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Thursday, 9 April 2020

#उम्मत_ए_मुस्लिमा_की_तक़सीम_कब_तक?? Part 1


जंगे अज़ीम अव्वल (first world war) और जंगे अज़ीम दोम (second world war) के बाद अगर्चे की पूरी दुनिया, रंग, नस्ल, ज़बान और इलाके की बुनियाद पर तक़सीम कर दी गई थी, लेकिन वह मग़रिब ताकतें जिन्होंने फ़तह के बाद इस तक़सीम की बुनियाद रखी आज यूरोपीय यूनियन (EU) के नाम एक परचम, एक पार्लियामेंट और सबसे बढ़कर यह कि एक करेंसी "यूरो" की बुनियाद पर एक ईकाई की सूरत मुत्तहिद है...!

बाकी तमाम दुनिया के लिए ये अठाईस (28) मुमालिक एक ऐसा मुत्तहिद खित्ता है कि आप इस में शुमाली कोने फिनलैंड से दाख़िल हो और जुनूब में माल्टा पहुँच जाए, तो आप न कही रोके जाएगे और न ही आप को यह अहसास होने पाएगा कि आप किस दूसरे मुल्क़ में दाख़िल हो रहे है, शानदार मोटरों पर तेज़ रफ़्तार गाड़ियों में बैठे आप को अचानक साइड पर सड़क के ऊपर एक बोर्ड नज़र आएगा कि आप फ्राँस से बेल्जियम, या बेल्जियम से हॉलैंड  में दाख़िल हो रहे है, यहाँ तक कि अगर दो मुल्क़ों के दरमियान समन्दर भी हाईल हो तो एक मुल्क़ से आप ट्रेन में सवार हो साहिले समन्दर पर ट्रेन पूरी के पूरी एक बड़े से बहरी जहांज (Ship) में दाख़िल हो जाती है और आप समन्दर का सिना चीरते दूसरे मुल्क़ में पहुँच जाते है, ट्रेन जहांज से ख़ुश्की पर उतरती है और आप स्वीडन से जर्मनी या नॉर्वे, डेनमार्क पहुँच जाते है...!

यह तमाम अठाईस (28) मुमालिक एक-दूसरे को मुआशी (Economic) तौर पर इस तरह तहफ़्फ़ुज़ देते है कि पुर्तगाल और यूनान जैसे गरीब मुमालिक की करेंसी भी मज़बूत तरीन "यूरो" है, जर्मनी और फ्राँस जैसे अमीर मुल्क भी इस "यूरो" में कारोबार करते है...! 

लेकिन यूरोप ने अपने बड़े इत्तेहादी अमेरिका के साथ मिलकर एशिया और अफ्रीका के बर्रेआज़मो की एक नाहमवार और ज़मीनी हक़ाईक़ से मावरा तक़सीम करके ज़मीन के सीने पर जो लातादाद लकीरें खींची थी और जो मुल्क़ तख़लीक़ किए थे, आज इनमें नफ़रत के बीच बोकर और लड़ाईयों के ख़ारदार दरख़्त लगाकर इन्हें मुत्तहिद नही होते दिया जाता, असल मसअला यह है कि इन तमाम मुमालिक के वसाइल पर मग़रिबी मुमालिक के कॉरपोरेट कम्पनियों का क़ब्ज़ा है, तेल हो या मादनीयात, ज़रई पैदावार हो या समुन्द्रीय हयात सब के सब इन मल्टीनेशनल कम्पनियों के शिकंजे में है, अफ्रीका के तक़रीबन डेढ़ अरब आबादी और तीन करोड़ मुरब्बा किलोमीटर रकबे, 52 मुल्को में तक़सीम कर दिया गया।

वसाइल के एतबार से अमीर तरीन बर्रे आज़म अफ्रीका का हाल यह है कि मुमालिक की फ़हरिस्त में आख़री चौबीस गरीब मुमालिक का ताल्लुक़ अफ्रीका से है, यही हाल एशिया का किया गया, यानी साढ़े चार अरब की आबादी और एक करोड़ 72 लाख किलोमीटर रकबे को पचास मुमालिक में तक़सीम कर दिया गया, इस तक़सीम में शुमाली वियतनाम/जुनूबी वियतनाम और शुमाली कोरिया/जुनूबी कोरिया जैसी ख़ालिसतन जंगी सरहदें भी शामिल थी..!

