना चाहिए सुषमा स्वराज,निर्मला सीतारमण, स्मृति ईरानी, हेमा मालिनी, वसुंधरा राजे आदि-आदि को, और ऐसी मनोरोगी औलादों के माँ-बाप को।

 मज़दूर बिगुल, फरवरी 2019 अंक में प्रकाशित
.t.me/mazdoorbigul

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कोरोना एक बिमारी हे,भुखमरी महामारी हे. भारतीय समाजको सामाजिक दुरी से बचावो देश बचावो.

#CoronaVirus #Covid19 #CoronaBhukhmariIndia #CoronaDharamwad 

Da.22 April 2020 

कोरोना एक बिमारी हे,भुखमरी महामारी हे.

पुरी दुनिया और खास कर हमारे देशमे दिन बदीन जिस तरहा से कोरोना को लेकर *मानव जिवन को लेकर* जो परिस्थितियां निर्माण हो रही हे, और की जा रही हे, *इसको बहोत अच्छे से अध्ययन करना और रिसर्च करना बहोत जरुरी हे.*

सबसे पेहले सोचने का विषय हम आपको देते हे, कोरोना वायरस को लेकर Social Distancing की जो बात की जा रही हे,वो कितनी सच और जरुरी हे? कोरोना की बिमारी से बचने के  लिये हमे *Social Distancing* की जरुरत हे या फिर  *Physical Distancing* की जरुरत हे? इस बिमारी को लेकर सबका केहना हे ये बिमारी एल दुसरे  को छुने से होती हे, *इसको समझते हुये साफ समझ आ रहा हे ये Physical समस्या हे Social समस्या  नही हे.*

फिर इस बिमारी को लेकर खासकर भारत देशमे Social Distancing को लेकर इतना जोर कुएं दिया जा रहा हे? *इसको समझना जरुरी हे,* हमारा मानना हे हमारे भारत देशमे *Social Distancing की व्यवस्था और विचारधारा हजारों सालों  से चलती आ रही हे.*

*Social Distancing किसी केहते हे?* य बात समझना बहोत जरुरी हे, सामाजिक दुरी को Social Distancing कहा जाता हे, और हमारे भारत देशमे सामाजिक दुरी इतनी गंभीर हे, *जिसकी जितनी आलोचना करे उतनी कम हे,*जातिवाद,भेदभाव,उंचनीच इससे समाज मे दुरी बनाई गइ* और एक खास वर्ग ने अपने अापको बाकी दुसरे समाज से उपर रखने के लिये व्यवस्था बनाइ *जिसके बाद मानवजाति का विकाश के बदले समाज गुलामी और बरबादी की तरफ आगे बरता रहा.

हमारे देश को आजादी से पेहले और आजादी के बाद के इतिहास को परहो आपको इसमे Social Distancing सबसे उपर मिलेगी, हमे अगर कोरोना से बचना हे तो पेहले हमे मानवजाति को गुलाम बनाने वाली व्यवस्था से भारतीय समाज को कैसे बचाये उसपर ध्यान करना जरुरी हे, *जिसके लिये हमे  Social Distancing नही Physical Distancing करने के लिये आगे आना हे,* और हमारे भारतीय समाज को सामाजिक दुरी से बचाने के लिये  हमे बहोत सोच समझकर  हर शब्दों को बलना हे.

कोरोनासे लडने के लिये प्रधानमंत्री का थाली-ताली और दिया मोमबत्ती  जेसे कार्यो को लेकर पुरे देश को आहवान करना ये सामाजिक गुलामी के तरफ ले जाने का प्रयास  था  उसके साथ सरकार अपने कार्यो मे असफल होने के बाद कोरोना से लडने के लिये संसाधन को लेकर चिंतित होने के बजाये देश की चातुकार और दलाल मिडिया ने जिस  तरहा कोरोना को मुस्लिम समाज से जोदने का प्रयास किया ये बात साफ हे  देश को बचाने के लिये बहोत बुद्धि  और संघर्ष का कार्य हे.

कोरोना जेसी  गंभीर बिमारी  के समस्या को सुलझाने के बजाये देश  को धार्मिक नाम से उलजाना और  लिंचिंग जेसी घटनाओं का होना साफ होत हे देश को बचाने के लिये गुलामी  के व्यवस्था से बचाना जरुरी  हे.
इस लेख का मकस्द साफ हे आप कोरोना से बचने के लिये हमेशा कोशिश करे, लेकीन इस बिमारी से बचने के लिये Social Distancing बोलने से परहेज करे Physical Distancing बोलें  *और भारतीय  समाज को एक दुसरे से अलग थलग करके गुलाम बनाने वाली व्यवस्था और विचारधारा  से देश को बचाने का प्रयास करे.*
 

*Huzaifa Patel, Bharuch GUJ.*
       *(Dadicated Worker)*
*SAF🤝TEAM* 📱9898335767

Coronavirus covid19 -Read this given article by great scientist.







Read this given article by great scientist.

Physiology or Medicine मैं नोबेल पुरस्कार जीतने वाले जापान के प्रोफेसर डॉक्टर टासुकू होंजो ने आज मीडिया के सामने यह बोल कर सनसनी फैला दी कि कोरोना वायरस प्राकृतिक नहीं है यदि प्राकृतिक होता पूरी दुनिया में यह यूं तबाही नहीं मचाता क्योंकि विश्व के हर देश में अलग अलग टेंपरेचर होता है प्रकृति के अनुरूप है यदि यह कोरोनावायरस प्राकृतिक होता कोचीन जैसे अन्य देश जहां जैसा ही टेंपरेचर है या वातावरण है वहीं दबंग मचाता। यह स्विट्जरलैंड जैसे देश मैं फैल रहा है ठीक वैसा ही यह रेगिस्तानी इलाकों में भी फैल रहा है जबकि यह प्राकृतिक होता तो ठंडे स्थानों पर फैलता  परंतु गर्म स्थानों पर जाकर यह दम तोड़ देता । मैंने जीव जंतु और वायरस पर 40 साल रिसर्च किया है यह प्राकृतिक नहीं है।  यह बनाया गया है और यह वायरस पूरी तरह से आर्टिफिशियल है। चीन की मुहं लेबोरेटरी में मैंने 4 साल काम किया है उस लेबोरेटरी के सारे स्टाफ से में पूरी तरह परिचित हूं कोरोना हादसे के बाद से  मैं सब को फोन लगा रहा हूं परंतु सभी मेंबर्स के फोन बंद 3 महीने से आ रहे हैं । अब पता चल रहा है कि सारे लेब टेक्नीशियन की मौत हो गई है। 

मैं आज तक की अपनी सारी जानकारियों और रिसर्च के आधार पर यह 100% दावे के साथ कह सकता हूं: की कोरोना प्राकृतिक नहीं है चमगादड़ से नहीं खेला है यह चीन ने बनाया है यदि मेरी बात जो मैं आज बोल रहा हूं वह आज या मेरे मरने के बाद भी झूठी हो तो मेरा नोबेल पुरस्कार सरकार वापस ले सकती है परंतु चीन झूठ बोल रहा है और यह सच्चाई एक दिन सबके सामने आएगी,

Wednesday, 22 April 2020

मुस्लिम समाज के हालात को लेकर गैर मुस्लिम भाइ ने क्या कहा ? सोशल मिडिया मे मेसेज बहोत शेर हो रहा हे.

