तब आंबेडकर ने कहा था, आप सारी सुविधाएं भारत से लेंगे और चाहेंगे कि आपका विशेष संविधान भी हो, जो अन्य भारतीय राज्यों से अलग हो तो ये भारतीय नागरिकों के साथ भेदभाव होगा और गलत भी होगा.
News18Hindi |August 5, 2019, 10:37 PM IST
26 अक्टूबर, 1947 को जम्मू में जब महाराजा हरि सिंह ने भारत सरकार के साथ विलय की संधि पर हस्ताक्षर किये तो उस विलय में कहीं ये जिक्र नहीं था कि राज्य को विशेष दर्जा (जिसे बाद में धारा 370 के रूप में लागू किया गया) देने के लिए किसी खास कानून की व्यवस्था की जाएगी. अलबत्ता राज्य की स्वायत्तता बरकरार रखे जाने की बात जरूर थी. तब राज्य के अंतरिम प्रधानमंत्री बनाए गए शेख अब्दुल्ला चाहते थे कि राज्य को खास तरीके का विशेष दर्जा दिए जाने का प्रावधान संविधान में किया जाए. लेकिन, भीमराव आंबेडकर ने न केवल इसका मसौदा बनाने से इनकार कर दिया था बल्कि ये भी कहा था कि ऐसा प्रावधान किसी देश के लिए ठीक नहीं होगा.
डॉ. आंबेडकर ने क्यों आर्टिकल-370 का ड्राफ्ट बनाने से किया था इनकार
तब आंबेडकर ने कहा था, आप सारी सुविधाएं भारत से लेंगे और चाहेंगे कि आपका विशेष संविधान भी हो, जो अन्य भारतीय राज्यों से अलग हो तो ये भारतीय नागरिकों के साथ भेदभाव होगा और गलत भी होगा.
5 मार्च, 1948 को शेख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री नियुक्त किए गए. उन्होंने कई सदस्यों के साथ शपथ ली. प्रधानमंत्री बनने के बाद शेख अब्दुल्ला ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा, हमने भारत के साथ काम करने और जीने-मरने का फैसला किया. लेकिन, शुरू से ही कश्मीरियों के लिए स्वायत्तता और अपनी आकांक्षाओं के अनुरूप शासन करने का सपना देख रहे थे. क्योंकि, दूसरे तमाम रजवाड़ों की तरह कश्मीर का भारत के साथ विलय पत्र शर्तहीन नहीं था.
भारत की संविधान सभा में जम्मू और कश्मीर के लिए चार सीटें रखी गईं. 16 जून, 1949 को शेख अब्दुल्ला, मिर्जा मोहम्मद, अफजल बेग, मौलाना मोहम्मद सईद मसूदी और मोतीराम बागड़ा संविधान सभा में शामिल हुए. पंडित जवाहर लाल नेहरू की सलाह पर शेख अब्दुल्ला संविधान निर्माता समिति के चेयरमैन डॉ. भीमराव आंबेडकर के पास इस संविधान का मसौदा तैयार करने का अनुरोध लेकर गए.
आंबेडकर ने कर दिया था मना
ब्लॉग लॉ कॉर्नर के अनुसार, 1949 में प्रधानमंत्री ने कश्मीरी लीडर शेख अब्दुल्ला से कहा कि वह बीआर आंबेडकर से सलाह करके कश्मीर के लिहाज से एक संविधान बनाएं. तब डॉ. आंबेडकर भारत के पहले कानून मंत्री थे. संंविधान मसौदा कमेटी के चेयरमैन थे. उन्होंने अनुच्छेद-370 का ड्राफ्ट बनाने से मना कर दिया, क्योंकि उन्हें लगता था कि इसकी जरूरत ही नहीं है.