ता.२२ Feb 2020 जानता कर्फ्यू उसके बाद ३१ Feb तक लोक डाउन का आहवान फिर बदलकर १૪ April तक किया गया .
मुसलमान और इस्लाम को बदनाम करनेवालों को ये समाज की कोशिशें बिलकुल याद नहीं, न उन्हें ये मालूम है कि आज भी ग़रीबों का सबसे ज़्यादा ख़याल यही मुस्लिम और मुस्लिम तंज़ीमें रख रही हैं। इस मौक़े पर मुसलमानों के वो तथाकथित लीडर जो बीजेपी सरकार से इनामात हासिल करने की उम्मीद लगाए हुए हैं तब्लीग़ी जमाअत की मुख़ालिफ़त में इनसे भी दो क़दम आगे हैं। कौन नहीं जानता कि पिछले 93 साल से तब्लीग़ी जमाअत मुसलमानों में नमाज़ की इस्लाह का काम कर रही है। ये बात किस से छिपी हुई है कि तबलीग़ी जमाअत के मरकज़ में हर वक़्त हज़ारों लोग रहते हैं और लाखों लोग देश और विदेश के चप्पे-चप्पे में घूमते रहते हैं, देश के ख़ुफ़िया विभाग से क्या ये बात छिपी हुई है कि इसी बंगले वाली मस्जिद में सैंकड़ों देशों से हज़ारों लोग साल भर आते और जाते रहते हैं। अगर इन सब बातों की दिल्ली और केन्द्र सरकार को जानकारी नहीं है तो उसे अपने न जानने पर मातम करना चाहिये और अगर इन सब बातों का इन्हें इल्म है तो अपनी नाकामी और बदइन्तिज़ामी के लिये देश से माफ़ी माँगना चाहिये।
कोरोना से जो नुक़सान हो रहा है या होनेवाला है वो तीन क़िस्म का है, अव्वल जो दिखाई दे रहा है वो जान का नुक़सान है, बज़ाहिर लग रहा है कि कोरोना से हज़ारों लोग मर जाएँगे। हालाँकि एक इन्सान की मौत भी इन्सानियत की मौत है लेकिन जिस देश में दस लाख लोग TB और कैंसर से हर साल मर जाते हैं, हर साल हज़ारों लोग सिर्फ़ इसलिये मर जाते हैं कि उनको वक़्त पर एम्बुलेंस नहीं मिलती, हज़ारों लोग अस्पतालों का चक्कर काटते हुए जान से हाथ धो बैठते हैं, हज़ारों लोग डॉक्टर की बे-रहमी का शिकार होकर शमशान पहुँच जाते हैं, इस देश में कोरोना से भी कुछ हज़ार लोग मर जाएँगे तो सरकार पर क्या फ़र्क़ पड़ता है। लेकिन कोरोना से पैदा हुए हालात का सबसे बड़ा नुक़सान ये है कि सोशल डिस्टैन्सिंग ने अमीर और ग़रीब के फ़र्क़ को स्पष्ट कर दिया है, ग़रीबों का कोई हाल पूछनेवाला नहीं है। इन्हें हर हुकूमत ने मरने के लिये छोड़ दिया है, इनके साथ ग़ैर इन्सानी सुलूक किया जा रहा है, उन्हें हीनभावना से देखा जा रहा है सरकार भी अमीरों के लिये दूसरे मुल्कों को हवाई जहाज़ भेज रही है और ग़रीबों को सड़क पर पैदल चलने पर भी डण्डे मारे जा रहे हैं, मध्य प्रदेश के बाग़ियों को पाँच सितारा होटलों में रखा जा रहा है। इनके ज़मीर ख़रीदने के लिये बे-दरेग़ पैसा ख़र्च किया जा रहा है, लेकिन ग़रीबों के लिये हम कटोरा लेकर भीख माँगने खड़े हो गए हैं। इन रवैयों ने इन्सानियत को शर्मसार किया है, सभ्य मानव समाज से इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती, जानवर भी मुसीबत के वक़्त अपने साथी को छोड़कर नहीं भागते। ये इतना बड़ा नुक़सान है जिसकी भरपाई मुश्किल से हो सकेगी। हम माली नुक़सान की भरपाई कर सकते हैं, हम बीमारी पर क़ाबू पा सकते हैं मगर इन्सानी ज़मीर (अंतरात्मा) जो इस आलमी वबा में भी पत्थर हो गया है, इसे कैसे मोम करेंगे? हिन्दू-मुस्लिम की सियासत यहाँ हर इलेक्शन में होती आई है मगर मुसीबतों में हमने धर्म और ज़ात से ऊपर उठकर काम किया है मगर ये हमारी बदनसीबी नहीं तो और क्या है कि हमने कोरोना को भी मुसलमान समझ लिया है। ख़ुदा के वास्ते अपने इन्सान होने का सुबूत दीजिये, ख़ुद को इतना मत गिराइये कि दुनिया हम पर थूके और जानवर हम पर हँसें। अब्दुल हाफिज लखानी अहमदाबाद