#दलाल_मीडिया और #मुसलमान
SAFTEAM GUJ.
DA.21 APRIL 2020 
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मैं देख रहा हूं, पढ़ रहा हूं कि कुछ लोग मीडिया को दलाल कह रहे हैं, और दलाल मीडिया मुर्दाबाद के नारे लगा रहे हैं। यक़ीनन ये सब मुसलमान कह रहे हैं। बेशक़ मीडिया में बेशूमार कमियां हैं, इस बात से भी कोई इंकार नहीं कर सकता.

लेकिन मेरा सवाल आपसे ही है कि आप अपनी तादाद 20,25 और 30 करोड़ तक बताते हैं, 
आपके पास जमियत उलेमा ए हिंद भी है,
आपके पास #जमात ए इस्लामी हिंद भी है,
आपके पास तो आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी है,
दारूल उलूम #देवबंद भी है, #नदवतुल उलेमा लखनऊ भी है,
#वक्फ़ बोर्ड भी है,
बरेली भी है, हज़रत #निज़ामुद्दीन भी है, #अजमेर शरीफ़ भी है,
आपके पास इमाम #बुखारी भी है, मुफती #मुकर्रम भी है,
#अहमद पटेल भी है, #आज़म खान भी है
मुख़्तार अब्बास नक़वी है, शाहनवाज़ हुसैन भी है
#अज़ीम प्रेमजी भी है, असदउद्दीन #औवेसी भी है,
बदरूद्दीन #अजमल भी है,
#शाहरूख खान, #सलमान खान, #आमिर खान* भी है,
*मोहम्मद #अज़हरूद्दीन* भी है,
आपके पास पुरानी #दिल्ली भी है, औखला—सीलमपुर भी है!!!

फिर भी आप अपना नेशनल न्यूज़ चैनल नहीं चालू नहीं कर सके!🤔 ये सोचने वाली बात है.
चैनल तो दूर, आपसे एक ढ़ंग का राष्ट्रीय अख़बार तो चलाया नहीं ​गया आजतक!
रेडियो स्टेशन तक तो खोल नहीं सके आपलोग!
और अब जबकि डिजिटल मीडिया, न्यू मीडिया का ज़माना आ गया है, बावजूद इसके आप अभी तक एक जानदार या कामचलाऊ वैक्ल्पिक मीडिया ओपन नहीं कर पाऐ हैं।।।

पता है असलियत क्या है...सदियों से उर्स में ग़रीबों के लाखों-करोडों उड़ाए जाओ और बिरयानी के बाद मीठी सौंफ चबाके, खाट पे पड़ जाओ... अगर इन्हीं पैसों का ढ़ंग का मीडिया हाउस खोला जाता ना, तो आज ये ज़लालत, रूसवाई ना झेलनी पड़ती ...

#ताजमहल, #कुतुबमीनार, #लालक़िले को देखकर कब तक इतराते रहोगे...मियां

हमारे बुजुर्गों ने विरासत के रूप में *वक्फ बोर्ड्स की जो अरबों-खरबों की ज़मीन ...#मस्जिदों, #मदरसों, #क़ब्रिस्तान, #खानकाह, #दरगाह, #मकतब #स्कूल #कालिज के लिए दान की थी उसे कौन डकार* गया...बताऊँ ये भी, या फिर...बात करते हैं ...

क्या कुछ नहीं कर सकते थे, क्या कुछ नहीं हो सकता था, लेकिन जब ख़ैरात की गई ज़मीन पर कोठियां बनाओगे, तो होगा क्या, वही होगा, जो मंज़ूर ऐ ख़ुदा होगा. ...जी हाँ ...

किसे गरिया रहे हैं आप, हां!!!
उस कॉरपोरेट को, उन बिज़नेसमैन को, जिन्हें सिर्फ मुनाफा चाहिये, जिन्हें जर्नलिज़्म से कोई मतलब नहीं।

आप अपना मीडिया शुरू करो ना!
किसने रोका है आपको!
#कांग्रेस ने या #बीजेपी ने या #आरएसएस ने या मोदी ने!!!

अगर बस की बात नहीं हैं तो, आपको ​ज़्यादा फड़फड़ाने की कोई ज़रूरत नहीं है, जैसा वो दिखाऐंगे आपको देखना पड़ेगा, और देख रहे भी हैं आप, पढ़ भी रहे हैं, सुन भी रहे हैं।।।

छोड़ दो ये क़ाहिलपन, दूसरों को दोष देना, दिक्क़त कहां है, उसका हल निकालने की कोशिश कीजिए ❤🙏

टेक्नॉलोजी का दौर है, टैक्निकल हो जाओ...

☝ये #रिपोर्ट सभी पढ़े भाई और आगे भी जरूर शेयर करें क्योंकि यह काम हम लोगों को करना है इंशाल्लाह
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निवेदक:-
इंजीनियर गुलशेर राणा
वरिष्ठ युवा सपा नेता मेरठ
49-दक्षिण विधानसभा क्षेत्र मेरठ


coronavirus part-3 WhatsApp masej

जमात वालों ने अपनी आउटडेटेज विचारधारा और ज़ाहिलाना हरकतों से  हजारों लोगों के जीवन को संकट में डाल दिया। लेकिन आधुनिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद भी ज़ाहिल ही रह गए ये लोग उन के भी उस्ताद निकले। इन चार घटनाओं के विवरण देखिये, फिर विचार कीजिए -

(1) मुरैना के एक IAS अफसर ने अपनी माँ की तेरहवीं की जिसमें 1500 लोग शामिल हुए । बाद में पता चला कि पति पत्नी दोनों कोरोना पॉजिटिव थे । अब 3000 घरों को निगरानी में रखा गया है और कुल 26000 लोगों के संक्रमण का खतरा है ।

(2) आगरा के एमबीबीएस डॉक्टर जिनका बेटा लंदन से वापस आया उसने अपनी ट्रैवल हिस्ट्री छुपाई । वह कोरोना पॉजिटिव था । एमबीबीएस पिता ने खुद ही बेटे का इलाज शुरू कर दिया । अपने ही हॉस्पिटल में इलाज करते करते खुद भी ये डॉकटर कोरोना पॉजिटिव हो गया । पुलिस प्रशासन ट्रैवल हिस्ट्री पता करते जब हॉस्पिटल पहुंचे तब 125 लोगों के मेडिकल स्टाफ को तो परेशानी में ला ही चुके थे । कितने ही लोग जो उनसे इलाज करा कर चले गए वह खतरे में पड़े होंगे सो अलग ,जिनका पता भी नहीं कि वो अब कहां होंगे । पिता पुत्र दोनों घबरा कर गुरुग्राम के मेदांता हॉस्पिटल में एडमिट हो चुके थे । एफआईआर दर्ज की गई है अस्पताल सील कर दिया है । स्टाफ को अंदर ही क्वॉरेंटाइन कर दिया है ।

(3) तीसरा केस लखनऊ की महिला डॉक्टर का है । ये टोरंटो से वापिस आई । प्रशासन को नहीं बताया । ढाई साल के बेटे को पॉजिटिव किया साथ ही अपने सास ससुर को भी पॉजिटिव कर लिया ।

(4) चौथा केस इससे भी बड़ा अजूबा है! जिन लोग पर महाविपदा में जनता को संभालने की ज़िम्मेदारी थी ,याने मध्य प्रदेश का स्वास्थ विभाग ,ये विभाग ही खतरे में आ गया । यहां की प्रिसिपल हेल्थ सेक्रेट्री ने भी अपनी विदेशी ट्रैवल हिस्ट्री छुपाई । लगातार ऑफिस में बैठकर मीटिंग करती रही । स्वास्थ्य विभाग के तमाम बड़े अधिकारियों को उन्होंने कोरोना पॉजिटिव कर दिया ।

अब मैं आप से पूछना चाहता हूँ कि क्या उपरोक्त चारों मामलों में (जो कि वास्तव में हिन्दू ही हैं)आप यह मानते हैं कि चारों ने एक #साज़िश के तहत ऐसा किया होगा या खुद कोरोना बम बने होंगे और कोरोना धर्मयुद्ध कर के हज़ारों की जिंदगियों को खतरे में डाला होगा ?
.
अगर आपका जवाब #हां में है तो मैं मॉन लेता हूँ कि जमातियों ने भी #साज़िश के तहत कोरोना इंसानियत को इस महाआपदा से किस तरह बचाया जाए।
     राज कुमार बौद्ध।
भीम आर्मी जिलाध्यक्ष
       श्रावस्ती।

मुस्लिम सामज के दलाल भडवे.

