उत्तर मे नया शासनादेश जारी हुआ है। इसके मुताबिक़ कोरोना संक्रमितो डाटा इकट्ठा करके उसे पोर्टल पर अपलोड किया जाएगा।इस शासनादेश मे तीन काॅलम बहुत ज्यादा विवादित हैं। यह पूछता है कि कोरोना संक्रमित जमाती है? क्या वह तब्लीग़ी है? वह कहां से लौटा है? पूरी तरह सांप्रदायिकता से ग्रस्त है। शासनादेश मे इस तरह के विवादित काॅलम सांप्रदायिक कुंठा को साफ ज़ाहिर कर रहे हैं। यूपी सरकार, भारत सरकार, स्वास्थय मंत्रालय को इस तरह के शासनादेश क्या विवादित नही लगते? क्या ये समाज मे दूरियां और नफरत नहीं फैलाऐंगे? भारत सरकार को पहला यह तय करना चाहिए कि उसे कोरोना से लडना है या जमातियो से?
तब्लीग़ी जमात के बहाने मुस्लिमो का समाजिक बहिष्कार करने का ऐजेंडा परवान चढ रहा है? अगर ऐसा नही है तो शासनादेश मे तब्लीगी जमात/जमाती का काॅलम क्यो दिया गया है? क्या यह माना जाए कि सरकार अपनी नाकामी का ठीकरा जमातियो के सर फोड़ना चाहती है? क्या यह भारत को म्यांमार बनाने की योजना है? आज जिस तरह का शासनादेश UP मे जारी हुआ है, यह 19वीं सदी के अमेरिका के वेस्टकोर्ट की याद दिलाता है। वहां Hindoos के खिलाफ ऐसा ही प्रोपेगेंडा चला था कि ये लोग बीमारी फैलाते हैं, इन्हें छूने से दिमाग़ी बुखार हो जाता है। और फिर वही हुआ जो स्टेट की मंशा थी, Hindoos का जनसंहार हुआ। दंगे हुए, इन दंगों में स्टेट मशीनरी शामिल थी जिन्होंने दक्षिण एशिया से गए लोगों का जनसंहार किया। हद तो यह कि Hindoos के खिलाफ हिंसा करने वाले एक भी दंगाई को सज़ा तक नहीं हुई।
लगभग सवा सो साल बाद वही स्थिती भारत में बनती जा रही है। एक महामारी को 'जमाती' साबित करने के लिए पूरा सरकारी तंत्र, सरकार के सहयोगी माध्यम जी तोड़ कोशिशें कर रहे हैं। क्या यह एक बड़े वर्ग का समाजिक बहिष्कार करके उसका जनसंहार करने के शुरूआती लक्षण हैं? कोरोना आज है, कल नहीं होगा, लेकिन इसकी क्या गारंटी है कि कोरोना के नाम पर जो ज़हर फैलाया गया है वह भी कोरोना के साथ दफ्न हो जाएगा? निश्चित रूप से कोरोना भारत और भारतीय मुसलमानों को बुरी तरह प्रभावित कर जाएगा।
*Wasim Akram Tyagi✍✍*