लेकिन सबसे बदतरीन तक़सीम दो बर्रे आज़मो पर फैली उम्मत-ए-मुस्लिमा की गई... एक ऐसी उम्मत जो तेरह सौ सदियों से न सिर्फ मज़हबी बल्कि तहज़ीब व सकाफत और मरकज़ियत के हवाले से भी एक मुश्तरक विरसे पर क़ाबिज़ थी....इंसानी तारीख़ का सबसे बड़ा मोज्ज़ा यह है कि रसूल-ए-करीम ﷺ के ज़ेरे तरबियत सहाबा किराम رضي الله تعالى عنهما जिन खित्तों में इस्लाम का पैग़ाम लेकर पहुँचे इनकी तहज़ीब, सकाफत, कल्चर यहाँ तक कि इनकी मादरी ज़बान तक तब्दील हो गई। लीबिया, मिस्र, सूडान, शाम, ईराक़ और उरदन जैसे मुमालिक में कभी अरबी नही बोली जाती थी, लेकिन आज यह अरब दुनिया का हिस्सा है, यहाँ तक कि आज इनकी क़दीम ज़बानों के आसार तक ढूंढना मुश्किल है।

"उम्मत ए मुस्लिमा" की इस तक़सीम का आगाज़ जंगे अज़ीम अव्वल के बाद ही कर दिया था, इसकी दो बुनियाद वुजूहात थी, पहली और अहम तरीन बात यह थी कि गई गुज़री ही सही "ख़िलाफ़त-ए-उस्मानिया" मुसलमानों को एक मरकज़ियत फ़राहम करती थी और इसके ज़ेरे नगीन अफ्रीका और मशरिक़-ए-वुस्ता के वह मरकज़ी सरज़मी थी जहाँ पर क़ायम हुक़ूमत की वजह से ही तेरह सौ साल की तसलसुल के साथ उम्मत मुत्तहिद थी, दूसरी वजह यह थी कि दुनिया में तेल दरयाफ़्त हो चुका था और तमाम बुनियादी सर्वे यह ख़बर दे रहे थे कि #अल्लाह ने मुसलमानों की सरज़मीन को इस दौलत से मालामाल किया है..!

आप सिर्फ इस बात गौर करें कि बोस्निया से लेकर लीबिया तक कि ख़िलाफ़त-ए-उस्मानिया अगर तेल की दौलत भी इसकी मईशत (Economy) में शामिल हो जाती है तो आज वह दुनिया को अपने इशारों पर चला रही होती, यही वजह है कि इस उम्मत को इस तरह तक़सीम किया गया को जिसके पास जितना ज़्यादा तेल का ज़खीरा था, इसका इतना ही छोटा मुल्क बना दिया गया, क़तर, बहरीन, कुवैत, अबुधाबी, दुबई, मसक़त वगैरह इसकी मिसाल है। ईराक़, शाम, उरदन और लेबनॉन को ऐसे तक़सीम किया कि अगर कुर्दो से जंग ख़त्म हो तो शिया-सुन्नी लड़ाई हो जाए और अगर दोनों अमन से रहने लगे तो इस्राइल में यहूदियों को बैठा कर पूरे खित्ते को बदअमनी का शिकार और मुसलसल जंग में उलझा दिया गया।

आज इस तक़सीम को तक़रीबन एक सदी होने को आई है, क़ौमी रियासती अपने-अपने इलाकों में अपने-अपने मफ़ादात के किलों में कैद हो चुकी है, हर किसी का अपना मुल्क़ है जिसे वह "सबसे पहले" के नारे के साथ तहफ़्फ़ुज़ देता है, अगर इस खित्ते में इस्राइल न होता तो शायद यह मुल्क, अफ़वाज और दीग़र तनाज़ियात (Conflict) के बगैर ज़िन्दगी गुज़ार रहे होते, क्यूँकि जिस तरह दौलत की कसरत ने इन खानाबदोशो को ऐश की ज़िन्दगी अता की थी और वह सब इख्तिलाफ़ात फ़रामोश करके ऐसी ऐश-ओ-इशरत में ग़र्क़ रहने लगे है ऐसे में इन्हें गफ़लत की नींद से कौन जगा सकता था..!

लेकिन कौन जानता था की इस खित्ते को आख़री आलमी जंग के लिए तैयार किया जा रहा है जिसका एक फरीक़ (गिरोह) अपने लाव-लश्कर के साथ इस्राइल में आकर पड़ाव डाल चुका है और बाकी यहूदी आबादी भी इस आख़री मारके तक वापस लौटने के अज़्म से भरी हुई है, यही वजह है कि 9/11 के बाद अठ्ठारह साल से यह सरज़मीन कशमकश और जंग के शोलों से आतिश फ़िशा बन चुकी है....

जारी...Aadil Nizami

7/11 मुंबई विस्फोट: यदि सभी 12 निर्दोष थे, तो दोषी कौन ❓

सैयद नदीम द्वारा . 11 जुलाई, 2006 को, सिर्फ़ 11 भयावह मिनटों में, मुंबई तहस-नहस हो गई। शाम 6:24 से 6:36 बजे के बीच लोकल ट्रेनों ...