वो दौर इंदिरा गांधी का था जब मुस्लिम नरसंहार हुवा था भारत में!

अरब को जब इस बात की खबर हुई तो सख्त रवैया अपनाते हुवे भारत को तेल देने से इनकार कर दिया, तब इंदिरा गांधी ने सरकारी मौलवियों का एक डेलिगेशन अरब भेजा ये कहकर कि सऊदी प्रिंस को कॉन्फिडेंस में ले और उन्हें बताये कि भारत में सब सामान्य है!

लिहाजा ऐसा ही हुवा, फिर सऊदी को इत्मीनान हुवा और फिर से तेल भेजना सुरु किया गया!

करीब 6 महीना पहले भी यही हुवा, जिनीवा जाकर कुछ सरकारी मौलवियों ने दुनिया को बताया कि भारत मे सब चंगा सी!

लेकिन आज भी मुस्लिमो का नरसंहार हो रहा है, आर्थिक बहिष्कार हो रहा है,  राम का नाम बुलवा कर मोब्लिंचिंग हो रही है,  मगर अब खाड़ी देशों के लीडर, वकील, बिजनेसमैनस, प्रिंसेज सभी ने पैनी नजर बना ली है और मोर्चा खोल दिया है कि भारत मे मुसलमानो का ख्याल रखा जाये वरना परिणाम अच्छा नही होगा!

अब फिर से सरकारी मौलवियों का डेलिगेशन तैयार किया जाएगा कि भारत मे सब चंगा सी कह के सऊदी को कॉन्फिडेंस में लिया जाय लेकिन चुकी लोकडाउन है तो इनका जाना मुमकिन नही है, सम्भव है कि ये प्रेस कॉन्फ्रन्स के ध्वारा इस काम को अंजाम दे। 

ये खेल हो इस से पहले तमाम सोशल मीडिया यूजर से गुजारिश है कि आप इन सरकारी मौलवियों को वार्निंग दे दो कि इस बार ऐसा कुछ हुवा तो अवाम आपका सामाजिक, आर्थिक हर रूप से बहिष्कार करेगी, और आप पर जमीनी कारवाई भी की जाएगी!

*इसे ज्यादा से ज्यादा शेर करे, ताकि कोई भी कौम को जेब मे लेकर दुबई शॉपिंग करने न निकल जाए।*

coronavirus part-2 WhatsApp masej

मेरे सभी मुस्लिम भाइयों और बहनों से विनम्र निवेदन। कृपया अधिकतम लोगों के साथ इसे शेयर करें।
 🙏🙏🙏🙏🙏

उनका एजेंडा।
वे दुनिया में वास्तविक डेटा छिपाने के लिए बड़े पैमाने पर परीक्षण में देरी कर रहे हैं।

वे मुसलमानों का इंतेज़ार कर रहे हैं कि वे कुछ गलती करें और फिर तेज़ी से ज़्यादा टेस्टिंग करके करोना वाइरस मरीज़ की संख्या बढ़ा दे और मुसलमानों पर पूरा दोष डाल दे।  
वे इंतजार कर रहे हैं:

1. 24 वीं (रमजान की शुरुआत) को मुसलमानों को तरावीह की नमाज के लिए मस्जिद की ओर जाते हुए देखे और पूरा दोष मुसलमानो पे डाल दे की मुसलमानो ने लाक्डाउन का उल्लंघन करके तरावीह पढ़ के करोना की संख्या बहुत बढ़ा दी है। इससे उन्हें लाक्डाउन को 3 मई से आगे बढ़ाने का बहाना भी मिल जाएगा ।

2. अगर मुसलमान लॉक्डाउन के कारण 24 तारीख को तरावीह के लिए नहीं निकलते हैं।  वे लॉकडाउन के अंत तक इंतजार करेंगे- और 3rd मई के बाद मुसलमान तरावीह के लिए आने शुरू हो जाएंगे।  2 दिनों के भीतर वे डेटा संख्या में वृद्धि करेंगे, और मुस्लिम तथा तरावीह को करोना के अधिक मामलों का दोषी ठहराएंगे और फिर लॉक्डाउन को आगे बढ़आने की घोषणा कर देंगे।

3. अगर कोई गैर मुस्लिम कोरोना पॉज़िटिव हो जाता है।  उनसे पूछा जाएगा कि क्या वह मस्जिद से अफतारी ले गए और अगर संयोग से वह हां कहते हैं।  वे करोना को आफतारी के ज़रिए फैलाने के लिए मुसलमानों को दोषी ठहराएंगे।

मेरा अनुरोध: 🙏🏻
 इस रमजान में मस्जिद न खोलें और अपने आप से आफतारी देने की कोशिश करें।
इस साल घर में तरावीह की नमाज अदा करें, लाक्डाउन खतम होने के बाद भी।

इसका पालन करने के 2 कारण : 🙏🏻
1. मुसलमानों को दोषी ठहराने की उनकी योजना को विफल करने के लिए।
 2. करोना कोविद -19 से खुद को एन परिवार को सुरक्षित रखने के लिए।

इस संदेश को सभी मस्जिदों के प्रबंधन तक पहुंचाने में मदद करे। और अपनी क़ौम की हिफ़ाज़त के लिए इसे ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचाए ।


_____________________________________________

*अरबी नेताओं के आक्रमक रूप देख कर नेता अभिनेता मैं खलबली,कोई ट्वीट तो कोई अकॉउंट कर रहा है डिलीट,सोनू निगम ने किया अकाउंट डिलीट*


कोरोना महामारी पर भारतीय मीडिया ने जो गंद फैलाया था उसका परिणाम स्वरूप सामने आ रहे हैं इन दिनों अरब देशों के विद्वान और नेता भारत के खिलाफ ट्वीट पर ट्वीट किये जा रहे हैं , अरबी नेताओं के आक्रमक रूप को देखते हुए कई बड़े भारत्तीय नेताओं ने अपने ट्विटर से या तो ट्वीट डिलेट कर दिये हैं या अकाउंट्स बन्द कर लिए हैं, जैसे सांसद तेजस्वी सूर्य के बयान को आड़े हाथों लेने के बाद उन्होंने उस बयान को डिलीट कर दिया है।

लेकिन अभी तो ट्विटर पर बस यही चल रहा है  दुबई के एक शीर्ष नेता ने मशहूर गायक सोनू निगम का “अज़ान” वाला ट्वीट ढूंढकर निकाल लिया, जैसे ही उन्होंने ट्विटर पे इस ट्वीट को लेकर सोनू निगम को टारगेट किया सोनू निगम ने अपना ट्विटर अकाउंट डिएक्टिवेट कर दिया।

The large number of Indian workers in the Gulf has proven their worth by working and building India's reputation in the region
And some who provoke #racism do not represent the ancient state of #India

— ا. منى الأربش Lawyer Mona Alarbash (@MonaAlarbash) April 20, 2020

बताया जा रहा है कि सोनू निगम ने ऐसा इस लिए किया क्यों कि वह लोकड़ाउन की वजह से  दुबई में फंसे हुए हैं, तो उन्होंने भविष्य में होने वाले खतरे को भांपकर ही ट्विटर अकाउंट डिएक्टिवेट किया है। हालांकि लोग दुबई पुलिस से सोनू की गिरफ्तारी की मांग कर रहे है ।

अब तो इस पर लोग खूब चिटकी ले रहे हैं ट्विटर डॉ मोनिका सिंह लिखती हैं कुछ महीने पहले सोनू_निगम ने कहा था मैं हिन्दू हूँ मैं अजान की आवाज सुनकर नही जागना चाहता।

ईश्वर का काम देखिये, सीमाएं सील हो गयी औऱ सोनू निगम दुबई में है। अब 5 समय की नमाज की आवाज सुन रहे होंगे।

प्रधानमन्त्री जी के “चहेते” सांसद, तेजस्वी सूर्या ने तारिक फ़तेह को टैग कर के अरब महिलाओं के लिए बहुत आपत्तिजनक ट्वीट किया.

जिसमे उन्होंने कहा “अरबी औरतों को सैकड़ों सालों से ओर्गास्म नहीं हुवा है”.. 

ये ट्वीट और इसकी भाषा इतनी खतरनाक थी कि सारा अरब देश एकसाथ विरोध में उतर आये हैं.

नूरा, जो कि UAE की एक्टिविस्ट और पॉलिटिशियन हैं, उन्होंने सबसे पहले इस ट्वीट पर आपत्ति जताई थी.

और तेजस्वी को टैग कर के कहा था कि “भारत में बहुत ऊँचे ऊँचे पदों पर महिलायें रही हैं, मगर आपके संस्कार औरतों की इज्ज़त नहीं सिखा सके आपको.

और अगर आपको आपकी सरकार कभी विदेश मंत्री का पद देती है तो ध्यान रखियेगा कि आपका अरब कि धरती पर स्वागत नहीं होगा. आपकी ये घृणा याद रखी जाएगी”

तेजस्वी ने तुरंत आनन फ़ानन में वो ट्वीट डिलीट कर लिया मगर बात जहाँ जानी थी, चली गयी और इस वक़्त हालात ये हैं कि UAE के बड़े बड़े अधिकारी, पॉलिटिशियन और बड़े बड़े लोग लगे हैं इंडिया में फैली नफ़रत के ख़िलाफ़ लिखने में.

वहां एक एक विडियो जिसमे मुसलामानों के साथ कोई भी ज़ुल्म हुवा है, संजोया जा रहा है

UAE की राजकुमारी ने UAE में बिज़नस कर रहे “सौरभ भारद्वाज” के कुछ ट्वीट का स्क्रीन शॉट पोस्ट किया था.

जिसमे सौरभ बहुत गन्दी ज़ुबान मुसलामानों के लिए इस्तेमाल कर रहे थे.

सौरभ का UAE में करोड़ों का कारोबार है और राजकुमारी के एक्शन में आते ही पुलिस हरकत में आ गयी.

सौरब ने अपने सारे twitter से लेकर फेसबुक तक अकाउंट बंद कर दिए और अपनी कंपनी की वेबसाइट भी बंद कर दी है और अब छिपे छिपे फिर रहे हैं.

उनका सारा बिज़नस एक झटके में चला गया.

अब UAE में बसे हर भारतीय के नफ़रत फैलाने वाले अकाउंट को खंगाला जा रहा है.

UAE में चौतीस लाख से ऊपर भारतीय रहते हैं.

जो कि वहां की कुल आबादी का सत्ताईस प्रतिशत है 

UAE की राजकुमारी गाँधी को आदर्श मानती हैं और जब उनके एक ट्वीट पर किसी ने उनसे कहा कि गांधी पॉलिटिशियन थे तो उन्होंने जवाब दिया “नहीं, वो संत थे”.

राजकुमारी प्यार मुहब्बत और भाई चारा सिखाने वाली पोस्ट कर रही हैं.

मगर यहाँ के आई टी सेल वाले उन्हें गाली दे कर आ रहे हैं. 

जो अब खतरनाक होता जा रहा है और सारा UAE विरोध में उतरा आ रहा है.

तभी कल PMO ने भाई चारा बनाये रखने की ट्वीट की थी. और उसी ट्वीट को आज UAE में भारत के राजदूत ने रीट्वीट करके लोगों से भाईचारा बनाने की अपील की है. 

ये मामला अब खतरनाक मोड़ पर पहुंच रहा है 

भाजपा के प्रवक्ता से लेकर मंत्री, संत्री, भक्तों और कार्यकर्ताओं की आदत इतनी ज्यादा ख़राब हो चुकी है कि ये सोचते हैं जैसे ये अपने देश के अल्प संख्यकों को अब कुछ भी बोल देते हैं, टीवी चैनल पर बैठ के गाली दे देते हैं, ऐसे ही ये सबको गाली दे देंगे और हर देश के मुसलामानों से ये वैसे ही बर्ताव कर लेंगे. 

इनकी मुसलामानों के प्रति नफ़रत बहुत ही ख़तरनाक चरण में पहुँच चुकी है जिसका इन्हें अभी अंदाजा भी नहीं है. 

कोरोना की इस महामारी के बीच में ये खेल अब बहुत आगे जाने वाला है. 

और यहाँ का मीडिया इस पर एकदम मौन है

Sunday, 19 April 2020

#corona_muslim_india_part_1

SAFVOICE 19 April 2020 
Copy वसीम त्यागी WhatsApp 

मुसलमानों के खिलाफ छेड़े गए प्रोपेगेंडा युद्ध की बदौलत कोरोना मुसलमान हो गया है। दर्जनों ऐसी ख़बरें आईं हैं जिसमें अस्पताल प्रशासन ने मुसलमानों का इलाज करने से साफ मना कर दिया। मेरठ में वेलिंटिस कैंसर अस्पताल है, इस अस्पताल ने दो दिन पहले दैनिक जागरण अख़बार में आधे पेज का विज्ञापन दिया, जिसमें कोरोना का जिम्मेदार तब्लीग़ी जमात को ठहराया गया। इतना ही इस विज्ञापन में तब्लीग़ी जमात के बहाने प्रत्यक्ष रूप से मुसलमानों का समाजिक बहिष्कार करने, उनके खिलाफ नफरत को लामबंद करने की अपील की गई है। सवाल है कि अगर कल किसी मुस्लिम को कोरोना फैलाने के नाम पर लिंच करके मार दिया जाता है तो उसका ज़िम्मादार कौन होगा? यह विज्ञापन यह भी स्पष्ट करता है कि वेलेंटिस कैंसर अस्पताल खुद सांप्रदायिकता के 'कैंसर' से ग्रस्त है। 

वेलिंटिस निजी अस्पताल है, उसके 'अपने' डाॅक्टर हैं। अस्पताल प्रशासन की मर्जी है कि वह जिसका चाहे इलाज करे, जिस पर चाहे इलज़ाम धरे। सवाल मुस्लिम मठाधीशों से है कि उन्होंने क्या किया? धार्मिक आयोजनों पर अरबों फूंक दिए गए लेकिन मूलभूत समस्याओ से निजात पाने के लिए कभी कोई योजना क्यों नहीं बनाई? लग्ज़री चेयर पर बैठकर ढाई-तीन घंटे की तक़रीरों, पाजामा कहां बांधना, नीयत कहां बांधनी है? इस्तेंजा ढेले से करना है कि पानी से? खतना के आयोजन में क्या बांटना है? इन्हीं में उलझकर एक पूरा समाज माचिस की डिब्बी में बंद होता चला गया। 1947 से लेकर 2020 तक मुसलमानो के खिलाफ होने वाली हिंसा पर अंकुश नहीं लग पाया, क्योंकि मुसलमानों के पास कोई योजना ही नहीं थी, और न फिलहाल नज़र आ रही है। देखते देखते तब्लीगी जमात के बहाने कोरोना मुसलमान बना दिया गया, मौलाना साद पर संगीन धाराओं में मुक़दमे लाद दिए गए। इतना ही नहीं मनी लांड्रिंग तक का मुकदमा मौलाना साद पर लगा दिया। क्या यह पैसा मौलाना साद का था? नहीं यह समाज के उत्थान के लिए था, लेकिन अब ज़ब्त कर लिया जाएगा। वह पैसा अगर डाॅक्टर, इंजीनियर, वकील, सिपाही, सैनिक, अफसर, पत्रकार बनाने में लगाया होता तो आज के हालात वैसे नहीं होते जो अब दिख रहे हैं।
इस देश में भारतीय रेलवे के बाद अगर सबसे ज्यादा अगर किसी समाज के पास वक्फ की ज़मीन है तो वह मुस्लिम समुदाय है। लेकिन उस ज़मीन का इस्तेमाल क्या हो रहा है? क्या इसका जवाब किसी के पास है? हर साल धार्मिक आयोजनों पर अरबों रूपया बहा दिया जाता है अगर इस पैसे से अच्छे संस्थान बना दिए होते तो बहुत बड़ा वर्ग आभारी हो जाता। लेकिन विज्ञान को 'शिर्क' बताकर एक पूरे समाज को 'दूसरों' के रहमो करम पर जिंदगी गुजारने के लिए मजबूर कर दिया गया। डाॅक्टर मनमानी रक़म वसूल कर इलाज कर रहा है ऊपर से इस अहसान के नीचे भी दबा रहा है कि हमने 'तुम्हारा' इलाज किया, यही हाल वकीलों, अफसरों, थानेदारों, सिपाहियों सरकारी दफ्तर के बाबुओं का है। और मुसलमान यह सब सहने के लिए मजबूर हैं क्योंकि उनके पास कोई विकल्प ही नहीं। और इन समस्याओं से निपटने के लिए कोई योजना भी नहीं, कोई तरीक़ा भी नहीं, अब उसकी मजबूरी है कि उसका मरीज़ या तो इलाज के अभाव में दम तोड़ दे, या फिर आंख, कान बंद करके 'दूसरे' लोगों की फब्बतियां, टिप्पणियों को बर्दाश्त करके इलाज कराए, और डाॅक्टर का अहसान भी अपने सर पर लाद ले। क्योंकि जिनके पास संसाधन हैं, क्षमता है, जनता है उन मठाधीशों का सारा संघर्ष अपना मठ बचाने, CBI ईडी से गर्दन बचाने में लगा हुआ है। हाल के दिनों में जो दो अहम दुर्घटनाएं मुसलमानों के साथ हुईं हैं उनमें दिल्ली दंगा और फिर कोरोना के नाम पर मुसलमानों का बहिष्कार, उनके खिलाफ हर दिन बढती जा रही नफरत है। अगर मठाधीशो ने अपनी खुदगरजी को अलविदा न कहा तो आने वाले वर्षों में हालात और भी ख़राब होंगे। यह भी हो सकता है कि इस समाजिक बहिष्कार का इतना भयानक रूप भी देखने में आए कि मुसलमान सिर्फ जिंदा रहने को ही अपना अधिकार समझने लगे। क्योंकि आर्थिक, समाजिक, राजनीतिक तौर से वह बिल्कुल तहस नहस हो चुका होगा।
Wasim Akram Tyagi✍✍

ज्यादा जानकारी के लिये लिंक पर जाये.

vakat se he har din or rat


कल जहां बसती थी खुसिया
आज है मातम वहां
भक्त लाया हे ये बहार
भक्त लाया है ये बहार 

भक्त से हे ये दिन और रात
भक्त से हे ये भुखमरी का काल
भक्त बने हर वो गुलाम सच जो ना माने 
भक्त पे करता हे वो राज हर उल्लु दाश
भक्त से हे ये दिन और रात
भक्त से हे ये भुखमरी का काल
भक्त पे करता हे वो राज हर उल्लु दाश
भक्त बने हर वो गुलाम सच जो ना माने

वक़्त की गर्दिश से है
चाँद तारो का नीसाण
वक़्त की गर्दिश से है
चाँद तारो का नीसाण
वक़्त की ठोकर में है
क्या हुकूमत का समाज
क्या हुकूमत का समाज
वक़्त से दिन और रात
वक़्तसे कल और आज
वक़्त की हर शै गुलाम
वक़्त का हर शै पे राज

वक़्त की पाबन्द है
आती जाती रौनके
वक़्त की पाबन्द है
आती जाती रौनके
वक़्त है फूलो की सेज
वक़्त है कांटो का ताज
वक़्त है कांटो का ताज
वक़्त से दिन और रात
वक़्त से कल और आज
वक़्त की हर शै गुलाम
वक़्त का हर शै पे राज

आदमी को चाहिए
वक़्त से डर कर रहे
आदमी को चाहिए
वक़्त से डर कर रहे
कौन जाने किस घडी
वक़्त का बदले मिज़ाज
वक़्त से दिन और रात
वक़्त से कल और आज
वक़्त की हर शै गुलाम
वक़्त का हर शै पे राज.







कल जहां बसती थी खुसिया
आज है मातम वहां
वक़्त लाया था बहार
वक़्त लाया है सीजन

वक़्त से दिन और रात
वक़्त से कल और आज
वक़्त की हर शै गुलाम
वक़्त का हर शै पे राज
वक़्त से दिन और रात
वक़्त से कल और आज
वक़्त की हर शै गुलाम
वक़्त का हर शै पे राज

वक़्त की गर्दिश से है
चाँद तारो का नीसाण
वक़्त की गर्दिश से है
चाँद तारो का नीसाण
वक़्त की ठोकर में है
क्या हुकूमत का समाज
क्या हुकूमत का समाज
वक़्त से दिन और रात
वक़्तसे कल और आज
वक़्त की हर शै गुलाम
वक़्त का हर शै पे राज

वक़्त की पाबन्द है
आती जाती रौनके
वक़्त की पाबन्द है
आती जाती रौनके
वक़्त है फूलो की सेज
वक़्त है कांटो का ताज
वक़्त है कांटो का ताज
वक़्त से दिन और रात
वक़्त से कल और आज
वक़्त की हर शै गुलाम
वक़्त का हर शै पे राज

आदमी को चाहिए
वक़्त से डर कर रहे
आदमी को चाहिए
वक़्त से डर कर रहे
कौन जाने किस घडी
वक़्त का बदले मिज़ाज
वक़्त से दिन और रात
वक़्त से कल और आज
वक़्त की हर शै गुलाम
वक़्त का हर शै पे राज.

Saturday, 18 April 2020

शहीद के पिता ने PM मोदी से पूछा- पुलवामा शहीदों के नाम पर जमा हुए करोड़ों रुपए का क्या हुआ?

Ramjan 2020 lockdown covid 19

*લોક ડાઉન માં_______*
*રમઝાનુલ મુબારકની દિનચર્યા બાબતે...*
*દીની અને મિલ્લી સંગઠનોના ઝીમ્મેદાર અને પ્રતિનિધિઓની એક જરૂરી અપીલ...*

 ૧૭ એપ્રિલ ૨૦૨૦
 
દેશમાં લોકડાઉનની મુદ્દત માં વધારો કરવામાં આવ્યો છે. આ સમયગાળામાં ઇબાદત-ગાહોમાં લોકોના    ભેગા થવા પર પાબંદી ચાલુ જ રાખવામાં આવી છે.
 મુસલમાનોએ અલ્હમદુલિલ્લાહ લોક ડાઉન પર અમલ કર્યો છે ત્યાં સુધી કે, ભારે મને મસ્જિદમાં પાંચ વખતની અને જુમ્માની પણ નમાઝની અદાયગી પર રોક લગાવાઈ રાખી છે. હવે એપ્રિલ ૨૦૨૦ ના છેલ્લા     અઠવાડિયાથી માહે રમઝાન-ઉલ-મુબારક શરૂ થવા જઈ રહ્યો છે. આ મુસલામાનો માટે બહુ  જ મહત્તા ધરાવતો મહિનો છે. જેમાં સૌ ઈબાદતનો ખાસ એહતેમામ કરે છે.

 લોકડાઉન માં રમઝાન-ઉલ-મુબારકની જાણકારીના પ્રમાણે દેશના દીની અને મિલ્લી સંગઠનોના ઝીમ્મેદાર અને પ્રતિનિધિઓ તરફથી અપીલ છે. ઉમ્મીદ છે કે, એના પર અમલ કરવામાં આવશે.

૧- કોરોના થી બચવા માટે જેવી રીતે અત્યાર સુધી અમલ કરવામાં આવ્યો છે કે મસ્જિદ માં અઝાન આપવામાં આવે છે અને કેટલાક લોકો જમાત સાથે નમાઝ અદા કરે છે , અને બાકીના તમામ લોકો પોતાના ઘરોમાં નમાઝ પઢી રહ્યા છે , આજ મામલો રમઝાનુલ મુબારકમાં પણ ચાલુ રાખવામાં આવે.

૨- કોઈ શરઈ કારણ વગર રોઝાને ટાળવામાં ના આવે.

૩- બધા પોતાના ઘરોમાં જ સેહરી અને ઈફ્તાર કરે.

૪- નમાઝે તરાવિહનો એહ્તેમામ પણ ઘરોમાં રહીને વ્યક્તિગત અથવા જમાતથી ઘરવાળાઓ સાથે મળીને કરવામાં આવે. આડોશી - પડોશીના ઘરોથી લોકોને ભેગા કરવાની કોશીશ કરવામાં ન આવે.

૫- લોકો રમઝાન માં બજારો માં જવાથી પરહેઝ કરે ખાસ કરીને ઈફ્તારથી પેહલા ખરીદારીની ભીડ થી બચે.

૬- રમઝાનની રાતોમાં અહીં- તહીં ફરવાથી સખ્તીથી પરહેજ કરવામાં આવે.

૭- વધારેમાં વધારે કુર્આનની તિલાવત કરવાના સાથે કુર્આનને સમજવાની પણ કોશિશ કરવામાં આવે. એના માટે કોઈ તરજુમાં કુરાન અને તફસીરની મદદ લેવામાં આવે.

૮- આ સમયને પોતાના ઘરવાળાઓની તરબિયત માટે ઉપયોગ કરવામાં આવે -  થોડો સમય એમના સાથે બેસીને હદીસનો તરજુમો કરવામાં આવે અને કોઈ દિની કિતાબ પઢવામાં આવે.

૯- કુરાન અને હદીસની ઓનલાઈન તરબીયત અને તઝકિરી દર્સ તૈયાર કરવા જોઈએ જેનાથી લાભ મળી શકે.

૧૦- તૌબા અને અસ્તગફાર, અને અઝકાર અને દુઆઓનો ખાસ એહતેમામ કરવામાં આવે.

૧૧- માહે રમઝાનમાં રિશ્તેદારો, પાડોશીઓ અને જરૂરતમંદની ખાસ ખબર લેવામાં આવે અને વધારેમાં વધારે સદકા અને ખૈરાત કરવામાં આવે કારણ કે સદકાં બલાને ટાળે છે. 

અલ્લાહ તઆલાથી દુઆ છે કે, જલ્દી થી જલ્દી આ બીમારીનો ખાત્મો કરે અને રોજિંદી જિંદગી અતા કરે .

:- અપીલ ગુઝારિશ :-

૧- મૌલાના તોકિર રઝા ખાન સદર, મુસ્લિમ ઈત્તિહાદ પરિષદ-બરેલી

૨- મૌલાના સૈયદ મેહમુદ મદની, સેકેરેટરી જનરલ જમાઅતે ઉલ્માં હિંદ

૩- મૌલાના વલી રેહમાની જનરલ સેક્રટરી ઓલ ઇન્ડિયા મુસ્લિમ પર્સનલ લો બોર્ડ

૪- જનાબ સૈયદ સઆદતુલ્લાહ હુસૈની, અમીર જમાઅતે ઈસ્લામી હિંદ 

૫- મૌલાના અસગર અલી ઇમામ સલફી અમીર મર્કઝીજમિયત એહલે હદીસ દિલ્લી

૬- ડોક્ટર મેહમુદ મંઝુર આલીમ જનરલ સેક્રટરી મિલ્લી કાઉન્સિલ 

૭- મૌલાના મુફ્તી મેહમુદ મુક્રમ શાહી ઇમામ મસ્જિદ ફતહપૂરી દિલ્લી

૮- મૌલાના સૈયદ જલાલુદ્દીન ઉમરી, સદર શરીઆ કાઉન્સિલ જમાઅતે ઈસ્લામી હિંદ

૯-  મૌલાના ખાલિદ સૈુફુલ્લાહ રેહ્માની, સેક્રેટરી ઈસ્લામી ફિકહ એકેડમી 

૧૦- મૌલાના સૈયદ સુલેમાન હુસેની નદવી નાઝીમ જમીઆ સિદ એહમદ શહીદ મલી આબાદ

૧૧- ડોક્ટર ઝફરૂલ ઇસ્લામ ખાન, સદર ઇકલિતી કમિશન દિલ્લી

૧૨- મૌલાના મોહસીન તકવી ઇમામ જુમ્મા શિય આજામે મસ્જિદ દિલ્લી

૧૩- મુફ્તી રાજીક નુમાઇન્દા મૌલાના અરશદ મદની,સદર જમિયતે ઉલ્મા હિંદ

૧૪- જનાબ લબિદ શાફી સદર, ઇસ્લામિક ઓર્ગેનાઈઝેશન ઓફ ઇન્ડિયા

૧૫- મૌલાના સગીર એહમદ ખાન અમીર શરીઅત કર્ણાટક

૧૬- મોલાના મેહમુદ તનવીર હાશ્મી, સદર ,એહલે સુન્નત વલ જમાત કર્ણાટક 

૧૭- જનાબ ઝહિરુંદ્દીન અલી ખાન ઇંડર સિયાસત

૧૮- પ્રોફેસર અખ્તરૂલ વસી, સદર, જોધપુરોની વરિષ્ઠ રાજસ્થાન

૧૯- મૌલાના મેહમુદ રઝિઉલ ઇસ્લામ નદવી સેક્રેટરી જમાત ઇસ્લામી હિંદ

૨૦- પ્રોફેસર અબ્દુર રહીમ કદવાઈ ડિરેક્ટર કુરાન સેન્ટર અલીગઢ મુસ્લિમ યુનિ વરિષ્ઠ અલીગઢ

૨૧- મૌલાના હાફિઝ સૈયદ અત હર  અલી  નઝુમ જામી મુહમ્મદ દિયા મુંબઈ

૨૨- મૌલાના મેહમુદ માની મિય પીર તરિકત મુંબઈ

૨૩- મૌલાના અમીન ઉસ્માની સેક્રેટરી ઇસ્લામિક ફિકહ એકેડેમી ઇન્ડિયા દિલ્હી

૨૪- મૌલાના શબીર એહમદ નદવિ નાઝિમ જમાત ઇસ્લહુલ બનાત બેંગ્લોર 

૨૫- મૌલાના મુફ્તી મેહફૂઝ અર રેહમાંન ઉસ્માની નઝીમ જમાત અલ કાસિમ સોપુલ બિહાર         

૨૬- જનાબ મુજતબા ફારૂકી જનરલ સેકરેટરી ઓલ ઇન્ડિયા મુસ્લિમ મજલીસ મુસાવરાત.

Friday, 17 April 2020

इमाम कीसे केहते हे? सवाल और सोशल मिडिया इलेक्ट्रॉनिक-प्रिंट मिडिया को लेकर खास मेसेज.

आजका सवाल इमाम हुसैन र.अ. को इमाम कुएं केहते हे❓

जुम्मा मुबारक:- 19 April 2020 lockdown 26 day.
आज मेने  इस विषय को गुगल मे सर्च किया मुझे अजीब लेख नजर आया जिसमे इमाम हुसैन र.अ. को लेकर करबला की लदाई मे भारत देश के ब्राम्हण ने इमाम हुसैन र.अ. को साथ दिया एसा झूठा इतिहास लिखा हुवा मिला.उसकी लिंक👇


अब आप सोच रहे होंगे। मेरी ये पोस्ट करने का मकस्द क्या हे?

नंबर एक कुच लोग इस लोकडाउन मे पेछले कुच दिनो से मस्जिद के ईमाम को लेकर  ये मेसेज 👇
ग़ुज़ारिश : आप हर साल जिस भी मस्जिद में तरावीह पढ़ा करते थे। इस बार शायद तरावीह न हो पाए लेकिन आप लोग अपने मस्जिद के इमामो को नज़राना उसी तरह दें जैसा के आप हर बार दिया करते थे क्योंके ऐसे हज़ारो इमाम है जो रमज़ान का इंतज़ार करते हैं और नज़राने की उम्मीद रखते हैं। आमीन। मुझे देखने को मील रहा हे.

सबसे पेहले इमाम किसको केहते हे? वो सवाल आजका हे, जवाब क्या हे इसका पता करो ये मेरा पेहला मकस्द हे.

दुसरी बात आज मिडिया की भुमिका के बाद बहोत से लोग सोशल मिडिया मे मुस्लिम मिडिया बनाने को लेकर एक मेसेज बहोत जोरों से वायरल कर रहे हे, मेसेज लिखने वाले को मेरा १००% स्पोर्ट हे लेकीन सिर्फ सोशल मिडिया मे लिखने से ये सोये हुये और स्थापित तथाकथित लीडर्स की आंखें खुलने वाली नही हे, इसके लिये आपको गली गली गांव गांव सडकों पर उतरकर आंदोलन का रुप देना पडेगा बाकी इस तरहा कि घटना को भुलाने का काम इनही तथाकथित लीडरशिप ने किया हे,इसका आंदोलन आजके संघर्षशील युवा बेहतर तरीके से कर सकते हे, मेने जो उपर करबला को लेकर झूठे लेख की लिंक शेर किया हे,एसे लेख लाखो नही करोडो मे इन्टरनेट मे मौजूद  हे, हमारे लोग सिर्फ सोशल मिडिया के  WhatsApp,Facebook जैसे प्लेटफॉर्म पर वाह वाही बतोर ने मे लगे हे लेकीन गुगल और विकिपीडिया मे जाकर अपने विचार और ईतिहास को लेकर लेख लिखने वाले बहोत कम हे,हमे अगर भारत देश मे मिडिया को लेकर शक्ति बनाना हे तो गुगल और विकिपीडिया मे कुच साथियों को इतिहास को जांच करने के बाद अपने अनुभव से सच्चा  इतिहास लिखना पडेगा.

तभी हमलोग मिडिया को बनाने मे आगे बर सकते हे.

आज का सवाल का जवाब जरुर देने की कोशिश करना.

नोध :- आपकी नजर मे अगर कोइ एसा विषय हो जिसका अभ्यास करने के बाद समाज के सामने रखना जरुरी हे,उस विषय को जरुर कोमेन्ट करे.

Huzaifa Patel, Bharuch GUJ.
       (Dadicated Worker)

Thursday, 16 April 2020

मुसलमानों पर कारोना के साथ नफरत की भी मार,जीवन तंग हो गया!

भारत में पिछले दो-ढाई महीनों से कोवाड 19, या कोरोना वायरस, ने अपने पैर पासार लिए हैं और देश से खतरनाक खबरें मिल रही हैं, लेकिन एक खबर ने स्थिति को बहुत गंभीर बना दिया है, और तब्लीगी जमात के मरकज को निशाना बनाया गया है। ढाई हजार मुसलमानों के मामले को एक कथित साजिश द्वारा  इतना उछाला  के तहत लाया गया है और समाचार चैनलों ने एक गन्दी भूमिका निभाई है। यह लंबे समय से जारी है, लेकिन इस घटना के बाद, देश के विभिन्न हिस्सों में और विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और बिहार आदि से ऐसी खतरनाक खबरें मिली हैं कि कई शहरों में मुसलमानों के दाखिले पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के छावनी क्षेत्र के एक गाँव प्रताप पुर में मुसलमान गाँव   में प्रवेश करने के लिए एक बोर्ड  लगा दिया कर प्रतिबंध लगा दिया गया था, हालांकि पुलिस ने ​​प्रशांत सिंह और भून नशाद को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है।

   लेकिन यह महज एक घटना नहीं है, बल्कि  तबलीग जमात का मुद्दा टीवी समाचार चैनलों द्वारा इतना जहरीला और उकसाया गया है कि एक  ऐसा माहौल यूपी के कई शहरों और कस्बों और बहुसंख्यक समुदाय और शिक्षितों के मन में देखा जाता है।  बार बार बताया गया कि कोरोना वायरस केवल मुसलमानों के कारण देश में फैल गया है। यह सब्जियों और सब्जियों को बेचने वाले मुसलमानों की वज़ह से प्रभावित कर रहा है। और अगर कोरोनोवायरस के संबंध में सांप्रदायिक प्रचार जारी रहता है, तो देश के मुसलमानों को छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत चिंताजनक स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। इस माहौल में 'हमऔर वह' के लिए पर्यावरण होने से नहीं रोक सकता। जिस तरह से दिल्ली सरकार ने पुलिस और प्रशासन ने हाल ही में दिल्ली में हुई घटना को सुलझाने की कोशिश की है और जिस तरह से अतिरंजित बयान सामने आए हैं, सोशल मीडिया और टेलीविज़न पर मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हरीला प्रचार किया गया है। कोरोना वायरस श्रृंखला के आसपास नाफरात की एक दीवार खड़ी की गई है, और भविष्य में इसके खतरनाक परिणाम सामने आए हैं। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, मुस्लिम फल विक्रेता, छोटे दुकानदार और छोटे व्यवसाय हर जगह बंद कर दिए गए हैं। इस दरमियान उनके  खिलाफ जो अभियान चलाया गया है और इसका परिणाम यह है कि मुस्लिम दुकानदारों और श्रमिकों को भुगतना पड़ रहा है प्रतिबंधों पर प्रतिबंध लगाने पर सहमति व्यक्त की जा रही है। एक योजनाबद्ध तरीके से, मुसलमानों के बारे में कई अफवाहें फैलाई गई हैं और सरकार समय-समय पर अपनी विफलताओं को खूबसूरती से उलटने में कामयाब रही है। यदि मुसलमानों, विशेषकर मजदूर वर्ग और कार्यालयों में काम करने वाले लोगों के साथ भेदभाव बढ़ता है, तो स्थिति चिंताजनक हो सकती है।

मुसलमानों को उपरोक्त स्थिति से बहुत दृढ़ता से निपटना होगा और उन्हें अभी जो करना है, उसे प्रभावी बनाना है और भावनाओं को प्रवाहित नहीं होने देना है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो आर्थिक पिछड़ापन का एक नया रूप सामने आएगा। आम तौर पर उनकी ज़िन्दगी असिंचित क्षेत्रों और स्वरोजगार पर निर्भर है। शहरों में, उनमें से अधिकांश स्वरोजगार पर निर्भर हैं, जबकि नौकरियों और सरकारी नौकरियों में उनका अनुपात काफी कम है। देश की अर्थव्यवस्था में उनका योगदान नगण्य है। मुसलमानों की शैक्षिक स्थिति के बारे में तथ्य सर्वविदित है। कुछ समय पहले सचर समिति ने अपनी रिपोर्ट में सरकार को आइना  दिखाया था कि मुस्लिम दलितों और पिछड़े लोगों की तुलना में ज़्यादा पिछड़े हैं और यह कि उनका पिछड़ापन भयानक रूप से खतरनाक हो सकता है, लेकिन समय बीतने के बावजूद, मुस्लिम को उनका अधिकार देने में सरकार विफल रही है। पहले कांग्रेस ने बड़ा दिल नहीं दिखाया और ना ही कभी कुछ और किया है  और कोशिश भी नहीं की गई है, हालांकि वोट बैंक  का आरोप लगाया गया है और भाजपा ऐसा कर ती रही  है।सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की नौकरियों और उच्च पदों के अवसर पर 2014 के बाद से मुसलमानों को व्यवस्थित भेदभाव का शिकार बना रही है। लेकिन कितने मुसलमान सुर्खियों में हैं, बहस का अवसर नहीं है, लेकिन हां यह कहा जा सकता है कि उन्हें उंगलियों पर गिना जा सकता है। हालांकि हाल के दशकों में, इन मुसलमानों की प्रगति विभिन्न क्षेत्रों में धीमी हो गई है, खासकर 1990 के दशक में शिक्षा में सुधार के बाद, वर्तमान मामले में अगर समाज में मजदूर वर्ग के खिलाफ भेदभाव किया जाता है। अगर यह जड़  पकड़ गया तो परिणाम विनाशकारी होंगे। पहले बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद हुए सांप्रदायिक दंगों के परिणामस्वरूप मुसलमानों को मिश्रित बस्तियों से और बड़ी संख्या में उदार विचारों वालों को बाहर आना पड़ा था। इसलिए दशकों तक, मुसलमानों और हिंदुओं एक दूसरे को अपनाया इस के बावजूद उन्हें क्षेत्र में विभाजित कर दिया  गया है, यह मुंबई जैसे महानगरीय शहर में हुआ है और सत्ता धारियों  ने इस विभाजन को रोकने की कोशिश नहीं की है। कांग्रेस भी असफल रही और भाजपा  तो यह चाहती है।

जिस तरह से कोरोना वायरस के प्रकोप के दौरान दिल्ली के तब्लीगी जमात- के केंद्र में घटना हुई है वह अफसोस नक है। जल्द ही  मुस्लिम यात्रियों के साथ होने वाले भेदभाव की कल्पना नहीं की जा सकत  है जब सब कुछ ठीक ठाक हो जय गा तब ट्रेन, नगर निगम की बस और  दिल्ली मेट्रो  में उनकी हालत हैरान कुन होगई , क्योंकि 1992-93 में एक दाढ़ी  टोपी वाले और  महिला यात्री और  कुर्ता पायजामा में एक दाढ़ी वाली टोपी पहने पर भारी रकम चुकानी होगी, हमारे बहुसंख्य भाइयों pके एक हिस्से का रवैया, वे दृश्य अभी भी आंखों के चारों ओर घूमते हैं। हालांकि तब्लीगी जमात के मामले में, भाजपा अध्यक्ष  नदा ने कार्यकर्ताओं को एक संदिग्ध बयान देने से मना किया है, लेकिन उनका आईटी सेल अपना काम और आधिकारिक स्तर पर जारी न्यूज चैनल को गलत और आधारहीन प्रचार करने से रोका जाना चाहिए।अब तक इन सब को रोकने के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया गया है, जो एक खेदजनक पहलू है। पूरे मुस्लिम के खिलाफ बयान और उनकी  निंदा ना करना  एक खेदजनक पहलू है। चैनलों को प्रतिबंधित कर दिया जाना चहिए । तथ्य यह है कि 2014 में मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के सत्ता में आने के बाद, ऐसे तत्व हैं जो दशकों से एक एजेंडे पर काम कर रहे हैं और सक्रिय हैं। भले ही मुसलमानों को करीब लाने के लिए आधिकारिक स्तर पर कुछ कदम उठाए गए हों, लेकिन इसके परिणाम आशाजनक नहीं रहे हैं। उन्हें राष्ट्रीय मुख्यधारा में लाने के प्रयास में, अल्पसंख्यक मामलों के विभाग ने हुनर हात का आयोजन शुरू किया है और यह अभी भी जारी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फरवरी में खुद दिल्ली में प्रगति मैदान पर दौरा कियाऔर मुस्लिम कारीगरों के बीच आयोजित हनरहाट की यात्रा इस समय को बिताना खुशी की बात है, याद रखें कि 2019 में एक साल पहले सत्ता में आने पर उन्होंने संसद के केंद्रीय कक्ष में नव निर्वाचित सांसदों को संबोधित करते हुए अल्पसंख्यक समुदाय को विश्वास में लेने की बात कही थी। लेकिन तीन तलाक और कश्मीर और CAA 

  में फंस गए थे ताकि उन्हें भारतीय मुसलमानों को विश्वास में लेने का अवसर न मिले। वास्तव में, मुस्लिम राजनीतिक रूप से कमजोर हैं और यह कमजोरी सामाजिक और आर्थिक रूप से उन्हें सशक्त बनाने में सबसे बड़ी बाधा है। राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों में मुसलमानों को कामयाब  होने से रोकने के लिए एक योजना का संचालन करें। इस दिशा में सोचना होगा अन्यथा कोई भी सामाजिक और आर्थिक रूप से सहयोग नहीं करेगा। वर्तमान में, जिस तरह से दिया और मोमबत्तियों की घोषणा के साथ समुदाय की बहुसंख्यक आबादी मोमबत्ती जलाने ,ताली और थाली बजने के दौरान मोदी के  साथ  नजर आयी वह उनकी जीत साबित करती है। बहुसंख्यक संप्रदायों को एकजुट करने में सताधा री  लोग कुछ हद तक सफल रही है। इस अवसर पर मुसलमानों और उनके नेतृत्व को अपना जायज़ा लेने की  आवश्यकता है।
Apka Bhai
Iqbal Qureshi 
Ex Parshad 
Mathura

7/11 मुंबई विस्फोट: यदि सभी 12 निर्दोष थे, तो दोषी कौन ❓

सैयद नदीम द्वारा . 11 जुलाई, 2006 को, सिर्फ़ 11 भयावह मिनटों में, मुंबई तहस-नहस हो गई। शाम 6:24 से 6:36 बजे के बीच लोकल ट्रेनों ...